डा.अंजु लता सिंह गहलौत
जनसंख्या समस्या और समाधान
सृष्टि की संरचना करके ,सर्जक मन ही मन रोया है।
नश्वर बना सभी कुछ भू पर,बीज प्रेम का फिर बोया है।।
आदिकाल से मनु-संतति,पाती जाती नित विस्तार।
जीव-जंतु,परिवेश,परिंदे,सबके हित करती व्यवहार।।
वसुधा पर सारे मिलकर ही कुल-कुटुम्ब
का सर्जन करते।
इक दूजे पर निर्भर होकर,जीने का सुख अर्जन करते।।
भू-मां का सीमित आंचल है,आबादी बढ़ती जाती है।
बार-बार जनगणना करके,नियति-नटी भी घबराती है।।
मन में ठानें "कम करना
है"जनसंख्या के घेरे को।
फूंके मंत्र'जियो,जीने दो',दिल से मिटा अंधेरे को।।
संयम,दूरदर्शिता,धीरज,आबादी को करें संतुलित।
समाधान हैं ये अचूक सब,तन-मन कर दें त्वरित प्रफुल्लित।।
चहल-पहल की इस दुनिया में,बच्चे,बूढ़े और जवान।
सबके होने से लगता है,प्यारा,पावन,सुखद
जहान।।
हर दंपति के दो शिशु हों गर,सुख-वैभव लहराएगा।
रोटी,कपड़ा,घर की सुविधा,हर बालक पा जाएगा।।
शान देश की बढ़ जाएगी,भावी पीढ़ी मुस्काएगी।
सबको अवसर मिल जाएंगे,समस्या समाधान पाएगी।।
गूंज उठेगा फिर जयनाद,जनसंख्या कम हो जाएगी।
मन-वीणा के तार बजेंगे,थिरकेगा नभ,भू गाएगी।।
टिप्पणी: आज हमारे देश में जनसंख्या
वृद्धि की समस्या सुरसा की तरह मुख फाड़े हुए हमें भयभीत कर रही है।इस समस्या का
अचूक समाधान हम जागरूक देशवासियों का दृढ़ संकल्प और संयम ही हो सकता है।प्रकृति
के उपादान सीमित हैं,मानव आवश्यकताएं असीमित।दोनों में ही संतुलन बैठाना होगा,तभी इस समस्या का निराकरण हो सकेगा।
शिव मोहन
जनसंख्या अभिशाप
बढ़ती जनसंख्या अभिशाप है, अब धरती माँ पर भार।
सुन लो यदि तुम सुन सको, अब करती प्रकृति पुकार।
दोहन कब से ही कर रहे , ना किया प्रश्न एक बार।
भूले हम तो कर्तव्य सब , बस याद रहा अधिकार।
जंगल काटे नदियाँ सूखीं , बस स्वार्थ ही बारम्बार।
अपना ही अपना दिख रहा,अब दिखे ना कोई उदार।
चादर हो जितनी पैर फैला ,पूर्वजों का ज्ञान है गुप्त।
जनसंख्या ही तो बढ़ रही , संसाधन हो रहे लुप्त।
ये पंच तत्त्व तो मुफ्त हैं , कभी किया नहीं भुगतान।
सोच समझ कर खर्च करो ,अब लगेगा इनपे लगान।
कुछ समाधान तो सोंच लें, आओ करें भविष्य सफल।
अब भी ना चेते हम यदि , अभिशप्त करेंगे कल।
हम ना होंगे इस लोक में , देखेंगे कहीं से दूर।
बच्चे अपने कष्टित होंगे , होगा भविष्य फिर क्रूर।
छोटा परिवार ही सुखी है , ताले की कुंजी सही।
जनसंख्या अब हो नियंत्रित , पूँजी भविष्य की वही।
टिप्पणी- बढ़ती हुई जनसंख्या ना केवल
भारत की अपितु सम्पूर्ण विश्व की सबसे भयावह समस्या है। अब हमारी प्रकृति और धरती
माँ अपने सुपुत्र और सुपुत्रियों से पुकार कर रही है कि समय बड़ी तेजी से गुजर रहा
है हम धरती के समस्त संसाधनों का अति उपयोग करते आ रहे हैं जो बहुत दिनों तक वहनीय
नहीं है। अगर हम अब भी नहीं संभले तो आने वाला भविष्य अभिशप्त होगा। हम सभी को एक
साथ आकर जनसँख्या नियंत्रण में छोटे परिवार के रूप में अपना अपना योगदान देना है
तभी आने वाला कल सुखमय होगा और यही भविष्य की पूँजी होगी।
सुरेश कुकरेती
जनसंख्या समस्या व समाधान
विकट विपत्ति विश्वभर की यह,
बढ़ रहा भू जनसंख्या का भार।
चिंतन मनन में विद्वत जन सब,
किस विधि मिले बाधा से पार।
अशिक्षा,धर्म,परम्परा दोष मार्ग में,
जनसंख्या का पल प्रतिपल विस्तार।
सीमाएं,साधन सीमित
सब संसार में,
जूझ रहे बाधाओं नित नव नर-नार।
पालन पोषण होता नही समुचित,
फैल रहा है द्वेष-द्वन्द हर घर
द्वार।
परिस्थितियां प्रतिकूल हो रही घातक,
शासन प्रशासन हैं असहाय लाचार।
जनसंख्या वृद्धि अभिशाप जगत,
बढ़ रहा लूटपाट और व्यभिचार।
दर मंहगाई में बढ़ोतरी दिनोंदिन,
विलखते भूख से सहस्त्र परिवार।
सशक्त संदेश सब संसार फैलाएं,
शिशु एक जने जननी नही चार।
जगत जीवन होगा सब सुखमय,
समृद्धि खुशहाली का यही आधार।
टिप्पणी: जनसंख्या वृद्धि आज विश्व
की विकृत समस्या है।जनसंख्या की दृष्टि से हमारा देश भारत विश्व में दूसरा बड़ा
देश है । इस समस्या की मूल वजह अशिक्षा ,धार्मिक मतान्धता,कुरीतियां और लिंग भेद है। इसके समाधान हेतु शिक्षा का
समुचित प्रचार प्रसार,ठोस कानून व्यवस्था और लिंग भेद-भाव को समूल नष्ट करना
होगा।
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
कर्तव्य निभाओ
(प्रोत्साहन हेतु)
जनसंख्या बढ़ रही, समस्याएं हैं बढ़ रही
प्रदूषण फ़ैल रहा, बीमारियाँ हैं फ़ैल रही
न्याय प्रक्रिया बाधित, गरीबी है फ़ैल रही
खादयान्न पर संकट, जीना मुश्किल कर रही
जनसंख्या वृद्धि हो रही, औसत आयु घट रही
सीमित आय संसाधन, महंगाई केवल बढ़ रही
देश की अशिक्षित जनता, जाति धर्म में बट रही
राजनीती का होता पोषण, जनता केवल तरस रही
अपने शिक्षित होने का, आज हम कर्तव्य निभाएँ
जन सामान्य की, चिंताओं को समझे समझाएँ
जनसंख्या बढ़ रही, उस पर हम लगाम लगाएँ
विश्व जनसंख्या दिवस पर, आओ प्रण हम उठाएँ
अच्छी शिक्षा स्वास्थ्य हेतु, जागृत हमें करना है
युवाओं की सोच में, अब हमें ही बदलाव लाना है
एक समान अधिकार मिले, यह कानून बनाना है
हो जनसंख्या पर नियन्त्रण, यह क़ानून लाना है
टिप्पणी: आज जो समस्याएं खासकर
सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरण हमारे समक्ष है उसमें जनसंख्या वृद्धि
को मैं बड़ा कारण मानता हूँ. जनसंख्या बढ़ा कर हमने क्या पाया है यह विचार आज हमें
करना है. समाधान सरकारी तौर पर जनसंख्या नियन्त्रण क़ानून लाना आवश्यक है और
सामाजिक रूप से नागरिकों का कर्तव्य है समाज को समझाना है.
डॉ भारती ए गुप्ता
परिवार देश जनसंख्या पर आधारित
कविता जो देश सोने की चिड़िया कहलाता
था
आज बेबसी के आंसू रो रहा है
इतने मानव जन को संबल देना आसान नहीं
हैश
ये हमारा लक्ष्य है हमारा
सभी को रोटी कपड़ा और मकान हो
शिक्षा का विस्तार हो
मानव का कल्याण हो
जब सब कुछ नियंत्रण में हो
तभी विकास मानव का हो
यही विशवास है सवोर्परि
घर को नमन
हर जन को मिले उसका हक
यही विशवास हमारा है
टिप्पणी: हम सभी भारतीयों को समर्पित
एक पहल. इस समस्या का सम्मान जनक तरीके से हल खोजना.
रोशन बलूनी
जनसंख्या विस्फोट
(विष्णुपद छंद- विधान-16,10 चार चरण। दो-दो समतुकांत या चारों,चरणांत गुरु।)
जनसंख्या विस्फोट यहाँ पर,
मारा-मारी है।
संसाधन सीमित भारत में,
ये लाचारी है।
दो बच्चों से ज्यादा पर तो,
रोक जरुरी है।
जनसंख्या कानून सही ये,
चोट करारी है।।
सब जन सोचें समझें सब ही,
बढती आबादी।
आबादी बढने से निश्चित,
होगी बर्बादी।
कैसे होगी दूर गरीबी?
बैठेंगे ठाली।
चार नही अब दो ही बच्चे,
होगी खुशहाली।।
सुन लो भाई!सुन लो बहनों!,
बढती बेगारी।
कैसे बन पाओगे बोलो?
नौकर सरकारी।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
जागो तुम चारों।
कमतर होगी जनसंख्या तो,
महकोगे यारों।।
धरती से सबकुछ ले लेते,
ये अवसरवादी।
जल-जंगल का दोहन करते,
मानव उन्मादी।
जी!जनसंख्या पर रोक लगे!,
कहते फरियादी।
भीड़ तंत्र से हमें चाहिए,
निश्चित आजादी।।
टिप्पणी- जनसंख्या विस्फोट हमारे देश
की एक बहुत बड़ी समस्या है,यदि इसे रोका नही गया तो आने वाला भविष्य भारत और
भारतीयों क्या होगा यह भविष्य के गर्त में छिपा है परन्तु स्थिति भयावह होनी
सुनिश्चित है।हमें जनसंख्या कानून समान रुप से लागू करना चाहिए क्योंकि देश
संविधान से चलता धार्मिक भावनाओं से नही।जमीन वही है और उतनी ही है लेकिन जनसंख्या
घनत्व इतना हो गया है कि "हम दो हमारे दो"का नारा केवल कागजों और
कार्यक्रमों तक सीमित है।'संसाधन सीमित हैं और हमारी आवश्यकताएं बढती ही जा रही
हैं यह भी एक अलग कारण है।हमें इस दिशा गहन चिंतन-मनन करना चाहिए।
पुष्पा पोरवाल
अनियंत्रित आबादी
पल-पल बढ़ती आबादी से अचला है हैरान,
कहाँ से लाऊँ दाना पानी ,मानव तू नादान ।
संसाधन सब सिमट रहे हैं, मँहगाई की मार,
रहने को स्थान नहीं है, पेट बने हैं भार ।
रोटी के अतिरिक्त भी है शरीर की माँग,
कुपोषण से है रुग्णता, बीमारी से परेशान ।
जन को रहने जगह नहीं, दुधारू कहाँ पर जायें,
बाल वृद्ध सब तरसते, दूध कहाँ से पायें ।
आबादी से आबाद हैं, शहर घनत्व का भार,
रहने को घर नहीं ,रहते झोपड पट्टी डाल ।
स्वास्थ्य की चिंता कब करें, रोटी एक सवाल,
किस्मत को रोते रहे, पर न बदली अपनी चाल।
अदूरदर्शी,मत,मजहबी नहीं समझते बात,
जनसंख्या स्थिरीकरण में न देते अपना
साथ।
आबादी बरबादी बनी,जीवन खस्ताहाल,
मूल भूत सुविधाओं से वंचित रोता
नौनिहाल।
प्रशासन भी क्यों मौन है, न करता कोई उपाय,
रोजगार भी चाहिए, युवाओं को न मिलती राह ।
सुविधाएं सब बंद हों, जिनके दो से ज्यादा बाल,
जननी भी स्वस्थ हो, जीवन हो खुशहाल ।
टिप्पणी: चीन को भी पार करती भारत की जनसंख्या विकराल रुप धारण कर रही है। तेजी से बढ़ रही आबादी से क ई समस्याएं उत्पन्न हो गयीं हैं। हाँलाकि शिक्षित वर्ग इस समस्या को शिद्दत से समझ रहा है और परिवार भी नियंत्रित कर रहा है, वहीं एक वर्ग जो अशिक्षित है वह प्रजनन को प्राकृतिक मान कर मौन है। यही अदूरदर्शिता देश के लिये भारी पड़ रही है।
आभा अजय अग्रवाल
जन-संखिया
(प्रोत्साहन हेतु)
संखिया सा विष है
ये- बढ़ती जनसंख्या ,
कम संसाधन लोग अधिक ,
मूल यही अराजकता का ,
मनुज पारिस्थितिकी ही नहीं -
प्रकृति का भी बिगड़ा संतुलन!
पंचभूत !पंचतत्व देह के -
सब के सब हो रहे विषैले ,
बादल सूखे ,धरती
प्यासी ,
अंबुद का जल हुआ गरम ,
जीवजंतु ,पशुपक्षी
बेचारे ,
बढ़ती मानव-जनसंख्या के मारे :
हिम आलयों में हिम पिघलती
सुनामी की आहट है देती ,
संखिया तो औषध भी है !
बहुत काम की ,बड़े लाभ की ;
पर शोधन करना पड़ता है -
शोधन हो जनसंख्या का भी ,
हम दो हमारे दो -
दस वृक्ष पे इक संतान
ऐसा हो देश का विधान
पालन हो सख्ती से
इक अभियान चलाया जाये ,
पंचभूत तब संतुलित होगा
सृष्टि बचेगी ,उन्नत संतति होगी
टिप्पणी: बहुत विस्तृत और आवश्यक विषय पे चित्र है , कम शब्दों में कहना आसान तो नहीं पर ऐक असफल सी कोशिश की
है
कुसुम शर्मा
बढ़ती जनसंख्या और उसकी समस्या
विश्व के लिए गंभीर चिंता
बढ़ती जनसंख्या और उसकी समस्या
अगर न रोक पाये जनसंख्या
तो बढ़ती ही जाएगी अराजकता !!
जिसके कारण बढ़ेगी बेरोज़गारी
विश्व भर में फैलेगी मक्कारी !
आतंकवाद और भ्रष्टाचार का होगा राज
चारों ओर होगी भुखमरी,ग़रीबी और अत्याचार!!
यातायात,चिकित्सा
और आवास
पानी , प्राकृतिक
साधन और पर्यावरण
बढ़ती आबादी के कारण
इन सब का हो रहा अभाव
भविष्य पर पड़ेगा इसका प्रभाव!!
भारत का इसमें बहुत बड़ा योगदान
सारे विश्व की आबादी मे
चीन के बाद है भारत का नाम
अगर यूँ ही बढ़ती रही भारत की आबादी
तो दूर नहीं वो दिन जब भारत पहुँचेगा
प्रथम स्थान !!
जागरूक होंगे जब हम तभी देश में ला
पायेंगे
जनसंख्या नियंत्रण नए क़ानून !
अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के देंगे ध्यान
जन जन के लिए सुनिश्चित करना होगा ये
अभियान!
टिप्पणी: आज पूरा विश्व बढ़ती जनसंख्या और उसकी समस्या से ग्रस्त है ! अगर इसी प्रकार जनसंख्या बढ़ती रही तो पानी आवास पर्यावरण प्राकृतिक संसाधनों का अभाव होना निश्चित है जिसके कारण भुखमरी ,बेरोज़गारी भ्रष्टाचार, चोरी अनैतिकता, अराजकता और आतंकवाद फैलेगा जो भविष्य के लिए घातक हैजनसंख्या के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है गर अभी न रोका गया तो वो दिन दूर नहीं जब भारत पहले स्थान पर होगा !
तकब 13/22, (परिणाम
व समीक्षा)
(प्रभा मित्तल)
प्रिय मित्रों, नमस्कार !
अभी हाल ही में 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया गया। यह लोगों को
बढ़ती जनसंख्या के प्रति जागरूक करने के लिए मनाया जाता है।इस समय विश्व की
जनसंख्या लगभग आठ अरब का आँकड़ा पार कर रही है।यदि इस पर नियंत्रण न किया गया तो
स्थिति भयानक रूप ले सकती है।इस दौड़ में हमारा देश भी किसी से पीछे नहीं है।
अशिक्षा,बाल-विवाह,रूढ़िवादी विचारधारा, बेटी चाहे कितनी भी हों पर वंश चलाने के लिए बेटा ही
चाहिए इस लालसा में हर साल बच्चों को जन्म देना, धर्म पर
अंधविश्वास, पुरुष प्रधान समाज में पुश्तैनी चल-अचल सम्पत्ति संभालने
के लिए अधिक वारिस पैदा करना,अनेक परिवारों की सोच बुढ़ापे का
सहारा बेटा ही होता है वरना सद्गति कैसे होगी, ऐसे अनेक
कारण हैं जो हमारे देश की जनसंख्या वृद्धि में सहायक हैं। इससे देश में ग़रीबी,निरक्षरता, बेरोजगारी, भुखमरी, चोरी-चकारी,मार-काट,आतंक,यही सब फैलता है।ऐसे में देश की उन्नति की चाल धीमी हो
जायेगी क्योंकि बढ़ती जनता के लिए आवास का प्रबन्ध,जंगल
काटकर भवन-निर्माण करना,हरियाली की जगह कंकरीट के जंगल खड़े करना, प्रकृति को नष्ट कर पर्यावरण दूषित करना,प्रदूषण बढ़ाना,ये सब
वजहें भी देश को आर्थिक रूप से कमजोर बनाती हैं,ऐसे में
विकास का लाभ हर किसी को नहीं मिल पाता है। अतः बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगाना अति
आवश्यक है।इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए तकब 13/22
का चित्र "जनसंख्या समस्या व समाधान" शीर्षक के साथ दिया गया था।इस विषय
पर आप सभी प्रतिभागियों ने अपना श्रेष्ठ दिया। हमारे पास कुल नौ रचनाएँ आईं।जिनमें
दो रचनाएँ निर्णायक मण्डल से हैं।अतः सात रचनाओं में उत्कृष्ट रचना चुनने के लिए
निर्णायक मण्डल की ओर से दिए गए वोट इस प्रकार हैं..........
प्रथम स्थान के लिए वोट...........
1.पुष्पा पोरवाल----2
2.डॉ अंजु लता सिंह----1
3.शिव मोहन----1
------------------------
द्वितीय स्थान के लिए वोट..........
1.सुरेश शर्मा----2
2.अंजु लता सिंह----1
3.रोशन बलूनी----1
------------------------------
इस प्रकार वोटों की संख्या के आधार
पर अपनी उत्कृष्ट प्रस्तुति "अनियंत्रित आबादी" के साथ सुश्री पुष्पा
पोरवाल प्रथम स्थान पर विजयी रहीं।
इसी क्रम में अपने शानदार सृजन
"जनसंख्या समस्या और समाधान" की प्रस्तुति देकर सुश्री डॉ अंजु लता सिंह
ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
आप दोनों विजेताओं को निर्णायक मण्डल की ओर से हृदय से बधाई व हार्दिक शुभकामनाएँ।
तकब 13/22
की सभी रचनाओं की समीक्षा सुश्री बिमला रावत जी ने की है। विमला रावत जी के इस
सहयोग के लिए मैं उनका हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ।अब आपके समक्ष आप सबकी रचनाओं की
समीक्षा लेकर उपस्थित हैं........
तकब - 13 समीक्षा
(बिमला रावत, ऋषिकेश )
सर्वप्रथम माँ वीणावादिनी के चरणों
में सादर प्रणाम 🙏 और ' तकब ' मंच के
सभी सम्मानित जन के चरणों में सादर प्रणाम वन्दन , अभिनन्दन
।
' तस्वीर क्या बोले ' मंच
द्वारा आयोजित चित्राधारित प्रतियोगिता 13 की समीक्षा में सभी साथियों का
हार्दिक स्वागत और मैं आदरणीय बड़थ्वाल जी का हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ कि
आपने समीक्षा का दायित्व सौंपकर एक नयी विधा को सीखने का सुनहरा अवसर प्रदान किया
।
तकब 13 की
तस्वीर ' बढ़ती जनसंख्या समस्या और समाधान ' पर आधारित है । सच में बढ़ती जनसंख्या ने आज समाज के
परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया है और समय रहते गम्भीरता से इस विषय पर विचार और
काम नहीं किया गया तो आने वाला समय अत्यन्त ही कष्टमय होगा ।
तकब / 13 की
प्रतियोगिता के लिये निर्धारित तिथि तक पटल पर 09 रचनायें
प्रेषित की गई । सभी रचनायें गागर में सागर सदृश हैं ।
1 -- प्रथम रचना आदरणीया डॉ अंजू लता सिंह जी द्वारा पटल पर
प्रेषित की गई । आपने अपनी रचना में सृष्टि के विस्तार को स्वीकारते हुए सचेत किया
है कि धरती का आँचल सीमित है और जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है जिसके दुष्परिणाम
समाज में दिखाई दे रहे हैं । संयम और धैर्य का परिचय देकर इस विकट समस्या का
समाधान दृढ़ संकल्प होकर करना है ताकि आने वाली पीढ़ी का भविष्य आशावान हो ।
2 - द्वितीय प्रेषित रचना आदरणीय शिवमोहन जी की है । आपने
अपनी रचना में इस बात पर जोर दिया है कि निरन्तर तीव्रता से बढ़ती आबादी अभिशाप
बनकर धरा पर भार बन चुकी है और लगातार धरित्री का दोहन स्वार्थ के लिये आज के मानव
द्वारा किया जा रहा है और खमियाजा भावी पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है । आपने छोटे
परिवार को अपनाने का निवेदन किया ।
3 -- तृतीय रचना आदरणीय सुरेश शर्मा जी ने पटल पर प्रेषित की
है । आपने अपनी छन्द मुक्त कविता में जनसंख्या वृद्धि को विश्व की विकृत समस्या से
सम्बोधित कर अशिक्षा , अज्ञानता और धर्मान्धता को इसका कारण माना है । आज चारों
और फैली अराजकता , लूटपाट , हत्या से बचने के लिये आपने ' एकल शिशु ' का पुरजोर समर्थन किया है ।
4 -- चतुर्थ रचना पटल पर आदरणीय बड़थ्वाल जी ने ' कर्तव्य निभाओ ' शीर्षक से पटल पर प्रोत्साहन स्वरुप प्रेषित की है । आपने पर्यावरण प्रदूषण , गरीबी , खाद्यान्न संकट , लचर न्याय व्यवस्था के लिये बढ़ती जनसंख्या को दोषी माना है । आपने जनसंख्या नियंत्रण के लिए युवा वर्ग का आह्वान किया है ताकि सभी लोगों तक अच्छा स्वास्थ्य और शिक्षा पहुँच सके, जिससे उनका आगामी जीवन सुखमय हो सके ।
5 --- पाँचवीं रचना आदरणीया डॉ भारती ए गुप्ता जी द्वारा पटल
पर प्रेषित की गई है । आपने अपनी रचना के माध्यम से इस बात पर दु:ख व्यक्त किया है
कि सोने की चिड़िया कहलाने वाला देश जनसंख्या वृध्दि के दुष्परिणामों के कारण बेबसी
के आँसू बहा रहा है । आपने जनसंख्या नियंत्रण पर जोर दिया है ।
6 -- छठी रचना आदरणीय रोशन बलूनी जी की, पटल पर प्रेषित हुई है । आपने ' विष्णु पद
छन्द ' में रचित रचना को ' जनसंख्या
विस्फोट ' शीर्षक दिया है । आपने सभी धर्मों के लोगों को (हिन्दू , मुस्लिम , सिक्ख , ईसाई
)समान रूप से जनसंख्या क़ानून का पालन करने की बात कही है और साथ ही अनावश्यक
आवश्यकताओं को कम करने का सन्देश भी दिया है । ' हम दो
हमारे दो ' के नारे को धरातल पर उतारने पर जोर दिया है ताकि भारत का
आगामी भविष्य उज्जवल और सुरक्षित हो सके ।
7 -- सातवीं रचना आदरणीया पुष्पा पोरवाल जी की है । आपने पल -
पल बढ़ती आबादी का कारण अदूरदर्शिता , अशिक्षा और धर्मान्धता को बताया है ।
बढ़ती आबादी के कारण बाल ,
वृद्ध और युवा सभी अपनी मूलभूत
आवश्यकताओं (रोटी , कपड़ा , मकान , स्वास्थ्य
और शिक्षा )के लिये तरस रहे हैं । आपकी रचना लयात्मकता लिये हैं ।
8 - पटल पर प्रेषित आठवीं रचना आदरणीय अजय अग्रवाल जी की है
जो कि प्रतियोगिता के लिये नहीं है । आपने बढ़ती जनसंख्या की तुलना संखिया से की है
। जनसंख्या की अधिकता और संसाधनों की हो रही न्यूनता अराजकता का मूल कारण है ।
प्रकृति के असंतुलन , पञ्चतत्वों के विषाक्त होने के लिये मानव स्वयं दोषी है
। आपने जनसंख्या शोधन पर जोर दिया है । आपका मानना है कि जनसंख्या शोधन का सख्ती
से पालन करके ही पर्यावरण की शुध्दता और उन्नत भविष्य की कल्पना की जा सकती है ।
9 -- नौवीं और अन्तिम रचना पटल पर आदरणीया कुसुम वर्मा जी की
है। आपने बढ़ती जनसंख्या को विश्व की गम्भीर समस्या और चिन्ता का विषय बताया है ।
आज चारों ओर फैल रही अराजकता ,भुखमरी बेरोजगारी , आतंकवाद जनसंख्या वृध्दि का ही दुष्परिणाम है । आपने
सचेत किया है कि यदि तेजी से बढ़ती आबादी पर नियंत्रण नहीं किया गया तो भारत सबसे
अधिक जनसंख्या वाला देश बन जायेगा ।
समीक्षा: बिमला रावत
सभी कवियों और कवयित्रियों ने इस
विषय पर जिस गम्भीरता से चिन्तन और मनन किया है उसके लिये आप सभी की लेखनी को नमन
और वन्दन है। }}
सुन्दर सार्थक और सारगर्भित समीक्षा
के लिए बहुत बहुत धन्यवाद बिमला रावत जी,बहुत बहुत बधाई व हार्दिक
शुभकामनाएँ।
'तस्वीर क्या बोले' समूह
परिवार की ओर से प्रथम स्थान प्राप्त विजेता सुश्री पुष्पा पोरवाल जी और द्वितीय
स्थान पर विजयी सुश्री डॉ अंजू लता सिंह जी को पुनः पुनः हार्दिक बधाई व
शुभकामनाएँ।
मेरा सभी सदस्यों से आग्रह है कि
अधिक से अधिक रचनाकार इस तकब पटल पर हिस्सा लेकर इस समूह परिवार की रौनक बढ़ाएँ।
बेहतरीन प्रयास और सुन्दर -सार्थक रचनाओं की प्रस्तुति देकर समूह को जीवंत रखने के
लिए आप सभी प्रतिभागियों को मैं बहुत बहुत धन्यवाद व बधाई देती हूँ।
निर्णायक मण्डल के सभी सहयोगी
विद्वज्जनों का हृदय से धन्यवाद.....आभार। प्रोत्साहन के लिए प्रस्तुति हेतु इस
समूह परिवार के स्तम्भ प्रिय प्रतिबिम्ब जी और प्रिय आभा जी (अजय अग्रवाल) का हृदय
से आभार व साधुवाद।
सस्नेह शुभकामनाएँ !
प्रभा मित्तल।
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