Wednesday, June 8, 2022

तकव 10 / 22 - रचनाएं, परिणाम व समीक्षा


तकव 10 / 22



रचनाएं


डॉ भारती गुप्ता

परिवार

 

छोटा सा संसार हमारा साथ बनाए रखना

इस बगिया में सदा खुशी के फूल खिलाए रखना

आंखों में अपने पन का अहसास

हांथों से छूकर रिश्तों का अहसास

ये चाहत के धागे है

इनको कमजोर न समझना

इक उम्मीद की डोर से बंधे हैं

एक उम्मीद की डोर बंधी है

एक आस एक उम्मीद सी जगी है दिल में

कया पाएंगे अपनी मंजिल को

हजार उलझनों के बीच

माँ बाप का मुसकराना सुकून दे जाता है

 

टिप्पणी: माँ बाप और बच्चों से परिवार बनता है. सभी एक दूसरे से एक उम्मीद से बंधे हैं चाहत की डोर से एक दूसरे के पूरक

 

 

 


 

सन्नू नेगी

परिवार

 

प्रेम समर्पण भाव जहाँ,

मात-पिता का प्यार वहाँ!

गुरु की प्रथम सीख,

भाई बहिनों का साथ जहाँ।

भावों का हो मोल जहाँ,

कर्त्तव्यों का भी तोल वहाँ!

सुख दुःख के सब साथी,

हर रिश्ते का मोल वहाँ।

मां की लोरी आँचल जहाँ,

होती दादी की कहानी वहाँ।

पिता वट वृक्ष की छाँव से,

बिखरी बचपन की निशानी वहाँ।

अनुशासन की सीख जहाँ,

जीवन पाठ पढ़ाती मां।

तिनका तिनका जोड़े पिता,

घर को स्वर्ग सा सजाती मां।

ईंट पत्थर के मकानों को,

घर में बदल देता जो।

कोने कोने खुशियां बिखरी,

परिवार कहलाता वो।

 

टिप्पणी: परिवार एक ऐसी इकाई है जो मानव को इस दुनिया में जीना सीखती है। जीवन के तमाम आयाम परिवार से ही जुड़े है।

 

 

 


 

डा. अंजु लता सिंह 'प्रियम'

हम दो हमारे दो

 

छोटा परिवार ही रहने दो",

संदेशा सुनकर सबने ही-

मधुरिम सपने लिये संजो.

फिर चाहा,हों बेटा-बेटी-

एकल हो परिवार,

भाग्य छोड़कर कर्म सराहा-

फंसे रहे मंझधार.

दादा-दादी अलग रह गए-

हुआ विभाजित प्यार,

कोरोना के कठिन काल में-

खुल गए मन के द्वार.

बेटा हो या बेटी,

कर लो दोनों को स्वीकार,

नेह,मान,सेवा का प्रतिफल-

हर शिशु का अधिकार.

काल का पहिया घूम रहा है-

परिवर्तन होने वाला,

मिलजुलकर फिर बस जाएंगे-

घर भी होगा मतवाला.

 

टिप्पणी: "एकल परिवार" हों या "संयुक्त परिवार"।दोनों सभ्य और सुसंस्कृत समाज के आधार हैं।इन्हें सदाचारी संतति(लिंग भेदभाव किये बिना)के साथ समुन्नत बनाना होगा।

 

 

 

 


 

आभा अजय अग्रवाल

पोशंपा

(प्रोत्साहन हेतु)

.………..

पोशंपा भई पोशंपा

तू तो कहीं खो गया

बच्चों की अब भीड़ नहीं

हम दो हमारे दो ——

कैसे खेलें पोशंपा ?

फ़्लैट में साथी नही रहा ,

अब तो ,हम दो हमारा एक

विलुप्त प्रजाति हो गया!

साथ में तेरे खोखो था ,

पिट्ठू गरम अर गिट्टू था ,

आइस-पाइस गुम हुई

अक्कड़-बक्कड़ ,छुपम-छुपाई -

सौ रुपये की घड़ी चुराई

जेल गये अर मार खाई ,

आठ आने की रबड़ी भी खाई !

लालक़िले में हुई सुताई,

घोड़ा जवान शाही ,स्टप्पू -

सबको साथ ले गया !

पोशंपा तू क्यूँ खो गया?

तस्वीरों में अब दिखता तू

मेरे भीतर रहता तू ,

मुझको बचपन में ले जाता

मैं यादों में खो जाती हूं !

अब मैंने भी ठान लिया !

इक दिन घर में होगा पोशंपा ,

मिल बैठेंगे सारे जन ,

लिविंग रूम मैदान बनेगा ॰

खोखो कैरम , गिट्टू पिट्ठू !

हो सके तो आइस-पाइस ,

स्टप्पू और छुपम-छुपाई,

रस्सी कूद ,गुल्ली डंडा

रंग-बिरंगे कंचे मंचे ,

सब खेलों का मंचन होगा

खूब सारे फ़ोटो लेंगे

फ़ेसबुक,इंस्टा में डालूँगी

पोशंपा भई पोशंपा ,

तुझसे मेरा वादा है ,

मेरा पक्का इरादा है ,

अब तो जेल को तोड़ूँगी !

तुझको बाहर लाऊँगी -

संतति से मिलवाऊंगी॥

 

टिप्पणी: पहली नज़र में इस चित्र को देख के पोशंपा ही मन में कौंधा ,,

बहुत था लिखने को पर थोड़ा लिखा ज़्यादा समझना ।ये पाती है एक ,भूली-बिसरी यादों की जो पारिवारिक चहल-पहल ,रिश्तों के संग रहने और समाज की सहजता के सजीव पहलू थे ,,,हैं और रहेंगे

 

 

 

 


 

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

संयुक्त परिवार

(प्रोत्साहन के लिए)

 

चलो आज परिवार की ही बात करते हैं

सच है हमारा जो उसकी बात करते हैं

परिवार समाज की मजबूत आधारशिला है

परिवार समाज की एक सशक्त इकाई है

 

सयुंक्त परिवार संस्कृति की पहचान हमारी

हर कोई निभाता है जहाँ अपनी जिम्मेदारी

सुख - दुःख बाँट खुशियाँ मिलती ढेर सारी

पड़ती संबंधो और रिश्तों की बुनियाद हमारी

 

संयुक्त परिवार में धर्म - कर्म का ज्ञान मिलता

स्नेह संग, मानवता और एकता का मन्त्र मिलता

अपने बड़ो का आशीर्वाद यहाँ बेहिसाब हमें मिलता

पूर्वजो से रहता नाता, जड़ो का भान हमें कराता

 

उपकार, उपहार, सम्मान और संस्कार हमें मिलते

पाठ नियम, सीमा और जरुरत का रोज हम पढ़ते

वक्त के दायरे में एकल परिवार अधिक हमें दिखते

पर आज भी सब संयुक्त परिवार के लिए हैं तरसते

 

टिप्पणी: विश्व परिवार दिवस पर चित्र मुझे भाया और ख्याल संयुक्त परिवार का ही आया, इसलिए संयुक्त परिवार से क्या मिलता है उसे चंद पंक्तियों में रखने का प्रयास

 

 

 

 


 

अलका गुप्ता 'भारती'

परिवार

 

 

सुकून का नाम परिवार

प्यारा सा अपनत्व भाव परिवार ।

पर विस्तार से सोचो तो..

परिवार एक इकाई संकीर्ण

सा लगता है कभी ...

और जो मानो तो

वसुधैव कुटुंबकम भी लगता है ।

हम दो हमारे दो होते हैं..

कभी पूर्ण फक्र के साथ ।

मगर एक अंतराल बीतते ही..

अक्सर दो ही रह जाते हैं ।

घिसटते ..लाचार से वृद्ध ...

और घरौंदे से उड़ जाते हैं

शिशु से वो पँछी ..

परिपक्व होकर ।

वैसे ..यही तो नियति होती है,

इस धरा पर अक्सर ही..

हर प्राणी की ।

पर ..इंसान तो...

सर्वश्रेष्ठ प्राणी है !!!

इस धरती पर विवेकशील

चेतना संपन्न सा ।

जो संस्कारित हो आर्य बना था ।

आज बस अवशेष मात्र है ।

संवेदनाएं बाँचना जानता था..

वह और परवरिश भी !

तभी तो 'वसुधैव कुटुम्बकम'

संभव था ।

पर आज तो लगता है जैसे..

संकीर्णता हद से गुजर गयी है

हमारी मानसिकता!!

जाति धर्म मजहब क्षेत्र जैसे..

न जाने कितने ही ...

दायरे पार करती हुई ..

संकीर्ण नुकीली धारदार हो...

मनुष्यता को चिंदी चिंदी कर

बिखेर देने वाली ...

हदों को भी पार लगा कर..

थर्रा दे शायद ..!!

हतप्रभ हूँ ..सोचती हूँ ..

परियों की कहानी सुनाने वाली

नानी दादी को घेरे बैठने को ..

परिवार कहूँ ..?

या ..फिर किसी एकांत में...

दम तोड़ते माँ बाप को !!

या फिर मोबाइल की दुनिया में

स्वपरिवार से खोये...

व्हाट्शेप मोबाइल में...

वर्चुअल ग्रुप के परिवार में

खोये हुए हम ...!!!

किस परिवार को ..

परिवार के नाम से

परिभाषित करें!!

कोई समझता है यदि तो ..

हमें भी समझा दो न!!

हमें भी समझा दो न!!

परिवार किसे कहते हैं !!!

 

टिप्पणी: परिवार एक इकाई भी है और परिवार विश्व बंधुत्व भी बस अपने समझने का एक नजरिया है।

 

 

 


 

बिमला रावत

परिवार

 

परवरिश ' में मिलते जहाँ संस्कार

रिश्तों ' में अपनत्व , एहसास , प्यार

वादों -इरादों को मिलती मजबूती

रचती बसती रीति-रिवाज बेशुमार

 

परिवार एक वरदान देता पहचान

माँ की ममता पिता का अनुशासन

दादा-दादी के किस्से जीवन -सार

अनुभव उनका बनाता हमें इंसान

 

आधुनिकता का ये आया कैसा दौर

घर संग खिंच रही दिलों में दीवार

घर, घर नहीं रहा बना आज मकान

सुख के नाम पर बिखर रहा परिवार

 

चतुर्दिक फैला आज ' मैं 'का बुखार

मैं तक सीमित केवल आज परिवार

' विमल'' करे सबसे यही गुज़ारिश

प्रेम से निर्मित हो घर घर की दीवार

 

जीवन की प्रथम पाठशाला परिवार

नाजुक डोर रिश्तों की माँगे प्यार

साथ जीना समझना एक दूजे को

खुशहाल परिवार का है आधार ।

 

टिप्पणी: परिवार समाज की सबसे छोटी ईकाई और रिश्तों का ऎसा समूह है जहाँ मानवीय मूल्य और संवेदनायें विकसित होती हैं लेकिन आज एकाकी परिवार के बढते चलन के कारण और भागमभाग के कारण अपनापन और एहसास खत्म हो रहे हैं । अपनी रचना के द्वारा परिवार के बिखराव और गिरते मरते मानवीय मूल्यों को बचाने की गुहार की है ।

 

 

 

 

 


 

अंशी कमल

 परिवार

#विधा- गीत (सरसी छन्द पर आधारित)

 

जिस घर मात-पिता-शिशु रखते, इक दूजे का ध्यान।

सकल विश्व में वह घर होता, मित्रों स्वर्ग समान।।

 

बसा रहे हैं लोग न जाने, क्यों एकल परिवार,

दादा-दादी को दूर किया, और किया लाचार,

दादा-दादी सँग सब रिश्तों का, जिस घर हो सम्मान।

सकल विश्व में वह घर होता, मित्रों स्वर्ग समान।।

 

मात-पिता बिन सदा अधूरा, होता हर परिवार,

प्यारे-प्यारे बच्चे होते, खुशियों का आधार,

बेटा- बेटी दोनों समझे, जाते घर की शान।

सकल विश्व में वह घर होता, मित्रों स्वर्ग समान।।

 

मात-पिता जो सन्तति हित में, सहते नित बहु कष्ट,

करें प्रार्थना सन्तति उनकी, हो न कभी पथ भ्रष्ट,

जिस घर में उन मात-पिता. का, हो न कभी अपमान।

सकल विश्व में वह घर होता, मित्रों स्वर्ग समान।।

 

टिप्पणी: जिस घर में माता-पिता व उनके बच्चे एक दूसरे का सच्चे मन से ध्यान रखते हैं, वह घर संसार में सबसे सुन्दर व स्वर्ग के समान होता है। अब समाज में एकल परिवार व्यवस्था है, जैसे कि इस चित्र में दिख रही है, केवल माता-पिता व उनके बच्चे, जिसके कारण बच्चे दादी-दादी के अनुपम प्रेम से वंचित हो रहे हैं। परिवार में हमें सभी रिश्तों को सम्मान देना चाहिए तथा बेटी-बेटा में भेदभाव नहीं करना चाहिए तथा जो माता-पिता अनेक कष्ट सहकर अपने बच्चों के सुख का ध्यान रखते हैं ऐसे माता का हमें अपमान नहीं करना चाहिए

 

 

 

 


 

विनीता मैठाणी

माता-पिता

1.

हां हर दुख से हमें बचा लेते हैं ,

हम में ही दुनिया बसा लेते हैं ।

अपना दुःख दर्द भूल माता-पिता

हमारे सुख को अपना बना लेते हैं।

2

माता-पिता ओढ़ें चादर प्यार की,

सद्भावना युक्त हो पीढ़ी संसार की।

हंसते खेलते साथ चलते रहने से,

रोज अनुभूति होती है त्योहार की ।

3

दोनों का साया मिले बालपन को,

झूमते हुए देखा है सुंदर बचपन को ।

बेपरवाह हर ग़म से रहते हैं हरदम,

हंसते गाते पाते अपनी मंजिल को ।

4

बगिया को जतन से जब पालते हैं ,

तो साथ भविष्य देश का संवारते हैं ।

लौट आते फिर बचपन में माता-पिता,

जब हंसी वक्त संग उनके गुजारते हैं ।

5

जज़्बात भरे लम्हों में बचपन झूलता है,

अथाह परेशानियों में भी हल सूझता है।

खुशी की रिमझिम बरसात की बूंदों में देश का भविष्य फलता - फूलता है ।

 

टिप्पणी: कविता में मैंने माता पिता के साथ खिल रहे बचपन को व्यक्त किया है जिसमें खुशियां और हर्षोल्लास की सुंदर घड़ियां होती है जो जीवन के पल्लवित होने के लिए आवश्यक है।

 

 

 

 


 

किरण श्रीवास्तव

"टूकड़े जिगर के"

 

छाये दुख की बदरी

या हो तपन सूरज की,

आंच नहीं आने देंगे

उल्लास नहीं जाने देंगे,

तुम हो मेरे चांद-सितारे

तुम ही आंखों के हो तारे,

आन-बान और शान तुम ही हो

जीने का अरमान तुम्हें हो,

पढ़ लिख कर तुम बनो महान

ऊंचा करो देश का नाम...!!

 

सूरज की किरणों के जैसे

ख्याति तुम्हारी बढ़ती जाए,

जहाँ डगमगाए कदम तुम्हारा

ढाल वहीं बन जाए हम,

बुलंदियों को बेशक छूना

जुड़े रहना मिट्टी के साथ

जमाने के संग कदम मिलाना

बिसरा ना देना संस्कार

जब हो जाए निर्बल हम तो

बन जाना लाठी मेरी

जगह दिलों में कायम रखना

जिगर के ना टूकड़े करना.!!!!!!

 

टिप्पणी: कोई भी माता-पिता अपने बच्चे को अपने से बेहतर परवरिश देता है और अच्छा बनाने की कोशिश करता है ! पर बच्चे जब बहुत आगे चले जाते है तो पीछे मुड़कर नहीं देखते और वृद्ध माता-पिता को वृद्ध आश्रम में पहुंचा कर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं जो की बहुत ही शर्मनाक है....!!!

 

 


 

तकब 10 परिणाम

नमस्कार मित्रों!  

तकब 10 का चित्र परिवार को मध्य नज़र रखते हुए रखा गया था  इस बार कुल 10 रचनाएँ प्राप्त हुई जिसमे 2 रचनाएँ प्रोत्साहन हेतु थी अन्य 8 रचनाओं को जो वोट मिले वे हैं

 

प्रथम स्थान के लिए वोट

किरण श्रीवास्तव 1+ =1

डॉ अंजू लता 2+ =2

सन्नू नेगी 1+ =1

विनीता मैठाणी 1+ =1

 

द्वितीय  स्थान के लिए वोट

विनीता मैठाणी+1 =1

सन्नू नेगी +1=1

डॉ अंजु लता सिंह +1=1

किरण श्रीवास्तव 1+1=2

 

परिणाम

डॉ अंजु लता सिंह 2+1 = 3 ( प्रथम )

किरण श्रीवास्तव 1+2 = 3 ( द्वितीय )

 

( हार्दिक बधाई व शुभकामनायें  )

अंजु जी व् किरण जी तकब परिवार की ओर से हार्दिक बधाई व् शुभकामनायें!

 


 

तकब-10 की समीक्षा

इस तकब 10 प्रतियोगिता में आई रचनाओं की समीक्षा श्री शिव मोहन जी को करनी थी लेकिन वे कार्य से विदेश भ्रमण पर थे. अंत में एक दो सदस्यों से कहा पर सकारत्मक जबाब न मिलने से अंशी कमल जो की अस्वस्थ, व्यस्त व् अगले दिन गाँव भी जाना था ने यह जिम्मेदारी ली और दो दिन में समीक्षा लिख दी साथ ही लाइव आकर समीक्षा पढ़ी भी अंशी कमल का हृदय से धन्यवाद! यही प्रेम जहाँ जिम्मेदारी परिवार की तरह निभाने का उदाहरण है वहीँ सृजनता के प्रति गंभीरता को दर्शाता है

 

आद. भारती ए गुप्ता जी-

चित्राधारित प्रतियोगिता में प्रतिभाग करते हुए आद. भारती ए. गुप्ता जी ने "परिवार" विषय पर अपनी खूबसूरत अतुकान्त कविता से पटल को सुशोभित किया। आपकी रचना में चित्र को बखूबी शब्दों में वर्णित किया गया है। अपनी इस गागर में सागर भर देने वाली तथा फूलों के समान महक लुटाने वाली खूबसूरत अतुकान्त कविता द्वारा आपने परिवार के व परिवार में रिश्तों के महत्त्व को बड़ी खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया है। कतिपय स्थानों में टंकण त्रुटियाँ भी दृष्टिगेचर हो रही हैं।  परिवार में परस्पर प्रेम से बँधी हुई, रिश्तों की डोर पर आधारित इस खूबसूरत रचना के लिए हार्दक बधाई।🙏🙏🙏

 

आद. सन्नू नेगी जी

इस चित्राधारित प्रतियोगिता की दूसरी प्रतिभागी आद. सन्नू नेगी जी ने अपनी खूबसूरत छन्दमुक्त कविता के द्वारा, चित्राधारित विषय, "परिवार" पर अपनी बहुत ही खूबसूरत व भावपूर्ण रचना प्रस्तुत की। "प्रेम समर्पण भाव जहाँ, मात-पिता का प्यार वहाँ, गुरु की प्रथम सीख, भाई-बहिनों का साथ जहाँ।" आपकी इन खूबसूरत पंक्तियों में एक आदर्श परिवार की सम्पूर्ण छवि दृष्टिगोचर हो रही है। आपकी सम्पूर्ण रचना में जहाँ एक ओर सशक्त शब्द संयोजन है वहीं दूसरी ओर भाव-संयोजन की ऐसी अनुपम छटा बिखरी है, जो हर पाठक के हृदय में परिवार के प्रति मधुर स्नेह व श्रद्धा का भाव जागृत करने की क्षमता रखती है। "परिवार" को इतनी खूबसूरती से परिभाषित करने के लिए आपको ढ़ेर सारी बधाई।🙏🙏🙏🙏

 

 

डॉ. अंजु लता सिंह प्रियम-

चित्राधारित प्रतियोगिता को सफल बनाते हुए आद. अंजु लता सिंह 'प्रियम' जी ने अपनी खूबसूरत छन्दमुक्त कविता के द्वारा पटल को सुशोभित किया। "परिवार"  विषय पर आपकी इस रचना में जहाँ एक ओर "छोटा परिवार, सुखी परिवार" की अनुपम सीख दी गयी है, वहीं दूसरी ओर दादा-दादी के अलग रहने की पीड़ा को भी उजागर किया गया है। आपकी रचना बेटी-बेटा में अन्तर न करने की व परिवार में सबके साथ मिल जुलकर रहने की अनुकरणीय सीख प्रदान कर रही है। इस प्रेरणादायक खूबसूरत सृजन हेतु आपको ढ़ेर सारी बधाई।🙏🙏🙏🙏

 

आद. आभा अजय अग्रवाल जी-

चित्राधारित प्रतियोगिता के सफल आयोजन हेतु आद. आभा अजय अग्रवाल जी ने मार्मिक भावों से परिपूर्ण रचना से पटल को सुशोभित किया। "परिवार" विषय पर प्रतियोगिता से इतर आपकी इस मार्मिक व अतुकान्त में कविता में "परिवार" में आए विखण्डन का अत्यन्त हृदयस्पर्शी चित्र प्रस्तुत किया है। पहले पोशंपा भई पोशंपा, पिट्ठू गरम, अक्कड़-बक्कड़, आइस-पाइस आदि अनेक रोचक खेल परिवार में ही बच्चे मिल जुलकर खेला करते थे, किन्तु अब लोगों में एकल परिवार (छोटा परिवार, सुखी परिवार) की विचारधार घर करती जा रही है, जिसके कारण अनेक रिश्तों के साथ-साथ अनेक रोचक खेल भी विलुप्त होते जा रहे हैं। अब परिवार में भाई-बहनों के साथ खेले जाने वाले प्यारे व रोचक खेल केवल तस्वीरों में ही दिखते हैं क्योंकि अब परिवार में बच्चे के साथ खेलने के लिए बच्चे ही नहीं होते हैं। आपकी इस हृदयस्पर्शी रचना ने भाव विभोर कर दिया। परिवार व रिश्तों की खूबसूरती को याद दिलाने वाले शानदार सृजन हेतु आपको ढ़ेर सारी बधाई।🙏🙏🙏🙏🙏🙏

 

आद. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी

चित्राधारित प्रतियोगिता को आगे बढ़ाते हुए प्रतियोगिता से इतर अपनी विभिन्न भावों से सुसज्जित खूबसूरत रचना से आद. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी ने पटल को सुशोभित किया। "परिवार" विषय पर लिखी आपकी सुन्दर व भावपूर्ण रचना में आपने "संयुक्त परिवार" के महत्त्व को बहुत ही सुन्दर ढ़ंग से प्रस्तुत किया। "संयुक्त परिवार संस्कृति की पहचान हमारी" आपकी यह पंक्ति जहाँ एक ओर "संयुक्त परिवार" का महत्त्व को दर्शा रही है वहीं दूसरी ओर हमारी संस्कृति की श्रेष्ठता को भी परिलक्षित कर रही है। आपकी सम्पूर्ण रचना में संयुक्त परिवार के महत्त्व के ज्ञान के साथ-साथ संयुक्त परिवार में रहने की अनुपम सीख मिल रही है। इस भावपूर्ण व प्रेरक रचना हेतु आपको ढ़ेर सारी बधाई।🙏🙏🙏🙏🙏

 

आद. अलका गुप्ता 'भारती'-

चित्राधारित प्रतियोगिता को सफल बनाते हुए आद. अलका गुप्ता 'भारती' ने अपनी अनेक भावों से परिपूर्ण रचना के द्वारा पटल को सुशोभित किया। "परिवार" विषय को आपने बड़ी खूबसूरती से परिभाषित करते हुए लिखा है कि सुकून का नाम परिवार, प्यारा सा अपनत्व भाव परिवार। किन्तु फिर आपकी रचना पर शब्द के साथ मार्मिकता की ओर ले जाती है। आपकी रचना प्रदर्शित करती है कि आज पारिवारिक रिश्तों में आ रहे बदलाव ने, आज बच्चों के हृदय में अपने माता-पिता के विषय में आये दुर्विचारों ने (सक्षम होते ही वृद्ध माता-पिता को बोझ समझकर लाचारी के हाल में छोड़ना) आपके हृदय को बहुत अधिक व्यथित कर दिया है। आप देखकर भी व्यथित हैं कि जहाँ हमारी संस्कृति हमें "वसुधैव कुटुम्बकम्"  की अनुपम सीख देती हैं, वहीं कभी-कभी हम जाति-धर्म के नाम पर लड़ते हैं। जहाँ एक ओर हम "हम दो हमारे दो" का नारा लगाते हैं, वहीं माता पिता वृद्धावस्था में केवल "दो" ही रह जाते हैं, इसलिए रचना के अन्त में प्रश्नशैली का प्रयोग करते हुए आपने कहती हैं कि परिवार किसे हैं? कहीं-कहीं पर विराम चिह्नों में त्रुटियाँ दृष्टिगोचर हो रही हैं। अनेक भावों से परिपूर्ण सुन्दर रचना के हेतु आपको ढ़ेर सारी बधाई।🙏🙏🙏🙏🙏🙏

 

 

आद. बिमला रावत जी-

पटल पर आयोजित चित्राधारित प्रतियोगिता को सफलता पूर्वक आगे बढ़ाते हुए आद. बिमला रावत जी ने "परिवार" विषय पर अपनी भिन्न-भिन्न भावों में रचित छन्दमुक्त कविता से पटल को सुशोभित किया। अपनी रचना के माध्यम से जहाँ एक ओर आपने परिवार के व पारिवारिक सदस्यों (बच्चे माता-पिता व दादा-दादी) के महत्त्व व परिवार में उनकी भूमिका को बड़ी खूबसूरती व उत्साह के साथ वर्णित किया है वहीं आज के युग में परिवारों में व पारिवारिक सम्बन्धों में आ रहे बदलाव व बिखराव के कारण आप बहुत चिन्तित भी दिखायी देती हैं, जो कि आपकी कोमल व निर्मल संवेदनाओं को व्यक्त करती है। आपकी रचना के चरणान्तों में विराम चिह्न पूर्णरूप से विलुप्त हैं। विराम चिह्नों के सही प्रयोग से रचना में चार चाँद लग जाते हैं।

अनेक भावों से परिपूर्ण इस खूबसूरत रचना के लिए आपको ढ़ेर सारी बधाई।🙏🙏🙏🙏🙏

 

आद. विनीता मैठाणी जी-

चित्राधारित प्रतियोगिता को सफल बनाते हुए आद. विनीता मैठाणी जी ने अपने अनुपम भाव एवं शब्द संयोजन से सुसज्जित "मुक्तक शैली" में लिखी कविता द्वारा पटल की शोभा बढ़ायीे। "परिवार" विषय पर अपने अनुभवों को व्यक्त करते हुए आपने परिवार में माता-पिता की भूमिका व उनके महत्त्व को बहुत ही सुन्दर व भावपूर्ण ढ़ंग से वर्णित किया है। माता-पिता को परिवार की आधारशिला मानते हुए, मता-पिता के त्याग, प्रेम व सौहार्द से परिपूर्ण निस्वार्थ भाव को जिस सशक्त भाव एवं शब्द संयोजन के साथ आपने वर्णित किया वह प्रशंसनीय है। "बगिया को जतन से जब पालते हैं, तो भविष्य देश का सँवारते हैं।" पंक्तियों में आपकी देशभक्ति भावना तथा माता-पिता का देश के विकास में महान सहयोग का भाव परिलक्षित हो रहा है। अति सुन्दर भावों एवं शब्दों से सुसज्जित इस खूबसूरत व प्रेरणादायी रचना के लिए आपको ढ़ेर सारी बधाई।🙏🙏🙏🙏🙏

 

आद. किरण अग्रवाल जी-

पटल पर आयोजित चित्राधारित प्रतियोगिता को सफलता पूर्वक आगे बढ़ाते हुए आद. किरण अग्रवाल जी ने सशक्त भाव संयोजन से सुसज्जित अपनी खूबसूरत अतुकान्त कविता के द्वारा पटल को सुशोभित किया। "परिवार" विषय पर अपने विचारों को व्यक्त करते हुए आपने परिवार में माता-पिता की महत्त्वपूर्ण भूमिका को अतीव सुन्दरता के साथ प्रस्तुत किया है। आपने एक ओर जहाँ, अपने बच्चों की खुशी व उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए माता-पिता की अनुपम भूमिका को बखूबी वर्णित किया है वहीं दूसरी ओर युवा पीढ़ी को अपने माता-पिता तथा माता-पिता के द्वारा दिये गये सुन्दर संस्कारों को न भूलने की सुशिक्षा दी गयी है जो कि अतीव प्रशंसनीय है क्योंकि इसी प्रकार की शिक्षा परिवारों को बिखरने से बचा सकती है तथा देश को सफलता की ऊँचाइयों पर ले जा सकती है। इस खूबसूरत व प्रेरक सृजन हेतु आपको ढ़ेर सारी बधाई।🙏🙏🙏🙏🙏🙏

अंशी कमल

 

विशेष:

अंशी कमल ने अपनी रचना की समीक्षा नहीं की थी। (कारण उन्होंने लिखा कि वे अपनी रचना की समीक्षा स्वयं नहीं कर सकती हैं इसलिए उनकी रचना पर चंद शब्द मैं लिख रहा हूँ – प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल)।

अंशी ने अपनी रचना गीत (सरसी छन्द पर आधारित) रूप में बड़ी सुन्दरता से लिखी. वे कहती हैं कि जिस परिवार में माता-पिता व उनके बच्चे एक दूसरे का सच्चे मन से ध्यान रखते हैं, वह घर संसार में सबसे सुन्दर व स्वर्ग के समान होता है। उन्होंने अपने इस गीत द्वारा समझाया है हमें सभी रिश्तों को सम्मान देना चाहिए तथा बेटी-बेटा में भेदभाव नहीं करना चाहिए तथा जो माता-पिता अनेक कष्ट सहकर अपने बच्चों के सुख का ध्यान रखते हैं ऐसे माता का हमें अपमान नहीं करना चाहिए। सुंदर अभिव्यक्ति अंशी – शुभम

 

 

(अंशी कमल समीक्षा हेतु आभार )

सभी रचनाकारों का अभिनन्दन व् आभार व्यक्त करता हूँ। अपना स्नेह व् रचनात्मकता को बनाये रखें।

निर्णायक मंडल से श्री मदन मोहन थपलियाल जी, श्री चन्द्र बल्लभ ढौंडियाल जी, सुश्री आभा ‘अजय’ अग्रवाल जी व् प्रभा जी का हार्दिक धन्यवाद मार्गदर्शन हेतु।

 

शुभम

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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