Thursday, June 6, 2013

03 जून 2013 का चित्र और भाव



बालकृष्ण डी ध्यानी 
रेखाओं में

रेखाओं में सिमटी
ऐ दुनिया सारी

रेखाओं ने ही मिटाई
क्या दूरियों और गहराई ?

सब तरफ फैला है
रेखाओं का ही जाल

नाप है माप है
रेखाओं ने अपना सम्राज्य

अपनी खोज में बंधा है तू
रेखाओं से तू यूँ जोड़ा है इंसान

कट जाये अगर वो एक रेखा
तेरा खेल रह गया वैसा का वैसा

रेखाओं में सिमटी
ऐ दुनिया सारी

रेखाओं ने ही मिटाई
क्या दूरियों और गहराई ?


सुनीता शर्मा 
आभासी दुनिया के हम उन्मुक्त पंछी ,
सुदूर देशो में बना रहे हम सब नई छवि ,
मैत्री का सुंदर संदेश संसार में फैलाते ,
देश धर्म की दूरिया मिटाते बनाकर नई कड़ी !

भगवान सिंह जयाड़ा
संजाल की क्रांति से दुनिया सिमट गयी ।
लगता है ,जैसे एक दुसरे से लिपट गयी ॥

दुनियां में मिले है यहाँ अब तार से तार ।
झट पट सूचनावों की अब है सदा बहार ॥

दूर रह कर भी अपनों का सदा मिले प्यार ।
जब मन करे मिलने को संजाल है तैयार ॥

चेहरे से चेहरा मिला कर खूब करो प्यार ।
मन को खूब सकूंन देता अपनों का दुलार ॥

घर बैठे बैठे कर लो सारी दुनियां की सैर ।
मुलाक़ात करो सब से अपना हो या गैर ॥

संजाल की क्रांति से दुनिया सिमट गयी ।
लगता है ,जैसे एक दुसरे से लिपट गयी ॥



रोहिणी शैलेन्द्र नेगी 
"तारों का जंजाल"

क्यों इन लकीरों ने,
सीमायें तय कर दी हमारी....?
जहाँ देखो इनकी रवायत है,
खींचना ही था.......
तो कुछ और खींचता ये जहां,
क्यों हर तरफ,
इन रेखाओं की बनावट है....?

रास्ते सिमट कर,
रह गए हमारे,
सीमा-रेखा को बांधा गया,
इंसान ही इंसान का,
दुश्मन बन बैठा,
जब भी इसको लांघा गया |

इंसानियत पर हैवानियत,
हावी होती चली जा रही है,
मासूमियत..........
अब दहशत बनकर,
दिन-ओ-दिन तब्दील,
हुई जा रही है |

ऐसे में अपनों का साथ,
शुक्र है..........
ये 'बेतार के तार' (wireless or net)
जुड़े हैं,
अपने गलियारे, चौराहों,
शहरों से जो दूर बसे हैं |

मिटटी की सौंधी-सौंधी-सी,
खुशबू जिनसे गुज़र के आये,
दूर-दूर बैठे अपनों को,
खुशियों से रु-ब-रु कराये |

तारों का जंजाल नहीं बस,
ये तो मायाजाल है,
कोना-कोना बचा न इस से,
चीज़ बड़ी कमाल है |


नैनी ग्रोवर 
देख खुदा इंसानों ने, तेरी धरती का क्या हाल कर दिया,
सरहदों में बाँट के, खड़ा इक ज़िंदा ये सवाल कर दिया ...

मुद्दतों के हो गए फांसले, अब हमारे दिलों के दरमियान,
दूरियों को देखों ना, किस तरह जी का जंजाल कर दिया....!!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
.... ये दुनियाँ ....
कभी पृथ्वी लगती गोल कभी चपटी
लोग यहाँ ईमानदार है या फिर कपटी
लेकिन गरीब पर ही सारी दुनिया झपटी
शोहरत पर ही देखो सारी माया लिपटी

अब जीवन का एक स्टेशन अंतर्जाल
कभी लगे अपना कभी लगे ये जंजाल
बुद्धि का कोई धनी, चाहे हो वो कंगाल
देशी - विदेशी मित्रो का यहाँ फैला जाल

प्रेम दुश्मनी की जले यहाँ रोज मशाल
कभी रिश्तो की कोई बनाता यहाँ ढाल
हम ज्ञानी दूजा अज्ञानी का भ्रम पाल
खुद को कई सम्मान उपाधि देता डाल

फिर भी विश्व को जोड़ते ये बेतार के तार
किसी को जकड़े किसी का लगाए बेड़ा पार
कितने आबाद कितने बरबाद हुये नर नार
समझ अपनी, सोच अपनी, अपना बने संसार


कुसुम शर्मा 
हम उमयुक्त गगन के पंछी जहाँ चाहे उड़ जाते है,
देश - बिदेश में जा कर शांति का पाठ पढ़ते है,
पर न जाने इसे पढने से ये मानव क्यों घबराते है ,
इस युग में मानव ने जाने कितने अविष्कार किये,
इन अविष्कारों से उसने पूरे विश्व को जोड़ दिया ,
जहाँ पहुंचने में उसको सालो लगते थे वहां कुछ ही घंटो में पहुंच गया ,
हम तो जहाँ थे वही के वही है पहले भी शन्ति चाहते थे अब भी
लेकिन इस प्रगति ने मानव में बहुत बदलाव किया ,
जहाँ पहले प्यार पनपता था उसकी जगह इर्ष्य ने ली
आगे बढने के चक्कर ने भाई भाई को भुला दिया ,
एक दूसरे की होड़ ने संयक्त परिवार को मिटा दिया ,
जहाँ पर बेटियों को लक्ष्मी समझा जाता था
पर इस समय उस लक्ष्मी पर क्या क्या अत्याचार करे ,
कोई लुटे , कोई मरे,कोई तो बचके अपना घर भरे ,
जब अपने ही घर में इनके ये सब होता है
तो क्यों नहीं इस मानव का दिल रोता है
चाहे ये विश्व को कितना जोड़ ले
ये तब तक जोड़ न पायेगा
जब तक ये खुद शन्ति का पाठ न पायेगा !!


डॉ. सरोज गुप्ता 
तूने हाँ मानव तूने
डाला ऐसा जाल
कर दिया कमाल
किया सबको मालामाल !

मानव मानव को जोड़ा
देश देश को जोड़ा
जाति-धर्म को तोडा
बाजार व व्यापार को जोड़ा !

तूने हाँ मानव तूने
डाला ऐसा जाल
कर दिया कमाल
किया सबको मालामाल !

सूचनाओं का संसार
पहुँचा सबके घर-बार
विकास की आई लहर
तकनीक की कहो जयकार !

तूने हाँ मानव तूने
डाला ऐसा जाल
कर दिया कमाल
किया सबको मालामाल !


जगदीश पांडेय 
सीमित हुवा है संसार देखों चंद रेखाओं में
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण सब दिशाओ में
इतनी तरक्की आखिर इसांन तूनें कर डाला
दुनियाँ होगी मुठ्ठी में सपना सच कर डाला
कहीं धरा का एक हिस्सा प्रकाशमान हो रहा
तो इसी धरा का कोई हिस्सा अंधकार में सो रहा


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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