तकब 06-22
मदन मोहन थपलियाल
वंदन माटी का
मन करता, फिर से रज कण बन जाऊं !
हल ,बैल औ माटी हों आराध्य,
कृषक का सा हो जीवन -
आठों पहर हो माटी से संवाद,
समर्पित वसुधा को, तन-मन औ जीवन ।
करूं तिलक माटी का, रागी बन जाऊं-
मन करता फिर से ---
जीवन का सार है 'हल' -
हर हल का सार है कृषक जीवन ,
माटी है हर पल का वैभव-
माटी की साधना औ तप है जीवन ।
हो तटस्थ,
बैलों की पग - धूलि का राग बन जाऊं-
मन करता फिर से ---
आगे बैल पीछे कृषक -
बीच में साधन हल,
त्रिदेव को करते परिभाषित -
देख बीते मेरा हर पल ।
एकादश पग चूमें जब धरा को-
मैं प्रत्यक्षदर्शी बन जाऊं -
मन करता फिर से ---
लिपट जाऊं ,
हल - बैल लिए कृषक के तन से,
करूं उबटन माटी का -
यही साधना औ अभिनन्दन है साठी का ।
माटी का ही सब ताना बाना,
माटी ही धन दौलत,
माटी कुबेर खजाना ।
धान रोपाई में रत , मां की चरण वंदना कर पाऊं
मन करता फिर से ---
माटी की है यह देह -
कैसे उपकार चुकाऊं,
माटी सा होना भाग्य कहां रे-
माटी का कैसे सत्य बताऊं।
कर धारण मृदा को तन पर,
ऋषि बाल्मीकि सा बन जाऊं-
मन करता फिर से --
छू पग धूलि उस कृषक बाला के -
जो बाबा निमित धर लाई कलेवा,
मेहनत से उपजी तृष्णा-
दर्शन करने भूख की ज्वाला के ।
रुनझुन बजती सुकोमल पैरों की पायल -
कर गईं मेघों का मन द्रवित ,
सोचा मेघराग बन जाऊं-
मन करता फिर से ---
टिप्पणी: हमारे पास जो कुछ है सब माटी का दिया उपहार है, मिट्टी के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है। ईश्वर की सच्ची साधना, माटी का मान रखना ।
यामा शर्मा
मानव का नाता
जब तक मानव का खेतों खलिहानों
से नाता है
तब तक ही जीवन है, जीवन का हर घर से नाता है
जब तक फसलों का प्यार धरा के सीने पर उभरेगा
तब तक खेत अनाज का सुन्दर गहना पहनेगा
जब तक फसलें बेटी हैं खलिहानों की
तब तक हस्ती है मिट्टी में पलते इंसानों की
जब तक हर मानव की यह धरती माता है
तब तक मानव का खेतों खलिहानों से
नाता है
जब तक माटी की महक समाई है मन प्राणों में
तब तक श्रमिकों का श्रम से गहरा नाता है
जब तक मृदुता छलक रही मुस्कानों में
तब तक मानव का खेतों खलिहानों से नाता है
जब तक सूरज की लाली अंबर के हाथ रचेगी
तब तक चँदा तारों संग बारात उतारेगा अँगने में
जब तक मानव का खेतों खलिहानों से नाता है
तब तक जीवन है जीवन का हर घर से नाता है।।
टिप्पणी: इस कविता के माध्यम से खेत खलिहानों की सोंधी महक से सजी मिट्टी और उसमें उगने वाले भिन्न -भिन्न अनाजों को, गहराई से भरे, रिश्तों को बांधकर सजाने का प्रयास किया है।।
आभा अजय अग्रवाल
धरती
(प्रोत्साहन हेतु)
उषा की अरुणिमा
निशा का विश्राम
गोद माँ वसुधा की यही
नित्य जिस पर पग धरें
अर करें सगरे काम !
रूपसि , रुचिरा, उर्वी बाला
खेत खलिहानों में रहती
जगत पालन हेतु को
चाक सीने पे है सहती ।
कृषक का जीवन है उर्वा
वो लाडला कहती कृषक को
कृषक का श्रम परिश्रम ,
खिरमनें जगमग हैं करतीं -
फसल के लहलहाने पे
वसुधा उल्लसित है होती
निसा ,तृष्टि ,संतोष सब
धरती में हैं उगा करते .....
वेदना की घन घटायें ,
घुल माटी में मधुसार बनतीं
क्षार में मधुसार वसुधा -
आओ मिल इसको सजाएं
वृक्ष, हरियाली के गहने
मां को हम सभी , पहनायें
खेती -किसानी सुगम हो
कृषक हो खुशहाल जग में
तब ही मानवता हंसेगी
वसुधा भी गुनगुन करेगी
टिप्पणी: खिरमन जगमगाते रहें ,कृषक खुशहाल हो ,फसलें लहलहायें,जीवों को पर्याप्त भोजन मिले --- धरती को संजो के रखें हम.
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
किसान बिकता सस्ता
(प्रोत्साहन हेतु)
कृषि प्रधान है, भारत देश मेरा
सुनते यही गीत, गाये जग सारा
मेहनत का फल, खाए जग सारा
निर्भर पूरा देश, किसान है बेचारा
गरीब की तरह, किसान भी भ्रमित
मेहनती हैं दोनों, सरकार पर आश्रित
वोट बैंक बने, पर जीवन शापित
क्रूर है व्यवस्था, किसान है प्रताड़ित
कोई करना चाहे, कृषि सुधार चाहे
अपने ही रोकते, अपने ही टोकते
बनकर केवल रोड़ा, स्वार्थ सिद्ध करते
किसान मूक दर्शक, अपनों से डरते
नाम आन्दोलन का, पर किसान मरता
राजनीति की बिसात, किसान केवल पिसता
जीतता आन्दोलन जीवी, किसान केवल हारता
महंगाई चरम पर, किसान बिकता सस्ता
कब समझेगा देश, किसान मान हमारा
कब कहेगा देश, किसान सम्मान हमारा
कब कहेंगे किसान, मिला पुरुस्कार हमारा
कब कहेंगे किसान, जीवन धन्य हमारा
टिप्पणी: जैसा सभी जानते है कि कृषि प्रधान देश है लेकिन आज भी उन्हें अपना हक़ नही मिल पाया. आय के साधन बढ़ाने की उम्मीद कृषि कानून से जगी थी लेकिन 15 % किसानो की मांग ( हटाने की) हावी रही और 85% पक्ष वालो को फिर वंचित होना पड़ा अपने सुधार, आय में सुधार के कानून से.... यह विडम्बना है इसे जुड़े कुछ भाव इन चंद पंक्तियों में ....
बीना भट्ट बड़शिलिया
किसान
मुक्तक छंद
तप तप कर पसीना बहाते हैं
अन्न ये हम तक पहुंचाते हैं
अन्नदाता को कर जोड़ लेवें
मेहनत इन्हीं की हम खाते हैं।
सर्दी गर्मी हो या हो बरसात
सूखा पड़ा हो या बाढ़ प्रपात
मेढ़ों पे बैठे हुए ताकें आसमां,
झेलते हैं ताप ढूंढते नहीं पात।
बैशाख की गर्म दोपहरी में
झुलसन हैं जहां एड़ियों में
ये काटने चले जाते फसल,
आनंद है मेहनत की रोटी में
अब तो इनका हक़ इन्हें दो
फसल की पूरी कीमत भी दो
कब तक बिचौलिए घेरे रखेंगे
मंडी में सीधा संवाद रख दो।
टिप्पणी----किसानों को उनकी मेहनत का पूरा मोल नहीं मिलता,अपनी पंक्तियों द्वारा मैं कहना चाहती हूँ कि क्यों किसान समझते नहीं कि उन्हें अपनी बात स्वयं रखनी चाहिए, किसान नेता हमेशा अपना पेट भरते हैं।
विनीता मैठाणी
मेरे पहाड़ का किसान
नौनिहालों को अपने पढ़ाने की चाह में,
एकं नया मुकाम कोई पाने की चाह में।
जिगर के टुकड़ों सा खेत छोड़कर अब,
निकल पड़ा है गांँव से शहर की राह में ।
पलायन की मार से उजाड़ हुआ गाँव,
वर्षा अभाव,कभी जीवों से त्रस्त दाह में।
घी,दूध,दही अनाज,सब्जी की नदियां,
छोड़कर सब आ गया ज़हर की पनाह में।
ताज़ी हवाओं के झौंके,मीठे जलधारे,
फल,फूल जैविक खेती थी बस निगाह में।
आज वो किसान बना है परदेशी बाबू ,
अपनी खुशी ढूँढता है झूठी आह,वाह में ।
न अमीर बन सका न सूंकू चैन है कहीं,
किराए का मकान और फ़कत गुमराह में।
सारी जमीं ये आसमां अपना था कभी,
गली कूचों का शहर है अब गाहे-बगाह में ।
गाँव के खेत और फसल से जुड़े रिश्ते,
इंसान और बेजुबां भी थे दिलों की गाह में ।
दिल से न दूर होती है धरती की लगन ,
पहुंचे कहीं भी किसान जिंदगी की थाह में ।
न होती वादियां सूनी मेरे इस पहाड़ की
ग़र मिला होता उसे हल परेशान अथाह में
टिप्पणी: अपनी कविता के माध्यम से मैंने अपने पहाड़ के किसान जो दिये गये चित्र की भांँति खुशहाल थे उनकी खुशहाली को छोड़ने के दर्द को व्यक्त किया है । धन्यवाद
अलका गुप्ता 'भारती'
मैं कृषक
कहने को भूपाल मैं...
कृषक.. कृष हो मरता।
हालातों से बदहाल मैं...
हरियाली का रोपण करता।
माटी भी हुई जहरीली...
रासायनिक भरमार हुई।
अशिक्षा के दाँव में...
चौपट सारी पैदावार हुई॥
मैं कृषक श्रम से अपने
अन्न उत्पादन करता |
अन्नदाता हूँ मैं ! मौसम...
मेरा भाग्यविधाता |
सरकारी नीति..दलालों-
की चक्की में पिसता...
बच्चे हैं नग्न परिवार...
मेरा भूखों मरता ||
टिप्पणी: बस कृषक के विषम हालात को ही चित्रित करने का प्रयास किया है
किरण श्रीवास्तव
अन्नदाता तेरी जय हो
एक सच्चा मानव है तू
तू हर थाली का जुनून,
सीधा सा स्वरूप तुम्हारा
पढ़े लिखे करते किनारा,
मिट्टी से करते संवाद
जाड़ा गर्मी या बरसात ,
नहीं किसी से तेरा बैर
तेरी चाहत सबकी खैर,
खेतों में खटते ही रहते
मिट्टी से लिपटे ही रहते,
बैलों संग जुते रहते
मुश्किलों से लड़ते रहते
कभी निराई ,कभी गुड़ाई,
कभी रोपाई, कभी कटाई,
तुम्हें चैन ना सुबहो शाम
मिट्टी ही तेरी हर धाम..
संघर्ष भरा तेरा जीवन
खेतों में हर पल अर्पण,
एक सीमा पर प्रहरी है
उनसे भी तू अग्रणी है,
बारंबार है नमन तुम्हारा
तुम पर भी कुछ फर्ज हमारा,
अन्याय न हो अब तेरे संग
प्रण करें खुद से अब हम,
सुख पर तेरा भी हक है
इसमें ना कोई शक है.
ईश्वर के तुम सच्चे बंदे हो
अन्नदाता तेरी जय हो
अन्नदाता तेरी जय हो.....!!!!!
टिप्पणी- जीवन जीने के लिए भोजन अति आवश्यक है हमारे किसान कड़ी मेहनत करते हैं पर उनके साथ हमेशा अन्याय ही होता है हमें उनकी आवाज बनना चाहिए ......!
मीता च्रकवर्ती
किसान
इस धरा का ये विधाता
बहा के पसीना अन्न उपजाता
आग सी तपती दुपहरी हो
चाहे हो बारिश मूसलाधार
हो कड़ाके की सर्दी
चाहे हो कोई तीज त्यौहार
काम न कभी भी इसका रुकता
इस धरा का ये विधाता
बहा के पसीना अन्न उपजाता।
सूखे से जूझ कर ,बाढ़ से लड़ कर
हल चलाता,फसल उगाता
पाई पाई खुद को खर्च कर
सारे संसार का भूख मिटाता
कर्तव्य पथ से अपने कभी न डिगता
इस धरा का ये विधाता
बहा के पसीना अन्न उपजाता
टिप्पणी: चाहे मौसम कैसा भी हो, चाहे कोई भी परिस्थिति हो, किसान अपने कर्तव्य से कभी मूंह नहीं मोड़ता। कभी उसका काम रुकता नही है।
अंजना कंडवाल
जगपालक 'किसान'
ये लहलहाते खेत देखो,
कैसे झूम के गाते हैं।
बैलों के खाँखर कितना,
मीठा गीत सुनाते हैं।।
अपने तन को तपा घाम में,
स्वेद का दरिया बहाते हैं।
पानी के संग सिंचित करके,
खेत में फसल उगाते हैं।
तेरी मेहनत की फसलें,
जब खलियानों में आती है।
मन खुशियों से झूम उठे,
सृष्टि झूम कर गाती हैं।।
माटी माँ है माटी चंदन,
माटी का तिलक लगाता है।
माटी का ये मानव देखो,
माटी की सेवा करता है।।
अन्न उगा कर इस जग में जो,
सबकी भूख मिटाता है।
भूमिपुत्र किसान तभी तो,
जगपालक कहलाता है।।
टिप्पणी:----इस कविता के माध्यम से फसलों से लहलहाते खेत, खेत और बैलों का नाता, उपज की खुशियां, मिट्टी की महक और किसान का मिट्टी और खेत से प्रेम के भाव को समझने का प्रयास है।
खाँखर:- (गढ़वाली शब्द) बैलों के गले की घण्टियाँ।
अंशी कमल
शत-शत बार नमन
भू को हरित ललित करने में, रहते जो हर वक्त मगन।
उस हलधर दम्पति को करती, हूँ मैं शत-शत बार नमन।।
स्वेद रक्त से सींच धरा को, दोनों अन्न उगाते हैं,
उदर सभी का भरते लेकिन, खुद भूखे रह जाते हैं,
अल्प अन्न सँग जल पीकर जो, भूख-प्यास को करें शमन।
उस हलधर दम्पति को करती, हूँ मैं शत-शत बार नमन।।
सूर्योदय से पहले जगते, अर्द्धरात्रि में सोते हैं,
विषम परिस्थिति में भी दोनों, कभी न धीरज खोते हैं,
जिनके श्रम-साहस के बल पर महका अपना देश-चमन।
उस हलधर दम्पति को करती, हूँ मैं शत-शत बार नमन।।
धूप- शीत- बरसात व आँधी, से न कभी जो डरते हैं,
नित्य अभावों में जी कर भी, हर पल हँसते रहते हैं,
हर मौसम की मार सहें जो, नाममात्र के पहन वसन।
उस हलधर दम्पति को करती, हूँ मैं शत-शत बार नमन।।
जिनके श्रम से सख्त़ भूमि भी, मृदुल सरस हो जाती है,
सूखे बंजर खेतों में भी, हरियाली लहराती है,
सूर्य किरण भी शीश झुकाती, नित-नित जिसकी देख लगन।
उस हलधर दम्पति को करती, हूँ मैं शत-शत बार नमन।।
पूर्णत: मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित व सर्वाधिकार सुरक्षित
टिप्पणी: जो किसान और उसकी पत्नी सदैव कठिन परिश्रम करते हुए अपना खून-पसीना बहाकर के, कठोर- सूखी व बंजर धरती को भी सरस व मुलायम बनाकर उसमें अन्न उगाकर हरियाली पैदा कर देते हैं तथा स्वयं भूखे-प्यासे रहकर दूसरों का पेट भरते हैं, ऐसे किसान दम्पति को मेरा शत-शत बार नमन है।
परिणाम – प्रभा मित्तल
तकब 6/22
नमस्कार प्रिय मित्रों !
हमारी संस्कृति हमें यही सिखाती है कि जो हमारा पालन-पोषण करे उसे माता सम समझा जाता है।जैसे जन्मदायिनी माँ सन्तान को जन्म देकर उसका पालन-पोषण करती है।उसी तरह इस धरती पर जन्मे हम सब इसकी संतान हैं। ये हमारे पोषण का प्रबंध भी करती है,हमारे लिए अन्न व अन्य खाद्य-पदार्थ उपजाती है।इसका प्रत्यक्ष प्रबंधकर्ता किसान है जो जाड़ा-गर्मी-बरसात की परवाह न करते हुए दिन-रात परिश्रम करके मिट्टी को उपजाऊ बनाता है और अन्न उपजाता है जिससे हमारा भरण-पोषण हो सके। तकब 6/22 में ऐसा ही चित्र मिला जिस पर हमें अपने विचार व्यक्त करने थे।कुल आठ प्रतिभागी सामने आए।जिनकी रचनाओं पर निर्णय लिया जाना था।इनके अतिरिक्त तीन रचनाएँ प्रोत्साहन स्वरूप निर्णायक मंडल से आईं जो प्रतियोगिता के लिए नहीं थीं।अतः शेष आठ रचनाओं के लिए निर्णायकों से मिले वोट इस प्रकार हैं----
प्रथम स्थान के लिए मिले वोट-----
1.अंजना कण्डवाल......1
2.अंशी कमल .........4
------------------------------
द्वितीय स्थान के लिए मिले वोट-----
1.मीता चक्रबोर्ती.....1
2.अंजना कण्डवाल....3
3.किरण श्रीवास्तव.....1
-------------------------------
इस प्रकार प्रथम स्थान के लिए सर्वाधिक वोट लेकर अपनी उत्कृष्ट रचना "शत-शत बार नमन" की प्रस्तुति के साथ सुश्री अंशी कमल प्रथम स्थान प्राप्त पाकर विजयी रहीं।
सुश्री अंशी कमल जी को विजयी होने के लिए हृदय से बधाई व अनन्त शुभकामनाएँ !!
इसी क्रम में अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना "जगपालक किसान" की प्रस्तुति के लिए अधिकाधिक वोट पाकर सुश्री अंजना कण्डवाल द्वितीय स्थान पर विजयी रहीं। सुश्री अंजना कण्डवाल जी को हृदय से बधाई व अनन्त शुभकामनाएँ !!
समीक्षा
(मीता चक्रवर्ती)
तकब 6/22 की कविताओं की समीक्षा सुश्री मीता चक्रबोर्ती जी ने की है। अब आपके समक्ष आपकी रचनाओं की समीक्षा लेकर उपस्थित हैं-----
समीक्षा ( मीता चक्रवर्ती )
तकब 6/22
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारा देश भारत एक कृषि प्रधान देश है । और सौभाग्य से हमें इस बार तस्वीर के रुप में प्रतिबिम्ब जी द्वारा यही विषय दिया गया है । किसान, खेत, हल,माटी, चित्र के आधार पर सभी ने अपनी अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर सुंदर कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया है ।इस बार सबकी कविताओं की समीक्षा का दायित्व मुझे सौंपा गया है।आप सभी प्रबुद्ध जनों की रचनाओं के साथ पूर्णरुपेण न्याय करने की कोशिश करुंगी , फिर भी यदि कहीं कोई त्रुटि रह जाती है तो आप सब से क्षमा प्रार्थी हूं ।
सर्वप्रथम विजेता सुश्री अंशी कमल - आपने कविता आखिरी पायदान पर लिखी थी ,पर आज अंतिम नहीं हैं सुश्री अंशी कमल जी।कविता का शीर्षक है "शत -शत बार नमन"।अंशी कमल जी ने अपनी कविता के माध्यम से न केवल किसानों को बल्कि किसान दंपत्ति को अपना नमन प्रेषित किया है । वे कहती हैं कि जो दंपत्ति सूर्योदय से पहले जागकर ,धूप ,शीत बरसात से जूझकर , अपने अथक परिश्रम से बंजर भूमि को भी उर्वरक बना देते हैं , जो विषम परिस्थिति में भी अपना धीरज नहीं खोते हैं उस हलधर दंपत्ति को मेरा शत शत बार नमन है ।
अंशी जी ,किसान दंपत्ति के प्रति आपके इस नजरिए को मेरा नमन है ।
द्वितीय स्थान पर विजयी रहीं सुश्री अंजना कण्डवाल - दसवें पायदान पर लिखी सुश्री अंजना कण्डवाल जी की कविता आज दूसरे नम्बर पर ,जिसका शीर्षक है "जगपालक किसान" । अंजना जी ने अपनी कविता में किसान को जगपालक के रुप में उल्लिखित किया है । सच ही है , वो किसान ही तो है जो अपना पसीना बहाकर फसल उगाता है और सबकी भूख मिटाता है । खेत खलिहानों से , बैलों से , माटी से जो उसका लगाव है उसे देखते हुए ही तो उसे भूमिपुत्र कहा जाता है। धन्यवाद अंजना जी इतनी सुंदर कविता लिखने के लिये ।और हम सभी को गढ़वाली भाषा का एक सुंदर सा शब्द सिखाने के लिये आपका बहुत बहुत आभार ।
अब चलते हैं अन्य रचनाकारों की प्रस्तुति की ओर......
1. मदन मोहन थपलियाल - पहले पायदान पर आती है श्री मदन मोहन थपलियाल सर की कविता जिसका शीर्षक है " वंदन माटी का" इस कविता में इन्होंने माटी की महिमा को बताते हुये अपने मन की अभिलाषा जाहिर की है 'मन करता है फिर से रज कण बन जाऊँ ' । थपलियाल सर ने कृषक और माटी के अद्भुत संबंध को उजागर किया है । ''आगे बैल पीछे कृषक बीच में साधन हल ' अपनी इस पंक्ति की तुलना त्रिदेव से करना अप्रतिम है।अपनी कविता में वे बताते हैं कि किस प्रकार कृषक और उसका परिवार अपने हल और बैलों के साथ माटीमय हो जाता है , वे उस परिवार की वंदना करना चाहते हैं ।वे उस माटी की वंदना करना चाहते हैं । उनके अनुसार जीवन की असली दौलत माटी ही है।कवि यहां खुद वाल्मीकि बनकर माटीमय हो जाना चाहता है।
थपलियाल सर आपकी इस अभिलाषा को मेरा वंदन है।
2. यामा शर्मा - अगले पायदान पर सुश्री यामा शर्मा जी की कविता , जिसका शिर्षक है "मानव का नाता " । इन्होने अपनी कविता में, मानव का खेतों से , खेतों का जीवन से ,श्रमिक का श्रम से, मुस्कान का अधरों से इस प्रकार संपूर्ण मानव जाति का प्रकृति से भिन्न भिन्न रुपों में जो रिश्ता है, जो नाता है उसे बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है । बहुत सुंदर कविता यामा जी ईश्वर करे आपकी कलम का लेखन से हमेशा नाता बना रहे ।
3.अजय अग्रवाल(आभा जी) - तीसरे पायदान पर आदरणीय सुश्री आभा जी की कविता है ,जिसका शीर्षक है "धरती"।आभा जी कहती हैं सूर्योदय के साथ साथ जागने से लेकर , हर छोटे-बड़े काम करते हुये हम जिस धरा की गोद में रात का विश्राम करते हैं , जो अपने सीने पर दर्द सहकर भी हमें सुंदर सुखद फल फूल देती है ,जिस धरा का मन खिरमन,मतलब अपनी कटी हुई फसल देखकर भी हर्षित होता है ,विशाल कर्म जीवन वाला कृषक जिसका लाड़ला है, जो बारिश के पानी के साथ मिलकर उपजाऊ बन जाती है, आओ हम सब मिलकर ऐसी धरती रुपी माँ का हरियाली से शृंगार करें ।जब ये धरती खुशी से लहलहायेगी तभी हम भी खुश रह पायेंगे ।
आभा जी आपके शब्द चयन और आपकी कविता की गहनता को मेरा दण्डवत् प्रणाम ।
4. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल - चौथे पायदान पर है श्री प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी की कविता , जिसका शीर्षक है "किसान बिकता सस्ता" । प्रतिबिम्ब जी ने अपनी कविता के माध्यम से किसानों की दयनीय और असहाय स्थिति को अंकित किया है कि किस तरह से कुछ स्वार्थपरस्त लोग अपने अपने मतलब से इन भोले भाले किसानों का उपयोग करते हैं। जो किसान कड़ी मेहनत करके पूरे देश का पेट भरता है ,वो खुद भूखा रह जाता है।प्रतिबिम्ब जी चिंता जताते हुये अपनी कविता में कहते हैं कि कब किसानों को सही मायने में उनका उचित पारिश्रमिक व उनके हिस्से का सम्मान मिलेगा ?
काश सर सभी की सोच आप जैसी होती तो आज किसानों की ये दुर्दशा न होती । किसानों के प्रति आपके स्नेह को मेरा नमन है ।
5. बीना भट्ट बड़शिलिया - पांचवें पायदान पर सुश्री बीना भट्ट जी मुक्तक छंद द्वारा अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करती हैं । अपने छंदों के माध्यम से वो कहना चाहती हैं कि किसान धूप, गर्मी, बरसात की परवाह किये बिना दिन रात करके फसल उगाता है और उसके मेहनत की कमाई बिचौलिये ले जाते हैं और उसे उसकी मेहनत का उचित मेहनताना भी नसीब नहीं हो पाता है।अति सुंदर कविता बीना जी,आपकी लेखनी को मेरा प्रणाम ।
6. विनीता मैथानी -छठवें पायदान पर सुश्री विनीता मैथानी जी कि कविता "मेरे पहाड़ का किसान" है ।विनीता जी ने अपनी कविता में पहाडों से ,अपने गाँवों से शहर की तरफ़ पलायन करते किसानों का चित्रण किया है । वे कहती हैं कि ये पहाड़ों की वादियां, ये गाँव सूनी नहीं होतीं, यदि तथाकथित सुख सुविधा और झूठी शान -ओ -शौकत की चाह में किसान अपनी जमीन ,अपना आसमान,ताजी हवा और मन के सुकून से पलायन नहीं करता ।
पहाड़ों की सी सुंदर कविता के लिये साधुवाद ... प्रणाम।
7. अलका गुप्ता 'भारती' - "मैं कृषक" शrर्षक कविता के साथ सुश्री अलका गुप्ता जी हैं सातवें पायदान पर । इनकी कविता में कृषक खुद अपनी बदहाली को बयाँ कर रहा है। वह कहता है यूं तो मै 'भूपाल' , समूचे भूमंडल का पोषण करने वाला कहलाता हूं पर खुद कुपोषित होकर मर जाता हूं। कहीं अशिक्षा , कहीं जहरीली दवाइयां,कभी मौसम तो कभी सरकारी दलालों का शिकार हूं मै।कृषकों की विषम परिस्थितियों को अपनी कविता के माध्यम से बहुत ही सहजता से चित्रित किया है आपने।प्रणाम आपकी लेखनी को ।
8. किरण श्रीवास्तव -आठवें पायदान पर है सुश्री किरण श्रीवास्तव जी की कविता , जिसका शीर्षक है "अन्नदाता तेरी जय हो" । किरण जी अपनी कविता में एक अन्नदाता के रुप में किसानों की जय जयकार करती हुई कहती हैं कि किसान ही वो सच्चा ईंसान है जो भेद भाव किये बिना सबके लिये अन्न उपजाता है ।वो जो काम करता है ये सबके बस की बात नहीं । पूरा पूरा दिन मिट्टी में सने रहना , दिन हो या रात गर्मी हो या बरसात उसका संघर्ष कभी रुकता नहीं है । किरण जी किसानों को ही ईश्वर का सच्चा बंदा मानती हैं ।
आपकी इस सच्चाई से भरी सोच की जय हो किरण जी।
9. मीता चक्रबोर्ती - अगले पायदान पर मैं खुद अपनी कविता "किसान" के साथ हूं । अपनी कविता के माध्यम से मैं ये कहना चाहती हूं कि इस धरती पर किसान किसी विधाता से कम नहीं है । वो अपना पसीना बहा कर अन्न उपजाता है , हम सबकी भूख मिटाने के लिये वो तिल तिल कर खुद को ही
मिटाता चला जाता है । चाहे कोई भी मौसम हो , कोई भी परिस्थिति क्यों न हो किसान अपने कर्तव्य के पथ से कभी नहीं डिगता है। }}
रचनाओं की समीक्षा लिखने के लिए मीता जी को पुनः धन्यवाद ...आभार।
आप सभी रचनाकारों की रचनाएँ चित्र के अनुसार सार्थक रहीं। मेरी दृष्टि में आप सभी बधाई के पात्र हैं।
निर्णायक मंडल के सभी सम्माननीय सहयोगी सुधीजनों का सहृदय धन्यवाद, आभार।
प्रोत्साहन हेतु प्रस्तुति के लिए आदरणीय भाई मदन मोहन थपलियाल जी"शैल", प्रिय प्रतिबिम्ब जी व प्यारी आभा जी(अजय अग्रवाल) का हृदय से आभार व साधुवाद।आप सभी अपना मार्गदर्शन व सहयोग बनाए रखिएगा।
तकब समूह के सभी सदस्यों से आग्रह है कि अपनी रचनाओं की प्रस्तुति देकर अपनी उपस्थिति से इस समूह की रौनक बनाए रखें।
सस्नेह शुभकामनाएँ!
प्रभा मित्तल.
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