जगदीश पांडेय
बहुत सुना है मैनें भी इस धरा के बारे में
उत्सुकता है जाननें को वसुंधरा के बारे में
अनगिनत कलियों नें यहाँ श्रृंगार किया है
मँहकू इस चमन में इच्छा अपार किया है
सारी वेदनाएँ सहकर भी गर
औरों को खुश कर पाऊँ मैं
पतझड के मौसम में भी
सारी खुशी पा जाऊँ मैं
इन इच्छाओं को मैने अख्तियार किया है
मँहकू इस चमन में इच्छा अपार किया है
वसंत की हरियाली में
झूमूँ हर एक डाली में
छा जाऊँ मैं सब के दिलों में
उनकी हर खुशियाली में
इंसानों नें सदा ही यहाँ अत्याचार किया है
मँहकू इस चमन में इच्छा अपार किया है
बस एक इच्छा मन में सदा मैं रखता हूँ
दुवा अपनें बागवाँन से यही मैं करता हूँ
शोभा न बढाना मेरी मंदिर के मूरत से
धन्य हो मेरा जीवन शहीद की सूरत से
जय हिन्द , जय भारत , वंदे मातरम्
सुनीता पुष्पराज पान्डेय
इस दुनियाँ से अनजान थी तू अब तक ,
पर अब हर रोज गढ़ने होगे नित नये आयाम ,
हर जगह होगी इक नयी चुनौती,
तूझे करनी होगी यूं ही जद्धो जहद,
जीतनी होगी हर मोर्चे पर हर लड़ाई ,
वरना तूझे धक्का दे आगे निकल जायेँगे लोग
सुनीता पुष्पराज पान्डेय
आँखे खोलो देखो प्यारी दुनियाँ
तुम्हारे इंतजार मे पलके बिछाये है
सतरंगी रंग चारो ओर तुम्हारे बिखरे पड़े है
सूरज की लालिमा फैल रही है
चिड़ियो का कलरव गुँज रहा है
भौरो की गुनगुनाहट फिजा मे फैल रही
प्यारी तितली आतुर है करने को स्वागत तुम्हारे
Pushpa Tripathi
- अंकुरित हम .....
बिटिया ने माँ से पूछा
माँ .. ये पेड़ क्या होते है
उसपर लगे फल क्या होते है
पत्तियां शाखों पर लदी क्यूँ है
जड़ तने से जुदा क्यूँ है
सारे सवालों का जवाब सुनाती
माँ ने हंसकर कहा
बेटी सुन ..
सीधी सी बात
अंकुर में ही फल छिपा है
फल देता मीठा आभास
शाखों से ही पत्तियाँ आबाद
जड़ तने से दूर है
इसीलिए जीते उगते है
हम भी तो अंकुर समान
जीवन बनता पेड़ समान
कई अभिनय झरते पत्ती
अनुभव हमारा बढ़ती शाखा
मानव कर्म .. मानवता धर्म यही है फल
ह्रदय मूल ---- जड़ में छिपा है
इसीलिए तो --- हम भी उत्तम सर्वोत्तम है l
बालकृष्ण डी ध्यानी
अंकुर
हरी भरी धरा पर
अंकुरित होकर अंकुर हर्षा
अनजान शहर देख कर
मन में कुछ नया पनपा
कोमल शरीर था
कोमल वो अहसास
फूटा इस धरा से उसका
वो पहला पहला प्यार
उठाया उसने सर
कुछ यूँ वो मोड़कर
साकार हुआ सृष्टी का
स्वप्न बस छुकर
हरी भरी धरा पर
अंकुरित होकर अंकुर हर्षा
अनजान शहर देख कर
मन में कुछ नया पनपा
भगवान सिंह जयाड़ा
धरती के आँचल में एक नया बीज अंकुरित हुवा ,
खूब फले फूले यह ,करते है हम सब इसकी दुवा ,
नन्हें कोमल पत्तों ने ,ली कुछ इस तरह अंगड़ाई ,
देख हरी हरी धरती को ,मन ही मन मुस्कराई ,
सोचे मन में ,मैं भी कब अपनी हरियाली बिखेरूं ,
डाली डाली पे अपनी ,कब देखूं पंछी और पखेरूं ,
बस अच्छी तरह प्रबरिश करना मेरी, हे इन्शान ,
मैं फलूँगा फूलूंगा यहाँ ,सदा खुश होंगें भगवान,
अपनी ममता की छांव में ,सदा तुम को रखूंगा ,
खुद तपती धुप और बारिश ,सदा सहता रहूँगा ,
धरती के आँचल में एक नया बीज अंकुरित हुवा ,
खूब फले फूले यह ,करते है हम सब इसकी दुवा ,
अलका गुप्ता .
नन्हा बीज था एक ...
गर्भ में धरती के बोया |
सो रहा था वो ...
अँधेरी दुनिया में खोया |
किरणों ने सूरज की ...
जाकर उसे हिलाया|
अकुला कर पहले...
वह कुछ झुंझलाया |
वर्षा जल ओस की बूंदों ने...
जाकर जब उसे नहलाया |
आँख खोल धीरे से ...
वह मिटटी से ऊपर आया |
अंगड़ाइयों में उसकी एक ...
अंकुरण तब अकुलाया |
नन्हा सा कोमल वह ...
पौधा एक नजर आया |
पवन ने हौले से तब ...
सहला कर उसको समझाया |
हे नन्हें पौधे ! तुम ...
मत बिलकुल भी घबराना |
थामके मिटटी को अपनी ...
ऊपर ही तुम बढ़ते जाना |
बढाकर शाखों को अपनी तुम ...
जीवन क्लांत पथिक का बनजाना |
निस्वार्थ सृष्टि की सेवा में ...
जीवन अपना अर्पित कर जाना |
हाँ कर ...नन्हा पौधा ...
तब मुसकाया |
बढकर धरती को सारी...
उसने हरा भरा खूब सजाया|
जीवन से अपने बढ़कर ...
सबके जीवन को महकाया ||
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
अंकुरित होने का इंतजार
उस दिन से होता है जिस दिन बोया गया
जीवन रुपी बीज
धरती से पाकर अपार प्रेम स्फुटित हो गया
प्रेम लालन पोषण
प्रकृति की हर चीज को चाहिए विकास हेतू
मानव और पेड़ पौधे
धरती पर ये जीवन यापन के बन जाते सेतू
इस प्राणी जगत में
जीवन हो कोई भी उसे मान भगवान् की देन
प्रकृति का कर सरंक्षण
प्राणी तुझे मिलेगा जीवन में फिर सुख और चैन
किरण आर्य
अंकुरित होता
एक बीज धरती से या
कोख़ में लेता आकार
यहीं है सृजन
करे सपने साकार
बनता पौध और
देखभाल संग
लेता रूप तरु का
लड़खड़ाते कदमो से
चलकर होता एक दिन
पैरो पे अपने वो खड़ा
उमंगें लेती अंगडाई
जैसे सावन रुत हो आई
खिलते प्रेम पुष्प
आता यौवन पे निखार
इसी तरह होता जीवन
उसका गुजर
कभी धूप तो कभी छाँव तले
और इसी तरह
धरती से उपजा वो
बीज पले बीज पले..........
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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