- --- धुआँ राहों का---
अक्सर रोक लेता है मुझे
ये धुआँ राहों का,
कदम डगमगाने हैं, और हौंसला टूटने लगता है,
ऐसे में कहीं दूर से इक आवाज़ आती है,
चल उठ, मन्ज़िल अभी आई नहीं,
निगाहें चारों और तुम्हें ही ढूंढती हैं,
मगर तुम तो नहीं हो दूर दूर तक,
फिर मैं लरजते मन से, जला लेती हूँ इरादों की मशाल,
और चल पड़ती हूँ तुमहारे बताई राह पे,
ये मन की मशाल तुम ही तो जला गए थे ना,
अब इसी के साथ तुम्हारी दूर से आती आवाज़ के सहारे,
पहुँच ही जाउंगी तुम तक, कुछ ना बिगाड़ पायेगा,
ये धुआँ राहों का..!!
- अग्निपथ पर बढ़ता चल
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ले मशाल हाथ मे
अग्निपथ पर बढ़ता चल
राह है कठिन तेरी
मंज़िल अभी दूर है
रास्ते मे तेरे काँटों
की ज़ंजीर है
है अटल विश्वास तो
मंज़िल को तू पायेगा
बिना रूके जो तू
क़दम बढ़ाता जाएगा
ले मशाल हाथ मे
अग्निपथ पर बढ़ता चल
निडर हो कर बढ़ता चल
राह मे मिले कठिनाई
तो तू उसको पार कर
वेग की तरह बढ़
समस्या पर वार कर
कोई भी चीज़ तुझको
रोक न पाये
बन समुद्र की तरह
चीरता जा हर चट्टान
तभी तो तू बने महान
ले मशाल हाथ मे
अग्निपथ पर बढ़ता जा !!
- मंजिलें रास्ते दौड़ती दौड़ती
मंजिलें रास्ते दौड़ती दौड़ती
दौड़ती जिंदगी बार बार सोचती
भागती है कहाँ रोशनी है कहाँ
कहाँ है रस्ते वो बने क्या मेरे वास्ते
अँधेरे घनेरे धुंध छायी धुँधली रोशनी
रोशनी वो जली ज्वाला क्या सोचती
सोचती आस वो लौ में लिपटी अब कंही
कंही तो होगें वो रास्ते मेरे मेरी वो मंजिलें
मंजिलें रास्ते दौड़ती दौड़ती
दौड़ती जिंदगी बार बार सोचती
- मुश्किलें कई आते है.
एक सोच के साथ चलना है
एक विश्वास को साथ रखना है
एक मशाल हाथ लेना है
एक रास्ता नया बनाना है !
मुश्किलें कई आते है
मजबूती से आगे निकलना है
पानी से बिछी उम्मीदों पर
एक सागर अथाह बनाना है !
भभकता मशाल हौसलों का
रातों को मात देना है
काँटों से बने ताज को
अब नहीं पहनना है !
- ~ शून्य में ~
है फैला कुछ धुआं सा, अंधकार सा छाया है
यहाँ नियति और वक्त से कौन बच पाया है
अन्तर्मन मैं प्रश्नो का पहाड़, फिर चढ़ने लगा है
उत्तर ढूढने मन अब, शून्य में उतरने लगा है
आग हो या पानी, अब राह बनाना चाहता हूँ
लेकर मशाल हौसले की, अब मैं निकल पड़ा हूँ
आसमा सी चुनौती को ‘प्रतिबिंब’, भेदने चला हूँ
राह कोई नई तलाशने, मैं अब निकल पड़ा हूँ
- हौंसले की मशाल
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अनजाने सड़कों पर
उठता धुआं
पसरा हुआ तिमीर
मुझे डराते हैं
पिता जी कभी कहते थे
मशाल की लौ तिमीर को
निगल जाती है
चलो,
लिखें अब एक कविता
हौंसले की मशाल पर
और इस मशाल को सदा के लिए
जलाओ
आज
सड़को पर बहुत अँधेरा है
- "मंजिल की तलास"
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अंधेरे अनजाने रास्तों पर,
लिए मसाल भागता हूँ,
कर्म भूमि की लालसा में,
एक मंजिल तलासता हूँ,
अनजानी अनदेखी है मंजिल,
फिर भी सदा भागता रहता हूँ,
उस सपनों की मंजिल के लिए,
दुःख दर्द जिन्दगी के सहता हूँ,
धुंवा धुंवा है हर तरफ राह में,
फिर भी यह दिल नहीं मनाता,
न जाने कहाँ मिल जाये मंजिल,
उस बक्त को कोई नहीं जानता,
हौसले बुलंद हो जब किसी के,
मंजिल उसे मिल ही जाती है,
जो उठाता है कष्ट जिंदगी में,
मंजिल खुद कदमों में आती है,
- ~स्थिर गति से पाँव बढ़ा नर ~
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स्थिर गति से पाँव बढ़ा नर
जाना है उस पार क्षितिज तक
मन में आशा का दीप जला कर
धुँधली राहों का तिमिर घटा कर
ज्योतिपुंज से जग आलोकित कर
बिनजाने अनचीन्हे पथ पर चलकर
कंटकमय मग को सुथरा करते
बढ़ते जाना है मंजिल तक
आँधी-तूफ़ानों से लोहा लेकर
पानी पर कदमों की छाप छोड़ते
धीरे ही , पर चलते जाना
आएगा वह क्षण भी सत्वर
स्थिर गति से पाँव बढ़ा नर
जाना है उस पार क्षितिज तक।
उर में हो विश्वास अटल औ श्वांस प्रबल
अनदेखी मंजिल को पाने की चाहत
अवनि से अम्बर तक भी ले जाएगी
बाधाओं से डर , रस्ता तज ना देना
आगे बढ़.गति सञ्चय कर,
लक्ष्य से मुँह मोड़ न लेना.
मन के सन्नाटों को दूर भगाकर
पथ के पाषाणों को पानी सा करते
अभी तो बस तू बढ़ता जा
निश्चय ही पहुँचेगा मंज़िल पर
स्थिर गति से पाँव बढ़ा नर
जाना है उस पार क्षितिज तक।
- मसाल. ....
देख रहा हूँ अंधकार में
दौड़ता हुआ उजाला
थामता हूँ जिद्द अपनी
मशाल एक विश्वास वाला !
जानता हूँ आसान नहीं होता
मंजिल को यूँ ही तो पाना
फिर भी बरसते मुश्किलों में
भागते फिरते उम्मीदों का होना !
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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