इस प्रतियोगिता की विजेता हैं सुश्री अंजना कंडवाल
प्रतीक्षा
(प्रोत्साहन हेतु)
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
मौसम और प्रकृति की गोद में
मन मेरा अब, इतराने लगा है
चाह के संग चाहत के फूल
आसमां सी उंचाई छू महकने लगे हैं
न जाने किस किस कोने से निकल
बीते पल और अगनित बीते बातें
तेरे अहसास से लिपट कर
'प्रतिबिम्ब' को गुदगुदाने लगी हैं
मन, मयूर सा फिर नाच रहा है
शायद कोई गीत पुराना गा रहा है
थिरक रहे रोम - रोम तन के
मन मेरा फिर तुझे ही बुला रहा है
तुमसे दूर होना, अकेला होना
कभी मुझे अच्छा लगा है?
इन खाली पड़ी कुर्सियों को और मुझे
तुम्हारी ही प्रतीक्षा है, प्रतीक्षा है.
टिप्पणी: प्रकृति से प्रेम ओर अपने प्रेम से प्रेम - इन खाली कुर्सियों को देख बस प्रेम रंग अंगडाई लेने लगा ... यूं ही शब्द भाव जुड गए.
मन-मयूरा
विष्णु पद छंद में
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
नभ में छाए बदरा कारे,,,,,,,,,बुँदिया बरसेगी |
छनन छनन छन गिरती बुँदिया,धरती सरसेगी ||
नभ में इंद्रधनुष जब छाए,,,,,,हर्षित मन -मोरा |
लुक छिप जाए नील गगन में,,,छाए घनघोरा ||
सूनापन जब लगता घर में,,,,,,,मन-मयूर नाचे |
प्रकृति सुहानी देख अनोखी,,,,मुग्धा बन जाते ||
जीवन की एकरसता में सब,,,मन ठहरा रहता|
नव बसंत की आशा में तब,,,मन चंचल लगता ||
जीवन और प्रकृति समरस हैं,,परिवर्तन चाहे |
मन की “वीणा “गीत सुनाए,मन-मयूरा थिरके ||
टिप्पणी: प्रकृति व जीवन में समरसता होती है,,,मौसम के कई रूप जीवन के ही स्वरूप है जब जीवन में सुख की बारिश,,तथा नव बसंत जैसा हर्ष उल्लास छा जाता है तब मन का मयूर मदमस्त हो थिरकने लगता है,,साथ में एकरस जीवन भी मानव प्रकृति में आनंद खोजता है,,,बस इन्हीं सब भावों को छंद में पिरोने का प्रयास किया है,, जयहिंद जय श्री राम
प्यासा मन का मयूर
शिव मोहन
ये चारों ओर कुहांसा है,
मन का मयूर अब प्यासा है।
ये सागर भी एकाकी है ,
पर्वत भी राह जोटाता है।
तुम आ जाओ मेरे पास प्रिये,
ये मन मयूर की आशा है।
कुछ बात करें बीते पल की ,
कुछ विचरण हो अपने पल का।
ठहरे ना रहो तुम पर्वत से ,
मिलना तो अब सागर सा है।
कुछ दूर हमारे साथ चलो ,
हम सारी कहानी कह देंगे।
तुम समझ ना पाये आँखों से ,
अब दिल का हाल सुहासा है।
आकर बैठो मेरे पास प्रिये,
ये मौसम भी रूमानी है।
दिले हाल सुने एक दूजे का ,
अब जीवन यही जरा सा है।
अब सात रहो सातों जन्मों ,
ईश्वर से की अभिलाषा है।
ये चारों ओर कुहांसा है
मन का मयूर अब प्यासा है।
टिप्पणी: शान्त सागर और शान्त खड़े पर्वत और किनारे पे रखी दो कुर्सियाँ खुद व खुद प्रियतम को अपने पास बुलाने और कुछ समय बिताने पर कुछ लिखने को प्रेरित करते हैं।
पीड़ भरा मन मयूर मेरा
नैनी ग्रोवर
मरुथल की जलती रेत पर,
छाँव की तलाश में,
भटकना चाहता है,
पीड़ भरा मन मयूर मेरा....
गगन में शाम ढले,
थक कर सो जाने की आस में,
डूबते सूरज की भांति,
डूब जाना चाहता है,
पीड़ भरा मन मयूर मेरा...
पपड़ी से सूखे होठों को,
आसुओं से भिगो के,
लेके नाम तेरा,
पुकारना चाहता है तुझे,
पीड़ भरा मन मयूर मेरा...
होके दीवाना,
दर-बदर खाते हुए ठोकरें,
ढूंढना चाहता है तेरे वादों को,
पीड़ भरा मन मयूर मेरा...
टिप्पणी : अधिक कुछ सोचा नहीं, बस हाज़िरी लगा रहीं हूँ..!
स्मृति नर्तन मनमयूर संग
आभा अजय अग्रवाल
मन अंबुद की रेती पर -
यूं ही रख छोड़ी हैं ; दो कुर्सियाँ
रिक्त ?
नहीं !
रिक्त प्रतीति वाली:
स्मृतियों के बादल
बैठे हैं पलोथी मार इनपे -
चंदा-चंदनियाँ झुटपुटी साँझ -
व्यतीत पलों के स्मृति पयोधर !
शब्दसागर की उछलती उच्श्रिंख़ल -
तरंगों का , मौन अभिसार !
बादल बरसे या न बरसे
मनमयूर पीहू-पीहू गुनगुनाता तो है !
देख भानु को सागर अंक समाते
छप-छपाक-छिपती सिमटती
छाया कुर्सियों की
रोकती है यादों की पलोथी को
कि ,न खोलना तुम पद बंधन
कि , इस छाया में -
नख व्रीड़ा उत्कीर्ण है आज भी
कि , है साक्षी !रेती का हर कण
हृदयों में लिखे सगुनाक्षर का ,
कि ,संकोच की सिंदूरी आभा से -
हुए जाते है ,ललाम कपोल ,उष्ण कर्ण
झंकृत !हृदय वीणा के तार आज भी :
बस !
मन अंबुद की रेती पर -
यूं ही रख छोड़ी हैं ; दो कुर्सियाँ
रिक्त ?
ना “
कि , सनद रहें वो पल ;
बतियाते थे हम —-
जायेंगे मानसरोवर तो >
झील किनारे !
शिव से बतियायेंगे ॐ*
यूं ही कुर्सी डाल के ॐॐ
टिप्पणी: विगत की अनमोल स्मृतियों के पयोधरऔर उनपे नर्तन करता मन मयूर ,यही है जीवन का हासिल
मन से मन का संवाद
( प्रोत्साहन के लिए )
मदन मोहन थपलियाल
( प्रयास है कुछ साझा कर पाऊं। सीखने की ललक ही हमें अपने मुकाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाती है। रचनाकार स्वतंत्र है, मन के उद्गारों को उद्धृत करने के लिए। यहां विषय जरा हटकर है, चित्र पर भाव प्रकट करना, जो सरल भी है और कठिन भी। बहुत मुश्किल होता है किसी रचना को रचनाकार की भावनाओं से आंकना, फिर भी इस पाठशाला में बहुत कुछ सीखने और समझने को मिलता है। सभी तटस्थ होकर लिखें। मैं आपके माध्यम से अपनी लिखी रचना पर आपकी स्वतंत्र टिप्पणी को आमंत्रित [स्वतंत्र आह्वान] करता हूं, जहां श्रेय आपका होगा और शब्द मेरे। साथ ही आ. प्रतिबिंब जी से आज्ञा चाहता हूं कि निर्णायक को भी समझने का अवसर सभी रचनाकारों को मिले, कल की वार्ता में एक पुरानी बात निकलकर सामने आई, कि कहीं किसी को कोई बात आघात न पहुंचाए, इसलिए निर्णायक होने के नाते मैं खुद यह दायित्व अपने ऊपर लेता हूं। हर कमी को बताने के लिए आप पूर्ण स्वतंत्र हैं। हिंदी साहित्य का सही मान सम्मान हो, यही हम सबका उद्देश्य होना चाहिए। )
मन से कह दो, मन की सुन लो-
कहो मन से मन की बात ,
नाच उठे मन मयूर, मन से हो जब मन का संवाद।
क्षुद्र भाव न पालो मन में, अकिंचित् न करो-
विध्वंस की बात -
मन ही मंदिर, मन पुजारी, अखंड देश की हो बात-
उदय हुआ रवि पूरब में, खत्म हुई तमस भरी रात,
न मन हो जाओ, सुनो न मन की, हो मन से मन का- संवाद।
गहन निशा में चमकते उडगण, चांदनी से करते बात-
अंधकार ही पथप्रदर्शक,
नाचते व्योम पथ में मयूर सम, मन में न कोई अवसाद,
शून्य हो जाओ तन, मन से, शून्य से हो संवाद।
न हो मन विचलित अकांड - ताण्डव से-
एक थे, एक हैं सब, मानव हमारी जात
भीजे तन - मन समस्त भुवन का, ऐसी हो स्नेह वरसात,
मन मयूर थिरके हर धड़कन में, ऐसा हो संवाद।
आकर्षण हो दीप का,न हो मृत्यु किसी शलभ की-
क्षितिज के पार तक बहे बयार , बने प्रेम की सौगात-
न टूटे हिय किसी का, न हो सशंक की कोई बात -
समशंकु सा हो जीवन, मन से हो मन का संवाद !
टिप्पणी: मन की पवित्रता ही मानव को मानव बनाती है नहीं तो मानव अन्य जीवों की तरह व्यवहार करता है। न मन होना ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है।
मन मयूर नाचे
अलका गुप्ता 'भारती'
स्वप्न सुहाने ..अंतर वाँचे।
होय मगन मन मयूर नाचे॥
थपक घरौंदे नवल सहेजे।
बड़े झमेले अटकल भेजे।
सकल चातुरी बुद्धि झकोरे,
ढहते प्रयास अनेक सांचे ॥
आकृष्ट किये दृश्य मनोहर,
लोभ लालसा ..माया भर ।
उलझे उलझे प्रश्न फँसाते,
मृग कस्तूरी भरे कुलांचे॥
अंतर्व्यथा से खींच पाँखें,
तोड़ हताशा दुर्बल शाखें।
एकांत किरण आशा झाँके।
पाप पुण्य का घेरा जाँचे॥
तम आँके ..बेचैन कुहासे,
आशंकित ..सर्पों के डासे।
हैं ईश्वर के .. नृत्य इशारे।
प्रकृति सदा अविभूत स्वराचे॥
टिप्पणी: जब स्वप्न साकार होते प्रतीत होते हैं तब ही अंतर्मन अविभूत हो कर मयूर की भांति नृत्य करने लगता है और इसी उपरान्त प्रकृति और स्वयं के द्वारा अनेक क्रिया प्रतिक्रिया होती हैं
एक बार फिर
किरण श्रीवास्तव
एहसासों में कमी
आंखों में नमी ,
बढ़ती ख्वाहिशें
भागती जिंदगी पर
थोड़ा अंकुश लगाते हैं,
चलो एक बार फिर मुस्कुराते हैं..!
इन वादियों में बैठकर
कुछ तुम्हारी सुनते हैं
कुछ अपनी सुनाते हैं
पुरानी यादों में खोकर
गीत खुशी के गाते हैं
चलो एक बार फिर मुस्कुराते हैं..!!
कभी तुम्हारे प्यार के
बारिश में भीग
नाचने लगता था
मन मयूर..
आज फिर उसी पल को
दोहराते हैं ,
चलो एक बार फिर मुस्कुराते हैं ....!!!
टिप्पणी: आज के दौर में आगे बढ़ने का होड़ है लोग भाग रहे हैं! लोगों में प्यार तो है पर एक दूसरे के लिए टाइम का अभाव है! इन खाली कुर्सियों को देख यही भाव मन में आया....!
मोरा मन मयूर
मीता चक्रवर्ती
रिमझिम रिमझिम जब बदरा बरसे
बूंदों सा खिल के मनवा हरसे
ऐसे मौसम में पिया मिलन को
व्याकुल मोरा मन मयूरा तरसे
ओस में भीगी भीगी सी पुर्वैया
धूप कच्ची सी , शीतल छैया
होकर के मस्त मगन झूमे गाए
मन मयूरा मोरा, आज बन के गवैया
मिट्टी की सौंधी सी सुगंध जब आए
फूल फूल पर भंवरे सब गाए
नाचे मोरा मन मयूरा तब झूम के
इंद्रधनुषी सप्त रंग छा जाए
टिप्पणी: मौसम का असर हमारे मन मयूर पर किस तरह से पड़ता है यही बात मैंने अपनी कविता के माध्यम से कहना चाहा है ।
मन मयूर
अंजना कंडवाल
सुवासित बहती मन्द पवन
क्षितिज पर मिलते धरा गगन
नीले अम्बर के आँचल में
खेल रहे हैं मेघ सघन
और तलहटी में करती कल-कल
एक नदी की धारा निर्मल
रवि किरणे अठखेली करती
बहती रहती है अविरल।
नदी तट पर आसन्द लगाये
ऋतु बसन्त भी तुझे बुलाये,
मन मयूर देखो नाच उठा है।
कोकिल मिठें राग सुनाये।
टिप्पणी:- आज प्रथम बार शामिल हो रही हूँ, समयाभाव के कारण हाज़री मात्र है।
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परिणाम
तकब 3/22,
प्रिय मित्रों नमस्कार !
मौसम बदल रहा है,सर्दी जा रही है,महामारी का आतंक भी लगभग कम हो गया है,अतः वातावरण खुशनुमा होने लगा है। बदलते मौसम में प्रकृति हमें अपने रूप दिखाकर लुभाती रही है। आखिर मनुष्य का मन और उसका सोच-विचार भी तो इसी से जुड़ा है।प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता हमारे मन और मानवीय व्यवहार को तय करती है।तकब 3/22 का चित्र "मन मयूर" भी प्रकृति के साथ जुड़कर हमारे मन के सुप्त भावों को जगाने आया। इस पर आप सभी प्रतिभागियों ने अपने मनोभावों को यथाशक्ति अभिव्यक्त भी किया।हमें कुल दस रचनाएँ प्राप्त हुईं,जिनमें से तीन प्रोत्साहन स्वरूप निर्णायक मण्डल से आई हैं।निर्णायकों से कुल सात प्रतिभागियों में प्रथम व द्वितीय स्थान के लिए मिले वोट इस प्रकार हैं.........
प्रथम स्थान के लिए मिले वोट.......
1.अंजना कंडवाल....2
2.अलका गुप्ता 'भारती'.....1
3.ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार....1
4.शिव मोहन.......1
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द्वितीय स्थान के लिए मिले वोट......
1.अंजना कंडवाल....1
2.अलका गुप्ता 'भारती'....1
3.किरण श्रीवास्तव....1
4.नैनी ग्रोवर....1
5.मीता चक्रवर्ती....1
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वोटों की संख्या के आधार पर तीन वोट लेकर सुश्री अंजना कंडवाल अपनी उत्कृष्ट रचना 'तस्वीर क्या बोले' की प्रस्तुति देकर प्रथम स्थान प्राप्त कर.....विजयी हुईं।मेरे व निर्णायक मंडल की ओर से अंजना कंडवाल जी को हृदय से बधाई व अनन्त शुभकामनाएँ !!
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समीक्षा
प्रस्तुति – प्रभा मित्तल
तकब 3/22 की सभी रचनाओं की समीक्षा सुश्री किरण श्रीवास्तव कर रही हैं। मैं उनका हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ एवम् उनके इस सुन्दर सहयोग के लिए आभार प्रकट करती हूँ। तो लीजिए आपके समक्ष आप सभी की रचनाओं की समीक्षा लेकर उपस्थित हैं.....
समीक्षक.........किरण श्रीवास्तव
आप सभी प्रतिभागियों और तकब समूह के सम्मानित सदस्यों को मेरा प्यार भरा नमस्कार
यहाँ सभी प्रतिभागी एक से बढ़कर एक हैं। रचनाओं की समीक्षा करना मेरे लिए तो बहुत मुश्किल है! पता नहीं मैं न्याय कर पाऊंगी कि नहीं मैं अपने आपको इस काबिल नहीं मानती, पर कोशिश कर रही हूँ, और त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ!
हमारे माननीय 'प्रतिबिंब बड़थ्वाल' जी जो इस समूह के सृजन कर्ता हैं,जिनके प्रोत्साहन और इस समूह के जरिये अलग-अलग रचनाकारों की रचनाओं को पढ़ने और उनसे कुछ सीखने का अवसर मिलता है ,और आगे भी मिलता रहे इसी उम्मीद के साथ,उन्हें पुनः पुनः धन्यवाद
सर्वप्रथम प्रथम स्थान प्राप्त कर विजेता बनी, अंजना कण्डवाल जी.....
इनकी रचना का शीर्षक है "तस्वीर क्या बोले" बड़े ही सुंदर शब्दों से अलंकृत है इनकी रचना..लिखती हैं-प्रकृति का इतना मनोरम दृश्य सुगंधित समीर ,कल-कल करती नदियां, बादलों का लुकाछिपी ,कोयल का गान, मंद बयार ... किरणों की अठखेलियां , नदी तट पर आसन लगाकर मानो तुम्हें बुला रही हो, और इस एहसास से ही मन मयूर प्रफुल्लित हो नाच उठा है ... वाकई तस्वीर यही बोल रही है! इस उम्दा रचना के सृजन के लिए हार्दिक बधाई आपको!
पहली रचना प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी की है, शीर्षक है, "प्रतीक्षा "(प्रोत्साहन हेतु प्रस्तुति)
मन की गति अति तीव्र होती है! प्रकृति का मनमोहक रोमांचक दृश्य हो ,साथी साथ न हो, तो अहसासों को उद्वेलित करने वाली अतीत की अनगिनत बातें, मन को गुदगुदाती है, साथी की कमी महसूस होती है ,मन कल्पनाओं में डूब जाता है, प्यार भरे क्षण याद आतें है तो मन मयूर नाचने लगता है, उस समय खाली कुर्सियों की तरह मन का खालीपन तनिक भी नहीं भाता है....| इस सुंदर प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई आपको और धन्यवाद !
दूसरी रचना है "मन मयूरा"हमारी ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार जी की। इन्होंने विष्णु पद छंद में,,,,चित्र पर सुन्दर प्रस्तुति दी है जो हमेशा की तरह लाजवाब है ! ये लिखती हैं-
प्रकृति व जीवन में समरसता होती है...मौसम के कई रूप जीवन के स्वरूप है ,जब जीवन में सुख की बारिश..तथा नव बसंत जैसा हर्ष उल्लास छा जाता है तब मन मयूर मदमस्त हो थिरकने लगता है..साथ में एकरस जीवन भी मानव प्रकृति में आनंद खोजता है,....!
तीसरी रचना है शिव मोहन जी की रचना -- "प्यासा मन मयूर "--
लिखते हैं -शान्त सागर और शान्त खड़े पर्वत और दो खाली कुर्सियां खुद व खुद प्रियतम को अपने पास बुलाने और मान मनुहार को आतुर हैं गलतफहमियों का कुहासे ने प्रेम रूपी बादल को ढ़क दिया है बारिश की बाट जोहने के कारण मन मयूर प्यासा है.....! बहुत सुन्दर रचना आपकी....
अगले पड़ाव पर हैं 'नैनी ग्रोवर' जी... 'शीर्षक है"पीड़ा भरा मन मयूर" ये लिखती हैं-मानव अपनी जीवन यात्रा में विभिन्न अवस्थाओं को जीने के बाद परमात्मा से मिलन की चाह रखता है ,और उसमें एकाकार हो जाना चाहता है...!शीर्षक के अनुरूप रचना में पीडा़ का एहसास....सुंदर अभिव्यक्ति आपकी
अगले पायदान पर है आदरणीया आभा अजय अग्रवाल जी (प्रोत्साहन हेतु) "स्मृति नर्तन मन मयूर संग" में लिखती हैं- रिक्त दिखने वाली कुर्सियां रिक्त नहीं हैं, उस पर स्मृतियों के बादल उमड़- घुमड़ कर मानस पटल पर अंकित उन सभी यादगार पलों को तरोताजा कर रही हैं ... व्यतीत पलों की स्मृतियाँ शब्द सागर की उछलती तरंगों का मौन अभिसार मन को गुदगुदाती हैं, बादल बरसे या न बरसे मन मयूर पीहू- पीहू गुनगुनाता तो है.... ह्रदय वीणा के तार झंकृत हैं, आज भी...खाली कुर्सियां प्रमाण है उन पलों का।.......इस सुंदर सोच और सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार
अगली रचना है 'मदन मोहन थपलियाल' जी की (प्रोत्साहन हेतु) शीर्षक है "मन से मन का संवाद "लिखतें हैं-
मन से कह दो ,
मन की सुन लो -
कहो मन से
मन की बात ,
नाच उठे मन मयूर ,
मन से हो जब मन का संवाद !
क्या बात कही है हमारी आंतरिक सोच और खुद से वाद-विवाद और अंतर्द्वन्द के बाद का निर्णय वाकई मन को प्रफुल्लित कर देता है! मन मंदिर के समान है ,मन कभी गलत हो ही नहीं सकता ! जब भी हम झूठ बोल रहे होते हैं और उसको सत्य साबित करने के लिए साम ,दाम ,दंड, भेद ,सब इस्तेमाल करते हैं,तब हमारी अंतरात्मा आहत होती है क्योंकि वह सिर्फ सत्य और सत्य जानती है..इसलिए हम गलत बोलकर गलत सोचकर वातावरण के साथ साथ अंतरात्मा को भी दूषित करतें हैं, इसलिए जो भी बोलें सोच समझ कर बोलें ,सही बोलें, सार्थक बोलें ! हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं! धर्म जाति के नाम पर द्वन्द्व न करें! मन की पवित्रता ही मानव को मानव बनाती है! इसलिए बात हो तो एकता और अखंडता की बात हो, प्रेम और सद्भावना की बात हो,मन को इतना मजबूत बनाओ की छोटी-छोटी मुश्किलों से विचलित ना हो पूरी मानव जाति एक हो सब का दुःख-सुख एक हो प्रेम की बरसात चहुँ ओर होती रहे और मन मयूर नाचता रहे..! सार्थक ,संदेश देती इस सुंदर ,रचना के लिए हार्दिक बधाई !और धन्यवाद
अगली रचना है हमारी प्यारी अलका गुप्ता 'भारती' जी की "मन मयूर नाचे" के अंतर्गत यह लिखती है -मनुष्य लोभ लालसा...माया में घिरा रहता है, और अपनी चाहतों को पूरा करने के लिए दर-दर भटकता है, जैसे मृग कस्तूरी की खोज में जंगल- जंगल भटकता है जब स्वप्न साकार होते प्रतीत होते हैं तब ही अंतर्मन अभिभूत हो कर मयूर की भांति नृत्य करने लगता है और इसी उपरान्त प्रकृति और स्वयं के द्वारा अनेक क्रिया प्रतिक्रिया होती हैं सही कहा बहुत ही सुंदर रचना आपकी.बहुत - बधाई एवं शुभकामनाएं आपको।
आगे मैं किरण श्रीवास्तव इस बार तस्वीर पर आधारित मेरी रचना "एक बार फिर" में मेरा सोचना है कि पहले लोग छोटी-छोटी खुशियों में भी बड़ी खुशियां ढूंढ लेते थे लोग एक दूसरे के लिए साथ ज्यादा समय बिताते थे ...आज लोग भौतिकता की चकाचौंध ,दिखावे में ज्यादा खुश होते हैं । प्यार होते हुए भी लोग समयाभाव का रोना रोते हैं.....।
आगे हैं मीता चक्रवर्ती जी तस्वीर पर आधारित इनकी रचना "मोरा मन मयूर" में लिखती हैं -
जब मौसम खुशगवार होता है तब इसका असर बेशक हमारे दिल दिमाग पर पड़ता है। इंद्रधनुषी ख्वाब हमारे तन-मन को मदमस्त कर देता है और मन मयूर झूम उठता है ! बहुत उम्दा लिखती हैं..लिखते रहिये बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं आपको !
समीक्षिका
किरण श्रीवास्तव
सुन्दर व सार्थक समीक्षा के लिए हार्दिक धन्यवाद किरण श्रीवास्तव जी....आपके सहयोग की आभारी हूँ।आपको बहुत बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनाएँ।
मेरा सभी सदस्यों से आग्रह है...अधिक से अधिक रचनाकार इसमें हिस्सा लेकर समूह को गतिमान रखें।बेहतरीन प्रयास और सुन्दर रचनाओं द्वारा समूह में प्रस्तुति देने के लिए मैं सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद और बधाई देती हूँ।
निर्णायक मण्डल के सभी सहयोगी गुणीजनों का हृदय से धन्यवाद... आभार।प्रोत्साहन के लिए प्रस्तुति हेतू प्रिय प्रतिबिम्ब जी,श्री मदन मोहन थपलियाल 'शैल' जी, व सुश्री आभा जी का हृदय से आभार !!
सस्नेह शुभकामनाएँ !
प्रभा मित्तल
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सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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