Thursday, December 12, 2013

7 दिसम्बर 2013 का चित्र और भाव



Neelima Sharrma
 ~ चाबियाँ" चाबियाँ ~
तब तक कीमती होती हैं
जब तक रहती हैं ताले के इर्द - गिर्द
और बना रहता हैं उनका वजूद और कीमत
जिस दिन ताला जंक से भर जाता हैं
और फिट नही रहती उसकी अपनी ही चाभी
उसके वजूद में
लाख तेल डालने और कोशिशो के बावजूद
तब बनवाई जाती हैं उसके लिय
एक नयी चाभी
जो खोल सके उसके बंद कोषो को

और नयी चाबी के वजूद में आते ही
फेंक दी जाती हैं
पुरानी चाबी एक अनुपयोगी वास्तु की तरह
किसी भी दराज में या कूढ़ेदान में

चाबी एक स्त्रीलिंग वास्तु हैं
उसका हश्र यही होता आया हैं
सदियों से ...................


बालकृष्ण डी ध्यानी 
~ मेरे घर कि कुंजी है ~

ये ही मेरी पूंजी है
ये जो है वो
मेरे घर कि कुंजी है

साथ मेरे ये है
पास मेरे ये है
मेरे घर कि कुंजी है

साथ इसके फेरे है
मेरे परिवार के ये घेरे है
मेरे घर कि कुंजी है

सुख दुःख का बसेरा है
यंही पर मेरा साँझ सवेरा है
मेरे घर कि कुंजी है

आना भी यंहा पर
जाना भी यंहा पर से है
मेरे घर कि कुंजी है

ये तो मेरा सहारा है
अपनो का वो सुखद किनार है
मेरे घर कि कुंजी है

ये ही मेरी पूंजी है
ये जो है वो
मेरे घर कि कुंजी है


Tanu Joshi 
~ताले चाबी की जोड़ी~

अपनी ही किस्मत पर इतराती,
कभी किसी राजमहल की तिजोरी पर,
कभी किसी फकीर की खोली पर,
हर एक का अपना-अपना कीमती,
हर एक का अपना मान, अपना सम्मान,
हैसीयत ना चले, ना चले जात-पात,
हाँ पर जो अपनी चाबी से खुले, वही भरोसेमंद कहलाये....


किरण आर्य 
~पूरक ~

चाबी हर ताले की
होती है अलहदा सी
और
उसके बिना ताला
होता है बिना काम का
जीवन में
दो लोगो का साथ
भी ऐसा ही होता है कुछ
एक के बिना
दूजे का वजूद
हो जाता
कुछ बौना सा तुच्छ
दोनों एक दूजे के
होते है पूरक
प्रतिद्वंदी नहीं
एक दूजे के बिना
है भटकन
राह मिलती है कहाँ
समझ कर इस बात को
देना होगा मान
रिश्ता समय की मांग
या जरुरत नहीं
रिश्ता है प्रेम से
स्निग्ध साथ
स्वार्थ या वासना का
कौर नहीं ....


जगदीश पांडेय
 ~ चाभी विकास के द्वार की ~

अब जाकर मुश्किल से मेरा चित्त शांत
कहीं हो पाया है
अपनें मन की चाभी से संवेदना का द्वार
खुलवाया है

लग रही जंग यहाँ देखो अनखुले कुछ तालों
पर
विकास की चाभी रखनें वालों को सोते हुवे
पाया है

लोहे की हो या पीतल की ,या हो सोनें और
चाँदी की
चाभियों पर हक जमानें हेतु यहाँ लोगों को
लडते पाया है

" चाभी विकास के द्वार की " यहाँ तुच्छ
लोगों नें ही पाया है
कौन सी चाभी किस ताले की है राजनीति
वालों नें समझ न पाया है


कुसुम शर्मा 
~ ऐ चाबी ~

ऐ किसकी जीत कि चाबी है
ऐ भाजपा के हाथ लगेगी
या कांग्रेस के पास टिकेगी
या फिर बसपा, सपा और गोगपा
जैसी पार्टियां मतों में
अपना भाग निभाएगी
ऐ किसकी जीत कि चाबी है

ऐ अन्य दलों और निर्दलियों
के बीच गिरेगी
या फिर लोकमत के हाथ लगेगी
ऐ किसकी जीत कि चाबी है

इस चाबी को देख कर
लगी सभी में होड़
कैसे जीते चाबी को
सभी रहे ये सोच

कैसे मुर्ख बनाये जनता को
कौन सी शराब पिलाये जनता को
कैसे भ्रमायें इस जनता को
सभी में ये ही होड़ मची हैं
चाबी के पीछे दौड़ मची है


Pushpa Tripathi 
~संवेदना है ये मन की~

मन ठेस लगी है दिल की
कोई चीज संचित हुई है
इस कश्मकश सफ़र में
ये वक्त बुरा सही है .... !!

भारी ठण्ड जमी है चाभी
क्या कीमती कोई चुराए
यहाँ तोड़ते सभी दिलों को
'पुष्प 'नफरते ताले लगाये .... !!



कवि बलदाऊ गोस्वामी 
~चाबी~
तुम्हारे सर्वस्व पूँजी का एकमात्र
मै चाबी हूँ।
कहन से गहनत्तर तक,
अर्थपूर्ण बने ताले की
मै चाबी,
एकांत गहरे एकांत में तुमसे दूर।
दरअसल तुम,
अपना कर्त्तव्य भुलते
गलत राह पर चलते,
स्वंम मुझसे हो रहे हो दूर।

देखो:
जरा सीधे चलो
कभी यदि____
मुझे पाना
तो उठा लेना....
क्योंकि,
तुम्हरे प्रत्येक ताला की
खुलना या कि न खुलना
मुझ पर है आधारित।
यदि तुम,
समझते हो तो समझना
मेरी व्यक्त कल्पना,
क्योंकि,
तुम्हारे सर्वस्व पूँजी का एकमात्र
मै चाबी हूँ।


नैनी ग्रोवर 
~काश~
काश एक ऐसी चाबी होती,
खोल देती दिलों पे लगे वो ताले,
जो जात-पात की दीवार पे,
इंसानों ने लगाए हैं ...

काश होती एक ऐसी चाबी,
और खोल पाती वो ऐसे ताले,
जो नफरत की जमीन पर,
धर्म के ठेकेदारों ने लगाए हैं ..

काश होती एक ऐसी चाबी,
जिससे मै खोल पाती वो त़ाला,
जो कुटिल राजनीति के गलियारे पे,
सत्ता के दलालों ने लगाए हैं...

काश होती एक ऐसी चाबी,
और खोल पाती वो ताले,
जो औरत की आज़ादी पर ,
समाज के पेहेरेदारों ने,
डर के दरवाजों पे लगाए हैं

डॉ. सरोज गुप्ता 
~खुल जा सिम-सिम ~

बाखुशी दी चाबी आप को !
दिखाओ न आँखें बाप को !!

बुझी राख में भी है आग !
धुआं न समझो भाप को !!

हार जीत तो होती रहती है !
बीच में छोड़ा क्यों जाप को !!

करें भरोसा वरदान बरसेंगें !
मिटाओ कुर्सी के अभिशाप को !!

देते हैं शुभकामनाएं आप को !
लगा दो झाड़ू सारे पाप को !!

अलका गुप्ता 
~ताली~

सन्मार्ग के हम ...पथिक हों |
प्रेम पथ का सदा विस्तार हो |
हों ..छल कपट से दूर सभी ..
कुंजी..सत्कर्म भी ..साथ हो ||

संस्कार का..न कभी ..भी ह्रास हो |
सम्मान में दूजे के भी ....मान हो |
भ्रष्ट ना कोई भी... यहाँ इंसान हो |
उत्कृष्ट चाभी ..सदा यही.. साथ हो ||

कदमों का ..बढ़ते हुए सब साथ हो |
निज स्वार्थ कर्म का ..परित्याग हो |
सत्कर्म और कर्तव्य में सौभाग्य हो |
मिलाएं हाथ इस ताली का विस्तार हो ||


प्रतिबिम्बबड़थ्वाल 
~कहाँ ताला कहाँ चाबी~

रिश्तो का ताला खोले अपनत्व की चाबी
दोस्ती का ताला खोले विश्वास की चाबी
मोहब्बत का ताला खोले अहसास की चाबी
अंधविश्वास का ताला खोले ज्ञान की चाबी

जीत का ताला खोले हमारी एकता की चाबी
भक्ति का ताला खोले हमारी आस्था की चाबी
धर्ममार्ग का ताला खोले हमारे कर्म की चाबी
किस्मत का ताला खोले हमारे हौसले की चाबी


भगवान सिंह जयाड़ा 
~चाबी तेरे रूप अनेक~

छोटा हो या बड़ा हो ताला ,
कभी न बिन चाबी खुलता ,
लाखो करोड़ों मे भी ताला ,
अपनी चाबी नहीं भूलता ,
शक्ल सूरत में दिखे एक सी ,
पर यह क्या ,कलाकारी है ,
रखे ख्याल अपने का ही ,
यह चाबी की जिम्मेबारी है ,
चाबी बिश्वाश का प्रतीक है,
इस से निर्भयता जगती है ,
इस से सबक लेते है हम सब ,
हम भी बनें बिश्वाश की चाबी ,



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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