Friday, November 20, 2015

१२ नवम्बर २०१५ का चित्र और भाव

इस बार चित्र पर आप को दो भाव लिखने है शीर्षक बेसक एक हो - एक सकारत्मक और एक नकारात्मक 
- कम से कम ६ पंक्तियाँ अवश्य होनी चाहिए हर भाव में

Kiran Srivastava 
"दांव"
(1)

ये जीवन भी
दांव खेलती है,
कभी हम खुद से
हार जाते हैं....
कभी जिंदगी
जीतने नहीं देती
लेकिन अपनों से हार
कभी-कभी
जीत से भी ज्यादा
खुशी दे जाती है
और हम हार कर भी
जीत जातें हैं....!!!

(2)

जोश में होश
ना खो जाये
न लगाओ
दांव पे दांव...
निकल ना जाये
चादर से पांव
ऐसा न हो
ज्यादा की चाह में
जीवन बद् से
बद्तर हो जाये...!!!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ..... 
1.
~ये तो है ~.

जिन्दगी मुस्कराई
जब तुम आई
पल पल में खुशबू
अंग अंग में छाई

प्रेम आकर्षण
तन मन की खुशी
डेरा डाले बैठी रही
रोज सहलाती रही

जीवन समर्पण सा ख्याल
उत्तर देता हुआ हर सवाल
चाहत - संग 'प्रतिबिंब' सा
मिलन - ख्वाबो का हकीकत सा

2.
~वक्त हँसने लगा ~

लम्बी लम्बी बाते
लेकिन छोटी चाहत सी
पल केवल मिलन के
ख्वाइश उन्हें समेटने की

अचानक पल छूटने लगे
चाहत शब्द बन दूर जाने लगी
साथ केवल शब्दों का
भाव अब दूरी बयां करने लगे

पल वक्त की दुहाई देने लगे
एहसास मेरे सवाल बनने लगे
समय कही और बीतने लगा
वक्त मुझ पर फिर हंसने लगा



नैनी ग्रोवर
1.
 --दाँव--
कभी धुप कभी छाँव है,
यही तो जीवन का दाँव है,

कभी हार में भी जीत है,
कभी जीत में भी हार है,
फूलों का बिछोना कभी मिले,
कभी धुप में जलते पाँव हैं,
यही तो जीवन का दाँव है...

मुस्कुरा के स्वीकार करो हर क्षण,
करेगा परमात्मा स्वयं रक्षण,
विश्वास का दामन ना छूटे कभी,
अगले मोड़ पे ही तेरा गाँव है,
यही तो जीवन का दाँव है ..!!

2.

 ---दाँव---
मौज और मस्ती है हर घड़ी,
कल क्या होगा, किसको पड़ी,
ना घर और ना परिवार कुछ है,
बस दो दिन की बहार सबकुछ है,
महफ़िलों में लगाओ, पैसों की झड़ी,
कल क्या होगा, किसको पड़ी...

डुबो दो आज ही, जो कुछ है कमाया,
कल का क्या पता, आया ना आया,
ऐंठ के लगाओ तुम दाँव पे दाँव,
क्या हुआ अगर भूखा मरता है कोई गाँव,
तुम जलाओ, हसीन सपनों की फुलझड़ी,
कल क्या होगा, किसको पड़ी..!!

बालकृष्ण डी ध्यानी
की हो जाये बंटाधार

पास फेल की ये जिंदगी है
ले तू सब नकद या उधार
की हो जाये बंटाधार .... २

यंहा किसी का कोई नहीं
ना कोई रंक ना कोई साहूकार
की हो जाये बंटाधार .... २

पढाई भी इस पर निर्भर है
चाहे उल्लू हो या होशियार
की हो जाये बंटाधार .... २

सुख दुःख की बंधी लड़ी
दुःख छड़ी जिसको ये पड़ी है
की हो जाये बंटाधार .... २

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Tuesday, November 10, 2015

४ नवम्बर २०१५ का चित्र और भाव




नैनी ग्रोवर 
--इंतज़ार--

अंधेरों में बैठे, इंतज़ार कर रहे हैं हम रौशनी का,
कब निकलेगा सुनहरा चाँद, कब देखेंगे मुँह चांदनी का..

ग़ुम हो गए सारे नज़ारे, गुमसुम हुई बहारें,
खो गए जाने कहाँ, अम्बर से तारे प्यारे प्यारे,
लगता है जैसे टूट गया सुर, कोई रागिनी का..

खिलवाड़ किया कुदरत से हमने, अंजाम यही होगा,
डूब जायेगी अँधेरे में दुनियाँ, सच मान यही होगा,
कुछ तो कर लो मान, इस धरती जग जननी का..!!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~भीड़~

आज एक भीड़ में खड़े है सब
देख रहे, माहौल बदलेगा कब
कोई रोशनी के लिए जले जब
चेहरा शायद सबका दिखे तब

वैसे भीड़ किसी की होती नही
आज तेरी कल मेरी सोच यही
मानवता सम्मान खोये है कही
अपना कृत्य, केवल लगता सही

भीतर की ज्वाला अभी शांत है
हर कोई, यहाँ असमंजस में है
दूजे को देख 'प्रतिबिंब' सोचते है
मुझे छोड़, यहाँ सब मजे में है


Kiran Srivastava 
" अंधकार "

किंकर्तव्य विमूढ क्यूँ बैठे हैं
ये अंधकार तो है क्षणिक
असली अंधियारी है अंदर
जिससे नही लगे जग सुंदर
मिटा सको तो इसे मिटाओ
एक ज्ञान का दीप जलाओ....

भ्रष्टाचार फैला चहुँओर
त्राहि -त्राहि मची है जोर
क्या महिला क्या बच्चियाँ
उड. रही हैं धज्जियां
खुद समझो सबको समझाओ
एक ज्ञान का दीप जलाओ....

अंदर बाहर सब काला है
नियत में गडबड झाला है
चेहरे पर चेहरा हैँ लगाये
जिसकोकोई समझ न पाये
मिलकर इनकोसबक सिखाओ
एक ज्ञान का दीप जलाओ....!


बाल कृष्ण ध्यानी 
~अँधेरे में ~

अँधेरे में अंधेरों से
अँधेरे चेहरे जब मिले
अंधेर बस अँधेरे ये

बंद तस्वीर
बंद लकीरों से मिले
तब बंद कमरों का खेल चले

मूक हैं अपने से
मूक वो सपने से
ना जाने मन क्या पले

कैसा सन्नाट है
कैसा पल उभर आया है
विचलित ही सब को पाया है

अँधेरे ये .....................



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Sunday, November 1, 2015

२५ अक्तूबर २०१५ का चित्र और भाव





प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~एक रिश्ता ~

सजाया था एहसासों से
बनाया था जिसे हमने अपने शब्द भावो से
एक रिश्ता अपना सा
आज वक्त के साथ बेगाना सा लगने लगा

दरवाज़ा बंद कर लिया अब
दिल का वो कमरा खंडहर नज़र आता है
एक हिस्सा बाकी है अभी
जो टूट कर मिट्टी में मिलना चाहता है

मुड़ कर देखा था उसने
तसल्ली आँखों से करना चाहते है वो
कुछ छूटा तो नहीं 'प्रतिबिंब'
लौटने का हर निशां मिटाना चाहते है वो

Kiran Srivastava 
" यादें"
-----------------
मिटते धरोहर
दरकती दिवारे
लगे मुझको ऐसे
हमें वो पुकारे
सिसकते हैं आंगन
और रोते चौबारे
आहत होती हूँ
जब मुड कर दखतीं हूँ.....

याद आती है
बचपन की शरारते
बाबा का प्यार
मां का दुलार
बच्चों की टोली
वो मीठी वाली गोली
सपनों में खो जातीं हूँ
जब मुडकर देखतीं हूँ.....

ऐशो आराम का जीवन
भागती जिंदगी
दौडते लोग
आगे जानें की होड
रिश्तों में जोड
नजरें चुराते लोग
वहुत दु:खी होतीं हूँ
जब मुड कर देखतीं हूँ.....


प्रभा मित्तल 
~~अतीत के पन्ने~~
आज फिर यूँ ही अतीत के
बंद वो पन्ने पलट रही हूँ,
ढाई अक्षर जिए थे जिनमेंं
यहीं से था शुरु उम्र का रास्ता
मिलीं ज़िंदगी की सदायें नई।

कितना कुछ पाया जीवन में
ना जाने कब कहाँ खो गया
अपने भी सिमट गए अपने में
आस-पास रह गई मेरी तनहाई।

सुन्दर सा सलोना सपना मेरा
नयनों के कोरों से बह निकला
जो रह - रह कर मेरी आँखों में
खेल रहा था छुपम - छुपाई।

मन के सन्नाटे में घिर-घिर
आज फिर वो यादें याद आईं
भूली हुई, वादों की नाकामियाँ
कितने अनकहे दर्द समेट लाई।

मुड़कर फिर-फिर देखा तुमको
उस भीड़ भरी महफिल में मैंने,
डग भरते आगे निकल गए तुम
मैं पीछे संग लिए अपनी तनहाई।

चाहने को तो बहुत कुछ था,मगर
माँगूं भी क्या, अब ढल रही शाम
अख्तियार नहीं मेरी साँसों पर,
तुमसे जो मिला, सौगात हो गई।


भगवान सिंह जयाड़ा
-खामोशी--
------------------
दरो दिवार की खामोशियों को देख ,
आज मैं भी स्तब्ध खामोश हो गई,
बस कुछ धुंदली सी यादों के सहारे,
जिंदगी के जख्मों का दर्द सह गई,

घूरती रह गई हर खामोश कोनों को,
कहीँ तो कुछ उम्मीद की लौ मिले ,
बीते हुए उन लम्हों की यादों का,
दिल में आज फिर एक फूल खिले,

इंतजार आज भी किसी के आने का
खामोश हर राह को ताकती रहती हूँ
मिल जाये आशा की एक किरण ,
तन्हाइयों में सदा जागती रहती हूँ,
--------------------




ज्योति डंगवाल 
-----गाँव की अभिलाषा---

मैं खोजती खुदको
गुम कही अतीत के पैमाने में
हो रहा खंडहर
ये दर ओ दीवार

मन में करवट बदलता
एक अहसास है
गूंजी थी वो पहली किलकारी
तेरी मेरे ही मुहाने पे
यूँ खंडहर मेरे जिस्म को
क्यों चला तू छोड़ वीराने पे

वो नीम आम की डाली
वो चम्पा चमेली गुलाबों की क्यारी
बीते लम्हों की लौटा दो
मुझे सौगात न्यारी

मेरे आँगन का कलरव
वो खोयी सी रंगत
बूढ़े छतनार की जवानी
अपनी आँखों का पानी

मैं सुखद दिनों की आशा
अडिग आज भी
होके जर्जर संभलती हूँ
लिए जी रही हूँ एक अभिलाषा

एक दिन प्रिय तुम आओगे
मुझे सम्भाल सँवार
तीज होली गीत तुम गाओगे
डूबता मेरा अस्तित्व
तुम बचाओगे



Pushpa Tripathi
~वादों वाली बात~

वक्त के बदलते रिश्तें
अब तो अलसाया लगे
रेत में पानी का हिस्सा
अब तो बेगाना लगे !

सिसकते बूंदों की गठरी
दिल पर बोझ उठाते है
बीते दिनों की याद तो
अब कहर सा लगे !

क्यूँ वादो वाली बात
पीछे मुड़कर देखती है
जो कुछ अपना नही
अब वो अपना सा लगे !


कुसुम शर्मा 
विरह
-------
दूर कही गाँव मे बैठी
आज भी राह निहार रही
न जाने विरह अग्न मे
कितने अंशु बहा रही

हर पल हर क्षण वह ये सोचे
अब तो मिलन की बेला है
लेकिन वह ये क्या जाने
विरह ही उसकी जीवन बेला है

वादा करके भूल गया वो
बीच राह मे छोड़ गया वो
उसकी दिल मे आस लगाये
बैठी है वो राह निहारे

निंदा आँखो की छूट चुकी है
हँसना अब वो भूल चुकी है
प्रिया की आस लगाये दिल मे
दुनिया को वो भूल चुकी है !!





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Saturday, October 24, 2015

६ अक्तूबर २०१५ का चित्र और भाव



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~सही निर्णय ~

रुका तो है पथ
लेकिन
रास्ता कोई न कोई
निकल ही आएगा

जीवन एक संग्राम
लड़ना तो होगा ही
संही समय पर
रास्ता
दाए या बाए
पीछे या सामने
नज़र आ ही जाएगा.

भय, हार से
कोई न जीत पाया है
रुकने से कब
कदम बढ़ते है
जोश उत्साह, हौसला
और विश्वास
को अपनाना होगा
सही निर्णय लेना होगा


नैनी ग्रोवर 
--राहें--

राहें नहीं चलतीं कभी,
जीवन चलता है,
कभी विश्वास कभी अविश्वास में लिप्त,
जाने कितने सपनो को संजोये,
जीवन चलता है..

स्वयं ही मुड़ जाता है,
जहाँ चाहता है मन,
और दोष मढ़ कर,
मूक बेचारी राहों पे,
जीवन चलता है...

मिलने की ललक,
वियोग का दुःख,
उकताए हुए से चेहरों का,
बोझ डाल कर इन राहों पे,
जीवन चलता है...!!


Kiran Srivastava
"अवरोध"

रूकना नही जीवन में हमको
आगे बढते जाना है.....

राह अगर रूक भी जाये तो
आगे ना बढ भी पाये तो
मन में ये संकल्प करो
नहीं ठहरना है हमको
दुजा राह अपनाना है
आगे बढते जाना है.....

रुक जाये वो राही कैसा
थम जाये वो जीवन कैसा
मानेगे ना हार कभी हम
आगे बढते ही जायेगे
कोई ना हो राह अगर
खुद ही राह बनाना है
आगे बढते जाना है.....

जब तक मंजिल नहीं मिले
तब तक चैन नहीं लेगे
राह में आये चट्टाने
या आये कोई तुफान
करेगे डटकर सामना
उससे ना घबरायेगे
आगे बढते जायेगे.....


बालकृष्ण डी ध्यानी 
~कुछ करने से पहले सोच ले~

कुछ करने से पहले सोच ले
रास्ता अपना राही खुद से खोज ले

कोई नहीं खड़ा तेरा इन राहों में
अपने आप से पहले तो ये बोल दे

हर कोई रोकना टोकना तुझे चाहेगा
बस अपनी मन की आँखें तू खोल दे

मंजिल तेरी होगी खड़ी यंहा वहां
उस राह में एक पहला कदम धर दे

आएंगे जायेंगे कितना चिन्ह यंहा
उन पर अपनी सोच की मोहर ठोक दे

कुछ करने से पहले सोच ले
रास्ता राही अपना खुद से खोज ले


अलका गुप्ता 
~~~~~कदम बढ़ाने से पहले~~~~

रहें न राहें मुश्किल.. देखते चलो निशान |
कदम बढ़ाने से पहले..कर लो इत्मीनान ||

अनुभव पुराना आता है सबके बहुत काम |
चांहें हों पदचिन्ह...हो चाहें..तीर कमान ||

निरंतर बढ़ते जाना, है जीवन की पहचान |
बढ़े-चलो बढ़े-चलो ,छोड़ो न..अपनी आन ||

सोचो समझो बुद्धी का..करो हमेशा स्तेमाल |
खोल के रखना है..हमे तो.अपने आँख-कान ||

एक हो जज्वा ..और ह्रदय में ..पाने का अरमान |
हो अगर हौसला मन में..मंजिल पाना है आसान ||


ज्योति डंगवाल 
~~~ कदम रुके क्यों हैं ~~~~

रुके कदम क्यों है...रात काली ही सही
हौसले के चराग तो जला क्या उजाला नहीं

मंजिल तो रहेगी हाँ रहेगी वहीँ
कदमों को मत रोकियेगा कभी

अधीर बावड़ी होती है नहीं
प्यासे को ही जुगत करनी है सभी

मुमकिन है राह भटकाव होगा कभी
राही न रोकना कदम अपने कभी

ले पहाड़ों से इरादे अपने सभी
मंजिल तेरी बाट जोहती खड़ी

विजय पताका लहराती हुयी
तेरे हौसले को दाद दिलाती हुयी...

कुसुम शर्मा 
राह कठिन है
---------
माना कि राह कठिन है
चलना ही तो बस प्रण है

जिन्दगी की डगर मे
कुछ ऐसे ही तो पल है
न हार तु इस डगर से
मुश्किल के इस पल से
कर ले निश्चय अगर
राह को तू पायेगा
फिर भला तुझे कौन रोक पायेगा

विश्वास अटल जो तेरा
मंज़िल को तू पायेगा
बढ़ते क़दम के आगे
तू सबको झुका पायेगा

कठिनाइयों को सह कर
हौसला बुलन्द कर
सही ग़लत को भेद कर
लक्ष्य का निश्चय कर
बस चला चल
बस चला चल

मंज़िल हो जब पास तेरे
न देखना पलट कर
बस चला चल
बस चला चल !!



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Sunday, October 4, 2015

18 सितम्बर 2015 का चित्र एवं भाव




Kiran Srivastava 
"संतुलन"

असंतुलन
के बीज
से उपजी
कटीली झाड़ियाँ.....
लहुलुहान होते
जीवन.....
विघटित होते
परिवार.....
जीवन की
कठिन डगर.....
जरुरत है
संतुलन की.....
संतुलन
सुगम करता
राहों को
लक्ष्य और
मंजिल को.....
आलोकित करता
जीवन को.....
सीख दे जाते हैं
कभी-कभी
वन्य जीव भी....
जो वाचालता
में हम
भूल जातें हैं.....!!!!!




नैनी ग्रोवर 
--जीवन की दौड़--

कितनी ही भयानक हो चाहे ये जीवन की दौड़,
सीख ही जाता है चलना हर प्राणी, भय को छोड़..

लालसा कुछ नया पाने की, लुभाती है इस तरह,
मुसीबतों की तरफ देता है, ये मासूम स्वयं को मोड़..

इंसानो ने छीन लिए जब घर इन बेगुनाहों के,
जाएंगे अब कहाँ ये, इन धुआँ भरे शहरों को छोड़..

भागम-भाग जन्म से मृत्यु तक, चलती रहेगी,
बचा सको तो अब भी बचा लो, ये प्राणी हैं बेजोड़..!!



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ इंसान और बन्दर ~

इंसान
परजाति बन्दर की
इंसान बंदर था या है
समझ नही आ रहा
अभी तक
इतना समझ पाया
बस इंसान बनने के बाद
इंसान अदरक का स्वाद
पहचानने लगा है और
इंसान कहता है
बंदर क्या जाने
अदरक का स्वाद


कुसुम शर्मा 
देख रहा इन्सान की फ़ितरत
---------------------
देख रहा था सोच रहा था
पल ही पल मे तोल रहा था
क्यों बन्दर बना इन्सान रे

बन्दर होता अच्छा होता
कम से कम ये सच्चा होता
या आख़िर सिर्फ़ बच्चा होता

चाल तो इसकी मेरे जैसी
ढाल को इसके क्या कहने
चहरे के पीछे है चहरा
इसका भी ये क्या कहने

मुख से राम नाम है जपता
बग़ल छुरी लिए है फिरता
किस समय वार ये करता
इसका भी ये क्या कहने

कहता है बन्दर ये मुझको
पर बन्दर से कम ये नही
हम तो जैसे है दिखते है
पर ये तो दिखता ही नही

इनकी फ़ितरत मे धोखा है
हमारी फ़ितरत ये तो नही
बन्दर है अच्छे है
इन्सान से तो सच्चे है



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Thursday, September 17, 2015

५ सितम्बर २०१५ का चित्र और भाव




बालकृष्ण डी ध्यानी 
~सवाल अकेले में~

जब भी सवाल अकेले में मैं अपने आप से करूँ
बदल बदल सा क्यों मै आज खुद को दिखूं

मेरी परछाई कुछ बताती है वो आज मुझे
अँधेरे उजाले में कैसे उसके साथ साथ चलूँ

शक्ल अकल अब भी तो वो ही लगती है मेरी
फिर किस ओर से मै बदल बदल सा आज दिखूं

यूँ बतियाने से अपने अक्स से क्या है हसिल
पैर रहते जमीन पर मेरे जब भी वो आसमान में उड़े

जब सवाल अकेले में मैं अपने आप से करूँ
बदल बदल सा क्यों मै आज खुद को दिखूं


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~प्रश्न ~

एक बार भी नही सोचा
क्यों प्रश्न तुमसे इतने करता हूँ मैं
क्योंकि खुद से भी ज्यादा
तुम पर भरोसा कैसे करता हूँ मैं

पल पल इस तन्हाई का
तुम बिना कैसे जी सकता हूँ मैं
मेरे एहसासों का परिचय तुम
तुम को कैसे भूल सकता हूँ मैं

प्रेम भावना का मनभावन संगीत
तेरे बोल बिना कैसे रच सकता हूँ मैं
देख सम्मुख बैचेन रहता है मन
तुम से कैसे अलग रह सकता हूँ मैं

इस जीवन का प्रिय रिश्ता
इस प्रेम से कैसे दूर रह सकता हूँ मैं
कोई ध्वनि तौड्ती कभी खामोशी
तेरी महक से दूर कैसे रह सकता हूँ मैं

अकेला होने पर भी
तुमसे और तुम्हारी ही बात करता हूँ मैं
दिखे अपना ही ‘प्रतिबिंब’ लेकिन
हर सवाल तुमसे ही करता जाता हूँ मैं


Kiran Srivastava 
~~~~"परछाईं"~~~~
रुसवाईयाँ जीवन में
सरेआम होती हैं
परछाईयाँ भी रोशनी
की गुलाम होती है.....

कहतें हैं परछाईयाँ
साथ निभाती है,
गर अंधकारमय
हो जाये जीवन तो
ये भी साथ छोड़ जाती है
उतार-चढ़ाव ही जीवन की
पहचान होती है,
परछाईयाँ भी रोशनी
की गुलाम होती है.....
बदलती है परछाईयाँ भी
रोशनी के बदलने से
कद कभी बौनी तो
कभी बुलन्देखास होती है
दिखता वही है जो
अपनी औकात होती है,
परछाईयाँ भी रोशनी
की गुलाम होती है.....
जीवन भी शतरंज की
बिसात होती है,
प्यादा भी मात दे
देता है वजीर को
जब समय और किस्मत
दगाबाज होती है,
परछाईयाँ भी रोशनी
की गुलाम होती है.....!!!!!!!


नूतन डिमरी गैरोला
~एक प्रश्न~

मुझसे
बात करने
अक्सर तन्हाइयों में
रह जाती है
परछाई मेरी......
पर दिन ढल जाता है जब
रात के अंधेरो में
निबट अकेला मैं
पुकारता हूँ
पूछता हूँ
तुमसे
तुमने क्यों कर
छोड़ा साथ मेरा
इन नीम अंधेरों में?


कुसुम शर्मा
परछाईं हूँ तेरी
------------
परछाईं हूँ तेरी , कैसे जुदा कर पाओगे
जाओगे जहाँ जहाँ साथ हमे पाओगे
न रह पाओगे हमारे बिन
न मिले गर तो तड़प कर रह जाओगे !

साया हूँ मै तेरा
साया को कैसे छोड़ पाओगे
रोशनी मे चाहे न दिखु
अंधेरे मे सदा साथ पाओगे !

तुम्हें तन्हा न होने देंगे
हर समय तेरे साथ रहेंगे
कभी छोटे तो कभी बड़े दिखेंगे
पर हमेशा तेरे साथ चलेंगे ।।



नैनी ग्रोवर 
-- साया---

ना जाने मन में क्या समाया है,
जिधर देखूँ, बस साया ही साया है..
मन की अभिलाषा उलझन में है,
प्रश्न ही प्रश्न हैं, उत्तर कभी ना पाया है..
क्यूँ कर संग संग मेरे तू चलता है?
समय की भांति तूने मुझे उलझाया है..
तू भी रौशनी का साथी है दुनियां की तरह,
और मुझे अंधेरों ने दर दर भटकाया है..!!




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Friday, September 4, 2015

२६ अगस्त २०१५ का चित्र और भाव



अलका गुप्ता 
--चंद हाईकू --

----------(१)
गंध हो माटी !
हरियाले से गाँव !
पेड़ों की छाँव !
---------(२)
खाद-गोबर !
हलधर किसान !
हों खलिहान !
---------------(३)
माँ के हाथों !
महकाए जीवन !
चूल्हे की रोटी !
---------------(४)
छोरियाँ-गाँव !
कमर मटकाय !
झाँझर-पाँव !
----------------(५)
बेला गो-धूलि !
चाबें..चना-चबेना !
थकित-श्रांत !
----------------(६)
गाय बछड़ा !
दूध-दही-माखन !
गाँव-गँवार !
----------------(७)
राधा बेचैन !
रे मोहन का गाँव !
वंशी-बजाय !


नैनी ग्रोवर 
-- मेरा गाँव---

जहाँ कलकल करती नदिया है,
और ठण्डी-ठण्डी पेड़ों की छाँव,
सबसे प्यारा मेरा गाँव..

खेत खलिहानों की में बसता,
आज भी देखो सुंदर हिन्दुस्तान,
बारिश में तैरती कागज़ की नाव,
सबसे प्यारा मेरा गाँव..

पूजी जाती गाय माँ अब भी,
जबकि भूली दुनियाँ संस्कृति कब की,
मिट्टी में बच्चे लगाते दाँव,
सबसे प्यारा मेरा गाँव...

मटकी धरे सर पे ठुमकती चलतीं,
चुनरी पर उनके सर से ना सरकती,
रुनझुन करती पायल बजती पाँव,
सबसे प्यारा मेरा गाँव..!


बालकृष्ण डी ध्यानी
~एक गाँव~

अब भी कोसों दूर
बहुत दूर अकेला खड़ा
एक गाँव
अलग थलग पड़ा

शांत चुप चाप वो
खाली होता रहा
एक गाँव
स्वप्न लोक से भरा

वो सादगी भरा
पर विपरीत खड़ा
एक गाँव
गर्मियों में पिकनिक क्षेत्र बना

चित्र में उभरे भाव
अपने में ही दबाकर
एक गाँव
बस ऐसे ही चलता रहा



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
- मेरा गांव-

कल्पनाओं से भरा है मेरा गांव
पेड़ो, स्नेह की ठंडी मिलती छांव
प्रकृति का सुखद एहसास है यंहा
नगर नगर ढूंढे लेकिन मिले कंहा

पशु पक्षी, नदी तालाब अपने लगते
सुख और दुख सब मिलकर सहते
पगडंडी और रा्स्ते खूब बाते करते
खाली होते गांव प्रशन हमसे करते



Kiran Srivastava 
---गाँव की त्रासदी----
गाँव तो गाँव है
न धूप है न छाँव है

रहते जहाँ अन्नदाता है
भारत के भाग्य विधाता हैं,

सीधे-सादे लोग यहाँ पर
सीधी-सादी भाषा है,

करतें हैं संघर्ष सदा
जो जीवन की परिभाषा है,

साधन है सीमित यहाँ पर
वो भी बड़े पुराने हैं,

देख गाँव की तस्वीरों को
बरबस हम मुस्कातें हैँ--,

पीछे कितना दर्द छुपा है
जान नहीं हम पातें हैं,

असुविधाओं की भरमार है
गाँव तो गाँव है
न धूप है न छाँव है.....!!!!!



Pushpa Tripathi 
------गाँव ----

मेरे गााँव की बात निराली
शहर से बहोत दूर बस्ती चहकती
रास्ते अब भी कच्चे मिटटी से लिपे
बरगद के छाँव में बैठती है शाम
शाम की चिमनी से निकलती है
भूख की तृप्त महक ,सौंधी सौंधी रोटी की l

मेरे गाँव की हवा में जो बात है
वो शहर की ऊँची इमारतों में नहीं
हँसती खिलखिलाती है नव बालएं
झूलें की ऊँची ऊँची पेंग लेकर
सावन से बातें करती आम की टहनियाँ
रुको अभी जाना नहीं …सावन की तीज हरियाली है
गाँव जो अब भी शहर बना नही है .... पगडंडी की उखड़ी मिटटी कहती है
सुनो … पायल की छम छम अब भी बजती है
गोरु बछड़े बसते है .... धान की बाली लेकर
जीवन शैली का सीधापन चुपचाप खेत से घर की ओर ही आता है
गाँव का रहन सहन चुपचाप चारपाई बैठा पर है और
सोचता है कि शहर के आबो हवा में ये बात कहाँ ?



भगवान सिंह जयाड़ा 
-------मिटटी मेरे गाँव की-----
-----------------
गाँव की उस पावन मिटटी में ,
बचपन की खुशुबु आती है,
भटकते दर बदर इस जहां में ,
मेरे ख़्वाबों को महकाती है ,
दूर रह कर कभी इस मिटटी से ,
नहीं मिलता मेरे मन को करार ,
इस के पावन स्पर्श के लिए ,
रहता है सदा मेरा मन बेकरार ,
खेत खलियानों घर आँगन की ,
यादें आज भी मन में बसी है ,
धुंधलाती वह बचपन कि यादें ,
मुझको यूं हर पल संताति है ,
गाँव की वह चौपालें आज भी ,
सायद हर रोज सजती होंगीं ,
कंहीं बन में किसी ग्वाले की ,
बंशरी आज भी बजती होगी ,
पशुवों का वह झुरमुट आज भी ,
सायद चरने को जाता होगा ,
बैलों के गले में घंटियों की वह ,
आवाजें आज भी आती होंगीं ,
खेत खलियानों में खनकती ,
चूड़ियों की आवाजें आती होंगीं ,
मस्ती में गाते गीतों की आवाज ,
सबके मन को लुभाती होगी ,
पनघट की रौनक आज भी वही ,
क्या मस्त बहारें सजती होंगीं ,
सखी सहेली आपस में आज भी ,
ख़ुशी से आपस में मिलती होंगीं ,
गाँव का वह पुराना बरगद ,
शांत आज भी निहारता होगा ,
जिसकी जटावों पर बचपन में ,
खेली खूब अठखेलियां हम नें ,
गाँव का वह पुराना मंजर ,
मुझ को जब कभी याद आता है,
बस उसकी ख़ुशभू का आभाश ही ,
ब्यथित मन को शकुन दे जाता है ,
छोटे मंदिर का जलाता दिया,
आज भी वेसे ही जलाता होगा,
घंटियों का वह प्रिय मधुर स्वर,
सब के मन को लुभाता होगा,
गाँव की उस पावन मिटटी में ,
बचपन की खुशुभु आती है
भटकते दर बदर इस जहां में ,
मेरे ख्वाबों को महकाती है ,


कुसुम शर्मा 
~ऐसा सुन्दर गाँव हमारा~
--------------------
ऐसा सुन्दर गाँव हमारा ,
पहाड़ों से घिरा है सारा,
शुद्ध हवा , शुद्ध है पानी
शुद्ध भोजन , सीधी साधी वहाँ की ज़िन्दगानी !!

निर्मल नदियाँ , खिलती कलियाँ,
भँवरों का गुंजन वहाँ ,
चहकते पक्षि ,महकती धरती
सादगी और भोलापन वहाँ !!

कल कल झरना बहता
मधुर स्वर वो करता
पथिक कंठ की प्यास बुझाता
हर कोई वहा थकान मिटाता !!

सुबह की बात निराली
चारों ओर छाती ख़ुशहाली
सभी मिलकर खेतों मे जाते
गाय भैंसों को साथ ले जाते

पनघट मे मचाता है शोर
सहेलियों की हँसी का
पायलों की छनक का
पानी के भरन का

शाम ढले सब घर को जाते
वन से काट लकड़ियाँ लाते
गाय भैंस भी चर कर आती
सीधे गोशाला मे जाती !!

चुल्हे मे बनता है भोजन
चिमनी से घर होता रोशन
सब मिलकर ही भोजन करते
प्रेम भाव से सदा वह रहते !!


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

Tuesday, August 25, 2015

१८ अगस्त २०१५ का चित्र और भाव



राकेश देवलाल 
~मकान~

कौन कहता है कि, हम सिर्फ मकान हैं,
बस इसमे रहने वालों के अरमान हैं,
माना कि हमें बनाया था किसी ने बड़े फुर्सत से,
खुद के और अपनी नयी पीढ़ी के लिए,
पर आज अकेले और बस बीरान से हैं,
कल की यादों में खोकर परेशां से हैं,
काश होता अगर जगह बदलना हमारे भी हाथों में,
तो समय गुजरने पर, खण्डर न हमारा नाम होता ||


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल .....
~ पसंद आया है ~

बंद हुए दरवाजे खिड़कियाँ
खाली पड़े पुराने मकानों के
सामान बेच दिया घर का
अब नई जगह और
नया मकान पसंद आया है

एहसास अब बेजान हुए
दिल का दरवाज़ा बंद हुआ
लिखा नाम मिटने लगा है
अब नए लोग और
नया दिल पसंद आया है

पुराने संस्कार और व्यवहार
मन के प्रांगण से दूर हुए
अपने धर्म पर उठा अंगुली
अब नई सभ्यता और
नया रिश्ता पसंद आया है


दीपक अरोड़ा
# नया रिश्ता निभाना है #

बन गया मकान
अब इसे घर बनाना है
प्रेमभाव से रहते हुए
सपनों सा सजाना है
मिसाल बन जाएं औरों के लिए
कुछ ऐसा कर दिखाना है
अपने अपनों के साथ हमें
अब इक नया रिश्ता निभाना है


Pushpa Tripathi
~एक ही घर के कई दरवाजे~
--------------------------

गूंजती यादों ने आज
उस तरफ का रुख किया है
जहाँ आती थी खुशियाँ
बनते थे घर ....
घर का वह शुभ दरवाजा
जिस चौखट से करती थी नववधू प्रवेश !

अब वहां वह बात नहीं
चौखट के दरवाजे को कोई नहीं
नाघता परिवार एक भी सदस्य
रहता है बस वहाँ ....
बीते दिनों की कहानियों का पसरा सन्नाटा
उस कच्चे अधगिरे प्लास्टर में ....
अब कई दरवाजे बने है पत्थरो के
अपने अपने निजी कमरो से
कोई नहीं झाँकता उन कमरों में
क्योंकि अब तो वह बंद है … एक दूसरे के लिए
दिलों में रिश्तों की खटास से
एक ही घर के कई दरवाजे !!



नैनी ग्रोवर --
----दरवाज़े----

बन्द हुए दरवाज़े
घर वीरान हो गया
हर मानव की तरह
ये भी मेहमान हो गया
धीरे धीरे गिरने लगी हैं
मजबूत दीवारें
छत टिकेगी कब तक और किस सहारे
ढह जाएगा इक दिन उन सपनों की तरह
जो जा चुके इसे छोड़ कर अपनों की तरह
नज़र आती है आज भी माँ दरवाज़े पे खड़ी
कभी बाबूजी कभी मेरी राह तकती चिंता में पड़ी
अब कुछ नहीं है यहाँ
सभी कुछ सिमट गया
माँ की बनाई रंगोली का नामों निशाँ भी मिट गया
पर मन करता है इसमें फिर से बस जाउँ
परंतु पड़ी लिखी है संतान मेरी उन्हें कैसे समझाऊँ ..!!



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ......
~ तैयार ~

छोड़ दिया अपनत्व के हर भाव को
उस प्यार और अपने पैतृक गाँव को
कोई तैयार नही अब, यहाँ आने को
बचे हुए अब, तैयार हैं बाहर जाने को

खाली कमरे, सूनी दीवारे तैयार रोने को
अपना दर्द समेटे और तैयार दर्द पाने को
खिड़कियाँ दरवाजे अब तैयार टूट जाने को
तैयार हूँ अपनों से ही अब बिछड़ जाने को

जन्मभूमि तुम्हारी अब तैयार खंडहर बनने को
अपने लोगो के हाथो अब तैयार बलि चढ़ने को
ठहाको संग किलकारियां तैयार खामोश होने को
हर रिश्ता तैयार 'प्रतिबिंब' मिट्टी में मिल जाने को


Kiran Srivastava 
"रुग्ण मानसिकता"
----------------
-जर्जर मकान की तरह
मानसिकता लिए
परम्पराओं को धराशायी कर
हम कहाँ जा रहें हैं.....

आपसी रिश्तों के दरवाजे
मानवता की खिड़कियां
सदा के लिए बंद कर
हम कहाँ जा रहें हैं.....

कमजोर होती नींव संस्कार की
ढहती दिवारें विश्वास की
नवीनीकरण की आपाधापी मेंबहकर
हम कहाँ जा रहें हैं.....

क्यूँ भूलती जा रही
संस्कृति
क्यूँ जर्जर हो रही
मानसिकता
क्यूँ न पूनर्जिवित कर लें पुनः
टूटते ढहते विश्वास को
बेजोड़ मजबूती सें
सिंचित कर
फिर खड़ी कर दें
प्रेम और विश्वास
से बनी इमारत को.....!!!!!


अलका गुप्ता
~~~~ईंट-ईंट कराहती~~~~
~~~~~~~~~~~~~~~~~

भग्नावशेष से हुए अब मकान हैं |
खस रहीं दीवारें ज्यूँ अब मशान हैं ||

अहले चमन हुआ करते थे कभी जो..
नशेमन वो हैरान... अब वीरान हैं ||

ईंट-ईंट कराहती लहू लुहान सी ..
बोझिल पर्वतों से ढह रहे आन हैं ||

झाँकते झिरझिरे दर-ओ-दीवार से
सने शील गंधमय अश्रु वियावान हैं ||

धँस चुके हौसले नीड़ के सहमकर
छोड़ जाने गए कहाँ बाग्वान हैं ||

गैरत ख़ुदी की करे है प्रश्न'अलका'
लटकते तालों बची भी क्या शान है ||


भगवान सिंह जयाड़ा 
----पलायन का दंश---
-----------------------------
झेल रहा हूँ दंश पलायन का,
न जाने कब बिखर जाऊंगा,
चले गए मेरे ,मुझे छोड़ कर,
बोले अब न मुड़ के आऊंगा,

गूंजती बच्चों की किलकारियां,
वह चहल पहल मेरे अपनों की,
बस निरास मन से ताक रहा हूँ,
वो दुनियां जो हो गई सपनों की,

मैं इंतजार करता रहूंगा तुम्हारा,
जब तक मेरा अस्तित्व बचा है,
मर्यादा हूँ मैं तुहारे खानदान की,
मुझे तुम्हारे पूर्बजों ने ही रचा है,

यूँ न बिमुख होइए मुझ से अब,
बहुत हो गया,अब मुड़ भी आइए,
वह पुरानी रौनक लौटा दो मुझ को,
फिर कभी यूँ छोड़ कर न जाइये,


बालकृष्ण डी ध्यानी 
~भूली बिसरी यादें~

भूली बिसरी यादें हैं बची
क्या रह गयी थी मुझ में ही कहीं कमी
चले गये हैं सब एक एक छोड़ मुझे
जाते दिखा नहीं क्या तुम्हे मै भी हूँ दुखी
भूली बिसरी यादें हैं बची

पत्थर पत्थर मेरे पुरखों ने जोड़ा
अपने प्रेम का स्नेह का नाता मेर साथ जोड़ा
देख उनकी आत्म ये सब कुछ मेर संग है दुखी
तू कैसे रह सकता दूर हम से हो सुखी
भूली बिसरी यादें हैं बची

इस आँगन में पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी बढ़ी
मेरी चार दीवारों ने वो अपनी हर बात सुनी
सुख दुःख था जो हम सब ने मिलके यंहा झेला
तू डर के कहाँ उठा ले चला अपना झोला
भूली बिसरी यादें हैं बची

भूली बिसरी यादें हैं बची
क्या रह गयी थी मुझ में ही कहीं कमी
चले गये हैं सब एक एक छोड़ मुझे
जाते दिखा नहीं क्या तुम्हे मै भी हूँ दुखी
भूली बिसरी यादें हैं बची



प्रजापति शेष 
~विभ्रम~

यह भ्रम मात्र था उन लोगों का जिसने मुझे बनाया था,
क्या भ्रम उनको भी था जिनने भव्य मुझे बनवाया था |

क्यों त्याग चले , क्या उनका मन मुझसे भर आया था,
कहीं वे छले गए,नियति से, क्या किसी ने हडकाया था|

जान मुझे केवल ईंटो का आधार, क्या कुछ पाया था,
नहीं नहीं ये भ्रम तो मेरे मन में ही तब से समाया था|

अपना मान मेनें उनको हर मोसम में बचाया था,
जबकि शेष खंडहरों ने मुझे तब भी चेताया था|


कुसुम शर्मा 
~बदलते समय की मार ~
-------------------
जाने कितने सालों से ,
बन्द पड़े दरवाज़े मेरे !
सपने जो तुने सजाये ,
चूर चूर हो गये वो सारे !!

तूने पाई जोड़ जोड़ कर ,
बड़े जतन कर ,
मुझे बनवाया
तेरी ही सन्तानो ने
एक ही पल मे मुझे ठुकराया !!

कभी जहाँ पर किलकारियाँ
गुंजा करती थी ,
चारों ओर ख़ुशियों की
बरखा होती थी .

बिरानियाँ है चारों ओर
नही बचा अब कोई शोर !

छोड़ चुके संस्कारों को
भूल चुके पुराने विचारों को !

पुर्खो की भूमि बंजर पड़ी है ,
शहर मे देखो हलचल मची है ,

रह देखते देखते मै भी बुढ़या गया ,
न ही खुला कभी मेरा दरवाज़ा
न ही आई किसी को याद

मै भी कब तक जी पाउँगा
ऐसी ख़ामोशी को कब सह पाउँगा
नींव साथ छोड़ चुकी मेरा
अब इस खंडहर का बोंझ कैसे उठाऊँगा !!

कभी जो घर हुआ करता था
आज बिरान पड़ा है
बदलते समय की मार के
घावों से भरा पड़ा है !!

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Friday, August 14, 2015

~मेरा तिरंगा मेरा मान~


१५ अगस्त के लिए 'तस्वीर क्या बोले' समूह के सदस्यों ने एक रचना को तैयार किया  है .. समय अभाव के कारण कई  मित्र  लिख  नहीं पाए क्योंकि कल ही लिखने  को कहा था. हाँ बाद में कोई लिखेगा समूह में तो अवश्य शामिल किया  जायेगा  ब्लॉग में भी और सदस्यों को एडिट करने का निवेदन किया जाएगा. ये लिखने वाले सदस्य भी अपनी दीवार पर इसे प्रेषित करेंगे  


आओ लहराए तिरंगा, भारतीयता बने मेरी पहचान
धर्म हम सबका एक हो, भारतीयता नाम हो उसका
हर कर्म देश हित में हो, तिरंगे की बढ़े हर पल शान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #प्रतिबिम्ब_बड़थ्वाल ]

लाखों बलिदान होते है जब, तब कोई एक उभर आता है,
स्वत्व खोता है दही जब, तब मक्खन नितर कर आता है
छाछ की मानिंद रहकर शेष, अपनों को दे हम सम्मान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #प्रजापति_शेष ]

सत्य और शांति का पाठ पढ़ाता,शौर्य का सौरभ बिखराता
 एकता के पथ पर चलकर,,प्रगति की पहचान कराता
 संस्कृति में सबसे न्यारा और प्यारा ये भारत देश महान
 मेरा तिरंगा मेरा मान,जन - गण- मन जिसकी पहचान। [#प्रभा_मित्तल ]

शौर्य गाथाओं से सिंचित, ऐसी पुण्य मेरी धरती महान
दुश्मनो के दांत खट्टे करता, हिन्दुस्तान का हर जवान
इतिहास बना देता है, दिव्य धरा के लिए होकर बलिदान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #प्रतिबिम्ब_बड़थ्वाल ]

जन गण भाषा हिय अति भाता, ध्वज तिरंगा लहराता
वीर मस्तानी लक्ष्मी बाई से, फिरंगी मन था घबराता
शान बना है उच्च हिमालय, कहलाता भारत का अभिमान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान !! [ #पुष्पा_त्रिपाठी ]

ये आन तिरंगा, ये शान तिरंगा, ये बनी अब मेरी जान .
तीन रंग में सजा तिरंगा अब ये है बस मेरी पहचान
अशोक चक्र मध्य विराजे करो सब मिल के गुणगान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #बाळ_कृष्ण_ध्यानी ]

अलग-अलग भाषा बोली फिर भी है हिंदी हमारी जान
रंग-विरंगी तहजीव यहाँ की...अनूठा है संस्कृति ज्ञान
स्वाधीनता दिवस है ..आओ मिल गाएँ सब राष्ट्रगान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #अलका_गुप्ता]

मेरे भारत की है अनूठी संस्कृति, संस्कार और ज्ञान..
स्वतंत्रा दिवस आ गया, देखो मेरे भारत की हम शान
विदेशो में भारत की है पहचान, इसकी आन और बान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन है जिसकी पहचान [#मीनाक्षी_कपूर_मीनू ]

वीर सावरकर और चंद्रशेखर का याद है हमको बलिदान
शहीद भगतसिंह और सुभाष चन्द्र पर है हमें अभिमान
तिरंगे की खातिर लुटाया जीवन, न्यौछावर किया यौवन
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन है जिसकी पहचान [ #कुसुम_शर्मा]

तू ही मेरा जीसज़, वाहेगुरु, अल्लाह और है भगवान्,
तुझपे वारी तुझपे सदके जाऊं, मेरा दिल और मेरी जान,
आँच ना आने देंगे तुझपे, तेरे बेटे किसान और जवान,
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान.! [ #नैनी_ग्रोवर ]

ना झुकेंगे किसी के सामने से, ना डरेंगे किसी से हम
हम है हिन्दुस्तानी, हिन्दुस्तान है हमारी सच्ची शान
कुर्बानी जहाँ देशभक्ति, वहां देंगे हम हंसते-हंसते जान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #दीपक_अरोड़ा ]

जाति-पाति और ऊँच-नीच का, भेद हमें पूर्णत: मिटाना है
चारो तरफ हो बस भाई चारा, ऐसा राष्ट्र हमें बनाना है,
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाइ, सब धर्म बनें इस देश की शान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #kiran_srivastva ]

कभी न घटे तिरंगे का मान, यह हमारी आन बान शान,
इस पे कुर्बान हमारी जान, बनी रहे सदा तिरंगे की शान,
जाति धर्म का छोड़ अभिमान, गायें हम इस का गुण गान,
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #भगवान्_सिंह_जयाड़ा ]

करते हैं बिनती हम सब से, रख लो तुम देश का मान
हिंदुस्तान में रहकर ही बस होगा, इस देश का गुणगान
आओ फहराएं तिरंगा घर घर आज, ये तिरंगा है मेरी जान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #उदय_ममगाई_राठी ]

शिक्षा और सुरक्षा प्रथम हो, नारी को मिले मान सम्मान
यहाँ भूखा पेट न सोए कोई, गरीबी का मिटे नामो निशान
विश्व गुरु भारत बने, सोने की चिड़िया बने मेरा हिंदुस्तान
मेरा तिरंगा मेरा मान, जन गण मन जिसकी पहचान [ #किरण_आर्य ]






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Thursday, August 13, 2015

6 अगस्त 2015 का चित्र और भाव



Kiran Srivastava 
~"सूर्य का तोहफा"~


तोहफा देता है ये सूर्य
कार्यों को करता है पूर्ण !
पौधों को पोषण देता
रोगाणु को नष्ट करता
उसके बिना सदा अंधेरा
रोग व्याधि का हो जाये डेरा
उसके बिना जीवन अपूर्ण
तोहफा देता है ये सूर्य !

सदा प्रकृति का है रखवाला
व्याधियों को हरनें वाला
विटामिन डी का है ये स्रोत
उसके बिना नहीं हो ग्रोथ
जीवन को करता परिपूर्ण
तोहफा देता है ये सूर्य !

सूर्य महत्ता को हम जानें
प्रदत तोहफा को पहचानें
जिसका है कीमत अनमोल
नहीं लगे कोई भी मोल
जन-जन को करता संपूर्ण
तोहफा देता है ये सूर्य


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ भावो का उपहार दूं  ~

शब्द भावो का मेरा संसार
संचित नही कुछ इसके सिवाय
शब्दों की माला कर समर्पित
आओ भावो का तुम्हे उपहार दूं

सत्य हृदय का अवतरित होता
हर शब्द स्वयं होता सम्पादित
प्रेम का हर शब्द तुम्हे समर्पित
आओ भावो का तुम्हे उपहार दूं

अंतरमन मेरे शब्दों में होता उदृत
भानू किरण शब्दों का शृंगार करती
मेरे शब्द मेरी पहचान कर समर्पित
आओ भावो का तुम्हे उपहार दूं

आस विश्वास इनमे कर सुरक्षित
प्रेम को हर शब्द में कर विलय
शब्दों का मेरा संसार तुम्हे समर्पित
आओ भावो का तुम्हे उपहार दूं

निश्छल प्रेम को आधार बना
समुंद्र प्रेम का शब्दों में ढलता
एहसासो का 'प्रतिबिंब' कर समर्पित
आओ भावो का तुम्हे उपहार दूं


अलका गुप्ता 
--अनुपमउपहार--

ये जीवन इक नियामत है |
ईश प्रदत्त अमानत है |
मानव जीवन जो पाया |
बड़े भाग्य यह तन पाया |
करें कदर इस तन-मन की
उत्तम संस्कार व्यवहार हो |
समर्पित कर्म उपकार हो |
हर प्राणी हेतु मानो हम
अनुपम इक उपहार हैं ||

समझो यूँ ही सौंप दिए
उस प्रभु ने उपहार हमें |
ये सृष्टि धरा आकाश वतन...
हर प्राणी का साथ हमें |
भानु चन्द्र तारे नक्षत्र..
वायु जल अग्नि प्रकाश हमें ||

हे ईश सौंपे जो उपहार मुझे हैं !
रक्षण अद्भुत कृतियों का करें हम |
स्वच्छ संवार रख रखाव करें हम |
उपहार स्वरूप ये प्राण समझ हम |
विद्रूप भाव व्यवहार सब तजे हम |
सद्बुद्धि पा कल्याण वरें हम ||



Pushpa Tripathi 
~करनी की सौगात~.

प्रेम की भाषा
मीठे बोल
सेवा का पल
जीवन में देने और पाने के लिए
शौगात है ~~
तुम पओगे हर जगह
इसे महसूस भी करोगे
प्रकृति में
अपने भीतर भी
दसरों के अच्छे गुणों में
अपनी कविता में
जीवंत विश्वास में
समय के उस कठिन दौर में भी
जब .... वक्त दे जाता है
कुछ नया अनुभव
एक सौगात बेहतर
और भी बेहतर अच्छा फल
करनी की सौगात !



कुसुम शर्मा 
~तुम्हें तोहफ़े मे क्या दूँ ?~
***********************

सोचा तो मैने कुछ अनमोल दूँ ,
लेकिन तुम्हें तोहफ़े मे क्या दूँ ?

साँसों की सौग़ात दूँ ,
एहसासों का हार दूँ ,
पर क्या ?

जीवन भर की क़समें ,
दुनिया की रस्में ,
पर क्या ?

अपने ही जज़्बात है
मेरे पास
चाहोगे क्या ?

मुरझाये मुरझाये से ?
ख़ुशियों के पुष्प सारे
ग़म के हार पड़े है डेरों
तुम ही बताओ ?

मुसकान की साँझ ढली है ,
रूदन सवेरा होने को ,
क्या ऐसा कुछ
तुम चाहोगे ?

रूठ गए हो जब
ख़ुशियाँ भी सारी रूठ गई
ऐसी विरह की बैला मे
कहा बचा कुछ
देने को ?

मेरी दुनिया भी तुम से ,
मेरा प्यार भी तुम से ,
मेरी रूह भी तुम
मेरी हर साँस भी तुम से ,

तुम हो अनमोल हमारे लिए ,
तो अनमोल को अनमोल
तोहफ़ा क्या दूँ ??


Pushpa Tripathi 
~है ये धरती कितनी धनवान~

हर सुबह नया … आरम्भ लिए
हर किरण रौशनी …जीवन लिए
हर उम्मीद बंधी है .... नींद लिए
हर विश्वास जगा है .... ख़ुशी लिए

स्वछंद, सुंदर, सुशोभित आभूषण से
धानी धरती सिर मुकुट हिमालय से
कल कल धारा नदी स्वर रागिनी से
गीत पवन गुनगुनाता सागर लहरों से

है ये धरती कितनी धनवान
अमृत बानी गीता का ज्ञान
सबकुछ मिला है उपहार स्वरूप
हम है भारतीय हमें अभिमान !



डॉली अग्रवाल 
~उपहार~

सोचा था तुम्हे उपहार में लिखकर एक कविता दू
पर तुम सीमित नहीं जिसको शब्दों में बाँध लूँ
तुम बहुत ही अच्छे हो सिर्फ इतना में कैसे कह दूँ
यह मेरे बस में नहीं की तुमको परिभाषित कर दू
नभ् को क्यू छूना चाहू सागर को में क्यों नापू
अथाह प्रेम है यह तुम्हारा जिसमे डूबी रहना चाहू
तुम ही बताओ तुमसे अनमोल क्या
जो में तुम्हे दे पाऊ
बस यही दुआऐं हर पल देना चाहू
तुमपे से खुद को वार दूँ
और मिटटी में मिल जाउ |||


किरण आर्य
~ मेरा उपहार~

जीवन का उपहार हो तुम
हाँ मेरा संसार हो तुम
जीवन पथ है अति दुर्गम
और उसका आधार हो तुम

मन जीव जब होवे अधीर
मन चिंतन वो करे गंभीर
आस निराश डोले है जीवन
साध उसे तुम हरो सब पीर

दो अँखियन की साध हो तुम
रूह से उपजा विश्वास हो तुम
कस्तूरी सी जो मृग में महके
हर धड़कन की सांस हो तुम

आन भी तुम मान भी तुम
जीने का सामान भी तुम
तुझ बिन सदा मैं रही अधूरी
पूर्ण करे जो वो बस तुम हाँ तुम



भगवान सिंह जयाड़ा 
------दोस्ती का उपहार----

प्यार की पोटली कहो या उपहार,
आओ करें इसे दिल से स्वीकार,
इस में श्रद्धा प्यार के भाव भरें है,
कुछ खुशियों के अरमान भरे है,
इस में छुपे है कुछ खुशयों के राज,
और महसूश करो अपने पर नाज,
अमीरी गरीबी की हैसियत ना तोलो,
बस एकांत हो तब ही इसे खोलो,
दोस्ती का है यह अमूल्य उपहार,
इस लिए करो इसे सहर्ष स्वीकार,



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Tuesday, August 4, 2015

१९ जुलाई २०१५ का चित्र और भाव [ हास्य ]


भाव चित्र पर लेकिन हास्य रस  के साथ . 

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~भूत प्रेम का ~

प्रेम का भूत जो चढ़ा, लाख जतन किये ये उतारे न उतरे
भूला अब नाम प्रभु का, नाम प्रियतमा का बस दिल पुकारे

कल तक चंदा मेरा मामा था, आज वो चंदा सी दिखती है
कल तक सब मेरे अपने थे, अब सपनो में भी वो दिखती है

रोग इश्क लगा बैठा हूँ, शृंगार रस की हर उपमा उसे देता हूँ
रात दिन उसका ख्याल करू, ऐसा मैं अब हर दिन जीता हूँ

‘प्रतिबिम्ब’ इशक के भवसागर में, मैं डुबकी रोज लगाता हूँ
हो जाऊं तृप्त उसके दर्शन से, ऐसा जतन मैं रोज करता हूँ

ले जा समुद्र किनारे, मैं प्रकृति से उसकी तुलना करता हूँ
होश आते ही संभल जाता हूँ, क्योंकि बीबी से अपनी डरता हूँ


नैनी ग्रोवर 
~सपना है या अपना~

इक चाँद माँगा था हमने, ये मुए चार कहाँ से आये ?
धरती तो धानी थी मेरी, अब नीली नज़र क्यों आये ?

अब भी ना समझे तुम दोस्त मेरे ये सब क्यों हो रहा है
आशिकी का भूत है ये तो ज़ालिम हम पर हावी हो रहा है

चार चार चाँद और ये काले कोवे भी अब निकल आये
तेरे प्यारे प्यारे चेहरे पर जयूँ पिम्पल हो उभर आये

ये कैसा सपना है तौबा, धरती नज़र आ रही नीली
लगता है भांग आज कुछ जरुरत से ज़्यादा ही पीली ..

बाँवरे साजन ने आज फुर्सत में कुछ यूँ जलवा दिखाया
दिखे हरा लाल पीला नीला, मुझे कुछ समझ ना आया

आड़ी तिरछी गर्दन करके हमने हर रंग है यहाँ निहारा
तौबा तौबा करते करते आज का दिन तुम संग गुज़ारा..

भूल कर अब अगर कभी तू लाया मुझे इस गार्डन में
याद रहे सौ सौ पोछे लगवाउंगी तुझसे अपने आँगन में..

ये सब्ज़ बाग़ रहने दे मुए हक़ीक़त से तू अब सौदा कर
चार चाँद क्या चार कोवे क्या चाहे बिल्लियाँ तक पैदा कर ..!!


कुसुम शर्मा 
~प्यार का बुखार~

अरे दोस्तों अब क्या तुम्हे बताये
कैसे चढ़ा हम पर प्यार का बुखार
प्यार जैसे रोटी सब्ज़ी हो गई यार
बिन खाए रह नही पाता ऐसा अचार

जब चढ़ा था हमपर प्यार का बुखार
तो छाने लगा था उसका ही खुमार
धीरे धीरे समय भी था गुज़रने लगा
ख़ुमार उसका जुखाम मे बदलने लगा

हर बात पर उनको कहना पड़ता यार
हमको तो बस केवल तुमसे ही प्यार
अब क्या बताये हम तुमको मेरे यार
आलू गोभी पराँठा सा हो गया प्यार

वो कहती है और हम सुनते जाते
उनकी हाँ मे हाँ अब हम भरते जाते
अच्छा होता बोलते यंत्र से करते प्यार
न होती हाँ ना, न होती कोई तकरार

एक दिन उनसे हो गई हमारी तकरार
बोली कितना करते हो तुम हमसे प्यार
हम भी कुछ प्यार के ताव में आ गए
कहा बोलो कैसे करू मैं इसका इज़हार

बोली तुम आसमान से तारे ला सकते हो
हम बोले कैसे लाऊं, न सेल न लूट मची है
नही ला सकते मतलब हमसे नही तुम्हे प्यार
क्यों दिखावा करते, करते क्यों झूठा इज़हार

करते प्यार तो मेरे लिए रांझा मजनू बन जाते
तारे क्या सूरज चाँद भी तुम तोड़ कर ले आते
हम बोले राँझा मजनू जान गँवा बैठे करके प्यार
हम तो जिन्दा रहकर करना चाहते तुमसे प्यार

चंद्रमुखी अब ज्वालामुखी बन फटने लगी यार
बोली क्या सोच कर तुमने किया हमसे प्यार
हमने कहा प्रिये होना था हो गया तुमसे प्यार
करो न बहस रानी, मत बनाओ प्यार का अचार


Kiran Srivastava 
~सपना~

ये कौन सी है दुनियाँ
कैसे हैं ये नजारे
ये चाँद और ये सूरज
ये दिन में दिखते तारे
उड़ते हुये परिन्दे
अपनी ही ओर भागे
एक हूर सी परी थी
मैं हाथ उसका थामें
खुश हो रहा बहुत था
सब देखकर नजारे
इतने में एक धमाका
तंद्रा को तोड़ जाये
आये नही समझ में
ये बम कहाँ से आये
जब ख्वाब मेरा टूटा
एहसास तब हुआ
दरवाजे पे खड़ी
पत्नी मेरी चिल्लाये
जब आँख मैंने खोली
नजरे घड़ी पे डाली
मैं दुम दबा के भागा
वो पीछे-पीछे भागी
आँखे तरेर बोली
हरकत तुम्हारी ऐसे
मूंगेरी लाल हो जैसे...!!


भगवान सिंह जयाड़ा
---ख्वाबों की दुनियां---

ख्वाबों की तेरी दुनियां को रंग बदलते देखा,
दो-दो चाँद को भी आज हमने निकलते देखा,

क्या हो गया जो धरती हो गई सारी नीली,
धरती ने क्या समुन्दर की स्याही सारी पीली

तेर इश्क में हुए अंधे, बादल बने हंस का जोड़ा ,
मंडराते हुए काले कौवों ने फिर भ्रम मेरा तोडा

उल्टा पुल्टा यहाँ दिखता, बैंगनी हुए क्यों बादल
पेड़-पौधे का रँग देख गुलाबी, हम हो गए घायल

साथ खड़े होकर तुमने कैसा सब्ज बाग़ दिखाया
मोहब्बत के आशियाने को भुतहा बंगला बनाया

प्यार ने आज हमें फिर सावन का अँधा बनाया
लगता है मेरे ही ख्वाबो ने मुझे यूं उल्लू बनाया

चल ख्वाबो से निकल कर हकीकत से मिल जाए
अपनी दुनियां की हम, सुपर हिट जोड़ी बन जाए


मीनाक्षी कपूर मीनू  
~बुनते ख्वाबों की उधड़ी सूरत~
~~~~~~~~~~~~~~~~
आज हमारे ख्यालों में
यूँ बन ठन के वो आये .....
क़ि रोटी बनाते बनाते
हम प्यार से मुस्कुराये ..
ख्वाब था सुहावना बड़ा
परियों सा जगमगाये .. .
वो भी थे सूट बूट में
सजे संवरे ...सकपकाये
बादलों से खेल रहे थे
काग प्यारे .. प्यारे ...
यूँ लगा ज्यूँ निहार हमें
वो भी पकड़ने लगे थे तारे
हाथ थाम हम चलें यूँ
ज्यूँ पंख हमारे निकल आये
अब करेंगे चाँद की सवारी
ये सोच के हम पग बढ़ाये
पग बढ़ाते ही ..यकायक
ये नाक सिंकोड़ते आये
बोले .......ओ भागवान
रोटी जल गयी ....
धुंए के बादल लहलहाए
उफ़ ...खुली बन्द पलकें
अब नज़र कुछ न आये
मनस्वी ... काले धुएँ से
दीवार पे थे काग बनाये
अब ......सूट बूट वाले
नज़र मुझे धोती में आये
बोले ...जा हुलिया बदल
कहीं बच्चे न डर जाएँ
( भागवान = पत्नी )


बालकृष्ण डी ध्यानी 
~सपना कब टूटा~

इस चित्र को देख कर भाव मेरे जगे है ऐसे
कोरे कागज पे लिखा पर ना दिखा सका वैसे

कहाँ से लेकर आये चित्र पर आप ये नर नारी
हम तो ठहरे भाई बचपन से ही बाल ब्रह्मचारी

शत प्रतिशत सुखी जीवन की लगती ये बीमारी
ये चन्द्र ग्रहण क्यों कर चढ़ा जोबन पर हमारी

क्यों ये रंग बिरंगी रंगों से घिरा है आसमान
क्यो ये रह रह कर कर रहा है मुझे परेशान

पकड़ हाथ नारी का वो नर क्यों खड़ा है वहां
इस रंगीन धरा ने शायद आज कुछ किया यहाँ

लुभवाना नजारा, छटा सोने की हिरण सी लगी
हनुमान भक्त हूँ,. अब तू ही बचा मुझे बजरंगी

थोड़ा और निहारो तो समझो आज व्रत मेर टूटा
रंगीन जमी और मैं, न जाने ये सपना कब टूटा



प्रभा मित्तल 
~~किस्सा रोमांस का~~

इक दिन की मैं बात बताऊँ,
देख नजारे मन ही मन मुसकाऊँ
बैंगनी गगन में उड़ते पंछी देख
नीली घास पर खड़ी-खड़ी इतराऊँ
पेड़ों के झुरमु़ट से दो-दो चंदा
लटक-लटक कर झाँक रहे थे
मन के मीत मिल रहे हम ऐसे
कि हाथों में हाथ डालती शरमाऊँ

जुगनू की नीली चमक देख कर
भँवरे की गुंजन सुन-सुन कर
तन - मन मेरा डोल रहा था
कानों में मिश्री सी घोल रहा था

तभी अचानक छींटे पड़ गए
हाथ-पाँव ठण्ड से अकड़ गए
कुछ न समझ बस भुनभुनाऊँ
आँखें अंगार कान सुन्न हो गए

अरी भागवान्,होश में आ
किन सपनों में खोई हो
आज तो बाई नहीं आएगी
जल्दी-जल्दी काम समेटो,
वरना,दफ़्तर को देर हो जाएगी।

चौंक कर ..झटपट उठ बैठी मैं
बदन पर गिर गई छिपकली सी,
टूटी तंद्रा,ओह! ये तो सपना था
पर जैसा भी था अच्छा मीठा था
हँसी आ गई,शोख हुई मन ही मन,
मेरे मन का सपना तो रंगीनी था,चलो
नींद का कुछ हिस्सा तो रूमानी था।



डॉली अग्रवाल 
~प्यार से तौबा~

मुंगेरी लाल के सपने सा प्यार
उफ्फ्फ्फ़
जो ना कराये कम है
दिन में चाँद नजर आये
सूरज की तपिश भी
चांदनी का एहसास कराये |
बिन बात के मुस्कुराये
और लोग पागल कह जाए |
चाय के उबाल सा प्यार
आँच तेज़ होते ही बाहर निकल आये |
बाज आये इस प्यार से
जो आँखों से बह जाए |


कुसुम शर्मा 
~चाँद की सैर~

हमारा दिन गुज़रता नही कमबख़्त उनके सिवा !
उन्हे आता नही हमे कुछ सुनाने के सिवा !
हमारी जोड़ी जैसे एक अंधा एक कोड़ी !
एक चले बायें तो एक दाये होली !
एक दिन बोले हम चलो चाँद की सैर कर आये !
वह बोली चाँद का क्या बीजा लगवा लाये !
चाँद पर वीजे का काम नही !
सच है ये झूठ तो नही !
सूट बूट मे हम हो गये तैयार !
साथ मे ली छोटी सी कार !
देखा आसमान मे तारे जगमगा रहे थे !
न जाने बहुत से पक्षि वहाँ मँडरा रहे थे !
जैसे ही आगे बड़े देखा बैंगनी रंग !
रंग को देख कर रह गये हम दंग !
सोचा अब होने वाली है हमारी जंग !
कोई तो बताये कहाँ गया आसमान का रंग !
बोली आसमान मे लाये हो या कही ओर !
आसमान ही लाया था न रही ओर
लगता है रंग को उठा कर ले गये चोर !
थोड़े सा आगे बड़े देखे दो दो चंदा मामा !
वह बोली तुम इसमें जाओ मुझको दूसरे मे है जाना !
हम बोले भग्वान जाओ जिसमे भी तुमको है जाना !
देखो जल्दी लोट कर आना,
कल बच्चों को स्कूल भी तो है जाना !!


किरण आर्य 
~प्यार का बुखार~
हाय प्रेम की चढ़ी ऐसी खुमारी
इश्क मोहब्बत है बुरी बीमारी
खाज-खुजली सी सबको सताए
जीव जंतु बेचारा तडपत है हाय

जालिम लोशन सा बन जावे कोई
बेकल भई अँखियाँ जागे या सोई
प्रेम लगन की अग्नि है अब दहकी
रामलाल की मन कुटिया महकी

करना प्रेम है ये जिद मन ठानी
मूरख कहे कोई चाहे इसे मनमानी
प्रेम बिना ये जीवन है सारा बेकार
प्रेम स्वप्न करना है अब साकार

सपन सलोने करे मन में विचार
साथ में हो एक खूबसूरत सी नार
येसा करूँ या वैसा करू मैं प्यार
अपनी दुनिया का मैं बन राजकुमार

इसी सोच बीच राह देखि एक नार
किया रामलाल ने किया झट इकरार
जूते चप्पलों के जब मिले उसे उपहार
प्रेम का सर से उतरा वो तेज बुखार



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Friday, July 17, 2015

10 जुलाई 2015 का चित्र और भाव [ विषय - योग/शांति ]



बालकृष्ण डी ध्यानी
~छोड़ चला सब क्यों तू अब शांति पाने~


छोड़ चला सब क्यों तू अब शांति पाने
नित योग कर बस तू इस आत्म को जगाने

शरीर, मन और आत्मा को साथ लाना था
योग के सहारे ही इन सबको साथ आना था

बस ध्यान धर उस परमात्मा से मिलन का
एक बिंदु के पीछे पीछे देख वो सुखद नजारे

एक प्रकाश है बस तू और तेरा ये नश्वर शरीर
कर सब चक्रों को जागृत तू हो जा इन सब से परे

सब दुखों की बस ये ही एक मात्र दवा है
इस अपनाने में बन्दे बता तेरा जाता क्या है

बंद आँखों का ये सारा खेल है उस ने है रचा
खुली आँखें हैं तेरी फिर भी क्यों ना तू देख सका

छोड़ चला सब क्यों तू अब शांति पाने
नित योग कर बस तू इस आत्म को जगाने


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~योग, हम और विश्व~

पांच हज़ार वर्ष पुराना, महर्षि पतंजलि का वरदान योग है
मिटा दे तन मन की व्याधिया सारी, ऐसा वेद सार योग है

आज हमारे प्रधानसेवक ने योग को पुन: पहचान दिलाई है
योग का लाभ मिले संसार को, ऐसी उसने मुहीम चलाई है

योग हमारी शक्ति है, इसमें होता तन - मन का संयोजन है
करते ध्यान जब हम तो योग - बुद्धि का होता समायोजन है

ज्ञान की प्राप्ति का सफल मार्ग भी बतलाता हमारा योग है
अध्यात्म पाने का सफल मार्ग भी सिखलाता हमारा योग है

केवल शाररिक व्यायाम ही नही आनंद प्राप्ति का रास्ता योग है
आसन, प्राणायाम, प्रत्यहार, धारणा, ध्यान व् समाधि भी योग है

हमारी संस्कृति और संस्कार का आओ मिल कर हम करे प्रसार
अहिंसा और शांति का सन्देश का आओ मिल कर हम करे प्रचार


Kiran Srivastava
"योग और स्वास्थ्य"

तन-मन रहे निरोग
कर ले तू भी योग

दर्शन कर लो उदित सूर्य का
तन-मन को पावन कर लो
रग-रग में ऊर्जा भर कर
जन-जन को जाग्रत कर दो

इतना दो सहयोग
कर ले तू भी योग

जाति-पाँति का भेद न हो
उनसें कोई द्वंद न हो
सबके लिए जरुरी स्वास्थ्य
हो हिन्दू या कोई जाति

बने सही संयोग
कर ले तू भी योग

स्वस्थ शरीर स्वस्थ हो भारत
सदा योग में रहें कार्यरत
योग करें प्राणायाम करें
सबका हम कल्याण करें

प्रचार-प्रसार चहुँओर
कर ले तू भी योग...!!!


नैनी ग्रोवर 
--योग मिटाये रोग--

साधू संतो का है प्यारा देश मेरा,
है भारतीय दिल और परिवेश मेरा,

जिसने दुनियाँ को जीना सिखलाया,
जीवन जीने की कला को समझाया,
पहले ज़ीरो दिया, आगे बढ़ने को,
अब योग दे के रोगों से मुक्त है करवाया,

आओ सब इसमें शामिल हो जायें,
कुल धरती पे भारत छा जाये,
तन-मन को बनालें सबल मित्रो,
तो प्रेम से जीना भी आ जाये,

चित्त शांत रहे तो लगता है प्यारा,
मुश्किलों से भरा भी ये जीवन सारा,
आओ लौट चलें फिर अपनी परम्परा में,
चमक उठेगा भारत जयूँ आसमान में तारा ..!!



भगवान सिंह जयाड़ा 
--योग और मोदी जी-
--------------------
मोदी जी ने सारे जग में ,
एक नई अलख जगाई है,
योग और ध्यान के प्रति ,
एक नई मुहिम चलाई है,
ऋषि मुनियों की लम्बी उम्र ,
का राज सब जान गए है,
भारत की यह बैदिक परम्परा,
अब सब जन जान गए है,
करो योग ,रहो निरोग की,
धारणा सारे जग लानी है,
इसी लिए सारे आज जग ने
मोदी जी की बात मानी है,
बैदिक धर्म की यह परम्परा
अब सारे जग फैलाना है,
फिर से एक बार भारत को ,
गर्व से बिश्व गुरु बनाना है,


मीनाक्षी कपूर मीनू  
योग :आत्मशक्ति
****************
बंद पलकें
तिमिर भाव
भरी भीड़
सालता सन्नाटा
ऐ मन ...
चल दूर कहीं
जहाँ हो ..शांति
तन-मन की
किरणें भोर की
छू बन्द पलकें
चूम ले ...
अतृप्त मन को
संलिप्त कर दे
योग माया से
आवर्णित
ज्ञान चक्षु ....
भर प्रकाश
कर दे सवेरा
प्रफुल्लित मन ...
'मनस्वी '
चिर्रायु आशीर्वाद
ग्रहण कर
लिप्त हो जाये
सब भूल
योग की आवर्णी ले
शांत तन से
कर समाधि
सूर्य को नमस्कार
कर ले
छोड़ पूर्वाग्रह
तू तन-मन
आलोकित
कर
योग का चप्पू
चलाकर
नाव अपनी
पार कर ले ....


Pushpa Tripathi 
~स्वस्थ निरोगी योग से जीवन ~

कितना कुछ पाने के लिए
कितना कुछ खो देते हम
दम्भ न भरते … सोच न पाते
क्या कुछ खोते … क्या कुछ पाते !!

आदिकाल से चरम शिखर तक
ऋषि मुनियों के ज्ञान योग में
निरोगी जीवन संयमित मन
ध्यान है योग … योग ही जीवन !

सूर्य नमस्कार स्फूर्ति भर शक्ति
करो प्राणायाम उठकर जल्दी
हमारे संस्कार … हमारी विरासत
क्यों खोये इसको. … जो लाभ दे हमको !

देश विदेश हुआ लक्ष्य प्रसार
विदेशी भी माने क्या है सार
अपनाते वो भी … योग दिवस मनाते
भारत भूमि कण कण अनुभूति !

यही है … सही है. .... अच्छी सेहत का वादा !

\

बलदाऊ गोस्वामी 
~ खत्म हो ही जायेंगे ~

जैसे घनाघोर अंधेरा
भोर होते ही
धीरे-धीरे खत्म होने लगता है
लोहे की बड़ी से बड़ी छड़
जंग लगते ही
धीरे-धीरे खत्म होने लगता है
ठीक उसी तरह ___
योग से कई बिमारीयाँ
खत्म हो ही जायेंगे
चलो,
आज से प्रतिदिन योग करें
और स्वस्थ रहें |


अलका गुप्ता 
~~~योग~~~

वैदिक युगीन..
संपूर्ण..
इक विज्ञान है योग |

श्वास-प्रश्वास का..
समुचित ...
संधान है योग |

स्वस्थ एक प्रक्रिया
संबलपूर्ण ...
हर आसन...

तन-मन ..
और आत्मा का...
संविधान है योग ||


प्रभा मित्तल
~~योग-महिमा~~
वेद-ऋचाओं में वर्णित था,
अनजान रहा हर प्राणी से,
बाबा ने घर- घर पहुँचाया
मोदी ने लोकप्रिय बनाया
संसारभर में इसका चर्चा है
तू किस दुविधा में उलझा है
प्रगति पथ पर बढ़ना हो
ध्यान अवस्थित करना हो,
हर दिन उठकर करो योग
भोगो जीवन का हर भोग।
सूर्य-प्रणाम कर ले मन से,
तेरा सुप्रभात हो जाएगा
नित्य-प्रति करे प्राणायाम
जीवनभर दुःख न पाएगा।

व्यस्त-व्यग्र हो जूझ रहा
चित्त लक्ष्य से भटक रहा
भाग-दौड़ में दिन बीत रहा
पलभर रुक कर सोच जरा
मिल जाएगा आनन्द यहाँ
गर तेरे दैनिक जीवन में
शामिल हो जाए योग जरा।

योग ध्यान है, विज्ञान योग है
योग धर्म है ,योग कर्म है
योग ही शिक्षा,साधना योग है
योग ही भक्ति है,शक्ति योग है
योग ही नियति, प्रगति योग है
योग शांति है , क्रांति योग है
योग से निरोग है,सहयोग है
समृद्धि है,खुशियों में वृद्धि है।

योग की महिमा अपार है
यह इस जीवन का सार है
निर्विवाद योग अपना लें हम,
जीवन सफल बना लें हम।।



Pushpa Tripathi 
~दिन बदला स्वास्थ भी बदला~

स्वस्थ जीवन का मूल मन्त्र
तन मन सुरचित सुन्दर ढंग
योग साधना ध्यान परमार्थ
मिला मानव को यह अभिमान !

फिर भी कितने अज्ञान थे हम
योग क्रिया को बिसरे हुए थे
बस जीवन के दिनचर्या में
आप धापी के होड़ में
योग साधना भूल गए थे !

समय का आभाव और आलस के कारण
कौन करे यह काम पुरातन
दफ्तर घर व्यापार और नौकरी
बस इतना ही मान लिया था !

दिन बदला सरकार भी बदली
योग गुरुओं से नागरिक सचेत
सहभागी होकर देश को लेकर
मोदी जी के शब्द विचार कारगर
पहले पहल प्रभावी भाषण
योग से क्या है ?
क्या होता लाभ ?
क्या हमारे सेहत का राज ?
हुआ प्रसार … सब मिलकर साथ
पतंजलि का .... संजीवनी वरदान !



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Thursday, July 2, 2015

२६ जून २०१५ का चित्र और भाव



बालकृष्ण डी ध्यानी 

~अब भी आग बाकी है ~

अब भी आग बाकी है
मेरे सारे वो जजबात बाकी
उड़ी है राख थोड़ी थोड़ी मगर
दिल में अब भी अंगार बाकी है

देखो जल ना पाये वो
पूरी तरह बुझ ना पाये वो
चलना है उस पथ मेरे क़दमों को
सत्य की राह छूट ना पाये वो

ज़रा ज़रा अब लाल हुआ है वो
रक्त कहीं ये जम ना जाये वो
बहते रहे गर्म वो इन धमनियों से
कमाल खून का जिगर दिखा जाये वो

ये विशवास बाकी रहे
मेरा ये हिन्दुस्तान बाकी रहे
चढ़ेंगे यूँ ही सर माँ क़दमों में तेरे
ये देश भक्ति की आग जलती रहे

अब भी आग बाकी है ...............



Kiran Srivastava 
"आग"
-------
है ये आग
प्रतिशोध का...
नफरत का...
जलना...
खाक हो जाना
तब्दील राख में
अंततः कुछ न मिलना
यही है अंत
यही है परिणाम !!
तो क्यूं ना हम
समझें वजूद को
जीवन की सार्थकता को
सच्ची राहों पर चलते हुए
बचा कर रखें
उस उष्मा को
उस ताप को जो
आ सके काम
देश हित में
राष्ट्र हित में....!!!!!



नैनी ग्रोवर 
--- चिंगारी---

खामोश हुए शोले, मग़र चिंगारी अभी भी बाकी है,
फिर ज़िन्दगी से लड़ने की,
तैयारी अभी भी बाकी है..

ठहर जा चन्द रोज़, ऐ नामुराद गर्दिशे-दौरा,
आज़मा लिया सबको मग़र,
यारी अभी भी बाकी है...

ओढ़ के सफ़ेद चादर, बन तो गए कौए हैं हँस,
फितरत पर बदलेगी कैसे,
अय्यारी अभी भी बाकी है..

बदलती है तो बदल जाए, नज़र मेरे रहनुमा की,
अगले ही मोड़ पे "नैनी"
बागे-बहारी अभी भी बाकी है..!!



कुसुम शर्मा 
----नफ़रत-----

रूह भी विचलित
करुण रुदन से
हाहाकार मचा चहुँ ओर
नफ़रत की आग से
आतंकित हुआ संसार।

ह्रदय भी पीड़ा से
व्यथित हो रहा
देख के पशुवत व्यवहार
काम क्रोध मद लोभ के चलते
जीवन का हो रहा संहार !!


भगवान सिंह जयाड़ा 
----चिता के शोले----

पंच तत्व में मिल जाता है सबका यह शरीर,
यही इस मायाबी जीवन की कटु सत्यता है,
कोई जला दिया जाता है इन दहकते शोलों में,
किसी को इस मिट्टी में दफनाया जाता है,
गरूर की आग में जलता रहा जिंदगी भर,
जलना तो इस आग में था ही एक दिन,
मिर्ग तृष्णा में भटकता रहा जिंदगी सारी,
आखिर जीवन भर हाथ कुछ भी न आया,
मुट्ठी बाँध कर आया था इस जग में हर कोई,
खाली हाथ गया,न कुछ खोया और न कुछ पाया,


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~राख ~

नही जानता
ये सपने है या फिर
कोई अरमान
ये कोई जीवन है या फिर
कोई अलाव

आग इंसान के भीतर
जिन्दा रहती है सदा
होश सँभालने से लेकर
अंतिम सांस लेने तक

कभी सुलगती आग
जीवन को अनमोल बना देती है
कभी अन्दर की आग मनुष्य को
जीते जी जला डालती है

अंत होना ही है एक दिन
इच्छाओ का या जीवन का
'प्रतिबिंब' इसमें राख होते है
वो तमाम सुख और दुःख भी


प्रभा मित्तल 
~ अंगार ~
इन अंगारों की क्या बात करूँ
ये तो एकदिन बुझ ही जाएँगे
जो आग लगी है सीने में,बताओ
उन लपटों का अब क्या होगा

वक़्त का एक छोटा सा कतरा
बिन पूछे ही दिल में आकर
पत्थर बनकर ज़ख्म दे गया
जाने धड़कन का अब क्या होगा

अरमानों की भीड़ लगी है
और मन सन्नाटों में घूम रहा
यादों का ताप न सह पाई
वो शाम सिसक कर गा रही,
साँसो का साज तो टूट रहा-
नग़मों का मेरे अब क्या होगा।


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Friday, June 26, 2015

१८ जून २०१५ का चित्र




    • सपना
    • आज सुबह आया एक सपना
      सच जैसे कोई हो अपना,!!!
      एक राजा अद्भुत ऐसा था
      सिर पर जिसके मुकुट सजा था,!
      लगता था वह बिल्कुल अलग,
      हाथ में उसके सजे खड्ग !

      ना कोई सिंहासन था,
      ना लगा कोई दरबार.!
      ऐसे खड़ा हुआ था वो
      जैसे कोई पहरेदार..!!!!


  • नैनी ग्रोवर -- दरबार --

    मैं ही हूँ राजा, मैं ही हूँ दरबार, 

    अपने घर का हूँ मैं तो पहरेदार,
    निभाता हूँ ख़ुशी से, हर फ़र्ज़ अपना,
    माँ बाप की सेवा, बच्चों को प्यार, 
    भाई बहनों का भी रखूँ ख्याल, 
    पत्नी संग बाँटूँ सभी अपने विचार,
    मेहनत की कमाई मैं घर लाता हूँ, 
    देती है चैन मुझे, मेरे घर की दीवार,
    दुखी जनों की भरपूर सेवा करूँ, 
    ना करूँ कभी किसी पे अत्याचार,
    शालीन और सभ्य हैं सभी दोस्त मेरे, 
    क्यों ना कहलाऊँ राजा, ऐ मेरे यार..!! 

  • प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल .....
    ~यथा प्रजा तथा राजा~ 


    आधिपत्य मेरा, प्रजा मेरी
    सिंहासन पर बैठा सोच रहा था 
    मेरे हर आदेश का जहाँ
    सर झुकाकर पालन होता है
    मिलता जो मान सम्मान 
    क्या मैं उस पर येंठ रहा हूँ 
    क्या मैं खुद को खुदा समझ रहा हूँ 

    मैं अपनी झूठी शान में नही 
    सच्चे काम मैं विश्वाश रखता हूँ
    स्नेह आदर प्रजा से छीनना नही 
    अपने कर्म से अर्जित करना चाहता हूँ 
    मेरी प्रजा ही मेरा अस्तित्व है 
    इसलिए मैं गर्व से कहता हूँ 
    यथा राजा तथा प्रजा नही 
    यथा प्रजा तथा राजा होना चाहिए


  • 1. तलवार और राजा
  • सर पर मुकुट हो तो 
    हाथ में तलवार चाहिए
    अपनी नहीं तो भी

    प्रजा की सुरक्षा चाहिए... 

  • 2..चतुर सत्ता मोहरा राजा
    वो सिर्फ मोहरा था
    उसका किरदार राजा होना था
    सत्ता सत्ता खेला खेल रहे थे सातिर
    राजा बेआँख बनाक बेकान बेमुंह था
    उसे राजा ही होना था........ 

  • प्रभा मित्तल 
    ~~मन की अभिलाषा~~


    मेरे मन की अभिलाषा है
    सिर पर मुकुट सजा हो
    हाथ में दोधारी तलवार
    तन पर कवच कसा हो
    और मन में भरा हो प्यार।
    ये युग है प्रजातंत्र का
    यहाँ सत्ता का है मोह बड़ा
    लोकतंत्र के इस युग में 
    मैं राजा होना चाहता हूँ
    पाखण्ड से लोहा लेकर
    राष्ट्र बचाना चाहता हूँ
    ज्ञान की लौ जलाकर
    अंधेरा मिटाना चाहता हूँ।

    सुनते आए हैं,बुरा न बोलो
    बुरा न सुनो, बुरा न देखो
    पर, आँखे बंद कर लेने से
    बुराई नहीं मिट जाती है
    पर उपदेश कुशल बहुतेरे
    संकट के बादल घिरे घनेरे
    अब वक़्त नहीं कहने-सुनने का
    करना है अब काम तमाम,
    हे दयानिधे ! मुझमें शक्ति भर दो -
    अपने प्रण पर अडिग रहूँ..ऐसा वर दो- 
    भ्रष्टाचार को जड़ से काटकर
    गद्दारों को दूर भगाकर
    जात-पाँत का भेद मिटाकर
    वहशी-आतंकियों से कर दूर
    प्रजा का सुरक्षा- कवच बनना चाहता हूँ
    कठिनाई को दूरकर देश बचाना चाहता हूँ
    इसीलिए इस युग में राजा बनना चाहता हूँ।

  • बालकृष्ण डी ध्यानी 

    बीते दिनों की है ये कहानी ……

    बीते दिनों की है ये कहानी 
    एक था राजा और एक थी रानी 

    तलवार की नोक वो बड़ी पुरानी
    बस लहू बहा जैसे बहता हो पानी 
    हकूमत का अंधा जोर कहो 
    या कहो उसे तुम मनमानी 
    बीते दिनों की है ये कहानी ……

    शान शौकत की वो सवारी 
    कभी घोडा कभी हाथी की रवानगी 
    अहंकारी अदम की वो जवानी 
    सर्वनाश निश्चित था फिर भी मनमानी 
    बीते दिनों की है ये कहानी ……

    अब रह गये बस किस्से कहानी 
    छोड़ गये ताज और कुछ निशानी 
    कुर्सी किला और खंडहर की जुबानी 
    एक था राजा और एक थी रानी 
    बीते दिनों की है ये कहानी ……


  • ~~शीश मुकुट ~~


    ऐश्वर्य भोगें !
    खड्ग हस्त ले !
    शीश मुकुट !

    ले दर्प हार !
    राज मद भोगते !
    श्वेतधारी ये !

    ह्रदय हीन !
    चेहरे सपाट से !
    भाव विहीन !

    कठपुतले ये !
    रंगे चंट सियार !
    राजनीति के !

  • देखो भाई कलयुग का प्रताप 

    इस युग का कलयुग है राजा 

    चढ़ जाये जिस पर उसका बज गया बाजा !

    सर पर पैसों का मुकुट,
    हाथ मे पापों की तलवार ,
    जाये जिस ओर इसका होता जयजय कार !

    देश विदेश के भ्रमण करता ,
    जहाँ चाहे वहा ,वही पर रहता !

    इसका एकछत्र अधिकार,
    चोरी ,लूटमारी ,बलात्कारी न जाने कितने है इसके अधिकारी !

    जहाँ पड़ती इसकी छाया 
    वहाँ पर हाहाकार मचाया 

    देखो इसकी माया का प्रताप 
    जो फैली चारों ओर ,

    इसका न कोई भाई बहन है 
    न ही इसके माँ और बाप 
    न ही मित्र है इसका 
    न ही इसमें प्रेम सत्कार !

    जैसा है ये पकड़ दूसरो को बनाये अपना जैसा !
    पैसा ही है इसकी माया 
    सारे कलयुग मे पैसा ही छाया !!


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/