Wednesday, March 27, 2019

तकब – १/१९




मित्रो नमस्कार ! चलिए इस नए चित्र पर अपने भाव कुरेदिए.
नियम :
१. इस चित्र पर उभरे हुए आपके भाव जिसे शीर्षक व् एक टिप्पणी [ आपके शब्दों का कारण व् सृजन के पीछे की सोच ] के साथ लिखना है.
२. किसी भी काव्य विधा में कम से कम १०- १२ और अधिकतम २४ पंक्तियों में आपको अपने भावों को रखना है. अगर आप किसी नई विधा में लिख रहे हैं तो अवश्य उसका जिक्र करे.
३. कृपया किसी भी सदस्य की रचना पर टिप्पणी रूप में अपनी टिप्पणी न लिखे. यदि आप पोस्ट के संबंध में कोई बात पूछना चाहते है तो अवश्य पूछे लेकिन समाधान के बाद टिप्पणी को हटा लिया जायेगा.
४. निर्णायक मंडल के सदस्य केवल प्रोत्साहन रूप में लिख सकते है.
५. आप अपनी रचना को परिणाम घोषित होने व ब्लॉग में पोस्ट होने के बाद ही आप अन्य स्थानों पर पोस्ट कर सकते है.
६. रचना पोस्ट करने की अंतिम तारीख २७ फरवरी २०१९ है.
७. शुभकामनाएं !!!!!
 इस प्रतियोगिता की विजेता है सुश्री मीता चक्रवर्ती

Madan Mohan Thapliyal
~धात्री~
( मां, गायत्री, भगवती, गौ, गंगा, पृथ्वी )
( प्रोत्साहन हेतु)
सौम्य, सरल, निर्विकार, निश्छल ईश का ध्यान तू
वेद, उपनिषद तुझमें समाहित, गीता का ज्ञान तू
हर छंद, लय, ताल औ घुंघरू की रुनझुन में तू
कल-कल बहती नद धार औ भंवरों की गुनगुन में तू
तू प्रकृति में या प्रकृति तुझमें किसका लावण्य तू
देव- दनुज करते आराधना, सबकी आराध्य तू
न उबटन , न श्रृंगार कोई, प्रकृति का उपमान तू
नि:स्पृह, नि:स्वन, नि:स्पंद औ धर्म का सच्चा ज्ञान तू
परम अलौकिक, निर्लिप्त, चित्रस्थ विश्व का वृतांत भी तू
वन,विटप,होते आह्लादित जब मधुर मुस्कान बिखेरती है तू
बियाबान भी होते खुश जब कंटकों के झुरमुट से गुजरती है तू
श्रमसीकर होते तिरोहित जब धात्री का सम्मान करती है तू
हरी घास भी होती मुखरित ,जब पीठ पर क्षुदापूर्ति हेतु धरती है तू
पवित्र होते रजकण भी जब बीहड़ों में गुनगुनाती है तू
नमन तुझे हे धात्री ,! सबका मान - सम्मान और समाधान तू
सब हैं तेरे निमित्त औ सबके कल्याण के लिए तू ।।
टिप्पणी : (कर्तव्य न पीड़ा है, न किसी पर एहसान । कहीं भी जन्म लेना अवसाद नहीं । कर्म ही धर्म है और स्त्री इसका पर्याय है । इसलिए स्त्री सदैव पूजनीय है ।)


ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
देश की कर्मठ बालिकाओं के, ,,,सम्मान में कुछ हाइकु, ,,,,,,,,,,,,5 7 5 वर्णों की आवृत्ति ! आधा शब्द गिनते नहीं है
~पहाड़ी कन्या~
**************
पहाड़ी कन्या
धन्य-धन्य जीवन
साहसी मन //
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
दीप- बेटियाँ
उजाला भर देतीं
घर की दिया //
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
सीप - बेटियाँ
मुक्ता गर्भ धारिणी ,
जीवदायिनी //
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
आज की बेटी
होती हैं कीर्तिमान
देश की शान //
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
बेटियाँ पढ़ें
मायका व सासरे
संस्कार गढ़ें //
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
घर-चमन
खिलतीं ज्यों सुमन
पुष्पित मन /
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
गिरि-शिखर
छू लेने में तत्पर
साहसी बन/
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
बेटी स्वरूप
दुर्गा माँ कल्याणी
जगत्जननी //
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
पहाड़ी कन्या
करती हैं तपस्या
कर्तव्यनिष्ठ//
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
*************
🍭🍭🍭🍭🍭🍭
****************
टिप्पणी: आज की बेटियां साहसी व कर्तव्यनिष्ठ व जागरूक हो गई हैं,,पहाड़ी लड़कियाँ का साहसिक कार्य अनिवर्चनीय है वे दुर्गा स्वरूप हैं,,,जगत की सृष्टा शक्ति को नमन करती मेरी रचना है,,,जय मातृशक्ति
******


नैनी ग्रोवर
~वीरांगना~
उठाकर बोझ,
चढ़ती उतरती पहाड़ की पगडंडियों पर,
मुस्कुरा कर चलती है,
ये पहाड़ की बेटी है, मेहनत के साये में पलती है...
हर तूफान का सामना कर जाती,
पर नीर ये बहाती नहीं,
सह लेती है हर कठनाई को,
होंठो से कभी जताती नहीं,
निच्छल मन की मासूम वीरांगना,
भूल के भी नहीं कभी किसी को छलती है...
उजड़ गया सिंदूर, टूट गए सपने,
पर हिम्मत ये ना हारी है,
चूम पति के बदन से लिपटे तिरंगे को,
आई लव यू उसे कह पुकारी है,
भेज आखिरी सफर पे शहीद पति को,
नारा जय हिंद का ये लगाती है..
ये मेरे भारत की नारी है..!!

टिप्पणी: आज कोई टिप्पणी नहीं, आप सब समझ ही गए होंगे ।



अलका गुप्ता
*पर्वत बाला*
#######
जीवट है जीवन चर्या
भोली भाली पर्वत बाला
हरियाले से हैं
पगडंडी वाले
कुछ पथरीले पथ ।
विकट परिस्तिथियाँ
विषम है मौसम
फ़िर भी आस्थाओं में
पगा है मन ।
उतार चढाव है
सत्य शाश्वत ...
जीवन का वैसे भी सच ।
है स्वीकार सच्चे मन से
हँसते हँसते धरा जो बोझ कांधे पर विधाता ने
कर्म सार्थक ही तो है
गीता का सच्चा ज्ञान ।
करेगा फल की चिंता...
वो ..भगवान !
मैं हूँ पर्वत बाला !
मेरा तो कर्म महान
अपना तो है ...
घर पर्वत परिवार ही...
मेरा सच्चा सुख संधान !!

टिप्पणी: बस जो महसूस किया उस परिवेश के वारे में सरल भाषा में लिख दिया ।



किरण श्रीवास्तव

"नारी नारायणी"
------------------------------
मुसीबतों के
पहाड़ को,
दु:खों के
सैलाब को,
झाड़ियों से
झंझावात को,
उखाड़ फेंकती हो
नारी! तुम नारायणी हो....।
ईश्वर की अद्भुत
हो रचना,
शक्ति की
भंडार हो तुम,
जीवन दायिनी,
कर्तव्य - परायणी,
सहज, निर्मल, कठोर हो,
नारी! तुम नारायणी हो....।।

टिप्पणी- राह भी बनाती है, चलना भी सिखाती है, नारी-नारायणी यूंही नहीं कहलाती है....!!!

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
(प्रोत्साहन हेतु)

~सुनो पहाड़ की नारी~

सुनो पहाड़ की नारी
लेकर प्रकृति का तुम मूल मंत्र
जीवन सरंचना का तुम गूढ़ तंत्र
बन परिवार का तुम मोक्ष यंत्र
तुम दुर्गाशक्ति सी यत्र तत्र सर्वत्र
सुनो पहाड़ की नारी
इस रात से लेकर अगली रात तक
नारी का पवित्र अस्तित्व लिए
मेहनत का तुम दृढ़ स्तम्भ
जिम्मेदारियों का तुम हो अर्थ
सुनो पहाड़ की नारी
निसंदेह चन्द्र तत्वों से तुम हो सुशोभित
पहाड़ की मुश्किलों में तुम मुस्कराती
वेदना कभी न खुश्क चेहरे पर लाती
इसलिए पहाड़ की नारी श्रेष्ठ कही जाती
सुनो पहाड़ की नारी
प्रेम और पसीने का शृंगार तुम खूब हो करती
कर्मठता और सादगी में तुम खुबसूरत दिखती
निश्छल और निस्वार्थ भाव तुम खूब सजते है
प्रतिबिंबके दोनों हाथ तेरे सम्मान में जुड़ते हैं

टिप्पणी: नारी का हर रूप में सम्मान है यहाँ ये पंक्तियाँ है उन पहाड़ी नारियों के लिए है जिन्हें मैंने बचपन से देखा है .... जो परिवार के लिए रात से लेकर अगली रात तक सलंग्न रहती है मेहनत जिम्मेदारियों से कभी जी चुराते नहीं देखा. फिर भी उनके चेहरे की मुस्कान कम नहीं होती. हालाँकि पहाड़ो में अब बहुत कुछ बदल गया है फिर भी कई लोग उसी रूप में आज भी ... और उनको नमन करता हूँ और उनसे ही कह रहा हूँ



Mita Chakraborty

💐 पहाड़ की नारी💐
सरल सुघड़ पहाड़ों सी दृढ़
ये पहाड़ की नारी
नाजुक कंधे पर इनके
है बोझ भारी
टेढ़ी मेढ़ी,
ये ऊंची नीची पगडंडियां
कहती हैं
इनके संघर्ष की कहानियां
पग पग पर
इम्तिहान लेते ये पथरीले पथ
चलती है जिनपर ये
अनथक अनवरत
दर्द पर अपने ये
ओढ़ लेतीं हैं एक मधुर मुस्कान
पर पर्वत सा ऊँचा
बनाए रखती अपना स्वाभिमान
पहाड़ों की धूरी पर घूमता
इनका जीवन
इनकी रक्षा हेतु
ये बन जाती आन्दोलन कारी
पहाड़ो की " मीत"
ये पहाड़ की नारी
सरल सुघड़ पहाड़ों सी दृढ़
मेरी पहाड़ की नारी

टिप्पणी: पहाड़ की नारी का जीवन बहुत कठिन होता है पर ये मुस्कुरा कर इन कठिनाइयों का सामना करती है और पहाड़ों के प्रति इनका प्यार इन्हें सामान्य गृहिणी से आन्दोलन कारी बना देता है ।( चिपको आंदोलन )



Richa Sharma
~नारीत्व~
वो दरिया, वो पर्वत, वो काँटे, वो दर-२
सभी कुछ वही था, सभी कुछ वही था ।
पर एक ओर मैं थी और एक और तू था
वो दरिया, वो पर्वत, वो काँटे, वो दर ।
न तुझे साथ मेरा,ना मुझे साथ तेरा,
फिर क्यों चल दिए हम यूँ नज़रें मिलाए
रुकी साँस मेरी, रुकी साँस तेरी,
दूरियों में कहीं, दूरियाँ थीं नहीं ।
वो दरिया, वो पर्वत, वो काँटे, वो दर.......
वही मुश्किलें आज भी है सर पर ,
फिर क्यों आज बन गई वो कली सी ।
ये जादू है तेरा या किसी ओर का है ,
होंसला ये मेरा क्यूँ इस तरह बढ़ चला है ।।
वो दरिया, वो पर्वत, वो काँटे, वो दर....

टिप्पणी: मैंने गीत शैली में लिखने का प्रयास किया है, सुधार के लिए सुझावों का स्वागत है -
( इस गीत को लिखने का कारण व भाव यह है कि इस चित्र को देखने के बाद मुझे उसकी आँखों के सिवा कुछ नज़र नहीं आया मुझे एसा लगा जैसे वो आँखें कुछ कह रही हैं । उन्हीं को शब्द रूप देने का प्रयास किया है)~


माधुरी रावत
~हौसला~
जीवन के संघर्षों में
कई बार सिमटी-बिखरी है
लोहे सी तपी जब वो
कुंदन बन कर निखरी है
जीवन के अंजान सफर में
राह अपनी स्वयं बनानी है
घिसी-पिटी लीकों से हटकर
लिखनी नई कहानी है
ये हैं बेटी पहाड़ की
पहाड़ सा ही लिए हौसला
जाना है उसको दूर तलक
कर लिया है ये फैसला
मोहक सी है स्मित रेखा
हृदय भी एकदम निश्छल
पर हर बाधा से पाएगी पार
संचित है इतना आत्मबल
आँखों में झिलमिलाता सपना
जमीन पर उतार लाएगी
दृढनिश्चय और परिश्रम से वो
अपना एक अलग मुकाम बनाएगी

टिप्पणी: पहाड़ की बेटियां मजबूत, मेहनती और निश्छल तो हैं ही, जीवन संघर्षों से आगे बढ़ना चाहती हैं।


Ajai Agarwal
~बिटिया पहाड़ की~
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प्यारी बच्ची तुम बहुत ही प्यारी हो
घर भर की राजदुलारी हो
माँ की ममता का राग हो
पिता के सर का ताज हो
सर्दी में नर्म - नाजुक बर्फ का फाया
दोपहर की गुनगुनी धूप हो
तुम बहो तो सरिता बन जाती
निश्चल धैर्य पहाड़ों का तुम
पुंगड़ियों जंगलों में गान तेरा
संगीत मधुर झरने सा है
थाती तुम्ही विशवास की
विश्वास स्वयं पे करो सदा
बोलो! अपने मन की बातें बोलो
अपनी भाषा में मुहं खोलो
कर्मठ हो ,कर्म करो मन से
पर पढ़ना-लिखना न भूलो
भविष्य खड़ा पुकार रहा
अंजानी राहें हैं खींच रहीं
तुम सृष्टी हो तुम जननी हो
अपनी पहचान बनाओ अब
दिल की किताब के पन्नों को
अब खोलो ,आगे बढ़ती जाओ तुम
रोटी सेंकती उँगलियों में
उठा कलम अपने को गढ़ लो ,
काँधे के इस बोझ संग
अपने को भी पहचानो अब
पर्वत का सीना चीर- हंसीतेरी
वृक्षों जंगल से टकरा कर
घाटी में कलरव बन जाए
खिलखिला हँसे तू जीवन भर
कोई न तुझे हरा पाये
कर शंखनाद अब जीत जगत
जीत तुझे बस जीत मिले
टिप्पणी: पहाड़ की लड़की कर्मठ अदम्य जिजीविषा और साहस की पुतली ,कदम बढ़े हैं जो जग जीतने की ओर वो अपनी संस्कृति को संरक्षित, संवर्धित रखते हुए बढ़ते रहें यही प्रार्थना।


प्रभा मित्तल
~~पर्वत की नारी~~
~~~~~~~~~~~~~~
चेहरे पर मुस्कान बिछाए
कांधे पर सारा बोझ उठाए
तन के मन में शूल छिपाए
कभी न हिय का दर्द दिखाए
उठाए बवंडर भावों का
भार सम्भाले परिवारों का
पीठ पर ममता को बाँधे
घर खेत खलिहान देखती
चट्टानों को बींध बींध कर
गाँवो का रस्ता भी बुनती
सुबह से शाम तक खटती है
बिल्कुल सादा रहकर भी
हर दिन जीने की जंग लड़ती है
जयंती मंगला भद्रकाली बन
देश के लाल भी जनती है
नर से बढ़कर नारी है
कभी न हिम्मत हारी है
सारे जहाँ से न्यारी है
पूजनीय और प्यारी है
ये पर्वतों की नारी है।

टिप्पणी:  पहाड़ की मेहनतकश स्त्री का कोई सानी नहीं.



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