Saturday, September 21, 2013

16 सितम्बर 2013 का चित्र और भाव



जगदीश पांडेय 
आसमाँ झुक जायेगा और धरती झूम उठेगी
फिजाओं में हर जगह बहारों की धूम रहेगी
कब आयेगा वो पल सजेगा मेरा घर अगना
डर है बहक न जाउँ खनके जब तेरा कँगना

मुझे बुलातें हैं जैसे झुमके ये तेरे कानों के
हर वक्त सजतें हैं ख्वाब मेरे अरमानों के
यकीं है होश खो दोगी आओगी जब घर मेरे
ख्वाबों से सजाये है हर कोनें मैनें मकान के


किरण आर्य 
खनकती सी चूड़ियों में
बसा है सजना के लिए
प्यार मेरा
लाल हरी सतरंगी
सी चूड़ियाँ
खनकती जब हाथों में
तो अहसास हो जाते
मुखर से
मन के सभी भाव
अहसास और बुलाते
सजना को पास
कहते मन की हर बात
सिंदूरी सी आभा
बिखर जाती
मुखड़े पर उस क्षण
कहते है सुहाग की
निशानी इन्हें
मेरे लिए तो ये कहानी
तेरी और मेरी
जो रची हीना में झुमकों में
और खनकती
सतरंगी चूड़ियों में


बालकृष्ण डी ध्यानी 
चूड़ियां

चूड़ियां वो खनकाती है
उसकी ये अदा मुझको लुभाती है

प्रियसी वो स्वामिनी है
गीत वो चूड़ियां से ही वो लगाती है

रंग बेरंगी चूड़ियां उसकी
लेती अब वो सनम संग अटखेलियां

इंद्रधनुष उस कलाई सी वो
सुहागान की उन अंगडाई सी वो

साजन की मेहँदी रंग लाती
चूड़ियां अब उसकी सहेली बन जाती

छन-छन करती जाती है वो
मन तन में अब बिखर जाती है वो

मन भय पिया का अब वो चूड़ियां
चूड़ियां जब खनकाये अब वो चूड़ियां

चूड़ियां ही चूड़ियां अब छाई है
देखो प्रेम ऋतू फिर से अब आई है

चूड़ियां वो खनकाती है
उसकी ये अदा मुझको लुभाती है


भगवान सिंह जयाड़ा 
देखो झुमकों वाली ,रंग बिरंगी चूड़ी प्यारी ,
जब पहनती इनको ,हमारे देश की नारी ,

आदि काल से पहने इसे भारत की नारी ,
झलकती तब चूड़ियों से सभ्यता हमारी ,

बक्त के साथ बदली है इन की कलाकारी ,
नारी सृंगार में सदा इन की भूमिका न्यारी,

अनगिनत रूप रंग ,लगती कितनी प्यारी ,
पहनें माँ ,बहिन ,बेटी और पत्तनियाँ सारी ,

देखो झुमकों वाली ,रंग बिरंगी चूड़ी प्यारी ,
जब पहनती इनको ,हमारे देश की नारी ,


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
... प्रेम बतियाँ ....
खनक रहे कानो में झुमके, खनक रही हाथो की चूडियाँ
प्रेम राग छेड़े खनक इनकी, दिल करने लगे अठखेलियाँ
रंग कितने भी, मन को भाती बस इनकी प्यारी सी बतियाँ
हल्की सी खनक भी प्रेम भाव को देती संगीत सी ऊँचाईयाँ
आँखे खुली हो या बंद 'प्रतिबिंब', बढ़ रही प्रेम की खुमारियाँ
उतर आये प्रेम का सैलाब दिलो में, छू ले तन की गहराईयाँ


अलका गुप्ता 
साँझ ढले जब ..मैं आऊँ प्रिये !..
श्रृंगार तुम अनुपम कर लेना ||

इस अधीर मन अनुरागी को मेरे तुम ..
सिंदूर सा...भाल में अपने... भर लेना ||

माथे पे बिंदिया सी चमके प्रीत मेरी ..
जग को तुम सारे...यही दिखला देना ||

निकल ना जाएँ शब्द कहीं प्रीत के..
नथ का पहरा होंठों पे तुम बिठा देना ||

कानों में कुण्डल... अलकों के घुँघर ...
गालों को ढकले नजर ना कोई लगा देना ||

बालों में महके आमन्त्रण सा ..गजरा ...
तुम वेणी में अपनी ...सजा लेना ||

कर दे दीवाना जो .....मुझे प्रिये !...
चूड़ियाँ कांच की तुम खनका देना ||

पाँवों में बिछुआ बोले ...
झाँझर खन-खन झंनका देना ||

तन-मन में जगा दे राग अनुराग के ...
वस्त्र अवगुंठन से तन को सजा लेना ||

लावण्य तुम्हारा प्रिय वधु सा दमके ...
मुझे तुम वर अपना बना लेना ||

मेंहदी में हाथों की छिपा के ...
नाम मेरा तुम ...सजा लेना ||

बंधन जो बंध जाएंगे तन-मन के ..
गीत सृजन के गुगुनाएंगे फिर मिलके ||

स्वप्न यह अरमान है प्रिय ! मेरा ...
सहर्ष...खुशी से तुम... अपना लेना ||

करेंगे श्रृंगार मिल दोनों ही जग का ...
परिणय यह संस्कार ...सजा देना ||


सुनीता पुष्पराज पान्डेय 
जो खनका के कर दूँ इशारा
मेरी चूडिँयो की खनक पे दौड़े चले आये मोरे साजना ,
बड़े दिनो बाद आज सखी ने याद दिलायी
उन प्यारी लाल रेशमी चूडिँयो जिन्हे देख
मेरे चूड़ी भरे हाथो मे बाँधा था काला धागा,
याद आया भाभी का प्यार और मेरी चूड़ियाँ


नैनी ग्रोवर 
ये रंगबिरंगी चूड़ियाँ,
खनखन करती, मन में हलचल मचा जातीं,
यही कहना था ना तुम्हारा,,
फिर क्या हुआ ?

मेरे चूड़ियों भरे हाथों को थामें,
तुम पहरों बैठे रहते थे,
कल और चूड़ियाँ ले आना,
रोज़ यही कहते थे,
क्यूँ अब मेरी कलाइयों को,
ये चमकती दमकती चूड़ियाँ नहीं सुहाती हैं,
ये क्या हुआ ?

तुम्हारा गैरों का हो जाना,
मेरा जीवनपथ पर तन्हा हो जाना,
मेरा तुम्हारे साथ बीता हरपल याद करना,
और तुम्हारा सब कुछ बिसरा जाना,
पहनने की कोशिश करूँ जब चूड़ियाँ ,
ये तो जैसे मेरे सीने में टूट जाती हैं,
ये क्यूँ हुआ ?........

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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