Friday, December 30, 2016

#तकब१५ [ तस्वीर क्या बोले प्रतियोगिता # 15 ]


#तकब१५ [ तस्वीर क्या बोले प्रतियोगिता # 15 ]
१. इस बार दिए गए चित्रों में सन्देश स्पष्ट है. देखते है मित्र सदस्य किस तरह भावों को जोड़ पाते है. चित्रों में सामंजस्य के साथ कम से कम १० पंक्तियों की काव्य रचना शीर्षक सहित होनी अनिवार्य है [ हर प्रतियोगी को एक ही रचना लिखने की अनुमति है]. 
- यह हिन्दी को समर्पित मंच है तो हिन्दी के शब्दों का ही प्रयोग करिए जहाँ तक संभव हो. चयन में इसे महत्व दिया जाएगा.
[एक निवेदन- टाइपिंग के कारण शब्द गलत न पोस्ट हों यह ध्यान रखिये. अपनी रचना को पोस्ट करने से पहले एक दो बार अवश्य पढ़े]
२. रचना के अंत में कम से कम दो पंक्तियाँ लिखनी है जिसमे आपने रचना में उदृत भाव के विषय में सोच को स्थान देना है.
३. प्रतियोगिता में आपके भाव अपने और नए होने चाहिए.
४. प्रतियोगिता १९ दिसम्बर २०१६ की रात्रि को समाप्त होगी.
५. अन्य रचनाओं को पसंद कीजिये, कोई अन्य बात न लिखी जाए, हाँ कोई शंका/प्रश्न हो तो लिखिए जिसे समाधान होते ही हटा लीजियेगा. साथ ही कोई भी ऐसी बात न लिखे जिससे निर्णय प्रभावित हो.
६. आपकी रचित रचना को कहीं सांझा न कीजिये जब तक प्रतियोगिता समाप्त न हो या उसकी विद्धिवत घोषणा न हो तथा ब्लॉग में प्रकशित न हो.
विशेष : यह समूह सभी सदस्य हेतू है और जो निर्णायक दल के सदस्य है वे भी इस प्रतियोगिता में शामिल है हाँ वे अपनी रचना को नही चुन सकते लेकिन अन्य सदस्य चुन सकते है. सभी का चयन गोपनीय ही होगा जब तक एडमिन विजेता की घोषणा न कर ले.
निर्णायक मंडल के लिए :
1. अब एडमिन प्रतियोगिता से बाहर है, वे रचनाये लिख सकते है. लेकिन उन्हें चयन हेतु न शामिल किया जाए.
2. कृपया अशुद्धियों को नज़र अंदाज न किया जाए।
धन्यवाद !
इस प्रतियोगिता की विजेता रही सुश्री आभा अग्रवाल जी - बधाई - शुभकामनाएं 


किरण श्रीवास्तव
(नव-वर्ष)
--------------------------

अंग्रेजी का वर्ष नया,
अब तो आने वाला है!
मास दिसम्बर कमर झुका कर,
अब तो जाने वाला है|
जन-जन में उत्साह जगा,
पर ठंड से दुबका जाता है!
सूरज की गर्मी का भी
नहीं पता चल पाता है,
डाली-डाली पत्ते-पत्ते
ठंड से सिकुड़े जातें हैं,
नये साल के जोश में इनको
ठंडक नहीं सुहाती है|
होश गंवाने को फिर इंसा,
मद्यपान अपनातें हैं
झूमते-गिरते आपा खोते
न्यू ईयर मनाते हैं..।

चैत्र शुक्ल-पक्ष प्रतिप्रदा -
हिन्दी नव-वर्ष होता है,
पूजा-पाठ कलश-स्थापन
और जागरण चलता है।
नव-वर्ष हिन्दी की अपने,
होती बात निराली है!
प्रकृति भी स्वागत करतीहै,
चहुंओर रहे हरियाली है!
फूल-फूल और कली-कली,
मानो हंसती-गाती है!
छेड़ तराने कोयल भी,
अपने गीत सुनाती है!
नये-नये पत्ते पेड़ों पर,
खड़े हैं सज-धज कर ऐसे,
महमानों के आने पर
कपड़े बदलें हो जैसे...|

हिन्दी हो या अंग्रेजी
साल तो आता जाता है,
समय चक्र चलता रहता
ठहर नहीं वो पाता है!
इससे लेकर हमें सबक,
आगे बढ़ते जाना है,
चाहा जीवन में जो भी
मुकाम वही अपनाना है!
नये साल में यही कामना -
नहीं कोई दुखियारी हो,
मंगलमय हो सभी के लिए
और सदा शुभकारी हो..!!
----------------------------------------

टिप्पणी: अंग्रेजी वर्ष हो या हिन्दी वर्ष दोनों ही के कार्य-क्षेत्र अलग और दोनों ही जीवन में महत्वपूर्ण है। अंग्रेजी नववर्ष में कड़ाके की ठंड उत्साह को क्षीण तो करते ही हैं , पाश्चात्य रहन-सहन ,आचरण हमारे संस्कार को भी धराशायी कर देतें हैं ...। हिन्दी नववर्ष -हमारी परम्पराएं धार्मिकता हमारे संस्कार को जीवन्त तो करती ही है ,वहींप्रकृति भी मानों हमारे साथ दिल खोल कर स्वागत को तैयार खड़ी रहती है।


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~नववर्ष - मेरा तुम्हारा~

पाश्चत्य नववर्ष में
सर्दी की ठिठुरन लिए
मदिरा का सेवन कर
मदहोश हो थिरकते रहते
अश्लीलता की करते नुमाइश
अर्धरात्रि में तमोगुण संग
नववर्ष का आरम्भ होता
तामसिक प्रवृति का फिर
जहाँ तहाँ प्रदर्शन होता
कैसा विचित्र है
विदेशियों का यह त्यौहार

वेदों में अंकित है युगादि का सत्य
चंद्रमा की कला का है ये प्रथम दिवस
ब्रह्मा ने इसी दिन कर सृष्टि का निर्माण
नक्षत्रो का देकर उपहार
सतयुग का किया था प्रारम्भ
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथमा
ही अपने नववर्ष का है शुभारम्भ
भारतीय संस्कृति का
प्रकृति से है गहरा नाता
नववर्ष भी नही इससे अछूता
पतझड़ का असर कम होता जाता
वसंत ऋतू का फिर आगमन होता
पेड़ पौधे पल्लवित होते
पुष्प नववर्ष का स्वागत करते
शालिवाहन की वीरता का प्रतीक
शक संवत बना साक्षी है
शैल्पुत्री प्रकृति का दूसरा रूप
कर अराधना उसकी
नवरात्र की होती शुरआत
विक्रमादित्य ने फहरा विजय पताका
राज्यभिषेक भी इसी दिन करवाया था
फिर मंगल कार्यो की गणना का आधार
विक्रम संवत को ही बनाया था
इस शुभ दिन कर बाली का वध
राम ने उसकी प्रजा को मुक्ति दिलाई थी
इस नवबेला में उर्जा शक्ति का होता प्रसार
नई फसलो संग उत्साह उमंग का होता विस्तार
और हम अपनी धर्म संस्कृति छोड़
न जाने क्यों विदेशी संस्कार अपनाते
अपनी प्रथा परम्पराओ का लेकर ज्ञान
स्वीकार कर, करो तुम सम्मान

टिप्पणी: किसी भी त्यौहार पर्व [ अन्य देशो के ] बारे में जानना अच्छी बात है या उनकी खुशी में शामिल होना भी अच्छा है लेकिन अपनी परम्पराव संस्कृति को भूल कर, बिसरा कर, छोड़कर नही...


नैनी ग्रोवर
~ नया साल~

देख मुँह लाल दूजे का,
पीट पीट के अपना मत करो,
मान अपनी परम्पराओं का,
अजी कुछ तो समझा करो...
बहके कदम, भोंडे कपड़े,
मुंह में सिगरेट दबाये,
भारत में ये नया साल मनाने,
ये हिप्पी कहाँ से आये...?
माँ बन गई मम्मी जीते जी,
और पिता हो गए डैड..
चाचा चाची बने अंकल आंटी,
बुध्दि हो गई मेड...
हाय ब्रो हाय सिस ने सारा,
कुनबा बिगाड़ डाला,
अपने हाथों हमने,
अपनी भाषा का चमन उजाड़ डाला...
अब नए साल के इंतज़ार में,
सारे पगला रहे हैं,
डेबिट और क्रेडिट कार्ड के,
जलवे दिखा रहे हैं...
जम के पियेंगे रात भर,
हुड़दंग मचाएंगे,
नए साल के पहले दिन,
माँ से फिर सर दबवायेंगे...
अरे छोड़ो यूँ नया साल मनाना,
किसी काम ना आएगा,
बैठो संग परिवार, खाओ पियो,
खुशियों की लहर लाएगा...
जैसी होगी शुरुआत साल की,
वैसा ही मिलेगा फल,
उठ सुबह सवेरे ले नाम प्रभु का,
और काम पे अपने चल...!

टिप्पणी.. आज के मौहाल पे छाये पश्चिम साये को दूर करें,, और अपनी परम्पराएँ समझना ही जीवन जीने का स्वच्छ और निर्मल मार्ग है ।


अलका गुप्ता
~अंतर नव वर्ष का ~
~~~~~~~~~

भावनाएँ उल्लास मय !
सृष्टि संग उमड़ प्रवाहित ॥
संचरित प्रकृति नवांकुर...
अनायास हँसे प्रत्फुटित ॥

नव वर्ष पदार्पण संवत्...
गुनगुना चैत्र मंगल कलश !
प्रसार मातु आँचल तले
आगाज उंमिलन अलस !!

तब मुस्कान भानु रस पिउ..
हरितिमा चंचल फागु घुलित ।
उछले... रंग...वेग..संवेग...
आए..नव-वर्ष... संकलित ॥

ठिठुरने अहसास जब लगें
चादर मॆं वर्फ की सर्द हो ।
आतुर सी लगे प्रकृति...
छिपा पांख..पंख जर्द हो ॥

हैपी न्यू ईयर बोल जब
अंतराल सुप्त बोने लगे ।
झरे पात पंगु वृक्ष शीत...
दुबक हर कोण सोने लगे ॥


टिप्पणी: हिन्दी नव संवत्सर एवं इंग्लिश सन के नव वर्ष के आगमन पर प्रकृति का भारत मॆं हम जो अंतर महसूस करते हैं बस उसी कॊ व्यक्त कर पाने का प्रयास किया है


मीनाक्षी कपूर मीनू
~ नव आगमन ~
--------
दिसम्बर माह की ठिठुरन में
" अंग्रेज़ी नव वर्ष " दिवस आया
सबके मुख पर खुशियां छायी
पीने पिलाने का दौर चलाया

अंग्रेजी ने रंग दिया तनमन
शोर शराबा चले संग संग
मनस्वी ,,भूल अपनी संस्कृति
सब ने बदले अपने रंग ढँग

आज भू ले हम भारत वासी
हिंदी पावन 'नव वर्ष बेला '
प्रकृति का संदेश न समझे
घर होटल में लगता है मेला

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष को
अंकुरण हिन्दी नव बेला का
तन मन प्रफुल्लित उमंग भरा
प्राकृतिक सौंदर्य का मेला सा

खुशियां लाएं 'दो दिवस' मनाएं
हिन्दी को तो न ठुकराएँ
ये तो अपना मातृ दिवस है
इसके संग संग सब चलाये

भारत है तो इण्डिया अच्छा है
संस्कृति है तो फैशन अच्छा है
मनस्वी,, बुज़ुर्गों का गर रखें मान
तो पीना पिलाना भी अच्छा है

बिना राग द्वेष के मिल के खाएं
नव वर्ष रूप में हैप्पी न्यू ईयर मनाएं

टिप्पणी: अपनी भारतीयता को जीवंत रखते हुए सभी त्यौहार मनाने चाहिए क्योंकि भारत की पहचान ही है कि विभिन्नता को एक सूत्र में बाँधना। यहाँ अनेकता में एकता है मगर अपनी संस्कृति को भूलते हुए नहीं बल्कि इसका मान बढ़ाते हुए सभी त्योहारो को, दिवस को मनाना चाहिए ताकि भारतीय सबके साथ कदम से कदम मिला करआगे बढ़ सकें और अपनी भारतीयता की पहचान दे सके।



Madan Mohan Thapliyal 'शैल'
~आभास नव वर्ष के आगमन का~


( नव वर्ष की शुभकामनाएं )

जब डालियों पर हो फूलों की बहार
तितलियाँ मंडराएं झूम-झूम कर-
धरणी करे अद्भुत श्रृंगार -
सारंग छौने घूमें, स्वच्छंद -
हिमगिरि की बयार बहे मंद-मंद -
आम की मंजरी पर हो मधुप गुंजार
निर्झर झरनों की अनिमिष प्रीत -

प्रकृति सजती नव दुल्हन सी -
मन्थर गति वाले हिमनद का संगीत -
हो प्रफुल्लित कोयल गाए गीत
हिमनद सिकोड़ते अपनी बाहों को-
सुरभित करते बन कंदराओं को
ठिठुरती सर्दी कहती निज घर जाती
लिए दिए का धर्म निभाती
घने दरख़्तों की झीनी ओट से
झांकती रवि किरणें -
धरती को नमन करती और कहतीं
कुछ नया है होने वाला
जब धरा का कण-कण हो हर्षित
समझो नव वर्ष है आने वाला
चैत्र मास, मधुमास है आने वाला
ऐसी हो जहाँ की पुण्य धरा
क्यों न हो हर्षित जनमानस
क्यों न बजे नव वर्ष का संगीत
स्वागत हे मधुमास तुम्हारा
नव वर्ष का खुशी से गाएँ गीत!!!!

सारा विश्व नव वर्ष का
प्रथम दिन कहता जिसको
ठिठुरन भरी सर्दी चहुंओर
जनवरी मास कहते उसको
चारों ओर बर्फ़ की सफेद चादर
कितना सुख, कितना आदर
किसकी खुशी, किसका रंग
जाड़े से होता सब बदरंग
जीव जन्तु भी छिप जाते
ले आश्रय धरती का
पर्ण विहीन होते बृक्ष
निर्जीव सा लगता सारा मधुबन
कैसा हर्ष, कैसा स्वागत
कैसा नव वर्ष का आगमन
मदहोश हो, सब हैं थिरकते
नूतन वर्ष की जै-जैकार हैं करते
अर्द्ध रात्रि से पौ फटने तक
धमाचौकड़ी और हुड़दंग
नव वर्ष का अनोखा स्वागत और रंग!!!!!!

टिप्पणी: सभी देशवासियों को नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं, भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसकी संस्कृति युगों से प्रकृति की उपासक रही है,चाहे वर्ष का प्रथम दिन हो चाहे आखिरी, खुशी नित नये रंग में पल्लवित होती है.


डॉली अग्रवाल
~नया साल - एक ख्याल ~

कुछ अंग्रेजो का नही
कुछ हिंदी का नही
हर वो लम्हा नया साल है
जहाँ जीने का सवाल है !!

किसी नन्हें की इस दुनिया में आँखे खोलना शायद नया साल है ,
किसी मरते हुऐ का ज़िन्दगी जीना शायद नया साल है ,
दर्द को भूल कर सुख का आभास शायद नया साल है ,
उदय होते सूरज का ढल जाना शायद नया साल है ,
खिल के फूल डाली से उतर जाना शायद नया साल है ,
सपनो का साकार हो जाना शायद नया साल है ,
बीते वर्ष का अंत हो जाना शायद नया साल है !

वक्त को थामना मुश्किल है
वक्त के साथ चलना मुश्किल है
कुछ पल और जी लो ज़िन्दगी के
बीते वक्त का लौटना मुश्किल है !!

टिप्पणी: में जो भी लिखती हू वो मैच नही होता चित्र से ! मेरी सोच इससे आगे जाती नही , जो लिखा बस लिख दिया ! आप सबको पढ़ कर मन की बात लिखी !


Ajai Agarwal आभा अग्रवाल
~मंगलमय नव वर्ष --
============
चैत्र शुक्ला प्रतिपदा ,
अवतरण तिथि
आदि पुरुष श्री ''राम '' की
लो आया नव वर्ष
लाव लश्कर संग ----
पतझड़ का हो रहा अंत
दिगम्बर हुई डालों पे
झाँक रहे नव द्रुम मनोहर
बांज बुरांस अशोक
गुलमोहर फूले
रक्तवसना नववधू प्रकृति
सुगन्धित समीर से आरक्त ,
खेत पहने सोना चांदी की चूनर ,
बासन्ती साड़ी पे- रंगों भरी
पिचकारी की फुलकारी
गदराई गेहूं की बाली ,
बौराई अमराई ,
पलाश दहके ,टेसू महके
कोयलिया कुहुके
नील व्योम का नीला निस्वन
कलियाँ करती जादू टोना
मानो उत्सव का आवाह्न
देख श्रृंगार ऋतुराज का
भर अंजुरी फूलों की
रति उतरी करने आरती --
मंगल कलश पराग के ढुलके
भँवरें गुनगुन गान सुनाएँ
लो नव वर्ष है आया
चैत्र शुक्ला प्रतिपदा -
धरती पे आये --
राम चन्द्र संग चारों भाई
प्रकृति भी दे रही बधाई
नव सृजन -नव कलेवर
नव उत्सव ,यही है विक्रमी संवत
अवतरण तिथि
श्री ''राम '' की
और लो नव वर्ष आया
लाव लश्कर संग आया ------
आयी जनवरी ,शीत भारी ,
ओढ़ कुहरे की रजाई ,
शिथिल जगती लेती जम्हाई
पेड़ दिगम्बर रूप धारें ,
फाल इसको कहते सारे
आलस औ तम --सूर्य हारा
हड्डियां तक कँपकपायें
पशु-पक्षी सब कसमसाये
न सृजन ना ही है उत्सव
अलाव को सब घेर बैठे।
धवल हिम की सर्द साड़ी
ज्यूँ कुँवारी विधवा हुई हो ,
सर्द अहसासों में डूबी
संगमरमर की ऋचा सी
स्वप्न बुनती जा रही हो ,
वेदनाओं की ऋचायें
स्वयं को समझा रही हो
इस समय को उत्सव बनायें
उदासियों के श्वेत घेरे
सर्द अहसासों के फेरे
डस न ले इंसान को।
मौन मन की वाटिका में ,
कुछ पुष्प बातों के बिखेरें ,
आगमन है शीत का --
हम विजन में मंगल उतारें
शरद की इस ऋतु में ,
नव वर्ष के गीत गायें
आज झूमें ,खिलखिलायें ,
उंघती सी इन छलकती प्यालियों में
प्राण अपने हम उड़ेलें
अर नया इक गीत गायें
उंघती सी इस ऋतु में
फाल की इन डालियों में
धवल हिम की चादरों संग
पच्छिम का कोई गीत गायें
हिम ढकी इन वादियों के
मरमरी कोमल बदन के
बांकपन को - भर नजर हम आज चूमे ,
एक अल्हड़ बांकपन औ
सर्दी भरा अहसास लेकर
पच्छिम का न्यू ईयर मनाएं
शरद की चांदनी की
सेज में हम गुनगुनायें।
आज हम न्यू ईयर मनाएं ॥ ----


टिप्पणी: विक्रमी संवत का नव वर्ष ,प्रकृति के नव सृजन का समय --चैत्र मास -और कलेंडर का नव वर्ष जनवरी यानी शीत से कँपकँपाती प्रकृति ,एक में प्रकृति का उत्फुल आनन्द , श्रृंगार करे हुए ऋतुराज की आरती उतारने आयी नववधू के रूप में प्रकृति और एक में धवल हिम की साडी पहने तप करती नव यौवना तपस्विनी --दोनों पावन ,दोनों निर्मल --एक काम--सृजन का प्रतीक ,एक शिव के लिए तप करती अपर्णा का प्रतीक ---मनाइये दोनों को --सहजता से --दोनों अपने स्थानों की सभ्यता के प्रतीक हैं ----आभा ॥


कुसुम शर्मा
~नववर्ष का करे अभिनन्दन ~
-------------------
नव वर्ष का करे अभिनन्दन
ख़ुशियों से भरे सबका जीवन
पुलकित हो धरती का कण कण
ऐसा हो नव वर्ष का आगमन !!

विश्व की बात निराली
छाई कही पर सूरज की लाली
कही पर चंदा की उजयाली
कही पूर्व तो कही है पश्चिम
इनकी संस्कृति भी है भिन्न भिन्न

पश्चिम की बात निराली
इनकी संस्कृति भी है प्यारी
अँधियारे से है यहाँ उजियारा
पतझड़ मे भी दीपों की यहाँ माला

करके हुड़दंग चाहे नव वर्ष मानाते है
पर जाने वाले साल की अच्छाई को अपनाते है !

यहाँ सर्द ऋतु है आई चारों ओर वर्फ है छाई !
प्रकृति ने भी इसका साथ दिया है
सफ़ेद चादर बिछा कर नववर्ष का स्वागत किया है
तभी तो जनवरी नाम दिया है !
रात के १२बजते ही सभी खुशी से नाचते है
हैपी न्यू ईयर कह कर नववर्ष मानाते है !!

पूर्व की बात निराली
यहाँ सदा सूरज की उजयाली

नव कोपल है खिल रहे
गगन और धरती मिल रहे
नव पुष्प है खिल रहे
जिसमे भँवर गुंजन कर रहे

शंख की ध्वनि छाई चारों ओर
मचा नवरात्र की पूजा पाठ का शोर
हर वर्ष हरियाली लगाते है
ऐसे पूर्व मे नववर्ष मनाते है

है चैत्र का महिना नवरात्र का आरम्भ
पूजा पाठ से करे नववर्ष का आरम्भ !!

टिप्पणी :- सभी नववर्ष का स्वागत अपने अपने तरीक़े से मनाते है पश्चिम मे नववर्ष जनवरी से शुरू होता है 
वहाँ दिसम्बर मे ३१ की रात के १२ बजते ही नववर्ष आरम्भ हो जाता है लोग नाचकर इसका स्वागत करते है 
इसे अंग्रेज़ी का नव वर्ष कहते है !!पूर्व मे नववर्ष चैत्र मास यानी कि मार्च मे अारम्भ होता है हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से ---इस समय चन्द्रमा की कलायें बढ़ती है नवरात्र का आरम्भ इसी समय होता है चारों ओर पूजा पाठ होता है और इस समय नववर्ष का आगमन शुभ माना जाता है इसलिए हिन्दू वर्ष से नववर्ष का आरम्भ चैत्र मे होता है 



प्रभा मित्तल
!!नूतन वर्षाभिनन्दन !!

सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास
इनके मेल से बना विक्रम संवत खास।
यहीं से शुरु हुए बारह महीने बरस के,
हफ्ते में दिन सात और तीस का मास।

सृष्टि की रचना का प्रथम दिवस
सूरज की पहली किरण जन्मी
यहीं से सतयुग का उदय हुआ
विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया
प्रभु राम-राज्याभिषेक इसी दिन
काल गणना का प्रारम्भ और
रात से अब दिन भी बड़ा हुआ।

​सूर्य का मेष राशि में प्रवेश
चैत्रमास का शुक्ल पक्ष और
जब तिथि हो प्रतिपदा
नवरात्रि का प्रथम दिवस
कर नए साल की शुरुआत
नवसंवत्सर ​कहलाता है।

आया वसंत हरियाली छाई
चहुँ ओर खुशहाली आई
मौसम ने भी ली अँगड़ाई
वृक्ष लताएँ फूलों से लदकर
नव पल्लव खिलने को आतुर
मंद समीरण मादक बनकर
नए साल का स्वागत करती
नटी प्रकृति भी मुसकाई !

दुनियाभर में इसी माह
काम-काज का तय होता है
नया रूप और लेखा-जोखा।
कह लो चाहे चैत्र या मार्च
कुछ तो है इसमें बात खास।

यौं तो देश-देश की बात है
अपनी संस्कृति अपना कायदा
यहाँ रात है वहाँ भोर हुई
दिन और रात का अन्तर है

जब पतझड़ की उदासी फैली
न आध्यात्मिक न वैज्ञानिक
अकारण पश्चिम की नकल में
क्यों अपने सूर्योदय को भूलें?
31 दिसम्बर आधी रात अंधेरी
सर्दी में ठिठुर-ठिठुर कर
नए साल के स्वागत में
क्यों अंग्रेजी में जश्न मनाएँ?
सोचो....
हम अपनी रीति क्यों छोड़ें?

हम भी भोर का स्वागत करें
मंगल कलश स्थापित करें
घर- घर होवें मंगलाचार
द्वार-द्वार तोरण बंदनवार।
नए-नए परिधान पहन कर
बड़ों को प्रणाम करें छोटों से
स्नेह-सिक्त हो गले मिलें
यथा योग्य अभिवादन कर
जी भर खुशियों से इठलाएँ।

अंग्रेज़ी का हो हल्ला या
शक्ति-भक्ति का वंदन
नए बरस का नया दिन है
सभी रहें प्रसन्न-वदन औ
रखें अपना उत्साहित मन।

धन-धान्य और समृद्धि लेकर
हर साल नया आता है
गु़ज़रे वक़्त का अँधेरा लेकर
जीवन में सुबह का उजाला और
मन में उत्साह नया भर जाता है
पिछला भूल कर आगे बढ़ें....
करें नव वर्ष का अभिनन्दन !!
नूतन वर्षाभिनन्दन !!
हैप्पी न्यू ईयर !!


टिप्पणी: (नव वर्ष मनाने के उत्साह में हमें अपनी संस्कृति नहीं भूलनी चाहिए।पश्चिम की सभ्यता हमारी नहीं है..वे लोग अपना कायदा अपनाते हैं तो हम भी अपनी सभ्यता भूलकर उनका अन्धानुकरण न करें।)




सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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