Friday, March 4, 2022

तकब 04-22 , रचनाएँ परिणाम व समीक्षा


तकब 03 एवं 04 की डिजिटल पुस्तक से मेरी बात 
प्रतिबिम्ब की बात 
नमस्कार मित्रो!  तकब 03 एवं 04 के विजेताओं को हार्दिक बधाई! सभी प्रतिभागियों को शुभकामनाएं. तस्वीर क्या बोले समूह का उद्देश्य जहाँ हिन्दी से प्रेम व उसका प्रचार प्रसार करना है उसके साथ ही एक उत्कृष्ट सृजन करना व लेखक की प्रतिभा को निखारना भी है.  
कम प्रविष्टियों के साथ लेखन में गिरावट चिंताजनक विषय है. यह चिंता हमारे निर्णायक मंडल ने जताई है. मेरा सब से निवेदन रहेगा कि जब आप रचना लिखें उसे कम से कम दो – चार जरुर पढ़े. केवल लिखना है यह खाना पूर्ति न हो इसका विचार अवश्य करें. भावों के साथ शब्दकोश पर अपने लगातार वृद्धि करते रहिये. आपकी रचना पाठक को मजबूर करे पढने हेतु यह विश्वास स्वयं में पैदा करना होगा. प्रतियोगिता है तो हम उसमे सुधार नहीं कर सकते, हाँ समीक्षा के द्वारा अगर उसमे कोई राय सुझाव दिया गया है तो उसमें अवश्य कार्य करें.  
इस वर्ष से हमने सदस्यों द्वारा समीक्षा करने का जो निर्णय लिया है उसमे एक मजबूरी भी थी लेकिन एक उद्देश्य भी कि आप अन्य रचनाकारों की रचनाओं को पढ़ने और समझने  का प्रयास करें. कुछ गलत लगे तो उसे भी इंगित करें. केवल तारीफ समीक्षा नहीं होती उसमे आलोचना का भी स्थान होता है. सभी समीक्षाकार सदस्यों को भी शुभकामनायें.  
अब हम निर्णय आनलाइन सुनाते है. यह प्रक्रिया इसलिए जोड़ी गई है कि आप हमारे निर्णायक मंडल के सदस्यों को भी सुने. आगे हम प्रयास करेंगे की रचनाओ पर चर्चा भी करे और एक यादो सदस्यों को काव्य पाठ का मौका भी दे. लेकिन आप समीक्षा समूह में जरुर पढ़े.  निर्णायक मंडल के सभी आदरणीय सदस्यों का आभार करते हुए पुन: सभी सदस्यों व रचनाकारों को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं. सृजनता बनी रहे.  

शुभम प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

तकब 04 - 22 प्रतियोगिता

( इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान श्री शिव मोहन जी एवं सुश्री यामा शर्मा जी ने साँझा किया है  )


मन मस्तिष्क
(विधा - ग़ज़ल)
अंशी कमल

सुनूँ दिल की या मति की मैं, समझ में कुछ न आता है।
इधर मति खींचती मुझको, उधर दिल ये डुलाता है।

कभी मति की अगर सुन लूँ, तो पछतावा मिले मुझको,
कभी जो मान लूँ दिल की, बहुत यह फिर रुलाता है।

सदा मति को रखूँ वश में, लगाऊँ दिल पे मैं अंकुश,
चलूँ जब राह मैं अपनी, तो अरि भी हार जाता है।

सुने दिल की सदा ही जो, करे हर काम मति से ही,
उसीके सामने तो फिर, जमाना सर झुकाता है।

रहें अनुकूल जब दोनों, तभी हो दूर हर मुश्किल,
अगर विपरीत हों दोनों, न इनसां चैन पाता है।

टिप्पणी: हमें मन व मस्तिष्क में सदैव सन्तुलन बनाये रखना चाहिए। किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए हमें मन में धैर्यपूर्वक विचार करके मस्तिष्क की सहायता से कार्य करना चाहिए।


मन मस्तिष्क में
(प्रोत्साहन हेतु )
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

आकुलता - व्याकुलता संग
असंगतियाँ – विसंगतियाँ खेलती है
भाग्य – दुर्भाग्य, समय - असमय
परिस्थितियाँ पल - पल बदलती हैं
हमारे मन मस्तिष्क के केंद्र में ही
बुद्धि और चित्त विराजते हैं
चेतना, ज्ञान, अनुभव, व्यक्तित्व से
जीवन अपना सवारते है

हित – अनहित, हार – जीत
पाप – पुण्य, स्वार्थ – निस्वार्थ
प्रेम – विरह. आदर – निरादर
अपना – पराया, कर्म – धर्म
लोभ – दान, सत्य – असत्य
भला - बुरा, गुण – अवगुण
सब बैठकर मन और मस्तिष्क में
हमें इन्सान या जानवर बनाते है

यही उद्गम है यही विलय हैं
यहीं बसता प्राण हमारे भावों का
यहीं द्वंद्ध होता है
इच्छा और इच्छा शक्ति का
संकल्प और विचारो का
मंजिल और हौसलों का
वेदना और संवेदनाओं का
हाँ यहीं मन - मस्तिष्क में
उत्तर होता है असंख्य प्रश्नों का

टिप्पणी: मस्तिष्क में ही मन विराजता है जानता हूँ कोई निर्णय से पहले दोनों कितना लड़ते हैं. बस उन्हीं भावों को प्रस्तुत किया है.







मन मस्तिष्क - कलपुर्जा हुआ
(मुक्तक)
अलका गुप्ता 'भारती'

मस्तिष्क हावी मन बहे,
तकनीक कलपुर्जा हुआ।
जड़ भावनाऐं शून्य सी ,
दोयम सभी फर्जी छुआ।
जब युद्ध छेड़े मनुजता ,
सब रंग बिखरेंगे तभी_
संस्कार जागें कर्म के,
जुड़ तार मानव हर दुआ॥
भूला सरल मन आदमी ,
छल बल प्रभावी रंग हैं।
हैं चक्र सारे घूमते ,
भग्नावशेषित ढंग हैं।
संसार आह्लादित हुआ ,
सब व्यर्थ भोगे तामसी_
सत्संग से जुड़ भावना,
शुभ ओम कारी संग है ॥

टिप्पणी: आज मानव कोमल भावनाओं को छोड़ कर हर दृष्टि कोण में टैक्निकल होता जा रहा है।


मन और मति का द्वन्द
शिव मोहन


हर सिक्के के दो पहलू हैं, हर पहलू हैं प्यारे।
जिस भावों से देखो उनको ,वैसे लगते सारे।
मन भावों में बहता है ,तो मति बोले रुक प्यारे।
सोच समझ कर आगे बढ़ तू ,मन से ना तू हारे।
मन ना समझता तर्कों को ,बस दिल की सुनता हरदम।
मति बोले तू भावुक ना हो , रख हर पहलू सर्वप्रथम।
दोनों ही सच बोले हैं , बस कहने का है अन्तर।
दोनों की सुन निर्णय ले तू , मानवता का मन्तर।
ईश्वर ने दी शक्ति है बस मानुष को तो ऐसी।
मन मति को संतुलित करे जो, वो कहलाये विजयी।
हर सिक्के के दो पहलू हैं, हर पहलू हैं प्यारे।
जिस भावों से देखो उनको ,वैसे लगते सारे।

टिप्पणी: मनुष्य हमेशा मन और मस्तिष्क के द्वन्द में फंसा रहता है। दोनों अपनी अपनी ओर खींचते हैं,अपना कहा मानने को बोलते हैं। ईश्वर ने सिर्फ मनुष्य को ही संतुलन की शक्ति दी है। जिसने मन और मस्तिष्क में संतुलन बना लिया वो जितेन्द्रिय और विजयी कहलाता है।


मन मस्तिष्क
(द्वंद्व - हाइकु विधा)
किरण श्रीवास्तव

दिल दिमाग
सोचता आगे पीछे
आंखें है मीचे...!
मनअधीर
संसार है स्वप्निल
सोचे किंचित...!!
मगजमारी
किंकर्तव्यविमूढ़
मन भ्रमित...!!!
सही गलत
दिमाग समझाये
राहें दिखाये...!!!!
भाव-विभाव
संतुलन बनाये
खुशियाँ पाये....!!!!!

टिप्पणी: मन और मस्तिष्क दोनों एक सिक्के के दो पहलू है! दोनों के संतुलन से ही जीवन सुचारू रुप से चलता है...!



मन मस्तिष्क
यामा शर्मा

 
मेरे मन मस्तिष्क सरीखी समता को
तुम बाँध सको तो बाँध ही लो
जन्म-जन्म का पथ का राही
तुम जान सको तो जान ही लो
यह पथ तो एकाकी पथ है
ईश्वर की सुन्दर कृति है
शब्दों का कारीगर अनुपम
भावों से सुन्दर अभिव्यक्ति
यह विचार विवेचन का स्वर्णिम रथ है
तुम मान सको तो मान ही लो
मेरे मन मस्तिष्क सरीखी समता को
तुम बाँध सको तो बाँध ही लो।।।


टिप्पणी : यह रचना मनुष्य के जीवन पर लिखी गई है जो जन्म से अन्त तक अकेले ही संघर्षों से भरा है । साँसों के साथ ही शब्दों की अभिव्यक्ति हो पाती है जिसको मनुष्य मन मस्तिष्क में उतार कर भावों के साथ अभिव्यक्त करता है।


मन-मेधा
प्रभा मित्तल (प्रोत्साहन हेतु)

दिल का क्या है
कभी विशालमना
कभी सकुचाया थोड़ा
कभी रोया जी भर
कभी हर्षाया थोड़ा।
कभी बिंध गया
कभी बेंधा गया
कभी धीर धरा
कभी सही पीड़ा,
यौं रिश्तों के बंधन में है
मन का सहयोग बड़ा।
कभी क्लांत तन ,
कभी विचलित मन,
कभी जीता विवेक
तो कभी हारा मन।
जीवन के दुर्गम-पथ पर
प्रायः मन और मेधा में
यौं रहता है द्वंद छिड़ा।
मन तो है आत्मा से जुड़ा,
मस्तिष्क देह का अंग,
करता है तर्क-वितर्क बड़ा,
पथ से भटक न जाए मन,
सो सामंजस्य बिठाने को
सदा प्रहरी बन रहता खड़ा।।

टिप्पणी: प्रायः भावुक हृदय हमें सही-ग़लत का भेद नहीं समझा पाता,अतः किसी भी निर्णय तक पहुँचने के लिए मन की भावनाओं और मस्तिष्क के तर्क में सामंजस्य और ठहराव जरूरी होता है।




परिणाम
प्रभा मित्तल
नमस्कार, प्रिय मित्रगण !
पिछले लगभग दो वर्षों से देश में फैली महामारी के कारण बाहर जाना ,किसी से मिलना प्रतिबंधित सा ही था।मन डरा डरा रहता था।अब वायरस के हलके पड़ जाने से कुछ निश्चिंतता हुई है....फिर भी मेरा आग्रह है कि आप अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही न बरतें,सैनिटाइजर और मास्क का प्रयोग अवश्य करते रहें।हाँ ये सच है कि मन तो हर बंधन से स्वतंत्र होना चाहता है लेकिन मस्तिष्क बराबर सावधान करता है,....यही तो है मन और मस्तिष्क का जोड़।
तकब 4/22 का चित्र भी 'मन मस्तिष्क' ही दिया गया था।हालांकि यह विषय बड़ा वृहद् था फिर भी आप सभी प्रतिभागियों ने अपने - अपने विचार रखे।हमें कुल सात रचनाएँ मिली हैं,जिनमें से दो निर्णायक मण्डल से हैं। अतः कुल पाँच रचनाओं में से हमें उत्कृष्ट रचना चुननी है। निर्णायकों से प्रतिभागियों को मिले वोटों की संख्या इस प्रकार है........
प्रथम स्थान के लिए मिले वोट ....
1.अलका गुप्ता 'भारती'......1
2.शिव मोहन...........2
3.यामा शर्मा..........2
--------------------------------
द्वितीय स्थान के लिए मिले वोट......
1.अंशी कमल .......1
2.यामा शर्मा ........2
3.शिव मोहन........2
------------------------------
इस प्रकार वोटों की संख्या के आधार पर सुश्री यामा शर्मा अपनी श्रेष्ठ रचना 'मन मस्तिष्क' और शिव मोहन जी अपनी श्रेष्ठ रचना 'मन और मति का द्वंद' की प्रस्तुति के साथ चार-चार वोट लेकर समान रूप से प्रथम स्थान प्राप्त कर विजयी रहे।मेरे व निर्णायक मण्डल की ओर से सुश्री यामा शर्मा और शिव मोहन जी को हार्दिक बधाई व अनन्त शुभकामनाएँ।

श्री शिव मोहन

सुश्री यामा शर्मा




समीक्षा

प्रभा मित्तल
प्रिय मित्रों, 

कुछ स्वास्थ्य कारणों से मैं समीक्षा नहीं लिख पा रही थी, इसीलिए तकब के नियमों में कुछ बदलाव किया गया, ताकि प्रतिभागी भी समीक्षा लिखने में अपना योगदान दे सकें। लेकिन इस बार ये मेरे ही हिस्से में आ गई।मैं इतनी योग्य तो नहीं फिर भी प्रयास करूँगी कि आप सबकी रचनाओं के साथ न्याय कर सकूँ।आपके सृजन में नीहित भावनाओं को समझने में मैं कहाँ तक पहुँच पायी हूँ...ये तो आप रचनाकार ही बता सकेंगे...कहीं कुछ कमी रही हो तो मुझे जरूर बताइएगा ताकि मैं अपने लेखन में सुधार कर सकूँ।
तो लीजिए प्रस्तुत है आप सबकी रचनाओं की समीक्षा-----


1.यामा शर्मा ---- 'मन मस्तिष्क'----!
अपनी कविता 'मन और मस्तिष्क' में यामा जी के कहने का आशय है कि..... यह सत्य है कि मनुष्य का सारा जीवन संघर्ष करते हुए ही व्यतीत होता है।लेकिन यह भी सच है कि यह मनुष्य- जीवन तो ईश्वर की सबसे सुन्दर रचना है,जिसमें निहित मन और मस्तिष्क उसका दिया अनुपम उपहार है।जिससे मनुष्य सोच-विचार कर भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता रखता है।यदि मनुष्य मन और मस्तिष्क में उठने वाली भावनाओं और विचारों के बवंडर में साम्य बैठाकर इस सच्चाई को समझ ले कि जीवन-पथ के इस संघर्ष में कोई उसके साथ न होगा और अपने सारे दायित्वों को पूरा करते हुए,इस भवसागर से उसे अकेले ही पार उतरना है।तो सचमुच ही वह बड़ी सरलता से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में सफल हो सकेगा।चित्र पर सुन्दर भावाभिव्यक्ति। मनमोहक कविता है--'मन मस्तिष्क'।उत्कृष्ट सृजन के लिए पुनः बधाई यामा जी,शुभकामनाएँ !!

2. शिव मोहन --- 'मन और मति का द्वंद्व' ---!
बहुत ही सुन्दर और सरल शब्दों में मन और मस्तिष्क की महत्ता को समझाया है शिव मोहन जी ने अपनी कविता...'मन और मति का द्वंद्व' में.....वे कहते हैं...मन और मस्तिष्क एक दूसरे के पूरक ही हैं।मन अगर भावनाओं में बहकर कुछ करना चाहता है तो मस्तिष्क उसे नियंत्रित करता है।मन तो अपने में ही मगन रहता है वह तो कोई तर्क समझने को तैयार नहीं,जबकि मस्तिष्क उसे पुनः पुनः अपनी बात पर विचार करने को कहता है।ईश्वर ने केवल मनुष्य को ही मन-मस्तिष्क में उठते दोहरे विचारों में संतुलन रखने की शक्ति दी है...जो अपनी भावनाओं को संतुलित कर उन पर विजय पा सके, वही सच्चे अर्थों में जितेन्द्रिय मनुष्य है। बड़ी ही सरलता से अपनी बात रखी है शिव मोहन जी ने।विजयी होने के लिए बहुत बधाई आपको हार्दिक शुभकामनाएँ !!


3. अंशी कमल --- 'ग़ज़ल '---!
दुविधा में हैं अंशी कमल जी..मन और मस्तिष्क में किसकी सुनें यही निर्णय नहीं कर पा रही...ग़ज़ल के द्वारा अपने मन के भाव व्यक्त कर रही हैं... मन और मस्तिष्क में किसकी सुनूँ किसकी नहीं यही निर्णय नहीं कर पा रही..बुद्धि से काम लें तो कई बार मन को पछताना भी पड़ता है,पर हर बार मन सही ही हो ये भी जरूरी नहीं।इसलिए मन और बुद्धि में संतुलन बना कर रखा जाए,यानी समझदारी से काम लिया जाए तो शत्रु भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।मन और मस्तिष्क के द्वारा धैर्यपूर्वक विचार करके कठिन से कठिन कार्य में भी सफलता प्राप्त की जा सकती है।अतः केवल भावनाओं में न बहें अपितु किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले उस पर मनन अवश्य करें।सही कहा अंशी जी ।ग़ज़ल के द्वारा चित्र को चरितार्थ करने की एक अच्छी कोशिश।हार्दिक शुभकामनाएँ !!


4. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी ---- 'मन मस्तिष्क में '--- ! (प्रोत्साहन हेतु)
अपनी प्रस्तुति ...मन मस्तिष्क में...प्रतिबिम्ब जी का कहना है कि मन तो मस्तिष्क से ही जुड़ा है वह मस्तिष्क में ही अन्तर्निहित है।किसी भी निर्णय तक पहुँचने के लिए दोनों परस्पर तर्क-वितर्क करते हैं। जीवन में समय के साथ-साथ परिस्थितियाँ भी बदलती रहती हैं, अतः सुख-दुःख,अनुकूल-प्रतिकूल समय में उन परिस्थितियों का सामना कैसे किया जाए... उस उचित निर्णय तक पहुँचने के लिए मन और बुद्धि में विचार - विमर्श चलता रहता है...यही समय है जब मनुष्य परिस्थितियों का दास बन कर हौसला हार जाता है या प्रतिकूल परिस्थिति में भी विवेक से काम ले अपनी कमज़ोरियों पर विजय प्राप्त कर लेता है। इसी चित्त और चेतना में विचार उपजते भी हैं और यहीं विलय भी होते हैं और कभी समझौते के रूप में निकल कर सामने आते हैं।कहने का तात्पर्य यह है कि यहीं प्रश्न बनते हैं तो उनका समाधान भी हमें यहीं मिलता है।अतः मन और मस्तिष्क को एक-दूसरे से पृथक करके नहीं देखा जा सकता ये दोनों तो एक-दूसरे के पूरक ही हैं।
अनुपम प्रस्तुति प्रतिबिम्ब जी।आपकी अभिव्यक्ति के साथ मैं न्याय कर सकी या नहीं...आप ही तय करेंगे।प्रोत्साहन हेतु प्रस्तुति देने के लिए हृदय से आभार...साधुवाद !


5.अलका गुप्ता 'भारती'--- मन मस्तिष्क (कल पुर्ज़ा हुआ) ---!
अलका जी ने 'मन मस्तिष्क(कल पुर्ज़ा हुआ)' में अपनी भावनाओं को मुक्तक के रूप में प्रस्तुत किया है... वे कहती हैं....मन की क्या कहें,आजकल तो मस्तिष्क का ही बोलबाला है,हर काम तकनीक से होता है...उसके लिए तो मस्तिष्क से ही काम लिया जाता है,तो वहाँ मन की कोमल भावनाओं की जगह कहाँ।या यौं समझ लीजिए कि आज युग का मशीनीकरण हो गया है।संस्कार और सरलता सब पीछे छूट गए हैं ,भौतिक जगत में सभी कुछ तो छिन्न-भिन्न हो रहा है। इसे बनाए रखने के लिए मनुष्य को ही प्रयास करना होगा।सच ही है अलका जी इस तकनीकी युग में मन की कहाँ चलती है...।सर्वथा भिन्न भावाभिव्यक्ति। कोशिश की है आपके शब्दों को समझने की,आंशिक रूप से भी यदि आपके मन तक पहुँची हूँ तो बताइएगा। हार्दिक शुभकामनाएँ!


6.किरण श्रीवास्तव--- मन मस्तिष्क (द्वंद्व) हाइकु विधा ---!
किरण जी ने हाइकु विधा में अपने विचार रखे हैं,कहती हैं कि मन और मस्तिष्क एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,दोनों ही बराबर विचार-विमर्श करते हैं।हाँ मन थोड़ा भावनाओं में बहने लगता है,लेकिन मस्तिष्क उचित-अनुचित में भेद स्पष्ट कर भावनाओं पर नियंत्रण रखता है। कहने का तात्पर्य है कि मन और मस्तिष्क के बीच संतुलन बनाकर चलने से ही हम किसी महत्वपूर्ण निर्णय तक पहुँच सकते हैं।
हाइकु विधा में अपनी बात को स्पष्ट करना और पाठक के लिए उसे पूरी तरह से समझ पाना दोनों ही मुश्किल काम हैं।मैंने रचयिता के मन तक पहुँचने का प्रयास तो किया है...मगर कितना ये आप ही बताएँगी किरण जी... हार्दिक शुभकामनाएँ।


7.प्रभा मित्तल--'मन-मेधा'--! (मेरी ये रचना प्रतियोगिता के लिए नहीं है।)
मैंने अपनी रचना 'मन-मेधा' में....कठिन विषय 'मन-मस्तिष्क' को साधारण से शब्दों में उतारने का प्रयास किया है... जीवन के कठिन रास्तों पर चलते समय मन और मस्तिष्क में बराबर द्वंद्व चलता रहता है। कहाँ रुकें कहाँ मुड़ें ये तय करना जब कठिन हो जाता है तो मस्तिष्क ही हमें राह दिखाता है।मैं ऐसा समझती हूँ कि भावुक हृदय हमें सही-ग़लत का भेद नहीं समझा पाता,अतः किसी भी निर्णय तक पहुँचने के लिए मन की भावनाओं और मस्तिष्क के तर्क में सामंजस्य और ठहराव जरूरी होता है।
आप सभी प्रतिभागियों ने अपनी रचनाओं में दिए गए चित्र को अपनी-अपनी भावनाओं के अनुसार व्यक्त करने का पूरा प्रयास किया है... सभी के लिए बधाई व हार्दिक शुभकामनाएँ।
निर्णायक मंडल के सभी सम्माननीय सहयोगी गुणीजनों का हार्दिक धन्यवाद, आभार।प्रोत्साहन हेतु प्रस्तुति के लिए प्रिय प्रतिबिम्ब जी का हृदय से आभार व साधुवाद।आप सभी अपना मार्गदर्शन व सहयोग बनाए रखिएगा।
सस्नेह शुभकामनाएँ !
प्रभा मित्तल.

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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