Sunday, December 28, 2014

12 दिस्मबर 2014 का चित्र और भाव



भगवान सिंह जयाड़ा 
"शमा और परवाना "
-----------------------
शमा कहे परवाने से ,क्यों तुझे जलाऊँ ,
अपने अश्को से, कब तक तुझे भिगोऊँ ,
हम साथ रहे तो जिंदगी भर जलते रहेंगे ,
कब तक हम यह दुःख दर्द सहते रहेंगे ,
बस अँधेरे में ही देख कर अस्तित्वअपना ,
जैसे देखता है कोइ सोये में सुनहरा सपना ,
यह अजीब सी खामोसी एक अहसास अपना ,
पर न जलने की डर,न जल कर यूँ खपना,
बस सिर्फ अहसास सदा रोशनी का बना रहे,
साथ सदा तेरा मेरा बिना जले यूँ ही बना रहे ,
समा कहे परवाने से ,क्यों तुझे जलाऊँ ,
अपने अस्कों से, कब तक तुझे भिगोऊँ ,


बालकृष्ण डी ध्यानी
मोमबती

जली और बुझी मै
मोम थी पिघली मै

ले सहारा धागे का
उस तीली ने मुझे जलाया

रोशनी हुयी वैसे ही
सब भूले गये मुझे तब ऐसे ही

अंधेरे अगल बगल जलती रही
टीम टीम कर पिघलती रही

कभी सैकड़ों हाथों ने उठाया
सभी ने अकेले मुझे जलाया

सुख दुःख में यूँ जलती रही
अकेले रोती रही हंसती रही

एक हवा का झोंका आया
उसने मुझे फिर बुझाया

तब शायद
आप को होश आया

जली और बुझी मै
मोम थी पिघली मै



नैनी ग्रोवर
शमा

जलती रही ताउम्र,
रौशनी लूटाती रही,
ख़ामोशी से अपना वजूद,
कमबख्त मिटाती रही..

अंधेरो से लड़ना,
नसीब बन गया,
फिर भी नामुराद,
सदा मुस्कुराती रही..

हो राजा या रंक,
फर्क इसने ना किया,
धागे सा जिगर अपना,
हरदम जलाती रही..

ऐ "नैनी" सीखना है देना,
तो सीख शमा से,
ये पिघलती रही,
दुनियाँ जशन मनाती रही ..!!



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
मेरा अफसाना

मुझे जलाते हुए अपने हाथ जला न देना
रोशन होते जहाँ को अपने, बुझा न देना

जलती रहती हूँ मैं, रोशनी देने की चाह में
हरती रहती अँधेरा,जो होता तुम्हारी राह में

मोम का है बदन मेरा, सदा ये पिघलता रहा
लेकिन धागा कर्तव्य का, सदा ये जलता रहा

अँधेरे को रोशन करना ही, धर्म अपना माना
दूसरो के लिए जलना ही , कर्म अपना माना


दीपक अरोड़ा 
~ऐसी ही हूं मैं~

जलाकर मुझको
रोशन कर लो
जहान अपना
खुद जलकर
दूसरों को रोशनी देना
है काम अपना
सब जानते पहचानते हैं
अंधेरों में मुझको
फिर भी बता देते हैं
'मोमबत्ती' है नाम अपना


Negi Nandu 
"ख़ुशी के लिए"
कभी से कभी अँधेरे से जिसके लिए जलता हुआ लड़ता रहा रात भर,
सुबह की किरणों के संग बुझा दी उसने ही मेरी लो फूंक कर l
यक़ीनन मेरी रौशनी कम हे सूरज से,
पर ये भी यंकी हे तुझे फिर मेरी जरुरत होगी अँधेरा होने पर l
सोचता हूँ कई बार की फिर न जलूं तेरे लिए,
कि फिर ख्याल आता हे तेरे चहरे पर ख़ुशी आती हर मेरे जलने पर l
कभी हवा से कभी अँधेरे से जिसके लिए जलता हुआ लड़ता रहा रात भर,
सुबह की किरणों के संग बुझा दी उसने ही मेरी लो फूंक कर l


Pushpa Tripathi 
शाम इधर जब भी गुजरे --- तुम चले आना !!

शमा अंधरे में, बुझने न दीजिए
सुबह की लहर खोने न दीजिए .... l

जख्म अभी ताजा है, दर्द बहोत गहरा
मुहब्बत को दिल में छिपाए रखिए …।

कौन जाने फिर चले, रास्ते हम तन्हां
थोड़ी सी रात लौ, शमा जलाये रखिए …।

खुशियों से जब मिलें, पलकों पे आसूँ
ऐसे वक्त अरमां 'पुष्प ' सजाये रखिए …।


किरण आर्य 
..........मैं खड़ी रहूंगी............

विकृत मानसिकता बोली मुझसे
नहीं मिलने वाला इन्साफ यूँ
मोमबतियां जलाकर....

बुझा दो इन्हें
और मन में उपजे
अवसाद के गरल को पी जाओ....

यहीं है नियति तुम्हारी
जन्मों सहो प्रताड़ित होकर भी
ना आने दो शिकन चेहरे पर....

सहो सहो और सहते हुए ही
त्याग दो शरीर
वैसे भी उभारों से युक्त
शरीर से अधिक क्या है पहचान तुम्हारी ? ....

मैंने चिल्लाकर कहा
नहीं ये केवल मोमबत्ती नहीं
जिसे जला खड़ी हूँ मैं समक्ष तुम्हारे .....

ये है विश्वास की वो चिंगारी
जो मेरे मन से निकल हुई है रोशन
और जैसे जैसे पिघलेगा मोम ये
राह मिलेगी मेरे मन के अंगार को ....

आ खड़े होंगे कई हाथ साथ मेरे
मोमबत्ती लिए हाथों में
और रौशनी में उनकी
हो जाओगे भस्मीभूत तुम
मैं खड़ी रहूंगी उस पल
मुस्कुराते हुए आँखों में रौशनी सजाये
मोमबत्ती सी .................


कुसुम शर्मा 
~शमा जलती रही~

चाँद अपना सफ़र ख़त्म करता रहा
शमा जलती रही रात ढलती रही
ज़िन्दगी का सफ़र यूँ ही चलता रहा
ख़्वाब पलकों से गिर कर फ़ना हो गए
दो क़दम चल के तुम भी जुदा हो गए
होश आया तो दिल के टुकड़े दिखे
सुबह माँगी थी मन का अंधेरा मिला
इस तरह बदलाव आता रहा
कि दोस्त भी दुश्मन लगता रहा
मेरी हरी थकी आँखो में रात दिन
एक नदी आँसुओं की बहती रही
शमा जलती रही रात ढलती रही...!!


अलका गुप्ता 
~~~~अभिलाषा~~~~

अंघकार विराट...जब.. छा जाए |
मानव हे ! मन जब..घबरा जाए ||

प्रज्वलित शिखा मेरी तुम कर देना |
जलजल तन ये चाहें पिघल जाए ||

अभिलाषा उर में ...बस इतनी ही ..
हर तन-मन प्रकाशित सा दमकाए ||

हो विलग मनहूस अँधेरा ..भागे दूर ..
जीवन का हर क्षन रौशन हुलसाए ||

मैं शम्मा हूँ तन्हा ..ही जल जाऊँगी |
जीवन से जला हर तन्हाई जाऊँगी ||


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Friday, December 12, 2014

4 दिसम्बर 2014 का चित्र और भाव ...



किरण आर्य 
...... से 'अस्तित्व तक '

रोजमर्रा की आपधापी
अस्त व्यस्त सी जिन्दगी
चलती एक ढ़र्रे पर
आस निराश के साथ
चहलकदमी करती
थोड़ी सी धूल
थोड़े से थपेड़े
थोड़ी सी आशा
थोड़ा सा विश्वास
थोड़ी सी धूप
थोड़ी सी छाँव
थोड़ी सी चांदनी
थोड़े से सपने
थोड़ी सी किरचे
थोडा सा अवसाद
थोडा सा चिंतन
और ऐसे ही
थोडा थोडा करके
हो जाता जाने
कितना कुछ एकत्र
मन के घरौंदे में
इसी घिचपिच से
उपजते है विषाद
असमंजस और घृणा
जैसे अनगिनत भाव
बिखरने लगता है
बहुत कुछ और
घुटने लगते है प्राण
उखड़ने लगती है सांसे
मस्तिष्क में मचता है
तीव्र सा कोलाहल
और तब कानों को बंद कर
मन व्यग्र जो
चीख उठता है राह पाने को
बंद हो जाती आंखें स्वत ही
और यहीं जन्मता है मनन
आँखों के कोर भिगोता
जो सहेजता है
सारे बिखराव को सिरे से
और जो कुछ भी है
थोडा थोडा
उस सबको करता है प्रदान
पूर्णता
वैसे ही जैसे
गोधूली बेला में
उडती धूल में धुंधला जाता
पेड़ों का अक्स
सब होने लगता है धूमिल
और ऐसे में चन्द्र-किरण
धुंधलाते प्रतिबिम्ब को
अपनी रौशनी की चादर में
समेट करती प्रदान
अस्तित्व


नैनी ग्रोवर 
याद बहुत आता है

वो सर्द सुबह का आलम,
वो दर्ख्ख्तों का लहराना,
याद बहुत आता है..
ठंडी हवा में हाथ थामे,
तेरे साथ चलते जाना,
याद बहुत आता है..
दूर तक धुंधलके में,
चुपके से गुम हो जाना,
याद बहुत आता है..
मदहोश करती हुई ,
तेरी आँखों का मुस्कुराना,
याद बहुत आता है..!!



कुसुम शर्मा 
नए दिन की नई सुबह
*********************
खुले आसमान में दिख रहा सूरज का चेहरा
सूरज की किरणों के बीच हवाओ का बसेरा
नए दिन की नई सुबह का नया नया है अंदाज़
सारे दिन के लिए झोली में कुछ छुपे हुए हैं राज़
पंछियों का चहकना बिखेर रहा है संगीत आज
ख्यालो का यूं महकना , कुछ तो ख़ास है आज
तुझको मुझको हर किसी को मिलना है कुछ आज
तो आओ यारों ख़ुशी ख़ुशी कर लें दिन का आग़ाज़



K Shankar Soumya .
सवेरा

छँटा कुहासा हुआ सवेरा
नव आशा का नवल उजेरा
धूप धरा पर ज्यों ही आई
झटपट भागा दूर अँधेरा

नुतन दिवस के मृदुल दृश्य में
जागीं सब अलसाई आँखें
स्वप्न अधूरे पिरो रहे हैं
नवल चेतना वाले धागे

लगता जैसे वसुंधरा नें
नवयौवन को आज बिखेरा
धूप धरा पर ज्यों ही आई
झटपट भागा दूर अँधेरा



बालकृष्ण डी ध्यानी 
मौसम बदल रहा है

मौसम बदल रहा है
शाखों पर मचल रहा है
आने वाली सुबह कुछ कह रही है
ओस की बूंद अब जम रही है

एक नया आलम छाया
ना जाने कौन गा रहा है
झुरमुट पत्तों किरणों संग अठखेली है
सुबह ने तब आँखें खोली है

मन क्यों मचल रहा है
नग्मा बन पल पल उछल रहा है
सर्द सी तपन बड़ रही है
जाड़े की जो गर्मी चढ़ रही है

यौवन तन-मन गौते खा रहा है
कोहरा अपना मुंह छुपा रहा है
नवम्बर सितमबर का माह
कंबल में तुमको को बुला रहा है

मौसम बदल रहा है
शाखों पर मचल रहा है
आने वाली सुबह कुछ कह रही है
ओस की बूंद अब जम रही है



अलका गुप्ता 
~~~नव-प्रभात~~~

नई सुबह क्या आई कुहासा है देखो छंटता जाता |
गई निशा, हुई भोर उजाला चहुँदिश है बढ़ता जाता |
निशि का आँचल सरक रहा है वसुंधरा से धीरे धीरे ...
हर ओर चेतना के मंजर में अपनापन घुलता जाता ||

धुन पर मंगल गीतों की हर पंछी सुर अजमाता है |
मधुमय सुगंध पाकर मलयज भी हौले से मुस्काता है l
शाख़-शाख़ भी शीश हिला करती हो मानो अभिवादन...
अगवानी में नव-प्रभात की जग प्रहरी बन जाता है ||

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~सवेरा~

शंख ध्वनि का गूंजता मधुर घोष
प्रभा - रशिम हरती अंधकार दोष
नभ से बिखरता स्वर्णिम प्रकाश
वर - वधु से सजे धरती व् आकाश

पुण्य प्रभात से सजी हुई मधुर बेला
इन्द्रधनुषी किरणों सा रंग है फैला
शाखों पर लगा गहनों का सा मेला
रोमांचित मन झूले सावन सा झूला

सौम्य रूप लिए पूषण की शीतलता
सूर्य की प्रकृति से दिखे सन्निकटता
उदृत होजब क्षितिज पर रूप बदलता
'प्रतिबिम्बित' होती भानू की चंचलता



Pushpa Tripathi 
ठण्ड में गगन --- रहता है मगन

गगन है मगन --- है कोहरे में खोया
रात के बाद -- जो सुबह भी सोया
लगता है बेपरवाह --- कुछ ध्यान नहीं
धरती पर दिनचर्या का तनिक भान नहीं l

बहरूपिया है गगन ---- हर मौसम रूप दिखाए
पौष में छिपता ---- ठण्ड भर, धूप चुराए
बारिश में काला ---- नभ नीला रंग बदलता
गगन है मगन धरती को अपना रौब दिखाता

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Friday, December 5, 2014

25 सितम्बर 2014 का चित्र और भाव




रोहिणी एस नेगी 
जीवन-चक्र
"""""""""
जीवन का हर-एक 'पड़ाव',
कुछ न कुछ तो सिखलाता है,
संघर्षों से जूझ, अवस्था,
कितनी पार कर जाता है,
जन्मकाल से मरणासन्न तक,
चक्र एेसा चलवाता है,
उलझा रहे मनुष्य इसी में,
बाहर निकल न पाता है ।।



कुसुम शर्मा 
जीवन की सच्चाई
*****^***********
बचपन बिता आई जवानी
और बुडापा आयेगा
आख़री मंज़िल जब आयेगी
बता अब कहाँ जाएगा
तेरा मेरा अपना पराया सभी यहाँ रह जाएगा
क्या लाया जो साथ ले जाएगा
ख़ाली आया ख़ाली यहाँ से जाएगा
तू तू मैं मैं के चक्कर में क्यूँ फँसाये जान रे
माटी का है तन ये तेरा माटी में मिल जाएगा
बता अब तू क्या पायेगा
जैसा क्रम करेगा साथ वही ले जाएगा
कर ले तू कुछ ऐसा जो याद करें संसार रे
फिर देख मरने के बाद भी तू अमर हो जाएगा !!



अलका गुप्ता 

~~जीवन चक्र~~

जीवन चक्र !
आत्मा और जीव का !
जन्म मृत्यु का !

महाप्रयाण !
अंतहीन प्रवास !
अंतिम यात्रा !

भव-सागर !
महा माया जंजाल !
यात्रा कागार !

पुनर्जन्म है !
नव यात्रा आगाज !
मृत्यु विश्राम !


बालकृष्ण डी ध्यानी 
एक वो मौसम आया और चला गया

एक वो मौसम आया और चला गया
दे आवाज दे दूजे को कर दे खुद को अलविदा
एक वो मौसम आया और चला गया

देता रहा वो बस तू लेता रहा
संभला कितना उसने मुझे ,पर कुछ ना संभला सका
एक वो मौसम आया और चला गया

एक उम्र थी वो बस बहती रही
बहते बहते कहती रही समझा रही थी मै समझ ना सका
एक वो मौसम आया और चला गया

हर एक मोड़ा आया वो मोड़ती रही
हर छोर छोड़ने से पहले सोचती रही जो सोचना था सोच ना पाया
एक वो मौसम आया और चला गया

सपने जगाये कुछ तोड़े उसने कुछ पुरे किये
आस का दमन पकड़ा था जो आखिर गंगा में बहा
एक वो मौसम आया और चला गया

घूमता ही रहा उस घुमाव के संग संग
उस चक्कर को आखिर अंत तक साथ अपने ना ले पाया
एक वो मौसम आया और चला गया

एक वो मौसम आया और चला गया
दे आवाज दे दूजे को कर दे खुद को अलविदा
एक वो मौसम आया और चला गया


जगदीश पांडेय 
इंसान तेरी यही कहानी

बीत गया जो पल जीवन का
वापस फिर न कभी आयेगा
दुनियाँ में आनें वाला इंसान
एक दिन लौट तू जायेगा

लिया जन्म जब दुनियाँ में
खुशियाँ चारो ओर हुई
वक्त के साथ बदल गया तू
मन में माया की है शोर हुई
जीवन भर तू रहेगा भागता
साथ न कुछ तेरे जायेगा

बीत गया जो पल जीवन का
वापस फिर न कभी आयेगा


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25 अगस्त 2014 का चित्र और भाव



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~भाग जिन्दगी भाग ~
दौड़ती भागती जिन्दगी
फंसा जिन्दगी के चक्रव्यूह में
कब रोक पाया खुद को
जिन्दगी की हर जद्दोजहद से
पहिया जिन्दगी को घूमता रहा
अंत में खुद को पाया उसी जगह में


ममता जोशी 
~~भागम -भाग~~

असीमित इच्छाओं की त्वरित पूर्ति के लिए,
दिन-रात खपती ,भागती ,दौड़ती ये जिंदगी ,

भीड़ से आगे निकलने की हमेशा जल्दी रही ,
कामयाबी और नाकामी के बीच झूलती ये जिंदगी ,

कुछ सुख हैं कुछ दुःख थोडी हंसी थोड़े आंसू ,
रिश्ते नाते,प्यार दोस्ती कुल जमा यही है जिंदगी ...



दीपक अरोड़ा 
आओ प्यार बसा लें...

यूं ही न गुजर जाये ये जिंदगी
आओ हर पल को यादगार बना लें
कुछ ऐसा करें भागदौड़ कर कि
अपना नया इक हसीं संसार बना लें
कोशिश करें नफरत को दूर भगाने की
हर दिल में हम आओ प्यार बसा लें.. दीपक



कुसुम शर्मा 
क्या है़ ये ज़िन्दगी

मनुष्य जीवन की धारा का प्रवाह है ज़िन्दगी,
बूँद भर पानी की प्यास है ज़िन्दगी,
लाचार बेवस करहाती है ज़िन्दगी ,
इस प्रकृति की चेतना,
प्राणियों के प्राण की श्वास है ज़िन्दगी
जो कभी ख़त्म न हो संसार में
एसी आस है ज़िन्दगी,
क्षण क्षण हरक्षण दौड़ती भागती है ज़िन्दगी,
इस पर भी कुछ फ़ुरसत के पलों की
मोहताज है ज़िन्दगी,
मनुष्य की बदलती आकांक्षाओं में
ख़ुशी के लिए तरसती सिसकती है ज़िन्दगी,
मनुष्य के ह्रदय के कोने में दवी
ख़ुशी की आस है ज़िन्दगी,
आदि अंत को पलड़ों में तौलती है ज़िन्दगी,
अंधेरों में रोशनी की एक किरण है ज़िन्दगी,
वक़्त के पहियों के थपेड़ों को
आजमाती है ज़िन्दगी !!



बालकृष्ण डी ध्यानी 
भागता रहा

भागता रहा
यूँ मैं भागता रहा
ना जाने क्यों
किसके लिये यूँ
जागता रहा
भागता रहा
यूँ मैं भागता रहा

अपने घिरे घेरे में
मन के उस फेरे में
अपने को यूँ
हरपल बंधता रहा
भागता रहा
यूँ मैं भागता रहा

क्या छूट रहा है
क्या पाना चाहता है वो
अपने को इस समय साथ
क्यों ढलता रहा
भागता रहा
यूँ मैं भागता रहा

कैसी दौड़ा है
जाना किस ओर है
बिना सोचे समझे वो
उसकी दौड़ किस ओर है
भागता रहा
यूँ मैं भागता रहा

भागता रहा
यूँ मैं भागता रहा
ना जाने क्यों
किसके लिये यूँ
जागता रहा
भागता रहा
यूँ मैं भागता रहा


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1 जुलाई 2014 का चित्र और भाव



जगदीश पांडेय
------ कालेज का दौर -----

सुनसान इन गलियारों से
गुजर रहा है यादों का दौर

हर जगह था शोर शराबा
आनंद ही आनंद चारो ओर
सुनसान इन गलियारों से
गुजर रहा है यादों का दौर


कालेज में होना लेक्चर
लेक्चर में जाना पिक्चर
कैंटीन में लडकियों का
हमें कह देना फटीचर
जहाँ देखो सुनाई देता
हर जगह लेक्चर्स के शोर

सुनसान इन गलियारों से
गुजर रहा है यादों का दौर



बालकृष्ण डी ध्यानी 
मीनारों में दबे मेरे जवाब

हँसते हँसते रह गये
वो जजबात मेरे दिल में मचले हुये
उड़ना चाह मेरे परवाज
रह गयी चिला वो आवाज दब के
मेरे दिल में ही कंही

मीनारों में छुपे यंत्रों
में से देखे छूटे क़दमों के निशां
बेकल बेपरवाह भटकते भटकते
शीशे जा पूछे वो सवाल भूले हुये
मीनारों में दबे मेरे जवाब कंही

फिर क्यों शांत है चुपचाप
वो तूफ़ान उम्र के साथ ढलते ढलते
ताज के इस मकबरे में फंसी जान
आखरी पड़वा का वो इंतजार
डर रही सांस क्यों कर रही ऐसे

हँसते हँसते रह गये
वो जजबात मेरे दिल में मचले हुये
उड़ना चाह मेरे परवाज
रह गयी चिला वो आवाज दब के
मेरे दिल में ही कंही


नैनी ग्रोवर 
--इंतज़ार--

कांच की खिडकियों के
ना इस पार कोई,
ना उस पार कोई..
बस इक खामोशी है
जो चीखती है
चिल्लाती है
किसी के कदमों की
आहट को तरस जाती है..
ये मुंह उठाये तकती
पथ्थर की दीवारें
सरसर करती हवा से
लरज जाती हैं
गुमसुम खड़ी बेवा की तरह
ये तन्हाई सहम जाती है ..
यकबायक सीने में चुभन सी
तेरी रंगीन यादें
चारो और मानिंद खुशबु सी
बिखर जाती हैं
तब दूर कहीं से कोई
आवाज़ आती है
इंतज़ार और अभी और अभी !!



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ खामोश गलियारे ~

खामोश गलियारे देते गवाही

इन पर चलते, भागते - दौड़ते
कदमो की
इन पर बुने सच्चे, टूटे - बिखरे
सपनो की
इन पर सुलझे, बनते - बिगड़ते
रिश्तो की
इन पर लिखी पूरी, आधी - अधूरी
कहानियो की

'प्रतिबिंब' फिर भी आज खामोश है
ये गलियारे


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23 मई 2014 का चित्र और भाव




Pushpa Tripathi 
- कोई ऊपर कोई नीचे --

कोई ऊपर .. कोई नीचे
पीछे ... अच्छे अच्छे
आपा धापी जीवन राह पर
सच्चे झूठे गिरे बेचारे !!
हार से जीत ... जीत के हारे
राजनीति का खेल ... वाह रे वाह रे ......

कठिन मुलायम ... हाथी से बन्दर
उजाला लालटेन ... अंधकार है अंदर
अबकी झोली कोई भर न पाया
एक से एक धुरंधर ...पलटा खाया ......

अबकी बार फूल पहनी है ताज
ऊपर उठकर बनी सरकार
नीचे गिरे महाबली बेचारे
हारे बिखरे 'आप ' हमारे ....

किसी के सर ताज .. किसी की हार
कोई हँसता ... कोई उदास ...

अबकी बार यह भी देंखें
भविष्य में आगे
कितना , बढ़ेगा देश ....!!!!


भगवान सिंह जयाड़ा 

-----ताज की शक्ति-----

जिस के सर पर सजता ताज ,
नहीं होता किसी का मोहताज,
बजन हो जाता उस का भारी ,
उछाले वह सब को पटखी मारी ,
ताज की रही सदा महिमा न्यारी ,
इसको पहिने कद हो जाता भारी,
बस सभी करें उस का गुणगान ,
जो पहनें ,वह कहलाये महान ,
बिकट परिस्थिति जो यह पहने ,
बस उस का तो क्या है कहने ,
सुधार गया तो बन गया हीरो ,
नहीं सुधरा तो फिर से ज़ीरो ,
जिस के सर पर सजता ताज ,
नहीं होता किसी का मोहताज,


बालकृष्ण डी ध्यानी 

~देख जिंदगी खेलती रहती~

देख जिंदगी खेलती रहती
पल पल खेल नया , हर पल खेल नया

कोई इस पल राजा कोई रंक यंहा
दूजे पल तोल देती है राज खोल देती है भेद नया

देख जिंदगी खेलती रहती
पल पल खेल नया , हर पल खेल नया

इस उठक पठक में झोंक देती है
उस चौराहे में अकेले छोड़ देती नही जंहा कौन वँहा

देख जिंदगी खेलती रहती
पल पल खेल नया , हर पल खेल नया

रखना ना भरोसा तोड़ देती है वो साथ तेरा वो पास तेरा
अपने वजूद पर बस तू रख वो हाथ तेरा

देख जिंदगी खेलती रहती
पल पल खेल नया , हर पल खेल नया


नैनी ग्रोवर -
~ क्यों उदास ~
ऊपर बैठा क्यूँ हुआ उदास
नीचे के सर पे आया ताज
ये समय का पहिया है भैया
इसके दामन में छुपे सब राज़ ..

जैसी करनी वैसी भरनी
कहावत ये है बिलकुल सही
कब तक बंद करे आँखे जनता
लों कह दिया अब तुझको नहीं
अब होगा भारत लाजवाब ...

छीन ली रोटी बच्चों से तुमने
हर घर में हाहाकार मचा
हो जवान ये किसान कोई
नहीं तुम्हारी महंगाई से बचा
देख दिया कितना करारा जवाब ...

समय का पहिया .........!


किरण आर्य 
~पलड़ा सुख दुःख का ~

दुःख है सिसके
आँखों में नीर लिए
अनजान राहों में
भटके है अज्ञानी मन
दुःख से पानी
उसे निजात
जीवन सत्य से परे
दुःख से हो विकल
मन है कलपता
जार जार है रोता
दुःख का घनेरा
बुझा देता आस का दीप
उसी क्षण हौसला मन का
दिखाता उम्मीद की रौशनी
दुःख अनायास ही लगता
क्षुद्र सूक्षम सरल सा
तब सतत प्रयास
और मन की आस
दिखाते है राह मन को
और खुशियाँ पहन
सर पे ताज
मुस्कुराती है
दुःख की तपिश में
बारिश की फुहार सी
मन के आंगन में बरस जाती है



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24 अप्रैल का चित्र और भाव



रोहिणी एस नेगी 
"समय की सीढ़ी"

समय की सुइयों के,
बढ़ते अंतराल पर,
छलाँग लगाने का प्रक्रम,
अभी जारी है,
उम्मीदों में क़दमों को,
अागे बढ़ाने की बारी है,

मंज़िल मिले न मिले,
स्वयम् को एहसास दिलाना है,
प्रिष्ठ-भूमि ऐसी न थी हमारी,
किधर जा रहा ये ज़माना है ?

निरंतर कर्मठता जीवन में,
अग्रसरता लाती है,
सिर्फ़ एक सकारात्मक सोच ही,
मनुष्य को आइना दिखाती है,

तू चलता चल,
अपनी राह बनाता चल,
कुरीतियों का नाश करके,
अग्रिम दिशा में बढ़ता चल,

मैं ये जानती हूँ............!!
छलाँग लगाना ही,
किसी कर्म का उद्देश्य नहीं,
फिर भी संभव है.........!!
पर.....समय के पहिये को,
सीढ़ी बनाकर,
दिशा-निर्देश देना,
बिल्कुल असम्भव है....!!



बालकृष्ण डी ध्यानी 
भागती दौड़ती

भागती दौड़ती रही
वो तो घड़ी ....... दिल की घड़ी
धक धक ....... दिल की घड़ी
भागती दौड़ती रही
वो तो घड़ी .......

कुछ अपने से
कुछ पराये से .... बेगाने धागे
कुछ पिरो कर कुछ दे कर
कुछ ले कर वो तो चली ....... दिल की घड़ी
धक धक ....... दिल की घड़ी
भागती दौड़ती रही
वो तो घड़ी .......

कुछ फलक पर
कुछ जमीन पर …… अरमानों दिये
कुछ जलाकर कुछ बुझकर
सब कुछ साथ लेकर वो तो चली
धक धक ....... दिल की घड़ी
भागती दौड़ती रही
वो तो घड़ी .......

भागती दौड़ती रही
वो तो घड़ी ....... दिल की घड़ी
धक धक ....... दिल की घड़ी
भागती दौड़ती रही
वो तो घड़ी .......


जगदीश पांडेय सादर 

********* समय के चलते ********

.
समय के चलते चलते
हालात बदलते बदलते
ये कहाँ आ गये हम

शाम यूँ ढलते ढलते
गई कुछ कहते कहते
छा गये कहाँ से इतनें गम

वक्त कल अजीब था
माना कि तू गरीब था
पर खुशियाँ न थी तेरे कम

.
वक्त जो छूट गया
कोई क्यूँ रूठ गया
हो गई क्यूँ आँखे आज नम
समय के चलते चलते
हालात बदलते बदलते
ये कहाँ आ गये हम


नैनी ग्रोवर 
----समय----

समय की तेज़ बहती धारा
और मेरे थके कदम
जिंदगी के आँचल से
मुँह निकालते कुछ वहम
बहकाते हैं मुझे --

पराई देहरी लगता है
अपना ही अब आँगन
जैसे के अधूरी अधूरी
दरवाज़े पे खड़ी सुहागन
रुलाते हैं मुझे --

थम थम के चल
ज़रा सांस तो आने दे
आप्खो के आंसूं
छलक तो जाने दे
जो बहलाते हैं मुझे --

क्या पता उसके हाथ
फिर से थाम ले दामन
महक उठे फिर से
उजड़ता हुआ चमन
यूँ ही दिल को मनाते हैं ---!!



Pushpa Tripathi 
----- भली भली सी ये ज़िंदगी ----

सुबह का पंछी
दौड़ लगाये
उड़ उड़ पंछी
थक मर जाये ....

हारे भटके
निज काम है करते
घड़ियाँ सुई
सब घूम फ़िर जाये …

समय से चलना
समय के साथ
समय के हाथ
दिन भर के काम …

दौड़े भागे
पैर चक्का लागे
टाई - कोट
सूटकेस है हाथ ....


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~सफर~
घड़ी की रुके न रफ़्तार
हर कोई इसमें गिरफ्तार
सूरज - चाँद बदलते वक्त
अच्छे का करते हम इंतजार
कही सवेरा, कही है अँधेरा
वक्त संग किस्मत का पहरा
कर्म यज्ञ चलता जाए निरंतर
कटता जाए जिन्दगी का सफ़र


Pushpa Tripathi
--- यही है कार्य ----

कर्मठ है जीवन
सतत चलना है काम
रुकना नहीं
यह उसूल है जीने का l

रात दिन का चक्र
दिनभर का वक्र
आलेख सा समय
घटते - बढ़ते शुक्र l

इतवार की छुट्टी
सोमवार कर मुटठी
हफ्तेभर भरमार
मंगल शनिच्चर की गठरी l


अलका गुप्ता
~~चल दौड़ लगा ले!~~
---------------------------
चल दौड़ लगा ले!
सूइयों से घड़ी की..
बंधा ये जीवन है |
पहियों बीच समय के...
दौड़ता हर पल है
कभी कुछ पया ...
कभी कुछ खोया ..
यही तो जीवन है |
कभी खुशी कभी गम है |
यही तो जीवन है |
जीते सब हैं जीवन अपना |
जिए जो औरों के लिए |
हर काल उन्हें पूजा जाता है |
समय उनके लिए बंध जाता है |
नहीं तो समय...यूँ ही
निर्थक बीत जाता है |
कोई आता है कोई जाता है |
समय का पहिया....
यूँ ही चलता जाता है |
चल दौड़ लगा ले !अब तो ..
नहीं तो .......
ये समय ..निकला जाता है |
कुछ सार्थक करके जाना |
हर लम्हा अपना करके जाना |
समय कम है ...
सत -कर्मों की दौड़ लगाना |
हर लम्हा अपना करके जाना ||

अलका गुप्ता 
समय तो जा रहा है

देखो घड़ी वो जा रहा है |
साथ घड़ी के जीवन भी...
ये ..तो सरका जा रहा है |
दौड़ता ये हर पल ...
कुछ पाता कुछ खोता है |
हर लम्हा कभी ख़ुशी ...
कभी ग़म का होता है |
सतत दौड़ते जाना है |
कुछ करके सार्थक जाना है |



किरण आर्य 
~समय का पहिया~

समय का पहिया
दौड़े है
दौडती जिन्दगी
हांफती सिसकती
गिरती संभलती
संग उसके
एक तलाश हो
मुकम्मल
चातक की प्यास सी
दिल में ये आरजू है लिए............


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

10 जून का चित्र आयर भाव



बालकृष्ण डी ध्यानी 

~देख तराजू में दिल तौला~

देख तराजू में दिल तौला
वो भी टूट गया ,वो भी टूट गया
क्या गुन्हा किया था मैंने मौला
तू भी रूठ गया , तू भी रूठ गया

इंसाफ झुक जो मेरी तरफ
उसको ना झुका सका
एक तरफा प्यार मेरा जीत कर भी
तू हार गया, तू हार गया

हर लह्मा गया मेरा जो
तेरी ओर बस तेरी ओर गया
वो किसी और का फैसला
क्यों ना मेरा हो सका ,क्यों ना मेरा हो सका

अब तो बस तन्हाई रुसवाई है
मीलों दूर उसकी सूरत नजर आयी है
वाह रबा क्या तेरी खुदाई
दुनिया जीत कर भी मै हार गया

देख तराजू में दिल तौला
वो भी टूट गया ,वो भी टूट गया
क्या गुन्हा किया था मैंने मौला
तू भी रूठ गया , तू भी रूठ गया



जगदीश पांडेय 
----------- दिल का पलडा --------------

टूटे हुवे दिल का भी पलडा भारी होता है
दिल तोडनें वाला रात को अक्सर रोता है

आह सुनाई देती है जब टूटे हुवे दिल की
नींद हो जाती है दूर रात जब वो सोता है

दीश दुनियाँ की हर खुशी अधूरी होती है
जब किसी का होके कोई किसी को खोता है


अलका गुप्ता 
~~~~~~ना तोलो तराजू पर ~~~~~~~

सैंया दिल है मेरा ना तोलो तराजू पर |
टूट गया दिल मेरा यह लो तराजू पर |
होते नहीं.. सस्ते...ये बंधन प्यार के ..
दिल सच्चा तोले कौन बोलो तराजू पर ||

माना सब कुछ आज बिक जाता यहाँ |
युग है बाज़ारू खरीदार ही आता यहाँ |
कौड़ियों में तुल जाते रिश्ते नाते सभी ..
बेदिल ही होगा रिश्तों को बेच पाता यहाँ ||



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3 मई २०१४ का चित्र और भाव



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~मन~

मन...
चल उड़ चले
लेकर भावो की गठरी
सुबह और शाम
मन कर तू भी सवारी

अरे मन .....
कहाँ चला तू
जहाँ तुझे कोई जानता नही
क्यों भाग रहा तू
सत्य को अब भी पहचान सही

लौट आ मन ...
अब तुझसे वहां
किसी का वास्ता नही
जानते तो है सभी
लेकिन पहचानता कोई नहीं


बालकृष्ण डी ध्यानी

~बैठा हूँ परदेश में~

देखों जब भी तुझे गगन में उड़ते हुये
सोचों बस इतना कब बैठों कब पहुँचो अपने घर पे

पंख पसारे तू उड़ उड़ जाये
साथ अपने मुझे कल्पना के कौन से गगन ले जाये

नीले आकश सफेद बादलों बहतीे हवा संग उड़ता जाता
मेरे मन पटल चक्षु में कई सुखद भाव जगाता

हर एक उस प्यारे मिलन के अनुभूति दे जाता
ये उड़न खोटले तू इतना कर जाना
ये सुख अनुभूति मेरे अपनो को भी दिलाना

देखों जब भी तुझे गगन में उड़ते हुये
सोचों बस इतना कब बैठों कब पहुँचो अपने घर पे


भगवान सिंह जयाड़ा 

----मन की उड़ान ----

काश आज यह हवाई जहाज न होता ,
इन्शान किसी का बिछोह न सहता ,
इन्शान अपनों के आस पास होता ,
कभी भी बुछुड़न के आंशू न रोता ,
सदा अपनों से यह सदा दूर ले जाये ,
मिलन की आश में सदा तरसाये ,
दूर प्रदेश , गगन में जब नजर आये ,
अपनों से मिलने की आश जगाये ,
सोचता तब कभी यह मन दुखियारा,
लौट चल अब बतन तू, मन मतवारा,
मन की उलझन में फिर सोचता हूँ ,
मन ही मन में अपने को कोसता हूँ ,
इसकी बजह से दुनिया सिमट गयी ,
यह सारी दुनिया एक शहर हो गयी ,
पंख फैलाये सदा यूँ ही उड़ते रहना ,
अपनों से सदा हमको मिलाते रहना ,



अलका गुप्ता 
~~उड़ान ~~


ये आसमान तो...
इस धरती पर...
सबका ही है ||

छूने की हो...
तमन्ना ..
दिल में...
वही तो उड़ता है ||

पंखों से नहीं...
उड़ान तो ...
हौसलों से...
ही होती है ||

हों हौंसले...
बुलंद..जिसके...
मंजिल भी ...
उसी की होती हैं ||


जगदीश पांडेय 

~~~~~~~~ न जानें कहाँ ~~~~~~~~

न जानें कहाँ उड चला है
ये भावनाओं के गगन में
ख्वाबों के लेकर पंख ये
होकर अपनें मगन में
न जानें कहाँ उड चला है
ये भावनाओं के गगन में

न रास्तों का है ठिकाना
न हकीकत का पैमाना
पाकर रहुंगा मंजिल मैं
एक दिन इसनें है ठाना
खुशनुमा होगा वो पल
अपनें अमन के चमन में
न जानें कहाँ उड चला है

ये भावनाओं के गगन में


Pushpa Tripathi 
इस दिल का क्या कसूर

इच्छाएँ जब आती है
पंखो की तरह उड़ती है
सोच परेशानियों को
ऊंचाई तक उड़ा जाती है …

दिल क्या करता
दिल ही तो है
कसूर किसका दे
मन भी तो है
मन के आकाश में
विचरता दिल का विमान
कई बातों को साथ लेकर
दिनभर की यात्रा 'पुष्प ' विमान
मानव मन ,शरीर और ये दिल !



Pushpa Tripathi
मन उड़ता है .......

चाहत है आसमान छू लूँ
ऊंचाई पर झूला झूल लूँ
छोटे छोटे घर घनी आबादी
खिलौने सा शहर देख लूँ !!

अमीरों के तरह सवारी
एक बार चढ़कर सफर देख लूँ
रुपयों से आसमान का नगर
इन्द्र देव का महल देख लूँ …

कहते है रहते भगवान ऊपर
'पुष्प 'परियों का संसार ऊपर
मानव का उच्च शरीर लेकर
इच्छा है की भगववान देख लूँ !!


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13 अप्रैल 2014 का चित्र और भाव



बालकृष्ण डी ध्यानी 
मै

देखा जो
तस्वीर को गौर से
उभरा ये शब्द
इस मन के वजूद से

ना हारूँगा
ना जीतूंगा मै
कंक्रीट के जंगल में भी
ना दम तोड़ूंगा मै

हरयाली हूँ मै
हरा रंग अपना कैसे छोड़ूंगा
मृत शरीर में भी
मै अपने प्राण फूकूंगा

जीवन मेरा तेरे
साथ चलते यूँ चला
पथ तूने जो बनया है
उस पथ बड़ते रहा मै

देखा जो
तस्वीर को गौर से
उभरा ये शब्द
इस मन के वजूद से


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~सन्देश~
यूँ न छोड़ना मुझे
कि जिन्दा न रह सकूँ
अगर दे सको दे देना
अपना विश्वास और प्यार
समय को रहे ध्यान
मत करना तुम इंतजार
जी लूँगा कुछ और दिन
दे आऊंगा फिर से तुम्हे बहार


जगदीश पांडेय 
************ हसरते ***********

तमाम उमंगे तमाम हसरते लेकर जी रहा
हूँ मैं
जीनें की खातिर अपनें ही गमों को पी रहा
हू मैं

भले ही नही मैं हरा भरा और ना ही कुछ
है पास मेरे
कमजोर हुवे जडों को आसुवों से सींच रहा
हूँ मैं

साथ नही किसी का आज संग जिसके मैं
चल सकूँ
उम्मीद बहुत कम है कि बंजर में भी पल
मैं सकूँ

करतार मेरे मालिक क्यूँ भूल गया लिखना
मेरी तकदीर
कुछ तो ऐसा कर दीश अपनें कर्मों से मचल
मैं सकूँ


अलका गुप्ता 

~~वीरानियों में अकेला खड़ा मैं !~~

वीरानियों में अकेला खड़ा मैं !
हरियाली सा झाँकता हूँ |
तरसता हूँ मिट्टी की गंध को मैं !
तरसता हरित से संस्कार को मैं |
कोयल भी ...कूकती नहीं अब ...
गीत पंछी सुनना चाहता मैं !
सीमेंटी इन जंगलों बीच
सम्वेदनाएँ बांचता मैं !.
घटाओं में सावन की.. या ...
पुरवाइयों में झूमना चाहता मैं !
बदगुमानी में सींचता मुझे...
यह इंसान क्यूँ है ...
हे ! ईश ......बूंदों को..
स्नेह की ...तरसता मैं !
आज इन विकट हालातों में भी
एक मुस्कान बाँटता ..इन्हें...
तब भी ..हाँ ..खुश हूँ मैं !
भटक गया क्यूँ ...
इंसान ये पाषाण सा |
इनमे जड़ सम्वेदनाएँ बांचता मैं
गमला कहते हैं .. जिसे ये ...
जीवन इक ..तंगहाली मानता मैं !
वीरानियों में अकेला खड़ा मैं !
हरियाली सा झाँकता हूँ |


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25 मार्च 2014 का चित्र और भाव





बालकृष्ण डी ध्यानी 

~मै यंहा तुम वंह ~

मै यंहा तुम वंह
मै यंहा तुम वंह,रस्ते गुम कंहा
शाम गमगीन है , अब गुमसुम समा
मै यंहा तुम वंह
तुम बैठे ही रहे, हम रूठ कर चल दिये
देखा था मुड़ के हम ने, तुम सर झुकाये ही रहे
तुम वंह मै यंहा
बैठे रह गये राह ताकते ,तुम्हे निगाहों में भरते
खोये रहे हम बस तेरे ही ख्यालों के ख्यालों में
मै यंहा तुम वंह
सोच था तुम आवाज दोगे,हमें तुम रोक लोगे
बस सागर मचलता रहा, ये मन तड़पता रहा
तुम वंह मै यंहा
ना थी तेरी खता ,ना ही था मै बेवफा
मुकदर में कुछ और लिखा था हम हो गये जुदा
मै यंहा तुम वंह
शक मुझ मे पनपा था, इसकी मिली सजा
राहें एक थी अब तक, मंजिलें अब हुयी फना
तुम वंह मै यंहा
मै यंहा तुम वंह,रस्ते गुम कंहा
शाम गमगीन है , अब गुमसुम समा
मै यंहा तुम वंह


अतुल सती अक्स 

मोड़:

किस मोड़ मुड़ गयी ये ज़िन्दगी।
फिर बन गए हम तुम अजनबी।
ना तुम ही बेवफा,ना हम बेवफा।
इश्क ने रंजो-गम दिया सदा ही।
अश्कों में डूबा मिला हमें 'अक्स'।
जिसने भी की,इश्क़ की बन्दिगी।


जगदीश पांडेय 

------------ गले लगा जाना -------------
जिंदा लाश बना के शौक से चली जाना
जानें से पहले गले एक बार लगा जाना
.
गुमसुम सी जिंदगी मेरी शाम-ओ-सहर
इस कदर रुठ कर मुझपे न ढाओ कहर
कर न दे ये जमाना कहीं खाक-ए-सुपुर्द
राख होनें से पहले मेरी जाँ लौट आना
जानें से पहले गले एक बार लगा जाना
.
खामोश है फिजाएँ देखो आब-ओ-हवा
इन्हें अपनी चाहत का नज्म सुना जाना
मैं तो हूँ प्रतिबिंब सनम तेरी अदाओं का
दूर होनें से पहले ये सीसा तोड जाना
जानें से पहले गले एक बार लगा जाना
.
गर न आये जो लौट वादा है ये मेरा
टूट जायेगी साँस रहेगा इंतजार तेरा
बस दिल की तमन्ना एक पूरी कर जाना
'दीश' के आखिरी घर की नींव रख जाना
जानें से पहले गले एक बार लगा जाना



रोहिणी एस नेगी 

"काल-रात्रि"
रिश्ते सुलझे-अनसुलझे से,
दिखाई देते हैं.....
कच्चे धागों़ की तरह उलझे से,
दिखाई देते हैं.....
पीड़ होती है ये जानकर,
जब अपने-पराए से,
दिखाई देते हैं.....
कहने और करने में कितना,
फ़र्क़ लगता है.....
दिल रोता है उसमें जब,
दर्द उठता है.....
धूआँ आँसू बनकर,
भाप हो जाता है.....
सीने की जलन में ज़मीर
करवट बदलता है.....
वो काल-रात्रि बनकर,
जाने कहाँ से आती है,
मेरी संवेदनाओं को,
फिर जगा जाती है,
प्रतिदिन उसकी बाट,
जोहने में निकल जाती है,
वो है कि.........
रात के अँधेरें में,
फिर कहीं लुप्त हो जाती है...!!

नैनी ग्रोवर 

----------खामोश रहूँ ---------
यही है मेरी किस्मत, के यूँ ही खामोश रहूँ,
बस तेरी ही यादों में, मैं मदहोश रहूँ...
तन्हा दिल की क्यूँ सुनेगा, ये रंगीं ज़माना,
जब छोड़ दी महफ़िल तो, खानाबदोश रहूँ...
ख्वाब था के, हो मेरे हाथों में, हाथ तेरा,
गर नहीं, तो यूँ ही, वीरानों की आगोश रहूँ...
समझी नहीं मैं चालें तेरी, ऐ गमें जिंदगी,
चल "नैनी" अब मैं ही निर्दोषों में दोष रहूँ ...

नैनी ग्रोवर 

____ पत्थर चुनती हैं___
सहमी सहमी लग रहीं हैं हवाएं,
जैसे के इन्हें भी डर है,
मेरे सपनों के बिखर जाने का..
समुन्दर से मिलकर,
जाने क्या ताने बाने बुनती हैं,
मोती तो गुम हो चुके,
किस्मत पथ्थर चुनती है ...
क्या अब भी इंतज़ार है,
उनके कभी इधर आने का...
डूब रहा क्षितज का सूरज,
दूर कहीं बेगाने जहां में,
तू दूर कहीं मैं दूर कहीं,
प्रेम के उजियारे गाँव से,
मन में बसी जो प्रीत की बगिया,
डर है उस के, उजड़ जाने का...// नैनी

भगवान सिंह जयाड़ा

-----------तन्हाई जीवन की---------------
उम्मीदों के इस भंवर में मिले थे कुछ इस तरह ,
चाहत की ख्वाइसे संवारा था मैं कुछ इस तरह ,
सोचा न था कभी इस तरह मुंह मोड़ लोगी हमसे ,
हमने तो गिंदगी को संवारने की कोशिश की तुमसे ,
मगर दगा देकर छोड़ कर यूँ चली जावोगी हमको ,
चाहा था तुम को पहले जिंदगी में उसके बाद रब को,
खैर यही दिल लगी का फल है सायद मेरी जिंदगी में ,
बरना हम तन्हाँ ही खुश थे अपनी बिरान जिंदगी से ,
अभी भी कुछ चाहत है मेरे लिए तुम्हारे बेवफा मन में ,
तो लौट कर आ जावो सनम मेरे तड़फते इस मन में ,
मैं अभी भी इन्तजार कर रहा हूँ ,तुम्हारे बदलने का ,
एक बार दिल से समझने की कोशिश कर मेरे मन का ,
दिल्लगी को यूँ ठुकरा कर मेरी चली तुम जिस डगर ,
पस्तावोगी एक दिन तुम भी मेरी तरह कुछ इस कदर ,
बरना अभी भी समय है तुम लौट कर चली आवो ,
मेरी बिरान जिंदगी की सदा के लिए बहार बन जावो ,
----------------------------------------------------

जगदीश पांडेय 

------- तुम ही मेरी मौहब्बत हो -------
न जाओ मेरी जाँ मुझे इस कदर छोड कर
जोड के रिश्ता गम से दिल मेरा तोडकर
मैने अपनों हाथों की लकीरों को जला डाला
रब की दी अपनी तकदीरों को भुला डाला
.
क्या कमीं थी चाहत में जो जा रही हो
तडपानें के लिये मेरे ख्वाबों में आ रही हो
देखो कितनी उदास है शाम
और लहरों में तूफान है
इनके साथ ही जुडी हुई
तो हमारी दास्ताँन है
.
आज सूरज ढल गया तो क्या
वक्त बदल गया है तो क्या
भले अमावस की रात हो
बदनसीबी की बिसात हो
.
बस एक बार हाँ एक बार मुड के कह दो
कि हाँ मैं नही जी सकती तुम्हें छोड कर
जोड के रिश्ता गम से दिल तेरा तोडकर
और इस जहाँ में " दीश "केवल एक -
तुम ही मेरी मौहब्बत हो
तुम ही मेरी मौहब्बत हो
.

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

~ये दूरियाँ~

ये बेरुखी है
या दूर हुए दूरियों से
ये तन्हाई है
या फिर याद तेरी लाई है
ये वक्त रूठा है
या दिल किसी का टूटा है
ये बेवफाई है
या फिर वफ़ा का सबब है
ये कैसा मौसम है
यहाँ भी वहाँ भी बरस रहा है

सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी 

ये दूरियाँ !!
दूरियाँ, मजबूरियां, क्यूँ बीच तेरे-मेरे,
बेरुखी, तन्हाईयाँ, क्यूँ बीच तेरे-मेरे |
आ पास आजा, कुछ पल तो ए जिंदगी,
पाबंदियां किस बात की, हैं बीच तेरे-मेरे |. दूरियाँ .....
कसमों सा, रस्मों सा, बेदाग़ दर्पण सा,
था सिलसिला तेरा-मेरा,
सपनों सा, अपनों सा, बेनाम अर्पण सा,
था सिलसिला तेरा-मेरा,
सरगोशियाँ गुम हो गईं कब, यूँ बीच तेरे-मेरे | दूरियाँ ...
सशेष.............


कुसुम शर्मा

 !! दूर जा कर भी हम दूर जा न सकेंगे !!


दूर जा कर भी हम दूर जा न सकेंगे,
चाह के भी कभी तुमको भुला न सकेंगे,
दर्द कितना हैं बता न सकेंगे,
ज़ख्म कितने हैं दिखा न सकेंगे,
आँखों से समझ सको तो समझो लो
आंसूं गिरे हैं कितने गिना न सकेंगे,
गम इसका नहीं कि आप मिल न सकेंगे,
दर्द इस बात का होगा कि
तेरा नाम इस दिल से मिटा न सकेंगे,
दूर जा कर भी हम दूर जा न सकेंगे,
चाह के भी कभी तुमको भुला न सकेंगे,

Pushpa Tripathi 

---- गुमसुम है चाँद ----
चुप है चाँद
रात भी गुमसुम
कारवां बना
कई हालात
दे रहा है समंदर
कुछ तो सहारा
मन का तूफ़ान
बस एक किनारा l
सोचाता हूँ जब
क्यूँ दर्द में घिरा
किसका असर मुझपर आया
दिल औ दिमाग गूंजता सवांद
बस ---- तू ही तू
बस ----- तू ही तू l


अलका गुप्ता 

................ तुम हमारे हो ..............
नदी से दो किनारे हैं
दोनों के ही साहारे हैं
हम यहाँ तुम वहाँ ...
उदास..बेसहारे हैं |
मिलते नहीं बेवसी में ...
हम ...वो किनारे हैं |
ख्वाब आँखों के ...
तुम हमारे हो ...सनम !
हम तुम्हारे हैं ||
तन्हाई का ये उदास आलम है |
तूफ़ान समुन्दर से उठते है.....
दिल में ...अरमान मचलते हैं |
हम क्यूँ नहीं फिर .. मिलते हैं |
या रब !कुछ मिलने की सूरत कर ..
ज्यूँ दरिया और समुंदर मिलते हैं !!


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