Thursday, September 17, 2015

५ सितम्बर २०१५ का चित्र और भाव




बालकृष्ण डी ध्यानी 
~सवाल अकेले में~

जब भी सवाल अकेले में मैं अपने आप से करूँ
बदल बदल सा क्यों मै आज खुद को दिखूं

मेरी परछाई कुछ बताती है वो आज मुझे
अँधेरे उजाले में कैसे उसके साथ साथ चलूँ

शक्ल अकल अब भी तो वो ही लगती है मेरी
फिर किस ओर से मै बदल बदल सा आज दिखूं

यूँ बतियाने से अपने अक्स से क्या है हसिल
पैर रहते जमीन पर मेरे जब भी वो आसमान में उड़े

जब सवाल अकेले में मैं अपने आप से करूँ
बदल बदल सा क्यों मै आज खुद को दिखूं


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~प्रश्न ~

एक बार भी नही सोचा
क्यों प्रश्न तुमसे इतने करता हूँ मैं
क्योंकि खुद से भी ज्यादा
तुम पर भरोसा कैसे करता हूँ मैं

पल पल इस तन्हाई का
तुम बिना कैसे जी सकता हूँ मैं
मेरे एहसासों का परिचय तुम
तुम को कैसे भूल सकता हूँ मैं

प्रेम भावना का मनभावन संगीत
तेरे बोल बिना कैसे रच सकता हूँ मैं
देख सम्मुख बैचेन रहता है मन
तुम से कैसे अलग रह सकता हूँ मैं

इस जीवन का प्रिय रिश्ता
इस प्रेम से कैसे दूर रह सकता हूँ मैं
कोई ध्वनि तौड्ती कभी खामोशी
तेरी महक से दूर कैसे रह सकता हूँ मैं

अकेला होने पर भी
तुमसे और तुम्हारी ही बात करता हूँ मैं
दिखे अपना ही ‘प्रतिबिंब’ लेकिन
हर सवाल तुमसे ही करता जाता हूँ मैं


Kiran Srivastava 
~~~~"परछाईं"~~~~
रुसवाईयाँ जीवन में
सरेआम होती हैं
परछाईयाँ भी रोशनी
की गुलाम होती है.....

कहतें हैं परछाईयाँ
साथ निभाती है,
गर अंधकारमय
हो जाये जीवन तो
ये भी साथ छोड़ जाती है
उतार-चढ़ाव ही जीवन की
पहचान होती है,
परछाईयाँ भी रोशनी
की गुलाम होती है.....
बदलती है परछाईयाँ भी
रोशनी के बदलने से
कद कभी बौनी तो
कभी बुलन्देखास होती है
दिखता वही है जो
अपनी औकात होती है,
परछाईयाँ भी रोशनी
की गुलाम होती है.....
जीवन भी शतरंज की
बिसात होती है,
प्यादा भी मात दे
देता है वजीर को
जब समय और किस्मत
दगाबाज होती है,
परछाईयाँ भी रोशनी
की गुलाम होती है.....!!!!!!!


नूतन डिमरी गैरोला
~एक प्रश्न~

मुझसे
बात करने
अक्सर तन्हाइयों में
रह जाती है
परछाई मेरी......
पर दिन ढल जाता है जब
रात के अंधेरो में
निबट अकेला मैं
पुकारता हूँ
पूछता हूँ
तुमसे
तुमने क्यों कर
छोड़ा साथ मेरा
इन नीम अंधेरों में?


कुसुम शर्मा
परछाईं हूँ तेरी
------------
परछाईं हूँ तेरी , कैसे जुदा कर पाओगे
जाओगे जहाँ जहाँ साथ हमे पाओगे
न रह पाओगे हमारे बिन
न मिले गर तो तड़प कर रह जाओगे !

साया हूँ मै तेरा
साया को कैसे छोड़ पाओगे
रोशनी मे चाहे न दिखु
अंधेरे मे सदा साथ पाओगे !

तुम्हें तन्हा न होने देंगे
हर समय तेरे साथ रहेंगे
कभी छोटे तो कभी बड़े दिखेंगे
पर हमेशा तेरे साथ चलेंगे ।।



नैनी ग्रोवर 
-- साया---

ना जाने मन में क्या समाया है,
जिधर देखूँ, बस साया ही साया है..
मन की अभिलाषा उलझन में है,
प्रश्न ही प्रश्न हैं, उत्तर कभी ना पाया है..
क्यूँ कर संग संग मेरे तू चलता है?
समय की भांति तूने मुझे उलझाया है..
तू भी रौशनी का साथी है दुनियां की तरह,
और मुझे अंधेरों ने दर दर भटकाया है..!!




सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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