Wednesday, May 4, 2022

तकब - 07/22 रचनाएँ,परिणाम एवं समीक्षा



तकब- ०७/२२
रचनाएँ


रोशन बलूनी
हे गोपाल गोबिंद 
#छंद-शार्दूल विक्रीडित
#पिंगलसूत्र-म स ज स त ग(222 112 121 112,221 221 2.
इसमें 19 वर्ण होते हैं। 12, 7 वर्णों पर विराम होता है। हर चरण में मगण , सगण , जगण , सगण , तगण , और बाद में एक गुरु होता है।

माथे सुन्दर मोर पंख सजते,
गोपाल-गोविंद हो।
टीका केसर भाल लाल चमके,
श्रीकृष्ण -कन्दर्प हो।
शान्तं शाश्वत लोक रंजक तुम्हीं,
संसार को प्यार दो।
हे नीलाम्बुज विष्णु ताप हर दो,
आओ!हमें तार दो।।

हे कान्हा मुरली धरो अधर में,
संगीत दे दो वही।
छेड़ो तान वही जरा जगत में,
प्रेमी सभी के तुम्हीं।
लीला रास रचो प्रभो मुदित हो,
आँखें जरा खोल दो।
दीनानाथ सनाथ आप सबके,
दो प्यार के बोल दो।।

अत्याकर्षक दीप्तियुक्त वदनं,
निष्काम हैं आप तो।
लोकातीत सदा कृपालु भगवन्,
संपूर्ण हैं आप तो।
हे दाता!अब भक्ति देकर हमें,
आत्मा धरो आप में।
माया-बंधन मुक्त होकर हमें,
ले लो प्रभो!आप में।।

टिप्पणी: "कृष्णं वन्दे जगत्गुरुम्" पूर्ण प्रज्ञ भगवान श्रीकृष्ण का दिव्य भव्य स्वरूप चित्ताकर्षक है।सिर मोर पंख से सुसज्जित,कस्तूरी तिलक से सुंदर ललाट और नीलाम्बुज समान मुखमंडल से युक्त है।वस्तुतः"आकर्षयति मोहयति इति कृष्णः"भगवान् श्रीकृष्ण का अलौकिक स्वरुप हृदयाल्हादकों को आनंदित करता है जैसे कृषक सुंदर फसल से जनसामान्य को बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है।




ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
जय श्री कृष्णा 
सार छंद --16+12 में पदावली
समांत-आरे

भज मन मुरलीधर हरि प्यारे |
श्यामल वरन मंयकहिं लाजैं,,,,कमल नयन रतनारे ।
मोर मुकुट पीतांबर साजे,,,,,,,,,,कानन कुंडल धारे ।
गोरोचन,चंदन को टीकों,,,,,,,,,,प्रभु के माथ सँवारे !
अधर धरी मुरली धुनि बाजै,,,,,,,मधुरिम सुर गुंजारे !
जेहि दर्शन कुबरी तन पावत,,,कृपा कियो प्रभु न्यारे।
जब विराट दरशन प्रभुदीन्हा,,,,,,,,अर्जुन मोह उबारे ।
बने सारथी धरम हेतु ,,,,,,,,,,,,,,धर्म -सत्य रखवारे ।
योगेश्वर,कर्तव्य धर्म हित,,,,,, तत्पर कृष्ण हमारे !
देवकिनन्दन जन्म लियो जब,,,,मातु-हिया उजियारे।
दरश पाय वसुदेव तात तब,,,,,,अपलक नैन निहारें ।
भक्त हृदय मन-“वीणा”बोली,,,,,,दीजै दरश पिया रे!

टिप्पणी: भगवान श्याम सुंदर का स्वरूप मनमोहक है मुरलीधरन का अवतार कल्याणकारी है सुखकारी है 
योगेश्वर नंदनंदन,,भगवान श्री कृष्ण का प्राकट्य,,अधर्म का नाश करने के लिए भारतभूमि वृंदावन में हुआ,,कर्तव्य का पाठ गीता के माध्यम से दिया अर्जुन मित्र के सारथी बनकर,द्वापर में अनंत लीलाएँ की,,,,इसी परम भक्ति भाव को प्रेषित किया है,,,जय श्री कृष्णा



सुनीता ध्यानी
हे मुरलीधर

#छंद- नवीन सवैया (मात्रिक)
मात्राभार- 32 (8-8-8-8)

हे मुरलीधर,हे गिरधारी!
श्याम सलोने, मदन मुरारी!
प्यारी छवि ने मोह लिया है,
तुमसे नाता जोड़ लिया है,
द्वार खड़ी हूँ, हे प्रभु तेरे,
नाम जपूँ मैं, शाम-सबेरे,
धेनु चरैया, रास रचैया,
पार लगा दे, पार लगैया,
पुनीत गीता ज्ञान सुनाना,
पावन बंशी तान सुनाना,
जनम हमारा सफल कहाए,
तुम संग प्रीति जो निभ जाए!
हे मधुसूदन, यशुमति लाला
श्याम मनोहर , दीन दयाला
दर्शन देकर, धन्य बनाना
शरणागत की लाज बचाना
हे मुरलीधर.....

टिप्पणी:  प्रभु श्रीकृष्ण हम सबके लिए वन्दनीय, अनुकरणीय हैं.. बाल स्वरूप कन्हैया हों या द्वारकाधीश... मुरलीधर हों या चक्रधारी.... गीता सुनाने वाले कृष्ण हों या बाँसुरी वाले कान्हा... उनको हर रूप में हर युग में हर व्यक्ति पाना चाहता है.. उनका कृपापात्र बनना चाहता है!




आभा अजय अग्रवाल 
आज सुबह सवेरे कन्हैया से गुफ्तगू 
(प्रोत्साहन हेतु)

शुभकामनाओं की थी आवश्यकता
कान्हा से बात हुई
कन्हैया मनमौजी बोला!
मैं विशवास नहीं करता
देने में शुभकामनाएं
वो कान्हा है न ,
अपने पे विश्वास रखो कहने वाला --
नियति यदि खेल खिला रही हो तो ?
तो शुभकामनायें देने का मन भी नहीं होता ? --
और ?
वो तो अदृश्य हो गया ;
निर्मोही है सदा से !
पर वो भी क्या करे !
किस-किस का रखे ध्यान !
हम भी तो कुछ ज्यादा ही
आश्रित हो जाते हैं न -
हर काम से पहले उसका मुंह तकते हैं !
संबल है वो मन का !
ढूंढ रही थीं आँखें
पर वो न मिला -
सोचा !
वो तो राधा को भी छोड़ गया था
निर्मोही !
पर था क्या सच में निर्मोही ?
नहीं !
मैं नहीं मानती ,
उसे देखने थे कितने कार्य ,
निभाना था सबका साथ ,
बस इसीलिए छोड़ दिया राधा को।
मन तो सदा राधा के पास रहा न --
फिर ! मैं तो राधा भी नहीं --
हाँ ! मीरा मान सकती हूँ अपने को
जिसे उसने कभी चाहा ही नहीं :
--कान्हा तू क्षण भर को भी मिले !
तो जीवन सफल !
आँखें ढूँढ रही मनमोहन को
अपने ऊपर भरोसा करो
कहके ये जा और वो जा ---
मेरे मन आकाश में रहना कन्हैया
इतना तो करना कान्हा
जब प्राण तन से निकले
छवि मन में ये बसी हो
होठों पे कुछ हंसी हो
उस वक़्त जल्दी आना
नहीं श्याम भूल जाना
कार्य से पहले तुम्हारी मूरत
बल देती है कान्हा !
शुभकामनायें दो न दो ,
साथ रहना बस यही चाहत --

टिप्पणी:…..श्याम सलौना मेरे मन का मीत वही राम है घनश्याम है 



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
मन मेरा कृष्ण हुआ जाता है
(प्रोत्साहन हेतु)

नारायण भगवान का तुम हो अवतार
मुरली की धुन पर नाचता सारा संसार
हर उद्धघोष में छिपा है जीवन का सार
गीता सा दिया हमें ज्ञान का भण्डार
मन मेरा कृष्ण हुआ जाता है

पीताम्बर कहूँ या कहूँ बांके बिहारी
गोबिंद कहूँ तुम्हें या कहूँ गिरधारी
तुम मुरारी या कहूँ तुम्हें कंसारी
देवकी नंदन कहूँ या यशोदा नंदन
मन मेरा कृष्ण हुआ जाता है

हृदय में बस एक दिया जलता है
मधुवन सा जीवन लगने लगता है
रोम - रोम में तब प्रेम खिलता है
कृष्ण भाव बन कर फिर उभरता है
मन मेरा कृष्ण हुआ जाता है

चेतना, चिंतन, समर्पण या मंथन
भावों के समुन्द्र से मैं क्या लिखूँ
राधा, रुक्मणि, गोपियाँ या सत्यभामा
किस-किस का प्रेम इन पन्नो पर लिखूँ
मन मेरा कृष्ण हुआ जाता है

चौसंठ विद्याओं में दक्ष तुम पूर्णावतार
राजनीति व कूटनीति से कर संवाद
धर्मयोग और कर्मयोग का पाठ पढ़ा
रक्षक, प्रेम और रूप तुम्हारा सखा
मन मेरा कृष्ण हुआ जाता है

बुद्धि, कौशल, पराक्रम और पुरुषार्थ संग
महाभारत युद्ध के तुम ही हो सूत्रधार
ब्रह्म, परब्रह्म व अध्यात्म का देकर ज्ञान
रस भक्ति का, श्रृंगार प्रेम का पाता विस्तार
मन मेरा कृष्ण हुआ जाता है

कान्हा - कान्हा शब्द बस मन में गूंजे
मन का “प्रतिबिम्ब” कृष्ण को खोजे
प्रकृति की राग रागनियाँ तन को सींचे
वात्सल्य रस से काव्य धारा फिर उपजे
मन मेरा कृष्ण हुआ जाता है

टिप्पणी: कृष्ण - भारतीय देवताओं में सबसे व्यापक रूप से पूजनीय और सबसे लोकप्रिय, हिंदू भगवान विष्णु के आठवें अवतार जो 64 विद्याएं और 16 कलाओं में निपुण थे ... धर्मयोगी व कर्मयोगी उनकी विशेषता है .... उनके इन रूपों को संक्षिप्त में, कृष्ण से प्रेम को समर्पित है



मदन मोहन थपलियाल 
कृष्ण
(प्रोत्साहन हेतु)


' जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ',
अधूरा प्रश्न -
उन्होंने कहा, 'कृष्ण' पर कुछ लिखो-
चित्र को समझो -
ज्ञान चक्षु खोलो -
ना रे ना -
कृष्ण !
कृष्ण को महिमा मंडित करना !
आम जनमानस के बूते का नहीं-
उसने तो कृष्ण को अपने हितों में ढालने का प्रयास किया-
श्रृंगार, रासलीला, माखन चोर सब संप्रदायों की भेंट -
यहां वो कृष्ण कहां?
शब्द कहां से लाऊं !
योग, ज्ञान, दर्शन,कला , दिव्य दृष्टि -
कहां है ?
बुद्धिजीवियों ने कृष्ण को हर संबंध से जोड़ा-
अपने विवेक को सर्वोपरि ठहराने का चक्र रचा-
सूर, मीरा, रसखान , गोप - गोपियों,
जमुना आदि में तलासने का यत्न किया-
आधुनिक पुराणों के रचयिता नहीं समझे कौन थे कृष्ण
सुकुमार बच्चों की किलकारियों में ढूंढ़ा-
कृष्ण की थाह न मिली-
कृष्ण अलौकिक शक्ति हैं-
कृष्ण कण - कण में हैं -
मूक की वाणी हैं कृष्ण-
सूरदास की लाठी हैं कृष्ण-
कृष्ण हमारी आत्मा हैं ।
कृष्ण को जानना है तो दर - दर भटकना छोड़ दें-
अदृश्य को महसूस करने का नाम है कृष्ण-
निशब्द होकर न मन हो जाइए -
फिर सुनाई देगी , मुरली की टेर , और गीता का ज्ञान !

टिप्पणी: : ' अध भर गगरी छलकत जाय',
'कृष्ण', को जानना है तो दिव्य दृष्टि को जगाना हो




अंशी कमल
हे योगेश्वर ! हे ऋषिकेशम्!
#विधा- गीत (चौपाई छन्द पर आधारित)


हे योगेश्वर ! हे ऋषिकेशम्!
वन्दन नित तव हे देवेशम्।।

केसर तिलक सुशोभित भालम्।
उर प्रभु बैजन्ती शुभ मालम्।।
कृष्ण मुरारी! हे गोपालम्!
अति मन भावन नेत्र विशालम्।।
केकी पर सिर श्यामल केशम्।
वन्दन नित तव हे देवेशम्।।

मञ्जुल नीलाम्बुज सम वर्णम्।
कुण्डल मकर सुशोभित कर्णम्।।
हे केशव! तव छवि मनहरणम्।
सकल जगत प्रभु नत तव चरणम्।।
अच्युत! माधव! अमृत! सुरेशम्।
वन्दन नित तव हे देवेशम्।।

धर शुभ मुरली प्रभु निज अधरम्।
प्रेम पुन: जागृत कर हृदयम्।।
प्रभु तनया-विनती तज ध्यानम्।
श्रावय शुभ गीता शुचि ज्ञानम्।।
लोचन उद्घाटय हर क्लेशम्।
वन्दन नित तव हे देवेशम्।।


टिप्पणी:इन्द्रियों को वश में रखने वाले योगेश्वर भगवान श्रीकष्ण की नित्य वन्दना है। योगेश्वर, ऋषिकेश, अच्युत, माधव, केशव, देवेश, सुरेश, अमृत, गोपाल, मुरारी आदि श्रीकृष्ण के अनेक नाम हैं। उनके मस्तक पर केसर-तिलक, गले में बैजन्ती माला, उनके विशाल नेत्र, सिर में मोर पंख व काले बाल, सुन्दर नीलकमल के समान वर्ण, कानों में मकर कुण्डल आदि से सुशोभित छवि सबके मन को हरती है। 



अंजना कंडवाल
हे योगेश्वर

छंद- नवीन_सवैया_छन्द (मात्रिक)
मात्राभार - 8, 8, 8, 8 चरणान्त 122

(1)
उज्ज्वल मस्तक, चंदन टीको;
घुँघर काले, केश तिहारो।

पंकज नयना, मोहनि मूरत;
मोर मुकुट को, सिर पर धारो।।

तन पीताम्बर, कानन कुंडल;
गल बैजंती, माल सँवारो।

श्यामल सुन्दर, गात सलोना;
आनंद सागर, नाम उचारो।।

(2)
खोजत हैं नित, आंगन कानन;
वन उपवन जन, श्याम न पायो।

पायो है निज, अंतर में जब;
अंतर मन में, ध्यान लगायो।।

त्रिलोकी प्रभु, अंतर्यामी;
जीव जगत के, कष्ट मिटायो।

आदि अनंता, हे योगेश्वर;
नील गगन सा, विस्तृत पायो।।


टिप्पणी:- भगवान श्रीकृष्ण का दिव्य अलौकिक स्वरूप में सिर पर मोर मुकुट है। चंदन तिलक लगा है उनका मस्तक सूर्य के तेज सा चमक रहा है। और वे अन्तर मन मे ध्यान लगाये हैं जैसे वे इस जगत को योग और ध्यान की शिक्षा दे रहे हों। उनका श्यामल रंग नील गगन से विस्तृत और अनंत है।
मोर मुकुट और ध्यान मुद्रा से हमें ज्ञात होता है कि ये श्रीकृष्ण का योगी स्वरूप है।सारा संसार उनके चरणों में शीश झुकाता है। हे भगवान श्रीकृष्ण! अपनी इस पुत्री की विनती सुनो और फिर से मुरली अपने होंठों में धारण कर हर हृदय में प्रेम जागृत करो तथा अपनी ध्यान मुद्रा को त्यागकर फिर से गीता का पवित्र ज्ञान सुनाओ तथा अपने नेत्रों को खोलकर सारे दुखों को दूर कर दो।



बीना भट्ट बड़शिलिया
मुरलीधर
विधा--दोहे

पंख मयूर सदा सजे,पहनते पीत पाग।
अद्भुत रूप श्याम धरे,मुरली रचती राग।।

मधुवन में है राधिका,कुंज गलिन में रास।
पूजे मीरा प्रेम में, गरल अमिय आभास।।

उपदेश तत्त्व ज्ञान का,दिया कर्म निष्काम।
महाभारत समर कथा,अर्जुन करे प्रनाम।।

मुरलीधर सुदर्शन लो,फिर से हो अवतार।
है बुद्धि कुंद मनुज की,लगें किस तरह पार।।

समझेंगे जब कृष्ण को,जानेंगे मर्म नाम।
उनके विस्मित रूप से,सुलझें उलझे काम।।

टिप्पणी----'कृष्ण'एक ऐसा रूप जो व्यापक है, प्रेम की पराकाष्ठा का दूजा नाम है, कर्म धर्म और विजय की धूलि का परमधाम है,ऐसे हमारे आराध्य देव प्रभु अनेकानेक लीलाओं के याम हैं।विनती स्वरूप श्री श्याम बंशी बजाते हैं तो पुष्प गुच्छ परिमल पल्लव बिखरते हैं, प्रीत में राधा मीरा रुक्मिणी सब न्यौछावर हैं....कितना अद्भुत अनुपम है, अनगिन उपमानों के दैदीप्यमान दिव्य शक्ति...इस धरा को पुनः आपकी उपस्थिति की कामना है


अलका गुप्ता 'भारती'
मेरे राम

विधा - चकोर सवैया
विधान_सात भगण + गुरु लघु

आर्य बने सत धर्म वरें हम,
वैदिक हों मनु कर्मठ ज्ञान।
राघव कृष्ण बने मम जीवन,
धर्म दया करुणा अभियान।
द्वेष मिटें हर अंतर से कर,
सृष्टि मनोहर रीति विहान।
गुंजित हो यश गान दिशा हर,
भारत वंदन हो अभिमान॥

घनाक्षरी राम पर

हे राम पुनः जग में,
राम राज्य संगवा दें ,
मिटा अनाचार त्राण ,
सत्याधार.. वर दें ।

छलके आचरण में ,
कर्म हो अवतरित ,
उद्धार शिला से होवें,
सत्यधर्म..भर दें ।

घुटती मानवता में
संस्कारित मर्यादा की
अलख संकल्प मम ,
जंगम में ..जर दें ।

मायावी बीहड़ छाया,
जग ये हारा विकल,
पुकारें.. त्राहि माम में,
आशा.. सु-संचार दें ॥

टिप्पणी: मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चंद्र एवं योगिराज श्री कृष्ण हमारे ऐतिहासिक अमर पूर्वज हैं जिनका जीवन चरित्र हम भारतीयों के लिए सदा पूजनीय है और रहेगा ।आज हमें उनके उस विराट चरित्र और मर्यादा को याद रखना चाहिए और उन्हें ही धारण करते हुए अपने मानव धर्म का पालन करना चाहिए ।



कुसुम शर्मा
बोल रे कन्हैया किस नाम से पुकारूँ मैं!

बोल रे कन्हैया किस नाम से पुकारूँ मैं !
कैसे रिझाऊँ मैं, कैसे मनाऊँ मैं
बोल रे कन्हैया किस नाम से पुकारूँ मैं !

कोई कहे गिरिधर तो कोई मुरलीधर !
कोई कहे गोपाला तो कोई गोविन्दा !

बोल रे कन्हैया किस नाम से पुकारूँ मैं !
कैसे रिझाऊँ मैं, कैसे मनाऊँ मैं

बोल रे कन्हैया किस नाम से पुकारूँ मैं !
कोई कहे कुंज बिहारी कोई चक्रधारी !
कोई कहे मुरारी तो कोई बनवारी !

बोल रे कन्हैया किस नाम से पुकारूँ मैं !
कैसे रिझाऊँ मैं, कैसे मनाऊँ मैं
बोल रे कन्हैया किस नाम से पुकारूँ मैं !

कोई कहे छलिया कोई रास रचिया !
कोई कहे मनोहर तो कोई मनमोहन !

बोल रे कन्हैया किस नाम से पुकारूँ मैं!
कैसे रिझाऊँ मैं कैसे मनाऊँ मैं
बोल रे कन्हैया किस नाम से पुकारूँ मैं!

कोई कहे नागर तो कोई दामोदर !
कोई कहे हरि तो कोई जगदीश !

बोल रे कन्हैया किस नाम से पुकारूँ मैं !
कैसे रिझाऊँ मैं कैसे मनाऊँ मैं
बोल रे कन्हैया किस नाम से पुकारूँ मैं !

टिप्पणी: कृष्ण जी के नाम अनेक हैं उन्हें हम किस नाम से पुकारे की वह हम से प्रसन्न हो जाए !



प्रभा मित्तल
नमामि कृष्णम् ! 
(प्रोत्साहन हेतु)

घन-श्यामल रंग,गम्भीर मुद्रा,
अर्द्धोन्मीलित अम्बक विशाल।
कानों में कुण्डल कांतिमय,
मुख मण्डल पर नासा रसाल।

मस्तक पर मोर-पंख शोभित,
काली भौहें धनु के समान,
नयनों पर विनत सघन पलकें,
आनन पर मधुरिम मुस्कान।

पीत वसन ओढ़े पीताम्बर,
भाल सजे तिलक अभिराम।
रीझ रहा जग आतुर होकर,
दर्शन दो अब तो घनश्याम।

जब जब हो धर्म की हानि
बढ़ें पाप और महाअभिमानी।
तब आओगे मर्त्य लोक में,
यही सुनी है संतों की बानी।

जगन्नियन्ता हे ! सर्वेश्वर हे !
तुम धर्माध्यक्ष हो कृपानिधान !
जगती को बढ़ते अनाचार से
मुक्त करो, हे माधव! हे श्याम !

फिर से चक्र घुमाओ अपना,
हिय में भर दो गीता का ज्ञान!
झंकृत कर दे जो उरतंत्री के तार,
जग में गूँजे वो ही वंशी की तान !

मेरे श्वासों में पद्मनाभ बसे बस,
कृपा करो हे मुरलीधर अविराम !
मम अंतर में आसक्ति भर दो,
सदा करूँ तव भक्ति निष्काम।

तुम ही राम हो तुम ही कृष्ण,
तुम हो अनादिह ! हे दया निधान !!
हाथ गहे भव सागर तारो जगपालक!
तुम ही विश्वमूर्ति तुम ही वर्द्धमान!!

नमामि कृष्णम् नमन जगन्नाथम्!!

टिप्पणी: प्रभु एक रूप अनेक।एक मात्र सहारा प्रभु का ही है..उनका स्वरूप अलौकिक है,अनन्त है।वही इस पृथ्वी पर बढ़ते अनाचार को दूर करेंगे। )


परिणाम व समीक्षा  - प्रभा मित्तल


नमस्कार प्रिय मित्रों !
कोई तो शक्ति है जिसका ब्रह्माण्ड की गतिविधि पर नियंत्रण है, जिसके इशारों पर यह प्रकृति सज-संवरकर खिल रही है,धरती अपनी धुरी पर घूम रही है, ये संसार चल रहा है,हमारे मन की डोर को कसता हुआ हमारी आस्था और विश्वास को दृढ़ बनाता है परन्तु दिखाई नहीं देता...उसी अदृश्य शक्ति को हम ईश्वर का नाम देते हैं। वही ईश्वर अपना रूप लेकर द्वापर युग में जन्मे, निष्काम कर्मयोगी,स्थितप्रज्ञ, दार्शनिक, दैवी सम्पदाओं से सुसज्जित युगपुरुष श्री कृष्ण विष्णु के आठवें अवतार कहे जाते हैं। भगवान् श्री कृष्ण ने धर्म,राजनीति,समाज और नीति-नियमों को व्यवस्थित कर एक नया रूप दिया था।।उन्होंने अपने भक्तों की भगवान नहीं बल्कि सखा बनकर सदैव रक्षा की है।जिनकी माया अपरम्पार है,ऐसे भगवान श्री कृष्ण के चित्र पर ही हमें इस बार अपने विचार व्यक्त करने थे।आप सभी प्रतिभागियों ने भिन्न-भिन्न विधाओं में अपने मनोभाव प्रकट किए।सभी ने ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति-भावना और आस्था का परिचय दिया।

तकब 7/22 के चित्र पर निर्णायक मण्डल से आई चार रचनाओं के अतिरिक्त आठ प्रतिभागियों की रचनाएँ हमें मिलीं।चूँकि यह प्रतियोगिता है और इन्हीं में से हमें उत्कृष्ट रचना को चुनना है अतः सभी रचनाओं पर निर्णायक मण्डल से मिले वोटों की संख्या इस प्रकार है----
प्रथम स्थान के लिए वोटों की संख्या......
1.ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार....1
2.अंजना कण्डवाल......1
3.रोशन बलूनी......3
--------------------------
द्वितीय स्थान के लिए वोटों की संख्या.....
1.सुनीता ध्यानी.....1
2.ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार....1
3.बीना भट्ट बड़शीलिया....1
4.अंशी कमल.....1
5.अंजना कण्डवाल.....1
----------------------
इस प्रकार सर्वाधिक वोट पाकर प्रथम स्थान प्राप्त कर 'तस्वीर क्या बोले' पर उत्कृष्ट रचना का सृजन कर रोशन बलूनी जी विजयी हुए। रोशन बलूनी जी को हम सब की ओर से बहुत बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनाएँ!!


इसी क्रम में अपनी श्रेष्ठ रचना " जय श्री कृष्णा " की प्रस्तुति के लिए अधिकाधिक वोट पाकर सुश्री ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार एवम् सुश्री अंजना कण्डवाल "तस्वीर क्या बोले" पर अपनी श्रेष्ठ प्रस्तुति के साथ द्वितीय स्थान पर विजयी रहीं।सुश्री ब्रह्माणी वीणा जी और सुश्री अंजना कण्डवाल जी को हृदय से बधाई व अनन्त शुभकामनाएँँ !!
मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि तकब 7/22 की कविताओं की समीक्षा प्रिय प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी ने की है।इससे भी अधिक प्रसन्नता इस बात की है कि मुझे प्रतिबिम्ब जी की लिखी हुई शानदार समीक्षा यहाँ प्रस्तुत करने का सुअवसर मिला। इस सम्मान और सहयोग के लिए मैं प्रतिबिम्ब जी का हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ। तो चलिए अब आपके समक्ष आपकी रचनाओं की समीक्षा लेकर उपस्थित हैं






समीक्षा..... तकब 7/22

तकब प्रतियोगिताओं में किरण आर्य की समीक्षा से शुरू हुई यह यात्रा और प्रभा मित्तल जी की गूढ़ और प्रभावित करती समीक्षा सदैव रोमांचित करती रही। एक पाठक के रूप में उसका मूल्यांकन करते हुए शब्दों के अलावा कुछ ठोस लिखा नहीं समीक्षा के संदर्भ में। उसके बाद सदस्यों की भूमिका, उनकी समीक्षा ने मन को जहाँ ख़ुशी दी वहीं उनकी प्रतिभा को एक नई जिम्मेदारी से जोड़ पाया और यह विश्वास हुआ कि वे इसमें विस्तार पायेंगे। अलका गुप्ता जी, मीनाक्षी कपूर जी, किरण श्रीवास्तव जी, नैनी ग्रोवर जी, मीता चक्रवर्ती जी ने शानदार समीक्षा के द्वारा अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। कुछ सदस्य किसी कारणवश इस जिम्मेदारी का निर्वहन न कर पाये, तब प्रभा जी ने यह दायित्व हर बार की तरह तन-मन से निभाया। तकब 07 के लिए भी सन्दीप जी को चुना गया था समीक्षा हेतु, लेकिन अस्वस्थता के कारण वे समय न दे पाए, तो सोचा कि क्यों न मैं ही इस बार समीक्षा लिखने का प्रयास करूँ...। आशा है आप सबका मार्गदर्शन मुझे मिलेगा इस प्रयास में...।

सर्वप्रथम सभी सदस्यों का हार्दिक अभिनन्दन और प्रतियोगिता में सहभागिता हेतु हार्दिक आभार. इस बार का चित्र कृष्ण का है – कृष्ण जो हमारे अराध्य हैं, श्रीमद्‍ भगवद्गीता के सूत्रधार हैं,एक राजनीतिवेत्ता, एक कर्मयोगी,दार्शनिक और श्रेष्ठ युगपुरुष हैं। उनकी छवि को, उनके कृतित्व को, उनके प्रेम को सभी ने अपने भावों के अनुसार शब्द दिए हैं, कुछ मित्रों ने विधाओं में ढाल कर अपनी बात कही है। सभी का अभिवादन करते हुए पहली रचना की ओर चलते हैं...


सर्व प्रथम,उत्कृष्ट प्रस्तुति के रचयिता....रोशन बलूनी जी ने ‘कृष्णं वन्दे जगत्गुरुम्’ के अपने भाव को शार्दूल विक्रीडित छंद में ढालकर उनके दिव्य रूप का मनमोहक चित्रण बहुत सुन्दरता से हम सबके समक्ष रखा है। इसमें कोई संशय नहीं कि श्रीकृष्ण जी के अलौकिक स्वरूप, प्रत्येक अंग, गतिविधियां एवं क्रिया- कलाप सभी मधुर है और उनके दर्शन व स्मरण मात्र से ही सजीव और निर्जीव वस्तुएं भी मधुरता को प्राप्त कर लेती हैं। इस स्वरूप को श्री बल्लभाचार्य जी द्वारा कृत मधुराष्टकं से दर्शाया गया है. बलूणी जी ने ‘”आकर्षयति मोहयति इति कृष्णः” को अपने शब्द भाव के साथ विनती और आवाहन दोनों को स्थान दिया है। मर्यादित (छंद) व सुंदर अभिव्यक्ति हेतु साधुवाद.- - शुभम् !

विभिन्न छंदों का ज्ञान रखने वाली, इस समूह की वरिष्ठ सदस्य और हिंदी प्रेमी आदरणीय वीणा ब्रहमाणी जी का सान्निध्य सदैव हमें मिलता रहता है। सृजनता उनका प्रेम है, यही प्रेम उनकी रचना में साफ़ झलकता है कृष्ण के लिए। उनके रूप का सारगर्भित वर्णन कर उनकी विशेषताओं को उकेरा है। उनके सार छंद में रचित ‘जय श्री कृष्णा’ में वीणा जी ने परम भक्ति भाव को जहाँ प्रेषित किया है, वहीं एक विनती भी की है “भक्त हृदय मन-“वीणा”बोली,,,,,,दीजै दरश पिया रे”। वीणा जी सफलतापूर्वक आपने श्रीकृष्ण का हमें दर्शन करवाया है इस सृजन के माध्यम से। श्रीकृष्ण आपकी मनोकामना पूरी करें..... शुभम् !


अंजना कंडवाल जी भी नवीन सवैया छंद में दो भाग में अपने भाव रखते हुए उनके योग स्वरूप, अलौकिक स्वरूप व दिव्य स्वरूप का वर्णन कर रही हैं। चित्र में उभरे उनके नीले रंग से प्रभावित होकर वे उन्हें आसमान सा विस्तार दे रही हैं। भटक कर नहीं अन्तरमन में ध्यान लगा कर कृष्ण को पाने का रास्ता दिखा रही हैं। सुंदर अभिव्यक्ति अंजना जी – शुभम् !


इस प्रतियोगिता में छंदों की इस कड़ी में सुनीता ध्यानी जी ने भी अपनी प्रतिभा से परिचय करवाया है। नवीन सवैया छंद में रचित रचना में रोशन जी व वीणा जी की तरह ही कृष्ण के अलौकिक रूप का चित्रण किया है. कृष्ण से अपने प्रेम को सबके साथ जोड़कर प्रार्थना स्वरूप हम सबके समक्ष रखने का कुशल प्रयास किया है - शुभम् !

भावों और शब्दों को नए विचार नई सोच के साथ मुखर रूप से रखने में आभा अजय दी का कोई सानी नहीं. प्रोत्साहन हेतु लिखी हुई इस रचना में भी आभा दी ने सबकी सोच से अलग कृष्ण को कृष्ण की ही बातों में उलझाकर खुद के प्रेम को बड़ी भावनात्मकता से उद्धृत किया है. और सब कुछ मांगकर शरणागत हुई जाती हैं ..... मन का मीत जो ठहरा उनका कृष्णा ... दी आपकी सोच व लेखनी को प्रणाम - शुभम !

मैंने भी प्रोत्साहन हेतु लिखी हुई अपनी रचना में अपने मन को कृष्ण के लिए समर्पित होते पाया है कारण उनका रूप, उनकी कलाएं, उनका प्रेम, उनका कौशल, धर्मयोग या कर्मयोग है। उनकी सभी विशेषताओं को रचना के माध्यम से रखने का प्रयास किया है। सफल या असफल यह पाठक तय करेंगे.....!

शैलवाणी तो सदैव एक सीख, एक सन्देश अपनी रचना के माध्यम से सभी पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास करती है। मदन मोहन थपलियाल ‘शैल’ जी द्वारा प्रोत्साहन हेतु लिखी हुई रचना हमें कृष्ण का समग्र दर्शन करवाती है। कृष्ण महिमा को मंडित करने के लिए, उनकी अदृश्यता को मन से महसूस करने का विचार देती और कृष्ण के विराट व्यक्तित्व को जानने हेतु दिव्य दृष्टि को जगाने के लिए प्रेरित करती रचना है। शैल जी का कहना सत्य है कि कृष्ण कण कण में है, बस महसूस करना है, हमें आधा अधूरा नहीं पूर्ण रूप से स्वीकारना होगा। साधुवाद शैल जी - शुभम् !

इस बार हमें अधिकांश छंद बंद रचनायें मिली हैं. अंशी कमल ने भी “हे योगेश्वर ! हे ऋषिकेशम्!” गीत ( चौपाई छंद) में कृष्ण की वंदना की है उनके हर रूप का गुणगान किया है. उनके कई नामों का उल्लेख किया है साथ इस धरती पर पुन: श्रीकृष्ण के आने के लिए वंदना की है। सारा संसार उनके चरणों में शीश झुकाता है लेकिन कृष्ण के प्रेम के लिए, उनकी बांसुरी को फिर से सुनने, गीता की तरह ज्ञान बांटने, जन जन के दुःख को दूर करने हेतु पुन: इस धरती पर अवतरित होने का निवेदन किया है। अंशी सफल प्रयास! - शुभम् !

बीना भट्ट बड़शिलिया जी श्रीकृष्ण के व्यापक रूप को दोहों के माध्यम से रखने में सफल हुई हैं। श्रीकृष्ण के रूप- स्वरूप को सामने रखते हुए उनका आभास करते शब्द, उनके कर्म - धर्म को, उनके उपदेशों को, उनकी विजय को परमधाम मानते हुए उनकी लीलाओं, उनके प्रेम और दिव्य शक्ति का बोध करवा कर वे भी कृष्ण को पुनः अवतार लेने के लिए कह रही हैं. बहुत सुंदर प्रस्तुति बीना जी – शुभम् !

अलका गुप्ता जी ने चकोर सवैया में श्रीकृष्ण और घनाक्षरी में राम को उदृत किया है। दोनों ऐतिहासिक मान्यता का भान करवाकर दोनों की भव्यता और मानवता को दर्शाया है। दोनों के विराट चरित्र और मर्यादित होकर जनमानस के कल्याण को उदृत किया है। साथ सन्देश देने का प्रयास किया है कि हम भी इसे जीवन में अपनाएं...! सुंदर - शुभम् !

कुसुम जी की की पंक्तियाँ ‘बोल रे कन्हैया किस नाम से पुकारूँ मैं’ किसी भजन की पंक्तियाँ प्रतीत हो रही हैं ‘कहूं नन्द लाला या कहूं मुरलीवाला, बोल रे कन्हैया किस नाम से पुकारूँ... कितने नाम से पुकारा जाए यह तो कृष्ण की लीलाओं का ही परिणाम है कि हम उन्हें विभिन्न नामों से जानते हैं .. हर रूप हर नाम मधुर है.. कुसुम जी प्रयास कीजिये कि आपके शब्द भाव नए रूप में, नई विधा में हो और पुनरावृत्ति न लगे - शुभम् !

अंत में आई रचना प्रभा मित्तल जी की है... बड़ी सरलता और सुंदर शब्द न्यास के साथ प्रभु का गुणगान करते हुए आवाहन कर रही हैं। स्वयं के लिए निष्काम भक्ति का द्वार खोलने की इच्छा रखते हुए प्रणाम कर रही हैं।श्री कृष्ण के रूप और कृपा को उभारते हुए प्रार्थना कर रही हैं कि इस धरती पर बढ़ रहे अनाचार का, धर्म की हानि का, बढ़ते पापों/पापियों का उन्मूलन करने के लिए मर्त्यलोक में अवतरित होते हो तो आओ अब समय आ गया है। शानदार अभिव्यक्ति प्रभा जी – शुभम् ]
-  प्रतिबिम्ब  बड़थ्वाल

बहुत-बहुत बधाई प्रतिबिम्ब जी इस सटीक,सारगर्भित व सार्थक समीक्षा के लिए हृदय से साधुवाद...आभार ।
आप सभी रचनाकारों ने अपनी रचनाओं में चित्र के अनुसार सार्थक प्रस्तुति दी।सभी की रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण के प्रति आस्था,विश्वास और भक्ति का समावेश है। सभी के लिए हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ।
निर्णायक मंडल के सभी सम्माननीय सहयोगी सुधीजनों का सहृदय धन्यवाद, आभार।प्रोत्साहन हेतु प्रस्तुति के लिए आदरणीय श्री मदन मोहन थपलियाल जी शैल भाई, प्रिय आभा जी तथा प्रिय प्रतिबिम्ब जी का हृदय से आभार व साधुवाद।उत्कृष्ट समीक्षा के लिए प्रिय प्रतिबिम्ब जी को हृदय से बधाई व साधुवाद।निर्णायक मण्डल में हमारे वरिष्ठ आदरणीय चंद्रवल्लभ ढौंड़ियाल जी का स्नेहाशीष बना रहे एवम् आप सभी अपना मार्गदर्शन व सहयोग बनाए रखिएगा। सस्नेह शुभकामनाएँ..!
प्रभा मित्तल.
नई दिल्ली.




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