Thursday, April 8, 2021

तकब ०३/२१ रचनाएँ व परिणाम



तकब ०३/२१
प्रिय स्नेही मित्रों
सप्रेम नमस्कार! आपके समक्ष उपस्थित हूँ २०२१ की तीसरी प्रतियोगिता के साथ।
पिछली बार की तरह इस बार से अन्य निर्णायकों के साथ हम पिछली बार के विजेता सदस्य को भी आमंत्रित कर रहे हैे रचित रचनाओं में से दो रचनाओं को चुनने के लिए। इस प्रतियोगिता में उनकी भूमिका के साथ उन्हें रचना केवल प्रोत्साहन हेतु लिखनी होगी और अपनी चुनी हुई दोनों रचनाओं की समीक्षा भी मुझे संदेश रूप में निर्णय के साथ भेजनी होगी। इस बार निमंत्रण दे रहे है तकब ०२/२१ की विजेता सुश्री ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार जी को।
बाकी प्रतियोगिता के नियम
आप सभी से आग्रह है कि नियमों का पालन अवश्य करें, जिसके लिए उन्हें पढ़ना भी जरूरी है।
तकब ०३ /२१
१. इस बार की प्रतियोगिता में चित्र विषय अंकित हैI  आप को अपनी रचना में इसके प्रभाव को सम्मिलित करना हैI कम से कम १० पंक्तियां किसी भी विधा में लिखिये और साथ ही उसका शीर्षक व अंत मे एक टिप्पणी अपने उदृत भावों पर अवश्य लिखिये।
२. चित्र पर रचना नई, मौलिक व अप्रकाशित होनी चाहिए।
३. प्रतियोगिता के वक्त लिखी हुई रचना/पंक्तियों पर पसंद के अलावा कोई टिप्पणी न हो। हां यदि किसी प्रकार का संशय हो तो पूछ सकते है। निवारण होते ही उन टिप्पणियों को हटा दिया जाएगा।
४. आप अपनी रचना किसी अन्य माध्यम में पोस्ट तभी कर सकते हैं जब प्रतियोगिता का परिणाम आ जाये और ब्लॉग में शामिल कर लिया गया हो।
५. प्रतियोगिता हेतु रचना भेजने की अंतिम तिथि २६ मार्च फरवरी २०२१ है।
६. निर्णायक मंडल के सदस्य केवल प्रोत्साहन हेतु अपनी रचनाएं भेज सकते हैं। आग्रह है कि वे समय से पहले भेजे अन्यथा प्रोत्साहन का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
धन्यवाद, शुभम !!!!
आपका अपना प्रतिबिम्ब




सुश्री अलका गुप्ता 'भारती'
इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर रहीं।
अलका जी को हम सब की ओर से बहुत - बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनाएँ।
 


वालीवुड सिनेमा
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
(अतिथि रचना)
 
वालीवुड सिनेमा
व वास्तविक जीवन
एकदम बेमेल,,,,,
आजकल हो गया है
चलचित्र-विचित्र मनोरंजन !
आए दिन हिन्दूधर्म का उलंघन!
जिंदगी व फिल्म
एक दूजे से हुए हैं भिन्न,
जीवन शैली परिवार की,
वास्तविक जीवन की,
अपने अपने धर्म व संस्कार की
स्वयं को अनुप्राणित करती है !
फलती फूलती व सम्भालती है !
आज का वालीवुड ,
नग्नता,फूहडपन का मिसाल है!
भारतीय समाज की संस्कृति सभ्यता से विपरीत ,
फिल्म की असभ्य चाल है !
नसेडी गंजेडियो का वालीवुड में प्रवेश है !
नव युवा,युवतियों के लिए
अंधकार मय भविष्य का समावेश है !
कहीं नहीं दिखता
वास्तविक जीवन
सिर्फ दिखावा व मनोरंजन है !
कभी सिनेमा जीवन के पास था !
भोला मन ,भोला प्यार
हृदय मे भरता प्रेम का एहसास था!
किन्तु,
आज का नायक
हो गया है महानालायक
बस कूद- फांद कलाकारी,,,
भाई,भतीजावाद की अन्याय पूर्ण
तानाशाही व मारामरी,,,,
विशेषकर ,ऐय्याशी है भारी !
आए दिन हीरो -हीरोइनें की हत्या,
नए उत्कृष्ट कलाकारों की
मानसिक हत्या,
यही वालीवुड की समस्या!
 
[टिप्पणी]
आज का सिनेमा कहीं भी वास्तविक जीवन से मेल नहीं खाता है करोड़ो की लेन देन,माफिया गैंग का अधिकार,पाश्चात्य शैली की नग्नता का अनुसरण, आए दिन हिन्दू धर्म का उलंघन, यही रूप समाज परिवार को बर्बाद कर रहा है,,,,
 
 
 
 
तन राता, मन सेत
गोपेश दशोरा
 
दूर से कितना अच्छा लगता,
फिल्मी दुनियाँ का संसार।
पास में जाने पर है दिखता,
शोहरत के नीचे का अंगार।
यहाँ समझौते की चढ़े बली,
तब इस नाली की खुले गली,
फिर लड़ना पड़ता अपनों से,
हर कदम यहाँ पर मौत खड़ी।
इस चकाचैध के पीछे की,
कालिखता नजर नहीं आती।
इनको अपना आदर्श बना,
नव पीढ़ी सम्भल नहीं पाती।
फिल्मी पर्दे पर जो दिखता,
वह केवल कपोल कल्पना है।
निज जीवन इनका देखो तो,
वीभत्स सा कोई सपना है।
मदहोशी का आलम दिखता,
सब लड़का-लड़की धुत्त रहे,
चरित्र का तो पूछो ही मत,
बिन शादी के ही संग रहे।
इनका हर सही-गलत कदम,
दूनियां को दिखाया जाता है,
है बदनामी का डर किसको,
बस सब पैसो की माया है।
कोई फंदे पर लटका मिलता,
कोई छत से नीचे गिरता है,
खुदकुशी उसे दुनिया कहती,
सच सस्ते दामों में बिकता है।
कैमरे पे कोई कितना हँस ले,
पर सत्य तो ज्ञात स्वयं उसको,
जब ऊपर होगा इन्साफ कभी,
माफ़ी दे पायेगा क्या खुद को।
 
[टिप्पणी]
टिप्पणीः फिल्मी पर्दे की दुनियाँ जितनी सुनहरी दिखती है दरअसल अन्दर से उतनी ही गन्दी है। यदा-कदा जब यह रूप सामने आता है तब हकीकत दुनियां के सामने आती है। ऐसी स्थिति सामने आने पर उनके माता-पिता पर क्या गुजरती होगी, सोच कर भी डर लगता है।
 
 
बोलीवुड तब और अब
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
(प्रोत्साहन हेतु)
 
वो दौर कुछ और था
जब धर्म – संस्कृति संग
समाज और देश
पर फिल्मांकन होता था
नायक और नायिका का
अभिनय व् मनोरंजन से नाता था
कुछ अपवादों संग
अच्छी अच्छी कहानियाँ
और फिल्मों के मधुर गीत
जन - जन के मन को भाते थे
लेकिन आज चित्रपट अधिकांश
श्रध्दा और संस्कृति संग भद्दा मजाक है
छल - कपट का इसमें बोलबाला है
नाम और काम की खातिर
बाज़ार बनने को मजबूर बालीवुड है
पाश्चात्य संस्कृति की आड़ में
भारतीय संस्कृति को मिटाना चाहते है
नशा, आतंक, अपराध और
अश्लीलता के कारोबार को
लगता घर - घर पहुँचाना उद्देश्य है
माध्यम वर्ग बहुत प्रभावित हुआ है
अपराध को तो मानो पंख मिले है
देख इनकी लोकप्रियता
युवा होता उत्साहित, अनुसरण करता है
इसके दुष्प्रभावों में फिर घिरता जाता है
बोलीवुड की झूठी शान का भ्रम जाल
दिन प्रतिदिन विस्तार पा रहा है
मेरा देश
इस कारण से पिछड़ता जा रहा है
संस्कृति और संस्कार भूल रहा है
रील और रियल लाइफ का यही सच है
 
[टिप्पणी]
इसमें कोई दो राय नहीं कि आज हमारी पीढ़ी पर बोलीवुड का विपरीत प्रभाव अधिक है. आज़ादी के नाम पर अपने उद्देश्य में बोलीवुड कामयाब भी हो रहा है. चिंताजनक है ...
 
 
 
रील लाइफ/ रीयल लाइफ
मीता चक्रवर्ती
 
 
चेहरे पर चेहरा लगाए
ये असली नकली चेहरे
ऐसा लगता है मानो
सच पर है झूठ के पहरे
झूठे हैं आंसु इनके
झूठी है मुस्कान
झूठे सारे जज्बात इनके
झूठी ही है पहचान
युवाओं को पथभ्रष्ट करे
देकर गलत ये संदेश
पाश्चात्यता को दे बढ़ावा
बनाए ऐसे परिवेश
हम जैसे हैं वैसे भले
ना चाहें झूठी शान
अच्छे हैं चाहे बुरे हैं
झूठी नही हमारी पहचान
अगर प्यारी है अपनी संस्कृति
गर प्यारा है अपना संसकार
तो करना होगा रीयल लाइफ से
इस रील लाइफ का बहिष्कार ।।
 
 
[टिप्पणी]
रील लाइफ मे कुछ भी रीयल नही होता है , सबकुछ एक छलावा होता है ।ये गलत बातों को भी इतने खूबसूरत अंदाज मे पेश करते हैं युवा पीढ़ी इनके चमक दमक मे भ्रमित हो जाती है
 
 
फिल्म
अलका गुप्ता 'भारती' ( विजेता )
(दोधक छंद आधारित मुक्तक - मापनी २११-२११-२११-२२)
 
भ्रष्ट किए ..सब गोरखधंधे ।
फिल्म जमीं ठुमकों पर गंदे।
मानस पोषित कर विकारी...
जिस्म फरोश हुये यह धंधे ॥
व्याकुल दर्पण मैल लगा है।
द्वंद उठे मन.. दुष्ट व्यथा है ।
कुंठित लोक कलंक सजाए...
बींध दिए सच वो अकथा है ॥
आनन फानन ..धूम धड़ाके।
जंगल जंगम प्राण ..धरा के।
लोक न लाज,दिखा व्यभिचारी...
रौंद दिया छल फिल्म दिखा के ॥
लील गये मन भंजक सारे।
सत्य सजीव मिटा,मद मारे ।
शोणित से पथ छोड़ गए वो...
नायक ये नकली दिल कारे ॥
 
[टिप्पणी]
आज की फिल्मे और नायक समाज को दूषित कर रहे हैं।