तस्वीर क्या बोले #तकब फरवरी 2018
इस बार आप हाइकु विधा या मुक्तक
के रूप में अपनी रचनायें रखेंगे. मुख्य आप हाइकु पर लिखेंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा
... हाइकु कैसे इस विवरण के साथ पुन: विधा पर प्रकाश डाल रहा हूँ.• भाव नए व स्वरचित।• शीर्षक अवश्य दें।• हालाँकि हाइकु कविता तीन पंक्तियों
की होती है लेकिन इस रूप में आप कम से कम ९ पंक्तिया ३-३-३ की अवश्य लिखें
• टिप्पणी द्वारा काव्य विधा
अन्य मुक्तक - तो अवश्य लिखे। रचना लिखने में आपकी सोच क्या है अवश्य लिखें।• एक ही रचना मान्य है।• रचना के अतिरिक्त कुछ न लिखें
यदि कोई बात प्रशंसा आप उसी रचना या सदस्य की रचना में करे। कुछ पूछना चाहते है तो
पूछे समाधान होने पर टिपण्णी को और रचनाओं से अलग टिप्पणी को भी हटा लिया जाएगा।• अंतिम तिथि २१ फरवरी २०१८
है है।शुभम• हाइकु सत्रह (१७) अक्षर में
लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं।• प्रथम पंक्ति में ५ अक्षर,
• दूसरी में ७ और• तीसरी में ५ अक्षर रहते हैं।• संयुक्त अक्षर को एक अक्षर
गिना जाता है, जैसे "प्रबन्ध"
में तीन अक्षर हैं - प्र -१, ब-१, न्ध-१ तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात एक
ही वाक्य को ५,७,५ के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन
पूर्ण पंक्तियाँ हों।प्रो. सत्यभूषण वर्मा जी का
कहना है"आकार की लघुता हाइकु का गुण
भी है और यही इसकी सीमा भी। अनुभूति के क्षण की अवधि एक निमिष, एक पल अथवा एक प्रश्वास भी हो सकता है। अत: अभिव्यक्ति
की सीमा उतने ही शब्दों तक है जो उस क्षण को उतार पाने के लिए आवश्यक है। हाइकु में
एक भी शब्द व्यर्थ नहीं होना चाहिए। हाइकु का प्रत्येक शब्द अपने क्रम में विशिष्ट
अर्थ का द्योतक होकर एक समन्वित प्रभाव की सृष्टि में समर्थ होता है। किसी शब्द को
उसके स्थान से च्युत कर अन्यत्र रख देने से भाव-बोध नष्ट हो जाएगा। हाइकु का प्रत्येक
शब्द एक साक्षात अनुभव है। कविता के अंतिम शब्द तक पहुँचते ही एक पूर्ण बिंब सजीव हो
उठता है।"तो कीजिये शुरआत - शुभकामनाएं
इस बार विजेता है सुश्री किरण श्रीवास्तव व श्री गोपेश दोशरा जी
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
" कई मुखौटे "
देश के नेता
बदलते मुखौटा
बहुरुपिया//
****
रंगविरंगे
कई कई चेहरे
चढ़ाए नेता//
****
बदलें रंग
गिरगिट आदमी
छलते लोग //
*****
स्वर्ण कलश
भरा हुआ है विष
किस काम का ?
*****
स्वर्ण पालिश
सिक्का अंदर खोटा
सिर्फ दिखावा//
*****
हँसें जोकर
मुखौटे लगाकर
दुख पीकर//
*****
बिकें मुखौटे
सच्चाई का चेहरा
कोई ना लेता //
*****
बानर-मुखी
ज्यों बजरंगबली
नाम के धनी //
*****
एक चेहरा
बस सिर्फ अपना
सच का शीशा //
*****
श्रेष्ठ चेहरा
भले चितकबरा
काम हो खरा //
****
संदर्भ व टिप्पणी
*****
प्रस्तुत "कई मुखौटे
"हाइकु में कई-कई चेहरों में छिपे अन्तर व वाह्य तन मन को , प्रतीकात्मक शैली के माध्यम उकेरने का भरसक प्रयास
किया है,,कुछ मुखौटों का प्रतीक
वीभत्स नेता भाव में है,कुछ मजबूरी में दुख
सहकर जोकर मुखड़े लगाते हैं और कुछ दिखावा में,,,एक हाइकु,,सच्चाई का चेहरा कोई नहीं खरीदता ,,,
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल - प्रोत्साहन हेतु
~ जीवन रंग ~
वानर वंश
आज रूप इंसान
हृदय क्षार
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सुख व दुःख
जीवन सुसज्जित
सत्य अटल
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चेहरा मौन
होंठ आलापप्रिय
साफ संदेश
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बोलती आँखे
नकाब में उद्देश्य
विषेले होंठ
-----------------------
उपहासक
जिंदगी रंगमंच
मिश्रित भाव
-----------------------
जीवन रंग
विभिन्नता से पूर्ण
हँसना रोना
टिप्पणी :
पूर्वज वानर थे – विदित है ..आज इंसान बन कर भी इंसान इंसानियत से
दूर और जीवन के रंग तो है ही ख़ुशी गम, हँसना रोना ... इन्ही से जिन्दगी हमारी सजी है – प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
किरण श्रीवास्तव
"जीविकोपार्जन"
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खुश मदारी,
वानर बेजुबान
जीव महान ।।
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खेल बाजार,
पेट का है सवाल
इंसा लाचार ।।
-----------------------
कृत दिखाते,
अजब गजब के
बहुरूपिये ।।
-----------------------
जगमगाये,
असली या नकली
जान ना पाये ।।
-----------------------
लगा मुखौटा,
हँसे और हँसाये
दर्द छिपाये ।।
टिप्पणी--
तरह-तरह की भाव-भंगिमायें,मुखौटे लोगों का मनोरंजन करती है।बच्चे-बड़े खुश
होतें हैं। पर इसके पीछे पापी पेट का ही सवाल होता है...!!!
रोहिणी शैलेन्द्र नेगी
"छलावा"
'""""""""
चेहरा खोटा,
तार-तार जीवन,
घर न लौटा ।
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लगा मुखौटा,
है दो रंग दुनिया,
देखे हमेशा ।
-----------------------
वानर-मुख,
लगाकर के चश्मा,
बैठे सम्मुख ।
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करे छलावा,
श्वेत-श्याम ये मन,
वर्ण समान ।
-----------------------
साँझ-सवेरा,
अब स्वर्णिम सा,
ये जग सारा।
टिप्पणी:
ये जीवन आशा और निराशा के
समान है जहाँ मनुष्य सब जानते-बूझते छल-कपट का सहारा लेकर अच्छाई का ढोंग करता है और
स्वयं को धोखा देता रहता है कि सब ठीक है।
Prerna Mittal
ढोंग
~~
सत्य दिखता
क्या ? सत्य ही है वह
या आडम्बर?
-----------------------
चेहरे पर
भरपूर है हँसी
अंतर रोता
-----------------------
नयन बीच
हैं घड़ियाली आँसू
मन में लड्डू
-----------------------
मुखौटा चढ़ा
नैतिक अनैतिक
बचा न कोई
-----------------------
रो रहा सच
बिलख रहा क्यों?
ऐसा विह्वल
टिप्पणी:
अपने अलग-अलग कारणों से प्रत्येक
व्यक्ति अपनी असलियत जग जाहिर नहीं करता। हम सब एक ढोंग की दुनिया में जीते हैं।
गोपेश दशोरा
शीर्षकः नकाब का सच।
...............1...............
नर या पशु,
पहचान मुश्किल,
नकाब जो है।
...............2...............
हँसी रूदन,
है साथ मुमकिन,
मुखौटा दे दो।
...............3...............
नकाब ओढ़,
इंसानियत गुम,
लाचार सब।
...............4...............
बुरी दुनिया,
नित बदले रंग,
सम्भल जाओ।
...............5...............
नकाब पोश,
नित नये इन्सान,
लगता डर।
...............6...............
हटा नकाब,
भौचक्के सब देख,
असल रंग।
...............7...............
मुस्कान दिखे,
जमाने के सम्मुख,
रोना भीतर।
टिप्पणीः
भीतर कितना ही दर्द क्यूं
ना हो चेहरे पर एक मुस्कान लिये फिरना पड़ता है। हंसी का ये नकाब आज लगभग सभी लगाये
फिरते है। कोई नहीं देखता इस मुस्कान के पीछे छिपे दर्द को। कभी-कभी तो इन नकाबों के
चलते इन्सान की अपनी असली पहचान ही गुम हो जाती है।
नैनी ग्रोवर
( कैसे )
एक पे दूजा
चेहरा हैं लगाए
जानो ये कैसे..
-----------------------
मन में छुपा
विष का है गरल
मानो ये कैसे...
-----------------------
भोली सी आँखें
जिबह मधु सी है
बचो तो कैसे..
-----------------------
होठों पे हँसी
हाथों में है खंजर
जियो तो कैसे...!!
टिप्पणी :-
आज के दौर में जीवन में कोई
ना कोई ऐसा मिल ही जाता है जिसे जानना व पहचानना अत्यंत कठिन होता है, ऐसे लोगों से सरल व्यक्तित्व का धोखा खा जाना अब
अचंभित नहीं करता . !!
आभा Ajai Agarwal
"हाइकू उत्सव"
१-
बातें हैं सच्ची
पसंद न किसी को
सच्चा मुखौटा।
२-
विदूषक है
सभी को है हंसाता
प्यारा मुखौटा।
३-
मैंने है ओढ़ा
श्वेत रंग मुखौटा
शिव को भाया।
४-
न खेलूं होली
तू नहीं हमजोली
स्वर्ण मुखौटा
५-
बादल आये
मेरे मन को भाये
बरसेंगे भी।
६-
सूरज हारे
कोहरे का प्रण ये
हारा स्वयं वो।
७-
रूठती उम्र
उपहार में देती
सर पे चाँद।
८-
हजारों रत्न
जौहरी की झोली में
मैं खाली झोली।
९-
जूड़े बालों के
हवाओं ने हैं खोले
घटा शर्मायी।
१०-
सभ्य समाज
ओढा छद्म मुखौटा
-खेलता-खेल।
११-
निःशब्द मन
मुखौटा रहा हंस
संसारी माया।
१२-
मेले में घूमें
पहन के मुखौटे
हँसते- रोते।
१३-
बसंत आया
मौसिम मतवाला
कोयल कूकी।
१४-
वन्दनीय हो
जगमगाये हिंदी
हिन्दुस्थान में।
१५-
फगुनायें क्यूँ ?
फागुन की ऋतु है
टेसू महकें।
१६-
मुख मुखौटा
हंसोड़ या रोतड़ा
मैं मेरा मन।
१७-
होली की टोली
डालों पे खट्टी कैरी
बाँट के खायें।
१८-
वाष्पित दृग
नयन में अंजन
मुखौटा हँसे।
१९-
बुजुर्गियत
लय सांसों की धीमी
मैं चांदी बाला।
२०-
नदी की धारा
मन अटका तीरे
सेतु बनाओ।
21 –
पंछी का नीड़
मेरा न कोई जहां
सपना जीना।
टिप्पणी
----हाइकु आधिकारिक रूप
से (ऑफिसियली )पहली बार छाप रही हूँ किसी समूह में ,हाइकु मुख्यत:प्रकृति के रूपों पे ही लिखे जाते हैं पर भारत
में आके कोई भी विधा किसी एक विचार से बंध के नहीं रह सकती ,शायद मैं न्याय कर पायी हूँ। ---------
कुसुम शर्मा
छल
**
दिन या रात
नेताओं को न काज
घोटाला राज !!
-----------------------
झूठा चहरा
नक़ाब का पहरा
भेद गहरा !!
-----------------------
स्वर्ण पीत
छल के संग प्रीत
कुटिल नीत !!
-----------------------
रोते हँसते
जोकर है बनते
फिर ठगते !!
टिप्पणी :-
अपने स्वार्थ की पूर्ति के
लिए नेता जनता की भावनाओं के साथ खेल कर उन्हें ठगते है
जनता उनके नक़ाब के भीतर छुपे
स्वार्थ को नहीं पहचान पाती और उनकी बातों में आ जाती है !!
प्रभा मित्तल
~ मनुज महान ~
ये हैं इंसान
या नकली चेहरे
कपि हैरान ।
-----------------------
झूठ कहते
दुःख सुख की बातें
सब छुपाते ।
-----------------------
व्याकुल मन
भयभीत स्वरूप
हँसे सम्मुख ।
-----------------------
कटु परोसे
जिह्वा निरी बावरी
राम भरोसे ।
-----------------------
छल ही छल
मुखौटों का बाज़ार
दाँव प्रबल ।
-----------------------
नयनाभिराम
आडम्बर के दाम
जीना तमाम ।
-----------------------
हँसना रोना
विधना ही लिखता
भाव सलोना ।
-----------------------
मन शैतान
मनुज है महान
कपि हैरान ।
टिप्पणी
( यहाँ हर व्यक्ति अपनी
वास्तविकता से दूर भागता है।जो है वो नहीं दिखना चाहता।होड़ सी लगी है साम दाम दंड
भेद अपनाकर आगे बढ़ने की।वानर इंसान का ये स्वरूप देखकर हैरान है कि इतने पर भी मनुष्य
महान कैसे है)
अलका गुप्ता
मुखर मेल
****
नाट्यकार सा !
जीवन रंग मंच !
शाज मुखौटा !
-----------------------
मुखर मेल !
सुख-दुखिया खेल !
नकाब पोशी !
-----------------------
धुनी रमाए !
साधु भए सियार !
छले मुखौटा !
-----------------------
मांजे चेहरे !
पहन शराफ़त !
डाले ये डाँके !
-----------------------
साजें तन क्या !
माटी घट ये चोला !
रूह..बुहारें !
-----------------------
लेने दो साँस !
आत्मा को संस्कार की !
नश्वर तन !
-----------------------
श्वास लेआत्मा !
अक्षय..अमर वो !
तन ये चोला !
टिप्पणी में एक ताँका__
रंग रंग के !
रूप-कुरूप मास्क !
शुभ-अशुभ !
घाव..घने..या हास !!
जीवंत जिएं विलास !!
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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शुक्रिया आपकी टिप्पणी के लिए !!!