Tuesday, January 21, 2014

11 जनवरी 2014 का चित्र और भाव





बलदाऊ गोस्वामी 
।।आतशी शीशा।।
*********************
लो आतशी शीशा,गुण है अपार,
उपयोग करो इसे विविध प्रकार!
चिलचिलाती धूप में
बिन्दू फोकल मिलने पर
आग लगाता है,
किसी वस्तु के आकार को
दुगुना रुप में
दिखाता है,
लो आतशी शीशा,गुण है अपार,
उपयोग करो इसे विविध प्रकार!
\

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ आज का डिटेक्टिव ~
हाथ आया जब 'मैग्नीफाइंग ग्लास'
फिर बढ़ गई अपनी भी कुछ 'क्लास'
रख कर असिस्टेंट अब हो गए हम 'बॉस'
खोजी हुई आँखे, लेने लगे अब कुछ 'चांस'
अंदाज हो गए अपने भी ख़ास, पीने लगा 'सिगार'
चढ़ा कर चस्मा आँखों पर, कहने लगा 'व्हाट फ़ॉर'
उधेड़ रहा बाल की खाल, करके 'इन्वेस्टीगेशन'
बन रहा अब राई का पहाड़, ऐसी हुई 'इमेजीनेशन'
संदेह करना हो गई आदत, शुरू हुआ शक का 'कालेज'
सीखा रिश्तो में आग लगाना, बढ रही अपनी भी 'नोलेज'


रोहिणी शैलेन्द्र नेगी
 "परख"
किसी ने कहा...
हम अपने हैं तुम्हारे,
किसी ने कहा...
हम उनके हैं सहारे,
जांचा- परखा तो जाना,
कौन अपना है,
और कौन बेगाना,
भेड़ कि खाल में,
भेड़ियों को पहचाना,
चेहरा झूठ था सबका,
मुखौटों से छिपा हुआ,
नज़र आया शीशे में,
इस कदर था बिका हुआ,
क्यों हमने ज़िंदगी,
ऐसों के नाम की,
दोगला बनकर जिन्होंने,
हस्तियां बदनाम की,
अच्छा है शीशे ने,
परख तो करवाई,
कौन - कैसा है,
ये रौशनी तो दिखाई,
वरना हम तो आज भी,
झांसे में रहते,
बस उनके ढोंग को ही,
अपनापन समझते ||



बालकृष्ण डी ध्यानी 
~भ्रष्ट मै~

लेकर यह यंत्र
ढूंढ़ने चला मै शुद्ध तंत्र
ढूंढ ना मिला कुछ भी
बस फैली थी यंह गंध
भ्रष्ट तंत्र भ्रष्ट यंत्र
और भ्रष्ट मै

थोडा और आगे गया
हौसला मेरा फुर हो गया
सब यंह फंसे मिले मुझको
दल में कंकड़ कि तरह पड़े मिले
भ्रष्ट तंत्र भ्रष्ट यंत्र
और भ्रष्ट मै

वंही मै दूर पड़ा था
वो यंत्र मेरे हाथ से सठा था
अचनाक मेरी आँखे पड़ी
आइने में मै कंही नही
भ्रष्ट तंत्र भ्रष्ट यंत्र
और भ्रष्ट मै

मै हिस्सा बन चुका था
वो यंत्र मेर हाथ से छूट चुका
अब ढूंढ मै अपने को कैसे
मै उसमे मिला पड़ा था
भ्रष्ट तंत्र भ्रष्ट यंत्र
और भ्रष्ट मै



Pushpa Tripathi 
~फर्क निरिक्षण ~

ये फर्क
आँखों का नहीं
चश्मे का नहीं
कम घटने का नहीं
और बढ़कर उतरने का भी नहीं
फर्क है .....
सूक्ष्म बिंदुओं का आपस में जुड़ने का
मानसिक बौद्धिकताओं का अध्यन करने का
मैग्नीफाइंग काँच के आरपार दिखने का
विलय .... विलयन … परमाणु के टकराने का
फर्क .....निरिक्षण ..... परिणाम
हल ढूँढ लाने का
अरे .... !!!
वही जो
वैज्ञानिक खोज लेते है
अपनी अनोखी .. निराली ...... अद्भुत
विज्ञान की यांत्रिक यंत्र ....'पुष्प ' बस एक काँच से ..... !!!!!


नैनी ग्रोवर 
~ कमाल का ये ग्लास  ~
वाह जी क्या कमाल की चीज़ है ,
दिल मेरा तो गया इसपे रीझ है,
बहुत दिनों से तड़प रही थी,
कुछ नज़र ना आता था,
फेसबुक पे भी आना,
मुझको ना भाता था,
आँखों ने ले रखी थी क्लास,
आपने दे दिया मैग्निफाइन ग्लास,
अब तो साफ़ नजर आने लगा है,
दिमागी अन्धेरा भी जाने लगा है,
आज तो हास्य लिखने का मन है,
कल से गहन लिखूंगी प्रण है,
आज तो मुझे बस इतना ही सह लो,
चंद पल मेरे शब्दों के साथ रह लो । :))


अलका गुप्ता 
~ पर्दा फास ~
करते होंगें कुछ भी प्रयोग
इस मैग्निफाईंग ग्लास का |
हमने तो सामने कर किरणों के
सूरज से जलाए हैं कागज खूब |
कभी-कभी बाबा जी का चश्मा भी
करके पार ..........किया है ...
मैग्निफाइंग सा ही प्रयोग |
वह था बचपन शैतान |
नई जानकारियों का करता था |
जम कर खूब जादुई प्रयोग |
और हद तो तब हुई जब ...
भाई के हाथ पर कर दिया
यही जादुई प्रयोग |
फिर क्या हुआ मित्रों !!
मेरा ...अब क्या बताऊँ ...
जो हुआ सो हुआ ...
मैं और भाई भूल गए उस दर्द को ..
लेकिन निशान दिला देता है ...
याद फिर ...वही प्रयोग |
आज दिला दिया है ...
याद फिर वही दिन |
मस्त शैतान बचपन का |
प्रतिबिम्ब ने तश्वीर के माध्यम से |
चलो इसी बहाने से हुआ|
राज एक ..पर्दा फास |
इस मैग्निफाईंग ग्लास का ||


जगदीश पांडेय 
-------- एक तलाश जीवन की -----------
काश मिल जाये मुझे भी ऐसा कुछ यंत्र
जिससे पढ सकूँ मैं खुशियों के सब मंत्र
सब की आँखों से मैं गमों को चुरा लूँ
लोगों के आँसू अपनी आँखों से गिरा लूँ
मुस्कुराहटों का काश जान पाता मैं तंत्र
काश मिल जाये मुझे भी ऐसा कुछ यंत्र

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

Saturday, January 11, 2014

3 जनवरी 2014 का चित्र और भाव



दीपक अरोड़ा 
~साथ~
थामो ऐसे हाथ
छूटे ना कभी साथ
जन्मों तक मेरे रहो
कहनी है यही तुमसे बात
न जाना कभी छोड़कर
दिया जो हाथों में हाथ
न जाना कभी छोड़कर
दिया जो हाथों में हाथ


जगदीश पांडेय
~ स्पर्श ~

आज भी याद है मुझे वो
तुम्हारी उंगलियों का स्पर्श
जिसके लिये मैं तरसता रहा
मन ही मन मैं तडपता रहा
तन मन पुलकित हो उठा
मेरा जहाँ अलंकित हो उठा
मेरी संवेदनाओं को हुवा हर्ष
आज भी याद है मुझे वो
तुम्हारी उंगलियों का स्पर्श
.

बालकृष्ण डी ध्यानी 
~मधुर मिलन~

मधुर स्वर
के कल कल से
सुस्वर माधुर्य के
इस पल से

तेरा मेरा यूँ ही
हाथों में हाथ रहे
जन्म जन्म
तक ये साथ रहे

साथ अपना
एक स्वर से गूंजे
हाथ अपना
एक पल ना छूटे

साथी मेरे
वो मेरे हमदम
निकल जाये गर ये दम
ना टूटे आत्मा का बंधन

साथ यूँ ही रहना
मेरे वो प्यारे सनम
शरीर तो है ये नश्वर
ये आत्मा का मिलन


अलका गुप्ता 
~थाम लो~
लो थाम लो हाथ मेरा ...
अन्धेरा है घना |
आसान हो जाएंगी मंजिलें ...
जो हाथ में हाथ हो तेरा ||

हम चल पड़े साथ हैं ...
मन में लेकर विशवास |
होंगे पूर्ण ..सारे काज ...
लेके चलें ह्रदय में जो आस ||


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल  
~ ये छूती अंगुलियाँ ~

मेरा रोम रोम
तुम्हारे स्पर्श से
रोमांचित होने लगा है

प्रेम का संचार
विद्दुत गति सा
तन मन पर होने लगा है

कुछ अहसास
स्पर्श पटल से
मन में उभरने लगे है

ये छूती अंगुलियाँ
नरम गरम ख्याल
बीतते पल महकने लगे है


Pushpa Tripathi 
~ ये स्पर्श नहीं अब ~

ये छूटता हुआ समय
ये अधूरा सा साथ
अँधेरी दुनियाँ की रातें
नहीं, उजाले के पास ....!!!

स्पर्श अब भी
बीते समय के साथ
वो यादों की रातें
'पुष्प ' उजालो की बात ..... !!!

नींदें खोई थी
जादुई पलों में
गुम थे सुध बुध
तुम्हारे, ही पास ....!!!

इन बिछड़ते युगों में
युगल अलग अलग
हाथो की उँगलियाँ
परस्पर नहीं अब .... !!!


रोहिणी शैलेन्द्र नेगी 
~बिछोह~
छोड़ के हाथ मेरा ऐसे मोड़ पर,
जा तो रहा है तू,
पर ये सोच कि तेरा भी कुछ,
छूट तो न जायेगा.......??
अश्कों के बादल, सीने की चुभन,
दिल के जख्मो पे,
कौन तेरे जाने के बाद ,
मरहम लगा पायेगा.....??
हल्की सी खलिश सीने की मेरे,
चैन तो न देगी मुझे,
वफ़ा की आड़ में बेवफाई का दर्द,
जाने कौन अब मिटा पाएगा ||

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Thursday, January 2, 2014

12 दिसम्बर 2013 का चित्र और भाव



जगदीश पांडेय 
~आधुनिकता और संस्कृति ~

आधुनिकता का आया आज कैसा ये दौर है
युवा पीढी को अब न दिखता कुछ और है

वो शालीनता सभ्यता वो सृंस्कृति हमारा
पश्चिम सभ्यता के चलते न हुवा गुजारा

बचानें हेतु संस्कृति हमें करना अब गौर है
आधुनिकता का आया आज कैसा ये दौर है

कोई फर्क नही सामनें बुजुर्ग कोई खडा है
चंद पल की खुशी के लिये युवा वर्ग अडा है

बढ रही बेशर्मी अब चारो ओर घनघोर है.
आधुनिकता का आया आज कैसा ये दौर है

कहीं परदे के पीछे तो कहीं रिश्तों के नीचे
भूल कर के मर्यादा सब एक दूजे को खींचे

नहीं इनके उपर जमानें का कोई जोर है
आधुनिकता का " दीश " कैसा ये दौर है


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ लौट चले ~

उम्र का ये पड़ाव
देखी खुशिया और झेले है घाव
बीता पल याद आता है
फिर लौट चले दिल यही चाहता है

मिल कर भी अनजान बने
चाह छोड़ राह अपनी हम चले
खुशी देखी अपनों की
खुशी अपनी छोड़ हम लौट चले

हमारे अपनों के पास
मौज मस्ती के लिए वक्त बहुत है
'प्रतिबिंब' रफ़्तार हुई जिन्दगी
बस अपनो के लिए वक्त बहुत कम है


अलका गुप्ता 
~झूठी लाज ~

तन -मन भिगो रही आज
यादों की हरश्रंगारी महक ।
अल्हड उन बतियों की चहक ।
ढलकी - ढलकी चितवन ये ।
रूखे अधरों का कंपन ये ।
बिखर गई अलकों में ...
बीते दिनों की राख सी ...
सिमट गई लाली जो ...
झुर्रियों में अनायास ही ...
कसक बहुत रही है आज ।
जो तोड़ ना सके थे कायर हाथ ।
उन बीते दिनों के अनचाहे ...
बंधनों की झूठी लाज ।।


भगवान सिंह जयाड़ा 
~जिंदगी का आखिरी पड़ाव~

जिंदगी के इस पड़ाव में ,
यह क्या मुकाम आ गया ,
बदल गई आज राहें हमारी ,
आज हम सफ़र बदल गया ,

परछाइयों में दिखती है वह ,
बीते कल की वह रंगरेलियां ,
बस मुंह फेर लेते है यूँ उनसे ,
देख जवानी की परछाइयाँ ,

मंजिल भी बदल गई अब ,
जिस पर हम अकेले चल पड़े ,
नहीं कोई यहाँ अब हम सफ़र ,
बस यूँ ही हम तन्हा रह गए ,

दुनिया का है क्या यही दस्तूर ,
जो हम यूँ ,अजनबी हो गए,
जीने और मरने की वह कसम ,
आज क्यों सब बेकार हो गए ,

जिंदगी के इस पड़ाव में ,
यह क्या मुकाम आ गया ,
बदल गई आज राहें हमारी ,
आज हम सफ़र बदल गया ,


बालकृष्ण डी ध्यानी 
बस परछाई हूँ मै

मन झूमें तन झूमें
इस उम्र के इस मोड़ पर
दिल मेरा अब क्यों भूला
छूटा वो सावन किनार

सुखा पेड़ हूँ
थोड़ी सी बची जो छाया
हरयाली छूटी अभी अभी
मेरी ये बूढ़ी काया है

माना ये जिंदगी है
थोड़ी दुःखी,थोड़ी ख़ुशी है
सुखा पेड़ हूँ गिर जाऊँगा
बस पीछे परछाई पड़ी है


सुनीता शर्मा 
~मिला है क्या~

कभी परिवर्तन यहाँ
अधर्म जारी
सडके खूनी
हर श्वास हर दिन
इंसानियत घुट रही
संस्कार खो रहे
आधुनिक दीमक
चाट रही आज
अपनी संस्कृति को
चलचित्र के दीवाने हैं
भोग विलासिता के
अंध जाल में फंसे
बुजुर्गों का लिहाज भूले
कैसा ये दौर है ....
बुजुर्ग शर्मिन्दा
युवा बेशर्म बन
आचार विचार
सब बेपरदा कर
नाच रहे हैं
बन मस्त मलंग
सडकों को
अपनी धरोहर मान
नित्य नियमों का
हनन करने में
रहते मगन
और बेचारे बुजुर्ग
अपने स्तिथि समझ
सर झुकाए
परिवर्तन से हार कर
बिना कुछ बोले
बिना कुछ टोके
चल देते हैं
अपनी अपनी राह
जमाने के साथ
बदलो या शान्त रहो
इसी मे शायद..
अब समझदारी है !


नैनी ग्रोवर 
~परछाईयां~
बीते दिनों की परछाइयाँ,
उत्सव मनाने लगी है क्यूँ ,
बीती हुई गुलशने जिंदगी पे,
फिर से इतराने लगी हैं क्यूँ ...

आज तो तन्हा, राहों में,
अचानक मिल गए वो,
गुज़रे हुए वो चंद लम्हें,
फूलों से खिल गये क्यूँ ,
हर कली इस चमन की,
फिर से महकाने लगी है क्यूँ ...

बिसरे हुए वो वादे,
याद से आके रह गए,
दो आंसूं ढलक आये,
जब हम मुड़ के चल दिए,
आवाज़ तेरी हमारे पीछे ,
आ आके पुकारने लगी है क्यूँ ...नैनी


सुनीता पुष्पराज पान्डेय 
~कैसे बताऊँ~
मन मेरा झूम रहा , कैसे तुझे बताउं मै
आओ झूमे गाये ,मस्त मनंग हम बन जाये
तेरी बाँहो के हिडोले, मे मै झुलू झूला
साजन आओ बिते दिन याद करे
क्या खोया है क्या हमने पाया है
तुमने अपने हिस्से की सारी खुशियाँ हम पर वारी है
पर आज देखो कितनी सुन्दर अपनी फुल्वारी है
हमारी बगीया के फूलो ने अपनी खुशबू बिखेरी है


कुसुम शर्मा 
~याद ~
कई दिनो के बाद कुछ तस्वीरे फिर यूँ सामने मेरे आई
भूल गये थे जिन यादों को, देख उन्हे फिर आँखे भर आई
छूट गये थे कही वक़्त की दौड़ मे जो लम्हे हमसे पीछे
बातों ही बातों मे फिर उनकी यादे लौट कर चली आई
अब तो ये यादे ताज़ा हो भी गई तो क्या
वो कही पीछे छूट गए और ये ज़िन्दगी हमें नई राह पे ले आई !!



किरण आर्य
~ तेरी मेरी कहानी ~

उम्र के एक पड़ाव पर आकर
क्यों हुए दूर हम
हालातों से अपने क्यों
हुए मजबूर हम
कुछ वक़्त की रही कारस्तानी
कुछ दिल की रही नादानी
किये थे वादे करार तुझसे
ये साथ रहेगा सदा
सात जन्मों का है प्यार तुझसे
फिर क्यूकर हुई राह
अलग अनजानी
साथ रहे गए टूटे से कुछ ख्वाब
और राह की वीरानी
दिल चाहे आज भी दोहराना
वहीँ कहानी
जब तुम थे मेरे दिल के राजा
और मैं थी एहसासों की तेरे रानी
दिल ये चाहे लौट आये पतझड़ में
फूलो की फिर रवानी
वक़्त फिर से एक बार दोहराए
प्रेम की वहीँ कहानी



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