#तकब१२ [ तस्वीर क्या बोले प्रतियोगिता #12]
मित्रो लीजिये अगली प्रतियोगिता आपके सम्मुख है. नियम निम्नलिखित है
१. दिए गए चित्रों में सामंजस्य के साथ कम से कम १० पंक्तियों की काव्य रचना शीर्षक
सहित होनी अनिवार्य है [ हर प्रतियोगी को एक ही रचना लिखने की अनुमति है].
- यह हिन्दी को समर्पित मंच है तो हिन्दी के शब्दों का ही प्रयोग करिए जहाँ तक संभव हो. चयन में इसे महत्व दिया जाएगा.
[एक निवेदन- टाइपिंग के कारण शब्द गलत न पोस्ट हों यह ध्यान रखिये. अपनी रचना को पोस्ट करने से पहले एक दो बार अवश्य पढ़े]
२. रचना के अंत में कम से कम दो पंक्तियाँ लिखनी है जिसमे आपने रचना में उदृत भाव के विषय में सोच को स्थान देना है.
३. प्रतियोगिता में आपके भाव अपने और नए होने चाहिए.
४. प्रतियोगिता २२ सितम्बर २०१६ की रात्रि को समाप्त होगी.
५. अन्य रचनाओं को पसंद कीजिये, कोई अन्य बात न लिखी जाए, हाँ कोई शंका/प्रश्न हो तो लिखिए जिसे समाधान होते ही हटा लीजियेगा.
६. आपकी रचित रचना को कहीं सांझा न कीजिये जब तक प्रतियोगिता समाप्त न हो या उसकी विद्धिवत घोषणा न हो तथा ब्लॉग में प्रकशित न हो.
विशेष : यह समूह सभी सदस्य हेतू है और जो निर्णायक दल के सदस्य है वे भी इस प्रतियोगिता में शामिल है हाँ वे अपनी रचना को नही चुन सकते लेकिन अन्य सदस्य चुन सकते है. सभी का चयन गोपनीय ही होगा जब तक एडमिन विजेता की घोषणा न कर ले.
निर्णायक मंडल के लिए :
1. अब एडमिन प्रतियोगिता से बाहर है, वे रचनाये लिख सकते है. लेकिन उन्हें चयन हेतु न शामिल किया जाए.
2. कृपया अशुद्धियों को नज़र अंदाज न किया जाए।
धन्यवाद !
इस बार की विजेता है सुश्री वीणा ब्रहमाणी जी - शुभकामनायें
राज मालपाणी ..{राष्ट्र भाषा हिंदी}
हिंदी भारतवर्ष में ,पाई है मातु सम मान
यही हमारी अस्मिता और यही है पहचान
[ इसे पढ़ा था और इसके आधार पर कविता को सजाया ]
हिन्दी भाषा कितनी सुन्दर, है ये कितनी आसान
हिन्द देश की हिन्दी संस्कृति, है ये सबसे महान
हिन्दी राष्ट्र की अस्मिता , हिन्दी वतन की आन
हिन्दी सरस, सुधारस, है अशक्त तन में प्रान
हिन्दी सूत, सखी, श्याम-सी, है इसका वरदान
चीर-भारती,चक्षु सूर, एकता की अखण्ड कमान
हिंदी को कबीरा ने अपनाया, दिया मीराबाई ने मान
आज़ादी के शहीदों ने, दिया इस हिन्दी को सम्मान
हिन्दी चरित्र है भारत का, नैतिकता की है परिभाषा
हिन्दी सबका स्वाभिमान, यही सबकी है अभिलाषा
अंग्रेज़ी सभी के पास थी , थी मेरे पास हिंदी
जिसके पास जो थी, उसने उसी में लिख दी
___________" जय हिंद - जय हिंदी "____________
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
देव नागरी हिन्दी मातृ भाषा
देव सुता, कवि -मानस- हंसिनि ,लोकहुं लोक लुभावत हिंदी /
मातु समान महान सुजानहि , मोद प्रमोद लुटावत हिंदी /
मोहन की मुरली सम लागति ,गान सुगान सुनावत हिंदी /
सूर कबीर यथा रसखानहुॅ ,छंद कवित्त सिखावत हिंदी //
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आखर- आखर कंचन जैसन ,लेख सुलेख रचावत हिंदी /
मातु पिता सम लागति प्रेमिल ,नेह -सुधा बरसावत हिंदी /
देशज भाषहि नेक अनेकहि,देवन -नागरि भावत हिंदी /
भारत में महिमा गरिमा अति, देश विदेशन छावत हिंदी //
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संदर्भ चित्र संदेश
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मेरा भाव हिन्दी दिवस पर ,,,हिन्दी की महिमा पर केंद्रित है वो माँ के समान प्यारी है अपनी मातृभाषा की लिपि माध्यम अक्षर= क ख ग सोने के समान मूल्यवान है जय हो हिन्दी,,,
नैनी ग्रोवर
~मुझे जब हिंदी मिली~
चली जा रही थी मैं,
अपने में गुम,
बिन किसी उद्देश्य के..
जाने कैसी भटकन थी,
स्वयं भी समझ ना पाई,
टूटे-फूटे भावों को,
जोड़ने की अभिलाषा,
परन्तु छोड़ ना पाई..
टूकड़े-टुकड़े जोड़,
मैं भाव सजाने लगी,
फिर भी,
एक मरुथल सी प्यास,
मुझमे समाने लगी..
भावों से दूर,
मैं स्वयं को खड़ा पाती थी,
जब शब्दों की कमी,
मुझको सताती थी..
मझधार में डूबी-डूबी,
कलम लग रही थी,
कागज की आँखों में भी,
नमी लग रही थी...
सौतेली सी लगती थीं,
लिखी हुईं लकीरें,
जैसे बेरंग सी,
बना दीं मैंने तस्वीरें..
एक दिन सह्रदय मित्र ने,
"हिंदी" से परिचय करवाया,
भावों और शब्दों का,
तालमेल समझाया..
आने लगा समझ उद्देश्य,
कलम भी रंग में आई,
भावों ने भी जागकर,
खूब ली अंगड़ाई..
धन्यवाद प्रतिबिम्ब जी,
आपको कोटि-कोटि मेरा,
अब कोरे कागज़ पे लिखूंगी,
मैं रोज़ नया सवेरा..
हिंदी है पहचान हमारी,
हिंदी ही है ज्ञान,
हिंदी से ही जुड़े हैं हमसब,
जय हिंदी, जय-हिंदुस्तान...!!
टिप्पणी: हिंदी ने मुझे मेरी पहचान दी, शत शत नमन मेरी मातृ भाषा को..
अलका गुप्ता
~~हिंदीगर्व हमारा ~~
मातृ-भाषा...हमारी...तुम्हारी...हिंदी |
शर्मिंदा..नहीं...है...आज हमारी..हिंदी |
समझ रहा विश्व ध्वनि विज्ञान अवतरित ये...
देवनागरी...संस्कारित...प्यारी....हिंदी ||
स्वाभिमान है आत्म ज्ञान हिंदी गर्व हमारा |
हिंदी..हैं .हम वतन...हिन्दुस्तान रव हमारा }
जन-जन की भाषा समझें वह हर भाव हमारा |
गुंजित है...ज्ञान-विज्ञान..संस्कार..पर्व हमारा ||
व्यर्थ गाते गीत हम क्यूँ विवश विप्र गुलामो के आगे |
तन मन बसे गुलामी..तोड़ न पाएँ ये..बंधन के..धागे |
ये सावन के अंधे..हैं..असली हरियाली को क्या जाने...
सिखे सिखाए श्वान हैं जो कम हियर..गो देयर पे भागे ||
नोट-जबकि हम और समस्त विश्व यह समझ चुका है कि हिंदी हर प्रकार से एक सुगम्य ग्राह्य और वैज्ञानिक भाषा है जिसकी अति प्राचीन देवनागरी लिपि है ... जिस पर हमें गर्व होना चाहिए ..पर अपनी ही मातृभूमी पर हिंदी का प्रचार प्रसार करना पड़ रहा है ...यह गुलाम मानसिकता में जकड़े लोग दुसरो की भाषा पर अपने को अभिजात्य समझ रहे हैं |
गोपेश दशोरा
~अपनी हिन्दी~
भारत माँ के भाल की बिन्दी
कितनी प्यारी अपनी हिन्दी,
कितना प्यारा लगता है जब,
कोई अपना बोले हिन्दी।
हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई,
जैन, पारसी या हो सिन्धी
धर्म कर्म सब अलग है सबके,
पर सब में एका करती हिन्दी।
छोटे- बड़े का भेद है इसमें,
है कितनी व्यवहारिक हिन्दी।
है अनेको भाषा जग में,
सबसे मीठी लगती हिन्दी।
रोला, छप्पय, कवित्त, सोरठा,
छन्दो से इठलाई हिन्दी।
उपमा, यमक, अनुप्रास, उत्प्रेक्षा
अलंकारों से शरमाई हिन्दी
मात्र भाषा इसे ना समझो,
ईष्वर का वरदान है हिन्दी।
गर्व करों महसूस सभी तब,
जब-जब मुख से निकले हिन्दी।
टिप्पणीः हमारी मातृभाषा जो आज मात्र भाषा बन कर रह गयी है। लेकिन वास्तव में हिन्दी जैसी कोई भाषा नहीं है। और यह बात आज की नई पीढ़ी को समझनी होगी।
किरण श्रीवास्तव
( मैं हिन्दी हूँ)
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नहीं केवल एकभाषा हूँ,
मैं देश की परिभाषा हूँ।
सबने मुझको मान दिया,
मातृभाषा का सम्मान दिया ...।
मुझमें ही तो संत बसे हैं,
कबीर रहीम और पंत बसे हैं।
आभार सभी कृतिकारों का,
भारत के राज दुलारों का ।
वर्चस्व हमेशा बना रहे,
कोशिश तुम करतेही रहना।
चहुंओर उपयोग रहे अपना,
एक राष्ट्र बनाना तुम ऐसा ।
मुझसे ही पहचान तुम्हारा,
मुझपर ये एहसान तुम्हारा ।
औरों को भी मान मिले ,
ऐसा हो कर्तव्य तुम्हारा ।
भारत का मैं हूँ गहना ,
सुख- दु:ख भी है ,मुझको सहना ।
फिर भी माथे की बिंदी हूँ,
हां मैं ही तो हिन्दी हूं...!!!!
===================
टिप्पणी--
हिंदी हमारी मातृभाषा है,श्रेष्ठ है फिर भी इसका उपयोग अन्य क्षेत्रों में कम है।आज विदेशी भाषा का बोलबाला है । वैसे हर भाषा का अपना अलग महत्व है।जानकारी होना जरूरी है, लेकिन अपनी मां तो आखिर अपनी ही मां होती है।इसके महत्व को जानें, इसे दिल से स्वीकार करे । इसके विकास में अग्रसर रहें।चहुंओर प्रयोग हो इसका । ताकि गर्व से कह सके हम हिंदी हैं हम हिन्दूस्तानी हैं.....।
प्रभा मित्तल
~~~हिन्दी मेरी पहचान~~~
हिन्दी मेरी भाषा है
हिन्दी मेरा मान है
हिन्द वतन है मेरा
हिन्दी ही पहचान है।
मेरी माता है हिन्दी,सो
हिन्दी आसां लगती है
हिन्दी में सपने आते हैं
सोच में हिन्दी भाती है
वैसे तो मेरे आज़ाद देश में
हर प्रान्त की अपनी भाषा है।
यहाँ हर जन - मानस में बसी
हिन्दी एकता की परिभाषा है।
पावन संस्कृत की लाडली
हिन्दी मधु रस की गोली है,
फिर भी क्यों हर जुबान पर
यहाँ अंग्रेजी की ही बोली है।
बच्चों की शिक्षा अंग्रेज़ी
शुभ सुबह भी होती अंग्रेज़ी,
प्रणाम - नमस्ते बुढ़ा गए,
हाय-बाय में रहती अंग्रेजी।
अम्मा बाबू जी के घर में
मॉम डैड अब रहते हैं,
दीदी - भईया को भी सब
सिस - ब्रो ही कहते हैं।
अक्सर दुःख होता है मन में,
आज़ादी तो अंग्रेजी ले गई।
भाषा के अल्प-प्रयोग से,माँ
हिन्दी बेड़ियों से जूझ रही।
साल में एक दिन श्राद्ध जैसे
हम हिन्दी दिवस मनाते हैें।
हर दिन काम करें इसपर तो
राष्ट्र-भाषा दिवस मनाएँगे।
प्रण करें सभी मिलजुल कर
प्यारी हिन्दी को अपनाएँगे,
देश-विदेश में चर्चित भाषा को
राष्ट्रभाषा का गौरव दिलवाएँगे।
(हर देश की अपनी भाषा होती है,तो हम अपनी भाषा की उपेक्षा क्यों कर रहे हैं? हम सब प्रण करें कि हिन्दी को अपनाकर इसे राष्ट्रभाषा का गौरव दिलवाएँगे।)
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~एक दिवस नहीं~
जन्म से मेरा इसका नाता
सुनता, पढ़ता, लिखता आया
मातृभाषा कह इसे अपनाया
मातृभूमि की पहचान बनाया
हम एक दिवस पर क्यों सिमट जाएँ?
मन्त्र मुग्ध करने वाली मेरी हिन्दी
स्वर व्यंजन से सुशोभित मेरी हिन्दी
संस्कृत से जन्मी संस्कारित मेरी हिन्दी
भारत की संस्कृति का आधार मेरी हिन्दी
हम एक दिवस पर क्यों सिमट जाएँ?
अपनी भाषा को पिछड़ा कहते
पर भाषा को खुशी से अपनाते
राज की हम इसे भाषा कहते
राष्ट्रभाषा करने हेतु क्यों नही लड़ते
हम एक दिवस पर क्यों सिमट जाएँ?
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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