Friday, August 23, 2013

17 अगस्त 2013 का चित्र और भाव




बालकृष्ण डी ध्यानी 
हम दोनों

अलग अलग हैं
हम दोनों
पर कुछ तो बात है
जो एक साथ हैं
अलग अलग हैं
हम दोनों

जैसे दिन है
ये रात है
दोनों में
कुछ ख़ास है
पर कुछ तो बात है
अलग अलग हैं
हम दोनों

रह भी ना पाते दूर
ना रह पाते पास
चुम्बक सा साथ
दुःख सुख साथ है
पर कुछ तो बात है
अलग अलग हैं
हम दोनों

दो किनारे है हम
एक दूजे के सहारे है हम
बहते जाते हैं साथ साथ
लगते कितने प्यारे हैं
पर कुछ तो बात है
अलग अलग हैं
हम दोनों


जगदीश पांडेय
जिंदगी को बेंच कुछ पल चुरा लाया था मैं
एक तेरे सिवा कुछ भी तो न पाया था मैं

तुम ही तो कहती थी हर घडी ये मुझसे
जिंदगी थी तू मेरी एक तेरा साया था मैं
तेरी पलकों में बसा था मैं ख्वाब बन के
आती थी खयालों में दुल्हन सी सज के
तन्हाँ रातों को कभी सुला न पाया था मैं
जिंदगी थी धूप तेरी तो एक छाया था मैं
एक तेरे सिवा कुछ भी तो न पाया था मैं

आज मेरी मंजिल से क्यों तुम बहक गये
तुम्हारे बहकनें से आज आँसू छलक गये
जा रही थी जिंदगी जब मुह मोड कर
तोड कर सारे रिश्ते मौत से जोड कर
गुमसुम सी खडी थी तुम भी उस वक्त
फिर न आनें को गया जब मैं छोड कर
मुश्किल से उस वक्त सम्हँल पाया था मैं
एक तेरे सिवा कुछ भी तो न पाया था मै


Jayvardhan Kandpal 
आज हूँ तुम्हारे साथ, रूठकर क्या पाओगे.
नजर के सामने हूँ,फेरकर नजर क्या पाओगे.

बहुत छोटी है जिंदगी अपने हिस्से की
इस जिन्दगी से इस कदर खेलकर क्या पाओगे.

नहीं है आस्मां पर हुकूमत, जमीं का बाशिंदा हूँ,
मेरे जज्बातों को हवा में उछालकर क्या पाओगे.

फूलों की चाह है, काँटों का भी डर नहीं मगर
गुलशन प्यार का तितर बितर कर क्या पाओगे.

मजबूरियां ना बयां करो मुझसे मजबूरी में,
इस तरह मेरे कलेजे को निकाल कर क्या पाओगे.


भगवान सिंह जयाड़ा 
यूँ खपा हो कर मुझ से,तुम कुछ न पावोगे ,
बेबजह की बातों से,दिल अपना जलावोगे ,

गलत फहमियाँ ,क्यूँ इस तरह पालते हो ,
क्यों खुद के साथ मेंरा भी दिल जलाते हो ,

कब तक घुट घुट कर ,ए जिंदगी जियेंगे,
बेबजह मन मुटाव अब यूँ कब तक सहेंगे,

आवो बहुत हो गयी अब ,मन की बेरुखियाँ ,
आपस में मिल बांटे ,जिंदगी की खुशियां ,

जिंदगी दो दिन की है ,इसे ख़ुशी से जी लो ,
नफ़रत के गुस्से को ,पानी समझ के पीलो ,

यूँ खपा हो कर मुझ से तुम कुछ न पावोगे ,
बेबजह की बातों से दिल अपना जलावोगे ,


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
क्यों?
प्यार क्यों ये रुसवा हो गया
चले थे साथ आज क्यों दूर हो गए
बात से ही बात बनती थी अपनी
उन लम्हों से आज क्यों दूर हो गए
खामोशियों की भीड़ है यहाँ
बातो के सिलसिले आज क्यों टूट गए
चलते थे थाम कर हाथ जहाँ
हाथो के ये बंधन आज क्यों छूट गए
दिलो में बगिया सी संवरती थी
हर फूल आज क्यों पतझड़ से झड गए
वादा था साथ ख़्वाब सजाने का
भूल कर वादा, ख़्वाब आज क्यों टूट गए


अलका गुप्ता 
तुम जो बदल गए हो |
हर समां बदल गया है |
आँखों को जब तुम्हारी ..
हम पर नहीं ऐतवार ..
आइना हम क्यूँ देखें |
दिल कैसे सहेगा बेचारा ..?
सब कुछ तो वही है ..शहर में |
साया थे हम ..इक-दूजे का |
तुम ही बदल गए हो |
बदलने से तुम्हारे ..
बदला ये जहाँ... सारा ||
गर..नहीं....तो लौटा दे !!!
वह हमारा ...प्यार.. !
वह उल्लास कहाँ है ?
वह हास ..मधुमास कहाँ है ?
स्पर्शों का मादक ...
वह ..अहसास कहाँ है ?
मिलने को हमसे ...दिल तुम्हारा |
बेताब ..बेकरार..कहाँ है ?
सब कुछ है...शहर में ..वही
मगर...वह ..!!
मौसम-ए- बहार कहाँ है |
तुम जो बदल गए हो ?
जिन्दगी की राह में ..!
आसान अब वह कहाँ हैं ..?
गुम हो गई हैं मंजिलें !!
जलाए थे हमने तो ..
हर तरफ ..दिए ..मुहब्बतों के |
तुम जो बदल गए हो |
वह मेरा यार कहाँ है ?
यूँ ही हम ..रह गए हैं राहों में ..
दिल ये ..जलाते हुए ..
यादों की शेष अंगारों में |
राख अरमानों की ..समेटे हुए |
तू जो बदल गए हो ..|
हर समां बदल गया है |
साया हर ...कोई ..हमसे
जुदा -जुदा हो गया ||


किरण आर्य 
तुमने कहा प्यार मुझे तुमसे
मैं भीग उठी मीठे अहसासों में
सपने रुपहले लगी बुनने
कदम आसमां लगे छूने
नयनों में लहराने लगे
लाल रक्तिम डोरे
प्रेम की पीग बढ़ाती मैं
विचरने लगी चांदनी से
नहाई रातों में
भोर की पहली किरण सी
चमकने लगी देह
प्रेम तुम्हारा ओढ़ने बिछाने लगी मैं
जीवन हो गया सुवासित
होने लगा उससे प्यार
फिर यथार्थ का कठोर धरातल
कैक्टस सी जमीं
लहुलुहान होते सपने
पर सुकूं तू हाथ थामे था खडा
वक़्त के निर्मम थपेड़े
उनकी मार देह और आत्मा पर
निशां छोडती अमिट से
मरहम सा सपर्श तेरा
रूह को देता था क़रार
फिर एक दिन तुमने कहा
मुक्ति दे दो मुझे
नहीं मिला सकता
कदम से कदम
नहीं बन सकता अब
हमकदम हमसफ़र तेरा
मुश्किल थे वो पल
दुरूह से मेरे लिए
तुम्हारे दूर जाने की सोच ही
दहला देती थी हृदय को
मैंने देखी बेचैनी
तुम्हारी आँखों में
तड़पती मछली सी कसक
और उसी क्षण मुठ्ठी से
फिसलती रेत सा
कर दिया था आज़ाद तुम्हे
तुम दूर होते गए
और फिर हो ओझल
निगाहों से मेरी
आज जब याद करती तुम्हे
एक परछाई सी नज़र आती है बस
हाँ अहसास जीवंत से है अब
साथ मेरे जिन्होंने जीना सिखाया मुझे .........


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Thursday, August 15, 2013

13 अगस्त 2013 का चित्र और भाव

15 अगस्त पर प्रेषित 


बालकृष्ण डी ध्यानी 
अखंड भारत का सपना

अखंड भारत का
सपना संजोये बैठा है ये दिल
फिर हिन्द का परचम लेके
बैठा है ये दिल
अखंड भारत का
सपना संजोये बैठा है ये दिल.....

भारत माँ की टूटी भुजाओं को
जोड़्कर फिर देख रहा दिल
भगवा का सुंदर रंग साथ लेकर
फिर खेल रहा है दिल
अखंड भारत का
सपना संजोये बैठा है ये दिल …

खंडो खंडो में बांटा है आज
उसे एक खंड में जोड़कर देख रहा है दिल
एकाकार सिंह रूप में बिठाकर
खुले मन में विचर रहा है दिल
अखंड भारत का
सपना संजोये बैठा है ये दिल …

तीन रंगों में अब रंग जाने को
बैठा है ये दिल
अपनो को अब संग लाने को
बैठा है ये दिल
अखंड भारत का
सपना संजोये बैठा है ये दिल …


सुनीता पुष्पराज पान्डेय 
अपने देश को अंखड भारत बनाने की हमने ठानी है
एक ही लक्ष्य अब हो हमारा
जिये हम देश की खातिर मर जाये इस देश की खातिर ,
जब तक है जान हमारी
हम देश की आन के लिये अपनी जान लड़ायेगे ,
इस अखंड भारत के सपने को हम पूरा कर दिखलायेँगे


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
खंड होता देख रहा हूँ
अखंड भारत का सपना
अंग्रेजो की निति पर चल रहे
देश को टुकड़े कर नए देश बना रहे
जो थे अपने अब पड़ोसी हो गए
पड़ोसी जब तब आँख दिखाते है
हम फिर भी पड़ोसी धर्म निभाते है

देश जो बचा वो भारत का हिस्सा है
जो हुआ अब तक, समझो किस्सा है
कोई हम पर अंगुली उठाये न पाए
तिरंगे का सम्मान झुकने न पाए
आओ सब देश हित में एक हो जाए
जाति - धर्म न इसमें रोड़ा बन पाए
बंगाल से गुजरात तक
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
अखंड भारत का भाव संचार हो
तन मन में भारत के प्रति प्यार हो
एक आवाज फिर बुलंद हो
वन्दे मातरम् वन्दे मातरम्


Pushpa Tripathi 
- मेरा भारत -

भारत मेरा .. प्यारा भारत है
देश को जोड़ती विभिन्नता की मिसाल है
सिन्धु यहाँ का जोड़ता प्रदेश
एक ही भारत .. मेरा अभिमान है
सभ्यता कई हमें सिखाती
जन जन भूमि पर ध्वज फहराती
रग रग एकता दीप जले
स्वर्ण प्रकाश चालित व्योम रहे
भारत मेरा प्यारा भारत
सदियों सदियों अखंड रहे
जय हिन्द .... जय हिन्द .... जय हिन्द ..!!!


जगदीश पांडेय 
कैसे कहूँ आज मेरा भारत अखंड है
जहाँ भी जाए नजर दिखता खंड है
था कभी नारा जय जवान जय किसान
अब तो बेइमानी भ्रष्टाचारी प्रचंड है
दम तोड रहा है कानून यहाँ
संसद की चार दिवारी में
कोई बना है धृतराष्ट्र यहाँ
तो दुस्सासन व्याभिचारी में


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
कैसे।।।
ह्रदय चीत्कार दबा मैं। .
झूठी जय जयकार करूँ। .
सहमी हूँ। .
देख भविष्य। ।
कैसे माँ की लाज़ ढकूं। .
दिन का चैन। .
महंगाई खा गयी। .
रातों का। ।
धर्म छीने सुकून।
कन्या शूल बन चुकीं जहाँ । .
कैसे उस आँगन पाँव धरुं।
कैसे झूठी जय जयकार करूँ। ।

कैसे देखूँ। .
चीथड़ों मैं माँ। .
टुकड़े कलेजे के। .
दामन से। .
अपना२ कतरन काट रहे। .
धर्म, भाषा, जाति से। .
माँ तेरा। .
कलेजा बाँट रहे।
बेटी हूँ। .
माँ तेरी। ।
तेरा मेरा साथ रहे। .

अँधा कानून जाने सब। .
जब गूंगा होने लगे। ।
देश में गद्दारों की। .
तूती गरजने लगे जब। .
समझो तिरंगा रंग। .
बदलने लगा है अब। .
कैसे फिर तेरे। ।
दामन में माँ। .
नव तिरंगा रंगूँ।
कैसे झूठी जय जयकार करूँ। ।


अलका गुप्ता 
-देश के कायरों से --

देश हो ...... खण्ड-खण्ड !
अखिल विश्व चाहें रो पड़े !
विलग हों .......जन-जन !
कौम की ....... आड़ में !
संभाल लो ......अस्त्र को !
रक्त से ......भाई के रंगो !
मार दो .... मानवता को !
सिर ना फिर .. उठा सके !
तोड़ दो सहृदय हाथ-पाँव ..
साह्यतार्थ ..जो मचल उठें !
सूनी हों ....... माँग भी...
माँ विकल.....सिसक उठें !
मींच लो !...... मींच लो !
कायरों !..निज आँख को !
नमन करो .....उद्दण्ड हो !
आज के ..आतंकवाद को !
भूल जाओ !...अतीत के...
देश-हित ...रक्त-दान को !
सोचना मत...भविष्य को !
देखना .... चुपचाप सब ...
देश में ! ............ चाहें ...
बेकसूर ...... मारकाट हो !



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Monday, August 12, 2013

7 अगस्त 2013 का चित्र और भाव



बालकृष्ण डी ध्यानी 
देश खड़ा बस रह जाता है

बनकर तमाशा अपने खुद का
राहे दिल ये संसद का मजाक उड़ते हैं
देश खड़ा बस रह जाता है

लहूलुहान हुई देश की सीमायें मेरी
वोटों की दीवारों का मकबरा सजाते हैं
देश खड़ा बस रह जाता है

रहते हैं हर वक्त जवाँ सरहदों पर जवान
गोलियों को वो अपने सीने में खाते हैं
देश खड़ा बस रह जाता है

अलविदा कर हिन्दुस्थान को जब
वो अपने वतन पर धराशायी हो जाते हैं
देश खड़ा बस रह जाता है

दिल रोता है बस कुछ देर ये आंसूं
कुछ देर बाद वो भी शांत हो जाते हैं
देश खड़ा बस रह जाता है

सफेद पोश खाकी का बुरा हाल इतना
सहादत पर उनकी बस एक तमगा पहनाते हैं
देश खड़ा बस रह जाता है


भगवान सिंह जयाड़ा 
समझ नहीं रहा पाक अगर हमारी भाषा ,
तो क्या कर सकते है हम पाक से आशा ,

कुर्बानी कब तक हम अपने जवानो की देंगे ,
बदला जरूर हम इस का ,अब ले कर रहेंगे ,

उस की भाषा में ही अब जबाब देना होगा ,
कब तक भारत ,चैन की नीद अब सोगा ,

मुहँ तोड़ जबाब अब पाक को देना होगा,
यही अब भारत के हित में यूँ उत्तम होगा ,

देख सरकार का रुख ,दिल सबका रोता है ,
क्यों यह बार बार ,पाक की जुर्रत सहता है ,

एक बार तो आर पार की होनी चाहिए जंग ,
कब तक होते रहेंगे पाक से इस तरह तंग ,

यह हर बार हम से दोस्ती की बात करता है ,
और पीठ के पीछे से ,हम पर छुरा घोपता है,

समझ नहीं रहा पाक अगर हमारी भाषा ,
तो क्या कर सकते है हम पाक से आशा ,



जगदीश पांडेय 
संसद की चार दिवारों में देखो
हो रहा है देश निलाम हमारा
खो गई गरिमा अशोक स्तंभ की
जो अब तक था पहचान हमारा

राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर
ढोंग अब यहाँ सब रचाते हैं
तिरंगा देश की शान है केवल
एक दिन सब शोर मचाते हैं

कहाँ समझ पाये ये सफेदपोश्त
जो बदनामी का रंग लगाते हैं
अपना खून खून है और
औरों का पानी बतातें हैं

क्या फर्क इन्हें सरहद पर
जवान न्योछावर हो जाये
माँ भारती की आखों के
सपनें चाहे खो जाये

अब न होने पाये लाल हलाल
न हो माँ को अब कोई मलाल
क्यूँ नही समझते देश के रक्षक
लाल की माँ कर रही है सवाल

गरिमा देश की तुम पहचानों
अपनें आप को अब तुम जानों
शहीदों की चिताओं पर अब
न होनें पाये अब कोई बवाल.
लेकिन
देख बेटों की ये शहादत
माँ का कलेजा फट पडा
दिल के टुकडे हुवे हजार
और बोल ये निकल पडा

तुम्हें ढूँढे मेरी निगाहें
जानें कहाँ हो तुम
अब तो लौट आओ
चाहे जहाँ हो तुम
.
जय हिंद , जय भारत , वंदे मातरम्


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
सब बिसरा वो बैठा सीमाओं पर..
गर दुश्मन भरे बारूद
प्रहरी तू अंगार भर, निगाहों पर। .

तिरंगे की रखने आन बान। .
हर बार न्यौछावर तेरे प्राण।
शीत, लू, ऋतुओं का तुझ पर असर नहीं। .
स्वेत वस्त्र धारी, बस जिह्वा चला रहे।
बाँट चुके ये देश भीतर, गुलामी में कसर नहीं। ।

हर शहादत पर इनकी शाब्दिक लीपापोती। .
कब तक शहादत, नापाक इरादों को रहेगी धोती। ।
ढहने को है शीश माँ का।
ये बैठे संसद कफ़न का पट नाप रहे..
नित हिन्दू मुस्लिम का मंत्र जाप रहे। ।
बेटे, आज जाति, धर्म, भाषा पर ज़मीन नाप रहे। .

कब तक माँ भारती सीने पर तेरा लहू सहे। .
कभी सीमाओं पर इनका भी लहू बहे। .

आज तिरंगा यही कहता नजर आता है। .
दफ़न कर दो मुझे भी, हर शहादत पर।
इससे पहले मेरे रंग मिटने लगे।
बंटवारे में फिर से माँ के..
अंग अंग कटने लगे…

नूतन डिमरी गैरोला
ओ मेघ
कितना बरसोगे
इस रात की स्याही में तड़ित
कितना चमकोगे
गरजना है तो कराल सा गरज
जा कर सीमा पार दुश्मन की छाती पे बरस
आवाम है आजाद
पर नेश्तानाबूत आजादी है
युद्द न होना है भली बात पर
पर बिन युद्ध
निरीह सैनिकों के लहू की
ये कैसी बर्बादी है|
मार दिए जाते है कपट से
गर्दने उतार ली जाती हैं झपट से
और संसद में आवाम की भलाई के लिए
एक मत न्यायसंगत नहीं होता है पारित
जूतम जूता और कुर्सी के लिए
खुनी युद्ध होता है ...
मूक रहे अशोक चिन्ह के
चार सिंह
चार दिशाओं में
हमेशा रहे इक दूजे से असहमत .........
क़ानून ने तो पहले ही
बाँध ली थी आँखों पर काली पट्टी
पर अब बापू जी के तीन बन्दर
बघिर, गूंगे ही नहीं अंधे हो चले हैं ...
अब रात घनी काली हो चली है
उम्मीदों की पोटली अब
भेदभाव की आंधी में बिखर चुकी है
माँ का कलेजा रो रो कर छलनी हो चुका है
तिरंगा अब शान नही
बेकसूरों की शहादत का
बस कफ़न हो चुका है ....
ए मेघ तू तुझसे है अनुनय विनय
अब तू ले संग तड़ित
कर विकराल गर्जन
सरहद पार जा कर
दुश्मन पर
बज्र का आघात कर
उनकी छाती पर बरस............


Pushpa Tripathi -
 राजकीय सलामी ...

नहीं बोलते सोचते कुछ
संसद सदन निद्रा में चूर
कुछ कुछ ढफली राग मचाते
बाहर से ही शान दिखलाते
बिछ रही लाशें कितनी
सरहद पर चाहे जितनी
सर कट जाते गोलियों की मार
शहीद सैनिकों की दशा हर बार
टूटती चूड़ियाँ विलाप जो करती
वर्दी से झर झर लहू ही बहता
आंखों का पानी गाढ़ा होकर
अंतिम संस्कार की पेटी उठाता
देह अमर बन 'अमर शहीद '
राजकीय सलामी हम भी देते ...!!!


अलका गुप्ता 
शहीदों की चिताओं पर...
लगेंगे हर वरस मेले |
बदल दो तारीख में ...
आज की ...
उनके ये अल्फाज ||

शहादत पे शहीदों की...
उठेंगे सियासत के झमेले |
तड़पती है हर आत्मा...
सियासी ..इन जंजीरों में |
सुनी जाती नहीं ...
चीखें मजलूम...!!!
इन संसदों में ||

गर्व है देश को सारे ...
अपने उन वीरों पर
वह थे वीर सपूत ...!
झेले हैं जिन्होंने ...
डटके दुश्मन के ...
हर कायर वार ||

समेटे है ...
गर्व से ...
देखो ...!!!
तिरंगा भी ...
कफन में...
अपने ...
ये लाल !!!

डूबा है दर्द में...
ललकारता ...!
बच्चे-बच्चे का ..
स्वभिमान |
हर आँख मायूस है |
आयेगा कब ...?
सियासत में ...
यही उबाल ||

समझ में आयेगा...
कब आखिर ?
इतनी सस्ती सी नहीं...
ये जान !
ये सरजमीं ....!!!
ये सरहदें हमारी !!!


Pushpa Tripathi 
कट गए बाजू
जो आधार था
पुत्र .. पति .. भाई
जो कुछ सहारा था
सरहद पर मिटने वाले
शाहदत भारत शूर
वतन के खातीर
वह लाल प्यारा था .......



किरण आर्य 
शहीद वो जो देश पर न्योछावर
सर्वस्व अपना कर चले
क्यों बहाए दिल आँसू
तू उनके लिए

वीरगति बलिदान उनका
हो रहा जाया यहाँ
लाश पर उनकी राजनेता
राजनीती है कर रहे

संसंद में बिछी चौसर
शकुनि चाल चल रहे
अशोक स्तंभ और तिरंगा
है स्तब्ध से खड़े
शोर्य गाथा थे जो कहते
आज बेबस है बड़े

देश की रक्षा को तत्पर
जवान खूं से तिलक कर रहे
नेता यहाँ पर देश के मेरे
आश्वासनों की बैसाखियों
पर टिके है चल रहे

देश गरिमा अपनी
आज देखो खो रहा
हाय देखो बेबस सा
खून के आंसू है रो रहा


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
हम
गणतंत्र का करते मान
संसद का करते सम्मान
लेकिन
सस्ता शहीद का बलिदान
नेता देते उट पटांग बयान
हमारी
आन पर हमारी शत्रु हमला करते
सरकारी नेता कुछ कहने से बचते
आखिर
कब तक हम यह सब सहते रहेंगे
कर शांति वार्ता जख्म खाते रहेंगे
अब
हमें देश हित सर्वोपरि रखना होगा
शत्रु को जबाब मुंह तोड़ देना होगा!!

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Tuesday, August 6, 2013

2 अगस्त 2013 का चित्र और भाव




बालकृष्ण डी ध्यानी 
एक पग तो बडाना

हाथी और गेंद
देखो जिंदगी खेले कैसे कैसे खेल
इंसान और जानवर का है ये मेल

खड़ा है हाथी
अपना संतुलन संभाल कर
कितने घरो का वो चुल्हा जलाकर

पकती है उस से किसी घर की रोटी
भूख बिना मेहनत भी है रोती
चलो बच्चों बजा वो ताली

मेहनत से ना हार जाना
उस लगन को तुम ना भूल जाना
देख खड़ा हाथी गेंद पर ,तुम बच्चों आज कुछ सीख जाना

हार नही होती है
असफलता जीत की सीड़ी है
तुम बच्चों एक पग तो बडाना

हाथी और गेंद
देखो जिंदगी खेले कैसे कैसे खेल
इंसान और जानवर का है ये मेल


अलका गुप्ता
इंसान और जानवर का जो मेल हुआ |
अनोखा फिर .. सर्कस का खेल हुआ ||

ये दुनिया तो वैसे भी रोमांच की है |
जीते जो हौसलों से उसकी विजय है ||

इंसान ने भी क्या-क्या गुर बनाए |
हुनर से अपने जानवर भी नचाए ||

हाथी बन्दर कभी .. तोता-मैना नचाए |
खेलें बाल से कभी चढा बेलेंस दिखाए ||

पेट पापी को...बनाना न कातिल कभी |
सीमाएँ मनोरंजन की हों न हिंसक कभी ||


जगदीश पांडेय 
मूक जानवर हाँथी ताकत लिये विशाल
अजब दिखाता खेल करता ये कमाल
पढा विज्ञान में दाब हवा का बेमिशाल
वही प्रयोग कर हाँथी मचा रहा बवाल
किया प्रयोग किनारे समंदर के अपार
लिया ऐपरेटस् के लिये इसनें फुटबाल
अपना सारा बल फुटबाल पे है लगाया
मेहनत हुई बेकार और कुछ न कर पाया
सोचा समझा तब इस निष्कर्ष पर ये आया
अनगिनत हाँथियों का बल हवा में समाया
इंसान ही नही कर सकता केवल विज्ञान में कमाल
जानवर भी करते प्रयोग अपनें तरीके से बेमिशाल


भगवान सिंह जयाड़ा 
देख मेरा यह करतब ,
लोग बजाते है ताली ,
दिल से मेरे पूछो ज़रा ,
मैं इंसान को देता गाली ,
क्यों मुझे कैद किया है ,
मै जंगल का हूँ प्राणी ,
मेरी ब्यथा सुनों ज़रा ,
नित बहे आँखों से पाणी,
कभी बनाया मुझे अप्पू ,
कभी सर्कस में नचाया ,
कभी पिजड़े बंद कर के ,
बहुत मुझको है संताया ,
मजबूरी में मैं करू ये सब
हर पल लगे हंटर की डर,
बरना मैं जंगल का प्राणी ,
रहता था इन से बेखबर ,
देख मेरा यह करतब ,
लोग बजाते है ताली ,
दिल से मेरे पूछो ज़रा ,
मैं इंसान को देता गाली,




किरण आर्य 
गेंद और हाथी

जीवन है एक खेल अजब सा
हाथी घूमे गेंद पर जैसे
घूमे मानुष दिन रैन भटकता

निन्यानवे का फेर है भारी
आकर्षण चुम्बकीय है गज़ब का

दो पैरो पे खड़ा ये हाथी
मानव बैसाखियों पे है घिसटता

बेबस है जैसे ये हाथी
आक्रोशित मानव है सिसकता

कठपुतली बन नाच रहा ये
आम जन बेबस है दहकता

हाथी और मानव का जीवन
है एक जैसी राह खड़ा
एक बेबस एक बेबसी की
राह पे अग्रसर पैर पटकता


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
जीवन में सुख दुःख
बनाते है संतुलन
लेकिन,
कोई छोटा, कोई बड़ा
कोई ज्ञानी, कोई अज्ञानी
कोई ताकतवर, कोई कमजोर
कोई जीता, कोई हारा
कोई दोषी, कोई निर्दोष
कोई जोश में, कोई खोए होश
कोई प्रेमी, कोई दुश्मन
कोई जाना, कोई अनजान
कोई हैवान, कोई इन्सान

काश संतुलन हो कुछ येसा
दुःख कम और सुख हो ज्यादा
हो बड़ी
अच्छाई, सच्चाई  और इंसानियत
छोटी हो
बुराई, झूठ और हैवानियत
बढ़ते रहे
दान, धर्म, कर्म और ईमानदारी
घटते रहे
पाप, अपराध, अपवाद और अहंकारी


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Thursday, August 1, 2013

31 जुलाई 2013 का चित्र और भाव



Pushpa Tripathi 
उड़ रही बनके गुब्बारा

रंगीन सपना दुनिया मेरी
ये ख़ुशी मेरी अपनी है
गुब्बारों संग उड़ चली मै
यह साकार कामयाबी मेरी है ....

सुन्दर सुनहरी पंख लगी है
मन इच्छाओं की डोली सजी है
चल पडूँगी साथ ही तेरे
यह उज्जवल सफ़र अब मेरा है l


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल  
~मैं उड़ चली ~
कल तक
सोचती थी
उडू आसमा में
लम्बी हो
जिन्दगी की डगर
आज पा लिया
रंगीन सपनो का
हकीकत भरा आसमा

अपवाद से
कर लिया किनारा
बदल कर सोच
खुद पर किया भरोसा
मिले अपने
थाम कर उनका हाथ
लो मैं उड़ चली
लेकर नए ख़्वाब
ढूँढने और जबाब ....


सुनीता पुष्पराज पान्डेय 
मै नील गगन मे उड़ जाऊ
इक ऐसा जहाँ मिले
जी भर साँसो को भर पाऊ
इक ऐसा संसार मिले
जहाँ मै सिर्फ शो पीस नही
इक इंसान समझी जाऊ
सहज हो जीवन मेरा
मै स्वछंद हो कर नही
मेरे अपनो के साथ जीना चाहूँ


बालकृष्ण डी ध्यानी 
वो उड़ान मेरी

नीले अंबर छुने की छलांग मेरी
उन सपनों को पाने की
वो उड़ान मेरी ...................

रंग बेरंगी गुब्बारों संग
हवा के इन मौज़ों संग है
वो उड़ान मेरी ……………….

मेरा मन वो.... देखो उड़ा चला
सात आसमान वो छुने चला
वो उड़ान मेरी ……………….

सीधा जीना है वो उड़ान मेरी
इन पंखों से है परवाज मेरी
वो उड़ान मेरी ……………….

ना करों मै किसी का इंतजार
वो आसमान देख रहा है मेरी राह
वो उड़ान मेरी ……………….

अब बदलेगा वो इतिहास पुरना
गीत गाऊँगी मै नया है आज जमाना
वो उड़ान मेरी ……………….

नीले अंबर छुने की छलांग मेरी
उन सपनों को पाने की
वो उड़ान मेरी ……………….


जगदीश पांडेय 
गुब्बारा होता उड जाता रे
छूनें को मैं ये आसमाँ
रंग बिरंगी दुनियाँ ये
मुठ्ठी में समाँ जाता रे
गुब्बारा होता उड जाता रे
गुब्बारे जैसा मैं फुल पाता
भर लेता दुख सब का
जीवन में सबके खुशियों का
नया सबेरा ले आता रे
गुब्बारा होता उड जाता रे


भगवान सिंह जयाड़ा 
दिल करता है आज नभ को छू लूं ,
खुशी के यह पल जी भर के जी लूं ,

ख्वाइशों की चाहत आज हुई है पूरी,
नहीं कोइ चाह अब यहाँ मेरी अधूरी,

गुब्बारों की तरह उडूं आसमान में ,
आज सब कुछ मेरा इस जहांन में,

दिल झूमें खुशी से ऐसा आज मेरा,
देख घटा को नाचे जैसे मन मयूरा ,

कामयाबी की बनूं मैं ऐसी मिशाल ,
जिसे देखे दुनियाँ सारी,यह बिशाल,

सपने सब के हों इस जहां में साकार,
तभी बदलेगा ,मानवता का आकार,

दिल करता है आज नभ को छू लूं ,
खुशी के यह पल जी भर के जी लूं ,



अलका गुप्ता 

गुब्बारे वाला ....बाबा आता है |
रंग-बिरंगे गुब्बारे वह लाता है ||

इन गुब्बारों की महिमा न्यारी |
कितनी मोहक...छवि है प्यारी ||

सपनों में भी गुब्बारे उमंग जगाएँ |
उड़ कर ये चितचोर..मन भरमाएँ ||

पापा उड़ने वाले गुब्बारे तुम लाना !
जन्म-दिन पर मेरे उन्हें ही सजाना ||

जश्न सारे दिन .....हम खूब मनाएँ |
केक काट..गुब्बारों संग ही उड़ जाएँ ||

निर्द्वन्द आकाश की ओर बढ़ते जाएँ |
संग बादलों के ...हम खूब बतियाएँ ||

सारा जीवन हम ... यूँ ही मुस्काएँ |
नई उमगं-नई सोंच ... हम अपनाएँ ||


डॉ. सरोज गुप्ता 
चल उड़ जा

हमारी आजादी के गुब्बारे चल उड़ जा !
गिन ला दूर गगन के तारे चल उड़ जा !!

हमारे स्वप्न हुए आज सब के सब पूरे !
खुशियाँ बाँट सारे जहाँ में चल उड़ जा !!

झूठी वाह -वाही का नशा चंद मिनटों का !
दवाब में न आ जाना हवा के चल उड़ जा !!

हम दीवाने फक्कड़ पांच रूपये की हैं हस्ती !
आवारा बादलों से कर ले मस्ती चल उड़ जा !!

रंग-रूप सबका ढल जाएगा एक न एक दिन !
तू है साक्षी रंग भरे जीवन का चल उड़ जा !!

दुर्जन बिठा न दे प्रेम पर कहीं पहरे घनेरे !
तू पैगाम लेकर प्रेमी- हंसो का चल उड़ जा !!

मित्र-वेष में दुश्मन निकाले तलवार म्यान से !
तू संदेश -वाहक बन जा मैत्री का चल उड़ जा !!



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