Tuesday, December 31, 2019

#तकब ५ / १९






मित्रों आप सभी को मेरा स्नेहयुक्त नमस्कार! लीजिये प्रस्तुत है इस बार की प्रतियोगिता हेतु तस्वीर। नियमों का पालन अवश्य करें, जिसके लिए उन्हें पढ़ना भी जरूरी है।
१. दिए गए चित्र / तस्वीर पर कम से कम १० पंक्तियां व अधिक से अधिक १६ पंक्तियां किसी भी विधा में लिखिये और साथ ही उसका संक्षिप्त । शीर्षक व अंत मे एक टिप्पणी अपने उदृत भावों पर अवश्य लिखिये।
२. रचना मौलिक व अप्रकाशित होनी चाहिए।
३. प्रतियोगिता के वक्त लिखी हुई रचना/पंक्तियों पर कोई टिप्पणी न हो। हां यदि किसी प्रकार का संशय हो तो पूछ सकते है। निवारण होते ही उन टिप्पणियों को हटा दिया जाएगा।
४. आप अपनी रचना किसी अन्य माध्यम में पोस्ट तभी कर सकते हैं जब प्रतियोगिता का परिणाम आ जाये और ब्लॉग में शामिल कर लिया गया हो।
५. प्रतियोगिता हेतु रचना भेजने की अंतिम तिथि ३० नवम्बर २०१९ है।
६. निर्णायक मंडल के सदस्य केवल प्रोत्साहन हेतु अपनी रचनाएं भेज सकते है। परन्तु आग्रह है कि वे समय से पहले भेजे अन्यथा प्रोत्साहन का कोई औचित्य नहीं रह जाता। धन्यवाद, शुभम !!!! 

इस प्रतियोगिता के विजेता हैं सुश्री माधुरी रावत जी व श्री गोपेश दशोरा जी 

बालकृष्ण धीरजमणि ध्यानी
अकेलापन

फिर एक बार ये
सुबह क्यों उभरी है
कभी भरी रहती थी वो
वो सड़कें क्यों खाली हैं
उभर रहे हैं सवाल
एक एक कर मुझ से क्यों
इस अतृप्त आत्मा को
अब तृप्त कौन करेगा
सुबह का नाश्ता
अब छोड़ उठा मै
चिड़चिड़ापन गुस्सा
अब शांत कौन करेगा
अंतर्गत मेरे बस
अब ऐ चित्र घूम रहा है
लाल है सिग्नल पर
मन बस उसे तोड़ रहा है
सब कुछ रोका हुआ है मेरा
स्तब्ध समय बस बोल रहा है
मेरा अकेलापन इतना क्यों भारी
मुझ से वो क्यों सहन नहीं हो रहा है
फिर एक बार ये
सुबह क्यों उभरी है


टिप्पणी: अपने अकेलेपन से कुंठित हिर्दय पटल अपनी मनस्थिति हिसाब से इतनी सुंदर सुबह से ही लड़ पड़ा उस के कुंठित हिर्दय में उभरे प्रश्नों से लड़ता उसक अकेलापन उसे सहा नहीं जा रहा उसी को वो प्रस्तुत कर रहा है


नैनी ग्रोवर
रूठ गई रौनक

क्यों सुनसान है शहर,
कहाँ गुम हुई रौनक ?
डूबते सूरज की भाँति,
कहाँ डूब गई रौनक,
राहें पुकारें राही को,
तरसें आवा-जाही को,
अंधेरे-उजियारे के मिलन में,
कहाँ दूर हुई रौनक ?
क्या लगी हाय किसी बिरहन की ?
ये पीड़ हो जैसे किसी मन की,
टूटे मन की किस्मत जैसे,
कहाँ रूठ गई रौनक ?

टिप्पणी: बस जितना मुझ कूड़मति को समझ आया, लिख दिया, आप सभी साथी इतना अच्छा लिखते हो, मैं स्वयं पर ही सवाल उठाने लगती हूँ, 😊 मुझे कोई विद्या नहीं आती, बस चार लाइन की मेरी हाज़िरी ही समझें, या आप सभी दोस्तों के बीच रहने का बहाना । 

Madan Mohan Thapliyal
प्रोत्साहन के लिए
दौड़ती-भागती जिंदगी में
नब्बे पल ( Second ) का सच

भोर का समय, सुनसान सड़क ,दो रोज से ऊहापोह की स्थिति
असहनीय प्रसव पीड़ा, चीरफाड़ का डर
फोन की घंटी, जल्दी आने का संदेश
मरीज ICU में और सड़क के नियम
अस्पताल पहुंचने की व्यग्रता , ९० सेकिंड और प्रतीक्षा
आंख फड़कना, अशुभ का संदेह
स्वयं को संयत करने की नाकाम कोशिश
पूजा-अर्चना, दान -पुण्य , धर्म - कर्म दस्तक देते हुए
पांच सेकंड शेष, शिकंजे ( clutch) पर दबाव कम
त्वरक (Accelerator) पर पैर का दबाव
तभी एक समाचार, खुशखबरी !
जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ
सिग्नल की बत्ती लाल से हरी
पूर्व में भगवान भास्कर उदय होते हुए
गाड़ी मंथर गति से अस्पताल की ओर सरकने लगी
दर्शन करने नव जीवन का ।।

टिप्पणी: जरा सा विलम्ब होने से मन में तरह-तरह के विचार कौंधने लगते हैं जो हमें विचलित कर देते हैं । अतः संयम से काम लेना ही श्रेयस्कर है।

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
प्रोत्साहन हेतु
रुक जाना नहीं ...

वक्त का चक्र घूमता है
कभी खुशियों से दूर करता है
कभी सर माथे को चूमता है
कभी खुद पर इतराता है
बदलती दुनियां में
वैसे राह कोई आसान नहीं
हो वक्त बुरा तो
अपने, कोई पहचानता नही
यूं जब रुकी रुकी सी हो
जीवन में जीने की राहें
अंधियारे से निकलती किरण
जिन्दगी के मायने बदल देती है
हौसला खुद का
किस्मत बदल सकता है
मान बात "प्रतिबिम्ब" की
तू खुद की नियति बदल सकता है

टिप्पणी: बाधाएं आएँगी जायंगी ... रुक जाना नहीं यूं कही हार के .....बस इसी गाने की चंद लाइनों का ख्याल उतर आया इस चित्र को देख कर



Ajai Agarwal
प्रोत्साहन हेतु
दिवस का अवसान


प्रचंड रश्मियों को
थपकियाँ देता अंशुमाली
मृदुल चितवन लिए-
निशा को आगोश में लेने को आतुर
देख रहा ! अनथक चलते चौराहे को -
---
हरी से पीली फिर लाल होती बत्ती
यहां भी गति-विराम एक ही जगह !
लाल बत्ती होना -मतलब --
कदमों का बोसा लेने को आतुर सड़क
घरौंदे को लौटते कुछ कदम -
नहीं करेंगे ये हवा को प्रदूषित -
----
जलती-बुझती बत्तियों संग
चलता-रुकता यातायात
गति -अवरोध- विराम -गति
सृष्टि की दृष्टि ,जीवन चक्र
सोचो तो !
क्या नहीं मिलता चौराहों में -
---
"जटिलो मुण्डी लुञ्चित केशः
काषायाम्बर-बहुकृतवेषः।
पश्यन्नपि च न पश्यति मूढः
उदरनिमित्तं बहुकृत शोकः।।"से लेकर
"पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम्।"तक
यत् ब्रह्मांडे तत् चौराहे 

टिप्पणी: संध्या का मृदुल दिवाकर /अंशुमाली और लालबत्ती पे क्षण भर को रुका हुआ यातायात --मानो जन्म-मृत्यु के मध्य आत्मा के विश्राम का समय ----ध्यान दें तो मन को कबीर बना देते हैं चौराहे -
 

मीनाक्षी कपूर मीनू
रफ्तार ..ज़िंदगी की
******************
हर शाम
ढलते हुए सूरज की
मद्धम सी होती रोशनी में
थक के ये शहर
सुस्त सी होती ज़िंदगी की रफ़्तार के
साथ कहीं
नींद के आग़ोश में जाने को बेताब
इंतज़ार करता है रात का
वहीं , थकी हुई सड़कें
जगी रहती हैं
कुछ जलती- बुझती
रंग बदलती बत्तियाँ साथ देती हैं
रात भर,
और जगा रहता है
कभी ख़त्म न होने वाला सफ़र
जिसकी रफ़्तार कभी तेज़
कभी धीमी हो जाती है
अंततः नई भोर
का आगमन
फिर स्वतः ही
मानो खुल जाती है आंख
सर्पीली सड़क
ज़िंदगी सी ..मानो
फिर चमकने लगती है
एक छोर से दूसरे छोर तक
मनस्वी ....
पुनः आवागमन
पुनरावृत्ति क्षितिज सी .......

टिप्पणी: ज़िंदगी का सफर भी कुछ ऐसा ही तो होता है ढलते सूरज को देख कर भी आने वाले सुबह का इंतज़ार । खामोशी और सदायें मानो साथ साथ चलती रहती जैसे कि सड़क की लाल हरी बतियाँ । कहीं न कहीं सन्देश देती नज़र आती कि उगते सूरज को देखने की खुशी का अहसास महसूस करने के लिए उसकी पूर्व सांध्यबेला में खुद को समेटना पड़ता है । आवाजाही की इस सड़क की भांति अपनी ज़िंदगी के अंधेरे को भी आत्मसात करना पड़ता है ।


Meena
मुश्किलों की लाल बत्ती

मुश्किलों की ये लाल बत्ती
जल्द ही बुझ जाएगी
तेरी उम्मीदों की बंधती बदरी
पूरे आकाश का स्याहपन मिटाएगी
संघर्ष की ये सफेदी धारियां
एक दिन तेरी फतह का, इतिहास बताएंगी
मुश्किलों की ये लाल बत्ती
जल्द ही बुझ जाएगी
तू रुकना नहीं,
तू थकना नहीं
अपनी जिजीविषा का
डीजल, पेट्रोल और सीएनजी
अपनी जीवटता से ही देना
मुश्किलों की ये लाल बत्ती
जल्द ही बुझ जाएगी
इस बत्ती का स्याहपन देख
तू घबराना नहीं
उस आकाश की लालिमा को देख
जो तेरे लिए अपने आँचल की
छांव लिए खड़ी है
स्वागत कर उस उगते सूरज का
जो आज तेरा गुरु बन खड़ा है
मुश्किलों की ये लाल बत्ती
जल्द ही बुझ जाएगी

टिप्पणी: प्रतिस्पर्धा भरी इस ज़िंदगी में इंसान बहुत जल्दी हताश और निराश होता है। सबसे दुख की बात ये है कि किसी के पास दो पल भी नहीं होते हैं, परेशान व्यक्ति से बात करने के लिए। ऐसे में उस हताश व्यक्ति की पीड़ा मैंने इन पंक्तियों में दी गई तस्वीर को देखकर रची है।
 

किरण श्रीवास्तव
"और जीवन चलता रहे " ......!!
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सन्नाटा क्यों छाया है,
क्यों अंधियारा गहराया है?
उठ जा तू अब ना घबरा,
ले देख परख ,बढ़ता ही जा!
नव सूरज देखो मुस्काया,
उम्मीद किरण फिर बिखराया!
मन का अंधियारा मिट जाये,
उल्लास दुबारा भर जाये.....!!!!
दु:ख -सुख कहां ठहर पाता ,
एक आता है,दूजा जाता !
चलने का ही नाम है जीवन,
पथ पर्वत ढ़लान है जीवन!
रस्ते कहाँ खतम होतें हैं,
सफर सदा चलता ही जाये,
मंजिल तो वही तक अपना
जहाँ ख्वाहिशें थम जाये.....!!!!!!

टिप्पणी: कुछ परिस्थितियां जीवन में स्तब्धता भर देती है। कदम ठहर जातें हैं। पर जीवन तो चलने का नाम है...कुछ लोग सूरज की भांति पुनः राहों को रोशन कर आगे का मार्ग प्रशस्त करतें हैं।


Varsha Thapliyal
फिर वही विराम!


फिर वही विराम, वही ठहराव..
ठहराव जिसमें गति है, अस्थिरता है
गंतव्य पर पहुँचने की व्याकुलता है..
उल्टी गिनती में भी कैसे हम, सबकुछ सीधा देख लेते हैं
हरा रंग कैसे हमारी, बेसब्री का इम्तिहान लेता है
और पलक झपकते ही, लाल रंग में खो जाता है..
प्रकृति भी हमारे विवेक को छल नहीं पाती
डूबता सूरज घर जाने का इशारा करता है
तो उगता घर से जाने का..
चलते हैं हम, फिर रुक जाते हैं
पल भर के लिए ज़िन्दगी की दौड़ में हम ठहरना सीख जाते हैं
काश यही नियम असल जिंदगी में भी होते
भाग-दौड़ में हम उन अनमोल पलों को ना खोते
जो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बनाते हैं
घड़ी भर रुकना, देखना, सहेज कर दिल में
फिर चल पढ़ना.. यही मंत्र सिखाते हैं..
फिर वही विराम, वही ठहराव..

टिप्पणी: आज मैं भी इसी दौड़-भाग को जी रही हूँ। जीत तो रही हूँ सबकुछ पर.. ज़िन्दगी को खो रही हूँ। चित्र देखकर जो महसूस किया, बस उकेर दिया..


गोपेश दशोरा
नियम पथ

कुछ पल का ही तो रुकना है,
और फिर आगे बढ़ जाना है।
इतनी जल्दी क्या है इन्सां,
क्या चाँद पे तुझको जाना है।
काश! के जीवन में होते,
ये सिग्नल तो हम रुक जाते,
कब रुकना है, कब चलना है,
खतरे से पहले सम्भल जाते।
यह नियम सड़क का है लेकिन,
यह जीवन में भी चलता है।
बाधाओं पर जो रुके जरा,
वो ही फिर आगे बढ़ता है।
जीवन के नियम तय करके,
निर्भीक होकर उस पर चल दो।
सीखोगे ठोकर खा खा के,
विश्वास रखो, उठो, फिर चल दो।
नियम का पालन करो सदा।
प्रकृति भी यही है सिखलाती,
नियम पथ पर जो चले सदा,
विजय श्री उन्हीं को दिखलाती।

टिप्पणीः सड़क पर जो नियम का पालन करता है वो न केवल चालान से बचता है वरन् सुरक्षित भी रहता है ठीक उसी तरह यदि जीवन में भी नियम बनाकर दृढ़ता से उसका पालन किया जाए तो इन्सान थोड़ा धीरे ही सही पर सफलता निश्चय ही पा सकता है।

कुसुम शर्मा
मंज़िल की चाह
—————-
भोर भई अब हुआ सवेरा ले कर नव किरणों को साथ !
नई चेतना नई उमंग है मन में आया नव विश्वास !
राह कठिन है दूर है मंज़िल अडिग हैं मन में जाने की चाह !
राह में आते मंदिर मस्जिद मन को पुलकित करते है
अडिग रहे विश्वास तुम्हारा नई चेतना भरते है !
राह में आती लाल बत्ती का यही तुम्हें समझना है !
मुश्किल आये राह में कितनी तुम्हें मंज़िल को पाना है !
थोड़ा रूक कर फिर चलते जाना है !!

टिप्पणी:- राह में चाहे कितनी कठिनाई आये हमें उनसे हार नहीं माननी चाहिए उनका डट कर मुक़ाबला करना चाहिए क्योंकि हर रात के बाद सवेरा होता है !
 

माधुरी रावत
मरीचिका

उदय हो रहा है दिनकर का
या अस्ताचल को है प्रस्थान
भेद रहा ना निशा-दिवस का
थमा हुआ सा सब चलायमान
रोक रहा कौन रथ रश्मियों का
नीरवता कैसी ये छाई
ठहरा-ठहरा सा ये जीवन
रक्ताभ लग रही क्यूं अरुणाई
सुविधाजनक हुई चौड़ी सड़कें
और धरती माँ वृक्षविहीन
विकास धरा रहेगा धरा पर
और मानव जीवन स्पन्दनहीन
अपने ही हाथों से हमें अब
करना होगा धरा का सृंगार
एक-एक परिवार लक्ष्य ले
अवश्य पेड़ लगाए एक हज़ार

टिपण्णी: सुख सुविधाओं, साधन संपन्न होते जाने की होड़ में, तथाकथित विकास के लिए, नित्य धरती को रौंद रहे हैं हम, बिगाड़ रहे हैं उसका सुन्दर स्वरुप, जो हमारे स्वयं के लिए घातक है।
 


अलका गुप्ता 'भारती'
गीतिका

बेरहम आँधियाँ हैं चली क्या करें ।
लुट रही आबरू हर गली क्या करें ॥
मौज का शौक था जिंदगी लूट कर ।
अधखिली तोड़ दी वह कली क्या करें ॥
दे दिये हाथ में गान शमशीर के ।
अब लहू सुर लगें , ऐ वली क्या करें ॥
क़ैद हैं वारिसाने हुकुम बेटियां ।
मार दीं कोख में या पली क्या करें ॥
तौल दें..बाज़ ये .. देश का मान भी।
फ़िर मचे..मुल्क में खलबली क्या करें ॥
जंग अब लड़ नयी ठान ले 'भारती' ।
छोड़ दे मानता अब गली क्या करें ॥

टिप्पणी: क्षमा चाहती हूँ रचना पुरानी है नयी रचना संभव नहीं हो सकी ...अतः मैं स्वयं को प्रतियोगिता से बाहर रखती हूँ । हाँ ...देश की सुनसान सड़को पर ..वह भी अंधेरा होने लगने पर माहिलाओं के लिए जो असुरक्षा की भावना पैदा हो गई ..वही व्यक्त कर सकने का प्रयास हुआ है ।



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

Monday, November 4, 2019

तकब – ४/१९



मित्रो नमस्कार !
तस्वीर देख आप समझ ही गए होंगे कि मैं आपसे इस चित्र के माध्यम से क्या कहलवाना चाहता हूँ. फिर भी 

नियम :
१. इस चित्र पर उभरे हुए आपके भाव जिसे शीर्षक व् एक टिप्पणी [ आपके शब्दों का कारण व् सृजन के 
पीछे की सोच ] के साथ लिखना है.
२. किसी भी काव्य विधा में कम से कम १०- १२ और अधिकतम २४ पंक्तियों में आपको अपने भावों को रखना है. अगर आप किसी नई विधा में लिख रहे हैं तो अवश्य उसका उल्लेख करे.
३. कृपया किसी भी सदस्य की रचना पर टिप्पणी रूप में अपनी टिप्पणी न लिखे. यदि आप पोस्ट के संबंध में कोई बात पूछना चाहते है तो अवश्य पूछे लेकिन समाधान के बाद टिप्पणी को हटा लिया जायेगा.
४. निर्णायक मंडल के सदस्य केवल प्रोत्साहन रूप में लिख सकते है और आशा है वे प्रोत्साहन हेतु अवश्य अपने भाव समय से पूर्व प्रेषित करेंगे.
५. आप अपनी रचना को परिणाम घोषित होने व ब्लॉग में पोस्ट होने के बाद ही आप अन्य स्थानों पर पोस्ट कर सकते है.
६. रचना पोस्ट करने की अंतिम तारीख २६ अगस्त २०१९ है.
७. शुभकामनाएं !!!!! 

इस प्रतियोगिता की विजेता है सुश्री रोहिणी नेगी 
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
प्रोत्साहन हेतु
~एक ध्वज, एक निशान~

अखंड भारत के
हमारे सपने का
अब श्रीगणेश हुआ
मेरे भारत में अब होगा
एक ध्वज, एक निशान
सहत्तर सालों से
जिसका था इंतज़ार
हटा कर तीन से सहत्तर
मोदी शाह की जोड़ी ने
देश को दिया बड़ा उपहार
जम्मू कश्मीर और लद्दाख में
होगा अभी केंद्र का शासन
बन कर भारत का अभिन्न अंग
हम चलेंगे संग संग
बनेगा मेरा भारत महान
आतंक का होगा सहार
बढ़ेगा स्नेह और व्यापार
भारत का मुकुट फिर चमकेगा
शामिल हो विकास यात्रा में
खुशहाली का होगा संचार

टिप्पणी: देश की अखंडता, एकता व् सुरक्षा केंद्र सरकार ने एतेहासिक फैसला लिया है. हर भारतीय आशा करता है की अब कश्मीर में विकास और खुशहाली लौटेगी....बंटा हुआ भारत अब अखंड भारत व् श्रेष्ठ भारत की और अग्रसर है ...जय भारत

Mita Chakraborty
एक झण्डा एक देश

अब एक ही झण्डा और एक है देश मेरा
कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक है देश मेरा
शत्रु भी अब कर न पाएगा खण्डन इसका
जाँ बाज वीरों का ऐसा देश है मेरा
भौगोलिक संरचना बदली , बदला इतिहास आज पुराना
अलग थलग था जो कश्मीर, भारत के सर का ताज बना
अलगाववादी नेताओं की अब चल न पाएगी मनमानी
एक सुत्र मे देश बंधा और अब एक ही संविधान बना
उपेक्षित सा था जो लद्दाख अब उसको भी नया आधार मिला
सबको समान अवसर और एक समान अधिकार मिला
आजादी के बाद सम्पूर्ण आजाद हुआ है देश मेरा
कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक है देश मेरा
अब एक ही झण्डा और एक है देश मेरा


नैनी ग्रोवर
मेरा काश्मीर

अधूरा-अधूरा सा लगता था देश मेरा,
आज एक ही घर मे पूरा परिवार बस गया..
मेरे हिमालय की खुशबू महकने लगी है,
फूलों से सारा मेरा काश्मीर सज गया...
फैंक के पत्थर लौट आओ,
हिंदुस्तान के बच्चो,
इक नया सवेरा आया है,
नसीब जग गया...
बहकावे में अब नहीं आओगे,
ये खुद से करो वादा,
चलो सितारों की और अब,
नया चांद खिल गया...
कामयाबी अब दूर नहीं तुमसे,
बस इतना यकीन करना,
दो तमाचा दुश्मन के मूंह पे,
देखो भारत का नक्शा बदल गया...

टिप्पणी: 370 और 35 A की धारा हटना बहुत आवश्यक था, मासूम बच्चों को गुमराह कर उनके मन में नफ़रत भरने का काम करने वाले देशद्रोहियोँ के मुहं पर ये झन्नाटे दार चांटा है, जो अपने बच्चों को तो विदेशों में पड़ने भेज देते हैं, और घाटी के मासूमों के हाथों में पत्थर थमा देते हैं...



रोहिणी शैलेन्द्र नेगी
भारतवर्ष का स्वरूप
*****************
चोटी का सिर-दर्द बना था जो,
वो दर्द मिटाया है,
आज शहीदों के बलिदान का,
क़र्ज़ उन्हें चुकाया है,
मस्तक जो सूना था अब तक,
उस पर तिलक लगाया है,
मेरे भारत-वर्ष के माथे का,
स्वरूप लौट आया है।
दो विधान और दो निशान की,
गाथा बहुत सुनाते थे,
"भिन्न हैं हम" कहकर स्वयम् को,
जो ये भ्रम फैलाते थे,
आशंकाओं के घेरे में,
जो फ़साद करवाते थे,
आज सुना है वक़्त ने........
उनको भी रुलाया है,
मेरे भारत-वर्ष के माथे का,
स्वरूप लौट आया है।
है सम्पूर्ण अधिकार सभी का,
वो सम्मान मिलेगा सब,
खण्ड-खण्ड में जो बिखरा था,
आज अखण्ड हुआ है अब,
काली स्याह रात की परछाईं का,
अंत किया है अब,
एक राष्ट्र हैं हम.....जनहित में,
जारी ये करवाया है,
मेरे भारत-वर्ष के माथे का,
स्वरूप लौट आया है...!
मेरे भारत-वर्ष के माथे का,
स्वरूप लौट आया है...!!


टिप्पणी: कश्मीर मे धारा-३७० और ३५-ए को पूर्ण रूप से समाप्त करने के बाद अब वहाँ के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकार प्राप्त होंगे। कोई भी राजनेता धर्म और जिहाद के नाम पर उन्हें भड़का नहीं सकेगा। कश्मीर से कन्याकुमारी तक अब सही मायने में भारत एक अखंड राष्ट्र बना है।


किरण श्रीवास्तव
नव भारत
-------------------------------------------------
अमन चैन
लगी है छाने,
अलगाववाद की
बंद दुकानें..!
नयी क्रांति और
नया सबेरा,
घाटी में अब
हुआ बसेरा..!!
सूरज चमका
धरती हर्षायी,
बदला इतिहास
जीवन मुस्कायी..!!!
एक संविधान
तिरंगा एक,
नियम कानून
भी लागू एक..!!!!
उपेक्षित था
लद्दाख का रूप,
उसनें पाया
अलग वजूद..!!!!!
वर्षों का सपना
हुआ साकार,
बदली व्यवस्था
बदला आकार..!!!!!!
भारत माता
अति हर्षायी,
खुशहाली सर्वत्र
है छायी.....!!!!!!!


टिप्पणी: धारा370 और 35 A की वजह से अलगाव वाद का बोलबाला था। आवाम तबाह था उपर्युक्त धारा को खतम करनें का सपना लिए कितनें दिग्गज चले गये...। अंततः सपना पूरा हुआ,इसका श्रेय हमारे मोदी जी और उनके सहयोगी टीम को जाता है। भारत के इस कुशल शासक को दिल से सलाम।
 

Ajai Agarwal
अब घाटी हर्षायेगी --प्रोत्साहन के लिए --
===========
अब घाटी हर्षायेगी
अपना सच्चा हक पाएगी
दो पालों में लुटी- पिटी सी
दो झंडे, दो संविधान की
मजबूरी में घुट-घुट के जीती
भारत माँ अब मुस्क्यायेगी।
केसर की सुरभि से अब तो
सारा भारत महक उठेगा
कहवे संग चाय की चुस्की
बतकहियाँ कितनी होंगी अब
फुलकारी पंजाब प्रांत की
कश्मीरी शालों पे काढ़ी जायेगी
कजरी के नृत्यों संग अब तो
वुगी -नचुन ,हाफीजा गूंजेगा
अब मेरी भारत माँ का
हृदय कभी नहीं रोयेगा
डल के दर्पण में सारा
भारत अब मुहं देखेगा
एक देश का एक हो झंडा
एक ही हो संविधान हमारा
मोदी जी ने किया है देखो
माँ भारती का पुनर्संस्थापन।।

टिप्पणी: 5 अगस्त 2019 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में एक पृष्ठ लिखा गया जब जन-जन के नायक मोदी जी ने स्वतंत्रता प्राप्ति से चले आ रही कानून की धारा 370 को एक झटके में समाप्त कर दिया - खुशियों की ये कविता उसी संदर्भ में।


रुचि बहुगुणा उनियाल
भारत की भूमि पर बिना भय रहिए
(मनहरण घनाक्षरी)

केसरिया पगड़ी है, हाथों में तिरंगा जहाँ
ऐसे देश के सपूतों पर, हमें अभिमान है।
निडर खड़े हैं वीर, रक्षा करने सीमा पर
एक_एक वीर यहाँ, सिंह के समान है।
भारती की आन_बान, शान के लिए
देखो करते अपनी-अपनी, जान कुर्बान हैं।
भीततरघात कर रहे जो, साँप आस्तीन के
उनकी हत्या करना तो, पुण्य के समान है।
एक राष्ट्र, ध्वज एक, कर दिया है अगर तो
देश के प्रधान पर, ऐसे न बिगड़िए ।
काश्मीर से लेके, है कन्याकुमारी एक
पापियों के पाप को, और मत सहिए।
जहाँ चाहे बिना भय, घूमा कीजै हिंदोस्ताँ में
भारत की भूमि पर, बिना भय रहिए ।
सात दशकों का कुष्ठ, पल में सुधार दिया
देश के प्रधान की जय, बार_बार कहिए।

टिप्पणी _भारतवर्ष के सुयोग्य प्रधानमंत्री के ऐतिहासिक निर्णय ने देश की दशा और दिशा को सुधारा है और इसके लिए जो भी कहूँ सब कम होगा! सत्तर वर्षीय कुष्ठ रोग के समान भारत से लिपटा धारा 370 का रोग प्रधानमंत्री ने धोकर माँ भारती के भाल पर केसर तिलक किया है, और इसके लिए आज के ही नहीं आने वाली पीढ़ियों के लिए भी आदरणीय प्रधानमंत्री का नाम एक महापुरुष की तरह उल्लेखनीय है! नमन उनकी  राष्ट्रधर्मिता को मेरा प्रणाम। 


Madan Mohan Thapliyal
प्रोत्साहन हेतु - पूर्ण आजादी की अलख
आर्यवर्त की हुंकार
*************
कोई कहे आधा सिर मेरा
चैतन्य शरीर यह नहीं स्वीकारता
पूर्णता ही मेरा संकल्प है
अपने शरीर के शीर्ष भाग को गिरवी रख कर -
तुम कैसे सो गए, तुम इतने निर्दय तो नहीं थे
न, मुझे यह स्वीकार नहीं, मुझे कांटों में सोना आता है
धैर्य की बातें मुझे विचलित करती हैं
अभी तो आस्तीन के सांपों से लोहा लेना है
जिन्हें मैंने रक्षक समझा -
कुर्सी की चाहत ने उन्हें कर्मक्षेत्र से विमुख कर दिया
किसी का शहीद होना, मुझे कायर बनाता है
अपनी कोख सूनी सी लगती है
जो मेरी आजादी के लिए कृत-संकल्प हैं
मुझे उनपर पूर्ण विश्वास है, वे निराश नहीं करेंगे
आज पूरा विश्व हमारी प्रशंसा के गीत है गाता
यही कुर्सी भक्तों को रास नहीं आता
दृढ़ संकल्प और और मां भारती के जयघोष काचहुं ओर बजता डंका
पूरव से पश्चिम तक, फहराया और फहरेगा एक तिरंगा
एक देश, एक संविधान और एक कानून यही सपना है
फिर हर कोई गाएगा, अखंड भारत अपना है

टिप्पणी: हर देशवासी का एकमात्र सपना है अखंड भारत।


मीनाक्षी कपूर मीनू
एक भारत , एक परिवार
********************
हमारी संस्कृति का एक गान
हमारा देश है भारत महान
फिर क्यों ये अलग सा था
अलग झण्डा,गान अलग था
आज़ादी की लड़ाई साथ लड़ी
सब जनता भी थी साथ खड़ी
फिर क्यों छोड़ दिया था ताज
अलगाव की चादर तानी बड़ी
बीता युग, प्रताड़ना बहुत सही
पत्थर भी फेंके, उफ्फ न कही
विचारधारा के मंथन में ,मनस्वी
अमित मोदी धारा सब जगह बही
अब भारत परिवार है एक संस्कार
कड़े फैसले ,घर परिवार को जोड़े
बुजुर्ग बन मोदी जीआये सीना तान
गृह दुश्मनों के सामने हो गए खड़े
अब धारा तीन सौ सत्तर को हटाकर
एक झंडा गान दे पूर्ण कर दिया शरीर
लद्धाख की उपेक्षा को अपेक्षा बनाया
यथार्थ बन गया,स्वप्निल जम्मू कश्मीर

टिप्पणी:  भारत माँ रूपी शरीर का एक अंग कैंसर से पीड़ित था इतने साल हो गए उपचार न हुआ । मोदी जी डॉ बन आये एक झटके से वायरस को पकड़ बीमारी का उपचार कर दिया औऱ आज भारत माँ अपनी पूर्ण आभा ले दुश्मनों को अपना सुसंस्कृत रूप दिखा रही है। एक भारत, एक परिवार । 



प्रभा मित्तल
धरती पर स्वर्ग
~~~~~~~~~~~~~~~
"स्वर्ग अगर है कहीं जमीं पर
तो यहीं है यहीं है यहीं है।"
भारत का सिरमौर प्यारा
ऐसा है कश्मीर हमारा।
अलग-थलग सम था प्रदेश
ध्वज भी दूजा लहराता था,
सत्तर सालों बाद सुशोभित
हुआ अब एक झंडा एक देश।
घाटी गाए शांति के गीत
महके खुुुशियाँ, महकें मीत
आदि शंकर की लगे समाधि
बरसे बर्फ़ानी बाबा की प्रीत।
सजे प्रांत औ सब्ज वाज़वां
सर्द मौसम हो गर्म कहवा
नदरू यख़नी हाक गुशतबा
लाजवाब हो सबका ज़ायक़ा।
अब न बरसें अंगार फूट के
हो न कोई संगसार झूठ से
चलें न गोली,बिछें न लाशें
बस्ती में न गूँजें बम धमाके।
केसर की क्यारी में अबकी
नित महकें फूल अमन के,
सूरज की किरणों से प्रभात
हँस-हँसकर डल में चमके।
गीली पगडंडी पहलगाम की
बड़ी हवेली अनन्तनाग की
गुलमर्ग के धवल शिखर हों -
सड़क बड़ी हो लाल चौक की,
सब पर रौनक धूमधाम हो।
खुशहाली का नव वितान हो।
खिले जिंदगी, गूँजे किलकारी
आई हँसकर जीने की बारी,
बच्चे खेलें निर्भय,कहें शान से
कश्मीर में है स्वर्ग सी तैयारी।
गुरबत के दिन तो गए अब
छँटा अँधेरा बदहाली का,
दुश्मन! तू भी देख समझ ले
सचमुच है ये स्वर्ग धरा का।।
भारत का मणि मुकुट है न्यारा !
सबका प्यारा कश्मीर हमारा ! !

टिप्पणी: भारत और कश्मीर आज एक ध्वज एक देश है।उम्मीद है अब कश्मीर सुरक्षित,सुगठित और बलवान होगा,भेदभाव को दूर करें,आतंक का खात्मा हो।


कुसुम शर्मा
आओ मिल कर ख़ुशी मनाये !
——————————-
आओ मिल कर ख़ुशी मनाये
देश के ग़द्दारों को सबक़ सिखाये
कश्मीर की रंगी वादियों मे
अपने तिरंगे को फहराये !
जो हुआ नही बरसो से
उसको आज साकार बनाये
कश्मीर से कन्या कुमारी तक
जय हिन्द के नारे लगवाये !
अब न होगा कोई अशिक्षित
न होगा कोई लाचार
मिलेंगे सभी को
एक से अधिकार !
न कोई बहकायेगा
न आतंक पैर जमायेगा
अपने पूरे भारत मे तिरंगा ही लहरायेगा
नापाक इरादों को अब धूल चटवाये !
आओ मिल कर अब ख़ुशी मनाये !

टिप्पणी: 370 धारा के हटने के कारण अब हमारे देश का नक़्शा बदल गया है देश एक है !तो प्रधान एक नारा! एक !ध्वजा एक !एक से अधिकार मिलेंगे सभीको ! जो देश के ख़िलाफ़ नौजवानों को बहका रहे थे अब वह नही बहका पायेंगे !

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

Friday, July 19, 2019

तकब – ३/१९




मित्रो नमस्कार !
सुबह का सूरज नई उम्मीद और आशा को लेकर उदय होता है. व्यक्तिगत, सामाजिक या राजनितिक सुबह के भाव से उपजी आपकी रचना निम्नलिखित शर्तों के साथ इस प्रतियोगिता में शामिल कीजिये.
नियम :
१. इस चित्र पर उभरे हुए आपके भाव जिसे शीर्षक व् एक टिप्पणी [ आपके शब्दों का कारण व् सृजन के पीछे की सोच ] के साथ लिखना है.
२. किसी भी काव्य विधा में कम से कम १०- १२ और अधिकतम २४ पंक्तियों में आपको अपने भावों को रखना है. अगर आप किसी नई विधा में लिख रहे हैं तो अवश्य उसका उल्लेख करे.
३. कृपया किसी भी सदस्य की रचना पर टिप्पणी रूप में अपनी टिप्पणी न लिखे. यदि आप पोस्ट के संबंध में कोई बात पूछना चाहते है तो अवश्य पूछे लेकिन समाधान के बाद टिप्पणी को हटा लिया जायेगा.
४. निर्णायक मंडल के सदस्य केवल प्रोत्साहन रूप में लिख सकते है और आशा है वे प्रोत्साहन हेतु अवश्य अपने भाव समय से पूर्व प्रेषित करेंगे.
५. आप अपनी रचना को परिणाम घोषित होने व ब्लॉग में पोस्ट होने के बाद ही आप अन्य स्थानों पर पोस्ट कर सकते है.
६. रचना पोस्ट करने की अंतिम तारीख २१ जून २०१९ है.
७. शुभकामनाएं !!!!

इस प्रतियोगिता की विजेता है सुश्री अल्का गुप्ता 

प्रजापति शेष
युग सहस्र योजन पर भानु

मेने संकेतों में बतलाया था,
उसे तुमने झुठलाया है |
बाल पवन ने रवि खाया था,
तुमने पाखंड बताया है |
यह प्रकृति का खेल है,
तुमने प्रपंच बताया है|
मेरी वाणी साकार करने,
यह दृश्य उभर आया है|
यह तो प्रतीक मात्र है
जिसे गीतों में गाया है|
तुम करते रहो शौध,
हमने जो पहले पाया है||

टिप्पणी: हमारी कथाओं में बाल हनुमान ने क्षुधापूर्ति हेतु सूर्य को भक्षण करने का प्रयास किया था,जिसको कुछ विधर्मी काल्पनिक बता कर परिहास करते हैं,लेकिन जब इस तरह के परिदृश्य उभर कर आते है तब लगता है कि प्रकृति हमारी कथाओं का समर्थन करते हुए प्रमाणित करती है कि, सब कुछ सम्भव और सत्य है जो हमारे ग्रन्थों में लिखा हुआ है।


आभा अग्रवाल Ajai Agarwal
सनातनी टोटम
--------------
एक बार की बात ,सुलाकर बजरंगी को
माँ अंजनी चलीं नदी में पानी लेने
माँ को हुआ बिलम्ब इधर था बालक जागा
हुआ भूख से व्यथित ,कुटिया से बाहर आया
आसमान में लाल- लाल सूरज उगता देखा !
वेग भूख का बहुत ,बालक ने उसको फल समझा
उड़ चला लाल अंजना का ,सूरज को खाने
पिता पवन चले वेग से बालक को, सूरज तक पंहुचाने
सूरज को उठा झट से बजरंगबली ने मुहं में डाला
हाहाकार मचा जगती में ,पर था अभी वहां इक फल काला
था राहु वो जो डोल रहा था सूरज के पीछे
लपका बालक काले फल पे ,जान बचा के राहु भागा
दिया संदेशा देवराज इंद्र को वो घबराया। ऐरावत पे चढ़ के आया
बालक ने देखा अरे एक और सफेद फल आया
चलूँ इसे भी खाऊं बजरंगबली का मन ललचाया
घबराहट में छूट गया वज्र इंद्र के हाथों से -
मूर्छित हुआ नन्हा बालक ठुड्डी टूटी ,पवन क्रोध में आया -
वायु हो गयी बंद ,साँसे सबकी अटकीं ,देवराज मूढ़ावस्था में -
ब्रह्मा विष्णु शिव सभी दौड़े आये सारी सृष्टि अटकी
क्रोधित पवन आज सृष्टि को कौन बचाये
करें पवन से विनती -हे देव -करो- क्षमा,अब सांसें दे दो
हम सब ने मिल बालक को अवध्य किया ,अब क्रोद्ध उगल दो
मेरा पुत्र चिरंजीवी होगा , पवन मुस्क्याये
सनसन चली हवा -प्राण फिर सबने पाए
ठुड्डी हुई कुछ टेढ़ी बजरंगबली- हनुमत कहलाये
छोड़ दिया सूरज को ऐरावत में बैठे घर आये।।

टिप्पणी: इस चित्र को देख लगा बादल और सूर्य करोड़ों वर्ष पुरानी घटना का मंचन कर रहे हैं -जिस सनातन को हम पिछड़ा बताते हैं उसके चिरंजीवी देव आज से करोड़ों वर्ष पहले सूर्य पे पहुंच चुके थे जिसकी आज का विज्ञान कल्पना भी नहीं कर सकता।


ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
भारत भाग्य का सूर्य
*************
{मनहरण घनाक्षरी में,,चित्र अभिव्यक्ति का प्रयास
8+8+7 वर्णो की लयात्मक तुकांत के साथ}

सुखद लालिमा संग,,,मन में भरे उमंग,
निकला है स्वदेश का,निराला नया सूर्य !
मिटा के देश-कालिमा,छाई लाल मधुरिमा,
जाति पाति को मिटा,,दमका नया सूर्य !
उदित मोदी राज में,नई आश-विश्वास में,
देश को उल्लास देता,चमका नया सूर्य !
प्रभाती सा खिलेगा,भारत-भाग्य चमकेगा,
हँसेंगे "कमल" दल, निकला नया सूर्य !!
*********************************
टिप्पणी: हमने इस सुखद भोर को नए राजनैतिक परिदृश्य की कल्पना में अभिव्यक्ति किया है चुनावी माहौल कालिमा लिए था देश विघटन के कागार पर था ,,,कमल प्रतीक चिन्ह ने वास्तविक हिंद को हिंदुस्तान बनाकर जन मन को खिली सुहानी भोर की तरह आनंदित कर दिया,,,जय श्री राम


Mita Chakraborty
अरुणिम आभा 


उदित होता है आदित्य
ले कर प्रतिदिन नयी आशा
हर कर तीमीर को
किरणें देती नित नया संदेशा
रूकता नही किसी अड़चन से
छोड़ता नही अपनी धूरी को
चलता ही रहता है अपने पथ पर
मानता नही किसी मजबूरी को
रात घनेरी हो चाहे
हो घनघोर काली घटा
गरज बरस कर खूब
छा जाती है फिर रश्मि की छटा ।

टिप्पणी: सूरज की किरणों को कोई भी बाधा रोक नही सकती, उसे उदित होने से कोई रोक नही सकता ।


मदन मोहन"शैल"
(प्रोत्साहन हेतु)
आस का सूरज
---------
बड़ी आस के बाद उगा है आज का सूरज
है आस , इसके तेज का निरंतर विस्तार हो
हर राह हो निष्कलंक तेरे आगमन से
फिर कभी इस भू -भाग पर कलुषित अंधेरा न हो
बहुत क्षुब्ध है धरा आततायियों के पदचाप से
हो कुछ ऐसा जतन, धरा के गुणधर्म का न अवसान हो
नग्न नृत्य करने को उन्मुक्त है आज जमाना
लगे अंकुश, दग्ध हृदय की शांति का कुछ तो निदान हो
दुधमुंहे बालिकाओं का न हो घृणित कत्ल अब
हो खात्मा दरिंदगी का , तेरा कुछ ऐसा विधान हो
राजकाज का रक्तरंजित है चेहरा आज
हो करिश्मा, किसी को किसी की मौत का न गुमान हो
मिट रही है संस्कृति अपनों के ही कुतर्क से
न झुके शर्म से सर , कुत्सित भावनाओं पर विराम हो
इक जगी है आस तेरे आगमन से भोर से सांझ तक
निर्विवाद हो राज तेरा , जिसकी कभी न शाम हो
हर कण धरा का हो तृप्त तेरे निस्वार्थ कर्म से
चारों दिशाओं में मात्र तेरा गुणगान हो


टिप्पणी : सूर्य आशा का प्रतीक है । यदि किसी मनुष्य के अंदर सूरज के समान निश्कलंक तेज हो और दूसरे का हित सर्वोपरि हो तो उसकी सराहना होनी चाहिए।



नैनी ग्रोवर
खेल


इक दूजे को ढूँढ़ते, सूरज और बादल,
कभी बादल ने ली अंगड़ाई,
कभी सूरज ने दिखाई झलकी...
सूख-दुख इसी समान हैं,
ये बता रहे हमको,
खेल जीवन को जीने का,
सिखला रहे हमको,
हो कुछ भी होठों पे रखो,
मुस्कान हल्की-हल्की...
चाहे कुछ ही पल का साथ हो ये,
फिर भी सुंदर है ये नज़ारा,
जैसे राह में कोई मिल गया हो,
बचपन का मित्र हमारा,
भर जायें आंखें देख कर उसको,
भले हो सूरत, समय ने बदली...!

टिप्पणी: सृष्टि के इस चित्र से मुझे तो यही समझ आया, भले ही कम समय को किसी से मिलो पर ऐसे मिलो के जीवन भर ना भूलें, चाहे राह अलग अलग ही क्यों ना हो ।



रुचि बहुगुणा उनियाल
अनथक यात्रा

जल थल नभ में फैली है चहुंओर उजियार
कण कण में किरणें मेरी दें जीवन संचार
आशा और निराशा जीवन की अमिट कहानी
मानव मन में प्रतिपल होता है इसका व्यापार
नवजीवन को हर क्षण में ऊष्ण वसन देता हूँ
सारी ही सृष्टि से है मुझे प्रेम ही प्रेम अपार
चलते ही जाना है अनथक मंजिल की ओर
मेरी इसी सीख से बढ़े दिवस निशा ये संसार

टिप्पणी : इस तस्वीर को देखकर मुझे यही विचार आया कि संसार प्रतिपल चलायमान है और उसकी प्रथम प्रेरणा स्वयं सूर्यनारायण हैं
 


बलदाऊ गोस्वामी
काले बादल
___________
वह देखो दूर क्षितीज पर
काले घने बादल के कुछ टूकड़े
छाये हैं
जो ड़रा रहे हैं हमे
मगर इन बादलों के टूकड़ों के पीछे
सूर्य उग रहा है
जो टूकड़ों के बीच से
अपना प्रकाश फैला रहा है
अभी उसका प्रकाश हम तक
नही पहूँच पा रहा है पूरी तरह से
अभी कुछ देर में
टूकड़ों से उपर उठ कर
फैलायेगा चारों ओर प्रकाश
फिर जन - जीवन में
गूँज उठेगी
गीतों की सुंदर स्वर लहरियाँ ।
सच कहता हूँ बन्धू
तुम ड़रो मत
मौसम परिवर्तन होने वाला है ।


टिप्पणी: काले घने बादल मनुष्य पर मुसीबत के समान है । किन्तु बादलों के पीछे से सूर्य का उगना आशामय प्रतित हो रहा है । सूर्य के किरण को देख कर लगता है कि हमें काले घने बादलों से नही डरना चाहिऐ ।


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
नया सूरज
{प्रोत्साहन हेतु}
जनता ने लोकतंत्र के यज्ञ में देकर आहुति
नव भारत के निर्माण का संकल्प था लिया
थी राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत भावना सबकी
सबका साथ सबका विकास थी सोच सबकी
देखो फिर नया सूरज नभ पर है उदय हुआ
जन मन की आशाओं का ज्यों है मान हुआ
हर वर्ग - क्षेत्र का, नेतृत्व को पूरा साथ मिला
भारतवर्ष को फिर कर्मठ मोदी सा नेता मिला
साथ हमें इस नेता का, सजग रहकर देना होगा
कर हाथ मजबूत उनका दायित्व भी निभाना होगा
घर,बिजली,पानी,सडक पर हो जब सबका अधिकार
श्रेष्ठ भारत की कल्पना फिर होगी हमारी साकार

टिप्पणी: इस बार व्यस्तता के कारण देर से लिख पाया. चित्र को देखा तो भारत का ख्याल आया, ख्याल आया तो नव नर्वाचित सरकार का ध्यान आया - भारत के लिए इस खुशखबरी को और सबसे मूलभूत चाह इस सरकार से संक्षेप में लिखने का प्रयास किया


किरण श्रीवास्तव
प्रकाश

जब-जब संकट
गहराता है,
अपना वजूद
दिखलाता है,
जन-मानस को
भयभीत करता
अपनाअधिपत्य
जमाता है...!!!
तब-तब
अवतारी आता है,
फिर पाप कहाँ
टिक पाता है,
तिमिर दूर कर
जन-जीवन का
चहुंओर प्रकाश
फैलाता है.....!!!!

टिप्पणी: अच्छाई पर बुराई हावी हो सकती है लेकिन, जीत नहीं सकती.....।



अलका गुप्ता 'भारती'
नव जीवन की नयी बिसात 


करवट ले नव परिवर्तन की पुनः बजाती बीन ।
झाँके अरुण अरुणिमा आँजे बदरी नदिया झीन ॥
लें अंगड़ाई नभ कर भानु रश्मि दिये बिखेर ।
टूट गये सुप्त सारे शिथिल से कजियारे घेर ॥
करे उर्मि संग कल कल नदिया चंचलता विलास ।
लहकती अमराई हरी भरी अंबियन मिठास ॥
फिर बिछी भोर संग नव जीवन की नयी बिसात ।
हँसे खड़ खड़ धुन धरा ये मतवाले पीत पात ॥
छक कर बहकी सुरभित गंध मटियाली बौराए ।
बतियाँ बांचे चहके पंछी कुल-कुल पगुराए ॥
साँझ सकारे सी पनिहारिन नव उम्मीदी आस ।
उड़ जाएँगे दुख कुहासे पकड़ बयारी रास ॥
जीवन ज्योति जगमग जागे दूर हों बाधाएँ ।
होके अस्त तम की चादर कलुषित सब काराएं ॥

टिप्पणी: परिवर्तन प्रकृति का नियम है । हर रात्रि के अंत के पश्चात हर नई सुबह मन में एक नया उत्साह जगाती है एक नई आस जगाती है । समस्त सृष्टि इसी नियम के तहत चलती प्रतीत होती है ।



कुसुम शर्मा
नई सुबह नई आस

कोहरा अंधकार का हट जायेगा
नई किरण लेकर जब
नया सवेरा आयेगा
नई उमंग और तरंग से
ये जग फिर महक जायेगा
जब उदित होकर सूरज
अपनी किरणें बिखरायेगा !!
पंछियों की गूँज हो
या कलियों का खिलना !
भँवरों का गुंजन हो
या फूलो का महकना !
नई तरंग से प्रकृति का
अंग अंग खिल जायेगा
जब उदित होकर सूरज
अपनी किरणें बिखरायेगा !!
शिशु के रूदन से
बच्चों के शोर से
बड़ों की डाँट से
सूना आगंन फिर चहक जायेगा
जब उदित होकर सूरज
अपनी किरणें बिखरायेगा !!
कल कल करके नदियाँ का बहना
झर झर करके झरनो का गिरना
ठंडी हवा का झोंका जब खेत को छू कर जायेगा !
यह दृश्य देखकर किसान मुस्कुरायेगा !
जब उदित होकर सूरज अपनी किरणें बिखरायेगा !!
कण कण प्रकृति का खिल जायेगा
जब उदित होकर सूरज
अपनी किरणें बिखरायेगा !!

टिप्पणी: कहते है न कि नया सवेरा अपने साथ नई चेतना और नई आस लेकर सब के जीवन मे आता है सूरज के निकलते ही अंधकार मिट जाता है और प्रकाश चारों तरफ़ छा जाता है !!





प्रभा मित्तल
~~आशा का सवेरा~~

देखो,
जग आलोकित करने को
असंख्य रश्मियाँ संग लिए
भानु बदली से झाँक रहा।
सागर की लहरें नाच रहीं
जल कुतूहल में थिरक रहा।
सुना, कहीं सवेरा हुआ है !
सुनो,
देवों ने भेजा है तुमको
धरणी की त्रास मिटाने,
जाति-पाँति का भेद भूलकर
समता का राज्य बिछाने,
आर्तजन निबल के उर में
दैवी विश्वास जमाने।
जन - जन के मानस में
आशाओं का दीप जलाने।
इस समाज में फैले गहन-
अहंकार की तमिस्त्रा
का अब करो अंत,ताकि
अनीति भीति से दूर रहे
हर प्राणी बालक वृंद।
सच हो .. सवेरा नया हुआ है।

टिप्पणी: आज की आशाओं का सूरज सुरक्षा की बाँहें फैलाकर इस समाज में फैले अनाचार, अनीति,कुरीति के अंधकार को दूर करे,बस कुछ ऐसी ही अपेक्षाएँ लिए मन के भाव।

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

Thursday, May 23, 2019

तकब – २/१९


मित्रो नमस्कार !
आजकल यह वाक्य "मैं भी चौकीदार" बहुत सुनने में आ रहा है. तो इस बार इन्हीं शब्दों पर आधारित आपकी रचना निम्नलिखित शर्तों के साथ इस प्रतियोगिता में शामिल कीजिये.
नियम :
१. इस चित्र पर उभरे हुए आपके भाव ( व्यंग्य } जिसे शीर्षक व् एक टिप्पणी [ आपके शब्दों का कारण व् सृजन के पीछे की सोच ] के साथ लिखना है.
२. किसी भी काव्य विधा में कम से कम १०- १२ और अधिकतम २४ पंक्तियों में आपको अपने भावों को रखना है. अगर आप किसी नई विधा में लिख रहे हैं तो अवश्य उसका जिक्र करे.
३. कृपया किसी भी सदस्य की रचना पर टिप्पणी रूप में अपनी टिप्पणी न लिखे. यदि आप पोस्ट के संबंध में कोई बात पूछना चाहते है तो अवश्य पूछे लेकिन समाधान के बाद टिप्पणी को हटा लिया जायेगा.
४. निर्णायक मंडल के सदस्य केवल प्रोत्साहन रूप में लिख सकते है.
५. आप अपनी रचना को परिणाम घोषित होने व ब्लॉग में पोस्ट होने के बाद ही आप अन्य स्थानों पर पोस्ट कर सकते है.
६. रचना पोस्ट करने की अंतिम तारीख २२ अप्रैल २०१९ है.
७. शुभकामनाएं !!!!!

इस प्रतियोगिता की विजेता हैं  सुश्री ब्रहमाणी वीणा

ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
विधा -#दोहा-के माध्यम से चित्र अभिव्यक्ति
दोहा छंद में चार चरण होते हैं प्रथम व तृतीय चरण में 13 मात्रा होती है व दूसरे व
चौथे चरण में 11 मात्रा व सम तुकांत होता है अंत 21 अर्थात गुरू व लघु आवश्यक है,धन्यवाद,,,,,
मै भी चौकीदार हूँ 
********************************
"मैं भी चौकीदार हूँ ,,मोदी की आवाज !
पहरेदारी देश की,,,,सैनिक हूँ जाबाज !!
*
चौकीदारी सरल ना,बहुत कठिन ये काम!
अडिग लक्ष्य के संग ही,करै कर्म निष्काम!
*
देश भक्त होता वही,,सच्चा कर्मठ व्यक्ति!
डटा रहै निज धर्म पर,सैनिक जैसी शक्ति!!
*
प्रधानमंत्री हो वही,,,,,देश भक्त रखवार!
चोरों को पकड़े वही,खुद जो इमानदार !!
*
आज जरूरत देश में,मोदी की सरकार!
जीत नहीं तो समझ लो,,होगा बंटाधार!!
*
टिप्पणी : मैं भी चौकीदार हूँ " का बहुत सारगर्भित अर्थ है,,तात्पर्य ये है देश के कर्णधार को सदा निस्वार्थ भाव से चौकीदार की भाँति ही कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए,,,तभी देश में घोटाला,व आतंकवाद का खात्मा हो सकेगा,,,ये सुन्दर भावना हर देशवासियों के मन में होनी चाहिए,,,धन्यवाद


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
मै भी हूँ चौकीदार
(प्रोत्साहन हेतु)
नया - नया जोश उभर कर आया
जब पप्पू कांग्रेस अध्यक्ष बन गया
खो होश जो मुंह में आया बोल दिया
तब पप्पू यहाँ हंसी का पात्र बन गया
कांग्रेस की अब केवल ये मजबूरी रही
पप्पू जो कह दे लागे उनको वही सही
राफेल में मिला न कोई खाता न बही
पप्पू का झूठ लागे कांग्रेसियों को सही
प्रधानसेवक बनकर मोदी करते हैं काम
पप्पू पिंकी रटते केवल नेहरु गाँधी नाम
आतंकियों को जी साब कह पुकारते नाम
देश को और हमे विदेश में करते बदनाम
मोदी कर रहा आज कूटनीति से व्यापार
देशहित में बन गया राष्ट्र का चौकीदार
काँप उठे दुश्मन सुन मोदी की ललकार
डरा विपक्ष सोच बनेगी फिर मोदी सरकार
हो गए देश के सारे ठग गठबंधन को तैयार
डर कर कांग्रेसी पप्पू बोल उठा चोर है चौकीदार
देख मोदी की भक्ति और काम का चमत्कार
पूरा देश बोल उठा हाँ "मैं भी हूँ चौकीदार"

टिप्पणी: मोदी जी के कार्य को और शब्दों को देखकर विपक्ष की नींद हराम हुई है इसलिए सब का ध्येय मोदी को हटाना है , देश की चिंता नहीं विपक्ष को. इसलिए बिना सोचे समझे कांग्रेस के अध्यक्ष ने देश के चौकीदार को चोर कहने की हिमाकत की पर देश के हर नागरिक ने उन्हें जबाब दिया है की "मैं भी चौकीदार" मैं भी इस व्यक्तव्य में देश के साथ हूँ.


नैनी ग्रोवर
मैं भी चौकीदार हूँ

कभी कलम कभी तलवार हूँ
नए भारत की नई रफ़्तार हूँ,
कभी कलम कभी तलवार हूँ,
हाँ मैं भी चौकीदार हूँ...
आवाज़ हूँ, मैं भी किसानों की,
बहन हूँ भारत के वीर जवानों की,
दुआएँ दिन-रात करूँ जोड़ कर हाथ,
हर अध्धाय में भागीदार हूँ,
हाँ मैं भी चौकीदार हूँ...
घर हो या बाहर सम्भाल सकती हूँ,
मिला कंधे से कंधा चल सकती हूँ,
हर गाँव शहर की नींव हूँ मैं,
और देश की पहरेदार हूँ,
हाँ मैं भी चौकीदार हूँ...!

टिप्पणी: ये कतई आवश्यक नहीं के हम बहुत बड़े बड़े काम कर के ही देश की मदद कर सकते हैं, हम जहां हैं जिस हाल में हैं वहीं रहकर भी हम देश सेवा कर सकते हैं, अपने आसपास साफ सफाई अभियान चलाएं, किसी भी ऐसे व्यक्ति से सजग रहें जिस पर शक हो, कानून की मदद करें, बच्चों को सही शिक्षा दें ।



मीता चक्रवर्ती 
मै भी चौकीदार

मै गृहिणी, मै ही अध्यापिका
मै बाई , मै ही मल्लिका
रसोइया भी मै, मै ही आया
मै मालन , मै उपचारिका
अलग अलग किरदारों को निभाती
मै घर का आधार हूँ
हाँ मै भी चौकीदार हूँ ।
मै घर का चौखट , और
द्वार पर लगा तोरण भी मै
सत् गुण धर्म का सत्कार मै
मै हर बुराई का प्रतिकार भी हूँ
अन्याय के खिलाफ मै हुंकार हूँ
जीवन नैया का मै ही पतवार हूँ
हाँ मै भी चौकीदार हूँ ।।

टिप्पणी : जैसा कि हम सभी जानते हैं , देश समाज से और समाज परिवार से बनता है; और उस परिवार को बनाने की , संजोने की , संभालने की जिम्मेदारी हम गृहिणियों की होती है, हम भी अपने परिवार के चौकीदार होते हैं ।


किरण श्रीवास्तव
मैं भी चौकीदार
-------------------------
जल -नभ- थल को लूट लिया,
कैसा -कैसा काम किया,
इल्जामों को भी मात दिया,
क्यों ,अच्छे दिन नजर ना आये...,
पप्पू पिंकी स्वांग रचाये,
मंदिर मंदिर दौड़ लगाये,
माला -जनेऊ भी घबराये,
वंशवाद अब नहीं सुहाये,
नमो- नमो ही मन को भाये....!!
कार्य- प्रणाली देश हित में
जिसका कोई जोड़ नहीं,
कुटनीति और राजनीति
जिसका कोई तोड़ नहीं,
देश-विदेश में भी तूने
अपना परचम लहराया,
विरोधियों के जेहन में
चिंता और दहशत गहराया,
घर-घर का विश्वास है मोदी
जन-जन का आधार है मोदी...!!
विरोधियों में है उथल पुथल
मोदी का कोई नहीं विकल्प,
फिर वापस मोदी ही आये
मन में आज यही संकल्प...
"मन की बात" सभी को भाये
सेना भी तुझसे हर्षाये
ऐसा नेता मिला देश को!
जिसकी मैं शुक्रगुजार हूँ,
हाँ! मैं भी चौकीदार हूँ........!!!!!!

टिप्पणी: मोदी जी के व्यक्तित्व और कुशल नेतृत्व के सभी कायल हैं। पैनी नजर वाला चौकीदार चौकन्ना है।चोरी सम्भव नहीं है, इसीलिए चोरों का लक्ष्य है चौकीदार को हटाना...!!! हमें सच्चाई का साथ साथ देना है.और......।



अलका गुप्ता 'भारती'
मैं भी चौकीदार

ओहदा निम्न..दिया तिरस्कार ।
दहाड़ पड़ा मोदी फिर इस बार ।
हाँ मैं हूँ देश का चौकीदार ।
सजग सुदृढ़ कर्मठ अपार ।
सच्चा है नेतृत्व मेरा किरदार ।
जिस पर है हम को भी ऐतबार ॥
हितैषी वह देश का दमदार ।
जागरुक खिवैया लिए पतवार ।
होगा अवश्य अब देश का उद्धार ।
बढ़ाकर मान भारत का अपरम्पार ।
सम्पूर्ण विश्व में वह हैं स्वीकार ॥
अरे ! खंगालो वर्षों के इतिहास ।
गड़बड़ घोटालों के दंश फाँस ।
भोली जनता के छले गए आस ।
जाति धर्म के गंदे से खिलवाड़ ॥
हाँ अब जागा है मन में विश्वास ।
सही हाथ है बाग़ डोर की रास ॥
हाँ मोदी है हम भी साथ उसके तैयार ।
सजग प्रहरी वह हम चौकीदार ॥

टिप्पणी: जो महसूस करती हूँ उस पर ही आज कलम चला दी । राजनीति के क्षेत्र में कलम की पकड़ बहुत कमजोर महसूस करती हूँ । देश का एक आम और साधारण सा इंसान मोदी के बारे में और देश के सामायिक विषयों पर जितना बोल सकता है उतना ही प्रयास कर पाई हूँ .. सादर वन्दे !



कुसुम शर्मा
नए भारत का नया आधार 


नये भारत का नया आधार हूँ
हाँ मै भी चौकिदार हूँ
कब तक लूटोगे जनता को
कब तक भावनाओं से खेलोगे
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
कहके कब तक तोड़ोगे
बहुत हो गये खेल तुम्हारे
हाँ मै भारत कि अब आवाज़ हूँ
हाँ मै भी चौकिदार हूँ
देशद्रोह के नारे लगा कर
देश प्रेमी बन जाते हो !
देश पर हमले करने वालों को
अपना मित्र बताते हो !
देश की उन्नति पर
खुद रोड़े अटकाते हो
जनता को झूठे
आश्वासन से
अपना उल्लू बनाते हो
तुम जैसो के लिए मै ललकार हूँ
हाँ मै भी चौकिदार हूँ
अब जाग गई है जनता सारी
देख के ऐसे चौकिदार को
काँप गया दुश्मन भी उसका
सुनकर उसके नाम को
अडग रहा वो बन कर हिमगिरी
झेलने ग़द्दारों के प्रहार को
फिर बोल उठा हर स्वर जनता का
कि वो सच्चा चौकिदार है
देश सुरक्षा और विकास का
वही सच्चा हक़दार है
ऐसे चौकिदार के अंदोलन मे हर कोई चौकिदार है
देश का जब सवाल है तो इससे किसको इनकार है
जनता की अब मै आवाज़ हूँ
हाँ मै भी चौकिदार हूँ !!


टिप्पणी : विपक्ष चाहे जनता को कितना भी उल्लू बनाने कि कोशिश क्यो न करे पर अब जनता उनके पाखण्डों को जान गई है विपक्ष देश के प्रधान को चौकिदार कह कर सम्बोधन कर रही है तो सारी जनता देश के प्रधान के साथ खड़ी है उनका मुँह तोड जवाब खुद को चौकिदार बता, कर रही है!



माधुरी रावत
मैं भी चौकीदार

आँखों में भर ख्वाब सुनहरे
चुनी थी ये सरकार
पांच साल से मन की बात
बस कर रहे बारम्बार
रोजी-रोटी के लिए
क्यों दर-दर ठोकर खाय
डिग्री कोई सी भी लो
बस पकोड़ों का व्यापार
जुमलेबाजी के बनें
नित-नित नए रिकार्ड
बदजुबानी का स्तर
हर हद कर रहा पार
पढ़ लिख कर बेटा बने
माँ-बाप की आस
कालेज होता है चाक
जब घूमे बेरोजगार
भेदभाव क्यों बढ़ गया
लोप हुआ कहाँ प्यार
जहाँ वर्षों से मिनी को
था काबुलीवाले का इंतज़ार
ठोस काम की आपसे
थी उम्मीदें बेशुमार
लेकिन आप तो कह रहे
मैं भी चौकीदार

टिप्पणी : बहुत उम्मीदें थी पर बातों में ही गुज़र रही है



प्रभा मित्तल
मैं हूँ चौकीदार



साम दाम दण्ड भेद तो
राजनीति के मोहरे हैं
दल - बदलू नेताओं के
वाक् - वचन भी दोहरे हैं।
मैं भी चौकीदार हूँ
जन-मन तक पहुँचा नारा
सही चयन हो शक्ति का
चुनना है अधिकार हमारा।
छल-बल से जो रहे दूर
देश-दुनिया के प्रिय बने।
सुदृढ़ करे जो कल हमारा,
देश में एक वही है शूर।
नमो नमो से वर्तमान
नमो में ही भविष्य मान।
मैं भी चुनने को तैयार....
वो आए व्यक्तित्व महान।



टिप्पणी: मैं राजनीति से बहुत परे हूँ...लेकिन देश सुरक्षित हाथों में रहे ..इसका प्रयास हम सबको करना है..शुभकामनाएँ।



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/





Wednesday, March 27, 2019

तकब – १/१९




मित्रो नमस्कार ! चलिए इस नए चित्र पर अपने भाव कुरेदिए.
नियम :
१. इस चित्र पर उभरे हुए आपके भाव जिसे शीर्षक व् एक टिप्पणी [ आपके शब्दों का कारण व् सृजन के पीछे की सोच ] के साथ लिखना है.
२. किसी भी काव्य विधा में कम से कम १०- १२ और अधिकतम २४ पंक्तियों में आपको अपने भावों को रखना है. अगर आप किसी नई विधा में लिख रहे हैं तो अवश्य उसका जिक्र करे.
३. कृपया किसी भी सदस्य की रचना पर टिप्पणी रूप में अपनी टिप्पणी न लिखे. यदि आप पोस्ट के संबंध में कोई बात पूछना चाहते है तो अवश्य पूछे लेकिन समाधान के बाद टिप्पणी को हटा लिया जायेगा.
४. निर्णायक मंडल के सदस्य केवल प्रोत्साहन रूप में लिख सकते है.
५. आप अपनी रचना को परिणाम घोषित होने व ब्लॉग में पोस्ट होने के बाद ही आप अन्य स्थानों पर पोस्ट कर सकते है.
६. रचना पोस्ट करने की अंतिम तारीख २७ फरवरी २०१९ है.
७. शुभकामनाएं !!!!!
 इस प्रतियोगिता की विजेता है सुश्री मीता चक्रवर्ती

Madan Mohan Thapliyal
~धात्री~
( मां, गायत्री, भगवती, गौ, गंगा, पृथ्वी )
( प्रोत्साहन हेतु)
सौम्य, सरल, निर्विकार, निश्छल ईश का ध्यान तू
वेद, उपनिषद तुझमें समाहित, गीता का ज्ञान तू
हर छंद, लय, ताल औ घुंघरू की रुनझुन में तू
कल-कल बहती नद धार औ भंवरों की गुनगुन में तू
तू प्रकृति में या प्रकृति तुझमें किसका लावण्य तू
देव- दनुज करते आराधना, सबकी आराध्य तू
न उबटन , न श्रृंगार कोई, प्रकृति का उपमान तू
नि:स्पृह, नि:स्वन, नि:स्पंद औ धर्म का सच्चा ज्ञान तू
परम अलौकिक, निर्लिप्त, चित्रस्थ विश्व का वृतांत भी तू
वन,विटप,होते आह्लादित जब मधुर मुस्कान बिखेरती है तू
बियाबान भी होते खुश जब कंटकों के झुरमुट से गुजरती है तू
श्रमसीकर होते तिरोहित जब धात्री का सम्मान करती है तू
हरी घास भी होती मुखरित ,जब पीठ पर क्षुदापूर्ति हेतु धरती है तू
पवित्र होते रजकण भी जब बीहड़ों में गुनगुनाती है तू
नमन तुझे हे धात्री ,! सबका मान - सम्मान और समाधान तू
सब हैं तेरे निमित्त औ सबके कल्याण के लिए तू ।।
टिप्पणी : (कर्तव्य न पीड़ा है, न किसी पर एहसान । कहीं भी जन्म लेना अवसाद नहीं । कर्म ही धर्म है और स्त्री इसका पर्याय है । इसलिए स्त्री सदैव पूजनीय है ।)


ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
देश की कर्मठ बालिकाओं के, ,,,सम्मान में कुछ हाइकु, ,,,,,,,,,,,,5 7 5 वर्णों की आवृत्ति ! आधा शब्द गिनते नहीं है
~पहाड़ी कन्या~
**************
पहाड़ी कन्या
धन्य-धन्य जीवन
साहसी मन //
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
दीप- बेटियाँ
उजाला भर देतीं
घर की दिया //
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
सीप - बेटियाँ
मुक्ता गर्भ धारिणी ,
जीवदायिनी //
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
आज की बेटी
होती हैं कीर्तिमान
देश की शान //
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
बेटियाँ पढ़ें
मायका व सासरे
संस्कार गढ़ें //
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
घर-चमन
खिलतीं ज्यों सुमन
पुष्पित मन /
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
गिरि-शिखर
छू लेने में तत्पर
साहसी बन/
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
बेटी स्वरूप
दुर्गा माँ कल्याणी
जगत्जननी //
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
पहाड़ी कन्या
करती हैं तपस्या
कर्तव्यनिष्ठ//
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
*************
🍭🍭🍭🍭🍭🍭
****************
टिप्पणी: आज की बेटियां साहसी व कर्तव्यनिष्ठ व जागरूक हो गई हैं,,पहाड़ी लड़कियाँ का साहसिक कार्य अनिवर्चनीय है वे दुर्गा स्वरूप हैं,,,जगत की सृष्टा शक्ति को नमन करती मेरी रचना है,,,जय मातृशक्ति
******


नैनी ग्रोवर
~वीरांगना~
उठाकर बोझ,
चढ़ती उतरती पहाड़ की पगडंडियों पर,
मुस्कुरा कर चलती है,
ये पहाड़ की बेटी है, मेहनत के साये में पलती है...
हर तूफान का सामना कर जाती,
पर नीर ये बहाती नहीं,
सह लेती है हर कठनाई को,
होंठो से कभी जताती नहीं,
निच्छल मन की मासूम वीरांगना,
भूल के भी नहीं कभी किसी को छलती है...
उजड़ गया सिंदूर, टूट गए सपने,
पर हिम्मत ये ना हारी है,
चूम पति के बदन से लिपटे तिरंगे को,
आई लव यू उसे कह पुकारी है,
भेज आखिरी सफर पे शहीद पति को,
नारा जय हिंद का ये लगाती है..
ये मेरे भारत की नारी है..!!

टिप्पणी: आज कोई टिप्पणी नहीं, आप सब समझ ही गए होंगे ।



अलका गुप्ता
*पर्वत बाला*
#######
जीवट है जीवन चर्या
भोली भाली पर्वत बाला
हरियाले से हैं
पगडंडी वाले
कुछ पथरीले पथ ।
विकट परिस्तिथियाँ
विषम है मौसम
फ़िर भी आस्थाओं में
पगा है मन ।
उतार चढाव है
सत्य शाश्वत ...
जीवन का वैसे भी सच ।
है स्वीकार सच्चे मन से
हँसते हँसते धरा जो बोझ कांधे पर विधाता ने
कर्म सार्थक ही तो है
गीता का सच्चा ज्ञान ।
करेगा फल की चिंता...
वो ..भगवान !
मैं हूँ पर्वत बाला !
मेरा तो कर्म महान
अपना तो है ...
घर पर्वत परिवार ही...
मेरा सच्चा सुख संधान !!

टिप्पणी: बस जो महसूस किया उस परिवेश के वारे में सरल भाषा में लिख दिया ।



किरण श्रीवास्तव

"नारी नारायणी"
------------------------------
मुसीबतों के
पहाड़ को,
दु:खों के
सैलाब को,
झाड़ियों से
झंझावात को,
उखाड़ फेंकती हो
नारी! तुम नारायणी हो....।
ईश्वर की अद्भुत
हो रचना,
शक्ति की
भंडार हो तुम,
जीवन दायिनी,
कर्तव्य - परायणी,
सहज, निर्मल, कठोर हो,
नारी! तुम नारायणी हो....।।

टिप्पणी- राह भी बनाती है, चलना भी सिखाती है, नारी-नारायणी यूंही नहीं कहलाती है....!!!

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
(प्रोत्साहन हेतु)

~सुनो पहाड़ की नारी~

सुनो पहाड़ की नारी
लेकर प्रकृति का तुम मूल मंत्र
जीवन सरंचना का तुम गूढ़ तंत्र
बन परिवार का तुम मोक्ष यंत्र
तुम दुर्गाशक्ति सी यत्र तत्र सर्वत्र
सुनो पहाड़ की नारी
इस रात से लेकर अगली रात तक
नारी का पवित्र अस्तित्व लिए
मेहनत का तुम दृढ़ स्तम्भ
जिम्मेदारियों का तुम हो अर्थ
सुनो पहाड़ की नारी
निसंदेह चन्द्र तत्वों से तुम हो सुशोभित
पहाड़ की मुश्किलों में तुम मुस्कराती
वेदना कभी न खुश्क चेहरे पर लाती
इसलिए पहाड़ की नारी श्रेष्ठ कही जाती
सुनो पहाड़ की नारी
प्रेम और पसीने का शृंगार तुम खूब हो करती
कर्मठता और सादगी में तुम खुबसूरत दिखती
निश्छल और निस्वार्थ भाव तुम खूब सजते है
प्रतिबिंबके दोनों हाथ तेरे सम्मान में जुड़ते हैं

टिप्पणी: नारी का हर रूप में सम्मान है यहाँ ये पंक्तियाँ है उन पहाड़ी नारियों के लिए है जिन्हें मैंने बचपन से देखा है .... जो परिवार के लिए रात से लेकर अगली रात तक सलंग्न रहती है मेहनत जिम्मेदारियों से कभी जी चुराते नहीं देखा. फिर भी उनके चेहरे की मुस्कान कम नहीं होती. हालाँकि पहाड़ो में अब बहुत कुछ बदल गया है फिर भी कई लोग उसी रूप में आज भी ... और उनको नमन करता हूँ और उनसे ही कह रहा हूँ



Mita Chakraborty

💐 पहाड़ की नारी💐
सरल सुघड़ पहाड़ों सी दृढ़
ये पहाड़ की नारी
नाजुक कंधे पर इनके
है बोझ भारी
टेढ़ी मेढ़ी,
ये ऊंची नीची पगडंडियां
कहती हैं
इनके संघर्ष की कहानियां
पग पग पर
इम्तिहान लेते ये पथरीले पथ
चलती है जिनपर ये
अनथक अनवरत
दर्द पर अपने ये
ओढ़ लेतीं हैं एक मधुर मुस्कान
पर पर्वत सा ऊँचा
बनाए रखती अपना स्वाभिमान
पहाड़ों की धूरी पर घूमता
इनका जीवन
इनकी रक्षा हेतु
ये बन जाती आन्दोलन कारी
पहाड़ो की " मीत"
ये पहाड़ की नारी
सरल सुघड़ पहाड़ों सी दृढ़
मेरी पहाड़ की नारी

टिप्पणी: पहाड़ की नारी का जीवन बहुत कठिन होता है पर ये मुस्कुरा कर इन कठिनाइयों का सामना करती है और पहाड़ों के प्रति इनका प्यार इन्हें सामान्य गृहिणी से आन्दोलन कारी बना देता है ।( चिपको आंदोलन )



Richa Sharma
~नारीत्व~
वो दरिया, वो पर्वत, वो काँटे, वो दर-२
सभी कुछ वही था, सभी कुछ वही था ।
पर एक ओर मैं थी और एक और तू था
वो दरिया, वो पर्वत, वो काँटे, वो दर ।
न तुझे साथ मेरा,ना मुझे साथ तेरा,
फिर क्यों चल दिए हम यूँ नज़रें मिलाए
रुकी साँस मेरी, रुकी साँस तेरी,
दूरियों में कहीं, दूरियाँ थीं नहीं ।
वो दरिया, वो पर्वत, वो काँटे, वो दर.......
वही मुश्किलें आज भी है सर पर ,
फिर क्यों आज बन गई वो कली सी ।
ये जादू है तेरा या किसी ओर का है ,
होंसला ये मेरा क्यूँ इस तरह बढ़ चला है ।।
वो दरिया, वो पर्वत, वो काँटे, वो दर....

टिप्पणी: मैंने गीत शैली में लिखने का प्रयास किया है, सुधार के लिए सुझावों का स्वागत है -
( इस गीत को लिखने का कारण व भाव यह है कि इस चित्र को देखने के बाद मुझे उसकी आँखों के सिवा कुछ नज़र नहीं आया मुझे एसा लगा जैसे वो आँखें कुछ कह रही हैं । उन्हीं को शब्द रूप देने का प्रयास किया है)~


माधुरी रावत
~हौसला~
जीवन के संघर्षों में
कई बार सिमटी-बिखरी है
लोहे सी तपी जब वो
कुंदन बन कर निखरी है
जीवन के अंजान सफर में
राह अपनी स्वयं बनानी है
घिसी-पिटी लीकों से हटकर
लिखनी नई कहानी है
ये हैं बेटी पहाड़ की
पहाड़ सा ही लिए हौसला
जाना है उसको दूर तलक
कर लिया है ये फैसला
मोहक सी है स्मित रेखा
हृदय भी एकदम निश्छल
पर हर बाधा से पाएगी पार
संचित है इतना आत्मबल
आँखों में झिलमिलाता सपना
जमीन पर उतार लाएगी
दृढनिश्चय और परिश्रम से वो
अपना एक अलग मुकाम बनाएगी

टिप्पणी: पहाड़ की बेटियां मजबूत, मेहनती और निश्छल तो हैं ही, जीवन संघर्षों से आगे बढ़ना चाहती हैं।


Ajai Agarwal
~बिटिया पहाड़ की~
-------------
प्यारी बच्ची तुम बहुत ही प्यारी हो
घर भर की राजदुलारी हो
माँ की ममता का राग हो
पिता के सर का ताज हो
सर्दी में नर्म - नाजुक बर्फ का फाया
दोपहर की गुनगुनी धूप हो
तुम बहो तो सरिता बन जाती
निश्चल धैर्य पहाड़ों का तुम
पुंगड़ियों जंगलों में गान तेरा
संगीत मधुर झरने सा है
थाती तुम्ही विशवास की
विश्वास स्वयं पे करो सदा
बोलो! अपने मन की बातें बोलो
अपनी भाषा में मुहं खोलो
कर्मठ हो ,कर्म करो मन से
पर पढ़ना-लिखना न भूलो
भविष्य खड़ा पुकार रहा
अंजानी राहें हैं खींच रहीं
तुम सृष्टी हो तुम जननी हो
अपनी पहचान बनाओ अब
दिल की किताब के पन्नों को
अब खोलो ,आगे बढ़ती जाओ तुम
रोटी सेंकती उँगलियों में
उठा कलम अपने को गढ़ लो ,
काँधे के इस बोझ संग
अपने को भी पहचानो अब
पर्वत का सीना चीर- हंसीतेरी
वृक्षों जंगल से टकरा कर
घाटी में कलरव बन जाए
खिलखिला हँसे तू जीवन भर
कोई न तुझे हरा पाये
कर शंखनाद अब जीत जगत
जीत तुझे बस जीत मिले
टिप्पणी: पहाड़ की लड़की कर्मठ अदम्य जिजीविषा और साहस की पुतली ,कदम बढ़े हैं जो जग जीतने की ओर वो अपनी संस्कृति को संरक्षित, संवर्धित रखते हुए बढ़ते रहें यही प्रार्थना।


प्रभा मित्तल
~~पर्वत की नारी~~
~~~~~~~~~~~~~~
चेहरे पर मुस्कान बिछाए
कांधे पर सारा बोझ उठाए
तन के मन में शूल छिपाए
कभी न हिय का दर्द दिखाए
उठाए बवंडर भावों का
भार सम्भाले परिवारों का
पीठ पर ममता को बाँधे
घर खेत खलिहान देखती
चट्टानों को बींध बींध कर
गाँवो का रस्ता भी बुनती
सुबह से शाम तक खटती है
बिल्कुल सादा रहकर भी
हर दिन जीने की जंग लड़ती है
जयंती मंगला भद्रकाली बन
देश के लाल भी जनती है
नर से बढ़कर नारी है
कभी न हिम्मत हारी है
सारे जहाँ से न्यारी है
पूजनीय और प्यारी है
ये पर्वतों की नारी है।

टिप्पणी:  पहाड़ की मेहनतकश स्त्री का कोई सानी नहीं.



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