Friday, July 17, 2015

10 जुलाई 2015 का चित्र और भाव [ विषय - योग/शांति ]



बालकृष्ण डी ध्यानी
~छोड़ चला सब क्यों तू अब शांति पाने~


छोड़ चला सब क्यों तू अब शांति पाने
नित योग कर बस तू इस आत्म को जगाने

शरीर, मन और आत्मा को साथ लाना था
योग के सहारे ही इन सबको साथ आना था

बस ध्यान धर उस परमात्मा से मिलन का
एक बिंदु के पीछे पीछे देख वो सुखद नजारे

एक प्रकाश है बस तू और तेरा ये नश्वर शरीर
कर सब चक्रों को जागृत तू हो जा इन सब से परे

सब दुखों की बस ये ही एक मात्र दवा है
इस अपनाने में बन्दे बता तेरा जाता क्या है

बंद आँखों का ये सारा खेल है उस ने है रचा
खुली आँखें हैं तेरी फिर भी क्यों ना तू देख सका

छोड़ चला सब क्यों तू अब शांति पाने
नित योग कर बस तू इस आत्म को जगाने


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~योग, हम और विश्व~

पांच हज़ार वर्ष पुराना, महर्षि पतंजलि का वरदान योग है
मिटा दे तन मन की व्याधिया सारी, ऐसा वेद सार योग है

आज हमारे प्रधानसेवक ने योग को पुन: पहचान दिलाई है
योग का लाभ मिले संसार को, ऐसी उसने मुहीम चलाई है

योग हमारी शक्ति है, इसमें होता तन - मन का संयोजन है
करते ध्यान जब हम तो योग - बुद्धि का होता समायोजन है

ज्ञान की प्राप्ति का सफल मार्ग भी बतलाता हमारा योग है
अध्यात्म पाने का सफल मार्ग भी सिखलाता हमारा योग है

केवल शाररिक व्यायाम ही नही आनंद प्राप्ति का रास्ता योग है
आसन, प्राणायाम, प्रत्यहार, धारणा, ध्यान व् समाधि भी योग है

हमारी संस्कृति और संस्कार का आओ मिल कर हम करे प्रसार
अहिंसा और शांति का सन्देश का आओ मिल कर हम करे प्रचार


Kiran Srivastava
"योग और स्वास्थ्य"

तन-मन रहे निरोग
कर ले तू भी योग

दर्शन कर लो उदित सूर्य का
तन-मन को पावन कर लो
रग-रग में ऊर्जा भर कर
जन-जन को जाग्रत कर दो

इतना दो सहयोग
कर ले तू भी योग

जाति-पाँति का भेद न हो
उनसें कोई द्वंद न हो
सबके लिए जरुरी स्वास्थ्य
हो हिन्दू या कोई जाति

बने सही संयोग
कर ले तू भी योग

स्वस्थ शरीर स्वस्थ हो भारत
सदा योग में रहें कार्यरत
योग करें प्राणायाम करें
सबका हम कल्याण करें

प्रचार-प्रसार चहुँओर
कर ले तू भी योग...!!!


नैनी ग्रोवर 
--योग मिटाये रोग--

साधू संतो का है प्यारा देश मेरा,
है भारतीय दिल और परिवेश मेरा,

जिसने दुनियाँ को जीना सिखलाया,
जीवन जीने की कला को समझाया,
पहले ज़ीरो दिया, आगे बढ़ने को,
अब योग दे के रोगों से मुक्त है करवाया,

आओ सब इसमें शामिल हो जायें,
कुल धरती पे भारत छा जाये,
तन-मन को बनालें सबल मित्रो,
तो प्रेम से जीना भी आ जाये,

चित्त शांत रहे तो लगता है प्यारा,
मुश्किलों से भरा भी ये जीवन सारा,
आओ लौट चलें फिर अपनी परम्परा में,
चमक उठेगा भारत जयूँ आसमान में तारा ..!!



भगवान सिंह जयाड़ा 
--योग और मोदी जी-
--------------------
मोदी जी ने सारे जग में ,
एक नई अलख जगाई है,
योग और ध्यान के प्रति ,
एक नई मुहिम चलाई है,
ऋषि मुनियों की लम्बी उम्र ,
का राज सब जान गए है,
भारत की यह बैदिक परम्परा,
अब सब जन जान गए है,
करो योग ,रहो निरोग की,
धारणा सारे जग लानी है,
इसी लिए सारे आज जग ने
मोदी जी की बात मानी है,
बैदिक धर्म की यह परम्परा
अब सारे जग फैलाना है,
फिर से एक बार भारत को ,
गर्व से बिश्व गुरु बनाना है,


मीनाक्षी कपूर मीनू  
योग :आत्मशक्ति
****************
बंद पलकें
तिमिर भाव
भरी भीड़
सालता सन्नाटा
ऐ मन ...
चल दूर कहीं
जहाँ हो ..शांति
तन-मन की
किरणें भोर की
छू बन्द पलकें
चूम ले ...
अतृप्त मन को
संलिप्त कर दे
योग माया से
आवर्णित
ज्ञान चक्षु ....
भर प्रकाश
कर दे सवेरा
प्रफुल्लित मन ...
'मनस्वी '
चिर्रायु आशीर्वाद
ग्रहण कर
लिप्त हो जाये
सब भूल
योग की आवर्णी ले
शांत तन से
कर समाधि
सूर्य को नमस्कार
कर ले
छोड़ पूर्वाग्रह
तू तन-मन
आलोकित
कर
योग का चप्पू
चलाकर
नाव अपनी
पार कर ले ....


Pushpa Tripathi 
~स्वस्थ निरोगी योग से जीवन ~

कितना कुछ पाने के लिए
कितना कुछ खो देते हम
दम्भ न भरते … सोच न पाते
क्या कुछ खोते … क्या कुछ पाते !!

आदिकाल से चरम शिखर तक
ऋषि मुनियों के ज्ञान योग में
निरोगी जीवन संयमित मन
ध्यान है योग … योग ही जीवन !

सूर्य नमस्कार स्फूर्ति भर शक्ति
करो प्राणायाम उठकर जल्दी
हमारे संस्कार … हमारी विरासत
क्यों खोये इसको. … जो लाभ दे हमको !

देश विदेश हुआ लक्ष्य प्रसार
विदेशी भी माने क्या है सार
अपनाते वो भी … योग दिवस मनाते
भारत भूमि कण कण अनुभूति !

यही है … सही है. .... अच्छी सेहत का वादा !

\

बलदाऊ गोस्वामी 
~ खत्म हो ही जायेंगे ~

जैसे घनाघोर अंधेरा
भोर होते ही
धीरे-धीरे खत्म होने लगता है
लोहे की बड़ी से बड़ी छड़
जंग लगते ही
धीरे-धीरे खत्म होने लगता है
ठीक उसी तरह ___
योग से कई बिमारीयाँ
खत्म हो ही जायेंगे
चलो,
आज से प्रतिदिन योग करें
और स्वस्थ रहें |


अलका गुप्ता 
~~~योग~~~

वैदिक युगीन..
संपूर्ण..
इक विज्ञान है योग |

श्वास-प्रश्वास का..
समुचित ...
संधान है योग |

स्वस्थ एक प्रक्रिया
संबलपूर्ण ...
हर आसन...

तन-मन ..
और आत्मा का...
संविधान है योग ||


प्रभा मित्तल
~~योग-महिमा~~
वेद-ऋचाओं में वर्णित था,
अनजान रहा हर प्राणी से,
बाबा ने घर- घर पहुँचाया
मोदी ने लोकप्रिय बनाया
संसारभर में इसका चर्चा है
तू किस दुविधा में उलझा है
प्रगति पथ पर बढ़ना हो
ध्यान अवस्थित करना हो,
हर दिन उठकर करो योग
भोगो जीवन का हर भोग।
सूर्य-प्रणाम कर ले मन से,
तेरा सुप्रभात हो जाएगा
नित्य-प्रति करे प्राणायाम
जीवनभर दुःख न पाएगा।

व्यस्त-व्यग्र हो जूझ रहा
चित्त लक्ष्य से भटक रहा
भाग-दौड़ में दिन बीत रहा
पलभर रुक कर सोच जरा
मिल जाएगा आनन्द यहाँ
गर तेरे दैनिक जीवन में
शामिल हो जाए योग जरा।

योग ध्यान है, विज्ञान योग है
योग धर्म है ,योग कर्म है
योग ही शिक्षा,साधना योग है
योग ही भक्ति है,शक्ति योग है
योग ही नियति, प्रगति योग है
योग शांति है , क्रांति योग है
योग से निरोग है,सहयोग है
समृद्धि है,खुशियों में वृद्धि है।

योग की महिमा अपार है
यह इस जीवन का सार है
निर्विवाद योग अपना लें हम,
जीवन सफल बना लें हम।।



Pushpa Tripathi 
~दिन बदला स्वास्थ भी बदला~

स्वस्थ जीवन का मूल मन्त्र
तन मन सुरचित सुन्दर ढंग
योग साधना ध्यान परमार्थ
मिला मानव को यह अभिमान !

फिर भी कितने अज्ञान थे हम
योग क्रिया को बिसरे हुए थे
बस जीवन के दिनचर्या में
आप धापी के होड़ में
योग साधना भूल गए थे !

समय का आभाव और आलस के कारण
कौन करे यह काम पुरातन
दफ्तर घर व्यापार और नौकरी
बस इतना ही मान लिया था !

दिन बदला सरकार भी बदली
योग गुरुओं से नागरिक सचेत
सहभागी होकर देश को लेकर
मोदी जी के शब्द विचार कारगर
पहले पहल प्रभावी भाषण
योग से क्या है ?
क्या होता लाभ ?
क्या हमारे सेहत का राज ?
हुआ प्रसार … सब मिलकर साथ
पतंजलि का .... संजीवनी वरदान !



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Thursday, July 2, 2015

२६ जून २०१५ का चित्र और भाव



बालकृष्ण डी ध्यानी 

~अब भी आग बाकी है ~

अब भी आग बाकी है
मेरे सारे वो जजबात बाकी
उड़ी है राख थोड़ी थोड़ी मगर
दिल में अब भी अंगार बाकी है

देखो जल ना पाये वो
पूरी तरह बुझ ना पाये वो
चलना है उस पथ मेरे क़दमों को
सत्य की राह छूट ना पाये वो

ज़रा ज़रा अब लाल हुआ है वो
रक्त कहीं ये जम ना जाये वो
बहते रहे गर्म वो इन धमनियों से
कमाल खून का जिगर दिखा जाये वो

ये विशवास बाकी रहे
मेरा ये हिन्दुस्तान बाकी रहे
चढ़ेंगे यूँ ही सर माँ क़दमों में तेरे
ये देश भक्ति की आग जलती रहे

अब भी आग बाकी है ...............



Kiran Srivastava 
"आग"
-------
है ये आग
प्रतिशोध का...
नफरत का...
जलना...
खाक हो जाना
तब्दील राख में
अंततः कुछ न मिलना
यही है अंत
यही है परिणाम !!
तो क्यूं ना हम
समझें वजूद को
जीवन की सार्थकता को
सच्ची राहों पर चलते हुए
बचा कर रखें
उस उष्मा को
उस ताप को जो
आ सके काम
देश हित में
राष्ट्र हित में....!!!!!



नैनी ग्रोवर 
--- चिंगारी---

खामोश हुए शोले, मग़र चिंगारी अभी भी बाकी है,
फिर ज़िन्दगी से लड़ने की,
तैयारी अभी भी बाकी है..

ठहर जा चन्द रोज़, ऐ नामुराद गर्दिशे-दौरा,
आज़मा लिया सबको मग़र,
यारी अभी भी बाकी है...

ओढ़ के सफ़ेद चादर, बन तो गए कौए हैं हँस,
फितरत पर बदलेगी कैसे,
अय्यारी अभी भी बाकी है..

बदलती है तो बदल जाए, नज़र मेरे रहनुमा की,
अगले ही मोड़ पे "नैनी"
बागे-बहारी अभी भी बाकी है..!!



कुसुम शर्मा 
----नफ़रत-----

रूह भी विचलित
करुण रुदन से
हाहाकार मचा चहुँ ओर
नफ़रत की आग से
आतंकित हुआ संसार।

ह्रदय भी पीड़ा से
व्यथित हो रहा
देख के पशुवत व्यवहार
काम क्रोध मद लोभ के चलते
जीवन का हो रहा संहार !!


भगवान सिंह जयाड़ा 
----चिता के शोले----

पंच तत्व में मिल जाता है सबका यह शरीर,
यही इस मायाबी जीवन की कटु सत्यता है,
कोई जला दिया जाता है इन दहकते शोलों में,
किसी को इस मिट्टी में दफनाया जाता है,
गरूर की आग में जलता रहा जिंदगी भर,
जलना तो इस आग में था ही एक दिन,
मिर्ग तृष्णा में भटकता रहा जिंदगी सारी,
आखिर जीवन भर हाथ कुछ भी न आया,
मुट्ठी बाँध कर आया था इस जग में हर कोई,
खाली हाथ गया,न कुछ खोया और न कुछ पाया,


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~राख ~

नही जानता
ये सपने है या फिर
कोई अरमान
ये कोई जीवन है या फिर
कोई अलाव

आग इंसान के भीतर
जिन्दा रहती है सदा
होश सँभालने से लेकर
अंतिम सांस लेने तक

कभी सुलगती आग
जीवन को अनमोल बना देती है
कभी अन्दर की आग मनुष्य को
जीते जी जला डालती है

अंत होना ही है एक दिन
इच्छाओ का या जीवन का
'प्रतिबिंब' इसमें राख होते है
वो तमाम सुख और दुःख भी


प्रभा मित्तल 
~ अंगार ~
इन अंगारों की क्या बात करूँ
ये तो एकदिन बुझ ही जाएँगे
जो आग लगी है सीने में,बताओ
उन लपटों का अब क्या होगा

वक़्त का एक छोटा सा कतरा
बिन पूछे ही दिल में आकर
पत्थर बनकर ज़ख्म दे गया
जाने धड़कन का अब क्या होगा

अरमानों की भीड़ लगी है
और मन सन्नाटों में घूम रहा
यादों का ताप न सह पाई
वो शाम सिसक कर गा रही,
साँसो का साज तो टूट रहा-
नग़मों का मेरे अब क्या होगा।


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