Saturday, March 31, 2018

तस्वीर क्या बोले #तकब मार्च-2018 (२/१८)


तस्वीर क्या बोले #तकब मार्च-2018 (२/१८)
मित्रों आप अपनी रचना इस तस्वीर पर आधारित किसी भी विधा में लिख सकते है। देखते है आपकी सीच कहाँ तक ले जातो। हाँ जो आप लिख रहे है (यदि काव्य के किसी नियम के द्वारा) उसका जिक्र जरूर करे। 
#तकब२/१८ शर्त व नियम 
१ भाव नए व स्वरचित।
२ शीर्षक अवश्य दें। 
३ कम से कम १० पंक्तियां अवश्य हों।
४ टिप्पणी द्वारा काव्य विधा यदि कोई है तो अवश्य लिखे। रचना लिखने में आपकी सोच क्या है अवश्य लिखें। 
५ एक ही रचना मान्य है।
६ रचना के अतिरिक्त कुछ न लिखें यदि कोई बात प्रशंसा आप उसी रचना या सदस्य की रचना में करे। कुछ पूछना चाहते है तो पूछे समाधान होने पर टिपण्णी को और रचनाओं से अलग टिप्पणी को भी हटा लिया जाएगा।
७ अंतिम तिथि २२ मार्च २०१८ है।

इस प्रतियोगिता के विजेता है सुश्री अलका गुप्ता 

रंगीला मन

आसमान से चुरा के रंग,
मन को रंग लिया,
आंखों में बसा के सपने,
खेली होली मैंने पिया...

दुनियाँ ने खेली होली,
पिचकारी और गुलाल से,
मेरे मन में खिले,
हज़ारों-हज़ार गुलाब थे
तेरी सांसों की महक से,
खुद को महका दिया..

आंखों में बसा के....

भुला दो पुरानी बातें,
माना बीत गईं वो रातें,
लौट के आते नहीं,
माना पल जो चले जाते,
उम्र भर की उस जलन को,
इस बार मिटा दिया..!


टिप्पणी:- जो मन मे आया लिख दिया, जीवन मे एक समय ऐसा आता है जब इंसान को सब कुछ भुला के जीवन जीना पड़ता है तो क्यों ना प्यार और खुशी से जी लिया जाए ।


भागती चली उम्र....

बाबुल की उंगली
मां का आंचल छोड़
एक पिया तेरे देश
दहलीज बदली मै
भी बदली
मन बसा भूल चली
बचपन की हर बात
बेगानी
कर्तव्यों की रीत
निभाते कर बैठी
तुम संग प्रीत सजन।

टिप्पणी : अपनी तो हर बात निराली सब कहते हैं कि मै और तुम से आगे क्यों नहीं बढ़ती मेरा मानना है कि शुरुआत तो वही से है


 प्रभु की लीला
*************।हाइकु विधा (चोका )
५ ७ ५ ७ ५ ७ ५ ७ ५ ७ ५ ७७- वर्ण का ऊपर से नीचे तुकांत ,एक भाव बिम्ब का प्रयोग करते हुए सृजित करना है,,,

.....
ऊँ विश्व व्यापी
.....
ऊँ नमामि शिवाय
.....
प्रभु की लीला 
---
साकार,निराकार 
---
अपरंपार 
---
मानव को जीवन 
---
अनुपमेय 
---
प्रभु का है सृजन 
---
ईश्वर अंश
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जीव है अविनाशी 
---
सत चैतन्य 
---
प्रेम,आंनद राशी
---
अमूर्त रूप 
---
मूर्तियों में साकार
---
प्रकृति राम
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पक्षियों के स्वर में 
---
बोलते राम
---
कवि के नैयनों में 
---
झाँकते श्याम 
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आदि अनादि
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ना जाने मुनि ज्ञानी 
---
अनंत राम
---
नित्य जीवन राम
---
कण -कण में राम //
***********************
***********************
ब्रह्माणी वीणा 
टिप्पणी : मैंने इस चित्र को आध्यात्मिक रूप मे लिया है ऊँ की लहरें सम्पूर्ण भव सागर में ध्वनितं है सब ईश्वर की लीला व्याप्त है


किरण श्रीवास्तव "ये दिल"
====================

ये दिल कुछ कहता है
सुरों में बहता है...!!

है चक्षु हीन
नहीं है जिह्वा,
पर रोता और 
हंसता है,
कभी फिसलता
कभी सम्भलता
आह ये भरता 
रहता है..!!

ये दिल कुछ कहता है
सुरों में बहता है...!!

नफरत इसे
नहीं मालूम,
कोमल है 
बेहद मासूम,
फूल प्यार का
खिल जाता
ये बाग-बाग 
हो जाता है...!!

ये दिल कुछ कहता है
सुरों में बहता है....!!

टिप्पणी- दिल आह,तड़प ,वेदना सब सहन करता है। हंसता और रोता है...पर चाहत पूर्ण होने पर दिलमें तरंगे उठने लगती है मन मयूर नाचने लगता है....।


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल प्रोत्साहन हेतु

~
कौन आया ~

द्रुत गति से ये तरंगे
नीलमणि की ले चमक 
कौंधती है मन के भीतर 
पूछती हर सांस सबसे
आज द्वारे कौन आया 

हर लहर करती है इंगित
जोग पर संजोग भारी
मन की वीणा तार बांधे
शोर ने एक मौन गाया 
आज द्वारे कौन आया।

कुछ ठहरा, कुछ अवश सा
बावरा मन अधखिला सा
कुछ सजग सपने सजीले 
आँख में भर कौन लाया 
आज द्वारे कौन आया

अहसासों का लेकर यौवन 
समर्पण की बन पहचान 
सुमन मन जीवन सुगन्धित 
बन गई अब मेरी पहचान 
आज द्वारे मेरा मीत आया

-
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

टिप्पणी:
कुछ तरंगे अनायास ही टकरा जाती है मन के किवाड़ों से। संकुचित मन प्रश्न पूछता है कि ये कौन आया - उत्तर एक ही मिलता है मीत आया।


Ajai Agarwal प्रोत्साहन हेतु 
मेरा क्षितिज आसमानी 
==============

प्रेम का क्षितिज -
नील कमल सा ,

दूर सागर में आसमान का गोपन - 
प्रेम की दुपहरी। 
अलसाये सपनों का संसार -
पलकों से पलकों का उन्मीलन
जग जाना आसमानी सपनों का -
नयनों की नीली झीलों में। 

झील जो है सागर की बेटी -
न कोई ओर न छोर ,
प्रीत रंग में रंगा सागर -
क्षितिज ने ओढ़ी चुनर आसमानी। 

क्षितिज दोपहर का- 
मेरा अपना ,
क्या कभी किसी को मिला ?
निर्मल हृदय आसमानी -झील का पानी। 
पर तुम हो वहां -
जहां आसमान है ,पानी है ,
लहरें हैं प्रीत की ,
निर्माल्य अन्तस् का। 
यादों की झीलों में -
मेरा क्षितिज
बादलों का घर भी है-

जिसकी छत है हल्की नीली आसमानी। 
अनंत विस्तार को निहारते -
आँखें कब नील जलधि हो गयीं

शब्द कब हुए आसमानी ?

बादल बरसे तो पता चला। 
अधरों की रसवंती -
जो बढ़ाती है प्यास झील की
झील के पानी की ही है देन -

अधरों की चमक - यादें आसमानी। 
जलधि क्षितिज का मिलन- 

कहानी है लौट आने की ,

प्यास बनाये रखते हैं -

आसमानों पे बादल। 

अंबुध -झील- आसमान - 
अनंत विस्तार -देखते चक्षु ,

कुछ और फ़ैल गए हैं - 
झीलों का मौन लेकर। 

माँ की लोरी सी ममता- 

मौन प्रार्थना पिता की

अन्तस् का मौन -

पानी सा प्यार। 

चलो गुनगुनाएं -

क्षितिज को गान सुनायें
प्रीत की प्रतिध्वनि जगाकर -

लहर सागर में समायी। 

क्षितिज के उसपार तू है -

मैं लहर- विकल, मिलन को आतुर ,
झीलों की गहराई में-

सागर की सौदाई में -
लिए प्यास मैं खड़ी यहां -

तू मेरे अश्रु कणों का हास -
क्षितिज तू ही मेरा प्यार -
तुझमें ही मेरा संसार- 
तृप्ति की हो क्यूँ चाह मुझको -
प्यास ही जब प्रीत मेरी -
मैं रंगी रंग पारावार।।आभा।।----

टिप्पणी ---सोच को विस्तार देने की मांग थी ,प्रयत्न तो किया है पर सोच को समेटने का प्रयत्न अधिक कठिन रहा -सोच ही तो है फैलती ही जाती है 


 #मेरी #थाती "
-------
अपने जाने से पहले
सौंप जाऊँगी तुम्हें
अपनी चन्द डायरियाँ.....

शायद वक़्त की मार से
कुछ पन्ने पीले पड़ गए हों.....
कुछ की जिल्दें भी
उखड़ने लगी हों.....
कुछ के किनारे थोड़े से
तुड़-मुड़ गए हों.....

कुछ पन्नों की स्याही 
मिट कर फ़ैल गई हो
उन आँसुओं के गंगाजल से
जो बहाये थे तुम्हारे लिए ही
तुमसे किये अधूरे झगडों पर.....

हो सकता है 
कुछ पन्नों को
दीमक ने चाट भी लिया हो.....

पर मैं जानती हूँ.....
तुम पढ़ लोगी उन्हें
और जड़ दोगे उन अक्षरों को
अपने शब्द और भाव देकर .....

अबकी मेरे शब्द 
बह के नदी सम
तुम्हारे शब्दों संग
संगम हो जायेंगे.....!!! 

टिप्पणी ___अभी हाल में मेज पर रखी डायरियाँ देखी अपनी अजीज की!..... बस मन में जो आया लिख दिया ...... मात्र उपस्थित दर्ज की है 


दिल बनाम दिमाग 
**************

दिल और दिमाग का बड़ा ही अद्भुत नाता।
एक दूसरे के बिना पर काम नहीं चल पाता।

एक रोकता-सोचता, दूसरा बेपरवाह ज़िद करता।
तभी पहल होती, वरना जीवन यूँही तमाम होता।

दिल भावुक, तो दिमाग तर्क ढूँढता है।
दिमाग विचारशील, तो दिल उतावला है।

साकार हों सारे सपने, दिल की यही चाहत।
दिमाग खोलता आँखें, दिखाता असलियत।

दिल दुस्साहसी, उठाने को तैयार हर ख़तरा।
दिमाग डरपोक, गणना के झंझटों में पड़ा।

करूँगा वही, जो है मेरा प्रेम व अभिलाषा।
बनाऊँगा अपना शौक ही, अपनी जीविका।

दिल है घोड़ा, तो दिमाग उसकी लगाम।
कहता, क्या है तुम्हारा बैक अप प्लान?

दिल की धड़कनों से जीवन जुड़ा,
पर क्या उसको सचमुच समझा।

दिमाग काम न करे, तो भी जीना जैसे-तैसे।
अगर दिल भूले धड़कना, तो जियोगे कैसे?

दिमाग आवश्यकता एक अच्छे जीवन की,
दिल एक मांसपिंड, ज़रूरत साँसें चलने की।

दिल की दुहाई, दिमाग की लड़ाई।
वाह! ऊपर वाले क्या दुनिया बनाई?

टिप्पणी: इस चित्र में हृदय अपनी तरंगों द्वारा दूर-दूर तक पहुँचने की कोशिश कर रहा है लेकिन हमारा मस्तिष्क हमेशा उसकी उड़ान पर लगाम लगाता है। दिल और दिमाग का समन्वय ही मनुष्य को मंज़िल तक पहुँचा सकता है।


जब तरंग प्यार की मचल गई 
**********************

लहर लहर फिजाँ ये फिसल गई ।
जब तरंग प्यार की मचल गई ॥

आसमां में ख्वाब उड़ने लगे ।
जोश पंखों में भरने लगे ।
लांघके दायरे..निकल गई ।
जब तरंग प्यार की मचल गई ॥

अजनबी राहें बहकने लगे 
इक अगन अंग दहकने लगे ।
अनुबंध रिति सब पिघल गई ।
जब तरंग प्यार की मचल गई ॥

इबारतें नई लिखने लगे ।
रंग - रंग ..में..रंगने लगे ।
हिदायतें अंकुश विफल गईं ।
जब तरंग प्यार की मचल गई ॥

प्रान प्रान कनु प्रेरणा पगे।
श्वांस श्वांस महकने लगे ।
अनंग चिर शाश्वत सुफल गई
जब तरंग प्यार की मचल गई ॥

_____________
अलका गुप्ता__

नोट :--ईश्वर का शाश्वत और अनमोल इशारा है प्रेम जिसके वशीभूत ही यह समस्त संसार गतिमान है ।


संघर्ष

वो कौन है
जो शांत तपस्वी को
झकझोर कर 
विचलित कर देता है
एक उन्माद सा जगा देता है
और फिर
रौद्र रूप धर
विनाश करने 
चल पड़ती हैं सागर से लहरें
अपनी तृष्णा मिटाने
तोड़ देती हैं सारी मर्यादाएं
लील लेती हैं कई जिंदगियां
छीन लेती हैं मांग का सिंदूर
उठा देती हैं
सर से पिता का हाथ
बीरान हो जाती हैं बस्तियां
और बदले में
उंडेल देती हैं
कौड़ी, शंख, सीपियां औ
मोती माणिक
पिघल जाता है अहम्
देख जन का रुदन
क्रोध की ज्वाला 
सिथिल हो जाती हैं
जब टकराती हैं
तट की शिलाओं से
जो बिचलित नहीं होतीं
न प्रतिकार ही करतीं
बस !
नत मस्तक होकर
लौट पड़ती हैं
गहरे सागर की ओर
जो अभी भी
पूर्ववत शांत है
जिंदगी की तरह !!

नोट- लहरों का और जिंदगी का स्वभाव एक जैसा है, रूठना, मनाना, संघर्ष और फिर शांति।


ॐ हरि ॐ हरि ॐ 
****************

ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ 
जप लो ॐ हरि ॐ हरि ॐ 
इसी नाम की मीरा दिवानी 
विष का पी गई प्याला कह के 
ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ !!

जली जब लंका रावण की 
बची थी कुटिया विभीषण की 
इसी नाम के जाप से 
ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ 
जप लो ॐ हरि ॐ हरि ॐ !!

हिरण्यकश्प ने जाल बिछाया 
भक्त प्रह्लाद को मारने का 
होलिका भी जल कर मर गई 
बच गया वह कह ॐ हरि ॐ 
ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ!!

तारा है इसने गुह राज को 
द्रोपदी और सबरी को 
दिल से जपे जो इस नाम को 
भव सागर पार वो हो जाए 
जप लो तुम भी ॐ नाम को 
जन्म मरण से बचना हो 
कह लो तुम भी ॐ नाम को 
प्रभु से गर जो मिलना हो 
ॐ हरि ॐ हरि ॐ हरि ॐ 
जप लो ॐ हरि ॐ हरि ॐ !!

टिप्पणी :- ॐ नाम मे इतनी शक्ति है कि जो मनुष्य इस नाम का जाप करता है वह बड़ी से बड़ी मुश्किलों को आसानी से पार कर लेता है और अंत मे जन्म मरण के चक्र से मुक्ति पा लेता है !!


 दिलएक पहेली

दिल की बात समझ पाना,
हर एक के बस की बात नहीं।
पानी पर आखर लिख पाना,
कोई बच्चों की बात नहीं।
बच्चों के दिल तो बच्चों से,
कच्ची मिट्टी से होते है,
बस प्यार से देखे कोई तो,
दिल हार उसी पर देते है।
जैसे वो थोड़े बड़े हुए,
दिल को वैसे परवाज मिली,
अब खेल खिलौने दूर हुए,
दिल से दिल की तकरार हुई।
दिल में चाहत अब उडने की,
सपनों को पूरा करने की,
कोई ना बेहतर खुद से है,
इस बात को साबित करने की।
वृद्धावस्था है अब आई,
दिल फिर से अब बच्चा है।
जिनके लिए सब कुछ छोड़ा,
उनसे ही रिश्ता कच्चा है।
सोने जैसा सबका दिल,
कोई ना जाने किसका खरा।
दिल तो बदले रंग हमेशा,
बचपन, यौवन या हो जरा।
टिप्पणीः मनुष्य के शरीर में दिल एक ऐसी पहेली है जिसे समझ पाना आज तक किसी के बस में नहीं। एक ही व्यक्ति का दिल बचपन, युवावस्था और वृद्धावस्था तीनों में अलग-अलग तरिकों से व्यवहार करता है।



प्रभा मित्तल 
हृदय कोष
-------------
वक्त की मचलती लहरों पर 
डूबती उतराती ये स्मृतियाँ
हृदय की धड़कनों में ग़म 
सँजोती पारदर्शी सिसकियाँ
रिसते हुए रिश्तों को खेती हुई,
हाथों में पतवार थामें कश्तियाँ।
मन से मन तक दौड़ लगाती
गुनगुनाते वक्त की बेरहमियाँ ।

कभी बादलों का हुजूम लेकर
जलधि के उर पर नृत्य करती
इठलाती सी ये बिजलियाँ.. । 
नील गगन से झाँका करतीं
तारों की चमकती वल्लरियाँ।
कभी प्रेम में सराबोर हो 
मन से मन के तार मिलाती
अवनी से अम्बर तक फैली
हँसती गाती विगत कहानियाँ।

यही हृदय है,हृदय कोष है
पर नहीं हृदय का पारावार।
इसी हृदय एक में समाया है
सुख दुःख का पूरा संसार।
एक नहीं हो मानव मन तो
पूरा जीवन है निःस्सार।।


(
एक हृदय है इसी पर सारे जीवन का भार समाया है..सम्पूर्ण संसार का सुख-दुःख भी यही संजाोए हुए है,इसके बिना जीवन कहाँ है....कहीं नहीं,कभी नहीं।)

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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