दिनेश चंद्र पाठक
न्याय की देवी बनाम कवि
क्षुद्र स्वार्थ के झोंकों से जब,
न्याय तराजू डोलेगा
कवि की लेखनी का हर अक्षर,
सत्य की जय ही बोलेगा।।
रंग विशेष जो न्याय की देवी
की आँखों पर छाएगा
निर्विकार स्याही से लेखक
आँख की पट्टी धो लेगा।।
जब-जब सत्ताधीशों की
अनुकम्पा पथ भरमाएगी
सावधान करता कवि का स्वर
मन-मंथन कर डोलेगा।
दुर्जन का उत्पात भरा स्वर,
सज्जन को भयभीत करे
न्याय की देवी की तलवार की
धार शब्द तब हो लेगा।
न्यायदंड की दृढ़ता से ही
शक्ति राष्ट्र की होती है
न्याय की देवी सदा अभय दे
जन-जन जय-जय बोलेगा।।
दिनेश चंद्र पाठक 'बशर'।।
टिप्पणी - कवियों-लेखकों ने सदैव राजनीतिक, सामाजिक अव्यवस्थाओं के प्रति मुखर होकर अपनी आवाज़ उठाई
है, सदैव समाज को एक नई दिशा प्रदान की है। आज हम सभी जानते
हैं कि न्याय में देरी, अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति की न्याय तक पहुँच एक बड़ा
मुद्दा है। ऐसे में व्यवस्था को सचेत करने का दायित्त्व भी आधुनिक कवियों पर है।
कुछ ऐसे ही भावों को प्रदर्शित करती मेरी कविता।
डॉ अंजुलता सिंह गहलौत
न्याय की देवी
क्यों कहते 'अंधा
कानून'-
न्याय की देवी आंखे खोल!
सही न्याय मिल पाए सभी को -
तेरा निर्णय हो अनमोल.
कितना अत्याचार बढ़ रहा-
कैसा निर्मम हुआ समाज?
सज्जन ही पीड़ा सहते हैं-
दुष्ट कर रहे सब पर राज.
कब आएंगे फिर अच्छे दिन-
जिनपर होगा सबको नाज,
सर्वधर्मसम-भाव फलेगा-
सच के सिर पर होगा ताज.
कलम,किताब और
कानून-
काम किसी के आ पाए,
हिंसा को ही दंड मिले-
मुंह के बल वो गिर जाए .
रहें भरोसेमंद सदा ही-
न्यायप्रक्रिया और अदालत,
जनता का विश्वास न उठे-
खुशियां सबकी रहें सलामत.
टिप्पणी: वर्तमान समय में,सचेतन जन के मन में, हमारे देश की अदालतों की न्याय-प्रक्रिया,निर्णय की सार्थकता और विश्वास में निरंतर कमी आ रही है।इस स्थिति से बचना बहुत जरूरी है। जहाँ राजा प्रजा के दुःख सुख में साथ रहते थे,आदर्श माने जाते थे,उनकी वचनबद्ध शख्सियत होती थी,वही अब बेवफा जान पड़ते हैं। अब समय आ गया है,कि न्याय निष्पक्ष और सर्वमान्य हो।
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
अंधा क़ानून
(चार रोला चतुष्पदी के माध्यम से,,,प्रस्तुति..रोला छंद दोहे का उल्टा होता है 11+13 अंत दो
गुरु 11-विषम चरण-21 गुर लघु आवश्यक है
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अंधा है क़ानून,,,,,,,,,सत्य ये सुन लो भाई |
सत्य और असत्य,भेद नहि समझ में आई |
हुई झूठ की जीत,,,,,सत्य की हार कराई |
कोर्ट बिका है आज,जजों की बढी कमाई ||
****
घूसख़ोर है कोर्ट,,,,,,,,करैं पेशी पर पेशी |
आतंकी बच जांय,,,,जजों की ऐसी तैसी |
दोनो आँखें बंद,,,,,,,,न्याय की देवी अँधी !
कैसा अंधा सत्य,,,,,नहीं अब बना हितैषी ||
****
कब होगा वो राज,,,,,न्याय जीतेगा हरदम |
सत्य धर्म की जीत,,,बने न्यायालय हमदम|
आया कलियुग घोर,,न्याय की खींचातानी|
विकृत हुआ समाज,,,,,,,करैं नेता मनमानी||
****
ईश रूप है न्याय,,,,,सत्य के सँग सँग चलता |
नहीं पराजित होय,,निखर कर सत्य विहँसता |
भले देर अँधेर,,,,,,,,,,, सत्य -सूरज ना छुपता |
न्याय ईश अवतार ,,,,,,,,,,जेल में कैदी मरता ||
टिप्पणी: आजकल क़ानून बिलकुल अंधा हो गया है,,,न्याय की देवी की तुला घूसखोर वकीलों के ग़लत न्याय व दबाव से उठता व गिरता है,,,आजकल नेताओं ने ख़रीद लिया है न्यायालय,,,कोई सच्चा न्यायाधीश नहीं है सब बिक गए हैं वर्तमान कई सच्चाई पर पर्दा पड़ते देख कर वकीलों पर से भरोसा उठ गया है. यही रोष इस कविता में दर्शाया है,,,धन्यवाद 🙏जय श्री कृष्णा 🙏
भारती ए गुप्ता
सत्य मेव जयते
जब धरा पर दुष्ट अवतरित होगें
तब न्याय की गुहार होगी
सत्य की जीत होगी
असत्य हार जाएगा
न्याय की तराजू पर सब तौला जाएगा
न्याय हमेशा सब पर भारी होगा,
समाज सब कुछ सह रहा
कितना अत्याचार हो रहा
कागज कलम किताब पढ़ कर विद्बान बने
लेकिन जब बात न्याय की आए
सारा ज्ञान धरा रह जाए
टिप्पणी: सत्य की जीत हमेशा होती है झूठ पर सच हमेशा भारी होता है , आंखों पर पटटी बांध लेने से इसमें कोई भेदभाव नही किया जा सकता. सत्य मेव जयते सत्य सार्थक सचेत सामंजस्य युक्त होता है.
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
न्याय - अन्याय
(प्रोत्साहन हेतु)
न्याय सामाजिक हक़ है नागरिक का
पर पलड़ा झुका है बहुत अन्याय का
आम नागरिक कानूनी पेंचो में उलझा
आस उसे भी न्यायालय देगा सुलझा
हैं कमजोरियां बहुत न्याय व्यवस्था
की
लम्बी कतार है यहाँ बढ़ते मुकदमों की
कैदी न जाने कितने बिन फैसलों के हैं
भ्रष्ट तंत्र भी हाथ यहाँ अब खूब
जमाये है
न्याय में देरी भी अन्याय कहलाती है
पर तारीख पर तारीख मिलती जाती है
न्यायाधीशों की संख्या को हमें बढ़ानी
होगा
समय सीमा में न्याय प्रक्रिया को
लाना होगा
न्याय से विश्वास न्याय में विश्वास
दिलाना होगा
क़ानून सख्त और प्रक्रिया सरल नियम
लाना होगा
टिप्पणी: भारत में कानून व्यस्व्था
लचर है – यथास्थिति व हल अपनी समझ से देने का प्रयास किया है
पुष्पा पोरवाल
न्याय व्यवस्था
युगों-युगों से न्याय को लडता है
संसार,
शक्ति की वर्चस्वता,शासन और अधिकार।
बढ़ी लालसा सुख साधन की,ईष्या देती आग,
कल्पवृक्ष हृदय उगा, कैसे जागें भाग्य!
मानवता भी जब मर गयी, निर्दयता ने पकड़े हाथ,
करुणा, दया रो
रही, कोई न देता साथ ।
मन में बैठे चोर हैं, पक्षपात के साथ,
न्याय व्यवस्था रो रही, किसके जोडू़ हाथ।
पंख कटे उम्मीद के,कौन सुने गुहार,
अंधा ही जब कानून है, सच्चा है ब़ेजार।
कदम-कदम पर लूट है, कैसे मिलता न्याय !
चश्मदीद अंधे हुऐ, दलीलें भी मिट जाय !
शासन और सुव्यवस्था, रहे भेदभाव से दूर,
न्याय व्यवस्था सुदृढ़ हो,विश्वास जमे भरपूर।
शासन और अधिकार का,न हो दुरुपयोग,
दंड मिले अपराधी को,व्यवस्था हो मजबूत।
ज्ञान चक्षु भी खुले हों, मन हो निर्मल साफ,
न्याय व्यवस्था ईश्वर की ,फिर न करती माफ।
टिप्पणी: मनुष्य ही न्यायी-अन्यायी
दोनों है। पर जो अज्ञानी रसूखदार पक्षपाती अन्याय करने से नहीं डरते. उनके इस
रवैये से व्यवस्थाएं बिगड़ने लगती हैं।जिससे समाज और राष्ट्र में अराजकता की
स्थितिपैदा हो जाती है। न्याय प्रतीक तुला लिए नारीन्याय दिलाने के लिए कटिबद्ध
है।आँखें बंद करके वह प्रदर्शित कर रही है कि न्याय बिना भेदभाव के होगा।
आभा अजय अग्रवाल
न्याय की देवी
(प्रोत्साहन हेतु)
गांधारी बना देवी को
तारजू पकड़ा दिया ,
तराजू के एक पलड़े में
सिसकता -सुबकता न्याय ,
दूजे में सुबूतों के बट्टे -
जो : सुनते हैं बस
कलदार की खनकती धुन !
न्याय ; धुनिया की
धुनकी सा -
सुबूत उड़ते है हवा में
रुई के फाहों की भाँति
सच चिंदी -चिंदी हो -
बिखर जाता है -
न्याय की देवी के चरणों में -
वो जो बना दी गयी है
गांधारी महाभारत की ?
खोलो पट्टी देवी की आँखों से
सुबूतों को पढ़ो ,महसूसो
नीरक्षीर विवेकी बनो !
पर ये कलयुग है मेरे भाई ,
कलदार की खनक की गूंज में !
आत्मा की अवाज नहीं देती सुनाई
प्रेमचंद की कहानी के सरपंच ,
अब जज साहब हैं भाई ।
वो सुनते है काले कोट वाले की जिरह
लिखवाते हैं फाइल पे न्याय ?
और फाइल जिसमें न्याय ?
चलती है कलदार के पहियों पे ,
कचहरियाँ कलयुग का दलदल है
जो भी यहाँ गया डूबेगा ये नियत है
टिप्पणी: जिस कमरे में काले कोट वाले
यमदूत से वकील हों और आँख बंद पट्टी वाली न्याय की देवी हो वहाँ न्याय की आशा ही
आकाश पुष्प है ,न्याय व्यवस्था आमूलचूल परिवर्तन की बाट जोह रही है पर
बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा ?
सुरेश कुकरेती
न्याय और न्याय व्यवस्था
नही विक्रमादित्य सा राजा,नही हरिश्चंद्र सा सत्यवादी है।
सत्य औंधे मुँह पड़ा जमीं पर,बह रही झूठ की आंधी है।
मूल अधिकारों की श्रेणी में,न्याय का अधिकार भी आता है।
होता हनन जब अधिकारों का,व्यक्ति न्यायालय में जाता है।
वहीं आँखों पर पट्टी बाँधे,न्याय की देवी लिए तराजू हाथ है।
राजा-रंक,ऊँच-नीच
नही कोई, मिलता सबको इंसाफ है।
लम्बित पड़े लाखों विवाद,समय पर न्याय नही मिल पाता है।
न्यायालयों के चक्कर काटते-काटते,इंसान खुद निपट जाता है।
सामंन्तो और सरकारो के अधीन,जब भी न्याय व्यवस्था होगी।
हमेशा हार सत्य की होगी,और असत्य की जीत सुनिश्चित होगी।
लचर कानून प्रणाली भारत में,होती न्याय पाने में देरी है।
बेखौफ घूमते मुजरिम यहाँ हर वक्त,ये कैसी अंधेरी है।
भय कानून का हो सबमें बराबर,कानून का ही राज हो।
न्याय का पलड़ा रहे समानांतर,जिस पर सबको नाज हो।
टिप्पणी: न्यायालय को इंसाफ का मंदिर
कहा जाता है। जहां पर सत्य की जीत और असत्य की हार होती है ।मगर आज यह केवल कथन
मात्र रह गया है। आज झूठ का बोलबाला है और सत्य अपनी दशा पर रो रहा है।
न्यायाधीशों की कमी के कारण न्यायालयों में लाखों मुकद्दमें लंबित पड़े है जिसकी
वजह से न्याय पाने में इतना विलंब हो जाता है कि अदालत के चक्कर काटते -काटते या
तो इंसान बूढ़ा हो जाता है या बर्बाद होकर मर जाता है। इसके निदान के लिए सबसे
पहले तो सख्त कानून व्यवस्था जिससे जनता में कानून का भय हो और अपराध ना हो और
न्यायालयों में न्यायाधीशों की बढ़ोतरी की जाए ताकि समय पर सबको न्याय मिले।
कुसुम शर्मा
जागो हे न्याय की देवी
कलियुग की छाया चारों ओर
इसमें पलते पाप और चोर !
अंधकार का राज्य यह
न्याय का स्थान कहाँ !
हाहाकार मचा चारों ओर
कौन सुनता है किसका शोर !
पैसे वालों का है बोल बाला
गरीब तो अपनी ग़रीबी से हारा !
अंधा राजा अंधी प्रजा
अंधा है क़ानून यहाँ
फिर न्याय की गुहार कहाँ !
न्यायालय में भीड़ है भारी
रजिस्टरों से भरी अलमारी!
तारीख़ तारीख़ और तारीख़
मिलती जनता को सारी !
पाप का पलड़ा है भारी
सत्य पर असत्य करें सवारी
पैसों की माया है यहाँ सारी
कब मिटेगी ये बीमारी !
हे न्याय की देवी
क्यों बाँधी है आँखों में पट्टी
क्यों कान भी अब बंद किए
क्यों पलते हैं तेरे तराज़ू में
पाप के अनगिनत दीये !
हे देवी खोलो अब पट्टी
देखो ज़रा तराज़ू को
चीख सुनो मासूमों की
अत्याचारों को ख़त्म करो !
जागो हे देवी न्याय के लिए
तुम्हारा जागना ज़रूर है
त्राहिमाम् देवी... त्राहिमाम्...
पुकारता तुम्हें हर जन जन है !!
टिप्पणी: दिन प्रतिदिन चोरी, डकैती, मारपीट, बलात्कार, हत्या वगैरह तमाम अपराध बढ़ते जा रहे है पुलिस अपराधी को पकड़ तो लेती है पर अदालत में जा कर वो पैसों के दम पर छूट जाते है किसी को न्याय पाने के लिए उसकी पूरी ज़िन्दगी निकल जाती है पर उसे तारीख़ के अलावा कुछ नहीं मिलता ! न जाने कितनी अनगिनत फ़ाइनल न्यायालय की अलमारी में बंद पड़ी है न्याय के लिए ! समय पर न्याय नहीं मिलता जिसके कारण अपराधी ओर अपराध करता चला जाता है अगर समय पर सही न्याय मिल जाए तो अपराधी भी अपराध करने से डरेगा !
तकब 14/22 .....(समीक्षा व परिणाम)
प्रभा मित्तल
नमस्कार प्रिय मित्रों !
हम सब जानते हैं कि मनुष्य एक
सामाजिक प्राणी है,जीवन जीने के लिए लोगों का परस्पर सहयोग जरूरी है।लेकिन
सच यह है कि प्रत्येक व्यक्ति का स्वभाव,सामर्थ्य,विचारधारा,सोचने समझने की शक्ति सब अलग-अलग होता है।कहावत है कि 'जहाँ चार बर्तन हों, खड़कते
जरूर हैं।' ऐसे ही लोगों के बीच वैचारिक,धार्मिक,सामाजिक,जातिगत और ग़रीबी-अमीरी जैसे मतभेद
भी पनपते रहते हैं।कभी-कभी तो ये विवाद उग्र रूप ले लेते हैं।जिनके तहत
लड़ाई-झगड़ा,चोरी-चकारी,ख़ून-खराबा व बदले की भावना से उपजे
आतंक जैसे अपराध होने लगते हैं।मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों के अनुसार दण्ड देने
का प्रावधान तो प्राचीनकाल से ही चला आ रहा है। अतः किसी भी प्रांत,गाँव-नगर में ऐसी विषम परिस्थितियों में असामाजिक तत्वों
के उपद्रवों से नागरिकों के बचाव हेतु कुछ व्यवस्थाएँ की जाती है, ताकि वहाँ अपराधों पर नियंत्रण रखा जा सके और अपराधी को
दण्डित किया जा सके।इसी के लिए कानून बने हैं। कानून की बात करते ही हमारे
मस्तिष्क में कानून की देवी की मूर्ति घूम जाती है जिसकी आँखों पर पट्टी बँधी है,इसका आशय कानून अंधा नहीं बल्कि बिना किसी भेदभाव के
सबको समान दृष्टि से देखना है।हाथ में तराजू निष्पक्ष न्याय का प्रतीक है और तलवार
न्याय की देवी की शक्ति और उसके पद सम्बंधी विशेष अधिकार को दर्शाती है।धर्मराज के
दरबार में मनुष्य के पाप-पुण्य का लेखा जोखा रखना और उनके कर्मों के अनुसार उन्हें
दण्डित या पुरस्कृत करने की जिम्मेदारी जैसे यम के सहयोगी भगवान चित्रगुप्त की है
वैसे ही यहाँ न्यायालयों में कानून की देवी विराजमान है।
अपने देश में कानून की वर्तमान
स्थिति को देखते हुए ही तकब14/22 का चित्र न्याय की देवी के
साथ दिया गया था।आप सभी रचनाकारों ने इस चित्र पर अपने-अपने सर्वोत्तम और सार्थक
विचार रखने के लिए प्रतियोगिता में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया ।आपका परिश्रम सराहनीय
है। हमें कुल नौ रचनाएँ प्राप्त हुईं,जिनमें दो रचनाएँ निर्णायक मण्डल से
हैं।अतः हमें सात रचनाओं में से ही उत्कृष्ट रचना का चयन करना था।उत्कृष्ट रचना के
लिए मिले वोटों की संख्या इस प्रकार है----------
प्रथम स्थान के लिए मिले वोट-------
1.सुरेश शर्मा----2
2.दिनेश चन्द्र पाठक----1
3.डॉ अंजु लता सिंह----1
---
द्वितीय स्थान के लिए मिले
वोट--------
1.ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार-----2
2.पुष्पा पोरवाल----1
3.दिनेश चन्द्र पाठक---1
----------------------------------
इस प्रकार वोटों की संख्या के आधार
पर अपनी उत्कृष्ट रचना "न्याय और न्याय व्यवस्था" की प्रस्तुति के साथ
श्री सुरेश शर्मा प्रथम स्थान प्राप्त कर विजयी हुए। आगे इसी क्रम में अपनी
सर्वोत्तम कृति "न्याय की देवी बनाम कवि" रचकर श्री दिनेश चन्द्र पाठक
द्वितीय स्थान लेकर विजेता बने। आप दोनों विजेताओं को निर्णायक मण्डल की ओर से
हार्दिक बधाई व अनन्त शुभकामनाएँ !!
अब चलते हैं समीक्षा की ओर.......तकब
14/22 की सभी रचनाओं की समीक्षा डॉ. अंजु लता सिंह जी ने की
है। डॉ. अंजु लता सिंह जी के इस शानदार सहयोग के लिए मैं उनका हार्दिक अभिनन्दन
करती हूँ।अब आपके समक्ष आप सबकी रचनाओं की समीक्षा लेकर उपस्थित हैं........
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"त क ब",क्रमांक-14/22
के कलमकारों की काव्य-कृतियों की समीक्षा प्रस्तुति-
बेहतरीन मंच "तस्वीर क्या
बोले" को सादर नमन !
"तस्वीर क्या बोले "क्रमांक-14 प्रतियोगिता में प्रेषित सभी कलमकारों की काव्य रचनाएं
बेहतरीन हैं।अंधाकानून और कठघरे में खड़ी न्याय- प्रक्रिया की ओर इंगित करती हुई
तस्वीर सामाजिक ज्वलंत मुद्दे उठाती है। माननीय प्रतिबिंब बड़थ्वाल जी का
स्नेह-आमंत्रण स्वीकार करते हुए मेरी लेखनी ने सभी कवियों की कविताओं की समीक्षा
करने का दुस्साहस किया है। आप सभी सम्माननीय सक्षम रचनाकार मेरी समीक्षा से
संतुष्ट होंगे, मुझे ऐसी आशा और विश्वास है।
सर्वप्रथम मैं मंच से जुड़े हुए
एडमिन आदरणीय श्री प्रतिबिंब बड़थ्वाल जी की कविता के विषय में लिखना चाहूंगी।
आपने अपनी कविता "न्याय अन्याय" में प्रवाहमान भाषा में,सटीक शब्द प्रयोगों द्वारा प्रचलित लचर कानून व्यवस्था
की ओर संकेत किया है और बताया है, कि भारत में यदि ऐसी ही कानून
व्यवस्था रहेगी,तो न्याय डगमगा जाएगा। आज जरूरत है- हमें जागरूक होकर
सच्ची न्याय व्यवस्था की स्थापना करने की। इस समस्या का समाधान होना बहुत जरूरी
है। सही न्याय मिलना ही हर भारतीय नागरिक का सामाजिक हक है।
कुल आठ कलमकारों ने अपनी प्रभावी
कविताएं प्रस्तुत कीं-
1*दिनेश चंद्र पाठक 'बशर' जी की कविता "न्याय की देवी बनाम कवि" में
"साहित्य समाज का दर्पण है", लोकोक्ति चरितार्थ हुई है।कवि अपने
कर्तव्य के प्रति सचेत होकर अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाकर निष्पक्ष न्याय के लिये
ही कलम चलाने हेतु कृतसंकल्प हैं।। "न्याय के तराजू का स्वार्थ के वशीभूत
होकर डोलना" नव-प्रयोग है।कवि एक ओर सत्ता को सावधान करता है,तो दूसरी ओर समाज को सजग बनाकर अपने अधिकारों के प्रति
सचेत करता है।वह चाहता है कि सज्जन व्यक्तियों को न्याय मिले।राष्ट्र की नींव
न्याय में ही बसी है।
2* ब्रह्माणी वीणा जी अपनी कविता "सत्यमेव जयते"
में अंधे कानून की बात करके न्याय को कटघरे में खड़ा करती हैं।वह कोर्ट,वकील,न्याय प्रक्रिया सभी पर प्रहार करती
हैं। कलयुग में सत्य की जीत होना जरूरी मानती हैं।कोर्ट को घूसख़ोर,जजों की ऐसी तैसी,सत्य की
हार ,विकृत समाज, अंधी देवी जैसे शब्दों का प्रयोग
करके अपना रोष दर्शाती हैं। उन्हें आशा है, कि न्याय
के लिए समाज संकल्प बद्ध होकर आगे बढ़ेगा।
3*भारती ए गुप्ता जी ने अपनी लघु कविता में स्पष्ट किया है
कि कानून की देवी अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर निष्पक्षता की ओर संकेत करती है।
आगामी समय में सत्य की विजय होगी ,ऐसा उन्हें ऐसा विश्वास है।
4*पुष्पा पोरवाल जी ने अपनी कविता "न्याय
व्यवस्था" में "पंख कटे उम्मीद के" जैसे गहन शब्दों का प्रयोग किया
है।वह मानती हैं ,कि अज्ञानी होकर रसूखदार लोग अन्याय करने से नहीं चूकते
हैं ।वे कानून की देवी से गुहार लगाती हैं, कि वह बंद
आंखों से निष्पक्ष न्याय का निर्णय ले और समाज को एक नई दिशा दे।
5*सुरेश शर्मा जी ने अपनी कविता" न्याय और न्याय
व्यवस्था" में डगमगाती कानूनी प्रक्रिया पर दुःख जताया है।उनके अनुसार कोर्ट
के चक्कर लगा लगाकर फैसले की प्रतीक्षा करते हुए इंसान खुद ही निपट लेते हैं,सत्य औंधे मुँह गिर चुका है।मुजरिमों के बेखौफ होने से
सत्य हार जाता है।पैसों के बल पर वे छूट जाते हैं।भारतेंदु हरिश्चन्द्र जैसे
सत्यवादी अब मिलने भी दूभर हैं।सख्त कानून हों,अपराधियों
में भय हो,कोर्ट इंसाफ के मंदिर हों,तभी न्याय
ठीक होगा।
6*कुसम शर्मा जी ने अपनी काव्य-कृति "जागो हे न्याय
की देवी" में कलयुगी छाया,अंधा राजा और प्रजा,पाप का भारी पलड़ा और अंधे कानून की बात करके त्राहिमाम
की टेर लगाई है।
7*आभा अजय अग्रवाल जी अपनी "न्याय की देवी"
कविता में कानून की देवी के तराजू में एक ओर सबूत तो दूसरी ओर सुबकती न्याय
व्यवस्था को तोलते दिखती हैं।काले कोट वाले यमदूत जैसे वकील,अंधी न्याय की देवी के चलते न्याय को आकाश कुसुम के समान
दुर्लभ बताती हैं।सबको निष्पक्ष न्याय की दरकार है।}}
समीक्षिका- डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली
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शानदार और सारगर्भित समीक्षा के लिए
बहुत बहुत धन्यवाद डॉ. अंजु लता सिंह जी। आपकी काव्य-प्रस्तुति "न्याय की
देवी" भी मेरे मन को भायी। आपके विचारों में असमान और धीमी न्याय-व्यवस्था के
प्रति मन में आक्रोश भी है और निर्दोष के प्रति चिंता भी।खुलकर लिखा है आपने
......आज समाज में अत्याचार निरन्तर बढ़ते जा रहे हैं ,और न्याय
व्यवस्था इतनी धीमी और लचर हो गई है कि निर्दोष व्यक्ति कोर्ट में बरसों घसीटे जाते
हैं और अपराधी निडर होकर खुले घूमते रहते हैं।सच कहा आपने अंजु लता जी...ऐसा भी
होता है कई बार तो दोषी को निर्दोष सिद्ध कर दिया जाता है और भले मानस जेल के
सींखचों के पीछे सालों तक बंद पड़े रहते हैं।बीस साल बाद उसे निर्दोष करार देकर
बाइज्जत रिहा होने का फरमान जारी कर दिया जाता है।इसीलिए कहा है कि अब कानून की
देवी आँखों से पट्टी हटाकर देखे तो समाज में बढ़ते अत्याचारों से पीड़ित लोगों की
दुर्दशा देख पाएगी।आखिर न जाने कब वो अच्छे दिन आएँगे कि न्यायसंगत न्याय हो
सकेगा।इससे पहले कि कानून पर से लोगों का विश्वास उठ जाए ,अदालतों
से समय पर सही ,सर्वमान्य और निष्पक्ष न्याय मिलना बहुत जरूरी है।
डॉ. अंजु लता जी,आपने अपनी रचना का यहाँ ज़िक्र ही नहीं किया इसीलिए
मैंने आपकी कविता में निहित आपके मनोभावों का अनुमान लगाने का प्रयास किया
है.....कितनी सही हूँ मैं..ये तो आप ही बताएँगी। सुन्दर सार्थक रचना के लिए
हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ आपको... !!
मेरा सभी सदस्यों से आग्रह है कि
समूह के अधिक से अधिक सदस्य आगे आएँ और इस तकब पटल पर स्वरचित रचनाएँ रचकर इस समूह
परिवार की शोभा बढ़ाएँ। बेहतरीन प्रयास और सुन्दर -सार्थक रचनाओं की प्रस्तुति
देकर समूह को जीवंत रखने के लिए आप सभी प्रतिभागियों को मैं बहुत बहुत धन्यवाद व
बधाई देती हूँ।
प्रतियोगिता के विजेताओं प्रथम स्थान
प्राप्त श्री सुरेश शर्मा और द्वितीय स्थान प्राप्त श्री दिनेश चन्द्र पाठक को
पुनः पुनः बधाई व हार्दिक शुभकामनाएँ !!
निर्णायक मण्डल के सभी सहयोगी
सुधीजनों का हृदय से धन्यवाद.....आभार। प्रोत्साहन के लिए प्रस्तुति हेतु इस समूह
परिवार के सुदृढ़ स्तम्भ प्रिय प्रतिबिम्ब जी और प्रिय आभा जी (अजय अग्रवाल) का
हृदय से आभार व साधुवाद।
सस्नेह शुभकामनाएँ !
प्रभा मित्तल,
नई दिल्ली.