तकब 11
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
देवाधिदेव महादेव की वंदना, ,,,,
पंच्चामर छंद में,,,,,,
( 8 +8 वर्ण 12 मात्राभार व 1 2,12 1 2 1 2 , 1 2 1 2 1 21
2 की आवृति, अंत
तुकांत से करें
==========
*********************************
नमामि हे उमेश्वरा ,,,नमो शिवाय शंकरा !
कृपा करो सुरेश्वरा , प्रभो शिवा महेश्वरा !
सुकंठ मुंडमाल है,,,,,, सुवेश वेश औघरा !
भजामि राम नाम की,,,सदा जपैं रमेश्वरा !
भुजंग अंग में लसे , ,,,,,,प्रचंड हैं भयंकरा !
विरूप रूप को कहै , शिवे स्वरूप सुंदरा !
सुसंग शैलजा सती , ,,,,,,विराजती मनोहरा !
सदा निवासनी हिया,शिवा-प्रिया शुभांकरा !
हिमालया विराजते,,,,, ,सुशांत साधना करें !
मयंक शीश शोभिते, ,,,,,,,सुगंग पावनी बहें !
कृपालु हो दयालु हो, ,,,शिवे शिवे विशंभरे !
कलेश ना कभी रहे ,,,, प्रभो शिवे दया करें !
त्रिनेत्र शंभु खोलते, विनाश काल आ
पड़े !
भजामि ओम नाम की,जपा करें क्षमा करें !
उमेश प्रार्थना करूँ ,,, हिया प्रकाश
से भरें !
सुप॔थ में सदा रहूँ ,,, निःस्वार्थ साधना करें !
टिप्पणी: भगवान ओंकारेश्वर सदाशिव देवाधिदेव महादेव जी को
प्रणाम है ,,उनकी
महिमा अपरंपार है,,गले
में नागों की माला,हाथ
मे त्रिशूल धारी रुद्रावतार महाकालेश्वर का औघड़ रूप भी सुन्दर है,,,वो शरणागत की
रक्षा करें,,
यही शिव भक्ति भाव को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है,,,!!!!!
रोशन बलूनी
विषय-शिव महिमा
(विधा-मत्तगयन्द छंद - विधान-211 211 211 211,211 211
211,22)
सावन मास नमो शिव शंकर,भूत दिगम्बर
दीन दयाला।
वासर सोम वही मन-मंदिर,नाचत गावत
शैव शिवाला।
साधक कावड़ वे जल लेकर,धारित हैं सब
ही मृगछाला।
शंकर शंकर शंकर शंकर,शंकर हैं अति भक्त कृपाला।।
कंकर पत्थर में शिव शंकर,भैरव नाथ
तमोगुण धारी।
स्थावर जंगम रुद्र भयंकर,काल किरात
तुम्हीं विषधारी।
हैं नटराज पिनाक सुदर्शन,पाशुपतास्त्र
वही धनु धारी।
शंकर शंकर शंकर शंकर,शंकर सौम्य त्रयम्बक धारी।।
पावन श्रावण मंगल गायन,चन्दन पुष्प
चढें शुभकारी।
भक्त शिरोमणि रावण पूजित,ताण्डव नृत्य
करें त्रिपुरारी।
शेखर ईश्वर विष्णु सदाशिव,अंतक गंग नदी
शिरधारी।
शंकर शंकर शंकर शंकर,शंकर शैव कहें शिवकारी।।
टिप्पणी: अकारस्तु वासुदेवस्यात्,उकारस्तु
महेश्वरः मकारस्तु प्रजापतिः।।...ॐशब्द में तीनों देवता समाहित हैं,..भगवान् शिव
कहते हैं मैं ओंकार हूँ,
मैं निराकार,
निर्विकार,ब्रह्माण्ड
से परे हूँ...मैं ही भूत भविष्य वर्ततमान का नियामक हूँ...मैं संहारक शिव
हूँ..आशुतोष महादेव हूँ। मुझे जो भक्त श्रद्धा और भक्तिमार्ग से चातुर्मास में
कावड,विल्वपत्र
प्रसन्नता अर्पित करता है महामृत्यु जो कि मेरा ही स्वरुप है उसे जीत लेता है और
स्वाभाविक मृत्यूपरान्त मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।यक्ष,किन्नर, देव-दानव सभी
कंकर-कंकर में मुझे ही प्राप्त करते हैं....इस भाव से मैने शिवकृपा से ही
मत्तगयन्द छंद में तीन पद्य भगवान् आशुतोष के श्रीचरणों में भावपुष्पाञ्जलि अर्पित
किया है।
#ॐशाम्बसदाशिवायनमः।।
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
महादेव
(प्रोत्साहन हेतु)
विश्वेश्वर हो तुम, मेरी चेतना के अन्तर्यामी
कल्याणकारी तुम, लय प्रलय तुम्हारे अधीन
योगी रूप में रहते, कभी सौम्य कभी रौद्र
तुम अनादि और सृष्टि प्रक्रिया के हो स्रोत
देवों के देव तुम, पुकारूँ मैं तुम्हें महादेव
तुम सृष्टि उत्पत्ति, स्थिति व् संहार के अधिपति
ब्रह्माण्ड की तरह न शुरुआत न तुम्हारा कोई अंत
मस्तक पर चंद्र. कंठ पर रहते सर्प महाविषधर
काल भैरव और मृत्युंजय, तुम हो
अर्धनारीश्वर
देवों के देव तुम, पुकारूँ मैं तुम्हें महादेव
भक्तों में कोई भेद नहीं, नाम रावण हो
या राम
आदिदेव,
उमापति, त्र्यम्बक
तुम्हीं हो सबके महेश
बचाने सृष्टि को, कर विष पान तुम कहलाते नीलकंठ
शिवपुराण तुम्हारा गान, निवास है
सरोवर कैलाश
देवों के देव तुम, पुकारूँ मैं तुम्हें महादेव
नंदी प्रतीक पुरुषार्थ का, करते ध्यान
अराध्य का
नंदी को प्रसन्न कर ही, होता फलीभूत
शिव दर्शन
सावन माह पवित्र हैं, करते अनुयायी तुम्हारा पूजन
बेल पत्र जल के अभिषेक से, हो जाते तुम
प्रसन्न
देवों के देव तुम, पुकारूँ मैं तुम्हें महादेव
सोमनाथ,
केदारनाथ,
काशी-विश्वनाथ,
ममलेश्वर
वैद्दनाथ,
भीमशंकर,
रामेश्वर,
नागेश्वर,
त्र्यम्बकेश्वर,
मल्लिकार्जुन,
महाकाल, व्
धृश्नेश्वर १२ है ज्योतिर्लिंग
तुम महेश्वर,
तुम पिनाकी,
अजर अमर अविनाशी हो
देवों के देव तुम, पुकारूँ मैं तुम्हें महादेव
टिप्पणी: महादेव को देखते है जो उनका विराट स्वरूप सामने आ
जाता है और उनका नाम महादेव ही भाता है मुझे ... इसलिए महादेव के व्यक्तित्व का
चित्रण इस रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ
आभा अजय अग्रवाल
“
उमामहेश्वर “
(प्रोत्साहन हेतु)
……
ओ मेरे शिव भोला भंडारी !
बिन सोचे -समझे जब तूने -
पिया हलाहल गटगट था ,
तुझे भान था उमा साथ है
वो सब कुछ संभाल लेगी ,
ऐसी कोई विपद नहीं
जो उमा नहीं हर सकती है !
मानव देह की संरचना में ,
वही तो तेरी संगिनी थी !
तू वैज्ञानिक सर्वज्ञ जगकर्ता
तेरी अर्धांगिनी भी तुझसी है ।
हलाहल कंठ में उतर रहा था
शिव चेतना मूर्च्छा में थी ,
उमा भवानी पास खड़ी थी
साँस रोक के देख रही थी !
कंठ में विष कहां रोकना !
तुरंत ही निर्णय लेना था ;
एक घड़ी -आधा घड़ी भी
शिव शंकर पे भारी थी ,
पर उमा सनातन नारी है
वो कठिनाई से कब हारी थी :
उपजिव्हा पे आते ही विष के
कंठ दबा उमा ने शिव का ,
विष को कंठ में रोक दिया:
मेरी मां के शिवसंकल्प ने
धैर्य को भी लजा दिया !
कंठ में धारण कर विष को
भोले तू नील कंठ कहलाया ,
अर मां ने अपनी इस कला को
सग़रे जग से छिपा लिया !
चैतन्य हुए शिव तो
उमा ने नयनों से बरज दिया
मैं ना सामने आऊँगी -
शिव ना मेरा बखान करो ,
और तभी से भोले बाबा
उमा महेश्वर कहलाये ।
अर्धनारीश्वर रूप धर के
जगकर्ता संहर्ता कहलाये
टिप्पणी: कहीं पढ़ा था उमा शिव समान ही प्रखर वैज्ञानिक हैं । समुद्र मंथन में उमा ने ही शिव को चिकित्सीय सेवा दी थी जिससे उनका विष कंठ में ही रह गया था ,श्वास नली तक नहीं आ पाया था , जिसे मंथन के पश्चात उमा ने उगलवा दिया था ।कैलाश मेंआज भी उनकी प्रयोगशाला है जहां वो अन्य देवों के साथ सृष्टि को सम्भालने को नित नये प्रयोग करते रहते हैं ,शिवशक्ति की आज्ञा के बिना संसार में कुछ भी सम्भव नही ॥
भारती ए गुप्ता
जय जय शिव शंकर
ओम नमः शिवाय
शिव जिसके रक्षक है
उसका कौन बुरा कर पाए
गंगा तेरे शीश विराजे
जग में सबके तारण हारे
नीलकंठ कहलाते हैं
विश् प्याला पी जाते हैं
श्रावण मास है जिसको प्यारा
जिसको पूजा है जग सारा
शिव की जटा से निकली गंगा धारा
जिसने पापों से जगतारा
शिव शंकर की महिमा न्यारी
अर्धांगिनी है माता पार्वती
जिसको पूजा भारत की हर नारी
शिव शंकर के 12 नाम
बेलपत्र से पूजे जाते
तंत्र साधना में भैरव कहलाते
हर मुश्किल को हर लेते
बोलो ओम नमः शिवाय
बोलो ओम नमः शिवाय
टिप्पणी: शिव शंकर की महिमा अपरंपार है
इसीलिए देवों के देव महादेव कहलाते हैं
सर्प धारी त्रिशूल धारी विष पीने वाले महेश
देवों के देव शंकर जी को शत् शत् नमन है
कुसुम शर्मा
मेरे भोले बाबा का रूप कितना प्यारा है !
मेरे भोले बाबा का रूप कितना प्यारा है!
सर पे गंगा गले सर्प माला है
हाथ में त्रिशूल और डमरू
तन पे भस्म बांधे बाघ की छाला है !
मेरे भोले बाबा का रूप ही निराला है !!
कोई कहे महेश तो कोई शंकर
कोई कहे नीलकंठ तो कोई चन्द्रशेखर
कालों के काल है ये तो महाकाल
देवों के देव है ये तो महादेव
कोई कहे रूद्र तो कोई भैरव
जिस रूप में देखो वो रूप बड़ा प्यारा है
मेरे भोले बाबा का रूप ही निराला है !!
अर्धांगिनी है पार्वती पुत्र कार्तिकेय और गणेश
नन्दी की सवारी करते रहते संग प्रेत और गंण
पीते जब भंग का प्याला करते सभी हुड़दंग
ये रूप देख कर देवता भी रहते दंग
मेरे भोले बाबा का परिवार ही निराला है !
भेदभाव न कभी करते अपने भक्तों संग
एक बेल की पाति से होते है प्रसन्न
हर लेते दुख दर्द सब उनके अंग अंग
मेरे भोले बाबा जब होते हैं प्रसन्न
मेरे भोले बाबा की भक्ति ही निराली है !
चढ़ती पूजा में भस्म और बेल और फूलों की थाली है !
मेरे भोले बाबा का रूप ही निराला है!
जिस रूप में देखो वो लगता बड़ा प्यारा है !!
टिप्पणी: भोले बाबा बड़े ही भोले है उन्हें किसी भी रूप में
देखो वो लगते सबको प्यारे है ! वो अपने भक्तों में कभी भेदभाव नहीं करते ! कोई भी
व्यक्ति सच्चे मन से गर उनकी पूजा करता है तो वो बड़ी जल्दी उस पर प्रसन्न हो कर
उसकी मनोकामना पूर्ण कर देते है !!
बिमला रावत
शिव तेरे नाम अनेक
विधा -- सायली छन्द
(पाँच पंक्तियाँ और नौ शब्द ---- पहली पंक्तियाँ में - 01
शब्द , दूसरी
में -- 02 , तीसरी
में -- 03 , चौथी
में -- --02 और अन्तिम पांचवीं पंक्ति में --01 शब्द , रचना
अर्थपूर्ण ।)
1
हे
आदिदेव आशुतोष
भाल त्रिपुण्ड्र मुण्डमालाधर
आपको कोटि
प्रणाम ॥
2
शशिधारी
चरणों में
अर्पित है आपके
बिल्वपत्र ,
गङ्गाजल
स्वीकारो ॥
3
पिया
घोर हलाहल
जगति -कष्ट हरने को
कहलाये आप
नीलकण्ठ ॥
4
जीवन
वैरागियों सा
एक हाथ डमरू
कण्ठ में
नागमाला ॥
5
करुणासागर
शिव भोले-भण्डारी
रूप अनूप जटाधारी
शुभ मंगलकारी
त्रिपुरारि ॥
6
परिधान
मनमोहक व्याघ्रचर्म
अभय वरद मुद्रा
भाग्य विधाता
उमापति ॥
7
उलझकर
वेगमयी गङ्गा
शिव जटाओं में
हो गई
शान्त ॥
8
मैं
डमरू बजा
जग -हित कल्याण को
करती तेरी
आराधना ॥
9
हे
कैलाशवासी अन्तर्यामी
आशुतोष पूर्ण करना
तुम सबकी
मनोकामना ॥
10
चाहे
दु:ख़ हो
या सुख हो
रहे तेरा
ध्यान ॥
11
संवरे
सबका जीवन
ॐ नमः शिवाय
मन्त्र जपकर
त्रिनेत्रधारी ॥
12
शिवबाबा
यही कामना
सकल संसार मनुज
हो जायें
शिवमय ॥
टिप्पणी: मेरी यह रचना भगवान शिव के विविध नामो से सज्जित
है । भगवान भौलेनाथ से कामना करती हूँ कि संसार शिवमय हो जाये और आपसी द्वेष को
भूलकर मानव कल्याण के लिये प्रयत्न करे ।
राकेश उनियाल
मेरे शिव
हे शिव शंकर,
केदार में केदारनाथ,
उज्जैन के महाकाल,
पशुपति नाथ काठमांडू के ।
गंगा के प्रलय हारी,
समुद्र मंथन के विष हारी,
प्रलय बिनाशी,
सदा शिव अविनाशी,
सती के क्रोध में तांडव करें,
इकावन शक्ति पीठ रचे,
हे भूतो के सखा,
भबुत धारी,
रक्षा कर हमारी
जय जयकार हो तुम्हारी ।
टिप्पणी: सृष्टि के रचयिता सदाशिव के रूप कार्य जो हमने
चित्र में ढेखे वहीं भाव उकेर दिए ।
अलका गुप्ता 'भारती'
योगिराज
(विधा - अवतार छंद मात्रिक -२२१२ १२१२, २२१२ १२)
चिंतन महान आशुतोषी शुभ शिवा तभी।
कल्याण दान ..शम्भु ज्ञानी योगिराज भी॥
दृष्टा ..त्रिकाल देव.. भुवनेश्वर भुवाः सभी।
स्वीकार वेद हैं ..सु-संस्कारी ..गुणी सभी॥
विष पान हर स्वयं किये,कल्याण जग
लिये।
महि शक्ति मान रूप हैं, कैलाश नाथ
ये।
हैं शिव न मस्त भंग में ,पौरुष
शुभांकरा।
हैं आप्त नाम ..ओम वे, विश्वंभरा..
वरा॥
टिप्पणी: शिव आदि पुरुष हैं।हमारे पूर्वज हैं उसी रूप में
मैं उन्हें अपने युग का एक आदर्श व्यक्तित्व शक्तिशाली त्यागी चिंतक मननशील
सर्वगुण संपन्न तपस्वी अमर शक्तिशाली पुरुष के रूप मानती और पूजती हूँ । उसी रुप
का वर्णन करने का कुछ प्रयास किया है।
अंजना कण्डवाल 'नैना'
शीर्षक - हर नर शंकरअं
(विधा- मुक्तछन्द) हर_नर_शंकर
मानव की यह देह है शंकर,
और चेतना आदि-शक्ति है।
ढूंढें शिव को स्वयं के भीतर,
यही मानव की पूर्ण भक्ति है।
नेत्र तीसरा ज्ञान ज्योति है,
हर लेता है अन्तर-तम को।
खुल जाये जो नेत्र तीसरा,
पा लेगा वो परम् ब्रह्म को।
लोक-कल्याण के हित जब नर,
अहंकार का पिये हलाहल।
रसना को सिये,
उतारे ना हिये,
नीलकंठ बन जाये वो फिर।
लोभ मोह को त्याग तपस्वी,
गृहस्थी भी सन्यासी होवे।
जितेन्द्रिय हो कर फिर मानव
जग में आदियोगी कहलाये।
टिप्पणी:- मुझे लगता है कि इस जगत में हर नर शंकर है। उसकी
चेतना ही आदि शक्ति है। मानव के पास ज्ञान रूपी तीसरा नेत्र है जिसके खुलने से जगत
के सभी अपराध नष्ट हो जाते हैं। (विशेष:-
शिव के तीसरा नेत्र खुलने से जलजला धरती को नष्ट करने नहीं अपितु उसके पुनः सृजन
के लिये आते हैं।)
अंशी कमल
विषय- शिव महिमा
विधा- गीतिका छन्द पर आधारित गीत
मापनी- 2122 2122 2122 212
******************************
दर्श नित पाऊँ तुम्हारा, है हृदय यह
कामना।
हे उमापति आदि शंकर, नित करूँ तव वन्दना।।
वेद के हो रूप प्रभु तुम, ब्रह्म
व्यापक ज्ञान हो।
दूर हो संसार से अद्भुत गुणों की खान हो।।
भक्तजन के ईश प्यारे, काल के तुम काल हो।
जब घिरा जग संकटों से, तुम बने
विकराल हो।।
हो छिपाए हृद सदा प्रभु नेह करुणा भावना।
हे उमापति आदि शंकर, नित करूँ तव वन्दना।।
शीश में चन्दा जटा में, गंग शोभित हो
रही।
साधना सँग भक्ति के शुचि, बीज मन में
बो रही।।
हाथ में डमरू विराजे, दिव्य चन्दन भाल में।
मोहती शुचि छवि तुम्हारी, सर्प की शुभ
माल में,
तव अलौकिक रूप की प्रभु, देव करते
अर्चना।
हे उमापति आदि शंकर, नित करूँ तव वन्दना।।
सृष्टि के रक्षार्थ तुमने, प्रभु हलाहल
पी लिया।
तीव्र गंगा रूप तुमने, था समा कच
में दिया।।
योगियों में श्रेष्ठ हो तुम, प्रेम के
आगार हो।
शिव निराकारी तुम्हीं हो, अरु तुम्हीं
साकार हो।।
नित्य रहना साथ 'अंशी',
कर रही प्रभु याचना।
हे उमापति आदि शंकर, नित करूँ तव वन्दना।।
टिप्पणी: महा योगी उमापति शंकर जी मैं नित्य तुम्हारी
वन्दना करती हूँ व तुम्हारे दर्शन पाना चाहती हूँ। तुम वेद व ब्रह्म व्यापक ज्ञान
स्वरूप, कालों
के काल, भक्तों
के रक्षक हो। जब-जब जगत पर संकट आया तुमने विकराल बनकर जगत को हर संकट से बचाया।
तुम्हारे अद्भुत रूप की देव भी अर्चना करते हैं।
प्रभा मित्तल
भगवान शिव
(प्रोत्साहन हेतु)
भाल चन्द्रमा शोभित
जटा में गङ्ग विराजे
भस्म रमाए तन पर
त्रिशूल डमरू संग लिए
मस्तक त्रिपुण्डधारी हैं।
सर्पों को गले लगाते
मृगेंद्रछाला के वस्त्र पहनते
अजर अमर अविनाशी हैं
शिव कैलाश के वासी हैं।
शर्व-सर्ष,
भव,उग्र
भीम,पशुपति, ईशान
रूप अनेक धारण करते
देवों के देव महादेव रुद्र
सब में समाए हैं समान।
जग कर्ता ,जग
पालक हैं
दुःख हरता,
दुष्ट संहारक हैं
किञ्चित जल से हर्षाने वाले
भोले बाबा भण्डारी हैं।
अजर अमर अविनाशी हैं
शिव कैलाश के वासी हैं।
टिप्पणी: कुछ ही पँक्तियाँ लिख पाई हूँ। अधूरी भी है। समय
पाते ही इन्हें पूरी करूँगी और परिष्कृत भी।)
तकब 11 परिणाम
तकब 11
प्रथम स्थान के लिए वोट
ब्राह्मणी हिंदी साहित्यकार 1+1 =2
अंशी कमल 1+ 1 =2
द्वितीय स्थान के लिए वोट
अंशी कमल 1+1 = 2
ब्रह्माणी
वीणा हिन्दी साहित्यकार 1+1 =2
परिणाम:
अंशी कमल जी व ब्रह्माणी वीणा जी संयुक्त विजेता
तस्वीर क्या बोले परिवार की ओर से ब्रह्माणी वीणा जी व अंशी कमल जी को हार्दिक बधाई – शुभकामनायें. सभी रचनाएँ
एक से बढ़कर एक थी. ईमानदार प्रयास हेतु सभी रचनाकारों का आभार व शुभकामनायें
(तकब 11 समीक्षा – शिव मोहन, दुबई – यूएई)
तकब ११ की तस्वीर भोलेनाथ महादेव, द्वंदों के देवता भगवान शिव पर आधारित थी। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात मंत्र को उच्चारित करते हुए सभी प्रतिभागियों ने बड़ी सुन्दर रचनाएँ प्रस्तुत की हैं।
सभी रचनाएँ इतनी सुन्दर और सजीव हैं कि शिव भजन संध्या की सम्पूर्ण
भजनावली के रूप में प्रस्तुत की जा सकती है। कुल १२ रचनाएँ प्रस्तुत की गई।
आदरणीया ब्रह्माणी वीणा
पहली रचना आदरणीय ब्रह्माणी वीणा जी ने प्रस्तुत की है जिन्होंने पंच्चामर छंद में
" नमामि हे उमेश्वरा नमो शिवाय शंकरा।
कृपा करो सुरेश्वरा , प्रभो शिवा महेश्वरा। "
रचना से पटल का शुभारम्भ भगवान ओंकारेश्वर को प्रणाम करते हुए की है।
आपकी रचना ने " नमामीशमीशान निर्वाण रूपम " की तरह पटल को अभिमंत्रित कर दिया। आपने पटल को एक सुन्दर शिव प्रार्थना दी है। आपने शिव जी के कंठ में मुण्डमाल और औघड़ स्वरुप को सभी के
समस्त जीवंत कर दिया। राम नाम के भजन को भगवान शिव के द्वारा जपना एवं माँ शैलजा के सानिध्य का वर्णन बड़ा ही मनोहारी है।
वीणा जी शिव जी के त्रिनेत्र रूप का वर्णन एवं ॐ जाप से भगवान द्वारा क्षमा करने एवं रक्षा करने का मूल मंत्र बताती है।
बहुत भक्तिमय प्रस्तुति मेरी ओर से तो हमारी प्रार्थना में प्रतिदिन एक और मंत्र का वर्धन हो गया। वीणा जी आपको बहुत बहुत शुभकामनायें एवं अभिनन्दन इस रचना द्वारा पटल को शिवमय बनाने के लिए।
आदरणीय रोशन बलूनी जी
अगली
रचना माननीय
रोशन बलूनी जी द्वारा शिव महिमा पर पटल के समक्ष प्रस्तुत की गयी। आपकी
मत्तगयंद
छंद के रूप में प्रस्तुत भगवान आशुतोष के चरणों में भावपुष्पांजलि ने उत्तराखंड के सभी शिव तीर्थस्थलों का प्रसाद एक ही रचना में सम्मिलित कर दिया। सावन मास में साधकों द्वारा कांवड़ में जल लेने , मृगछाला धारण करने ,नृत्य और गायन के साथ भगवान शिव की आराधना का वर्णन सभी पाठकों को भगवान शिव के कमंडल के जल से अभिमंत्रित करने के तुल्य है। हर
पत्थर में शिवशंकर और उनके भैरव रूप , रूद्र रूप , नटराज रूप का सुन्दर चित्रण धन्य कर देता है। पिनाक, सुदर्शन और पाशुपतास्त्र की महिमा का भी वर्णन आपके शिव महिमा की गहराई को बताता है। रावण द्वारा पूजित , तांडव नृत्य करते हुए त्रिपुरारी जी का वंदन गंगशिरधारी भगवान गंगाशंकर को साक्षात् हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है। आपको
औघड़नाथ के महिमामंडन के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ। आप हम सभी को ऐसे ही भक्तिमय करते रहे ऐसी शुभकामना के साथ आपका हार्दिक अभिनन्दन।
आदरणीय प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी
इसी क्रम में तीसरी रचना हमारे परम आदरणीय प्रतिबिम्ब जी ने पटल के प्रोत्साहन हेतु रची है। महादेव के चरणों में आपकी कृति पटल को और भी सुशोभित करती है।
"
देवों के देव तुम , पुकारूँ मैं तुम्हे महादेव " के भावों को आगे बढ़ाते हुए आपके द्वारा भगवान शिव का सम्पूर्ण महिमामंडन धन्य है। भगवान शिव भक्तों में कोई भेद नहीं करते चाहे वो राम हो या रावन। आपने
भोलेनाथ के इस भोले एवं तटस्थ स्वरुप का वर्णन बड़े ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है। सभी १२ ज्योतिर्लिंगों का पूजन विवरण एक ही अंतरा में रचना को सम्पूर्ण पूर्णाहुति दे देता है। जैसे यज्ञ के अंत में पूर्णाहुति होती है उसी प्रकार आपकी रचना का अंतिम पद्य इस पटल को भी प्रोत्साहन रुपी पूर्णाहुति देता है। आपकी रचनाओं का आशीष हम सभी पटल के प्रतिभागियों को हमेशा प्रोत्साहित और अभिमंत्रित करता रहे ऐसी कामना के साथ आपका हार्दिक वंदन और अभिनन्दन।
आदरणीया आभा अजय अग्रवाल जी
भगवान
शिव के भजन संध्या की अगली पंक्ति में आभा अजय अग्रवाल जी की रचना उमामहेश्वर ने पटल को मंत्रमुग्ध कर दिया। आपकी
रचना ने माँ उमा के वैज्ञानिक रूप को बड़ी सुंदरता से पटल के समक्ष रखा है। भगवान शिव उमामहेश्वर कैसे कहलाये, भगवान शिव का माँ पार्वती पर पूर्ण विश्वास की वो तो सब संभाल लेगीं के
साथ विषपान आरम्भ कर देना और माँ उमा का सही समय पर सही स्थान पर विष को रोक लेना भगवान शिव को नीलकंठ का रूप प्रदान करता है। आदिशक्ति अपनी शक्तियाँ का कभी दिखावा नहीं करतीं और पुनः माँ आदिशक्ति ने अपनी इस वैज्ञानिक कला को जगत के समझ आने नहीं दिया। भोलेनाथ समुद्र मंथन में जन्मे विष को पीने के साथ समस्त लोकों को विनाश से बचा लिया और मानवता की रक्षा की। अर्धनारीश्वर
भगवान महाकाल एवं माँ पार्वती आज भी कैलाश पर अपने आदियोगी एवं आदि वैज्ञानिक रूप में इस संसार को नियमित कर रहे है। आपकी रचना सुंदरता से इस सुन्दर रहस्य पर से पर्दा उठाती है। आदरणीया
आभा अजय जी को इस भाव से महान रचना के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ एवं अभिनन्दन।
आदरणीया भारती ए गुप्ता जी
भगवान
गौरीशंकर
के महिमावर्णन की अगली रचना आदरणीया भारती ए गुप्ता जी द्वारा पटल को प्रस्तुत की गयी। जय जय शिवशंकर विषय पर रचित कविता शिव जी के रक्षक रूप को महिमामंडित करती है। गंगा
के शीश विराजने ,नीलकंठ बनकर विषपान करने और जगत तारणहार के रूप में भोलेनाथ का वर्णन अति सुन्दर है जो आपके भावों को सुंदरता से लेखनी से रचना में उतारता है। तंत्र साधना में भैरव के नाम से जाने जाते हैं और भक्तों के कष्टों को हर लेते हैं। आपकी रचना के चरणान्तों में विराम चिन्ह पूर्णरूप से विलुप्त हैं। विराम चिन्हों के सही प्रयोग से रचना को और भी मनमोहक किया जा सकता था। इन सभी के बाबजूद रचना प्रोत्साहित करती है और अनेक भावों से परिपूर्ण इस सुन्दर शिव वंदना के लिए आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं हार्दिक अभिनन्दन।
आदरणीया कुसुम शर्मा जी
इसी
पंक्ति में अगली रचना आदरणीया कुसुम शर्मा जी द्वारा पटल को प्रस्तुत की गयी।
"मेरे भोले बाबा का रूप कितना प्यारा है " विषय पर लिखी रचना भोलेबाबा के दिव्य रूप के दर्शन करवाती है। निराले रूप , तन पे भस्म , बाघ खाल , हाथ में त्रिशूल एवं डमरू से सज्जित चंद्रशेखर के महाकाल , रूद्र , भैरव महादेव के विभिन्न रूप का सुन्दर वर्णन है। विभिन्न रूपों में हर रूप सबसे प्यारा है। महादेव
के कार्तिकेय , गणेश , नंदी और प्रेतगण रुपी निराले परिवार के दर्शन रचना को उच्च शिखर पर ले जाते हैं। प्रेतगणों के हुड़दंग से देवताओं के करने की पंक्ति भावमय है। अंतिम
अंतरा में मात्राओं का थोड़ा ध्यान रखकर रचना को और रसमय किया जा सकता था। फिर भी जैसे भोलेनाथ द्वन्द के देवता हैं वैसे ही ये कविता भी कुछ त्रुटियों के साथ अपनी छवि विखेरने में सफल हुई है। आपकी
इस सुन्दर रचना के लिए कुसुमजी आपका हार्दिक वंदन और अभिनन्दन।
आदरणीया विमला रावत जी
भगवान
दुग्धेश्वर
की वंदना पंक्ति में अगली रचना आदरणीया विमला रावत जी ने प्रस्तुत की। विषय "शिव तेरे नाम अनेक " पर सायली छंद विधा में लिखी रचना अप्रतिम है। ये
रचना भगवान शिव के विविध रूपों और नामों से सुशोभित है। आदिदेव आशुतोष को प्रणाम करती हुई ये रचना संक्षिप्त , सरल और भावमय है। वैरागियों सा जीवन , हलाहल पान , विल्वपत्र से ख़ुशी , डमरूधारी , व्याघ्रचर्म का परिधान , वेगमयी गंगा को अपनी जटाओं में सज्जित करते हुए विमला जी ने डमरू बजा के जगत कल्याण में आराधना की है। उन्होंने सभी की मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करते हुए सभी को सुख या दुःख में भोलेनाथ का ध्यान रखने की आंकाक्षा की है। अंत में विमला जी सम्पूर्ण सकल संसार को, मानवता को शिवमय होने की कामना करती हैं। इस
दिव्य, भावपूर्ण , प्रेरक रचना एवं शानदार सृजन हेतु आपका हार्दिक अभिनन्दन , नमन और बहुत बहुत बधाइयाँ।
आदरणीय राकेश उनियाल जी
अगली
रचना को पटल पर रखने वाले आदरणीय राकेश उनियाल जी को सृजन के लिए बधाई। आपकी
रचना ने सदाशिव के रूप को भावों में उकेरा है। आपने केदारनाथ के केदार , उज्जैन के महाकाल और काठमांडू के पशुपतिनाथ के सुन्दर दर्शन अपनी रचना से करवाए हैं। गंगा को अपने केशों में अवतरित करवा के सृष्टि को प्रलय से बचाने और समुद्र मंथन से निकले विष को पान करके समस्त मानवता को बचाने वाले अविनाशी शिव हम सभी की रक्षा करें। ५१ शक्ति पीठों के रचयिता , भभूत धारी महाकाल की जय जय कार के साथ आपकी रचना ने पटल को भक्तिमय कर दिया। आपकी इस अद्भुत रचना के लिए आपका हार्दिक वंदन एवं अभिनन्दन।
आदरणीया अलका गुप्ता 'भारती' ज
पटल
को अपनी अवतार छंद रचना
से आदरणीया अलका गुप्ता 'भारती' जी ने आशीष दिया। आपने शिव जी के आदि पुरुष रूप जो हम सभी के पूर्वज रहें हैं का मनोहारी चित्रण किया है। आपने शिव जी के दृष्टा , त्रिकालदेव , योगिराज रूप के वर्णन के साथ सभी गुणों को सुसंस्कारी बताया है। अद्भुत चित्रण क्योंकि प्रायः लोग शिव जी के कुछ गुणों को अपने अनुरूप विवेचना कर कुछ दुर्गुणों को भी अनुकरणीय मान लेते हैं। अगले अंतरा में विष पान , शक्तिमान रूप , भंग में मस्त ,कैलाश नाथ , आप्त नाम और ॐ का चमत्कार आपकी रचना को शीर्षता की ओर ले चलता है। अपितु नियम के अनुसार शीर्षक और २ पंक्तियाँ रचना में कम हैं परन्तु फिर भी रचना सुन्दर और सहज है। आपकी इस सुन्दर और सहज सृजन के लिए आपका हार्दिक वंदन और नमन।
आदरणीया अंजना कण्डवाल 'नैना' जी
आदरणीया
अंजना कण्डवाल 'नैना' जी विषय "हर नर शंकर " पर मुक्त छंद
विधा में लिखी रचना अलग हटकर एक भिन्न पहलू पर दृष्टि डालती है। आपकी रचना हर मानव को शंकर के रूप में और उसके अंदर के जड़ चेतन को आदि शक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है। स्वयं के अंदर शिव को ढूंढने को भक्ति के रूप में दर्शाना अप्रतिम है। मानव के पास ज्ञान रूपी तीसरे नेत्र द्वारा सभी अंधकारों का अंत और ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति रचना को एक अद्भुत प्रेरणा देती है
और आपके अंदर के प्रेरक ज्ञान को लोगों के समक्ष रखती है। लोक कल्याण हेतु अपने अहंकार रुपी विषपान करके प्रत्येक मानव भी
नीलकंठ बन सकता है। लोभ मोह को त्याग कर के नर गृहस्थ जीवन में भी सन्यासी जीवन के लाभों को प्राप्त करके प्रत्येक मानव स्वयं में आदियोगी बन सकता है। वाह
क्या अनुकरणीय प्रेरणा है आपकी रचना में। आपकी
रचना ने पटल को एक नयी दिशा दी है और प्रत्येक नर शिव शंकर हो सकता है और संसार शिवत्व से परिपूर्ण। आपकी
प्रेरणीय
रचना के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन और वंदन।
आदरणीया अंशी कमल जी
शिव महिमा की रचनाओं के इस रस सागर में अगली रचना आदरणीया अंशी कमल जी ने विषय "शिव महिमा " पर गीतिका छंद पर आधारित गीत विधा में लिखकर पटल को पुनः एक बार धन्य कर दिया है।
"
दर्श नित पाऊँ तुम्हारा, है हृदय यह कामना।
हे
उमापति आदि शंकर, नित करूँ तव वन्दना।।" गीत सभी शिव भक्तों के मन की सीधी पुकार को अंशी जी की लेखनी से पटल पर रखता है। भगवान शिव को वेद रूप में प्रस्तुत कर ब्रह्म ज्ञान को शिव में समाहित करना आपके अंतरतम के अति सुन्दर भावों को व्यक्त करता है। काल के काल शिव के महाकाल रूप के दर्शन, सर्प के शुभ माल से मोहती शुचि छवि ,निराकार और साकार दोनों रूप में पूज्य भगवान शिव की इस से सुन्दर आरती पाना थोड़ा कठिन है। आपकी
इस शिव उपासना के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ एवं हार्दिक वंदन।
आदरणीया प्रभा मित्तल जी
शिव महिमा की भजन संध्या में पटल पर आदरणीया प्रभा मित्तल जी की रचना शिव उपासना की महाआरती के तुल्य है। आपकी रचना द्वारा भगवान शिव के अजर अमर अविनाशी रूप के दर्शन पटल को हुए हैं। शर्व-सर्ष, भव,उग्र भीम,पशुपति, ईशान रूप का दर्शन और अंत में सभी रूपों में समाहित महादेव रूद्र रूप भगवान शिव की अनंत महिमा को बताता है। किञ्चित जल से हर्षाने वाले भोले बाबा भंडारी शिव के सरल रूप को बताता है कि बाबा को प्रसन्न करने के लिए ५६ भोग या किसी महाप्रसाद की आवश्यकता नहीं है उन्हें तो मात्र जल से प्रसन्न किया जा सकता है। पञ्च तत्वों से एक जल द्वारा प्रसन्न होने वाले भगवान शिव का ये रूप उनको सृष्टि के मौलिक रूप में दर्शित करवाता है। आपकी इस रचना द्वारा कैलाशी काशी के वासी अविनाशी शिव की महिमा की महाआरती द्वारा पटल को विश्राम दिया गया । आपकी रचना प्रेरणीय है। आपकी रचना के लिए आपका हार्दिक वन्दन और नमन।
शिव महिमा की इस गंगोत्री में आप सभी के साथ डुबकी लगाकर अपने आप को धन्य मान रहा हूँ। आप सभी का अनुज हूँ और पहली बार ये कार्य करने का मौका मिला हैअगर कुछ त्रुटियाँ रह गयी हों तो क्षमा प्रार्थी हूँ।
अंत में कैलाशपति की महिमा में शिव स्तुति की इन पंक्तियों के साथ आप सभी का नमन करना चाहता हूँ।
कैलाशी
काशी के वासी, अविनाशी मोरी सुधी लीजो
सेवक
जान सदा चरनन को, अपनो जान कृपा कीजो
तुम
तो शिवजी सदा दयामय, अवगुण मोरे सब ढकियो
सब
अपराध क्षमा कर शंकर, किंकर की विनती सुनियो
शिव मोहन, दुबई, यूएई
( शानदार समीक्षा हेतु शिव मोहन जी आपका हार्दिक आभार –
तस्वीर क्या बोले )
विजेताओं सहित सभी रचनाकारों को बधाई व शुभकामनायें... निर्णायक मंडल के मार्गदर्शन हेतु व समीक्षा हेतु शिवमोहन जी का आभार
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