बलदाऊ गोस्वामी
।।आतशी शीशा।।
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लो आतशी शीशा,गुण है अपार,
उपयोग करो इसे विविध प्रकार!
चिलचिलाती धूप में
बिन्दू फोकल मिलने पर
आग लगाता है,
किसी वस्तु के आकार को
दुगुना रुप में
दिखाता है,
लो आतशी शीशा,गुण है अपार,
उपयोग करो इसे विविध प्रकार!
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प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~ आज का डिटेक्टिव ~
हाथ आया जब 'मैग्नीफाइंग ग्लास'
फिर बढ़ गई अपनी भी कुछ 'क्लास'
रख कर असिस्टेंट अब हो गए हम 'बॉस'
खोजी हुई आँखे, लेने लगे अब कुछ 'चांस'
अंदाज हो गए अपने भी ख़ास, पीने लगा 'सिगार'
चढ़ा कर चस्मा आँखों पर, कहने लगा 'व्हाट फ़ॉर'
उधेड़ रहा बाल की खाल, करके 'इन्वेस्टीगेशन'
बन रहा अब राई का पहाड़, ऐसी हुई 'इमेजीनेशन'
संदेह करना हो गई आदत, शुरू हुआ शक का 'कालेज'
सीखा रिश्तो में आग लगाना, बढ रही अपनी भी 'नोलेज'
रोहिणी शैलेन्द्र नेगी
"परख"
किसी ने कहा...
हम अपने हैं तुम्हारे,
किसी ने कहा...
हम उनके हैं सहारे,
जांचा- परखा तो जाना,
कौन अपना है,
और कौन बेगाना,
भेड़ कि खाल में,
भेड़ियों को पहचाना,
चेहरा झूठ था सबका,
मुखौटों से छिपा हुआ,
नज़र आया शीशे में,
इस कदर था बिका हुआ,
क्यों हमने ज़िंदगी,
ऐसों के नाम की,
दोगला बनकर जिन्होंने,
हस्तियां बदनाम की,
अच्छा है शीशे ने,
परख तो करवाई,
कौन - कैसा है,
ये रौशनी तो दिखाई,
वरना हम तो आज भी,
झांसे में रहते,
बस उनके ढोंग को ही,
अपनापन समझते ||
बालकृष्ण डी ध्यानी
~भ्रष्ट मै~
लेकर यह यंत्र
ढूंढ़ने चला मै शुद्ध तंत्र
ढूंढ ना मिला कुछ भी
बस फैली थी यंह गंध
भ्रष्ट तंत्र भ्रष्ट यंत्र
और भ्रष्ट मै
थोडा और आगे गया
हौसला मेरा फुर हो गया
सब यंह फंसे मिले मुझको
दल में कंकड़ कि तरह पड़े मिले
भ्रष्ट तंत्र भ्रष्ट यंत्र
और भ्रष्ट मै
वंही मै दूर पड़ा था
वो यंत्र मेरे हाथ से सठा था
अचनाक मेरी आँखे पड़ी
आइने में मै कंही नही
भ्रष्ट तंत्र भ्रष्ट यंत्र
और भ्रष्ट मै
मै हिस्सा बन चुका था
वो यंत्र मेर हाथ से छूट चुका
अब ढूंढ मै अपने को कैसे
मै उसमे मिला पड़ा था
भ्रष्ट तंत्र भ्रष्ट यंत्र
और भ्रष्ट मै
Pushpa Tripathi
~फर्क निरिक्षण ~
ये फर्क
आँखों का नहीं
चश्मे का नहीं
कम घटने का नहीं
और बढ़कर उतरने का भी नहीं
फर्क है .....
सूक्ष्म बिंदुओं का आपस में जुड़ने का
मानसिक बौद्धिकताओं का अध्यन करने का
मैग्नीफाइंग काँच के आरपार दिखने का
विलय .... विलयन … परमाणु के टकराने का
फर्क .....निरिक्षण ..... परिणाम
हल ढूँढ लाने का
अरे .... !!!
वही जो
वैज्ञानिक खोज लेते है
अपनी अनोखी .. निराली ...... अद्भुत
विज्ञान की यांत्रिक यंत्र ....'पुष्प ' बस एक काँच से ..... !!!!!
नैनी ग्रोवर
~ कमाल का ये ग्लास ~
वाह जी क्या कमाल की चीज़ है ,
दिल मेरा तो गया इसपे रीझ है,
बहुत दिनों से तड़प रही थी,
कुछ नज़र ना आता था,
फेसबुक पे भी आना,
मुझको ना भाता था,
आँखों ने ले रखी थी क्लास,
आपने दे दिया मैग्निफाइन ग्लास,
अब तो साफ़ नजर आने लगा है,
दिमागी अन्धेरा भी जाने लगा है,
आज तो हास्य लिखने का मन है,
कल से गहन लिखूंगी प्रण है,
आज तो मुझे बस इतना ही सह लो,
चंद पल मेरे शब्दों के साथ रह लो । :))
अलका गुप्ता
~ पर्दा फास ~
करते होंगें कुछ भी प्रयोग
इस मैग्निफाईंग ग्लास का |
हमने तो सामने कर किरणों के
सूरज से जलाए हैं कागज खूब |
कभी-कभी बाबा जी का चश्मा भी
करके पार ..........किया है ...
मैग्निफाइंग सा ही प्रयोग |
वह था बचपन शैतान |
नई जानकारियों का करता था |
जम कर खूब जादुई प्रयोग |
और हद तो तब हुई जब ...
भाई के हाथ पर कर दिया
यही जादुई प्रयोग |
फिर क्या हुआ मित्रों !!
मेरा ...अब क्या बताऊँ ...
जो हुआ सो हुआ ...
मैं और भाई भूल गए उस दर्द को ..
लेकिन निशान दिला देता है ...
याद फिर ...वही प्रयोग |
आज दिला दिया है ...
याद फिर वही दिन |
मस्त शैतान बचपन का |
प्रतिबिम्ब ने तश्वीर के माध्यम से |
चलो इसी बहाने से हुआ|
राज एक ..पर्दा फास |
इस मैग्निफाईंग ग्लास का ||
जगदीश पांडेय
-------- एक तलाश जीवन की -----------
काश मिल जाये मुझे भी ऐसा कुछ यंत्र
जिससे पढ सकूँ मैं खुशियों के सब मंत्र
सब की आँखों से मैं गमों को चुरा लूँ
लोगों के आँसू अपनी आँखों से गिरा लूँ
मुस्कुराहटों का काश जान पाता मैं तंत्र
काश मिल जाये मुझे भी ऐसा कुछ यंत्र
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/