Tuesday, November 10, 2015

४ नवम्बर २०१५ का चित्र और भाव




नैनी ग्रोवर 
--इंतज़ार--

अंधेरों में बैठे, इंतज़ार कर रहे हैं हम रौशनी का,
कब निकलेगा सुनहरा चाँद, कब देखेंगे मुँह चांदनी का..

ग़ुम हो गए सारे नज़ारे, गुमसुम हुई बहारें,
खो गए जाने कहाँ, अम्बर से तारे प्यारे प्यारे,
लगता है जैसे टूट गया सुर, कोई रागिनी का..

खिलवाड़ किया कुदरत से हमने, अंजाम यही होगा,
डूब जायेगी अँधेरे में दुनियाँ, सच मान यही होगा,
कुछ तो कर लो मान, इस धरती जग जननी का..!!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~भीड़~

आज एक भीड़ में खड़े है सब
देख रहे, माहौल बदलेगा कब
कोई रोशनी के लिए जले जब
चेहरा शायद सबका दिखे तब

वैसे भीड़ किसी की होती नही
आज तेरी कल मेरी सोच यही
मानवता सम्मान खोये है कही
अपना कृत्य, केवल लगता सही

भीतर की ज्वाला अभी शांत है
हर कोई, यहाँ असमंजस में है
दूजे को देख 'प्रतिबिंब' सोचते है
मुझे छोड़, यहाँ सब मजे में है


Kiran Srivastava 
" अंधकार "

किंकर्तव्य विमूढ क्यूँ बैठे हैं
ये अंधकार तो है क्षणिक
असली अंधियारी है अंदर
जिससे नही लगे जग सुंदर
मिटा सको तो इसे मिटाओ
एक ज्ञान का दीप जलाओ....

भ्रष्टाचार फैला चहुँओर
त्राहि -त्राहि मची है जोर
क्या महिला क्या बच्चियाँ
उड. रही हैं धज्जियां
खुद समझो सबको समझाओ
एक ज्ञान का दीप जलाओ....

अंदर बाहर सब काला है
नियत में गडबड झाला है
चेहरे पर चेहरा हैँ लगाये
जिसकोकोई समझ न पाये
मिलकर इनकोसबक सिखाओ
एक ज्ञान का दीप जलाओ....!


बाल कृष्ण ध्यानी 
~अँधेरे में ~

अँधेरे में अंधेरों से
अँधेरे चेहरे जब मिले
अंधेर बस अँधेरे ये

बंद तस्वीर
बंद लकीरों से मिले
तब बंद कमरों का खेल चले

मूक हैं अपने से
मूक वो सपने से
ना जाने मन क्या पले

कैसा सन्नाट है
कैसा पल उभर आया है
विचलित ही सब को पाया है

अँधेरे ये .....................



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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