Sunday, June 23, 2013

15 जून 2013 का चित्र और भाव



अलका गुप्ता 
उत्सुक कुछ बेताब हुई छू लेनें को |
डाली शजर की उन मंथर लहरों को
कुछ कम्पित सी नदी हिल्लोल हुई ..
संकुचित सी .....कुछ विभोर हुई |
मुस्कायी सी शाख फिर झाँक रही |
प्रतिबिम्ब मनोहर ...... आंक रही |
भीज सलिल में स्वस्च्छ सलोना...
धुला-धुला सा ........रूप हरा |
पात-पात .....सहलाए जरा |
महामिलन से ....अविभूत हुई |
छटा मनोहर निस्तब्ध हुई |
हर मुग्ध मन को ...फांस रही |
प्रकृति के ....... नव-गीत लिए |
पवन मधुर ये .... बाँट रहा |
धीमें से हर ..तन-मन को ...
रंग में..आतुर अपने..आंज रहा ||


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
देख स्वार्थी दुनिया ..
पात पात काँप उठे ...
तरुवर धरे हैं धीर ..
प्यास देख जन की ..
सरवर बेकल हो उठे ..
थामे समग्र नीर ..

बीते ज्येष्ठ, आषाढ़ ..
आने को सावन ..
बरसेगा अम्बर नीर ..
तपन मिटेगी ..
शांत बेकल प्राण होंगे ..
धरना बस ह्रदय में धीर ..
छु सरवर नीर ..
भंवर ख़ुशी का खिला आया ..
खुश्क था तपन से ..
तनिक गीला हो आया


बालकृष्ण डी ध्यानी 
इश्क नचाये

छु रहा है मन
तन को आज यूँ
लग रहा आज ये
सब इश्क ही नचाये
छु रहा है मन
तन को आज यूँ .........

जल को छु रही
पत्तियों के ओठ यूँ
हलचल से हो रही
तरंगों की उमंग पर
छु रहा है मन
तन को आज यूँ .........

साथ तेरा मेरा
यूँ साथ साथ हो
मै इस पार हूँ
तुम उस पार हो
छु रहा है मन
तन को आज यूँ .........

छु रहा है मन
तन को आज यूँ
लग रहा आज ये
सब इश्क ही नचाये
छु रहा है मन
तन को आज यूँ .........



भगवान सिंह जयाड़ा
मंद पवन के झोंखो से जब हिलती डाली ।
करे स्पर्स शांत जल को ,वह मतवाली ॥

उठी लहरें जल में ,शान्ति भंग कर डाली ।
और लहरे करे इजहार जैसे दें कुछ गाली ॥

मै सिचू सदा तुम को अपने स्वच्छ जल से।
और तुम हो , सदा छेड़ते मेरे शांत तल को ॥

पाल पोश बड़ा किया ,नहीं था कोई माली ।
मै सींचू तन को तेरे ,मुझे ही सजा दे डाली ॥

मेरा नहीं कुछ कशूर ,यह हवा की गलती |
छेड़ता वह मुझे और सजा तुमको मिलती ||

तुम को तो ,मैं सदा शांत ही देखना चाहूं |
तुम्हारे शांत जल में देखूं अपनी परछाई ।|

मन ही मन खुश होऊ देख अपनी हरियाली |
तुम्हारा मेरा अटूट रिश्ता ,बोली तब डाली ||

मंद पवन के झोंखो से जब हिलती डाली |
करे स्पर्स शांत जल को ,वह मतवाली ||


नैनी ग्रोवर 
मैं जीवनदायनी नदिया, तूम वृक्ष के हरे पात,
हम दोनों ही मिलकर देते, इंसान को सृष्टि की सौगात

फिर भी बाज़ आता नहीं, इसे लालच ने भरमाया है,
मुझे कर दिया कीचड़ इसने, तुझे आग में जलाया है,
जाने कब समझेगा ये, कब जानेगा ये अपनी बिसात...

एक दिन ऐसा आयेगा, सब कुछ फ़ना हो जाएगा,
तब रोयेगा सर पटक के, हाथ ना पर कुछ आएगा,
ना कोई होगा सुनने वाला, ना पूछेगा कोई किसी के हालात.. !!


जगदीश पांडेय 
मन ये तरस रहा है तम्हे आज छूनें को
मजबूर कर दुंगा लहरों को हिलनें को
हम दोनों के मेल से जीवन चलता है
मैं नही कहता ये जग सारा कहता है
स्पर्श का ये कैसा मधुर एहसास है
तेरे बिन अब मेरा न कहीं वास है


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

Friday, June 14, 2013

08 जून 2013 का चित्र और भाव



दीपक अरोड़ा 
चलो अब खेल बहुत हो गया
थोड़ा सा पढ़ लिया जाये
भेजा खपा दिया खेलने में
अब किताबों से लड़ लिया जाये

जगदीश पांडेय
नही आती समझ में मुझे इसकी बातें
बनाई है किसनें ये मोटी मोटी किताबें
नजरें टिकी हैं पर समझ कुछ न आये
अक्षर काले काले देखो मुझको डराये
पढते हुवे बीत गई जानें कितनी रातें
नही आती समझ में मुझे इसकी बातें
बनाई है किसनें ये मोटी मोटी किताबें
.
जब भी मैं करनें बैठूँ पढाई
नींद से होती है मेरी लडाई
उस पर देख मुझको अकेला
जमुहाई भी है करती चढाई
कब तक होगी इनसे मुलाकातें
नही आती समझ में मुझे इसकी बातें
बनाई है किसनें ये मोटी मोटी किताबें
.
पढ लिख शायद इंजिनियर बन जाऊँ
डर है कहीं मैं रेती सिमेंट न बेंच खाऊँ
पढ लिख कर शायद डाक्टर बन जाऊ
नकली दवाओं का क्वार्टर न बन जाऊँ
गुजरे जीवन मेरा शराफत से हँसते गाते
नही आती समझ में मुझे इसकी बातें
बनाई है किसनें ये मोटी मोटी किताबें


भगवान सिंह जयाड़ा 
गुड़िया रानी अब हुई संयानी ,
करती है अब ,वह मनमानी ,

खेल खिलौने भी ,उसके पास ,
किताबों में ढूंडे जीवन आश ,

ख़्वाबों में कुछ यूँ डूबी रहती ,
मन मर्जी कुछ करती रहती ,

चलो आज यह एल्बम देखूं ,
इसी से आज मैं कुछ सीखूं ,

दादा दादी ,को कभी न देखा ,
मिला नहीं कभी ऐसा मौका ,

पाप्पा के संग रह गए प्रदेश ,
ले जाते नहीं मुझे अपने देश ,

मैं खूब पढूंगी ,खूब लिखूंगी ,
पढ़ लिख कर जब कुछ बनूंगी ,

तब मैं खुद ही घूम सकती हूँ ,
हर अपनों से मिल सकती हूँ ,

गुड़िया रानी अब हुई संयानी ,
करती है अब ,वह मनमानी ,


नैनी ग्रोवर
कामयाबी की सीड़ियाँ चड़ना है,
माँ मुझको भी पढ़ना है..

भैया की तरह, मुझे भी हक है,
क्यूँ मेरी योग्यता पर शक है,
मुझे भी बुद्धि दी है मालिक ने,
मुझे इन कुरीतियों से लड़ना है ..

माँ मुझको भी पढना है ....
ऐ मुझको जन्म देने वाले जन्मदाता,
क्यूँ बेटों की तरह मेरा पड़ना नहीं सुहाता,
मेरे नाज़ुक मन को ये भेद नहीं है भाता,
बन के वीरांगना, आगे बड़ना है ...

माँ मुझे भी पढना है ...!!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
-- मेरा सपना ---
सीख रही हूँ मैं पढ़ना लिखना
बड़े होकर मुझे कुछ है बनना
स्नेह आशीर्वाद आप देते रहना
पूरा करूंगी मैं आपका हर सपना

लिंग भेद को दूर रखना सदा
जन्म से पहले न कोई करे विदा
हर एक कन्या जाये पाठशाला
बुरी नज़र वालो का हो मुंह काला


ममता जोशी 
बिटिया रानी तुझे भी पढ़ना है,
मर्दों की इस दुनिया में तुझे भी आगे बढ़ना है,
साक्षरता ही करवाती है कर्तव्यों का ज्ञान ,
नहीं रहना है तुझे अब अपने अधिकारों से अनजान,
१ दिन बनेगी तू भी डॉक्टर, इंजीनिअर या वैज्ञानिक महान ,
पढ़ लिख कर मिलेगा तुझको सर्वोपरि सम्मान ,
अपने हौसलों का दीपक तू कभी न बुझने देना ,
हर मुश्किल को पीछे छोड़ बस आगे बढ़ते रहना !


Pushpa Tripathi
कुछ ज्ञान मुझे भी पाना है
कुछ शब्द मुझे भी पढना है
चल पडूँगी ... नेक राह भर सहेली
हर मंजिल मुझे तय करना है .....

कन्या हूँ .... छवि अभी कोमल मेरा
जीवन में मुकाम अपना बनाना है
संपूर्ण शिक्षा साध्य सरल अधिकार मिले गर
ऊँचे पद पर टिके रहना मेरा भी तो हक़ है ......

छोटी हूँ .....अभी कई भूल सही
बढ़े बनने का फर्ज अदा करना है
किताबों में खो कर जीवन सुधरेगा
इसी में तो सारी दुनियां दिखती है

Pushpa Tripathi 
नन्हे है हाथ
किताबे बड़ी
शिक्षा के अधिकार से
उम्मीदे कई l

थामती हथेली
उँगलियों का साथ
किताबों से बड़ी
ज्ञान की बात l

छोटे है पैर
बहुत लम्बे रास्ते
चलना है अभी
बहुत दूर फासले l

छोटी है कुर्सी
जिम्मेदारी बहुत
शिक्षा से पा लूंगी
निजात कई


डॉ. सरोज गुप्ता 
बच्चो पर अत्याचार
~~~~~~~~~~~~~~~
बच्चो पर किया जा रहा है अत्याचार !
सुर्खियाँ बना है आज का यह समाचार !!

गर्म हो गया है मीडिया का बच्चा प्रचार ,
माँ -बाप भी चल पड़े हैं बेचने बच्चे बाजार !
मासूमियत बिक रही खुले में बढा व्यापार ,
लहरें उठने से पहले ही बाँध दिए गए कगार !

बच्चो पर किया जा रहा है अत्याचार !
सुर्खियाँ बना है आज का यह समाचार !!

उंगुलियां जो अभी तक पकड न पायी कलम ,
पकड़ चिमटा,चम्मच और कडाही तोड़ेंगी भ्रम !
माचिस की तिल्ली भी रखी जाती थी दूर भाग ,
अब थमा उन हाथों में जलवाई जायेगी आग !

बच्चो पर किया जा रहा है अत्याचार !
सुर्खियाँ बना है आज का यह समाचार !!

मास्टर शेफ का पाने को खिताब लगी होड़ ,
पैसे और शोहरत ने बच्चो के जीवन में लाया मोड़ !
हार और जीत के खेल ने बच्चे-दिल दिए तोड़ ,
गुड्डे -गुडिया से खेलने के दिनों थे जो उसके ,
हाय !किताब में ढूँढ़ रही गुडिया व्यंजन के तरीके !

बच्चो पर किया जा रहा है अत्याचार !
सुर्खियाँ बना है आज का यह समाचार !!


बालकृष्ण डी ध्यानी 
छुई मुई

यूँ ही बैठी हूँ मै
यूँ लगी अपने ही से
रबा क्या होगा क्या जाने
खोयी आज कीस चिंता में मै
यूँ ही बैठी हूँ मै

छुई मुई सी हूँ मै
अल्हड़ सी ये मेरी उम्र
क्या देखों क्या समझों
इस किताब को देख कर
यूँ ही बैठी हूँ मै

उबासी आ रही है
कब जाने आ जायेगी नीद
सपने ही मेरे अच्छे हैं
जिस को चाहीये बस नींद
यूँ ही बैठी हूँ मै

जब होगा तब होगा
इस बचपने पर ना तू
इस बस्ते ना बोझ बन
मुझे रहने दे अपने मन
यूँ ही बैठी हूँ मै

यूँ ही बैठी हूँ मै
यूँ लगी अपने ही से
रबा क्या होगा क्या जाने
खोयी आज कीस चिंता में मै
यूँ ही बैठी हूँ मै


किरण आर्य 
छोटी सी गुड़िया
मोटी सी किताब
अँखियाँ गडाए
बुने है ख्वाब
सारा जग जीतने
का हौसला है लिए
पाएगी कल ये
सफलता का खिताब
किसी से भी
कम नहीं ये
हो लाड साहब
या फिर कोई नवाब
है प्रतिपल आस रत
इसके मन का चिराग
सफलता भी सर
झुकाएगी समक्ष
इसके एक दिन जनाब


अलका गुप्ता 
मुझे भी कुछ पढ़ना है |
पढ़ कर कुछ करना है |
जीवन पथ पर चलना है |
लड़ाई हक़ की लड़ना है |
बेटी भी है जरूरत समाज की |
हक़ है उसका भी समाज पर |
मैं क्यूँ ना पढूं ...
मैं यूँ ही बेमौत....
गर्भ में चुपचाप क्यूँ मरुँ |
मुझे भी जीना है |
ख्वाबों को बोना है |
कर्मों के खेतों में...|
फसलों में बीनुंगी ...
अपनी पहचान ...
सम्मान की आंच में ...
सुखाऊँगी नारी का...
जागरूक आत्म सम्मान |
मुझे भी पढना है |
बहुत कुछ करना है |

कुसुम शर्मा 
मम्मी कहती हैं मुझसे मै भी एक दिन राज करुगी
पढ़ लिख कर एक दिन देश का ऊँचा नाम करुगी
कभी सोचती हूँ मै नेता बन जाऊंगी,
देश की हालत में कुछ तो सुधार लाऊंगी
जहाँ पर होते है भेद भाव, उन्हें प्रेम से दूर करुगी
मेरे जितनी कितनी बेटियां शिक्षा से वंचित रहती है
मै उनके लिए शिक्षा का विस्तार करुगी
उनके मम्मी पापा को समझाकर उनको भी तैयार करुगी
रानी लक्ष्मीबाई के पद चिन्ह पर चलकर दुश्मन का विनाश करुगी
अपने देश का ऊँचा नाम करुगी !!

Garima Kanskar 
माँ मुझे स्कूल जाने दो
माँ मुझे भी पढ़ने दो
मुझे भी सपने गढ़ने दो
जग में आगे बढ़ने दो

मेरे भी कुछ सपने है
उन सपनों को साकार दो
शिक्षा में है शक्ति बहुत
इस शक्ति को ताकत बनने दो

है होसला मुझमे
आसमान को छूने का
इस होसले को पंख देदो
अपने सपनों के
आसमान में उड़ने दो

मुझे दूसरो के लिये
मिशाल बनने दो
माँ मुझे स्कूल जाने दो
माँ मुझे पढने दो


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Thursday, June 6, 2013

03 जून 2013 का चित्र और भाव



बालकृष्ण डी ध्यानी 
रेखाओं में

रेखाओं में सिमटी
ऐ दुनिया सारी

रेखाओं ने ही मिटाई
क्या दूरियों और गहराई ?

सब तरफ फैला है
रेखाओं का ही जाल

नाप है माप है
रेखाओं ने अपना सम्राज्य

अपनी खोज में बंधा है तू
रेखाओं से तू यूँ जोड़ा है इंसान

कट जाये अगर वो एक रेखा
तेरा खेल रह गया वैसा का वैसा

रेखाओं में सिमटी
ऐ दुनिया सारी

रेखाओं ने ही मिटाई
क्या दूरियों और गहराई ?


सुनीता शर्मा 
आभासी दुनिया के हम उन्मुक्त पंछी ,
सुदूर देशो में बना रहे हम सब नई छवि ,
मैत्री का सुंदर संदेश संसार में फैलाते ,
देश धर्म की दूरिया मिटाते बनाकर नई कड़ी !

भगवान सिंह जयाड़ा
संजाल की क्रांति से दुनिया सिमट गयी ।
लगता है ,जैसे एक दुसरे से लिपट गयी ॥

दुनियां में मिले है यहाँ अब तार से तार ।
झट पट सूचनावों की अब है सदा बहार ॥

दूर रह कर भी अपनों का सदा मिले प्यार ।
जब मन करे मिलने को संजाल है तैयार ॥

चेहरे से चेहरा मिला कर खूब करो प्यार ।
मन को खूब सकूंन देता अपनों का दुलार ॥

घर बैठे बैठे कर लो सारी दुनियां की सैर ।
मुलाक़ात करो सब से अपना हो या गैर ॥

संजाल की क्रांति से दुनिया सिमट गयी ।
लगता है ,जैसे एक दुसरे से लिपट गयी ॥



रोहिणी शैलेन्द्र नेगी 
"तारों का जंजाल"

क्यों इन लकीरों ने,
सीमायें तय कर दी हमारी....?
जहाँ देखो इनकी रवायत है,
खींचना ही था.......
तो कुछ और खींचता ये जहां,
क्यों हर तरफ,
इन रेखाओं की बनावट है....?

रास्ते सिमट कर,
रह गए हमारे,
सीमा-रेखा को बांधा गया,
इंसान ही इंसान का,
दुश्मन बन बैठा,
जब भी इसको लांघा गया |

इंसानियत पर हैवानियत,
हावी होती चली जा रही है,
मासूमियत..........
अब दहशत बनकर,
दिन-ओ-दिन तब्दील,
हुई जा रही है |

ऐसे में अपनों का साथ,
शुक्र है..........
ये 'बेतार के तार' (wireless or net)
जुड़े हैं,
अपने गलियारे, चौराहों,
शहरों से जो दूर बसे हैं |

मिटटी की सौंधी-सौंधी-सी,
खुशबू जिनसे गुज़र के आये,
दूर-दूर बैठे अपनों को,
खुशियों से रु-ब-रु कराये |

तारों का जंजाल नहीं बस,
ये तो मायाजाल है,
कोना-कोना बचा न इस से,
चीज़ बड़ी कमाल है |


नैनी ग्रोवर 
देख खुदा इंसानों ने, तेरी धरती का क्या हाल कर दिया,
सरहदों में बाँट के, खड़ा इक ज़िंदा ये सवाल कर दिया ...

मुद्दतों के हो गए फांसले, अब हमारे दिलों के दरमियान,
दूरियों को देखों ना, किस तरह जी का जंजाल कर दिया....!!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
.... ये दुनियाँ ....
कभी पृथ्वी लगती गोल कभी चपटी
लोग यहाँ ईमानदार है या फिर कपटी
लेकिन गरीब पर ही सारी दुनिया झपटी
शोहरत पर ही देखो सारी माया लिपटी

अब जीवन का एक स्टेशन अंतर्जाल
कभी लगे अपना कभी लगे ये जंजाल
बुद्धि का कोई धनी, चाहे हो वो कंगाल
देशी - विदेशी मित्रो का यहाँ फैला जाल

प्रेम दुश्मनी की जले यहाँ रोज मशाल
कभी रिश्तो की कोई बनाता यहाँ ढाल
हम ज्ञानी दूजा अज्ञानी का भ्रम पाल
खुद को कई सम्मान उपाधि देता डाल

फिर भी विश्व को जोड़ते ये बेतार के तार
किसी को जकड़े किसी का लगाए बेड़ा पार
कितने आबाद कितने बरबाद हुये नर नार
समझ अपनी, सोच अपनी, अपना बने संसार


कुसुम शर्मा 
हम उमयुक्त गगन के पंछी जहाँ चाहे उड़ जाते है,
देश - बिदेश में जा कर शांति का पाठ पढ़ते है,
पर न जाने इसे पढने से ये मानव क्यों घबराते है ,
इस युग में मानव ने जाने कितने अविष्कार किये,
इन अविष्कारों से उसने पूरे विश्व को जोड़ दिया ,
जहाँ पहुंचने में उसको सालो लगते थे वहां कुछ ही घंटो में पहुंच गया ,
हम तो जहाँ थे वही के वही है पहले भी शन्ति चाहते थे अब भी
लेकिन इस प्रगति ने मानव में बहुत बदलाव किया ,
जहाँ पहले प्यार पनपता था उसकी जगह इर्ष्य ने ली
आगे बढने के चक्कर ने भाई भाई को भुला दिया ,
एक दूसरे की होड़ ने संयक्त परिवार को मिटा दिया ,
जहाँ पर बेटियों को लक्ष्मी समझा जाता था
पर इस समय उस लक्ष्मी पर क्या क्या अत्याचार करे ,
कोई लुटे , कोई मरे,कोई तो बचके अपना घर भरे ,
जब अपने ही घर में इनके ये सब होता है
तो क्यों नहीं इस मानव का दिल रोता है
चाहे ये विश्व को कितना जोड़ ले
ये तब तक जोड़ न पायेगा
जब तक ये खुद शन्ति का पाठ न पायेगा !!


डॉ. सरोज गुप्ता 
तूने हाँ मानव तूने
डाला ऐसा जाल
कर दिया कमाल
किया सबको मालामाल !

मानव मानव को जोड़ा
देश देश को जोड़ा
जाति-धर्म को तोडा
बाजार व व्यापार को जोड़ा !

तूने हाँ मानव तूने
डाला ऐसा जाल
कर दिया कमाल
किया सबको मालामाल !

सूचनाओं का संसार
पहुँचा सबके घर-बार
विकास की आई लहर
तकनीक की कहो जयकार !

तूने हाँ मानव तूने
डाला ऐसा जाल
कर दिया कमाल
किया सबको मालामाल !


जगदीश पांडेय 
सीमित हुवा है संसार देखों चंद रेखाओं में
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण सब दिशाओ में
इतनी तरक्की आखिर इसांन तूनें कर डाला
दुनियाँ होगी मुठ्ठी में सपना सच कर डाला
कहीं धरा का एक हिस्सा प्रकाशमान हो रहा
तो इसी धरा का कोई हिस्सा अंधकार में सो रहा


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