Friday, February 27, 2015

१५ फरवरी २०१५ का चित्र और भाव




प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

~ एक सच कड़वा सा~

त्याग और ममता बनती जहाँ मूरत
पल भर में बदल जाती है वहा सूरत
एक होकर लड़ने की जहाँ होती जरुरत
आपस में लड़ने से नहीं मिलती फुरसत

यूं तो दुशमन देखे है कई हज़ार
लेकिन औरत ही खुद पर करती वार
खुदगर्जी करती अस्तित्व का शिकार
मन में छुपाये न जाने कितने हथियार



नैनी ग्रोवर
 --दोगलापन--

औरत ही बनती है औरत की दुश्मन,
क्यों नहीं समझती दूजी औरत का मन ..

कर देती है बर्बाद किसी का घर,
इक पल को भी लरजता नहीं दिल मगर,
जब आती है अपनी बारी तो सिसकती है,
बहु को दुःख देने में ना पसीजती है,
उजाड़ देती है मूर्ख अपना ही ये आँगन..

बेटी बहन को , भर भर के दुआएँ देती है,
बहु को उठते बैठते दिन रात कोसा करती है,
कैसा ये दोगलापन है, रब को भी हैराँ करती है,
देके दूजी औरत को पतझड़ मांगती है सावन...!



बालकृष्ण डी ध्यानी
~अब तो हाल देख दिल का ऐसा ~

अब तो हाल देखे दिल का ऐसा
देख उसे गौर से अब दिखता ना वैसा

बिकता है वो अब ना होता सोना
बता चित्र में कौन और किस को क्या खोना

उम्मीदों की कैसी ये चिंगारी भड़की
शोलों शोलों पर अब जा लटकी अटकी

अब दब दबाकर अपने को क्या पाना
सभी को बस अब उस रब के पास जाना

घूंट रही क्यों आज खुद ही खुद को
भूल रही पहचान क्यों तो आज तुझको

अब तो हाल देखे दिल का ऐसा
देख उसे गौर से अब दिखता ना वैसा



कुसुम शर्मा 

नारी पे भारी पड़ी है नारी
***********************
कहती है ये दुनिया सारी,
नारी पे भारी पड़ी है नारी,
पुरूष प्रधान देश में सब,
नारी की बताते है लाचारी,
युग -युग से बात है भारी,
नारी पे भारी पड़ी है नारी !!

द्रोपदी के चीर हरण में
सबके सामने उतारी गई साड़ी
गंधारी भी मौन खड़ी थी
देख रही थी सभा भी सारी
नारी पे भारी पड़ी है नारी !!

आज बहुओं पे अन्याय होता,
सास बहु को बहुत सताती,
शादी में दहेज न लाने पर
बहु को देती वो ताना देखो
नारी पे भारी पड़ी है नारी !!

किसी के हँसते -खेलते परिवार में
जब आती दूसरी नारी
और लगा देती चिंगारी
नारी पे भारी पड़ी है नारी !!

बेटी पैदा होने पर
देती बहु को गारी
बेटे को देती राज पाठ
बेटी को धर की ज़िम्मेदारी
बेटी से ही क्यों काम कराती
तू भी तो है एक नारी
नारी ही नारी से ईर्ष्या करती
कैसी है बिमारी
नारी पे भारी पड़ गई नारी !!



अलका गुप्ता 
~~~~पाश्चात्य भौतिकता~~~~

मियाँ की जूती ये मियाँ की चाँद |
हाई हिल का कैसा है ये फ़रमान ||

पहन कर सूट-बूट भूले.. अपनी शान |
आधुनिकता की कैसी हाय ये अरकान ||

कोमलता दया करुणा ममता औ दान |
गौण हुए पुरातन पंथी ये सारे ही नाम ||

हो रहा अब तो केवल स्टेटस का ही गान |
फालोअर्स कितने..कितने लाइक मुकाम ||

मार्केट चकाचौंध का अब दूजा नाम हुआ |
असली औकात नही नकली सब आम हुआ ||

रिश्तों में भी अपनेपन की वह गर्माहट नहीं |
स्वार्थ का बाजार यहाँ भी अब नीलाम हुआ ||

पाश्चात्य भौतिकता में संस्कार मलिन हुए |
वेदों से दूर हम..पुनः जंगल को प्रस्थान हुए ||


Negi Nandu
~ {आज का दौर} ~

क्या रीती क्या रिवाज ,
ना जीने का ढंग न हिसाबl
चहरे पर हसीं नही,
ख़ुशी में अब खुशबु नही ll
दम भरता हे जिन्दा होने का,
पर उसमे विवेक नही l
प्यार के लिए पल नही ,
रिश्तों में अब बल नही ll
भाग रहा हे अथाह,
पर मंजिल की खबर नही l
सभ्यता हे दम तोड़ रही ,
संस्कार से लेन देन नही ll
लूट रहा कुदरत को बेहिसाब ,
लौटने की खबर नही l
जाने क्या क्या रौंद रहा ,
जीवन के इस सफर में ll
प्यार आदर्श संस्कार दया अब कहाँ ,
लोभ लालच द्वेष ईर्ष्या बो रहा अब क्यारी में ll

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

Saturday, February 14, 2015

३ जनवरी २०१५ का चित्र और भाव




नैनी ग्रोवर 
--- उस और ---

चलो चलें उस और, जहाँ कोई भी जाता ना हो,
सब हों जहाँ एक सामान, जात-पात से नाता ना हो..

जहाँ कोई ना अकेला हो, बस खुशियों का मेला हो,
हर दिल में हो प्यार ही प्यार,
नफरत का बोल किसी को भाता ना हो..

ना हों शहरों के धुएँ, ये भयंकर शोरोगुल ना हो,
ठण्डी ठण्डी हवा चले,
खेतों खलिहानों का संग सुहाता हो...

चलो चलें उस और जहाँ कोई भी जाता ना हो ..!!



Pushpa Tripathi 
~ चले कदम हम एकजुट होकर ~

सही राह पर चले हम
एक दिशा में बढ़े कदम
मुश्किल नहीं अच्छाई ko जीतना
झूठ में पलता कई सौ 'भ्रम ' ……!!

सुलग रहा मरघट की आग
इंशानी नकाब में घूमे बाघ
थम गया शहर, जिन्दा जो दौड़ता
देखा कभी आबरू को लूटता ……!!

हाहाकार मचे जब चारों ओर
एकजुट हो जाना सत्य की ओर
हर एक दिलों में जगह बनाकर
अन्याय विरुद्ध राग तीर चलाकर
ऐसे दानव का करना सब अंत .......!!



Negi Nandu 
" मार्गदर्शक "

मैं बनूँगा मार्गदर्शक ,
बस तुम मेरे साथ रहना
बनाता हुआ में पथ पग पग,
बस तुम उस पथ पर चलना...............

आवाज बनूगां में तुम्हारी,
तुम मेरे शब्द बन जाना
निर्बल भी सबल बनेगा,
बस हम सबको हे साथ रहना

कुछ अंकुर ऐसे भी होंगे,
फुट पढ़ेंगे काँटें बन के l
पहचान करना तुम उनकी;
बस एक दूजे का विशवास न खोना

आएंगे कई क्षण ऐसे भी,
आएंगे कई क्षण ऐसे भी,
मतभेद होंगे हममे भी
कुछ अमृत ही निकलेगा मंथन से,
बस तुम मन-भेद न होने देना

मैं बनूँगा मार्गदर्शक ,
बस तुम मेरे साथ रहना
बनाता हुआ में पथ पग पग,
बस तुम उस पथ पर चलना.........



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~कर्तव्य~

थी कठिन डगर, हौसला बहुत था मगर
झूठ से किया पर्दा, सच्चाई से मिली नजर
कही दिमाग चला, कही काम किया जिगर
कही मिला भरोसा, कही चला आस लेकर

आपका साथ और सहयोग सदा बना रहे
कठिन राह पर यूं ही मार्ग सहज बनता रहे
किस्मत का प्रतिबिम्ब, सदा मुस्कराता रहे
अपनों का मिले प्रेम, प्रेम संचार यूं होता रहे

वो देखो पुकार रहा, अब हमें कर्तव्य हमारा
शायद वही से, भाग्य अब उदित होगा हमारा
उभरेगा यही से अब, ऐश्वर्य का सितारा हमारा
सफलता से अब मिलन होगा तुम्हारा हमारा



अलका गुप्ता 
~~~~~सच्चाई की राह~~~~~

चलो साथियो नई दिशा इक दिखलाई है |
पथ-प्रदर्शक सच्चाई की राह चमकाई है |
साथ बढ़ाएं कदम..मुश्किल हों चाहें बाधाएँ...
सब पार करेंगे मिलकर हम..हर कठिनाई है ||

जाति-धर्म ऊँच-नीच अमीरी-गरीबी तो गहरी खाई है |
गिरा गर्त में गहन त्रास से धरती माँ हर बार दहलाई है |
दूर करो..भेद-भाव वैमनष्य विषैले ..मन के ये काँटे...
हर भारत वासी ही..सच मानो अपना ही बंधु-भाई है ||



बालकृष्ण डी ध्यानी 
~ चल आगे ~

रह ना जाये कोई पीछे
चल आगे

तीर तरह लक्ष्य भेद ले
चल आगे

देख ना पीछे सब चलें आगे
चल आगे

छोड़ ना साथ कोई ना भागे
चल आगे

टोली में रहे सदा एक साथ हम
चल आगे

आगे बढ़ना ही ये जीवन है
चल आगे

सुख-दुःख सब के अब चुन ले
चल आगे

रह ना जाये कोई पीछे
चल आगे


कुसुम शर्मा 
~ चल सको तो चलो~

उधर कई मंज़िले है जो
चल सको तो चलो
सभी है भीड़ में तुम भी निकल
सको तो चलो
बने बनाये है साँचे जो ढल सको तो चलो
राह चाहे कितनी कठिन हो
कठिन राह को भेद कर
चल सको तो चलो
यहाँ कोई किसी को रास्ता नही देता
ख़ुद रास्ता बना कर आगे बढ़
सको तो चलो
सु:ख, दु:ख, दूप,छांव को सह कर अगर चल सको तो चलो



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