इस प्रतियोगिता के सयुंक्त रूप से विजेता है सुश्री ब्रह्माणी वीणा व् सुश्री रेनू सिंघल
#तकब ९ / १८
मित्रों आप सभी को मेरा स्नेहयुक्त नमस्कार। लीजिये प्रस्तुत है इस बार की प्रतियोगिता हेतु तस्वीर। नियमो का पालन अवश्य करें, जिसके लिए उन्हें पढ़ना भी जरूरी है।
१. दिए गए चित्र/ तस्वीर पर कम से कम १० पंक्तियां व अधिक १६ पंक्तियां लिखिये। साथ ही शीर्षक व अंत मे एक टिप्पणी अपने उदृत भावों पर।
२. रचना मौलिक व अप्रकाशित होनी चाहिए।
३. प्रतियोगिता के वक्त लिखी हुई रचना/पंक्तियों पर कोई टिप्पणी न हो। हां यदि किसी प्रकार का संशय हो तो पूछ सकते है। निवारण होते ही उन टिप्पणियों को हटा दिया जाएगा।
४. आप अपनी रचना किसी अन्य माध्यम में पोस्ट तभी कर सकते हैं जब प्रतियोगिता का परिणाम आ जाये।
५. प्रतियोगिता में रचना भेजने की अंतिम तिथि ३० दिसम्बर २०१८ है।
६. निर्णायक मंडल के सदस्य केवल प्रोत्साहन हेतु अपनी रचनाएं भेज सकते है।
धन्यवाद, शुभम !!!!
गोपेश दशोरा
~मत्स्य जीवन~विधाः हाइकु
-1-
कांच का घर,
खुशरंग दुनियां,
आजादी कहां।
-2-
धरा या नदी,
आसान नहीं होता,
अलग होना।
-3-
अलग रंग
भेदभाव मौजूद
हर जगह।
-4-
ना देंगे साथ,
कुछ करना चाहो,
जग से जुदा।
-5-
घर से दूर,
विशाल समन्दर,
कौन अपना।
टिप्पणीः लोग घरो में मछलियों को पालते है, पर कुछ कभी-कभी उन रंगबिरंगी मछलियों को घर से निकाल नदी, तालाब में डाल आते है। मनुष्य की तरह ही इन्हें भी एक छोटे से घर से निकल विशाल जलाशय में जाकर रहना आसान नहीं होता होगा।
Prerna Mittal
~ मैं ~
***
सब यही करते हैं, यही दस्तूर है।
रोज़ जीते हैं, रोज़ मरते हैं।
ज़िंदगी की इस दास्ताँ का हिस्सा हूँ मैं
पर भीड़ से निकलना चाहता हूँ मैं
सबसे अलग चमकना चाहता हूँ मैं
इन क़दमों से राह बनाना चाहता हूँ मैं
पता है, कहीं रोड़े तो कहीं पहाड़ होंगे
ना कोई साथी ना कोई हमसफ़र होंगे
पर फिर भी इस दास्तान पर अपनी
छाप छोड़ जाना चाहता हूँ मैं।
टिप्पणी: अपनी पहचान बनाने के लिए समाज के ढर्रे से अलग जाना पड़ता है।
किरण श्रीवास्तव
"नयी सोच"
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कुछ अलग सी चाह हो
कुछ अलग सी राह हो,
कुछ नयी राहें बनाये
राह में बढ़ते ही जायें!
मुश्किलें सरे राह है
धुंध सा आभास है,
गर एक किरण रोशन रहे तो
धुंध का भी नाश है !!
राह जिसने भी बनाया
आम ना वो खास थे,
कर गुजर जाऐं कुछ ऐसा
हम पे भी अब नाज हो!!!
भीड़ का हिस्सा न बन
अनपढ़ा किस्सा न बन,
एक नया निर्माण कर
चाह रख कुछ कर गुजर
चाह रख कुछ कर गुजर...!!!!
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टिप्पणी: बनी बनायी राहों पर सब चलतें हैं लेकिन जो नयी तलाश में रहतें हैं नयी राहें बनातें हैं वह कुछ खास होतें हैं।
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
पिरामिड विधा में ,,,चित्र अभिव्यक्ति -एक से सात वर्णो की सात पँक्तियाँ ,,,
"नई मंजिल"
🍁🍁🍁🍁🍁🍁
मैं
मीन
बावरी
छोड़ चली
अपना~ घर
करके~ निश्चय
नई बनूंगी ~तय //
****************
है
सोंच
सजग
बढूंगी~मैं
ना डरूँ कभी,
शीर्ष~चढूंगी मैं
मंजिल मिले तभी//
*****************
ये
भय
मन में
कहीं कहीं
साथी छूटेंगे
यदि लक्ष्य सही,
मंजिल मिले तभी //
*****************
ये
भाव
उमंग
संग-संग
लिए हुए मैं
बढती ही~गई
मंजिल मिली तभी//
टिप्पणी: यदि मन में दृढ निश्चय हो साथ में उमंग व लक्ष्य पक्का हो तो मनुष्य अकेले ही मंजिल पा लेता है,,,मछलियों का प्रतीक मानव विदेश मे अपने हिम्मत के बल पर नया रास्ता बनाते हैं,,,यही भाव मन मे आया,,,धन्यवाद
नैनी ग्रोवर
~ भीड़ का हिस्सा ~
हो कुछ भी, स्वयं को भीड़ का हिस्सा ना करूंगी,
जो भुला दिया जाउँ, पेश वो किस्सा ना करूंगी...
ढूँढ़ लूँगी कोई तो राह, इस जहाँ से अलग,
नकारेगा कोई मुझे, कब और कहाँ तलक,
खरीद ले जो मुझे, कोई चंद खुशियों के बदले,
हीरा जन्म अनमोल, यूँ सस्ता ना करूंगी...
बांध नहीं सकतीं, झूठे रिश्तों की मुझे डोर,
मिटा सकते नहीं मेरी भूख, पकवानों के कौर..
झोली में मेरी मत डालो, इतना बोझ,
मैं बनके भिखारी, तुम्हें फरिश्ता ना करूंगी ..
जो भुला दिया जाउँ, पेश वो किस्सा ना करूंगी...
टिप्पणी:- पशु हो पक्षी हो, या फिर जलचर, सबको अपनी राह अपना ठौर स्वयं ही चुनना पड़ता है, इंसान को भी अपना जीवन गुज़ारने के लिए खुद ही कर्म करना चाहिए, भीड़ के पीछे चल देना, या किसी और के बलबूते पे जीना मृत्यु समान है...!!
Ajai Agarwal
"ऐकला चलो "( प्रोत्साहन के लिए )
+++++++++
रंगों छंदों में बंधा जीवन
कब समास में द्व्न्द बना
नटराज की नटी बन मन
क्यूँ स्व नर्तन को मजबूर हुआ ?
लहरों ने कानों में सरगोशी की
जाने क्या मुझको सन्देश मिला ;
चल दी डगमग राहों में
बाधाओं से टकराने इकली मैं
सोचा राह अलग पकड़ देखूं
चलूँ भीड़ से अलग जरा
राह नई मिल जाए कोई
शायद कुछ नया दिखाई दे
न समझो मुझको तुम पागल
न ही मैं अभिमान भरी
मैं तो तुम जैसी ही हूँ
बस भीड़ की भेड़ न बनना चाहूँ
एक लहर सागर की ने छू के
मन के इक तरल स्वर्ण कण को
दीपक लौ की चेतनता दे दी
तोड़ रूढ़ियाँ इकली चलता
वही बंधन मुक्त होता है -
"जोदि तोर दक शुने केऊ ना ऐसे तबे एकला चलो रे" ---
टिप्पणी: टैगोर की ऐकला चलो से प्रेरणा लेके लिख दीं ये पंक्तियाँ यदि केऊ कथा ना कोय, ओरे, ओरे, ओ अभागा,यदि सबाई थाके मुख फिराय, सबाई करे भय-तबे परान खुले ओ, तुई मुख फूटे तोर मनेर कथा एकला बोलो रे!"
रेनू सिंघल
~छू लूँ आसमाँ ~
(छंद मुक्त कविता )
आज न जाने फिर से क्यों
मुस्कुराने लगी हूँ
साँसों की रवानी को
पहचान ने लगी हूँ
रुक सी गयी थी जो जिंदगी
वो अब जानने सी लगी हूँ
बेरंग सी दुनिया में फिर से
नये रंग जीवन में भरने लगी हूँ
छू लूँ आसमाँ को अपनी ऊँचाईयों से
कहता है मन ये मेरा अब
जी ले तू ख्वाब अधूरे थे जो
माना कि अब जुल्फों में है सफेदी छाई
पर हौसलों के पंखों ने है परवाज़ पायी
साँझ की चौखट पर ढली रात के बाद ही तो
फिर एक नई सुबह ने ली है अंगड़ाई
मन के मुंडेर पर फिर से
ख़्वाबों ने है महफ़िल सजाई
अब न घुट घुट कर है जीना
अभी तो जीवन में है नई उमंग आयी
कहती है अब तो दिल की धड़कन भी
थम जा जरा तू रुक तो जरा सी
हवाओं का रुख भी है बदला
करता है कुछ ये इशारा
फिर से मैं इस जिंदगी को
जी भर के खुद में क्यों न जी लूँ ।
टिप्पणी: छंद मुक्त कविता इस कविता का सार ये है की जब कोई ठान ले कि ख़्वाब पूरे करने की कोई उम्र तय नही होती । बस हौसला होना चाहिए एक जुनून चाहिए कुछ भी असंभव नहीं है ।
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
प्रोत्साहन हेतु
~ मेरी बात ~
कुछ अलग करने की चाह में
अपनों से वैर लिया
जानता था, हूँ अकेला
फिर भी अपनों से मुंह मोड़ लिया
राहे कठिन और मंजिल दूर
नहीं हूँ हौसले से मजबूर
संघर्ष गतिमान, बना पहचान
कुछ पाने के लिए खोना सीख लिया
नैतिकता और ईमान की सीढ़ी चढ़
कर्तव्य धर्म मान लिया
नहीं आडम्बर, भाव निस्वार्थ
आज फिर नव चेतना को पा लिया
टिप्पणी: कई बार लोगो की सोच से विलग इंसान अकेला चलता तो है लेकिन उसकी सोच में स्वार्थ नहीं होता बस कुछ अलग करने की चाह होती है
रूचि बहुगुणा उनियाल
"प्रभु का सृजन सर्वोपरि"
..........................................
मैं चली हूँ छोड़ सबको
स्वयं को भीड़ से हटाया
नवचेतना से युक्त होकर
नव मार्ग का दीपक जलाया
तोड़ के सारे मिथक को
स्वयं का एक नीड़ सजाया
विलग होकर रूप रंग से
अपना ये अस्तित्व बनाया
कुछ भी नहीं है असंभव ठानने पर
ये इस जगत को कर दिखाया
सर्वोपरि है प्रभु का हर सृजन
ये अपने कर्मों से सबको जताया
नियत व्यवहार से भिन्न रहकर भी
रक्त के गुण धर्म का रिश्ता निभाया।।
टिप्पणी : मनुष्य स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानकर अन्य प्राणियों को कमतर आंकता है,, जबकि यदि देखा जाए तो सृष्टि के प्रत्येक प्राणी में प्रभु ने अपार संभावनाएं और गुण दिए हैं और वो प्रेरणादायक होता है। इस चित्र को देखकर यही भाव जागा कि हमें प्रभु की प्रत्येक कृति से शिक्षा लेकर स्वयं को निखारने में सहायता लेनी चाहिए
Mita Chakraborty
~अकेले ही~
छोड़ कर पुरानी परंपरा को
कुछ तो नया करना होगा
पाना है गर खुद को तो
अकेले ही मुझको चलना होगा
निभाती रही अब तलक कर्तव्यों को
सींचती रही प्यार से सारे रिश्तों को
इन बंधनों से अब हाथ छुड़ाना होगा अकेले ही मुझको चलना होगा
खुशी थी मेरी अपनों की खुशियों मे
रो पड़ती थी उनके गम मे
अब थोड़ा सा खुद के लिए भी जीना होगा
अकेले ही मुझको चलना होगा
टिप्पणी: मेरी ये कविता औरत मात्र की कहानी है जिसे मैंने अपने माध्यम से व्यक्त किया है। हम औरतें मां बहन बेटी भाभी इन सारे रिश्तों को निभाने के क्रम मे खुद को कहीं न कहीं भूल जातीं हैं।
मीनाक्षी कपूर मीनू मन
~मीन~
**********
मानव मन की
भाव तरलता
बह रही
बन नीर धीर
तैर रही
सुनहरी मीन
चली अलग सी
दिए सी बाती
रोशन कर
पथ .......
नव निर्मित धाती
काट जाल
शैतानों का
कर मुक्त कदम
गुंजन बयां
बन पहचान
नये दुर्गम
पथ का...
दीप मार्ग बन
चमक चली
रुख मोड़ चली
तम भाव
शिथिल कर
चक्रव्यूह में
मन हठ कर
लहर मन में
नेतृत्व भाव ले
बहती चली
बहती चली
मनस्वी ..
बहती चली ....
टिप्पणी: मन रूपी ताल में अच्छे - बुरे भाव हमेशा अवतरित होते रहते है और तैरते रहते है काले पीले भाव में (शैतानी और दैवी ) जब संस्कारी दैवी सुनहरा रूप शैतानी जाल से अलग हो के आगे बढ़ता है तो सबका मार्गदर्शन करते हुए एक अलग पहचान बन निखरता है ।
प्रभा मित्तल
~~सीख~~
दिन बीत गए हैं भारी
यौं उम्र गुज़र गई सारी
सबके साये में रह कर
कब तक परवश रहना है।
कुछ नया करने की धुन में
नयी राह पकड़ ली मैंने,
जीवन की दुर्गम राहों पर
अकेले ही पार गुज़रना है।
अपना भी कोई सपना था
अब उसको पूरा करना है,
पथ के कंटक दूर हटा कर
लक्ष्य तक जा पहुँचना है।
इक नन्हीं सी मछली भी
मुझे सीख दे गई भारी,
दुनिया में गर कुछ पाना है-
तो सुधियों की बैसाखी लेकर
एक अकेले के जलूस में
सुबह शाम उसे ही चलना है।
टिप्पणी: लक्ष्य प्राप्त करने के लिए स्वयं को ही हिम्मत जुटानी पड़ती है।
माधुरी रावत
~अपनी राह~
एक बनी बनाई लीक पर
आसान है बहुत चलना
सहमत नहीं जिस बात पर
कब तक मन उस पर छलना
दूर दूर तक था घना अँधेरा
दुविधाओं ने भी बहुत घेरा
पर कुछ कर गुजरने की चाह में
निकल पड़ी वो एक नई राह में
बाधाएं तो बहुत आई
पर हौसला भी संग लाई
संघर्षों की आंच से वो
और भी उभर निखर पाई
आज पाया कि वो तो अब
भीड़ से कुछ अलग खड़ी है
और ये जाना कि दुनिया भी
उस मर्तबान से बहुत बड़ी है
टिप्पणी: अपनी पथ स्वयं प्रशस्त करने के लिए इरादा मजबूत हो तो मंजिल अवश्य मिलती है
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