Sunday, February 16, 2014

7 फरवरी 2014 का चित्र और भाव



अलका गुप्ता 
~बेचैन आँखें ~

साध वर्षा की !
ताकता आकाश वो !
बेचैन आँखे !

लाचार वह !
भूखा है परिवार !
सुनलो ईश !

चीखें दरारें !
बादलों को पुकारें !
धरती प्यासी !

जीवन भारी !
जल ही है जीवन !
वो है किसान !



बालकृष्ण डी ध्यानी
~खाली आसमान~

खाली आसमान
निहरे ये तन
मन प्यासा खड़ा
सब बंजर बंजर

लकड़ी कि टेक से
धरा के उखड़े उथल
देख रही निगाहें
बेबस भरा मंजर मंजर

विहीन जल धरा का
कैसे फूटे कोपल
एक नजर टिकी नभ में
दिख जाये नीर बादल बादल

हताश चेहरा आज
आस लगाये सोच रहा
कब बरसेगा अब तू
नयन से बस छ्ल छ्ल

खाली आसमान
उष्ण से जलता सूरज
शुष्क वो तन मन
रहा वो खाली खाली
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जगदीश पांडेय
~ आँसू सूख चले हैं ~

कब तक जमीं ये तपती रहेगी
निगाहें हमारी तरसती रहेगी

आँखों से सब के आँसू सूख चलें हैं
न जानें कहाँ बादलों के रुख चले हैं

अब न यूँ तरसा बरस जा रे बदरा
बिन पानी बह गया नैनों का कजरा

ये बूढी निगाहें अब देखें तेरी राहें
तपती हुई जमीं तुम्हें ही अब चाहें

फसल तेरे बिन झुलसती रहेगी
निगाहें हमारी तरसती रहेगी



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~अरमानो की धरती~

तरसती आँखे और ये बंजर धरती
जैसे उजड़ गई हो मेरी सारी बस्ती
सपनो की उम्मीद बिक रही सस्ती
मन की आशा अब चीत्कार करती

प्रकृति हम से भी मजाक करने लगी
करे कोई और सज़ा हमे मिलने लगी
हरी भरी धरती अब आग उगलने लगी
हर जिंदगी अब खून के आँसू रोने लगी



Pushpa Tripathi 
~ सोचे किसान ~

सूखी धरती
मन व्याकुल क्षण
अग्नि बरसाए
प्रचंड प्रकोप l

देखता भूमिपुत्र
आसामान ऊपर
कुछ आस निराशा
पानी बिन भू l

बादल आते
घिर घिर चले जाते
बूँद बूँद पानी को
कितना तरसाते l

कैसा हो जीवन
क्या अर्जित धन
बिन खेती के 'पुष्प '
सोचे किसान l


भगवान सिंह जयाड़ा  
~मेघा आ~

मेघा रे मेघा क्यों तरसाए आजा ,
घटा घनघोर बन के ज़रा छा जा ,

तरसती नैनों को अब जादा न दुखा ,
खेतों को हमारे अब ऐसे ना सुखा ,

आश बिछाए देख रही है मेरी नैना ,
ऊपर वाले हम पर रहम कर देना ,

ऊपर वाले तुम्हारा होगा यह अहशान ,
सुन लो पालन हार हमारी भी फरमान ,

ऐसे ना रूठो किसान से हे भगवान ,
कर दे बारिष हे मेरे करुणा निधान ,

यह मेरी जिंदगी मौत का है सवाल ,
बरष जा मेघ अब हो गए हम बेहाल ,

मेघा रे मेघा क्यों तरसाए आजा ,
घटा घनघोर बन के ज़रा छा जा ,


किरण आर्य 
~प्राण पखेरू ~

आस का पंछी
है दम तोड़े
कुम्लाई सी आस है
नीर बहाती थी
जो अँखियाँ
सूखे उनके कोर है
जर्जर काया सूखी धरती
रोता मन का मोर है
टकटकी बांधे आस बिसूरती
बस क्रंदन है शोर है
पथरा गई है तकती अँखियाँ
अमावस्या पुरजोर है
प्राण पखेरू जीव छोड़ते
निराशा घनघोर है


नैनी ग्रोवर 
~दो बूँदें ~

सूनी सूनी अँखियाँ बाट तकत हैं, आजा,
ओ मेघ राजा जल बरसाजा..
कहर है टूटा, जीवन पे , अब तो दर्श दिखलाजा,
ओ मेघ राजा जल बरसाजा..

सूखे पड़े हैं खेत खलिहान सब,
फटने लगा धरती माँ का सीना,
क्या करें बूड़े हाथ पाँव अब,
मुशकिल हुआ है सब का जीना,
सुलगते तन पे, दो बूंदे, अपनी तू छिटका जा,
ओ मेघ राजा जल बरसाजा ..

माना के हम इंसानों ने ही,
उजाड़ा है सुन्दर सृष्टि को..
करेंगे कोशिश हम सब मिलके,
बस आस दिला, मायूस दृष्टि को,
फिर से लहलहाते खेतों की, एक झलक दिखलाजा,
ओ मेघ राजा जल बरसाजा...


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Thursday, February 6, 2014

25 जनवरी 2014 का चित्र और भाव



जगदीश पांडेय 
हिंद की अपनें आवाज तुम सुनों तो जरा
तिलक माटी का माथे लगा देखो तो जरा
न जानें कितनें चढ गये शूली प्यार से
बिछड गये वो माँ बाप से और यार से

आखिरी पल में उनके चेहरे चमकते रहे
देख शहादत की उमंग दुश्मन जलते रहे
याद कर शहीदों को आँसू बहा के देखो जरा
तिलक माटी का माथे लगा देखो तो जरा

हमें जान से है प्यारा तिरंगा
अपनी आन से प्यारा तिरंगा
शान से भी है प्यारा तिरंगा
सबसे न्यारा है हमारा तिरंगा

तिरंगा को दिल में बसा कर देखो तो जरा
तिलक माटी का माथे लगा देखो तो जरा
हर दिल में बसता ये लोकतंत्र हमारा है
दुनियाँ में मजबूत ये गणतंत्र हमारा है

हिंदी हैं हम वतन हिंदुस्तान हमारा है
सारे जहाँ से अच्छा गुलिस्ताँ हमारा है
इस बगिया को महका कर देखो तो जरा
तिलक माटी का माथे लगा देखो तो जरा


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
मेरा गणतंत्र मेरी पहचान ...

26 जनवरी 1950 को संविधान बना भारत की पहचान
तिरंगे में है मेरे भारत की आन, बान, शान और पहचान

गणतंत्र का ये तंत्र, मेरे हिन्दुस्थान की गौरव गाथा है
देश के लिए मर मिटने वाले शहीदों की अमर गाथा है

सैन्य-शक्ति से हम भरपूर, जोश में बस तिरंगा बसता है
मान-सम्मान का ये मेला राजपथ पर आज खूब सजता है

करता है सलाम हर भारतीय हमारे भारत की सेना को
आओ एक इमानदार नागरिक बन सहयोग दे सेना को



बालकृष्ण डी ध्यानी 
गणतंत्र दिवस

कविता मेरी
गणतंत्र दिवस कि
भारत माँ के
सविधान गठन कि

सब धर्मों को
एक सूत्र में बांधा
मेरे देश को
एक माला में पेरा

रोज नई अब
धरती श्रृंगार रचाती
धानी धोती पहन माँ
पूर्व दिशा से आती

जन खड़ा है आज
स्वागत करने
तिरंगा लहराकर माँ का
अभिवादन करने

बसंती रंग कि
महिमा अतिभारी
हृदय माथा चढ़े
दुश्मन डरे बारी बारी

प्रभुता अखंडता पर
तिलभर आंच न आने पाये
सब धर्म मिलजुल कर
देश को आगे बढ़ाएं

सक्षम युवा के हाथों में
सब कुछ अब है उन पर निर्भर
पुराने अनुभव साथ लेकर
भारत गणतंत्र संवारे

कविता मेरी
गणतंत्र दिवस कि
भारत माँ के
सविधान गठन कि


Pushpa Tripathi 
*~*~*~*~ ये देश हमारा *~*~*~*

भारत बना
संविधान बना
हम देश का
जिम्मेदार कानून बना l

भारत वासी
पहचान यही बस
तिरंगा झंडा
देश गौरव बना l

देश के लाल
जय वीर जवान
आम किसानों का
अधिकार बना l

जन्म भूमि
पग पग शीश नमाऊं
पावन दिवस
'पुष्प ' गणतंत्र बना l


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