Tuesday, February 26, 2013

26 फरवरी 2013 का चित्र और भाव



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ कर्तव्य हम निभाएं ~

ले कर हाथों में हौसलों की मसाल, देश हित में एक हो जाएं
बदल स्वार्थ का अपना स्वभाव, देश भक्ति का विश्वास जगाएं
आज हर दिशा से दुशमन देख रहा, आओ उसे सबक सिखाएं
अपने घर में पल रहे आतंकवाद को आओ मिलकर दूर भगाएं
अपनी सुरक्षा अपने हाथो में है आओ उसे और मजबूत बनाएं
भ्रष्टाचार से देश को बचाना है आओ घर से इसकी नीवं सजाएँ
सबकी शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा हेतू आओ हम कदम बढ़ाएं
समाज के हर वर्ग को सम्मान मिले, इस सोच का बिगुल बजाएं
पहले हुआ कुछ अगर गलत, कर शिक्षित आज कुछ नया कर जाएं
नर - नारी का भेद समझ, नए ज़माने संग अपवादों को हम मिटाएं
कलम से क्रांति संभव है लेकिन आज इसे रण क्षेत्र में लिख जाएं
ईमानदारी अपने कार्य में लाकर, आओ कर्तव्य हम अपना निभाएं


Neelima Sharma 
हमें नही चाहिए किताबी कीड़े
हमें नही चाहिए कच्चे हीरे
हमें तलाश हैं उस जवानी की
जिसके हाथो में दम हो
क्रांति की आग जलने का
ईमानदारी की अलख जगाने का
वीर तुम आगे बढ़ो
धीर से बढ़ते चलो
विचारो का प्रवाह हो
ख्यालो पर अमल हो
परिवर्तन की आग हो
हाथ में मशाल हो
भारत माँ निहाल हो

Pushpa Tripathi 
कदमो से कदम मिलाकर .
आओ मिलकर मसाल जलाए l

सोच नई है, राह नए है
जीवन के हर रंग नए है
फागुन के रंगीन मौसम में
आओ मिलकर मसाल जलाए l

समान शिक्षा का प्रसरण करके
अबोध अंधकार का नाश कर दे
भेद भाव का अर्थ मिटाकर
आओ मिलकर मसाल जलाएं l

न्याय बदलेगा , देश बदलेगा
देश के नेताओं का रूप बदलेगा
घर घर भ्रष्टाचार का अर्थ बताकर
आओ मिलकर मसाल जलाए l

बेटी जन्म पर अभिमान समझे
बुजुर्गों का सम्मान हम समझे
रहे एकता स्वच्छ समाज में
आओ मिलकर मसाल जलाए l


बालकृष्ण डी ध्यानी 
मशाल जलते रहना है

मशाल जलते रहना है
छाया अंधकार वो अपने हक का
उसे हमेशा तुझे प्रज्वलित रखना है
सबल इरादों संग तुझे हरदम रहना है
मशाल तुझे जलते रहना है

क्रांती के पथ पर पथिक
क्रांतीकारी बन आगे को बड़ना है
नित नया मकाम तुझे हसील करना है
इतिहास के सुंदर पन्ने पर सजना है
मशाल तुझे जलते रहना है

शृंखला बध शृंखला तुझे जुड़ना है
कड़ी दर कड़ी के संपर्क में तुझे रहना है
अभी तुझे अथक अखंड तुझे जलना है
निर्बल को बल तुझे देना है
मशाल तुझे जलते रहना है

कितने देश भक्ती के और गीत गाना है
कितने फंदों पर और हमे झूल जाना है
हे माँ तेरी धरती पर ये शीश चडाना है
मशाल बनकर बस यूँ ही जलना है
मशाल तुझे जलते रहना है

मशाल जलते रहना है
छाया अंधकार वो अपने हक का
उसे हमेशा तुझे प्रज्वलित रखना है
सबल इरादों संग तुझे हरदम रहना है
मशाल तुझे जलते रहना है


किरण आर्य 
हौसले मेरे मशाल से रौशन रहे
कंटक भरी हो डगर चाहे कितनी
आस की लो प्रजव्ल्लित रहे ..........

देशप्रेम राष्ट्रहित हो ध्येय जीवन का
निज से हट परहित बढ़ाये मान
सत्कर्म संग जीवन चलता रहे .......

आक्रोश को मन के शस्त्र बना ले
बन सबल अविचल से डटे रहे
हौसले मेरे मशाल से रौशन रहे


नैनी ग्रोवर 

चाहे हो आंधी या तूफ़ान, ये मशाल ना बुझने पाएगी,
बड़ चले हम मंजिल की और, ये राह न रुकने पाएगी..

अब ना सहेंगे कोई जुल्म, ना किसी और पर होने देंगे,
अब कोई भी नारी, इस धरती पे, यूँ ना लुटने पाएगी..

वो हो कोई बाहर के दुश्मन, या देश में छुपे हुए गद्दार हों,
देंगे कुचल इनके मंसूबे, अब ये कसम ना टूटने पाएगी...

ऐ माँ भारती, है वादा तुझसे, अब तेरी वीर संतानों का,
परचम रुपी यह तेरी बिंदिया, कभी ना झुकने पाएगी .!!


भगवान सिंह जयाड़ा 
जब जब उठती है हाथों में यह मसाल ,
दिलों में जूनून और जोश भर देती है ,
कुछ करने की तमन्ना दिलों में भर देती हैं ,
इस की शक्ति से बदलती है यह दुनिया ,
आजादी की देवी की निशानी कहलाती है
जहां जहां भी जली यह मसाल हाथों में ,
वहा वहा लोगों ने आजादी की ख़ुशी पाई ,
कभी न बुझने पाए अब यह जलती लौऊ ,
इस को मार्ग दर्शक हम सब को बनाना है ,
ले कर हाथों में यह जलती हुई मसालें ,
हम सब को भविष्य अपना संवारना है ,


डॉ. सरोज गुप्ता 
मैं हूँ मशाल

मैं हूँ मशाल
मैं हूँ उन हाथों में
जो लाकर क्रान्ति
मिटाते भ्रान्ति
स्थाई करते शान्ति !

मैं हूँ मशाल
मैं दिखाती रोशनी
हर महाभारत में
हर धृतराष्ट्र को
पहचान लें अपनी
मन की आँखों से
अपने पुत्रो की बदनीयती
अपनों के प्यार में
जो भी रहा अंधा
नहीं मिला उसे कभी
किसी युग में
अपनों का कंधा !

मैं हूँ मशाल
पार्थ की सारथी
इस बार पार्थ
है बहुत आक्रोशित
दुशासन को देगा चीर
उसने किया अब किसी
द्रोपदी का हरण चीर !

मैं हूँ मशाल
मैं हूँ उन हाथों में
जो लाकर क्रान्ति
मिटाते भ्रान्ति
स्थाई करते शान्ति !

अलका गुप्ता 
निज कला और ज्ञान विज्ञान के प्रसार का प्रयास हो |
हिन्दुस्तान की अखंडता के लिए क्रान्ति एक महान हो |
आतंकवाद भ्रष्टाचार के खिलाफ हर तरफ आवाज हो |
निज संस्कृति संस्कार की हर हाथ में एक मशाल हो ||


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
जलते नहीं हाथ कभी, उठाने से सर्वशिक्षा अभियान की मशाल ॥
अंगूठे ने घर हैं फूंके, रोशनाई से कलम की, जीवन हो खुशहाल ॥।


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Monday, February 25, 2013

24 फरवरी 2013 का चित्र व् भाव



कौशल उप्रेती 
क्यों समंदर बह रहा है
यूँ निगाहे दरमियान
धीमी धीमी एक चुभन सी
हो रही है महरबान
अब समंदर ही से पूछो
कितना तुझमे शोर है
आ रही लहरों के जैसा
अब तो चारो और है ||


बालकृष्ण डी ध्यानी 
उमंगों की पदोन्नति

मस्त लहरों की उमंग
नाचे है आज ये मन
हर्षावेश वेग से दौड़े वो सरफट
पानी की सतह पर आज मेरा मंच
उमंग भरा मै और ये सफर

झोंका वो साहस मेरा
प्रचंड वायु के विरुद्ध वो बड़ा
लहरों को चीरते हुये
बहा रहा मेरा रोमांच मिला
उमंग भरा मै और ये सफर

उल्लसन की ऐ फिसलन
भाव वेग की तैरती लीला
जोश का है ये बस मिलन
मुंह ना दबा पथिक
उमंग भरा मै और ये सफर

हर्षातिरेक उत्साह मेरा
खोजे नित नये वो अयाम
राग है बस इस दिल का
बस वो ही है चंचला
उमंग भरा मै और ये सफर

मस्त लहरों की उमंग
नाचे है आज ये मन
हर्षावेश वेग से दौड़े वो सरफट
पानी की सतह पर आज मेरा मंच
उमंग भरा मै और ये सफर


नैनी ग्रोवर 
मत तोड़ हदें अपनी, ऐ इंसान बाज आ,
ज़रा सोच होगा क्या, गर मैं भी उछल गया ..

तू खेल भले मुझसे, दिल चाहे तेरा जितना,
पर मत मान बुरा अगर कभी,मैं भी खेल गया ...

स्वर्ग जैसे तट मेरे, तूने नरक में बदल दिए
फिर भी तेरी नासमझी को, अब तलक झेल गया !!

Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
चला हूँ मैं ।

है गुरुर सागर को
गहराई पर अपनी ….
सागर की गहराई ..
मापने चला हूँ मैं ...
देखूं तो सही ..
विशालता की उपमा कहीं ..
संकुचित तो नहीं ..
उसकी हर लहर से ..
टकराने चला हूँ मैं ..
संग उन्मादित सा ..
लहराने लगा हूँ मैं ...
रसिया है सागर ..
संग नदियों का पाकर ..
नदियों से बतियाने चला हूँ ..
सागर की गहराई ..
उन्हें बताने चला हूँ मैं ...
खार निगला सगर जगत का ..
अमृत का उसे पता नहीं ..
मंथन करने चला हूँ मैं

भगवान सिंह जयाड़ा 
कुछ भी नामुमकिन नहीं उनको ,
नहीं खौप चुनौतियों से जिनको ,
जिन के हौसले यहाँ बुलंद होते है ,
वह बुलंदियों के सहन्शाह होते है ,
कभी आसमान को छूने का जूनून ,
कभी सागर की लहरों से खेलते है ,
कभी वह प्रबतों से लगाते छलांग ,
कभी पर्बतों पर पक्षी सा मंडराते है ,
अजब गजब के कारनामो के संग ,
यह लोगों के दिलों में छा जाते है ,
कुछ भी नामुमकिन नहीं उनको ,
नहीं खौप चुनौतियों से जिनको ,


Pushpa Tripathi 
चीरता चला हूँ मै
समन्दर की लहरों को आज
हटाकर सारे विफल भंवर नाकाम l

हारता नहीं हूँ मै
चाहे हो कोई पथ पथराव
हटाता सारे बाधित कंकण निष्काम l

तरंगो पर चलता हूँ मै
हर तार उम्मीदों को जोड़कर
निःसंदेह निष्ठा आत्म विश्वास संकल्प मेरा l

" पुष्पा त्रिपाठी "


अलका गुप्ता 
हम वह हौसले...और हिम्मत रखते हैं |
लहरों से भी समुद्र की बेख़ौफ़ खेलते हैं |
हम डरें आँधियों से भी...हरगिज नहीं ...
खुदा के बाद भरोषा पुरुषार्थ का समझते हैं ||

हाँ प्रकृति का तिरस्कार...हम करते नहीं |
अनुकूल अपने करके ......हम हँसते नहीं |
दोस्ती करते हैं हम तहजीब से कुदरत की |
सम्मान में उसकी ...कुछ कमी करते नहीं ||

चीरता चला जाता हूँ सीना महासागरों का |
फिसलता हुआ पार करता हूँ रास्ता वर्फ का |
या खेलता पूर्ण आत्म-विशवास से खेल सब |
करूं बहुत कुछ नया करतब....चमत्कार का ||


किरण आर्य 
लहरों संग खेलते है हौसले मेरे
सागर की ये लहरे बेखौफ सी
आती किनारे पर लौटने को सब
फिर लौट जाती सागर में समाने को

हर बार आती है उतने ही उत्साह से
छूकर मस्तिक्ष साहिल का लौट जाती
कर सर्वस्व अर्पण अनुरक्ति मन बसाए
आलिंगन करने को आतुर सी सागर का

मेरा हौसला भी हाँ कुछ ऐसा ही तो है
डगमगाता गिरता संभलता फिर बढ़ता
निरंतर आगे लहरों से लड़ने की आस संग
अविचल बिना डरे अग्रसर अनावरत बहता


Yogesh Raj .
संघर्ष मेरा शौक है, देता है संतोष मुझे,
यूंही कुछ मिल जाय, आता नहीं रास मुझे,
तूफानी लहरें रोकती हैं रास्ता कायरों का,
मगर रास्ता बनाकर देती हैं वोही लहरें मुझे.


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
तूफान सा फिर समुंदर में उठा है, लहरों को निशाना बनाया है
आ इन लहरों पर चले 'प्रतिबिंब' जिंदगी ने यही तो सिखाया है



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Saturday, February 23, 2013

23 फरवरी 2013 का चित्र और भाव



बालकृष्ण डी ध्यानी 
उदास हूँ मै
सर को झुकाये निराश हूँ मै
आशा छोड़े बैठा हूँ मै
कोने कोने उस के घेरे में फंसा मै

बेदिल हुआ तन मेरा
कैसे विषण्ण से मै सक्त
मायुसी छाई हर छोर
आशाहीन मन मेरा

हताश हूँ बिखरे ताश की तरह
विदूषक बना खुद से ही
हतोत्साह अब चाह है मेरी
धोखा दिया है खुद को ही

चारों ओर अंधकार है
प्रकाश छुपा आज किस ओर है
भम्रित है आज तन मन मेरा
उजाले का किनार किस ओर है

उदास हूँ मै
सर को झुकाये निराश हूँ मै
आशा छोड़े बैठा हूँ मै
कोने कोने उस के घेरे में फंसा मै


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
आसमां छूने चला था,
आदमी .....
क्यूँ धरा पर हताश सा ...
आदमी ....
लाशों को रौंदता ..
विकास को अग्रसर ..
फिर भी मायूस ..
खुशियों से मरहूम ..
गुमसुम ....
आदमी .... ..
पंचतत्व निर्मित ..
देह ..
हाड मॉस का लोथड़ा ..
आदमी ..
बेसुध, इंसानियत से ..
दूर, भगोड़ा ..
आदमी ..
जनावर भीतर ..
देखा ...
थोड़ा थोड़ा आदमी ..
पंचतत्वों को टटोलता,
दो जून रोटी को,
सागर सा मूंह खोलता ..
धर्म पर खून खौलता
खुदी का खुदा ..
बन रहा आदमी ...
फिर भी नाखुश सा ..
क्यूँ है आदमी ?


नैनी ग्रोवर 
तन्हाई में बैठ अकेले, दिल में एक ख्याल आया है,
कौन है जहाँ में ऐसा, जिसने मेरा साथ निभाया है..

मतलब के रिश्ते रहते हैं, लालच की छत के नीचे,
उन्हीं छत से लगीं दीवारों पे, हसरतों को सजाया है..

बेमानी सी लगने लगी है , ये दुनियाँ ना जाने क्यूँ,
ये कैसा वक़्त तकदीर ने, आज मुझे दिखलाया है ...

भूले-भटके से भी अब, कोई ख़ुशी इधर आती नहीं,
टहल रहा अब इस घर में, बस ग़मों का साया है !!


Yogesh Raj
बड़ी आशाएं थीं
बहुत आकांक्षाएं थीं,
मगर जब वास्तविकता देखी,
पाया, सब व्यर्थ महत्वकांक्षाएं थीं,
माता-पिता को सुख देने की कामना,
स्वयं को व्यवस्थित करने की खुशी,
देश समाज को कुछ देने की ललक,
सब धरी की धरी रहती दीख रहीं हैं,
आरक्षण की तलवार ललकार रही है,
बुद्धि पाकर भी बुद्धू बनाया जारहा हूँ,
पाप न किया पर पापी बनाया गया,
मै विद्या का मंदिर छोड़े जा रहा हूँ.


अलका गुप्ता 

कौन बहाएगा गंगा ज्ञान की ,
शिक्षा के इस व्यापार में ...?
भौंचक्का खड़ा है नौजवान ...
आपाधापी के इस माहोल में ।
क्या करेंगे डिग्रियों का ...?
बहुत बड़ी है लाइन...ये
बेकारों की इस संसार में ।।
आप भी कहने लगे ...
लो !मसले हैं आम ...यह ।
फ़ालतू वक्त कीमती आपका ।
जाया... हम करने लगे !!!
बहुत हुआ... हटो भी ...
खुशनुमा इस माहोल से ।
फिर भी एक बार ....
बस एक बार ....
सोंचो तो भाइयों !!!
हमने ही हमको पहुँचाया क्यूँ ?
इस अंजाम में ....
पोटली अधिकार की ...
समेट ली पास में ...।
कर्त्तव्य परे सकेल दिया ...
आज की सरकार ने ।।
नेताओं के जाल में...
अश्रु भरे सरस्वती सिसक रही ...
विद्यालयों के हाल में ....
विद्यालयों के हाल में


नूतन डिमरी गैरोला 
मैं नहीं कहता कि मैं उदास हूँ
खोया है बहुत कुछ
फिर भी
जीने की आश है
मैं नहीं कहता कि मैं उदास हूँ |
.
जरा पल भर रुका हूँ
ये कौन मेरे साथ है
ये धरती, ये हवाएं, ये बादल
सब तो मेरे साथ हैं,
जिस्म में धडकता दिल तो
अभी भी मेरे ही साथ है,
उठ चल, पुनः बढ़
ये मेरी रूह का आगाज है
मैं नहीं कहता कि मैं उदास हूँ


बलदाऊ गोस्वामी 
~उदास की घटना~

घटित-घटनाओं से,उदास पडी जीन्दगी है।
उदासी लम्हों से,नयन मेरी भीगी है।।
अपनी कर्मों से,बैठी मेरी ख्वाबें हैं।
टुटती उम्मिदों से,रोती मेरी जजब्बातें हैं।।
अपने कर्मों से,मानष की मिलती जीन्दगी है।
घटित-घटनाओं से,उदास पडी जीन्दगी है।।
जीन्दगी के हर आयाम से,संघर्ष नजर आती है।
चंद दु:खों से,संघर्ष भयभीत नजर आती है।।
कुदरत की आशिस से,मुश्बितें टुटती है।
माता-पिता की चरंणों से,दुवायें मिलती है।।




प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
आज मुस्करा ले

कुछ खोया, कुछ पाया
लेकिन क्यों फिर
आज हिसाब करने लगा
जो खोया, उसमे क्यों
दर्द तू फिर तलाशने लगा

कोस रहा क्यों
खुद अपनी किस्मत
शायद पाने से ज्यादा
खोने का मलाल है
खुशी से ज्यादा
गमो से प्यार है

कब तक दर्द को
यूँ ढोता जाएगा
जो बीत गया
उसे भूल जा
जो पाया है
उसे गले लगा ले
आने वाले कल के लिए
आज मुस्करा ले


प्रभा मित्तल 
आज निराश हूँ ,इसलिए चुपचाप हूँ,
जिंदगी की दौड़ में में अकेला रह गया हूँ।
हारा नहीं ,फिर भी हार का अहसास है
साथी सब चले गए, मै ही पीछे रह गया हूँ ।
अपने मन का डिगता विश्वास जगाने को,
बैठा हूँ इस एकांत में,हार नहीं मानूँगा
फिर से उठ कर मंजिल तक मैं जाऊँगा,
लक्ष्य एक है ,एक दिन ऐसा आएगा ,
पापा के थकते कंधे मैं सहलाऊँगा,
चाहता था मैं सम्बल बनूँ परिवार का,
पूरा होगा स्वप्न माँ-पिता की आस का।
बस जरा व्यवस्था से थक गया हूँ
जिंदगी की दौड़ में में अकेला रह गया हूँ।
उदास हूँ ,इसलिए चुपचाप हूँ।


Pushpa Tripathi
जमाना साथ है , फिर भी अकेला हूँ 'मै'
बैठा ... थमा सा हर दर्द से उलझा हूँ मै

पूछता हूँ सवाल अपने आप से, कौन हूँ मै
निरुत्तर से खुद को बेबस हारा पाया हूँ मै

बगानों सा मन खस्ता हाल बेहाल हो गया
दूसरों से नहीं ...अपने आप से नाराज हूँ मै

जिंदगी की जद्दो जहद से परेशान इच्छाएं मेरी
सब की सब डूबी हुई ...... खारा पानी हूँ मै

फिर भी तो उठूंगा .. चलूँगा .. रुकुंगा नहीं मै
क्यूंकि यह रीत तो पुरानी है .... अभी नया हूँ मै

बाँध लूँगा आसमान को मुटठी में अपने अजेय मन हूँ मै
अँधेरा ही सही दो पल की जिंदगी में ... सवेरा हूँ मै ......


किरण आर्य 
मन की उदासी हाँ आज बैठी घेर मुझे
हर तरफ विषाद आक्रोश से उपजा क्षोभ
बाहें फैलाए लील लेने को आतुर संतोष

मन की आस बुझते दीये सी क्षीण होती
और मन सोचने को विवश बेबस सा
क्या खोया पाया दुनिया सिर्फ मोहमाया

तभी सामने संघर्षरत इक चीटी को पाया
गिरती संभलती फिर तत्पर प्रयासरत सी
क्या मेरा हौसला इससे भी है गया बीता

सोच यहीं हौसले ने मेरे बुझते मन दीये को
किया फिर आस से रौशन छंट गया अँधेरा
आस की रौशनी से मुस्कुरा उठा मन का हौसला



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Friday, February 22, 2013

21 फरवरी 2013 का चित्र और भाव




नैनी ग्रोवर 
बिछड़ कर शाख से, हम जाने कब झड़ जायेंगे,
ले चलेगी हवा जिधर, फिर उसी और उड़ जायेंगे..

सीख इंसान जीना हमसे, और मर जाना भी सीख,
जीते जी तो बहुत कुछ दें, देंगें खाद जब सड़ जायेंगे..

हमें बनाया सृष्टि ने, हमें काम इसी के ही करने हैं,
तेरे जैसे नहीं हम इंसान, जो लालच में बिगड़ जायेंगे..

फूंक रहा क्यूँ ये प्यारी धरती, बिगाड़ रहा क्यूँ संतुलन,
सोच क्या होगा, जब धरती से, पेड़-पौधे उजड़ जायेंगे.


बालकृष्ण डी ध्यानी 
तू मुसाफिर यंहा

हर पत्ते में एक तत्व छुपा
आज वो कुछ बोल रहा
मानव बना है तू इससे
इसको ही तू भूल रहा

हवा, पानी, पृथ्वी
आकाश और अग्नि
का जब मिलन हुआ
तेरा आकार तब स्वरूप हुआ

पंच इन्द्रियों से रचा
तेरा शरीर रूपी ढांचा
आज भी तू कुछ खोज रहा
अपने में तू बस खो रहा

पत्ते पत्ते सूख कर
पेड़ों से तू टूटकर उड़ रहा
आता जाता रहा तू
बना सिर्फ तू मुसाफिर यंहा

हर पत्ते में एक तत्व छुपा
आज वो कुछ बोल रहा
मानव बना है तू इससे
इसको ही तू भूल रहा


अंजना चौहान सिंह 
हरी हरी पत्तियाँ चहुँ और हरियाली छाई
मन में नयी तरंग नयी उमंग भर लाइ
जैसे ही आया मौसम पतझड़ का
ये डालियों से गिर जमीन पर आयीं
पर वजूद खो जाने पर भी इन्होने
पेड़ के लिए खाद बनाई
नहीं मिटता पत्तियों का वजूद कभी
पेड़ों से गिर जाने के बाद
हर पतझड़ के बाद आता है बसंत
आ जाती हैं नयी पत्तियाँ
समय चक्र बड़ा बलवान यूँ ही चलता जाता है
पुरानी पत्तियों की जगह नयी को स्थान मिल जाता है
किन्तु ना भुलाना पुरानो का वजूद कभी
इनसे हमारा गहरा नाता है
ठीक उसी तरह बड़ों का करो सम्मान
क्योंकि हमारा बड़ा ही हमें इस दुनिया में वजूद में लाता है


किरण आर्य 
पौध से फूटता कोमल सा पत्ता
हरीतिमा लिए कोमल स्निग्ध सा
समय के साथ परिपक्व होता .........

मौसम के हर पड़ाव संग चलता
धुप बारिश सर्दी गर्मी सहता
जीवन के हर रंग का साक्षी .........

पत्ता ये उम्र के पायदानों सा
हरे से गहरा हरा होता
फिर पीलेपन में झलकती
यौवन से पौढ़ता को अग्रसर
जीवन की छवि ही ............

इक दिन गिर मिटटी में
मिटटी सा ही हो जाता
वैसे ही जैसे मिटटी निर्मित
मानुष का ये शरीर


अलका गुप्ता 
वृक्ष की शान पे हमेशा मुस्कराई पत्ती |
द्रवित हुई विछड़ कर वृक्ष से गिरी पती |

हवा ने भी खूब इधर-उधर नचाई पत्ती |
हाल पर अपने विचलित छटपटाई पत्ती |

तभी वृक्ष ने वहीँ से आस जगाई उसकी |
थी अभी तक मेरा जीवन आधार तू पत्ती !

व्यर्थ न जीवन अब भी, तू क्यूँ उदास पत्ती |
अब भी करेगी इस सृष्टि का तू उद्धार पत्ती |

निराशा मे रोना मत कर आशा संचार पत्ती|
हर प्राणी के जीवन का...है तू आधार पत्ती |

सजाना सँवारना या खाद बन मिटटी बनना|
उद्देश्य हो फिर से इस सृष्टि का उद्धार करना |

मुस्कराई ..समझ गई यह जीवन -सार पत्ती |
करेगी अर्पण ये जीवन सृष्टि कल्याण हेतु पत्ती ||


सुनीता शर्मा 
एक टहनी सा परिवार
हम पत्ते बने इसका श्रृंगार
साथ बढने से रहता है सरोकार
प्यार की छाँव में बसे इसका संसार !

छोटे बड़े का भेद नहीं
स्वार्थ द्वेष का फेर नहीं
उन्मुक्त जीवन जीते सभी
इनकी भावनाओं का कोई मोल नही !

वर्षा हरदम मिलती स्नेह की ,
शब्द वाटिका बनाती भावों की ,
गगन को छूने की लालसा में ,
खाद डालती आत्मीयता यहाँ सभी की !


ममता जोशी 
पतझड़ आया और पेड़ के पत्ते झड़ गए,
उसे अनदेखा कर सब मुड़ गए,
पंछी भी सब उड़ गए,
वक़्त बदला,मौसम बदला,
पेड़ में फिर हरे पत्ते उग गए ,
देखते ही देखते फिर सब उससे जुड़ गए,
इसी तरह सभी के जीवन में आते हैं बुरे दिन,
पर जो हार न माने समझो वो जीत गए.


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
वक्त की मार

यौवन कल तक हरा था
रंग सावन सा जैसे चढ़ा था
दंभ भी कुछ कम न था
साख पर निर्भीक जुड़ा था

इतराता था कभी लहरा लहरा कर
स्वागत करता सबका मुस्करा कर
प्रेम करता सबसे पत्तो संग मिल कर
आश्रय देता था सबको छाया कर

पर वक्त भी बड़ा जालिम होता है
सब कुछ एक दिन छीन लेता है
उम्र की दुहाई दे सबसे दूर करता है
प्यार मिला जहाँ वहीं पर दर्द देता है


डॉ. सरोज गुप्ता 
मैं धवल ,नवल पीपल का पत्ता
कल तक थी मेरी पेड़ पर सत्ता !
समय ने किया अपनों से नत्था
जीऊंगा कैसे छोड़ अपना जत्था !!

मैं मरकर भी सदा रहूंगा सदाबहार
मैं चिकना चौड़ा चंचल लहरदार !
फ्रेम बना नया रूप देते कलाकार
प्रेमी तस्वीरो को सजाता हूँ दिलदार !!

मैं मरकर भी चारा हूँ जानवरों का
उत्तम चारा मानते मुझे हाथियों का !
मिट्ठी में मिल जाऊँगा होकर मिट्ठी का
खाद बन पोषण करूंगा नवजीवन का !!



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Wednesday, February 20, 2013

20 फरवरी 2013 का चित्र और भाव




नूतन डिमरी गैरोला 
तू न तू रहे
मैं न में रहू
छोडनी होगी अब
जिद अभिमान
नारी पुरुष
एकसमान|


Yogesh Raj .
मुझसे मत पूछो तुम्हारा कसूर क्या है,
मालूम होगया तेरी फितरते-गरूर क्या है,
निकल जाओ फ़ौरन अभी मेरी जिंदगी से,
तुझे पता नहीं इश्क करने का शऊर क्या है

नैनी ग्रोवर
ताउम्र करते आये तुम, अपनी मनमानी,
कभी कोई बात तुमने, औरों की ना मानी ..

ना कोई रिश्ता निभाया, ना वादा कोई तुमने,
बस खेल समझ ली तुमने, सारी जिंदगानी ..

अब वक़्त आ गया है समझ जाओ, अरे नादाँ,
वरना मैं आ गई अपनी पे, तो कर दूंगी पानी-पानी


Neelima Sharma 
कहलो सजनी , जो कहना हैं
आज तुम्हारी बारी हैं
लफ्जों से नाता हैं तुम्हारा
अश्को से तुम्हारी यारी हैं
अब कर्मो का लेख कह लो
या कहलो ज़माना भारी हैं
शादी कर लो तो भैया
पर घर की मालिक नारी हैं
लड़-झगड़ कर प्यार भी करती
इस नारी पर दुनिया बलिहारी हैं


Aruna Singh 
कितना ही रूप रचाओ
हर रूप पहचानती हूँ
आज प्रमोशन का बहाना करके
गर्लफ्रेंड के साथ डेट पर मत चले जाना

सुमन कपूर 
छोडो जिद्द अब दिलजानी
बीते न यूँ ही जिंदगानी
तुम जीते लो मैं हारी
घर घर की यही कहानी


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
जो चाहते हो घर आँगन शांति अगर ।
रखो पग वहीँ, जो हो पत्नी की डगर ।।
मंदिर समझना सदैव, सुसराल की नगर ।।
होगी हर हाल में शिकस्त, जान लो मगर ।
हथियार जो उठाना, तुम चाहो भी अगर ।
नारी आगे झुके, गुणीजन ब्रह्माण्ड सगर ।
नारी से चले ज़माना, आजमा लो चाहो गर ।
हर हाल में करो तुम, यूँ धर्मपत्नी की कदर ।रामेश्वरी
[सिर्फ एक व्यंग्य]


बालकृष्ण डी ध्यानी 
वंही हार मान ली थी मैंने

जब हुये थे फेरे सात
देना है अब पग पग में बस तेरा साथ

नाराज हो तुम आज
जरुर मुझसे हुई होगी कोई बात

निकाल लो सारा गुस्सा
फिर शांत बैठ कर करेंगे बात

किसी भी चीज का हल
प्रिये ना है इस गुस्से के साथ

देखो कितना लहू व्यर्थ गया तुम्हरा
थी ना ये फिजूल की तकरार

सेहत पर फर्क पड़ेगा इससे तुम्हरी
हाँ मैंने वंही पर मान ली है हार

जब होये थे फेर सात
देना है पग पग में बस तेरा साथ


डॉ. सरोज गुप्ता 
मेरी जान,जान हाजिर
~~~~~~~~~~
२१वी सदी की नारी देती चेतावनी इशारा समझो,मैं ज्ञानेश्वरी !
मैं चली मायके,भूल जाओ,लद गए वो दिन,तुम्हारी परमेश्वरी!!

भूल हुई निकालो न मुझे अपने प्राणों से,ओ मेरी प्राणेश्वरी !
मेरी जान सात फेरो की कसम , मैं तुझ पर बलिहारी सतेश्वरी !!

बाहर घना अँधेरा है, खा लूंगा यही ठोकर, ओ तमहरिणी !
भूल हुई निकालो न मुझे अपने प्राणों से,ओ मेरी प्राणेश्वरी !!

मैं हूँ अफसर बड़ा,दही का बड़ा,खा ले मेरी जान ओ क्लेशहारी !
भूल हुई निकालो न मुझे अपने प्राणों से,ओ मेरी प्राणेश्वरी !!

यहीं दिखा दे नरक,बिना खता भी सजा है मंजूर,ओ मेरी स्वर्गेश्वरी !
भूल हुई निकालो न मुझे अपने प्राणों से ,ओ मेरी प्राणेश्वरी !!

भूल हुई निकालो न मुझे अपने प्राणों से ,ओ मेरी प्राणेश्वरी !
मेरी जान सात फेरो की कसम मैं तुझ पर बलिहारी सतेश्वरी !!

२१वी सदी की नारी देती चेतावनी इशारा समझो,मैं ज्ञानेश्वरी !
मैं चली मायके,भूल जाओ,लद गए वो दिन,तुम्हारी परमेश्वरी!!


किरण आर्य 
थोड़ी सी नोक-झोक थोड़ी सी कहा सुनी
जीवन की कहानी ऐसे ही तारो से बुनी
मैं और तू इक ही रथ के है हम पहिये
अधूरे इक दूजे बिन फिर काहे ये तना तनी ..........

सुनते आये थे हमेशा कही और अनकही
तकरार था बातों में प्रीत भी दिल में रही
नफ़रत से रहे कोसों दूर प्रेम के हम पंछी
पूरक इक दूजे के जुदा हमारी रूह अब नहीं ..........

तू-तू मैं-मैं खट्टी मीठी नोक-झोंक तकरार
इन संग बहती जाए जिंदगी लगे नैया पार
समझे अस्तित्व इक दूजे का रखकर मान
दिल में पनपे नेह का पौधा रूह बसे स्नेह अपार ......

जान लिया है हमने सुखमय जीवन का राज़
रखे अहम् को परे दिल से छेड़े प्रेम के साज़
स्त्री पुरुष से पहले है मानुष प्रेम रंग में रंगे
इक दूजे साथ बिन कैसे संवरे बिगड़े काज़ ........



अलका गुप्ता 
यूँ ही भटकते रहो...... तुम आवारा राहों में |
दिल पर अपने तुम्हें ऐतवार नहीं....... क्यूँ ?
तुम चलो वहीँ ........जहाँ मंजिल हो तुम्हारी |
क्यूँ .........दिल पे तुम्हारे लगाम नहीं रहती |
क्यूँ ........तुम छींके की तरह बिखर जाते हो |
क्यूँ ......बार-बार कहानी एक ही दोहराते हो |
क्यूँ कोई तुम्हें मेनका कभी उर्वशी नजर आती है ||


भगवान सिंह जयाड़ा 
मैं हूँ पश्चिमी सभ्यता की नारी ,
मैं तुम मर्दों को क्या समझू ,
अगर बिना मेरी मर्जी के चलोगे ,
तो समझ लो खैर नहीं तुम्हारी ,
बरना बहार के दरवाजे खुले है ,
चुपचाप यहाँ से खिशक जावो ,
तुम को सदा के लिए छोड़ दूँगी .
तलाक तुमको तुरंत दे दूँगी ,
मैं नहीं हूँ जैसे हिन्द की नारी ,
एक बार सात फेरे क्या फेरे ,
जिंदगी भर सेवा करूँ तुम्हारी ,
इस लिए मेरी बात मान लो ,
समझौता मेरे से तुम करलो ,
बात मेरी तुम मान लो ,
इसी में भलाई है तुम्हारी ,,


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल  
...... बहुत कुछ बदलना है

मैं तो सुनता आया, हाँ में हाँ मिलाता आया तेरी
घर में हो या फिर बाहर, हर जगह बस चलती तेरी
मिल गया शायद सब, अब तुम्हे जरुरत नही मेरी
तुम्हारे इशारे अब भी न समझा गर तो खैर नही मेरी

कल जो गलत हुआ मुझे कारण समझा तुमने
कल तुम्हारा साथ दिया आज लगी अंगुली उठाने
कहीं कोई अपवाद हो लेकिन लगी तुम ताने कसने
भीड़ बनकर आज हर मर्द को लगी तुम कोसने

मैं कहीं भाई कहीं पिता हूँ, कहीं पति कही साथी हूँ
फिर भी गलत मानसिकता के संग मुझे तोलती हो
लोगो के बहकावे में आकर मेरे जज्बातों से खेलती हो
करे कोई भरे कोई, अब हमें कटघरे में खड़ा करती हो

तुम्हारे आगे बढ़ने में साथ हमने भी तुम्हारा निभाया है
वक्त बदल गया है, अब संस्कार और शिक्षा संग बढ़ना है
है कहीं गलत कुछ अगर, उसे साथ मिलकर सुधारना है
नर - नारी बन नही, इंसान बन हमे बहुत कुछ बदलना है


प्रभा मित्तल 
मैं हूँ आज की नारी,
नहीं किसी से हारूँगी।
बरसों से सुनती आई हूँ,
अब मैं तुम्हें सुनाऊँगी।
इतने भोले तुम हो नहीं,
जितने तुम बन जाते हो।
मेरे प्यार और विश्वास को
तुम ही तो छलते आए हो,
मेरे मन मंदिर की प्रतिमा को
धोखे से तुम्हीं तोड़ते आए हो।
सच क्या है मैं जान गई हूँ
झूठ को अब पहचान गई हूँ।
तुमने जब जो चाहा किया वही,
अब मैं अपनी कर दिखलाऊँगी।
बहुत सुना है बहुत सहा है
अब न सुनूँगी नहीं सहूँगी
मैं हूँ आज की नारी,
नहीं किसी से हारूँगी।


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Tuesday, February 19, 2013

19 फरवरी 2013 का चित्र और भाव



नवीन पोखरियाल
ए ख़ुदा तूने ही नवाज़ा है मुझे उस जूनून से ,
कि आज खीच रहा हूँ चाँद भी में अपने नसीब से.


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
यूँ भी हैं बहुत दाग दामन पर मेरे ।
तू भी लगाने की हिमाकत ना कर ।
दिनकर की आग से लोहा ले ना पाए ।
मेरी शीतलता देती सुकून चैन तुम्हें ।
मेरी धरा दागने की हिमाकत न कर ।
प्रक्रति अटल, प्रबल, इश्वरिये देन है ।
टकराकर हमसे अपनी शामत ना कर ।
दो चार फेरे डाल, अहंकार भर गया ।
खुद के इश्वर होने की घोषणा ना कर ।
एक धरती दी तुम्हें आशियाने के लिए ।
कण कण बेच डाला, खुद स्वार्थ के लिए ।
छोड़ धरती अपनी, नया ग्रह तलाश ना कर ।
ये माँ है, यूँ कर बंज़र इसे, निराश ना कर ।
थोडा परिश्रम कर इसी पर, ना त्याग इसे ।
वन उपवन तैयार कर, जीवों को बेघर ना कर ।
उठ मानव, नयी जागरूक पीड़ी तैयार कर,


नैनी ग्रोवर 
धरती को तो उजाड़ डाला, अब मेरी छाती पर क्यूँ पैर रखे,
भगवान् ने दी थी प्यारी सृष्टि, तूने लालच के लिए बैर रखे ..

अब मेरे घर में मत झांक ऐ इंसान, बक्श मुझे तो जीने दे,
मत रख तेरे गंदे पाँव मुझ पर, मन में बर्बादी का ज़हर रखे...!!

Upasna Siag 
मैं चाँद हूँ ....
श्वेत ,शांत ,शीतल ........
जब अपने प्राण -दाता के
बिलकुल सामने होता हूँ ,
पूनम का चाँद कहते हो.....
और चलते -चलते ,
जब थक कर अपने ही
प्राणदाता की गोद में विश्राम
करता हूँ तो कहते हो कि ....
आज अमावस है कितना अँधेरा
है ...पर मैं तो तुम्हारे मनों में तो
जगमगाता रहता ही हूँ .......
जब कोई माँ अपने बालक को
मेरी ओर इशारा कर मुझे
चंदा मामा कहती है तो मैं भी ...
अपनी बाहें फैला देता हूँ .....
मेरी चांदनी उसे प्यार छू देती है ...
और कोई अपनी प्रेयसी के मुख -मंडल
को मेरी उपमा देता है तो ......
मेरी चांदनी खिल -खिल उठती है ....
जब मुझे किसी शुभ ग्रह का साथ मिलता है
तो मैं तुम्हे जीवन की ऊँचाइयों तक
पहुंचाता हूँ ........
पर जब क्रूर ,पापी ग्रहों से घिर जाता हूँ
तो मन को गहरी उदासियों घिरा हुआ
पाते हो ....
पर मुझे तब बहुत दुःख होता है जब
कोई कहता .......अरे चाँद में तो गड्डे है.......
क्या तुम नहीं जानते ये गड्डे भी तुम्हारे
ही दिए है ........
जब भी तुम माँ ......
और मानवता पर प्रहार करते हो
मुझ पर एक गड्डा और बढ़ जाता है ......
21 hours ago · Edited · Unlike · 8

बालकृष्ण डी ध्यानी 
अब तो तू सुधर

धरती तहस नहस करदी है तूने
अब चाँद पर है टिकी तेरी नजर
एक को तू ना संभाल पा रहा
दूजे की तू कर रहा फ़िक्र अब तो तू सुधर


किरण आर्य 
चाँद हाँ जो प्रतीक है प्रेम और सौन्दर्य का
इंसा ने श्रृंगार रस से सजा जोड़े इससे भाव
बच्चो ने मामा कहा जोड़े नेह संग ख्वाब ..........

चांदनी इसकी प्रेमियों को रही रिझाती
अमावस के चाँद सी विरह नहीं है भाती
चाँद को पाना जुस्तजू प्रेमी ह्रदय सजाती........

आज फिर मानुष मन में है इक हुक उठी
चाँद पे घर बसाने की चाह आज मन बसी.......

प्रकृति और पृथ्वी से कर खिलवाड़ वो हारा
अब लालसाओ ने उसकी चाँद को है निहारा..........

क्या समझ पायेगा अब भी बावरा सा इंसान
या इच्छाए लील लेंगी उसकी सौन्दर्य प्रकृति का



भगवान सिंह जयाड़ा 
फोटोग्राफी का है यह सब कमाल ,
कुछ भी ,कहीं भी मचाये धमाल ,
कभी चाँद को दिखाए इस धरा पर ,
कभी चाँद से दिखाए इस धरा को ,
उल्टा पुल्टा सब कुछ है सम्भव ,
नहीं अब कुछ भी रहा असम्भव ,
कल्पनावों को यह पंख लगाए ,
जीवन को यह नए रंग से सजाये ,
फोटोग्राफी का है यह सब कमाल ,
कुछ भी ,कहीं भी मचाये धमाल ,


अलका गुप्ता 
क्या अचम्भा हम यह क्या देख रहे हैं |
कितनी है लोलूप निगाह हम तौल रहे हैं |
धरती करके बंजर चाँद भी हम खींच रहे हैं |
स्वार्थ में कितने अंधे हम ऊपर पहुँच रहे हैं ||


डॉ. सरोज गुप्ता 
चलो चाँद पर घर बसायें
~~~~~~~~~~~

बुलडोजर चाँद पर चलेगा , उपमाएं आहें भरेंगे !
गंजे सिर की बात चली तो , कैसे तेरा नाम लेंगे !!

नील ने रखा पहला कदम , जग में तब आया नया सवेरा !
चंदा मामा आ गए पास , उजाला करता जब होता अँधेरा !!

बुलडोजर चाँद पर चलेगा , उपमाएं आहें भरेंगे !
खिलोनों की बात चली तो ,कैसे तेरा नाम लेंगे !!

दुनिया का शोर न होगा,बलात्कार,शोषण,एसिड अटैक न होगा !
सुहागिनें यह कहती नहीं दिखेंगी, चाँद निकले तो पानी पीवां !!

बुलडोजर चाँद पर चलेगा , उपमाएं आहें भरेंगे !
प्यास बुझाने की बात चली तो ,कैसे तेरा नाम लेंगे !!

दिल चुरा चाँद शाला ,आशिको का बनेगा इशकी आशियाना !
शायरी जिसे न आती हो ,वो भूले से भी न आना इस मयखाना !!

बुलडोजर चाँद पर चलेगा , उपमाएं आहें भरेंगे !
हुस्न की बात चली तो , कैसे तेरा नाम लेंगे !!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~कुछ समझ ले इंसान ~

कितना बदल गया इंसान
खुद को समझे वों महान
हम तक पहुँच ही गया है
अब हमें कैद करना चाहता है

पर शायद वों भूल गया है
इंसान मरते मिटते रहते है
लेकिन हम आज भी ब्रह्मांड में
अपना अस्तित्व बनाये रखे है

प्रकृति और जीवन के स्तंभ है हम
सृष्टी हमारे बिना चल नही सकती
पढो, देखो, समझो और हमे जानो
लेकिन हमें हमारे हाल पर छोड़ दो

कितना बदल गया इंसान
खुद को समझे वों महान
हम तक पहुँच ही गया है
अब हमें कैद करना चाहता है

पर शायद वों भूल गया है
इंसान मरते मिटते रहते है
लेकिन हम आज भी ब्रह्मांड में
अपना अस्तित्व बनाये रखे है

प्रकृति और जीवन के स्तंभ है हम
सृष्टी हमारे बिना चल नही सकती
पढो, देखो, समझो और हमे जानो
लेकिन हमें हमारे हाल पर छोड़ दो




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Monday, February 18, 2013

18 फरवरी 2013 का चित्र व् भाव




भगवान सिंह जयाड़ा 
हम है इस धरा के प्यारे पक्षी ,
हमें लोग यहाँ राज हंस कहते है ,
हमारे प्यार की यहाँ चर्चा होती है ,
प्रेमियों की हम से तुलना होती है ,
कोई कहता प्रेमी युगल उन को ,
कोई दो हंसों का जोड़ा कहता है ,
हम बचे है अब कम ही धरा पर ,
हम लुप्तप्राय की कगार पर है ,
बचा लो हमें तुम इस धरा पर ,
बरना हम ख़त्म हुए जा रहे है ,
वेसे भी हमारे हिस्से के मोती ,
कोई और ही खाए जा रहे है ,
असंतुलित पर्यावरण की मार ,
हमें धरा से मिटाए जा रही है ,
हम है इस धरा के प्यारे पक्षी ,
हमें लोग यहाँ राज हंस कहते है ,

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~दिल गीत गाने लगा है ~

दो हंसो का जोड़ा, प्रेम को दर्शा रहा है
ये दिल में मेरे, मोहब्बत को बढ़ा रहा है
भाव प्रेम का मुझे प्रकृति से मिला रहा है
क्षितिज सा अपने आगोश में बुला रहा है

प्रेम की तस्वीर अब चित्र सी बनने लगी है
आसमां पर भी छवि ये चित्रित होने लगी है
फूलों सी खुशबू तन - मन में महकने लगी है
कोहरे में छिपी नमी सी तन में उभरने लगी है

कोमल अहसास प्यार का अब जगने लगा है
हल्की सी पुरवाई से रोम रोम खिलने लगा है
आँखे बंद 'प्रतिबिंब' चेहरा अब दिखने लगा है
साज प्रेम के बजने लगे, दिल गीत गाने लगा है


Yogesh Raj .
हम खोजते हैं इष्ट देव को मगर,
घूम फिर कर तुझे ही देख लेते हैं,
सफर में खो जांयें हम कहीं भी,
महक के सहारे तुझे ढूंढ लेते हैं.


नैनी ग्रोवर 
हम प्रेम के प्रतीक हैं, सृष्टि की बनाई सुन्दर रीत हैं,
माना के मूक हैं हम, परन्तु, प्यारा गुनगुनाता गीत हैं..

गर हमसे ना कुछ सीखा तुमने, तो हमको भी गंवा दोगे,
मिल-जुल के रहो, छोडो भेद-भाव, यही इंसान की जीत है ...!!


बालकृष्ण डी ध्यानी 
प्रीत मेरी

अनुराग मिलन का सीखा जाना
प्रीत की भक्ती का तुम दीप जलना
चाह है अखंड धरती को लाने की
बस मुहब्बत का तुम एक गुल खिलाना

प्रणय की सीमा तो अनंत है राही
उस पर निष्ठा की तुम मोहर लगाना
सभी धर्मों में परिहारी है प्रेम
निज हित के लिऐ ना ऐ अग्न बड़ाना

सूद से निश्छल है ऐ भरता
बस प्रेम गगरी से चाह जल ना छलकाना
धुन लगी है उसकी इस जिया में बेकरार
ढाई आखर प्रेम का, बड़ा बाजार ना लगाना

खरीदार बनकर तुम खरीद ना जाना
इस प्रीत की बस तुम रित निभाना
जीवनपथ और वक्त की यादों में मेरे प्रेम
प्रीत मेरी तुम खो ना जाना तुम खो ना जाना


अलका गुप्ता 
उस क्षण मन था मेरा परेशान अजब हैरान |
विकट निराशा पनप रही थी मन था वीरान |
ढूंढ रहा था कोना ..... कहीं एकांत सूनसान |
लगने लगा वह साहिल अपना नदी वेग ऊफान |
खोया था मन सुलझाने में अंतर्मन के गुम्फन |

टूटी तंद्रा अठखेलियों से राज हंस के शब्द सुन|
पिघल गए अवसाद पर्वत मुग्ध विस्फारित नयन|
देख प्रकृति के प्रेम सिंचित विलक्षण अद्दभुत क्षन |
टूटने लगे अहं के मिथ्या.....ये कुंठित अवगुंठन |
राज हंस हों अभिमंत्रित मंत्र प्रकृति से मुग्ध मन ||

प्रजापति शेष 
इस चित्र को अगर में पढ़ पाती, अगर सुन पाती ,
इसके रस भावों को अगर में आँखों से देख पाती ,
स्वप्न छोड़ दिए ,बहुत कठिन डगर पर हु साथी ,
विघ्न बाधा संकट को दे निमन्त्रण में बुलाती ,
मेने छोड़ दिए मिलन , विरह से मन बहलाती ,
खुश रहो मिलने वालों , एकाकी मन है मेरी थाती


अंजना चौहान सिंह
दो हंसों का जोड़ा जब मधुर मिलन में खो जाता है
बेजुबानों का निश्छल प्रेम हमें मुहब्बत का पाठ पढाता है
न्योछावर करने को तन मन यह हमें ललचाता है
एक दूजे के लिए समर्पण यह हमें सिखलाता है
देख कर सुन्दर चित्र सलोना मन चंचल हो जाता है
साथ पीया का चाहूँ मैं भी अब इंतज़ार मुझे सताता है
जल्दी आ जाओ प्रियतम अब और रुका नहीं जाता है
विरह के बादल छंट आये यह मधुमास तुम्हें बुलाता है

डॉ. सरोज गुप्ता 
हंसों का हसीन जोड़ा

जब-जब देखूँ हंसों के युगल जोड़े
शरमा जाएँ मेरे नयन निगोड़े !

हंस -हंसिनी लाईफ करे एन्जॉय
बसंत में वाईफ को खूब पटायें !
हंस -हंस कर निभाये सब वायदे
सरस्वती वाहक को याद सब कायदे !!

जब-जब देखूँ हंसो के युगल जोड़े
शरमा जाएँ मेरे नयन निगोड़े !!

पांचाली अब तुम हंस ना छोडो
कोई सिरियसली नहीं लेगा तुमको !
कृष्ण भी अब कही मैंनेज हो जाएगा
दाना चुगेगा हंस,कौवा मोती खायेगा !!

जब-जब देखूँ हंसो के युगल जोड़े
शरमा जाएँ मेरे नयन निगोड़े !!

ये हंस युगल हैं ,तुम हंस ते भी नहीं
ये मानस के हंस,तुम खरीदो हंस योग !
तुम भी हंस बनो ,हंसी से दोस्ती करो
हंसो,लाईफ बनाओ,वसंत का श्रृंगार करो !!

जब-जब देखूँ हंसो के युगल जोड़े
शरमा जाएँ मेरे नयन निगोड़े !!



किरण आर्य .
दो हंसो का जोड़ा प्रेम का ये प्रतीक सा
हाँ मेरी रूह में बसे तुम्हारे ही अक्स सा
शायद गुप चुप कुछ बतिया रहा है ये
प्रेम के मधुर गान संग मिल गा रहा है ये
प्रेम हाँ वो अहसास जो तेरे मेरे मन बसा
अहसासों में पला मन के भावो में है सजा
तेरा आना बसंत की रिमझिम फुहार सा
बरस जाना अंक में तेरे समाने सा लगा .




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Sunday, February 17, 2013

16 फरवरी 2013 का चित्र और भाव



बालकृष्ण डी ध्यानी 
आँसूं

आ ही जाता है ..३
जो दर्द दिल से लगा होता है
आँसूं बनकर आँखों में से
गम वो बह ही जाता है
आ ही जाता है ..३

एक डोर होती है वो
जो अस्कों से बंधी होती है ...२
आती है सुख दुःख मै वो
छलकना है उसे छलक ही जाती है

आ ही जाता है ..३
जो दर्द दिल से लगा होता है
आँसूं बनकर आँखों में से
गम वो बह ही जाता है
आ ही जाता है ..३

यादों के समंदर में
नाव सी हिचकोले लेती हूँ ...२
मजधार में फंसी मै
नमकीन जल में गोते खाती हूँ

आ ही जाता है ..३
जो दर्द दिल से लगा होता है
आँसूं बनकर आँखों में से
गम वो बह ही जाता है
आ ही जाता है ..३

रिश्तों से जुडी सड़क पर
अकेले ही चला करती हूँ ...२
आता जाता है वो रिश्ता
टूटकर वो भी रिस जाने को

आ ही जाता है ..३
जो दर्द दिल से लगा होता है
आँसूं बनकर आँखों में से
गम वो बह ही जाता है
आ ही जाता है ..३


नैनी ग्रोवर 
ऐ अश्को यूँ सरेआम, शर्मिन्दा ना करो,
मुझे रहम की बस्ती का, बाशिंदा ना करो..

टूटे दिल को, किसी सहारे की दरकार नहीं,
बस, जो मर चुके सपने, उन्हें ज़िंदा ना करो !!


अरुणा सक्सेना
जुबां से कहने की आवश्यकता नहीं होती
दिल खुश होता तो आँख यूँ ना रोती
चुभन हो दिल में तो आँख यूँही भर आती है
अश्क बन हौले -हौले राहत दे जाती है


अलका गुप्ता 
---वह कौन थी---

आँखों में आंसू ,
हाय ! गले में फंदा |
आग ही आग थी ..
जल गयी वह ..
या जलाई गई ?
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
आप की सताई हुई |
रोती थी घबराई सी ,
या घुटन ही घुटन मिली |
लुट गए वसन जिसके ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप.. ना !!
बोलियाँ लगाई थीं ,
रात्रि के अंधेरों में |
लुट गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
दिन के उजालों में ..
आपने बहन कहा |
सताई हुई जब मरी ,
घढ़ियाली आंसू बहाए..
आप ही आप ने |
मर गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप .. ना !!
मांगी थी इज्जत की ...
भीख जिसने ....
हँसे थे कितना आप तब |
आश्चर्य !!! भूल गए..
क्या ??? आप सब |
आपकी सताई हुई ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
वह कौन थी ?


प्रजापति शेष 
जब आधी दुनिया नारी है तब भी क्यों बेचारी है ?
ताकत् में है नर से ज्यादा फिर क्यों लाचारी है ?
सृष्टि सत्ता का केन्द्र हो कर भी शेष गुनाहगारी है ?
अपनी हिम्मत को ले पहचान , वरना तेरी ये गद्दारी है !


Dinesh Nayal 
गलती बस इतनी कि
करार कर ना सके,
जो बात थी इस दिल में
वो जुबान पर न ला सके,
अब रोते भी हैं तो इस कदर
आँसू किसी को दिखते नहीं,
दोस्ती में कुरबां कर बैठे
प्यार वो अपना,
पूछो तो कहते हैं
वो दिखावा था शायद
मेरे समझ न आया
इन्हीं बातों को लेके
सारी रात मैं रोया
गलती से बैचारा मैं प्यार
कर बैठा!
करता भी क्या
और
करता भी क्या
इसमें था मेरा कोई नी कसूर
मोहब्बत के हाथों हो गया था
मजबूर...
आँखें नशीली उसकी
जब चलती थी लगती थी
दुनिया की रानी
मीठी मीठी उसकी बातें
वो सबसे अलग
वो सबसे जूदा...
इन्हीं बातों को लेके
सारी रात मैं रोया
गलती से बैचारा मैं प्यार
कर बैठा!

:
बलदाऊ गोस्वामी 
बहते अश्क नयन से,दु:ख सुख की गोहार है।
पुराने पड़े पन्नों से,प्रेम की कराह है।।
नयन की झील से,अश्कों की बौछार है।
बातों की उधेड-बुन से,ख्वाबों की राह है।।
दु:खीयों की अश्क पोंछने से,स्वर्ग की राह है।
पुराने पड़े पन्नों से,प्रेम की कराह है।।


उदय ममगाईं राठी 
ज्येठ की तपिश में खेत खलिहानों में हुआ है क्या हाल
माथे से टपकता पसीना नहीं इसका उसको कोई मलाल
बस जी रही है इस सोच में की जाऊंगी पिया संग अबके साल
जब न ली सुध बेरहम ने शहर की रंगरलियों में न आया ख्याल
इसी क्रोध में आज एक खिलती कलि हुयी अंगारे सी लाल
ये ऐसी चिंगारी भड़क उठी इसे अब बुझाये किसकी मजाल
सोचकर "राठी" दौड़ा गाँव की ओर चलके खरगोश की चाल


प्रजापति शेष 
एक नही दो दो मात्राये, तुझ पर बोझा है भारी
अपनो का ही आघात सहे केसी ये तेरी है दुनियादारी
सब कुच्छ सह कर भी मिटती नही ये तेरी खुद्दारी
नर तो क्या विधाता भी नतमस्तक है तेरे आगे नारी ...


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ ये आँसू ~

आँसू न जाने कब बन गए मेरा नसीब
अब यही मेरे दिल के लगते बहुत करीब
चाहत थी बस मुझे मुस्करा कर जीने की
अब तो आदत सी हो गई अश्क पीने की

यूँ तो हजारो गम खुशियों संग आते है
अपनों संग पराये इनकी सौगात दे जाते है
अपने सुख की खातिर रिश्ता जोड़ जाते है
मानते जिन्हें अपना वों भरोसा तोड़ जाते है

दर्द मोहब्बत का है या दर्द बेवफाई का
दर्द दिल का समेटे अब ये निकल पड़े है
'प्रतिबिंब' आँखों में दिए आँसू ये किसने
याद आई तो कुछ ज़ख्म लगे हैं उभरने


भगवान सिंह जयाड़ा 
मेरे इन दर्द के आंसुओं की किसी ने कद्र न जानी ,
मैं जलती रही यूँ सदा पर ब्यथा किसी ने न जानी ,
मैंने हर रूप में दिया साथ जमाने का , क्या मिला ,
जमाने ने उसका मुझे दिया यह क्या दुखी सिला ,
कभी भावनावों से अजीबो गरीब खिलवाड़ किया ,
कभी यहाँ रुडीबादियों ने मुझे ऐसा जलील किया ,
पुरुष प्रधान समाज में यूँ ही सदा मैं जलती रही ,
फिर भी यहां मर मर कर मैं सदा जीती यूँ रही ,
नारी प्रदान समाज की यहाँ कल्पना करते हो तुम ,
और नारी इज्जत का ख़याल कभी करते हो तुम ?
कंधे से कंधा मिला कर चल रही हूँ मैं समाज में ,
फिर भी मेरी इन आँखों में यह आंसू देते हो तुम ,
मेरी शक्ति को पहचानने की कोशिश करो जरा ,
मैं अपने बल पर हिला सकती हूँ यह सकल धरा ,
मैं अबला नहीं हूँ ,समझ लो अब दुनिया वालों ,
सबला हूँ मैं ,मैं कुछ भी कर सकती हूँ समझ लो ,
मेरे इन दर्द के आंसुओं की किसी ने कद्र न जानी ,
मैं जलती रही यूँ सदा पर ब्यथा किसी ने न जानी ,



डॉ. सरोज गुप्ता 
आंसुओं की जुबानी
~~~~~~~~~~~~

नारी के आंसुओं का जो प्रयोजन बने , वो क्या गंगा में स्नान करे !
भ्रूण - हत्या की जो पटकथा बुने,वो कैसे पत्नी का सही मान करे !!

सात फेरे के बंधन में बंधी बन्दिनी ,माँ का आंचल छोड़ ससुराल चली !
आंसुओं को गीला रखा जिन्होंने,वो बहु कैसे ससुराल पर अभिमान करे !!

चीथड़े -चीथड़े हुए मेरे अंग प्रत्यंग,छोटे बड़े सबने किया मेरा शील भंग !
नसीहतें,फब्तियां भी झोली भर-भर मिली ,अपने ही मुझे अपमान करे !!

चार जवान बेटे जिसके,उस विधवा माँ का राजपाठ जस का तस न हो !
कफन भी चार घरों के रूमालो से बने,माँ कोख पर कैसे अभिमान करे !!


किरण आर्य 
आंख और आंसू का गहरा नाता सा है
सुख दुःख हर भाव रवां इन आँखों में
नेह अनुरक्ति इंतज़ार रुसवाई यादें
हर अहसास को ब्यान करती है आंखें ........

जब ख़ुशी कदमों की निगहबानी करे
तब आसूं ये जज्बातों की जुबां बन जाते
जब ग़म रूह के दरीचे में से रिसने लगता
तो आँख ये समेट लेती अश्कों का सागर ...........

अनुरक्ति जब अपने इष्ट को करे नमन
तो भाव वो सर्वोतम आँखों से ही है बरसे
बसंत की अल्हड़ रिमझिम फुहार सा ही
कभी लगे नमक से खारे ये अश्क मेरे
कभी इन में बसी अहसासों की मिठास भी


*************

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Friday, February 15, 2013

15 फरवरी 2013 का चित्र और भाव





नवीन पोखरियाल 
आज मैं ऊपर आसमान नीचे, जब देखा नीचे
याद आया बैग भी छोड़ आया नीचे
जब गर्दन नीचे कि, तब मुझे पता चला
न केवल बैग छोड़ दिया, मैंने बहुत कुछ छोड़ दिया नीचे


नैनी ग्रोवर 
वाह वाह तेरी कुदरत, ये कितने हँसीं नज़ारे हैं,
ये दरिया, ये पहाड़, सब ही तो कितने प्यारे हैं ..

सोच रहा हूँ बैठा-बैठा, क्या इंसान समझ पायेगा,
कर रहा बरबाद इसे, क्यूँ न समझे तेरे इशारे है !!!


Suman Thapliyal 
बोझिल मन , टूटे सपनो का
होते देखा द्वंद परस्पर ,
एक तरफ शीतल जल धारा
एक तरफ पाषाण - प्रस्तर .


Upasna Siag 
अकेला हूँ तो क्या
साथ नहीं कोई तो क्या
ये धरती-आकाश मेरे साथ है
पंख -परवाज़ नहीं तो क्या
एक होसलों की उडान मेरे साथ है


आनंद कुनियाल 
ये खुद को आजमाने की जिद है या
अपने हौसलों को नापने का जोश
जहां से आगे सब रास्ते डगमगाएं
वहां पर आकर भी कायम मेरे होश
क्या हुआ कुछ तो बता ए आसमां
मेरे पैरों तले से क्यूँ जमीं खींच ली


बालकृष्ण डी ध्यानी 
आज फिर

आज फिर बैठा हूँ
आज कल आज के बीच
फिर फंसा हुआ
अपने हक से अड़ा हुआ हूँ

कैसा द्वन्द है
कैसा मै मतिमंद हूँ
भीतर भीतर की जंग है
बस ओझल मन है

इस तन के सहारे
चला परबत,किनारे
थका बैठा फिर मै
बीच मजधार द्वारे

भूल बैठा मै
वो बैठा मेरे ही संग है
जिसने रचा है ये विश्व
सुंदर मन तन है

आज फिर बैठा हूँ
आज कल आज के बीच
फिर फंसा हुआ
अपने हक से अड़ा हुआ हूँ



राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 
हम अकेले कहाँ हैं

हम अकेले कहाँ आये है देखो ,
साथ छुपा लाये बहुत से गम हैं,
ये जिंदगी झोंका है तूफान का,
उससे भी छुप के निकले ये क्या कम हैं



प्रजापति शेष 
कितनी कोशिशों के बाद यहाँ तक पहुँच पाया
अथक श्रम के पश्चात कुछ विश्राम ले पाया
लौट कर जाना भी है यहाँ नही होगी बसर
समझ नही पाया अपनों से दूर क्यों में आया


भगवान सिंह जयाड़ा 
ठुकराए हुए प्यार का गम लिए हूँ ,
आज जिंदगी कुछ यूँ मिटने चला हूँ ,
जिंदगी बेस कीमती है ,यह सोचता हूँ ,
आगे पीछे कौन है मेरे यह सोचता हूँ ,
बरना कितना फासला है मौत तक ,
सिर्फ एक छलांग की ही तो देर है ,
गर अभी भी अहसास हो जाय उनको ,
जान से भी जादा चाहा मैंने जिन को ,
मैं उन की हर फितरत को भुला दूंगा ,
फिर से उन को गले अपने लगा दूंगा ,
ठुकराए हुए प्यार का गम लिए हूँ ,
आज जिंदगी कुछ यूँ मिटने चला हूँ ,


अलका गुप्ता 
उस कोलाहल से भागा मन |
नितांत कोने में जमा आसन |
दुनिया से एकांत हुआ ......
सम्बन्धों को तोल रहा .....
परतों को खोल रहा .....
अंतर्मन के धागों का बंधन |
ये विषम भावनाओं का मंथन |
गुम्फन ये झिझोड़ रहा मन |
जग से भागा-भागा .......|
भाग रहा .......ये तन-मन |
कोई मुझे समझा दो ना ....!
एक राह दिखला दो ना .....!!


प्रभा मित्तल 
दूर क्षितिज तक जाना है मुझको
जीवन में सब कुछ पाना है मुझको
यही सोच सपनों की गठरी रख सिर पर
आड़े-तिरछे काँटों सी पगडण्डी पर

राह अकेले चलते-चलते
आज यहाँ तक पहुँच गया हूँ
ऊपर-नीचे,इधर-उधर देख देख
अब असमंजस में सोच रहा हूँ

अपनों का प्यार चुरा लाया
उनके सपने भी ले आया
ना जाने क्या चाह रहा था
दूरी आसमान की नाप रहा था

राह के साथी छूट गए हैं
अरमानों की नगरी सूनी है
ये सृष्टि जितनी सुंदर है
उतना ही सफर भारी है

अपनी मंजिल खोज रहा हूँ
मन ही मन अब सोच रहा हूँ
नहीं क्षितिज की चाह मुझे अब
सब साथ चलें,बस साथ रहें
रहे प्यार औ विश्वास परस्पर
इस सुख का कुछ मोल नहीं है
और यहीं है स्वर्ग धरा पर।


डॉ. सरोज गुप्ता 
यह दीवाना है या तो पगली है
इश्क में चोट खाई घर से भगली है !

चाँद को पा लेने की दीवानगी
इश्क वालो के लिए एक बानगी
फिजा का चिलबुला मिजाज
सरगम का नशीला होता साज
बंधन में बंध गए तोड़ रीति रिवाज
समय ने जल्दी ही करवट ली
चाँद का दिख गया काला दाग
ग्रहण लग गया फिजा की खुशियों को
नहीं बची आज कोई साख
हो गये अरमान सब राख
दुनिया से कैसे मिलाऊँ आँख ?

यह दीवाना है या तो पगली है
इश्क में चोट खाई घर से भगली है !

राधा के गीत गोपियों के मीत
ले गए मथुरा अच्छी नहीं यह रीत
रोई थी बाँसुरी होकर बेसुरी
बेसहारा होकर बेसुध ,बेखबर थी
गीतिका के छंद मंद पड़ गए थे
कांडा के काण्ड रुंड-मुंड कर रहे थे
मैरीकाम के मुक्के हौंसले दे रहे थे
दामिनी के दर्द के हुए नहीं थे फैंसले
माएं अब कैसे बचाए भेड़ियों से घोंसले
नाप रही हैं जिन्दगी और मौत का फासला !

यह दीवाना है या तो पगली है
इश्क में चोट खाई घर से भगली है !



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
आज
इस ऊंचाई पर बैठ
देख रहा था
प्रकृति के खेल निराले
और उसी पल
जिंदगी और मौत को
गुफ्तगू करते पाया
एक पल में
आँखों में उतर आया
बीता हुआ
अच्छा बुरा हर पल
अपने पराये
मुस्कारते - रुठते लोग

आ लौट चले
उसी धरती पर
इन्ही पलो को
फिर से सजोने के लिए



केदार जोशी एक भारतीय 
हूँ उदास कुछ अपनों ने ही दिए गए जख्म से ,
बीमारी है लाइलाज दवा कहा से लगाऊँ ,
बस इन् विरानो में ही सहारा मिलता है मुझे ,
यहाँ बैठ वादियों से बाते करता हूँ मैं



किरण आर्य 
पहाड़ की छोटी पे बैठा मन सोच रहा
हाँ जिंदगी ऐसे ही तो तेरा साथ निभाया
कभी शीतल जलधारा सा लगा तेरा स्पर्श
कभी यथार्थ का धरातल पाषाण सा कठोर
और जिंदगी उहोंपोह में झूलती संग इसके
कभी दुनिया की भीड़ में भी नितांत अकेला
और कभी अकेलेपन की साथ यादें हाँ मेरी
लेकिन जिंदगी कहाँ कब किसी के लिए रुकी
वो तो बहती जाती है अनावरत जलधारा सी
उअर उसके साथ ही मन मेरा बहता जाता
कभी पाता और कभी सबकुछ होते हुए भी रीता
कभी जीवन का रोमांच हौसले को देता उड़ान
तो कभी मन का सन्नाटा कर जाता है वीरान
चोटी पर बैठा पैरो को लटकाए करता विवेचना
क्या पाया क्या खोया आज बस यहीं सोच रहा


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Thursday, February 14, 2013

4 फरवरी 2013 का चित्र और भाव





नैनी ग्रोवर 
हाँ है मुझे तुझसे, बेहद प्यार,
तूने दिए मुझे, प्रिय दोस्त बेशुमार..

बहुत कुछ है सीखा जिनसे,
बहुत कुछ है बाकी अभी,
आकर यहाँ मिलता है चैन,
जब देखूँ, यहाँ खुश है सभी,
मिलने का सबसे, रहता है इंतज़ार ...

'' तस्वीर क्या बोले'' समहू में,
देखो क्या क्या होता है,
कभी देख तस्वीर मुस्कुराऊँ,
कभी- कभी दिल रोता है,
हर रंग के जीवन का, यहाँ है भण्डार ...

कोमल मन के, भाव यहाँ है,
इतना प्यार और कहाँ है,
लगता है के इस जहां में,
हमारा अपना एक और जहां है,
धयवाद तुम्हारा फेसबुक, करते बार-बार ...!!



बालकृष्ण डी ध्यानी 
जनमदिन फेसबुक

फेसबुक जन्म दिन
जन्म दिन उसका आज
चलो मिलकर बनाये
अपने रिश्तों का जन्म दिन
हम फेसबुक जन्म दिन के साथ

रिश्तो को जोड़ने वाली
मेरी तू फेसबुक किताब
रहे सदा सलामत तू
साथ सलामत रहे मेरा ख्याल

खोले बिना चैन नही अब
चाहों अब हर पल तेरा साथ
टैग पोस्ट लाईक में तू
अब सदा रहे तू मेरे साथ साथ

मकाम पे तू मकाम चड़े तू
मै भी चडों तेरे अब साथ साथ
परिवार का हिस्सा है तू अब
मेरे चेहरे के नुरे गुलफाम

फेसबुक जन्म दिन
जन्म दिन उसका आज
चलो मिलकर बनाये
अपने रिश्तों का जन्म दिन
हम फेसबुक जन्म दिन के साथ


ममता जोशी 
अच्छाई के साथ साथ कुछ बुराई भी है,
समय बर्बाद किया लेकिन दोस्ती भी पाई है ,
फेस बुक ने हमे अच्छे बुरे लोगों की पहचान करायी है
हम सबको एक नयी दुनिया दिखाई है ,
फेसबुक के जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई है ,


अरुणा सक्सेना 
दोस्त मिलाये नए -नए और किये दायरे छोटे
आभासी दुनिया का स्वामी नोट कमाए मोटे
हर सिक्के की भांति ही तुम दो पहलू रखते हो
लेकिन तुम हो प्रिय हमारे इस दिल में बसते हो


किरण आर्य 
फेसबुक का जन्मदिन है आया
तो सोचा हम भी दे डाले
शुभकामनाओ की सौगात
फेसबुक जहाँ मिले कुछ रिश्ते
जो सहला गए रूह को
खड़े रहते मुस्कुरा के सदा साथ
और कुछ कटु अनुभव भी हुए यहाँ
जिन्होंने आसमान से यथार्थ के
धरातल पर ला हमें पटक दिया
इन अनुभवों से ले सबक हमने
फिर बटोरा अपना साहस
चल पड़े हंसकर
जिंदगी के हसीं पथ पर
तो फेसबुक ने हकीकतो से भी
रूबरू है कराया कभी हंसाया
तो कभी जीभर रुलाया
लेकिन फिर भी इसका साथ
अब हमें है भाया
इसी ने हमें इतने प्यार करने वाले
दोस्तों से भी तो है मिलाया
वाह फेसबुक अज़ब है तेरी माया


Neelima Sharma 
हटो !! फेसबुक
जाओ नही करना मुझे विश
तुझे तेरा जन्मदिन
तूने मुझे अपना
आदि जो बना लिया
सुबह उठ'ते ही सोचती हूँ
उस दोस्त की माँ का हाल
जिसका था खांसी से हाल बेहाल
उस बच्ची की नौकरी लगी या नही
जिसने कल देना था साक्षात्कार
आज मेरी बहन जैसी मित्र
मायके से लौटी या नही
आज उस लम्पट का
कोई इनबॉक्स सन्देश तो नही
भूल गयी हूँ साथ वाली दादी को
जिसका पिछले हफ्ते ऑपरेशन था
ऊन कब से आई पढ़ी हैं
बेटे के लिए एक स्वेटर भी बुन ना था
माँ को कबसे फ़ोन नही किया
अलमारी को भी साफ नही किया
अपने अपनों को भूल रही हूँ
नए नाते जोड़ रही हूँ
जो अपनों से ज्यादा अपने हैं
मेरी आँखों में उग आये नए सपने हैं

हाँ तुम अच्छे भी हो
मैंने यह भी माना हैं
अपने अंदर की
ताक़त को पहचाना हैं
जीवन की भूलभुलैया में गुम
ज़ज्बातो का बुना ताना- बाना हैं

फिर भी तुम हो लत बुरी सी
यहाँ सपने अपने ,
अपने सपने से लगते हैं

और तुम
फेसबुक
हम सुबह शाम तेरी
पूजा करने लगते हैं


Upasna Siag 
फेसबुक ना होती
मिलती कहीं मैं एक कोने में
घिरी अपने ही अवसादों से
कोना -कोना भरा होता आंसुओं से
मुस्कुरा भी कभी-कभी ही पाती ...

फेसबुक ना होती
नयी दुनिया भी ना होती
ना ही भरती मैं नयी उडान..

फेसबुक ना होती
ना नए जीवन की राह मिलती
ना आंसू , शब्दों में ढलते
ना ही मैं मुस्कुरा पाती .......


Pushpa Tripathi 
आधुनिकता का जमाना आया
भौतिकता का निहतार्थ समझ आया l

किस्म किस्म के तकनिकी साधन
वक्त की बढती मांग है भैया
समय कम्पूटर दौड़ रही है
सीधे दिल पर, घर कर रही है l

फेसबुक का बढ़ता चलन चला है
घर घर तूती बोल रही है
बच्चे बूढ़े ... स्त्री या पुरुष
हर वर्गों में प्रचलित हुई है l

सुबह की शुरुवात, सुप्रभात से
और रजनी की शुभरात्री तक
करते गुणगान थलचर प्राणी
क्या बहुत इसमें मिसरी मिली हुई है ..?

फेन है बनते कंहा कंहा से
अन्तर्मुखी और संग दिली से
कुछ तो बहुत आत्म सत्संगी
कुछ बेवजह परेशान है करते l

चहरे पर बुरका सा पहने
जाने कौन क्या यथार्थ बताता
मेसेज बोक्स में लदे दनादन
बातों को ज्यादा सांझा ये करते l

फेसबुक है .. मन की किताब
पढ़ लेते है सब के भाव
मीठी प्यारी सी बातें करके
चोरी होती कई संवाद .....l

शुभकामनायें बधाई हमारी
फेसबुक पर देते बारी बारी
जन्म दिन मनाकर हम सब
आन्दित .... पुलकित फुलवारी


अलका गुप्ता 
फेसबुक आज मित्रता की नई मिशाल है |
अद्भुत ज्ञान विज्ञान विचारों का संगम है |
बहुतों के खाली वख्त का नया अंजाम है |
शुकिया fbरचनात्मक तुम्हारा अंदाज है ||

मिल ना पाते हम इतने अच्छे मित्रों से कभी |
माना बहुतों से हम रु-ब-रु नहीं फिर भी जुड़े हैं |
माना दोस्ती का आधार विशवास है जो यहाँ ...
टाइम पास नशा ये स्वप्न सागर का गोता है ||

फेसबुक नेट मोह माया का अद्भुत फसाना है |
फिर भी बहुत से अच्छे साथियों की मिसाल है |
हम सब समृद्ध सफल दोस्ती का आधार बने |
मिसाल बने दोस्ती फेसबुक की भी अरमान है ||


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
फेसबुक की बात

पहले जुड़े तुझसे जैसे हो मेहमान
मिला हमें यहाँ फिर बहुत अपनापन
फेसबुक तेरा है ये हम पर अहसान
मित्रो को जोड़ जैसे दिया तूने वरदान

जिसको देखा न था अब अपना लगता है
तेरे बिन फेसबुक अब सब सूना लगता है
पढ़ना लिखना साँझा करना अच्छा लगता है
कुछ मित्रो का साथ अब यहाँ सच्चा लगता है

सभी पास लगते है देखते जब चित्रावली है
प्रेम की भाषा कई मित्रो ने अबअपना ली है
मित्रो के बिना अब लगता हर पल खाली है
सच अब तूने आदत हमारी बिगाड़ डाली है



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Sunday, February 3, 2013

03 फरवरी 2013 का चित्र भाव

( 03 फरवरी 2013 के चित्र पर मित्रो और सदस्यों के भाव - हास्य व्यंग्य के )


नैनी ग्रोवर 
अजी आज रविवार है, बस आराम का बुखार है,
आज भी लिखूँ कविता, आज भाव भी तड़ीपार हैं..

आज तो जी चाहता है, होटल में जा के खाया जाए,
और आप कह रहे हैं, सोच में दिन बिताया जाए
वो भी हास्य-व्यंग में हो, हाय ये कैसा अत्याचार है ...

अभी तो पी सुबह की चाय, पेट में कुछ भी गया नहीं,
कह रहे चूहे पेट के, जल्दी कर नाश्ता, आज कुछ नया नहीं
अरे ये तो कविता बन गई, अब तो अपना बेडा-पार है ......!!



बालकृष्ण डी ध्यानी 
हर दिन इतवार है

वो आती रही
मै मिलता रहा
प्यारा का अफसाना
यूँ ही चलता रहा
एक दिन
वो ना आयी मिलने हम से
वो ना आयी मिलने हम से
मै समझ गया
की आज इतवार है

दिल से दिल मिलता रहा
फूल से फूल खिलता रहा
प्यार का रंग चढ़ता रहा
एक दिन
फीका फीका वो हो गया
वो ना आयी हमारे रंग में
वो ना आयी हमारे रंग में
मै समझ गया
की आज इतवार है

एक एक दिन यूँ ही जाता रहा
वो आती रही दिल गाता रहा
अचानक ना आना उसका
एक दिन
बंद यूँ हो गया की अब तक बंद है
बंद यूँ हो गया की अब तक बंद है
मै समझ गया
की अब हर दिन इतवार है


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
सच दफ़न, कई परतों के साथ ।
इक इक परत पर, सौ झूठ निकले खुदाई से।
कटघरे में, बेइमान का यही बयाँ ।
हुजुर, मेरी बेईमानी की वज़ह है वो ।
नित नए वस्त्र, रंग रोगन ओढती है जो ।
मैं तो सिर्फ, भयभीत, उसकी जुदाई से ।।
रंग रोगन, मोल लाया उपरी कमाई से ।।


भगवान सिंह जयाड़ा 
वाह रे मेरे प्यारे प्यारे रविबार ,
तुझे करूँ मैं बार बार नमस्कार ,
तेरे लिए छ: दिन रहूँ मैं बेक़रार ,
कर के दिन गिन गिन इन्तजार ,
कामो की लिस्ट रखता हूँ तैयार ,
जब तू आये सब हो जाता बेकार ,
क्योंकि सुबह आराम से उठता ,
नहाने धोने में आधा दिन कटता ,
खाने पीने में दिन हो जाता पूरा ,
काम धाम फिर रह जाता अधूरा ,
फिर वही छ: दिन का चक्कर ,
न गुड़ लिया और ना शक्कर ,
वाह रे मेरे प्यारे प्यारे रविबार ,
तुझे करूँ मैं बार बार नमस्कार ,


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
कहते लोग सबहिं, भूत पिशाच हनुमान भगाये ।
एक मोरी पिशाचन ऐसी देखि, भगवान डरी जाए ।

कहत बुढे बुढ़ीन सबहीं, भूत पिशाचन की पहचान यही, राखे उल्टे पाँव ।
मोरी पिशाचन ऐसी रही, देखि सेल जबहूँ कहीं, दौडी सर पर रख पाँव ।

जतन करे सबर, करे हवन कई, पूजन कई करवाए ।
सुने हम कई ग्रन्थ में, अग्नि देखि भुत पिशाच भागि जाये ।
धर्मपत्नी पिशाचन वो, जो अग्नि फेरन से, गृह प्रवेश पाए ।।

Neelima Sharma 
आज रविवार हैं
छुट्टी की बहार हैं
आज रोटी खुद बनाओ
सब्जी की जगह अचार हैं

अब से देर से मैं उठूँगी
सबसे पहले अखबार मैं पढूंगी
नाश्ता अपना खुद बनाओ
मेरा भी तो आज त्यौहार हैं

चाहे किसी को घर बुलाओ
चाहे किसी के घर जाओ
सज- धज के हड़ताल का
मेरा भी आज विचार हैं

बच्चो का होम वर्क हो या
ऑफिस का पेंडिंग वर्क
घर के साथ खुद निपटाओ
आज मेरी सरकार हैं

6 दिन की मेरी नौकरी
घर में करती सबकी चाकरी
मिलती नही मुझे कभी भी
जरा भी पगार हैं
आज तो रविवार है


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~क्या कहते मेरी सरकार ~

हफ्ते भर इंतजार आ गया आज रविवार
पूरा हफ्ता दफ्तर, आज बस घर परिवार
आफिस में बॉस की रोज खाते है फटकार
आज बीबी का देखो गुस्सा या झेलो प्यार

अगर रिश्तेदारों का आज आना जाना होगा
बीबी को किच्चन में पूरा दिन लगाना होगा
पत्नी के गुस्से से कैसे बचे, ये भी देखना होगा
शापिंग ले जा बेगम का मूड ठीक करना होगा

आफिस में दोस्तों से बाते होती केवल दो-चार
आज घर में बीबी बच्चो की बैठ सुनो तकरार
घूमने फिरने जाना होगा, चाहे जेब करे इन्कार
घर अच्छा या आफिस क्या कहते मेरी सरकार

सोने का मन, लेकिन यहाँ भी होता अत्याचार
सोचा करेंगे आराम, पर काम में बीतता रविवार
जिस छुट्टी का रहता इंतजार, वों जाती बेकार
घर अच्छा या आफिस क्या कहते मेरी सरकार


दिनेश नयाल 
रविवार का दिन
बड़ा मुश्किल,
देख आज की
तस्वीर,
सुझा यही
कार्य करो
या
ना करो,
कार्य की
चिंता हर बार करो!
चिंता करो
ना करो,
जिक्र हर बार करो!!

:
अलका गुप्ता 
अरे आज रविवार है|
हाय ! सब बेकार है |
ठहरी मैं तो एक गृहणी !
मुझे तो बहुत सारे काम हैं |
समय की पावंदी भी सब बेकार है |
तैयारी टिफिन की नहीं आज तो क्या ?
बच्चों की धमाचौकड़ी का राज है |
सबकी फरमाइशों का अम्बार है |
हाय ! आज रविवार है |
माफ़ करो दोस्तों !
करेंगे बात कल |
आज तो रविवार है |
घर में सबकी छुट्टी का दिन ....
मेरी मशक्कत रहवार है ||



किरण आर्य 
सोचा आज दिन रविवार है
सोयेंगे जी भर कर
रोज़ तो काम का बुखार है

तभी पतिदेव की मीठी चिघाढ़
कानो से टकराई
श्रीमती जी उठना नहीं है
सुबह होने को है आई

हमने कहा उनींदी आँखों से
सोने दो आज तो रविवार है
तो बोले मुस्कुरा कर वो
सो जाना बस ये दिल इक
अदना सी चाय का तलबगार है

हमने गुस्से में आंखें ततेर देखा
उन्होंने जल्दी से निपोरे अपने दांत
और बोले मेरी जान सो जाना
बस इक चाय की ही तो है बात

इस तरह मन मसोस के उठे हम
रह गई तमन्ना सोने की दिल में ही
और चाय के पानी की तरह खौल उठे
दिल के मेरे सोये जज़्बात
इस तरह हुई हमारे रविवार की शुरुवात
हाथों मे चाय की प्याली और उनींदे भाव 




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Saturday, February 2, 2013

02 फरवरी 2013 का चित्र और भाव


बालकृष्ण डी ध्यानी 
मै चाट वाला 

चटपटी है चाट 
अपने तो हैं ठाट 
मैंने उसे हर चौराहे बाँट 
अपना ठेला जहाँ-जहाँ साथ 
मै चाट वाला मै चाट वाला 

नमकीन मीठा का चस्का 
उस पर नींबू का हो छरका 
हर जीभ को वो लपकाता भाई
मेरे ठेले पर खींचा चला आता 
मै चाट वाला मै चाट वाला 

मसालों का ही मिश्रण है 
ये जो अपना जीवन है 
सुख दुःख का तडका जब लगता 
तब मेरा भी ठसका लगता 
मै चाट वाला मै चाट वाला 

चस्का लगे आ जाना
मेरे साथ थोड़े अपने पल बिता जाना 
मै तेरा बिता अतीत हूँ 
वंही चौराहे पर छोडा वो मीत हूँ 
मै चाट वाला मै चाट वाला 

चटपटी है चाट 
अपने तो हैं ठाट 
मैंने उसे हर चौराहे बाँट 
अपना ठेला जहाँ-जहाँ साथ 
मै चाट वाला मै चाट वाला 

नवीन पोखरियाल 
कोई जीने के लिए खाता है ,कोई खाने के लिए जीता है
पर में उनमे से हूँ जो जीने के लिए लोगो को खिलाता हूँ !!


अलका गुप्ता 
चाट खाओ चाट !..चाट चाट सब !
चाट खाते सब अंगुली चाट-चाट !
मन चटकारे लेने लगे देख चाट |
आने लगे हरेक के मुंह में पानी |
खाने में मजा है सडक पर चाट |
चाट खाओ चाट !चाट चाट सब !
जब हाथ में हो पत्ता चाट का |
गाड़ियां धूल उडाती जाती जब |
धूल की परत दर परत चढाती जब |
बढता जाता मजा चाट का तब |
चाट खाओ चाट !..चाट चाट सब !
खाते रहते भूल सफाई के ...
अंट-संट उपदेश बकवासी सब |
बस एक यही ठिया है जहां ...
भूल जाते नफरत के सारे भेद |
चाट खाओ चाट !..चाट चाट सब !
चाट खाओ चाट !..चाट चाट सब !!

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
लगा है यहाँ ठेला मेरा, सब इस ओर चले आना
राह में आते - जाते मेरे हाथ की चाट खाते जाना

प्याज, मिर्ची, धनिया, नींबू, और उबले छोले
चटपटे मसाले मेरी चुटकी से इसमें गिरते जाते
बना रहा हूँ चटपटी चाट, आप चटकारे ले खाना
गर आये मज़ा खाने का तो दोस्तों को भी बतलाना

लगा है यहाँ ठेला मेरा, सब इस ओर चले आना
राह में आते - जाते मेरे हाथ की चाट खाते जाना

जीवन जीने का स्वाद तो खट्टा मीठा होता है
लेकिन हर पल चटकारे लेकर खाना सिखाता हूँ
प्रेम मेरा शामिल होता है, जब खिलाता चाट हूँ
खिलाकर सबको चाट, रोटी का जुगाड़ करता हूँ

लगा है यहाँ ठेला मेरा, सब इस ओर चले आना
राह में आते - जाते मेरे हाथ की चाट खाते जाना
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Dinesh Nayal 
गया गाँव के मेले में 
एक दिन,
लगा देखा चाट का ठेला
मुँह ललचाया ,
गिच्ची में पानी आया
चट-पट खाने को ज्यू मेरा बोला,
खाऊं कैसे चाट भला
जैब नहीं था पैसों से भरा,
मेरी ब्वोई ने दिए बीस रुपये
क्या क्या खाऊँ उसमें भला
चाय-पकोड़ी, जलेबी, खटाई मीठाई
सब कुछ तो खा डाले
पैसे सारे खर्च कर डाले
करता क्या लाचार भला
रह गया उस दिन चाट बिना.....


Pushpa Tripathi 
देख देख के मात न खा
सस्ती खुली चीजों पर
न मन अपना ललचा
स्वछता अगर न दिखाई दे
स्वादिष्ट पकवान भला किस काम के

किरण आर्य 
चाट चाट चाट वाह क्या कहे उसकी बात 
नाम सुन ही आ जाता मूह में पानी और
जिव्हा होती बेचैन कहने को इसकी कहानी 

चाट का जयका थोडा चटपटा और कुछ तीखा 
जैसे जीवन कुछ गम कुछ खुशियों की रवानी 

छोले-कुलचे भेलपूरी गोलगप्पों का तीखा पानी 
चाट के रूप अनेक जिंदगी के रंगों से सुन जानी 

चाट बेचे कोई जुगत में दो जून की रोटी की 
कोई ले स्वाद पूरी करे जिव्हा की मनमानी 

चाट चाट चाट वाह क्या कहे उसकी बात
ऐसी ही खट्टी मीठी चटपटी सी है इसकी कहानी

नैनी ग्रोवर 
कमाने निकला मैं दो रोटी, बच्चों की खातिर,
देखो लोगो, कुलचे-छोले में, मैं हूँ बड़ा माहिर..

खिलाऊँ प्रेम से, डाल मसाले, खाओ गरमा-गरम,
मेरे बच्चे तरसें खाने को, ना होने दूँ ज़ाहिर ...

लताड़े कभी पुलिस वाले, कभी मारें है थप्पड़,
मैं भी हूँ भारत का बाशिंदा, नहीं कोई मुजाहिर !!


Upasna Siag 
दो जन , दो पेट 
दोनों की अपनी - अपनी भूख ,
एक फिरता है हर राह पर 
लिए पेट की भूख 
भटकता दर-ब-दर ....
दूजा भी है बेखबर 
धूल-मिटटी और गंदगी से 
खड़ा है राह पर 
लिए पेट की भूख ....


भगवान सिंह जयाड़ा 
आओ भाइयों ,बहिनों खावो चटपटे छोले भठूरे ,
बिना चटपटे मसालों के यह छोले भठूरे है अधूरे ,
एक बार खावोगे तो जिंदगी भर याद रखोगे तुम ,
आप की सेवा में हर दम हर समय हाजिर है हम ,
ठेली वाले छोले भटूरों की बात ही कुछ और है ,
एक बार स्वाद लग गया इनका तो सदा खावोगे ,
एक बार खावो तो बार बार मेरे ठेले पर आवोगे ,
आप की सेवा समझता हूँ ,अपना धरम करम ,
सेवा का अवसर जरूर देना ,न करना कभी सरम ,

डॉ. सरोज गुप्ता 
स्ट्रीट मे ट्रीट 
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कालेज के वे दिन 
भरी मस्ती के 
भारी बस्ते के 
जेब खस्ती थी 
कुलचे-छोले सबसे सस्ते थे 
रस्ते में ही खाते चलते थे 
चटखारे लेते चलते थे 
दिल्ली यूनिवर्सिटी से 
कमला नगर पैदल 
पढ़ाकूओं की टोली 
(पढाकू थे ,विद्वान नहीं )
गले में डाल झोली 
दिनकर,निराला ,महादेवी बर्मा को 
बतियाते ,हंसते ,गाते चलते थे 
अशोक चक्रधर की हंसी की फुलझड़ियाँ 
भुला देती थी लम्बी पगडण्डीयां 
भोलानाथ तिवारी का भाषा-विज्ञान 
गडबडा जाता था .पर 
डाक्टर नगेन्द्र का रस सिद्धांत 
याद रहता था ,
देख कर कुलचे -छोले 
मुंह में रस आ जाता था 
यही था रस का सार 
स्ट्रीट में ट्रीट 
रस: वै स:
यही है जो पूर्ण आनन्द है !

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01 फरवरी 2013 - चित्र और भाव

( 01/02/2013 के चित्र पर मित्रो सदस्यों के भाव )


Pushpa Tripathi 
सूरज गोल , चंदा गोल
हर ग्रह है गोल मटोल l
सौरमंडल के सदस्य निराले
अपने गुणों के खान निराले
वैज्ञानिकों का शोध बताता
सूर्य के चक्कर सारे निराले l
पृथ्वी हमारी बड़ी सयानी
देती हमको जीवन व्यापन
अधिकांश ये सारा जल भर लेती
कुछ हिस्सों में हरिताभ है देती l
पवित्र सरिता कल खल बहती
सुरभि नतमस्तक सीस झुकाती
है ऋषियों का प्रताप बहुत ही
बहती गंगा स्वर्ग उतारें l


अरुणा सक्सेना 
कल-कल ,कल-कल बहती नदिया, जीवन्तता हरियाली थी॥ 
प्यारी-प्यारी धरती मेरी, जिसकी छटा निराली थी॥ 
हरे-भरे खुशहाल यहाँ के, लगते थे सभी निवासी ॥
दशा क्या बिगङी धरती की ,अब अपने भी बने प्रवासी ॥

डॉ. सरोज गुप्ता 
धरती गोल ,
चंदा गोल ,
रोटी गोल ,
माँ की बिंदी गोल ,
पैसा गोल
किसी के लिए अनमोल
कोई पाए बेमोल
यह कैसा झोल ?

नेताओं के पेट
गोल मटोल ,
करके घाल -घपेल
धरती की सुन्दरता
करते मटिया मेट !
रंगों का है घोल
प्रकृति गोलमगोल ,
लाल-लाल टमाटर गोल ,
नौ नौ आंसू
रुलाये प्याज गोल !

बगीचे से गोल नारंगी तोड़ ,
ले भागा माली का छोरा ,
बगीचे के मालिक ने
गोल-गोल गोलियां
मारी ताबड़तोड़ !
फल अब मिले तोल-मोल !
धरती गोल
फिर भी इतना झोल ?

बालकृष्ण डी ध्यानी 
पृथ्वी माँ 

तुझ को ही दर्द है 
कोई भी वो अंग है
दुःख होता होगा तुझ को भी माँ 
जो हो रहा तेरे संग है .......

माँ मेरी धरती में तेरी 
तुझे भी तो माँ बड़ा कष्ट है
चिकनी मिट्टी सा फिसलन 
तेरा यंह हर जन है 

भूगोल सा गोल 
माँ तेरा ये तन मन है 
मूल है तू मेरी माँ 
भुला मै वो पल पल हूँ 

धरणी मेरी करणी मेरी
नोचों तुझ को मै हर पल 
एक दिन मिल जान मुझको 
तेरा ही तो हूँ माँ मै वो अंग 

देख रही तू रास्ता 
कब आऊँगा मै सीधे रहा 
पर उलझता ही जाता हूँ माँ 
बड़ा विचित्र है ये मकड़ा जाल 

तुझ को ही दर्द है 
कोई भी वो अंग है
दुःख होता होगा तुझ को भी माँ 
जो हो रहा तेरे संग है 

भगवान सिंह जयाड़ा 
जल प्रलय की सी यह तस्बीर ,
कितनी भयावह सी लगाती है,
सोचो अगर ऐसा कभी हो गया ,
सब कुछ पानी में समा जाएगा ,
कुछ नहीं बचेगा इस धरती पर ,
सब कुछ जल में समा जाएगा ,
कुछ छोटे मोटे प्रलय तो आते है ,
धरती पर वह तवाही कर जाते है ,
सोचो जब महा प्रलय कभीआयेगा ,
सब कुछ यहाँ जल में समा जाएगा ,
ईश्वर करे वह समय कभी न आए ,
सब इन्शान यहाँ अब संभल जाए ,
सब मिलकर पर्यावरण को बचाए ,
दुनिया को अब प्रदूषण मुक्त बनाएं ,
यह कर्तब्य समझें यहाँ सब अपना ,
तबी सफल होगा सब का यह सपना ,



किरण आर्य 
ब्रहमांड जिसमे पृथ्वी का अस्तित्व है समाया
हे ईश्वर निराली है तेरी अदा अजब तेरी माया

गोल धरती सी है मृगतृष्णा मन रहता भरमाया
मन पर उहोपोह का अँधियारा घना है क्यों छाया

जल से घिरी धरती सारी प्यासी निस्तेज़ सी काया
मोहमाया के बंधन न्यारे मन जीव का रहे ललचाया

निज स्वार्थ में लिप्त मन लूट खसोट ही है कमाया
सत्कर्म से विमुख अज्ञानी ज्ञान पे अपने इतराया 

अंत समय में हुआ भान जब अपने पे है लजाया
बोया बबूल मन कंक्रीट पर तो आम कहाँ से पाया 

घरती की गोलाई साथ घूमा मन इत उत मंडराया
कस्तूरी चाह मृग सी जो अंतस बसा ढूंढ उसे ना पाया 

बेबस भटकन अतृप्त रूह संग दर्द दिल का है कराहाया 
फिर भी जाने क्यों ये मानुष मन बात समझ ना पाया

राम राम जप जिव्हा से हृदय कलुषित क्यों रहा भाया
मन में बसी छवि प्रभु की ढूंढे जग में क्यों रहे पगलाया 

नैनी ग्रोवर 
हो जाएगा सब कुछ समाप्त, बस खालीपन रह जाएगा
थक चुकी सृष्टि मानव से, कितना कोई सह पायेगा ..

उसके दिए को सहेज ना पाया, मन को लालच ने भरमाया,
मिटाता रहा, जो प्रभु ने दिया, अब तो मात्र पछतायेगा ...

सब कुछ पाने की तृष्णा में, सब कुछ गवां बैठा है पगले,
क्या महल क्या चोबारे तेरे, कुछ भी नज़र ना आयेगा ..

नई सभ्यता की होड़ में, जला दिए सब जंगल, पर्वत,
हंसने लगा ब्रम्मांड भी तुझपर, तू मुर्ख ही कहलायेगा ..

देख अब भी समय है ''बन्दे'' जाग ज़रा, संभल भी जा,
वरना कल आने वाला सूरज, सारी धरती को जलाएगा !!


जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु 
"धरती"

जिस पर हम रहते हैं,
रचि थी ब्रह्मा जी ने,
मानव के लिए,
वेद पुराण कहते हैं,
ब्रह्माण्ड में,
हमारी धरती है,
धरती पर वो सब है,
जिसके लिए देवता,
तरसते हैं,
जब जब होता है अधर्म,
धरती पर हमारी,
देवता अवतरित होते हैं



अलका गुप्ता 
सभी ग्रहों में है सबसे न्यारी ! हमारी धरती |
पृथ्वी तो माँ है और हमारा घर भी है धरती ||

गोल-मटोल धरा ये भण्डार अति...बसुन्धरा |
दिखती अंतरीक्ष से सुन्दर नीली हरी धरती||

स्वार्थ में अंधे हो अति दोहन कर रहे मानव |
भूल गए पालती पालने में लाड़ से माँ धरती ||

काटते पेड़ों को देते जो हमें जीवन...प्राण वायु |
छाँटकर पहाड़ों को नदी की धार में बाँध धरती ||

भूल ना गर्व में चूर मानव भवन देख गगनचुम्बी !
भूकंप कभी ज्यालामुखी से फुफकार उठेगी धरती ||

सच में माता है ये 'हमारी' ....भाग्यविधाता धरती |
उजाड़ ना हरियाला आँचल माँ के बाद है माँ धरती ||

Neelima Sharma 
धरती माँ !!
आधी से ज्यादा तुम पानी से भरी हो 
देखने में कितनी हरी हरी हो 
फिर भी पानी को तरसते हैं प्राणी !!!

धरती माँ!!
गर्भ में तुम्हारे अनेको रतन 
प्रसव पीड़ा भी असीम तुम्हे 
फिर भी कुपोषण के शिकार तुम्हारे बच्चे!!!

धरती माँ!!
तुम कितनी धीर सहनशील 
सहती तुम हर अत्याचार उग्र 
फिर भी मानव इसपर कितने व्यग्र!!!!!

धरती माँ !!!
तुम पालती सारी संतान 
नही मानती खुद को महान 
फिर भी भूखे मारते माँ- बाप को बच्चे!!

Pushpa Tripathi 
अमृत धार से फैली है धरती
भू मंडल पर हरित है धरती
सुख सागर जल लबालब भरे है
पृथ्वी पर संसार है धरती l

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
पृथ्वी और प्रकृति का गहरा नाता है 
दोनों को एक दूजे का साथ भाता है 
जल और धरती में बड़ी असमानता है 
यहाँ धरती कम, पानी अधिक दिखता है 
फिर भी धरती पर कहीं पानी की कमी है 
कहीं बाढ़, कहीं सूखा तो कही रहती नमी है 
कटते पेड़, जलते जंगल, पहाड़ो को तोड़ रहे है
वन-सम्पदा, पर्यायवरण को जीवन से मोड़ रहे है 
आओ पर्यायवरण को हम बचाने का प्रयास करते है 
पानी को बचाते है और प्रकृति से खिलबाड़ कम करते है


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