Tuesday, April 28, 2015

२० अप्रैल २०१५ का चित्र और भाव



कुसुम शर्मा
~पृथ्वी है गोल ~
------------
आओ बच्चों पढ़े भूगोल
जल्दी लाओ ब्लोक तुम जोड़
देखो ये बन गया है गोल
जैसे हमारी पृथ्वी गोल
इसके ऊपर आकाश है छाया
चारों ओर जल है समाया
अपनी घूरी पर ये घूमे
यह सब ग्रहों मे एक ग्रह है
जिसमें जीवन बसा हुआ है
इसमें कई भाग हुए है
जिसमें कई राज छुपे है
कही पे इसकी भूमि चिकनी
कही पे रेतीली है
कही पे इसमें रहते जानवर
कही पे इंसान रहते है
पेड़ों की हरियाली इसमें
फूलो की ख़ुशहाली इसमें
पहाड़ों की ऊँचाई इसमें
लहरें ,भरने बहते है
इसी को पृथ्वी कहते है


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ हम है यार चार ~ 

एक नही. दो नही,
तीन नही, हम है यार चार
धर्म, कर्म, विशवास और ईमानदारी
से करते हम अपना विस्तार

जोड़ता हमें है हमारी
उम्र, ज्ञान, अनुभव और विचार
और चार हमारे साथी
हौसला, उम्मीद, लक्ष्य और प्यार

सोच लिया हमने जब
मुश्किलों को मिल कर हम सुलझाते
मिल जाते जब यार चार
बिखरे है जो रंग सब, हम उन्हें जोड़ लेते


बालकृष्ण डी ध्यानी 

~जो अब तक आजाद है ~

नारंगी हरा लाल नीला
सब पकडे खड़े हैं
पकडे अपना अपना हिस्सा
गोल है वो शायद पृथ्वी
इसलिए पृथ्वी के
हुये टुकड़े चार
इंसान ने बना दिये
नफरत के इस अहम से
दिलों में छेद कई हजार
दूरियां थी कितनी तब
तब भी वो पास थी
शांती प्रेम की लहर
वो मेरे आस पास थी
मजबूरी है आज इतनी वो
दूर है वो आज कितनी दूर वो
चक्करों पे चक्कर
गिरा गया हूँ
घिर गया हूँ आज मै
अपने ही ख़याल से
मेरे सोच से
अगर तू वाकिफ ना है
ये तेरे सोच की
अब भी वो उम्र कैद हो
मै तो उड़ चला हूँ
परिंदे बन इस गगन पर
उसने पंख फैलाये हैं
जो अब तक आजाद है
नारंगी हरा लाल नीला
सब पकडे खड़े हैं
पकडे अपना अपना हिस्सा


नैनी ग्रोवर 
__ धरती हमारी__

रंग-बिरंगी धरती हमारी,
रंग-बिरंगे लोग,
कोई कहता अल्लाह अल्लाह,
कोई जलाये जोत..
कोई गुरुद्वारे में जाके
सीस नवाये,
कोई चर्च के दर को रिझाये,
फिर भी रहें हम सब मिल जुल के,
देखो कैसा जुड़ा संजोग..

आओ हम सब मिल के,
आज कसम इक खाएं,
भारत को, फिर सोने की चिड़िया बनाएं,
काश्मीर बना दें नंदनवन सा,
स्वच्छ गंगा के वंशज कहलायें,
ये दोनों ही हैं स्वर्ग हमारा,
वरना बेकार हैं छप्पन भोग...

रंग बिरंगी धरती हमारी,
रंग बिरंगे लोग..!!



Pushpa Tripathi 
~मिलते जुलते संबंध.~ 

कितने मिलते जुलते है
हमारे तुम्हारे विचार
कितना घनिष्ठ है प्यार
चार प्राथमिक
रंगों जैसा सबंध
हरा लाल पिला और नीला
जिससे बनते कई रंग साकार
प्राथमिकता को महत्व देकर ही
दूसरों से जुड़े रहते है
रंगों का कोलाज बनता है
वरना नहीं तो
क्या -- कोई अकेला रंग खिलता धरती पर
सिर्फ और सिर्फ अकेला !

वृक्ष हरे … लाल फूल
पीला बसंत … नीला आकाश
सब तो है मिले जुले
जिससे बनती है सृष्टि
जिसमे रहते हम
पृथ्वी समुद्र पर्वत से घिरे
हमारी प्यारी दुनिया में 'पुष्प '
और मिलते जुलते संबंध
अलग अलग ढांचे को जोड़े हम
भाषा अलग
प्रान्त अलग
वेश अलग
हम ---- फिर भी एक
अपनी धरती की संतान !!





प्रभा मित्तल 
~~अनेकता में एकता~~
~~~~~~~~~~~~~~~~
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण
चारों दिशाओं से आए यहाँ
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
चारों धर्मों के लोग
भिन्न-भिन्न है बोली जिनकी
अलग - अलग हैं भोग।

लाल हरे नीले पीले यहाँ
सब रंगों से सजी धरा है
देवों की बस्ती पर्वत पर,
धरती की गोदी में गंगा है।

एकता में बल हो जिसका
वेदों में वर्णन है जिसका
है ऐसा यह सुन्दर लोक।
सुख-दुःख संग निभाना है।
और सुंदर देश बनाना है।


Kiran Srivastava
जुड़ाव

चार जोड़ जब एक बनाया
लगे हमारी पृथ्वी है,
अलग रंग और अलग धर्म ,
अलग हमारी संस्कृति है...!
एक दुजे का हम सब
करतें हैं सम्मान,
प्रेम त्याग सहिष्णुता
हम सबकी पहचान..!
पर गल्ती हो ही जाती
क्योंकि हम सब हैं इंसान
मिल-जुल कर हम रहें
सदा तो
"भारत मेरा बनें महान"......!!!!!



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Monday, April 20, 2015

१४ अप्रैल २०१५ का चित्र और भाव



कुसुम शर्मा 
~ हाय रे मन भरमाये रे !! ~

हाय रे मन भरमाये रे,
ये लालच मे फँसाये रे,
न ये तेरा, न ये मेरा ,
ये जग तो है रैन बसेरा,

काहे लालच आये रे,
फिर जाल मे जाये रे,
तेरा मेरा करते करते ,
सारा जीवन खोये रे,

धन दौलत का लोभ करे तू,
क्या यह तेरा होये रे,

कोड़ी कोड़ी जोड़ जोड़ के
सोने का महल बनाये के
क्या तू सुख को पाये रे,
हाय हाय करते करते
एक दिन जग से जाये रे,

ख़ाली हाथ ही तू आया रे,
ख़ाली हाथ ही जाये रे,

रह जायेगा सोना चाँदी,
रह जायेंगे तेरे मोती,
फिर क्यूँ पछताये रे,

प्रेम की मन से डोर बाँध ले,
प्यार से हर रिश्ता सँझो ले,
देख फिर माला माल हुआ रे,

लालच मे सब को था छोड़ा ,
तू जो उसको छोड़े रे,
तो माला माल कहलाये रे,
मिट्टी का तन है तेरा,
मिट्टी मे मिल जाये रे,

हाय रे मन भरमाये रे , हाय रे मन भरमाये रे


अलका गुप्ता 
~~सुनहरी सी डकार~~

हो गया जी आज पार्टी का इंतजाम !
देखो होगी अब कितनी धूम-धाम !
आमलेट के लिए प्रतिबिम्ब जी ने ..
अंडा जो फोड़ा निकल पड़े जी उसमे से..
सिक्के सोने के ..झमा-झाम
हो गया जी हम मित्रों का इंतजाम|
बढ़िया सी होगी पार्टी भी शानदार.
हो गया जी ..आज पार्टी का इंतजाम !
अपनी-अपनी फरमाइश भेजो सब..
सोच समझ कर लिस्ट भेजो अब ||
हुए हैं आज मित्र मालामाल |
मान गए ..साथियों आज !
प्रतिबिम्ब जी को..हम मान गए !!
बड़े ही सीधे-सच्चे अपने ये साथी हैं |
वरना हमको कौन बताता ये राज ..
खाकर आमलेट अकेले ..ही आज..
ले लेते...जो सुनहरी सी डकार ||


नैनी ग्रोवर 
---मेरी गुल्लक--

सुन्दर सी एक प्यारी गुल्लक,
पापा ने लाके दी इक दिन,
बेटा इसमें जमा करो पैसे,
समझाया था मुझे उस दिन,

छोटी सी बुद्धि में मेरी,
पूरी बात समझ तो नहीं आई,
पर पापा का कहना टालूं,
इतनी नही थी मुझमे ढिठाई,

रोज़ लेके माँ पापा से पैसे,
मैं उसमे डाला करती थी,
कभी किसी के सामने,
ना उसको निकाला करती थी..

बैंक में जब जाने लगी मैं,
उसको बिलकुल भूल गई,
एक कोने में पड़ी रही वो ,
उसमे जाने कितनी घूल गई..

अब ना पापा रहे ना माँ,
मगर गुल्लक अभी थी वहां,
पापा का सिखाया सबक,
अब समझी थी मैं यहाँ..

जब वक़्त पड़े बुरा तो,
काम बचत ही आती है,
अगर संभाल लो पूँजी तो,
आज की वही सच्ची साथी है..!!!




बालकृष्ण डी ध्यानी 
~ चंद सिक्के वो खाव्बों के ~

चंद सिक्के वो खाव्बों के
ऊँचे आसमानी अरमानों के
उड़े उड़े वो दौड़े
मन के किसी तहखाने से
चंद सिक्के वो खाव्बों के
बहुत कुछ छुपा उनमें
भेद वो लिपा-पुता उनमें
एक ही रंग में वो सारे लगे
सपनों को वो प्यारे लगे
चंद सिक्के वो खाव्बों के
वो तब भी टूटा मुझसे
वो अब भी फूटा मुझसे
रंग वो इंधनुषी जैसे लगे
वो खुली धुप के तारे लगे
चंद सिक्के वो खाव्बों के
हकीकत वो रूठी लगी
सारी कहानी वो झूठी लगी
अपनों में ही वो पीछे छूटे
वो सारे सिक्के झूठे निकले
चंद सिक्के वो खाव्बों के



प्रभा मित्तल 
~~~सोने का अंडा~~~~

सिक्कों के इस अंडे ने मुझको
आज वो कहानी याद दिलाई,
जिसमें सोने के लालच ने
थी मुर्गी की मौत बुलाई।

हमारी धरती भी तो देती
है जैसे सोने का अंडा,
दोहन इसका हो रहा और
फँसा गले में विकास का फंदा।
अति उत्पाद का लालच
मनुज को यहाँ तक ले आया,
जल वायु नदी तालाब
सब प्रदूषित करवाया।
कीट पतंगे औ जल जीवन
वन भी विकास के मारे हैं,
खेत खलिहान और किसान
नित नए रसायन से हारे हैं।
आज प्रकृति तड़प रही है
भूकम्पों की मार बड़ी है
महामारी,सूखा और बाढ़
फैलती जा रही हर बीमारी है।

इतना लोलुप मत बन रे मानव !
अब तो चेत,बस इतना कर
प्रगति प्रकृति के हित में कर
वरना इक दिन यह आँधी
तुझे भी बहा ले जाएगी ,
सोना उगलती यह वसुंधरा
मुर्गी की तरह मर जाएगी।
हाँ,मेरी वसुधा मुर्गी की तरह मर जाएगी।।


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल .
~माया ~

माया का सुखद जाल,
भ्रमित होता जिससे हर इंसान
चकाचौंध आती नज़र
देखते ही प्रफुल्लित होता इंसान

लालच बुरी बला है
समझ कर भी नासमझ बनते लोग
प्रेम फिर पैसा होता
अपना पराया भूल जाते फिर लोग

मोह माया से बंधा इंसान
धन की खातिर तन मन से करता बैर
'प्रतिबिंब' बस सोचता
छोड़ दुनिया की बात मन से करता सैर




Pushpa Tripathi
~ एक एक पैसों वाला अंडा ~

बच्चों के खातिर
माँ बाप क्या नहीं करते
अपना सारा जीवन
हंसी खुशी साँझा कर लेते है
उज्जवल भविष्य के लिए
वेतन से खुछ ंबचाते
बेटी की शादी
पढ़ाई लिखाई
स्वालंबन
बुनियादी ढांचा तैयार करते
एक एक रूपया
जमा करते
अपने भविष्य के लिए भी
कई इंतजाम करते
लो आ गया अब वो दिन
पैसों की जिनको जरुरत थी
जमा धन कार्य के नियत से
बाहर निकाले गए
एक एक पैसे वाला वो अंडा
जिसे शून्य से बनाया गया था अधिक !


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Monday, April 13, 2015

३ अप्रैल २०१५ का चित्र और भाव



अलका गुप्ता 
~ फूलों की महक ~
~~~~~~~~~(१)~~~~~~~~~

महकते फूलों से चमन देखते चलो |
हँसते काँटों की ..चुभन देखते चलो |
ख्व़ाब हो गर.. चैन-ओ-अमन का ..
ख़ुशियों का.. ये चलन देखते चलो ||

~~~~~~~~(2)~~~~~~~~~~

जीवन तो है सबका ही तुम जीवन का श्रृंगार बनों |
राख हुआ हो बीता कल उसमें भी तुम अंगार बनो |
इतिहास लिखो स्वर्णिम सा जीवन में मानवता का ..
काँटे हों चाहें सदा..सुन्धित फूलों सा व्यवहार बनों ||



कुसुम शर्मा 
~मन के सच्चे लगते अच्छे~
************************
बच्चे है भई बच्चे है, ये तो मन के सच्चे है !
इनकी बाते बड़ी निराली, चाल भी है बड़ी मतवाली !
इनके दिल में पाप नहीं है , मन के सच्चे, लगते अच्छे !
इनकी अद्भुत कर्म कहानी , अद्भुत इनकी राम कहानी !
दूध मिठाई से ये मीठे, सुन्दर और सजीले सीधे !
मन्दिर-मस्जिद भेद मिटते, नहीं किसी से वह घबड़ाते !
बच्चों के हैं सबसे नाते, सबको प्रेम से वो अपनाते !
इक मीठी मुस्कान के आगे, भरी तनाव जिंदगी भागे !
बोल तोतली, समझ न पाते, पर वह कितना ह्रदय लुभाते !
कितने सहज सरल हैं बच्चे, मन के सच्चे लगते अच्छे !!


अलका गुप्ता 
~~~हम बच्चे नादान~~~
~~~~~~~(१)~~~~~~~

हम नन्हें मुन्ने बच्चे हैं |
माना अकल के कच्चे हैं |
रोकर नचा दें माँ..पपा को .
अब पर बिसुरे मुख अच्छे हैं ||

~~~~~~(2)~~~~~~~

लड़ें खेल में...न गंदे बच्चे हैं |
भाव मुख पर....मेरे सच्चे हैं |
नटखट..मासूम.. भोले भाले..
खेल-वेल में ...थोड़े कच्चे हैं ||

~~~~~~(3)~~~~~~~

~~~मैं भी खेलूं ..मेरा खिलौना~~~

मैं भी खेलूं ..
मेरा खिलौना..हाय !!!
डरे-डरे से बैठे हैं
लाठी जिसकी ..
है भैंस ...उसी की ...
समझ रहा हूँ...
ललचाई नजर .. देख रहा हूँ
मैं भी खेलूं ..
चाह रहा है मेरा मन..
मेरा खिलौना..हाय !!!
खेल रहा मोटू जो..
वो खिलौना मेरा है |
पास नहीं है..मम्मा अभी जो
वरना ...आप ..!
हँस न पाते हम पर..ही..
मस्ती..उसकी गुंडई...ये
मैं भी खेलूं ..
मेरा खिलौना..हाय !!!
रो देते हम ...पूरे सुर पर |
मम्मा करती दौड़ के न्याय |
देखें.. बच्चू फिर क्या करते|
मैं भी खेलूं ..
मेरा खिलौना..हाय !!!\



बालकृष्ण डी ध्यानी
~देख छुट गया बचपन~

देख छुट गया बचपन
देखो रूठ गया बचपन .... २

वो हँसते रोते गिरते पड़ते
कैसे बिता गया नटखट मधुबन
वो फंस गया अब कंक्रीटों के वन
देख छुट गया बचपन

वो एक एक बातें याद हैं अब भी
बहती नाक थी जो ओ साथ है अब भी
तोतली ज़ुबान की बात है अब भी
देख छुट गया बचपन

वो चल पीछे मोड़ के देखे जरा
लगता है वो अब भी मेरे पीछे खड़ा
चलो आवाज दे आगे उसे बोला ले जरा
देख छुट गया बचपन

देख छुट गया बचपन
देखो रूठ गया बचपन .... २



नैनी ग्रोवर 
___इक्सवीं सदी के बच्चे___

इनको ना समझो अक्ल के कच्चे,
इक्सवीं सदी के हैं ये तो बच्चे,

अच्छे अच्छों को नाच करादें,
आधी रात में सारे घर को जगादें,
जानते नहीं क्या जिदें इनकी,
मम्मी पापा का पसीना छुड़ादें,
फिर भी लगते ये सबको सच्चे..

इक्सवीं सदी के हैं ये तो बच्चे..

चोकलेट, पिज्जा है इनको भाता,
दाल चावल से टूटा है नाता,
पेप्सी, कोला, झट से पी जाते,
ढूध इन्हें तो रास ना आता,
जंक फ़ूड बस लगते हैं अच्छे..

इक्सवीं सदी के हैं ये तो बच्चे..!!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ....
~बड़ा होने दो ~

ओए टकलू
मैं रो रहा हूँ और तू खेल रहा
मेरे खिलोने को अपना बता कर
हो तू मस्त मगन खेल रहा
देख गुस्सा अब मुझे आ रहा

ओए गंजे
मुझे बड़ा होने दे, फिर तुझे बतलाऊंगा
हक़ कैसा होता है तुझे समझाऊंगा
जिसे तू अपना कहे, उसे अपना बनाऊंगा
आज मैं रो रहा कल तुझे रुलाऊंगा



प्रभा मित्तल 
~ ये तूने क्या कर डाला भाई ~
~~~~~~~~~~~~~~~~~
मेरा खाना मेरा बिस्तर
मेरे कपड़े मेरा घर
सब पर तेरा शासन है
मैं चुप सा खेल रहा था
कब से तुझको झेल रहा था
मुझे रुलाकर तू हँसता है
माँ से भी मेरा हक छीना
क्या किस्मत मैंने पाई,
ये तूने क्या कर डाला भाई !

कुछ ही मिनट मैं पहले आया
पर पल में ही मन भरमाया
राजकुमार सा सपना लेकर
कुछ पल तो मैं खुश रहता
मम्मी की गोदी में पलता
जुड़वाँ था मैं, पर बड़ा बना
तू है दंगई , फिर भी बेचारा
छोटा छोटा की रट लगाई,
ये तूने क्या कर डाला भाई!

मेरे हिस्से की गोदी पर
शासन चाहे जितना कर ले
बड़े भाई पर रौब जमा कर
जितने चाहे रिंग-रंग बना कर
अभी तो तू मौज मना ले
हँसी नहीं है मिलकर जीना
यौं एक दिन मेरा भी आएगा
फिर न कहना शामत आई,
ये तूने क्या कर डाला भाई!





Pushpa Tripathi 
~ मैं तो मस्त मन चंगा हूँ ~ 

सुन ओए चुन्नू …
ये मेरी लाल वाली है
मेरी लाल और पिली है
मेरा लट्टू .... सब कुछ मेरा है
मम्मी ने मुझे दिलाई है
राग ठानूंगा .... जिद्द पर रहूंगा
पापा से शिकायत लगाउँगा
दे दे मेरा सारा सामान
वरना रोकर मार खिलाऊंगा !

सुन ओए मुन्नू …
तेरी नहीं ये मेरी है
लाल पिली सब मेरी है
हम दो जुड़वाँ भाई भाई है
भूल गया कल सोया था जब तू
मम्मी ने मुझे दिलाई थी
तू तो रो ....
रो रो रोकर सोता जा
शिकायत पे शिकायत करा जा
मैं तो मस्त मन चंगा हूँ
खेलूंगा तोड़ूंगा फोडूंगा
लाल हरा पीला बैंगनी और नीला
सारे खिलौनेे अब मेरे है !



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Friday, April 3, 2015

३० मार्च २०१५ का चित्र और भाव




प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ....
~एक कप चाय हो जाए ~

आओ मित्रो बैठ कर, एक कप चाय हो जाए
मर्जी आपकी काली या दूध वाली ही पी जाए
शक्कर भी पसंद आपकी, बस एक कप हो जाए
आज मिले है, चलो जिन्दगी पर चर्चा हो जाए
खा कर बिस्कुट, चलो दिन पुराने जी लिए जाए

दुश्मन हो या दोस्त, एक चाय के लिए जगह होनी चाहिए
गुफ्तगू हो विचारो की, शायद कोई बात मन में उतर जाए
था जो स्वाद कडवा रिश्तो में, शायद शक्कर सा मिल जाए
बता मन की 'प्रतिबिंब', शायद मन अपना कुछ हल्का हो जाए
कर जुगाड़ कुछ ऐसा, जब भी मिले तो एक कप चाय हो जाए



भगवान सिंह जयाड़ा 
---चाय की प्याली----

चाय की प्यार की चुस्कियो में ,
दिल से यारों के दिल मिलते है,
साथ उसके और भी हो कुछ,
तो वाह ! दिल दूने खिलते है,
चाय अजीब रिश्ता जिंदगी का,
जिस में अहशास नए मिलते है,
मानो न मानों कमाल की चीज है,
इस से प्रेम के फूल खिलते है,
इस के राज अमूल्य होते है,
जो हमारे मन को छू जाते है,
प्यार से पिला दो किसी को,
तो दिल से दिल मिल जाते है


नैनी ग्रोवर 
-- आज भी याद है--

वो सर्दी के ठिठुरते दिन,
और रिमझिम पड़ती बरसातें,
दोस्तों का साथ, और
चाय की चुस्कियों में बातें,
आज भी याद है..
चलो आज फिर से, उन्हें ताज़ा करते हैं,
दो घूँट चाय में दोस्तों को याद करते हैं,
वो आखिरी बचे बिस्किट पे नज़र डाल के मुस्कुराना,
फिर उसके टुकड़े कर, सभी को थमाना,
आज भी याद है ..
वो हँसना हँसाना, बात बात पे ठहाके लगाना,
एक दूजे के कप से, चुपचाप चाय पी जाना,
बजाके मेज, ज़ोरज़ोर से गाना,
आज भी याद है..


डॉली अग्रवाल 
~इक प्याली चाय~
------------------------
चाय के हर प्याले के साथ हमने
थोड़ी चीनी और ,
थोड़ी खुशियां मिला ली ,
हर उबाल के साथ ,
हमने थोड़ी ज़िन्दगी पका ली !
कुछ यादो के बिस्कुट ,
चाय में भिगो कर खाये !
चाय के उड़ते भाप में ,
खुद को उड़ा हम जीये !!


कुसुम शर्मा 
चाय का नशा
************
"फिर शाम-ऐ-तन्हाई जागी, चाय! फिर तुम याद आ रही हो
फिर जां निकलने लगी है, फिर तुम मुझको तड़पा रही हो...
इस दिल में यादों के मेले हैं, तुम बिन बहुत हम अकेले हैं..,
शाम की इस हल्की बारिश में मौसम दिलकश हो गया है
बस अब गर्मा-गर्म पकौड़े और तुम्हारा ही साथ चाहियें

तुम बिन दिलकश मौसम, मौसम न ये होगा !
मेरे पूरे दिलो दिमाग पर तो तुम छाई हुई हो
तुम्हे न पाकर हम तो मानो पागल से हो जाते है ,
कोई कहे की हमे नशा तुम्हारा है तो हमे मंज़ूर है ,
सुबह आँखे खुलते ही तुम्हे पाना चाहते है हम,
सुबह और श्याम बस तुम्हारे साथ जीना चाहते है हम,

तुम्हारी एक नज़र ही भर देती है दिल में मस्ती,
जो तुम्हे पी ले एक बार तो हमेशा तुम्हे ही पीना चाहेगा,
चाय ! हम जैसो के लिए एक अमृत का प्याला हो,
चाय ! सुस्त जीवन में चुस्ती-फुर्ती का संचार हो ,
चाय ! तन -मन की थकान को छूमंतर हो करती,
चाय ! सर्दियों में गर्मी का एहसास हो,
चाय ! तुम्हारा नशा हमे चढ़ा तो हम
सुबह शाम तुम्हे पुकारने लगे
अब ये हाल है कि आँखे खुलती है तुम से ही
और ये आँखे बंद भी होती है तो तुम से ही



बालकृष्ण डी ध्यानी .....

अपना तो एक ही हिसाब

फिजूल की ये बेख़र्ची
अमीरी का चढ़ा यूँ बुखार
अपना तो एक ही हिसाब
बस एक गिलास भरकर
ले आना तो चाय जनाब

ना कप है ना चमचे
ना अंगरेजी बिस्किट का कोई रुबाब
अपना वही रोज डूबकर खाना
वाह ! वो बासी रोटी का स्वाद
ले आना और एक गिलास चाय जनाब

मन नहीं भरता देखे इसे
ये दिल में भी अब नहीं अखरता
बस जेब की वो एक बची अठनी
दे जाती हर रोज जवाब
बस जी आज सुखी रोटी का ही साथ

फिजूल की ये बेख़र्ची
अमीरी का चढ़ा यूँ बुखार
अपना तो एक ही हिसाब
बस एक गिलास भरकर
ले आना तो चाय जनाब



अलका गुप्ता 
~~~~~~चाय हो जाए~~~~~~

चाय तो एक बहाना है
वरना ,,आपको बुलाना है
मिल बैठेंगे चार यार ...
निकालेंगे दिल के खुमार |
चाय तो एक बाहाना है |
आपसे मिलने का बहाना है|
चाय पर ही आज सुलझते हैं...
विजनेस सियासत औ प्यार के किस्से भी |
कभी कम्पनी बुलाती ...
कभी मोदी,,कभी मम्मी |
वाह्ह चाय क्या ..सच्चा ताज है |
अरबों-खरबों का बिजनेस कराती है चाय !
आज प्रतिबिम्ब जी ने बुलाया है...
अपने ब्लॉग का किस्सा निपटवाया है |
कप तो रखे हैं चार ...
और हम मित्रों से चाहते हैं...
कविताएँ लिखें...पूरी हज़ार |
ये तो मित्रों ! हममे ही है ..
आपस में इतना प्यार...
कि हम कहते ही रहते हैं..
आपस में ...पहले आप..!!!!
पहले आप ...!!!!



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