#तकब१४ [ तस्वीर क्या बोले प्रतियोगिता #14]
मित्रो लीजिये अगली प्रतियोगिता आपके सम्मुख है. नियम निम्नलिखित है
१. दिए गए चित्रों में सामंजस्य के साथ कम से कम १० पंक्तियों की काव्य रचना शीर्षक सहित होनी अनिवार्य है [ हर प्रतियोगी को एक ही रचना लिखने की अनुमति है].
- यह हिन्दी को समर्पित मंच है तो हिन्दी के शब्दों का ही प्रयोग करिए जहाँ तक संभव हो. चयन में इसे महत्व दिया जाएगा.
[एक निवेदन- टाइपिंग के कारण शब्द गलत न पोस्ट हों यह ध्यान रखिये. अपनी रचना को पोस्ट करने से पहले एक दो बार अवश्य पढ़े]
२. रचना के अंत में कम से कम दो पंक्तियाँ लिखनी है जिसमे आपने रचना में उदृत भाव के विषय में सोच को स्थान देना है.
३. प्रतियोगिता में आपके भाव अपने और नए होने चाहिए.
४. प्रतियोगिता ११ नवंबर २०१६ की रात्रि को समाप्त होगी.
५. अन्य रचनाओं को पसंद कीजिये, कोई अन्य बात न लिखी जाए, हाँ कोई शंका/प्रश्न हो तो लिखिए जिसे समाधान होते ही हटा लीजियेगा.
६. आपकी रचित रचना को कहीं सांझा न कीजिये जब तक प्रतियोगिता समाप्त न हो या उसकी विद्धिवत घोषणा न हो तथा ब्लॉग में प्रकशित न हो.
विशेष : यह समूह सभी सदस्य हेतू है और जो निर्णायक दल के सदस्य है वे भी इस प्रतियोगिता में शामिल है हाँ वे अपनी रचना को नही चुन सकते लेकिन अन्य सदस्य चुन सकते है. सभी का चयन गोपनीय ही होगा जब तक एडमिन विजेता की घोषणा न कर ले.
निर्णायक मंडल के लिए :
1. अब एडमिन प्रतियोगिता से बाहर है, वे रचनाये लिख सकते है. लेकिन उन्हें चयन हेतु न शामिल किया जाए.
2. कृपया अशुद्धियों को नज़र अंदाज न किया जाए।
धन्यवाद !
तकब 14 के विजेता है श्री मदनमोहन थपलियाल 'शैल' जी - हार्दिक बधाई इस परिवार की ओर से
बालकृष्ण डी ध्यानी
~शून्य पर मेरी ऐ कविता~
शून्य पर मेरी ऐ कविता
अपने पर हो जैसे रचित सरिता
हर उद्गम का स्थान है जो
प्रथमता पद का प्राण है वो
शून्य पर मेरी ऐ कविता ..............
एक गोल से पल्लवित होती
कृष्णधवल के संग रंग रोपण करती
तरह तरह के वो स्तर पर जाती
अपने को जंचती और परखती
शून्य पर मेरी ऐ कविता ..............
शून्य आसमान है वो निहारती
कैसे कैसे वो आभा जगाती
शून्य से बस अब अलख जगी है
जैसे वो मेरी कोई बिछड़ी सखी है
शून्य पर मेरी ऐ कविता ..............
जब कुछ नहीं था तब भी थी वो
जब सब कुछ है तब भी है वो
रातों में चमकते वो सितारे जैसी
अंधियारे मन की वो उजियारे जैसी
शून्य पर मेरी ऐ कविता ..............
संख्यों की संरचना है वो
मेरे अंदर की एक गणना है वो
अमूमन इकाई की वो शुरुवात
मेरे साथ आप को भी इससे हो जाएगा प्यार
शून्य पर मेरी ऐ कविता ..............
टिप्पणी : कविता की अलख भी शून्य से उभरती है और अपने ,हृदय के पटल दिमाग के कक्ष से उभरते हुये शून्य रूपी कागज के शून्य भावों में उभरकर एक नया भाव उपजा कर जाती है उसी तरह शून्य पर मेरी ऐ कविता अपने को परखने का एक माध्यम बने बस यही हेतु है
नैनी ग्रोवर
~शून्य~
शून्य से उपजा मानव,
शून्य से ही धरा,
शून्य है ब्रह्मांड का रूप,
शून्य में ही, सब भरा...
निराकार से आकार बना,
आकार से हुआ साकार,
साकार से फिर उपजा,
सृष्टि का सुंदर पारावार...
एक सामान रहता है सदा,
ना घटता है ना बढ़ता,
शून्य जीवन की परिभाषा है,
नित नई अपिलाषाएँ गढ़ता..
शून्य से ही मिली गणना,
जिससे सारा संसार चले,
शून्य मन से ही उपजे प्रेम,
जिससे हमारा परिवार चले..
भरे हुए में कैसे भरे कोई,
शून्य हो तो बात बने,
शून्य मन से पूजो तो,
पथ्थर भी प्रतिपाल बने...!!
टिप्पणी:- शून्य का मतलब ज़ीरो भी है और खाली भी.. मैंने यहाँ दोनों को सांझा सोचा है..!
डॉली अग्रवाल
~शून्य नही थी में ~
जीते थे मुझ में कुछ ख़्वाब
कुछ एहसास और कुछ धड़कने भी
नाकार दिया था तुमने मेरा वजूद
शून्य बना छोड़ दिया
में भी जीवांत थी
जीना चाहती थी
जुड़ना चाहती थी
दशमलव भी कबूल किया था
क्योकि 1 ( एक ) साथ जुड़ा था
पर गणितीय ज्ञान तुमसे जुड़ा था
तुम आज भी एक ही हो
काश शून्य जोड़ा होता
तो
आज लाख बना होता !!
टिप्पणी : शून्य की भी किसमत क्या -- संख्या से आगे जुड़े तो वजूद नही पीछे जुड़े तो लाख बने !
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~ शून्य - अनंत ~
शून्य
में गणित से कहीं अधिक आध्यत्म है
शून्य
ही वैदिक काल से अनंत की संकल्पना है
शून्य
कोई अविष्कार नहीं, यह एक खोज है
शून्य
सदियों से हमारी संस्कृति का हिस्सा है
शून्य
कही बना कहानी तो कही बना किस्सा है
शून्य
कहीं भरा और कहीं नज़र आता खाली है
शून्य
ही शुरआत है और यही अंत भी है
शून्य
में ही छुपा प्राणी जगत का सत्य है
शून्य
ही ब्रह्मांड में देता समय को गति है
शून्य
ही समग्र का क्रांति का ध्वजाहक है
शून्य
ही कालचक्र के नियमो का आधार है
शून्य
ही परमार्थ एवं मुक्ति का द्वार है
शून्य
ही आदि है एवं अनंत भी है
शून्य
ही शून्य है एवं शून्य ही पूर्ण है
टिप्पणी :
ईशोपनिषद में कहा गया है
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥
ॐ वह (परब्रह्म) पूर्ण है और यह (कार्यब्रह्म) भी पूर्ण है; क्योंकि पूर्ण से पूर्ण की ही उत्पत्ति होती है। तथा [प्रलयकाल मे] पूर्ण [कार्यब्रह्म] का पूर्णत्व लेकर (अपने मे लीन करके) पूर्ण [परब्रह्म] ही बचा रहता है. त्रिविध ताप की शांति हो 'पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते' का भावार्थ है "शून्य" के समान 'अनंत से अनंत घटाने पर भी अनंत ही शेष रहता है'
Shalini Mehta
~शून्य सहज नही ~
शून्य सहज नही
शून्य वहम भी नही
शून्य शोध नही
शून्य ठोस भी नही
शून्य मोक्ष नही
शून्य कोश भी नही
शून्य सरल से तरल होता भाव है
शून्य व्याख्या नही; विश्वास है
शून्य मिट्टी से हयूमस
हयूमस से पादप
पादप से वृक्ष
वृक्ष से हरीतिमा
हरियाली से जीव
जीव से नभ
नभ मे मेघ
मेघ मे वर्षा
वर्षा मे प्रकृति
प्रकृति की गोद मे कुलांचे मारता शून्य
टिप्पणी : (प्रतियोगिता हेतु नही लिखी गई उपरोक्त पंक्तियाँ; क्योंकि रूक नही पाये भाव प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी को पढते हुए इसीलिए लिख दिया )
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
~मेरी अवधारणा~
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
शून्य के प्रति ,
मेरी अवधारणा है
हम परमात्मा नहीं हैं
उनका सिर्फ अंश हैं छाया हैं
एक विवेक शून्य बालक
अतः शून्य से ही प्रारंभ,
मेरी अबोध जीवन यात्रा
मैं गुब्बारा व सिर्फ पतंग हूँ और डोर ?
,भगवान व नियति के हाथ में
शून्य से ही हम प्रगति करते हैं
वो भी कर्म व भाग्य के द्वारा
शून्य को गणात्मक आधार मानते है
किन्तु बिना 1संख्या ( ईश्वर ) के बिना
शून्य सिर्फ शून्य है
कोई अस्तित्व नहीं
धूल ,धरा ,नभ ,जल व मानव -मन
सब अपनी स्थिति में,
यदि परम पिता की दिव्य चेतना
इन सभी शून्य को,
रूपांतरण व जीवंत ना करें /
शून्य रह जाएंगे /
********************
टिप्पणी: प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी की भावना का स्वागत है मैं भी शून्य को जीवन की सृजनात्मक शक्ति मानती हूँ सिर्फ परमात्मा से अनुप्राणित ,,,,धन्यवाद
किरण श्रीवास्तव
"अस्तित्व"
शून्य से ही बना शरीर,
शून्य से विस्तार है!
कर्म शुरू भी शून्य से,
शून्य से अवतार है।।
उतार-चढ़ाव है जीवन में,
नहीं कही ठहराव है!
ठहर जाये जीवन तो फिर,
शून्य से शुरूआत है ।।
भागे जब आगे-आगे तब,
शून्य वजूद हो जाता है!
नतमस्तक हो जाये पीछे,
भाव समझ आ जाता है।।
एकाकीअस्तित्व नहीं ...,
मिलकर ही निर्माण है!
मिलकर के ही राष्ट्र बने,
फिर बनता देश जहां है।।
टिप्पणी- गणितीय शून्य और शून्य(खाली) दोनों को परिभाषित करने की कोशिश की है....।
कुसुम शर्मा
~शून्य~
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विश्व का आधार भी और अंत भी है शून्य,
है अपने मे पूर्ण भी और अपूर्ण भी है शून्य ,
हुआ है समय का आरम्भ भी और अंत भी इससे
होता नही अस्तित्व जो इसका तो कैसा होता ये शून्य
किसी को रंक तो किसी को राजा बनाता है ये शून्य
लगे आगे तो क़िस्मत बदल दे लगे पीछे तो क़िस्मत पलट दे
कहने को तो है शुन्य पर चमत्कार है शून्य
होती नही गणना इसके बिना पूरी
इसी ने बाँधी है इस सृष्टि की घूरी
यही वेदों का मूलधार
यही यज्ञों का सूत्रधार
यही आत्मा है यही परमात्मा है
यही अगोचर और अगम है
न यह महान है, न ह्रस्व है, न लघु है,
न दीर्घ है, न यह लाल है, न हरा है,
न मजीठ, न पीला और काला ही है।
यह वर्णवहीन और आकृतिविहीन है!
होता नही यह तो होती नही गणना
तो पता कैसे चलता रावण के १० सर
और कौरवों के १०० पुत्रों की गणना !!
टिप्पणी :- शून्य अपने ही पूर्ण है कुछ न हो कर भी सब कुछ है वेदों का मूलधार है यज्ञों का सूत्रधार है यह किसी की भी क़िस्मत पलट सकता है न इसका कोई आकार है न ही वर्ण इसके बिना अंकों की संख्या पूरी नही होती यही नही होता तो हम गणित को कैसे जान पाते न ही हमे पता चलता रावण के १० सिर और कौरवों के १०० पुत्रों के बारे मे विश्व के अंगिनत तारो के विषय मे यानी की ये नही तो सृष्टि का कोई आधार नही !!
Madan Mohan Thapliyal
🎀🎀🎀🎀 मैं शून्य हूँ 🎀🎀🎀🎀
( समग्रता )
🎀🎀🎀🎀
मैं शून्य हूँ -
मुझसे पहले न कोई था-
और न कभी होगा.
पूर्ण सत्य भी मैं -
पूर्ण ब्रह्म भी मैं -
चराचर जगत का नियन्ता भी मैं -
ब्रह्मांड का उद्गम भी मैं -
विस्तार भी मैं.
साकार भी मैं -
निराकार भी मैं.
मैं किसी के बन्धन में नहीं -
मैंने किसी को बांधा नहीं -
मैं स्वच्छंद हूँ -
सर्वत्र हूँ .
अचेतन औ चैतन्य भी मैं -
वेद-वेदांत का ज्ञान भी मैं -
ॠषि मुनियों का ध्यान भी मैं -
विद्या विशारद भी मैं -
संज्ञाशून्य भी मैं -
ज्ञान भी मैं, अज्ञान भी मैं -
हर वस्तु का मूल्यांकन भी मैं -
गणित भी मैं, गणितज्ञ भी मैं -
सिद्धांत भी मैं, सूक्ति भी मैं -
हर तंत्र,मंत्र का आरम्भ भी मैं -
समाधान भी मैं -
उत्पति भी मैं, प्रलय भी मैं -
जीवन भी मैं, मोक्ष भी मैं -
प्रत्यक्ष भी मैं, परोक्ष भी मैं -
जीवन का सूत्रधार भी मैं -
सर्वोपरि मैं, चिरनिद्रा भी मैं.
मेरे करते ही सब शुरू होता है -
और अन्त भी होता है-
मैं अजर हूँ, अमर हूँ!!!!
******
टिप्पणी: सम्पूर्ण सृष्टि को चलाने वाला शून्य ही है, शून्य सबकुछ है, शून्य के बगैर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है.
Prerna Mittal
~ अनंत~
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कैसी यह बेरहम ज़िंदगी
शून्य से शुरू शून्य पर ख़त्म
बिना बताए, बिना पूछे मिल जाती
क्या इसका कोई मतलब नहीं
लाया कोई हमें इस संसार में क्योंकर ?
क्या मन बहला रहा ईश्वर, खिलौने बना-बनाकर ?
क्या उद्देश्य इतना ही, मनोरंजन हो उसका ?
अरे रुको ! या कदाचित् इससे कुछ ज़्यादा ?
शून्य बढ़ा देता है मूल्य, दस गुना, फिर और दस गुना
कहीं चाहता यही तो नहीं, सो हमारा यह जीवन बुना
बनें अपने युग के आर्यभट, बनाए नित नए कीर्तिमान
अपने साहस, बुद्धि और त्याग से करें समाज का नवनिर्माण
कर जाएँ समाज के लिए कुछ ऐसा
जो किसी ने कभी ना किया हो वैसा
देख रहा है वह, कौन बढ़ा पाता है शून्य को कितने गुना
क्या पीछे छोड़ जाएगी उसकी संतान, अपने क़दमों के निशाँ ?
टिप्पणी : व्यक्ति का जीवन केवल कीड़े-मकोड़ों की तरह जीने के लिए नहीं बल्कि कुछ कर जाने के लिए होता है । जिस तरह शून्य का कोई अंत नहीं उसी तरह करसक आदमी मरकर भी अमर हो जाता है ।
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