Saturday, October 24, 2015

६ अक्तूबर २०१५ का चित्र और भाव



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~सही निर्णय ~

रुका तो है पथ
लेकिन
रास्ता कोई न कोई
निकल ही आएगा

जीवन एक संग्राम
लड़ना तो होगा ही
संही समय पर
रास्ता
दाए या बाए
पीछे या सामने
नज़र आ ही जाएगा.

भय, हार से
कोई न जीत पाया है
रुकने से कब
कदम बढ़ते है
जोश उत्साह, हौसला
और विश्वास
को अपनाना होगा
सही निर्णय लेना होगा


नैनी ग्रोवर 
--राहें--

राहें नहीं चलतीं कभी,
जीवन चलता है,
कभी विश्वास कभी अविश्वास में लिप्त,
जाने कितने सपनो को संजोये,
जीवन चलता है..

स्वयं ही मुड़ जाता है,
जहाँ चाहता है मन,
और दोष मढ़ कर,
मूक बेचारी राहों पे,
जीवन चलता है...

मिलने की ललक,
वियोग का दुःख,
उकताए हुए से चेहरों का,
बोझ डाल कर इन राहों पे,
जीवन चलता है...!!


Kiran Srivastava
"अवरोध"

रूकना नही जीवन में हमको
आगे बढते जाना है.....

राह अगर रूक भी जाये तो
आगे ना बढ भी पाये तो
मन में ये संकल्प करो
नहीं ठहरना है हमको
दुजा राह अपनाना है
आगे बढते जाना है.....

रुक जाये वो राही कैसा
थम जाये वो जीवन कैसा
मानेगे ना हार कभी हम
आगे बढते ही जायेगे
कोई ना हो राह अगर
खुद ही राह बनाना है
आगे बढते जाना है.....

जब तक मंजिल नहीं मिले
तब तक चैन नहीं लेगे
राह में आये चट्टाने
या आये कोई तुफान
करेगे डटकर सामना
उससे ना घबरायेगे
आगे बढते जायेगे.....


बालकृष्ण डी ध्यानी 
~कुछ करने से पहले सोच ले~

कुछ करने से पहले सोच ले
रास्ता अपना राही खुद से खोज ले

कोई नहीं खड़ा तेरा इन राहों में
अपने आप से पहले तो ये बोल दे

हर कोई रोकना टोकना तुझे चाहेगा
बस अपनी मन की आँखें तू खोल दे

मंजिल तेरी होगी खड़ी यंहा वहां
उस राह में एक पहला कदम धर दे

आएंगे जायेंगे कितना चिन्ह यंहा
उन पर अपनी सोच की मोहर ठोक दे

कुछ करने से पहले सोच ले
रास्ता राही अपना खुद से खोज ले


अलका गुप्ता 
~~~~~कदम बढ़ाने से पहले~~~~

रहें न राहें मुश्किल.. देखते चलो निशान |
कदम बढ़ाने से पहले..कर लो इत्मीनान ||

अनुभव पुराना आता है सबके बहुत काम |
चांहें हों पदचिन्ह...हो चाहें..तीर कमान ||

निरंतर बढ़ते जाना, है जीवन की पहचान |
बढ़े-चलो बढ़े-चलो ,छोड़ो न..अपनी आन ||

सोचो समझो बुद्धी का..करो हमेशा स्तेमाल |
खोल के रखना है..हमे तो.अपने आँख-कान ||

एक हो जज्वा ..और ह्रदय में ..पाने का अरमान |
हो अगर हौसला मन में..मंजिल पाना है आसान ||


ज्योति डंगवाल 
~~~ कदम रुके क्यों हैं ~~~~

रुके कदम क्यों है...रात काली ही सही
हौसले के चराग तो जला क्या उजाला नहीं

मंजिल तो रहेगी हाँ रहेगी वहीँ
कदमों को मत रोकियेगा कभी

अधीर बावड़ी होती है नहीं
प्यासे को ही जुगत करनी है सभी

मुमकिन है राह भटकाव होगा कभी
राही न रोकना कदम अपने कभी

ले पहाड़ों से इरादे अपने सभी
मंजिल तेरी बाट जोहती खड़ी

विजय पताका लहराती हुयी
तेरे हौसले को दाद दिलाती हुयी...

कुसुम शर्मा 
राह कठिन है
---------
माना कि राह कठिन है
चलना ही तो बस प्रण है

जिन्दगी की डगर मे
कुछ ऐसे ही तो पल है
न हार तु इस डगर से
मुश्किल के इस पल से
कर ले निश्चय अगर
राह को तू पायेगा
फिर भला तुझे कौन रोक पायेगा

विश्वास अटल जो तेरा
मंज़िल को तू पायेगा
बढ़ते क़दम के आगे
तू सबको झुका पायेगा

कठिनाइयों को सह कर
हौसला बुलन्द कर
सही ग़लत को भेद कर
लक्ष्य का निश्चय कर
बस चला चल
बस चला चल

मंज़िल हो जब पास तेरे
न देखना पलट कर
बस चला चल
बस चला चल !!



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Sunday, October 4, 2015

18 सितम्बर 2015 का चित्र एवं भाव




Kiran Srivastava 
"संतुलन"

असंतुलन
के बीज
से उपजी
कटीली झाड़ियाँ.....
लहुलुहान होते
जीवन.....
विघटित होते
परिवार.....
जीवन की
कठिन डगर.....
जरुरत है
संतुलन की.....
संतुलन
सुगम करता
राहों को
लक्ष्य और
मंजिल को.....
आलोकित करता
जीवन को.....
सीख दे जाते हैं
कभी-कभी
वन्य जीव भी....
जो वाचालता
में हम
भूल जातें हैं.....!!!!!




नैनी ग्रोवर 
--जीवन की दौड़--

कितनी ही भयानक हो चाहे ये जीवन की दौड़,
सीख ही जाता है चलना हर प्राणी, भय को छोड़..

लालसा कुछ नया पाने की, लुभाती है इस तरह,
मुसीबतों की तरफ देता है, ये मासूम स्वयं को मोड़..

इंसानो ने छीन लिए जब घर इन बेगुनाहों के,
जाएंगे अब कहाँ ये, इन धुआँ भरे शहरों को छोड़..

भागम-भाग जन्म से मृत्यु तक, चलती रहेगी,
बचा सको तो अब भी बचा लो, ये प्राणी हैं बेजोड़..!!



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ इंसान और बन्दर ~

इंसान
परजाति बन्दर की
इंसान बंदर था या है
समझ नही आ रहा
अभी तक
इतना समझ पाया
बस इंसान बनने के बाद
इंसान अदरक का स्वाद
पहचानने लगा है और
इंसान कहता है
बंदर क्या जाने
अदरक का स्वाद


कुसुम शर्मा 
देख रहा इन्सान की फ़ितरत
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देख रहा था सोच रहा था
पल ही पल मे तोल रहा था
क्यों बन्दर बना इन्सान रे

बन्दर होता अच्छा होता
कम से कम ये सच्चा होता
या आख़िर सिर्फ़ बच्चा होता

चाल तो इसकी मेरे जैसी
ढाल को इसके क्या कहने
चहरे के पीछे है चहरा
इसका भी ये क्या कहने

मुख से राम नाम है जपता
बग़ल छुरी लिए है फिरता
किस समय वार ये करता
इसका भी ये क्या कहने

कहता है बन्दर ये मुझको
पर बन्दर से कम ये नही
हम तो जैसे है दिखते है
पर ये तो दिखता ही नही

इनकी फ़ितरत मे धोखा है
हमारी फ़ितरत ये तो नही
बन्दर है अच्छे है
इन्सान से तो सच्चे है



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