Thursday, April 8, 2021

तकब ०३/२१ रचनाएँ व परिणाम



तकब ०३/२१
प्रिय स्नेही मित्रों
सप्रेम नमस्कार! आपके समक्ष उपस्थित हूँ २०२१ की तीसरी प्रतियोगिता के साथ।
पिछली बार की तरह इस बार से अन्य निर्णायकों के साथ हम पिछली बार के विजेता सदस्य को भी आमंत्रित कर रहे हैे रचित रचनाओं में से दो रचनाओं को चुनने के लिए। इस प्रतियोगिता में उनकी भूमिका के साथ उन्हें रचना केवल प्रोत्साहन हेतु लिखनी होगी और अपनी चुनी हुई दोनों रचनाओं की समीक्षा भी मुझे संदेश रूप में निर्णय के साथ भेजनी होगी। इस बार निमंत्रण दे रहे है तकब ०२/२१ की विजेता सुश्री ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार जी को।
बाकी प्रतियोगिता के नियम
आप सभी से आग्रह है कि नियमों का पालन अवश्य करें, जिसके लिए उन्हें पढ़ना भी जरूरी है।
तकब ०३ /२१
१. इस बार की प्रतियोगिता में चित्र विषय अंकित हैI  आप को अपनी रचना में इसके प्रभाव को सम्मिलित करना हैI कम से कम १० पंक्तियां किसी भी विधा में लिखिये और साथ ही उसका शीर्षक व अंत मे एक टिप्पणी अपने उदृत भावों पर अवश्य लिखिये।
२. चित्र पर रचना नई, मौलिक व अप्रकाशित होनी चाहिए।
३. प्रतियोगिता के वक्त लिखी हुई रचना/पंक्तियों पर पसंद के अलावा कोई टिप्पणी न हो। हां यदि किसी प्रकार का संशय हो तो पूछ सकते है। निवारण होते ही उन टिप्पणियों को हटा दिया जाएगा।
४. आप अपनी रचना किसी अन्य माध्यम में पोस्ट तभी कर सकते हैं जब प्रतियोगिता का परिणाम आ जाये और ब्लॉग में शामिल कर लिया गया हो।
५. प्रतियोगिता हेतु रचना भेजने की अंतिम तिथि २६ मार्च फरवरी २०२१ है।
६. निर्णायक मंडल के सदस्य केवल प्रोत्साहन हेतु अपनी रचनाएं भेज सकते हैं। आग्रह है कि वे समय से पहले भेजे अन्यथा प्रोत्साहन का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
धन्यवाद, शुभम !!!!
आपका अपना प्रतिबिम्ब




सुश्री अलका गुप्ता 'भारती'
इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर रहीं।
अलका जी को हम सब की ओर से बहुत - बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनाएँ।
 


वालीवुड सिनेमा
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
(अतिथि रचना)
 
वालीवुड सिनेमा
व वास्तविक जीवन
एकदम बेमेल,,,,,
आजकल हो गया है
चलचित्र-विचित्र मनोरंजन !
आए दिन हिन्दूधर्म का उलंघन!
जिंदगी व फिल्म
एक दूजे से हुए हैं भिन्न,
जीवन शैली परिवार की,
वास्तविक जीवन की,
अपने अपने धर्म व संस्कार की
स्वयं को अनुप्राणित करती है !
फलती फूलती व सम्भालती है !
आज का वालीवुड ,
नग्नता,फूहडपन का मिसाल है!
भारतीय समाज की संस्कृति सभ्यता से विपरीत ,
फिल्म की असभ्य चाल है !
नसेडी गंजेडियो का वालीवुड में प्रवेश है !
नव युवा,युवतियों के लिए
अंधकार मय भविष्य का समावेश है !
कहीं नहीं दिखता
वास्तविक जीवन
सिर्फ दिखावा व मनोरंजन है !
कभी सिनेमा जीवन के पास था !
भोला मन ,भोला प्यार
हृदय मे भरता प्रेम का एहसास था!
किन्तु,
आज का नायक
हो गया है महानालायक
बस कूद- फांद कलाकारी,,,
भाई,भतीजावाद की अन्याय पूर्ण
तानाशाही व मारामरी,,,,
विशेषकर ,ऐय्याशी है भारी !
आए दिन हीरो -हीरोइनें की हत्या,
नए उत्कृष्ट कलाकारों की
मानसिक हत्या,
यही वालीवुड की समस्या!
 
[टिप्पणी]
आज का सिनेमा कहीं भी वास्तविक जीवन से मेल नहीं खाता है करोड़ो की लेन देन,माफिया गैंग का अधिकार,पाश्चात्य शैली की नग्नता का अनुसरण, आए दिन हिन्दू धर्म का उलंघन, यही रूप समाज परिवार को बर्बाद कर रहा है,,,,
 
 
 
 
तन राता, मन सेत
गोपेश दशोरा
 
दूर से कितना अच्छा लगता,
फिल्मी दुनियाँ का संसार।
पास में जाने पर है दिखता,
शोहरत के नीचे का अंगार।
यहाँ समझौते की चढ़े बली,
तब इस नाली की खुले गली,
फिर लड़ना पड़ता अपनों से,
हर कदम यहाँ पर मौत खड़ी।
इस चकाचैध के पीछे की,
कालिखता नजर नहीं आती।
इनको अपना आदर्श बना,
नव पीढ़ी सम्भल नहीं पाती।
फिल्मी पर्दे पर जो दिखता,
वह केवल कपोल कल्पना है।
निज जीवन इनका देखो तो,
वीभत्स सा कोई सपना है।
मदहोशी का आलम दिखता,
सब लड़का-लड़की धुत्त रहे,
चरित्र का तो पूछो ही मत,
बिन शादी के ही संग रहे।
इनका हर सही-गलत कदम,
दूनियां को दिखाया जाता है,
है बदनामी का डर किसको,
बस सब पैसो की माया है।
कोई फंदे पर लटका मिलता,
कोई छत से नीचे गिरता है,
खुदकुशी उसे दुनिया कहती,
सच सस्ते दामों में बिकता है।
कैमरे पे कोई कितना हँस ले,
पर सत्य तो ज्ञात स्वयं उसको,
जब ऊपर होगा इन्साफ कभी,
माफ़ी दे पायेगा क्या खुद को।
 
[टिप्पणी]
टिप्पणीः फिल्मी पर्दे की दुनियाँ जितनी सुनहरी दिखती है दरअसल अन्दर से उतनी ही गन्दी है। यदा-कदा जब यह रूप सामने आता है तब हकीकत दुनियां के सामने आती है। ऐसी स्थिति सामने आने पर उनके माता-पिता पर क्या गुजरती होगी, सोच कर भी डर लगता है।
 
 
बोलीवुड तब और अब
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
(प्रोत्साहन हेतु)
 
वो दौर कुछ और था
जब धर्म – संस्कृति संग
समाज और देश
पर फिल्मांकन होता था
नायक और नायिका का
अभिनय व् मनोरंजन से नाता था
कुछ अपवादों संग
अच्छी अच्छी कहानियाँ
और फिल्मों के मधुर गीत
जन - जन के मन को भाते थे
लेकिन आज चित्रपट अधिकांश
श्रध्दा और संस्कृति संग भद्दा मजाक है
छल - कपट का इसमें बोलबाला है
नाम और काम की खातिर
बाज़ार बनने को मजबूर बालीवुड है
पाश्चात्य संस्कृति की आड़ में
भारतीय संस्कृति को मिटाना चाहते है
नशा, आतंक, अपराध और
अश्लीलता के कारोबार को
लगता घर - घर पहुँचाना उद्देश्य है
माध्यम वर्ग बहुत प्रभावित हुआ है
अपराध को तो मानो पंख मिले है
देख इनकी लोकप्रियता
युवा होता उत्साहित, अनुसरण करता है
इसके दुष्प्रभावों में फिर घिरता जाता है
बोलीवुड की झूठी शान का भ्रम जाल
दिन प्रतिदिन विस्तार पा रहा है
मेरा देश
इस कारण से पिछड़ता जा रहा है
संस्कृति और संस्कार भूल रहा है
रील और रियल लाइफ का यही सच है
 
[टिप्पणी]
इसमें कोई दो राय नहीं कि आज हमारी पीढ़ी पर बोलीवुड का विपरीत प्रभाव अधिक है. आज़ादी के नाम पर अपने उद्देश्य में बोलीवुड कामयाब भी हो रहा है. चिंताजनक है ...
 
 
 
रील लाइफ/ रीयल लाइफ
मीता चक्रवर्ती
 
 
चेहरे पर चेहरा लगाए
ये असली नकली चेहरे
ऐसा लगता है मानो
सच पर है झूठ के पहरे
झूठे हैं आंसु इनके
झूठी है मुस्कान
झूठे सारे जज्बात इनके
झूठी ही है पहचान
युवाओं को पथभ्रष्ट करे
देकर गलत ये संदेश
पाश्चात्यता को दे बढ़ावा
बनाए ऐसे परिवेश
हम जैसे हैं वैसे भले
ना चाहें झूठी शान
अच्छे हैं चाहे बुरे हैं
झूठी नही हमारी पहचान
अगर प्यारी है अपनी संस्कृति
गर प्यारा है अपना संसकार
तो करना होगा रीयल लाइफ से
इस रील लाइफ का बहिष्कार ।।
 
 
[टिप्पणी]
रील लाइफ मे कुछ भी रीयल नही होता है , सबकुछ एक छलावा होता है ।ये गलत बातों को भी इतने खूबसूरत अंदाज मे पेश करते हैं युवा पीढ़ी इनके चमक दमक मे भ्रमित हो जाती है
 
 
फिल्म
अलका गुप्ता 'भारती' ( विजेता )
(दोधक छंद आधारित मुक्तक - मापनी २११-२११-२११-२२)
 
भ्रष्ट किए ..सब गोरखधंधे ।
फिल्म जमीं ठुमकों पर गंदे।
मानस पोषित कर विकारी...
जिस्म फरोश हुये यह धंधे ॥
व्याकुल दर्पण मैल लगा है।
द्वंद उठे मन.. दुष्ट व्यथा है ।
कुंठित लोक कलंक सजाए...
बींध दिए सच वो अकथा है ॥
आनन फानन ..धूम धड़ाके।
जंगल जंगम प्राण ..धरा के।
लोक न लाज,दिखा व्यभिचारी...
रौंद दिया छल फिल्म दिखा के ॥
लील गये मन भंजक सारे।
सत्य सजीव मिटा,मद मारे ।
शोणित से पथ छोड़ गए वो...
नायक ये नकली दिल कारे ॥
 
[टिप्पणी]
आज की फिल्मे और नायक समाज को दूषित कर रहे हैं।
 

Friday, March 5, 2021

तकब ०२/२१




तकब ०२/२१
प्रिय स्नेही मित्रों
सप्रेम नमस्कार! आपके समक्ष उपस्थित हूँ २०२१ की दूसरी प्रतियोगिता के साथ।
पिछली बार की तरह इस बार से अन्य निर्णायकों के साथ हम पिछली बार के विजेता सदस्य को भी आमंत्रित कर रहे हैे रचित रचनाओं में से दो रचनाओं को चुनने के लिए। इस प्रतियोगिता में उनकी भूमिका के साथ उन्हें रचना केवल प्रोत्साहन हेतु लिखनी होगी और अपनी चुनी हुई दोनों रचनाओं की समीक्षा भी मुझे संदेश रूप में निर्णय के साथ भेजनी होगी। इस बार निमंत्रण दे रहे है तकब ०१/२१ की विजेता डॉ.विजय लक्ष्मी भट्ट शर्मा जी को।
बाकी प्रतियोगिता के नियम
आप सभी से आग्रह है कि नियमों का पालन अवश्य करें, जिसके लिए उन्हें पढ़ना भी जरूरी है।
तकब ०२ /२१
१. इस बार दिए गए चित्र / तस्वीर पर कुछ शब्द अंकित है व् चित्र भी हैI आप को अपनी रचना में कोई भी एक शब्द/विषय या मिश्रित को सम्मिलित करना हैI कम से कम १० पंक्तियां किसी भी विधा में लिखिये और साथ ही उसका शीर्षक व अंत मे एक टिप्पणी अपने उदृत भावों पर अवश्य लिखिये।
२. चित्र पर रचना नई, मौलिक व अप्रकाशित होनी चाहिए।
३. प्रतियोगिता के वक्त लिखी हुई रचना/पंक्तियों पर पसंद के अलावा कोई टिप्पणी न हो। हां यदि किसी प्रकार का संशय हो तो पूछ सकते है। निवारण होते ही उन टिप्पणियों को हटा दिया जाएगा।
४. आप अपनी रचना किसी अन्य माध्यम में पोस्ट तभी कर सकते हैं जब प्रतियोगिता का परिणाम आ जाये और ब्लॉग में शामिल कर लिया गया हो।
५. प्रतियोगिता हेतु रचना भेजने की अंतिम तिथि २० फरवरी २०२१ है।
६. निर्णायक मंडल के सदस्य केवल प्रोत्साहन हेतु अपनी रचनाएं भेज सकते हैं। आग्रह है कि वे समय से पहले भेजे अन्यथा प्रोत्साहन का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
धन्यवाद, शुभम !!!!
आपका अपना प्रतिबिम्ब
 
 
 इस प्रतियोगिता की विजेता है सुश्री ब्रह्माणी वीणा हिंदी साहित्यकार 


नैनी ग्रोवर
~हम क्यों डरें~
 
हम क्यों डरें ?
मृत्यु तो एक बार आनी है,
दिन-प्रतिदिन क्यों मरें ?
 
देश के दुश्मनों, कान खोलकर सुनो,
भारत माँ के टूकड़े करने के,
तुम सपने मत बुनों..
 
छीन लेगें वो आंखे जो ऐसे सपने देखेंगी,
तुम्हें मिटाने को हर माँ,
अपना अपना लाल भेजेंगी...
 
अगर हो फिर भी मन में, भारत में फूट डलवाएँगे,
अपनी माओं से कह आना, के अब वापिस ना आएंगे..
 
जय जवान जय किसान हमारा,
किसी और से अपेक्षा क्यों करें..?
मृत्यु तो एक बार आनी है,
दिन-प्रतिदिन हम क्यों मरें..?
नैनी ग्रोवर
 
टिप्पणी:.. चंद लोग जो हमारे देश में फूट डलवाना चाहतें हैं, ये कीमती सलाह या चेतावनी, ( उनकी मर्जी वो जो समझें) उन्हीं के लिए है ।
 
 
 
 
गोविन्द राम पोखरियाल साथी
~मेरे देश के वीर~
(विधा:हाइकु)
 
 
वीर पहुंचा
मेघों को पार किया
देश ये खिला।।
 
तिरंगा उड़े
वीर सैनिक हंसे
दुश्मन डरे।।
 
वीरों की जान
देश मेरा महान
तिरंगा शान।।
 
भारत देश
वसुधा है कुटुम्ब
देता सन्देश।।
 
हो सर्वोपरि
देश, समाज नित
है राष्ट्रहित।।
 
टिप्पणी: देश के वीर जवानों को तिरंगा और यह देश बहुत प्यारा होता है जिसके लिए वे अपना सबकुछ न्यौछावर कर देते है। एक सैनिक यही चाहता है कि उसके देश के हर नागरिक खुश और सुरक्षित रहे इसलिए हर देशवासी का भी कर्तव्य बनता है कि वह अपने देश समाज का हित मे सोचे।
 
 
 
 
मदन मोहन थपलियाल “शैल”
(प्रोत्साहन हेतु)
~भारत महान~
 
स्नेह में लिपटीं अनगिनत मधुर भाषाएं-
सौष्ठव से परिपूर्ण, गलबहियां करतीं सखी - सहेली सी-
मुस्कान एक जैसी-
लालिमा लिए कपोलों पर-
पृथक मुखाकृति, गड्ड मड्ड इक दूजे में -
दिखती जहां-
वो भारत महान है मेरा ।
 
बहुसंख्यक जाति - धर्म औ
मत-मतांतर, विभिन्नता लिए -
खान - पान औ पैहरन -
रूप भी , रंग भी अलग सा-
प्रकृति की पहचान पृथक संस्कृति-
फिर भी अटूट विश्वास देशहित जहां-
वो भारत महान है मेरा ।
 
बिहू, विदेशिया,गरबा,तपेता, झूमर
, झोरा, लावणी, यक्षगान, भांगड़ा-
आदि में थिरकते नर्तक,
अलग भाव-भंगिमा, भिन्न यश गान,
, तितलियों सी अठखेलियां-
हर मौसम में राग औ रागनी-
चित्र लिखित सी रूप सज्जा हो जहां-
वो भारत महान है मेरा ।
 
कृष्ण, राम-रहीम, बुद्ध , नानक, महावीर के उपासक-
दीक्षा देते नित मानव उत्थान की-
वीर - वीरांगनाओं के लहू से सिंचित वसुधा को करते नमन-
मातृभूमि की माटी से सुशोभित-
रणबांकुरों के ललाट जहां-
वो भारत महान है मेरा।
 
एकलव्य की सी साधना, लक्ष्य अर्जुन का सा ,भक्ति प्रह्लाद की सी-
मिटता नहीं कुत्सित दुष्प्रचार-
से यश जिसका -
अद्भुत, अलौकिक-
वो भारत महान है मेरा।।
 
टिप्पणी: भारत वो देश है जिसका सम्मान विश्व के हर क्षेत्र में सदा से होता आया है। भारत की संस्कृति, सभ्यता और संस्कार हर जगह आदरणीय हैं अतः सदियों तक भारत की गरिमा अक्षुण्ण रहेगी ।
 
 
 
अलका गुप्ता 'भारती'
।। पञ्चचामर छन्द ।।
121 212 121 212 121 2
( 12 12 12 12 12 12 12 12 )
******
~महान देश हिन्द~
**************
उठो सपूत देश भक्त
भारती पुकारती ।
बली बनो सशक्त हो
अजेय हो गुहारती ॥
 
हटो नहीं डटो...
अपूर्ण है स्वतंत्रता अभी ।
सजीव दिव्य देश भक्ति...
भाव पूर्ण हों तभी ॥
 
महान हिन्द देश है...
अखंड ज्योति वेद भी।
अनादिकाल सभ्यता ...
कथा यहाँ अनेक भी ॥
 
उजाड़ नीव भ्रष्ट तंत्र की,
..धरें उदारता ।
मिटें सदा यहीं...
जमीर है हमें पुकारता ॥
 
टिप्पणी: देश भक्ति भावना का आह्वान करना ।
 
 
 
 
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
 
~ वंदे मातरम् ~ नव गीत
 
भारत माता
चरण वंदे
जन गण भाग्य विधाता !
सुजलाम् सुफलाम्
धरणी शश्य श्यामलाम्
हिन्दी की बिंदिया चमके
देश की गौरव गाथा गाए !
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
राष्ट-ध्वजा फहराए !
भारत देश हमारा,,,,,,,,,,,,,

हिम किरीट सिरमौर धरे,
उतंग हिमालय खड़ा,,,,,
बन स्वदेश का रक्षक प्रहरी
शत्रु विनाश को अड़ा,,,,
चरणों में नित गंगा यमुना
पावन नदियाँ लहराएँ!
भागीरथी महा त्रिवेणी,
कलिमल नाश कराएँ !
सबसे प्यारा ,,,सबसे न्यारा
भारत देश हमारा,,,,,,,,,,,,,,,

सदा राष्ट्र हित आंदोलन हो
देशद्रोह मिटाएं,,,
वायू सेना,जल थल-सेना
सबकी शक्ति बढाएँ,,,,
नमन स्वदेश है,, नमन वसुंधरा
बहे गंग की धारा ,,,
भारत देश हमारा,,,,,,,,,,,,,

दुश्मन की हर साजिश को,
हम कभी ना बढ़ने देंगे !
क़दम बढ़ाया ज्यों कुटिल जन,
वक्ष चीर हम देंगे
देश महान,जय जवान,,
विजयघोष कर लेंगे
सत्य ,अहिंसा धर्म हमारा
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा !
सबसे अच्छा,सबसे न्यारा
भारत देश हमारा!!!!
 
टिप्पणी: हमारा प्यारा भारत वर्ष स्वदेश सदैव प्रगति -पथ पर आरूढ़ रहा,,,चार धर्म निभाता हुआ अपने वैभवशाली भारतीय जीवन शैली से ओतप्रोत रहा ,,,हमारा कर्तव्य है सदैव देशभक्ति व देश हित का समर्थन करे ,,,देश के जवान हमारी शान ,,,तिरंगा सिर्फ ध्वज नहीं वरन स्वदेश का प्रतीक है इसका अपमान नहीं होना है,,,इन्हीं सब राष्ट्र प्रेम को हमने काव्य लेखनी में उकेरना का प्रयास किया है जयहिन्द
 
 
 
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
(प्रोत्साहन हेतु)
~संस्कृति और संस्कार हमें बचाना है~
 
भारत माँ का स्वाभिमान बढ़ाना है
भारत को अपने सर्वश्रेष्ठ बनाना है
लेकर प्रतिज्ञा हम को एक हो जाना है
संस्कृति और संस्कार हमें बचाना है
 
शिक्षा देकर अज्ञान को दूर करना है
देशहित और देशद्रोह को समझाना है
विद्यालयों में राष्ट्रप्रेम पढना, बताना है
संस्कृति और संस्कार हमें बचाना है
 
सेना और जवानों का मान बढ़ाना है
कैसे करे सम्मान सबको सिखाना है
देशभक्तों से सबको परिचित कराना है
संस्कृति और संस्कार हमें बचाना है
 
समाज व् देश में फूट डालने वालों को
अभिव्यक्ति का मतलब हमें समझाना है
तिरंगे को अपमानित करने वालो से
संस्कृति और संस्कार हमें बचाना है
 
फूट डालने वालों को हमें पहचानना है
धर्म कर्म के भाव को हमें अपनाना है
खंडित करने वालो को सबक सिखाना है
संस्कृति और संस्कार हमें बचाना है
 
टिप्पणी: आज भारत को तोड़ने और विश्व पटल पर उसके बढ़ते सम्मान को कुचलने का जो प्रयास करते है उनसे मन बहुत क्षुब्ध है ... शिक्षा कुछ इस तरह हो कि केवल राष्ट्र हित पहले देखने वाला समाज पैदा हो
 
 
किरण श्रीवास्तव
~भारत माँ~
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आन बान और शान तुम्हारी
बढ़ती रहे बढ़ती जाए ,
नजर उठाने से भी घबराए
शत्रु में ऐसा भय हो ,
भारत मां तेरी जय हो...!
 
जाति-पाती का भेद ना हो,
हर धर्म का हो सम्मान यहां ,
एकता और अखंडता का
अब ना कोई भी क्षय हो ,
भारत माँ तेरी जय हो ....!!
 
मर मिटेंगे तेरी खातिर
आंच नहीं आने देंगे,
सीमा पर प्रहरी बनकर
जान लड़ा दे ना संशय हो ,
भारत माँ तेरी जय हो....!!!
 
टिप्पणी: हमारा दायित्व है कि हम जो भी करें अपने देश के हित में करें| भारत माता की सदा जय हो
 
 
स्नेहप्रभा खरे
~कुण्डलिया छंद~
 
सरहद पर हँसते चले, प्यारे वीर जवान
जग रौशन कर जायगा ,मेरा देश महान
मेरा देश महान , कहे घर में रम जाअो
बहिष्कार हो चीन , यहाँ सोना उपजाअो
बनो आत्मनिर्भर ,बजाअो भेरी अनहद
दुष्मन को दें मात ,चलें हम हँसते सरहद॥
 
टिप्पणी: हमारा देश महान है दुश्मनो से लोहा लेने के लिये हमारे वीर जवान हर छण सरहद पर तत्पर रहते है आत्म निर्भर बनने केलिये हम हर सम्भव कोशिश करे दूसरे देशो को मात दें।
 
 
 
 
कुसुम शर्मा
~बंद करो~
 
बंद करो अब राजनीति को ,बंद करो मतभेदों को !
मृत जवानों की लाशों से ,मत सींचो अपनी गद्दी को !
वो तो भारत माँ के वीर पुत्र थे ,न कि राजनीति के कोई अंग !
शर्म करो कुछ तो इन से सीखो
बंद करो आडम्बरो को
भारत माँ के बेटों पर दुश्मन ने प्रहार किया !
उस दुश्मन को मारो न एक दूसरे पर प्रहार करो !!
 
भारत माँ की रक्षा मे वीरों ने जान गवाई !
तुमने तो जात पात की नीति पर अपनी राजनीतिक चलाई !
कभी पैसों पर कभी भूमि पर जनता को भड़काते हो
एक कुर्सी के पीछे कितने खेल रचाते हो !
रात को फिर एक ही थाली में खाते हो !
बंद करो इस आडम्बर को जनाता को सुख से जीने दो !
बनना है जो प्रधान तो जाओ खुद फिर बोर्डर मे !
रक्षक बन कर रक्षा करो न कि भक्षक बन जाओ
लहू बहा कर अपना फिर तुम अपना झण्डा लहराओ
नही तो बंद करो इस राजनीति को न जनता को भड़काओ
अपनी गन्दी राजनीति से देश को न बरबाद करो
पहले ग़द्दारों को पकड़ो फिर देश पर राज करो !
 
टिप्पणी:- आज कल हो रही भारत में गन्दी राजनीति ! जिन्हें सिर्फ़ अपनी कुर्सी से प्रेम है न की देश से !
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