दीपक अरोड़ा
तेरा जुदा होना सह ना पाऊंगा,
क्यों तुम दुनिया में यूं अकेला छोड़ गये,
हर गम तुम्हारे हंस कर सह लेता मैं,
न जाने क्यों यूं नाता तोड़ गये...दीपक
बालकृष्ण डी ध्यानी
ये शाम
उदासी भरी
है ये शाम
कुछ पल है
कुछ गम है
जो आज कल है
उदासी भरी
है ये शाम ..२
मै हूँ
साथ ये पेड़ है
घास चुप है
अंधेर कुछ कम है
जो आज कल है
उदासी भरी
है ये शाम ..२
नील रंग
ओढ़ा है ये अंबर
काला रंग
छाया अब इस मन है
जो आज कल है
उदासी भरी
है ये शाम ..२
टहनियों की तरहं
अझोल बोझल सा
ये अकेला खड़ा
बस एक तन है
उदासी भरी
है ये शाम ..२
उदासी भरी
है ये शाम
कुछ पल है
कुछ गम है
जो आज कल है
उदासी भरी
है ये शाम ..२
भगवान सिंह जयाड़ा
तन्हाइयों भरी यह जिंदगी ,
दो पल यहाँ अक्सर सुस्थता हूँ ,
इस लिए शाझ ढलते ही सदा ,
मै अक्सर यहाँ आ जाता हूँ,
यह एकांत सुन्शान जगह ,
मन को कितनी सकूँन देती है ,
कभी ख्यालों में डूबू उनके ,
जो अक्सर यहाँ बुलाती है ,
वह और कोई नहीं है यहाँ ,
बस मै और मेरी तन्हाई है ,
निहारू कुछ मनमोहक दृश्य ,
मन को शान्ति मिल जाती है,
तन्हाइयों भरी यह जिंदगी ,
दो पल यहाँ अक्सर सुस्थता हूँ
नैनी ग्रोवर
इन शाम के धुंधले सायों में, कोई चेहरा ना नज़र आये,
हमने ना जाने कितने पहर, तेरे इंतज़ार में यूँ ही बिताये..
गुजरता रहा हौले-हौले, ये वक़्त का पहिया रुका ना रोके से,
ना तुम आये ना पैगाम कोई, ना जाने कितने अश्क बहाये..!!
Rohini Shailendra Negi
"गुज़रा पल"
ये सुहानी रात चाँदनी लिए साथ,
कितनी शांत और खुश-नसीब लगती है,
पर मेरी तनहाई मेरे जिस्म से लिपटी,
यादों की सौगात लिए बैठी है |
उसके शब्दों का,
मुरली की धुन की तरह,
मेरे कानों मे रस घोलना,
उस की आहट से मेरी साँसों का,
अपने दिल को टटोलना |
उसकी एक झलक पाने को आतुर,
मेरी नज़रों का बौखलाना,
पलकों की पंखुड़ियों से,
अनमोल मोतियों का बार-बार टपकना |
न जाने आज कहीं छूट-सा गया है,
हाय ! मेरा प्रियतम..........!!
मुझसे रूठ-सा गया है.......!!
किरण आर्य
शाम का धुंधलका और सोच में डूबा मन
वो दरखत और मन का मेरे एकांकीपन
इंतज़ार जो कल भी आज भी नयन बसा
तुझ बिन जीवन मेरा लागे मुझको सज़ा
अहसासों में खुशबु सा तेरा प्यार महके है
जज़्बात कुछ अनमने भाव कुछ बहके से है
तेरे एक दीद की आस का नैनों में दीप जला
अँखियाँ मोरी चातक छवि देख तोरी चहके है
तू आया तो बसंत के गुल जीवन में खिल जाए
तुझ बिन मन बावरा मोरा पतझड़ सा मुरझा जाए
तू समझ ले हाल मोरा तुझ बिन रतिया कैसे कटे
रह अहसासों में खुशबु बन ख़ुशी दो जहां की मिल जाए
उषा रतूड़ी शर्मा
यूँ ही कब तलक हर शाम तेरे इंतजार में ही गुजर जाएगी
ताउम्र साथ रहने की जो कसमे खायी थी हमने
उन्हें निभाने का वक़्त आया है, अब तो आजाओ प्रिय
वरना जुदाई में तेरी न जाने कब जिंदगी की शाम भी ढल जाएगी
Bahukhandi Nautiyal Rameshwari
ये सन्नाटे को चीर कौन बोलता है ?
क्यूँ गडगडाहट इनमे ..
क्यूँ इन बदलियों का खून खोलता है ?
क्यूँ अशांत मन, वीरानियों में डोलता है ?
पूछा कई बार, इस शाख की पत्तियों से ..
क्या राज़ है, क्यूँ तुझमे अँधेरे में भी फड़फड़ाहट है ?
क्यूँ तुझमे मिठास, मुझमे कड़वाहट है ?
बोला मुस्कुराकर खड़ा पेड़ ..
सब जड़ काटे मेरी, कौन मेरा दिल तोड़ता है ?
फल, फूल, त्वचा मेरी नोचते तुम ..
मेरा मन कहाँ तुम्हारे स्वार्थ के पीछे दौड़ता है ...
फिर भी इंसान, कहाँ छोड़ता है ..
मेरा भला तुझसे क्या बैर ..
मैं चाहूँ सबकी खैर ..
मेरा रोम रोम इंसानियत के लिए ..
श्वास छोड़ता है।
ये तेरा स्वार्थ है, जो सबसे पहले तेरा दिल तोड़ता है ?
Jagdish Pandey .
रात सुहानी धवल चाँदनी में याद तुम्हारी आती है
जितनी याद आती है मुझको उतनी ही तडपाती है
जब आये रात पूनम की और पहर तिसरी बीत जाती है
सच कहता हूँ मेरे दिलवर नींद नही मुझे तब आती है
रात सुहानी धवल चाँदनी में याद तुम्हारी आती है
भला हो उन दरख्तों का जो मुझे सहारा देतें हैं
तन्हा नहीं केवल मैं ही हूँ इशारा मुझको देते हैं
एक दूजे से बाते कर के रात हमारी गुजर जाती है
गम की काली रातों में दीश रात हमारी सुधर जाती है
रात सुहानी धवल चाँदनी में याद तुम्हारी आती है
Bahukhandi Nautiyal Rameshwari
वो गए जब से, जीवन से मेरे ..
मेरा तन्हाईयों में बसेरा हो गया ..
नूर था चेहरे में, इस कदर ..
जीवन बिन उनके, अँधेरा हो गया ..
बसर करते हैं जिस आँगन वो ..
अमावास में ज्यूँ, सैंकड़ों जुगनुओं का ..
फेरा हो गया ...
मानो चाँद भी रूठा हो मुझसे ..
क्यूँ निशा का रंगरूप गहरा हो गया ..
अब चांदनी पर भी पहरा हो गया ..
सोचता हूँ !
ये क्यूँ अकेला ..
क्या वृक्ष भी फरेब पाते हैं ..
आ आपबीती सुनाकर ..
मैं और वृक्ष दोनों सो जाते हैं
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ....
~ अंधेरो से दोस्ती~
रुका सा हर लम्हा
रुकी रुकी से साँसे
तुम पास नही मेरे
वीरान सा जहां लगता है
कब सुबह हुई
कब शाम हुई
मुझे मालूम नहीं
अब वक्त यूं गुजरता है
कभी ये वृक्ष
तो कभी वो वृक्ष
मेरी कहानी सुनते है
तब खामोशी देती गवाही है
कभी मेरे आंसू टपके
कभी साख से पत्ता टूटा
दर्द को साथी मान कर
अब अँधेरो से दोस्ती की है
कुसुम शर्मा
तेरी विरह की अग्नि में जल रही हूँ मै,
फिर भी तेरे आने का इंतज़ार कर रही हूँ मै,
मुझे यकी है एक न एक दिन तुम जरुर आऊंगे,
मुझे मेरे पुराने दिन फिर से लौटाओगे,
इसी आस में जीती हूँ मै, फिर तेरा इंतज़ार करती हूँ मै
जब सूरज ढलता है शाम होती है,
उस समय तेरे आने की आस होती है,
तुम हकीकत में न सही ख्वाब में ही आ जाओ,
मेरी बढती हुई मिलन की तृष्णा को तो मिटा जाओ
जब हर रोज शाम आती है, न जाने क्यों तेरे आने का पैगाम लाती है,
अब न जाने कितने घंटे, कितने दिन, कितने साल गुजर गए,
जाने कितनी शामें आ कर भी चली गई,
फिर भी हम न जाने क्यूँ तेरा इंतज़ार करते है,
हम बस तुम्ही से प्यार करते है,
हम यूँही शाम को तेरा इंतज़ार करते रहेगे,
तुम आओ या न आओ हम तुमसे प्यार करते रहेगे !!!!
किरण आर्य
दरख्त और मैं
दोनों अपने हिस्से के
एकांकीपन से जूझते
जब तुम आये जीवन में
जीवन खुशगवार हुआ....
अहसासों भावो संग
चलते हाथ को थाम
मैं और तुम
खोये रहते एक दूजे में
रूह से रूह का मिलन हुआ....
फिर जाने कहाँ से झोंका वो
निर्मम वक़्त का आया हाय
मायने दोनों क्यों देने लगे
अनकही कही सी बातों को
बातों तकरारो संग
समझ का अलगाव हुआ...
आज नदी की दो धारा से
हम तुम है साथ चले
मिलन के सपने बह चले
दुखो का कारोबार हुआ....
जैसे हर मौसम संग
दरख्त ये खड़ा मौन सा
वैसे ही मन मेरा आज
खड़ा एकांकी सा
पर आस का दीप है
आज भी मन में जलता हुआ...
नदी होगी कहीं तो
भावो की संकरी
जहाँ फिर से मिलेंगे
मैं और तू
अस्तित्व एक है एक रहा
अहसासों भावो संग
तू मेरा था मेरा ही रहा
Neelima Sharrma
शाम का वक़्त हैं
और मैं यहाँ तनहा
तुम्हारी यादो के संग हूँ
आलू के पराठो की सोंधी सुगंध
तुम्हारा जल्दी से आना
लंच टाइम हैं
जल्दी जाना होगा
शाम को मिलती हूँ
कहकर मुझे बहलाना
शाम को तुम्हारी सहेली का इर्द- गिर्द होना
विपरीत रास्ता होने पर भी
भीड़ में बस पर तुम्हारे साथ चढ़ जाना
उस रस्ते भर तुम्हारी खुशबू
भर लेता था अंतर्मन में
रात गुजर जाती थी
सुबह के इंतज़ार में
अब तुम दूर देश में
अपने अपने के साथ
जब बनाती होगी आलू के पराठे
और लगाती होगी ठहाके
तो कही न कही
जरुर कसकता होगा
मेरा प्यार
मजबुरिया क्या नही करवाती सजनी
जानती हो सामने वाली बेंच पर
एक जोड़ा खा रहा हैं लंच बॉक्स से
आज आलू के पराठे
फिर से एक नया इतिहास लिखा जायेगा
और कोई मेरी तरह इसी तरह
पेड़ के नीचे यादो में खो जायेगा
तुम खुश हो न सोना
Upasna Siag
सब खामोश हैं
मैं , यह दरख्त ,
मेरी तन्हाई भी ...
मैं खामोश हूँ ,
लेकिन
अंतर्मन में एक शोर
मचा है ...
मचा है
एक कोलाहल सा ,
सुनता कौन इसे लेकिन
दबाए खड़ा हूँ मौन ...
मौन तो यह दरख्त
भी नहीं
बस खड़ा है ना जाने कितने
कोलाहल
बसाये अपने भीतर
मुझ जैसों का मौन ...
अलका गुप्ता
इस जीवन पथ पर...साथी ना गमों के मिले |
हमसफर तो सुखों के .... हर तरफ ही मिले |
दर्द अकेले ही झेला है कोई हमदर्द ना मिला |
कैसा है बेगानापन जो दिल के रिश्ते ना मिले ||
सांझ की बेला है... मैं क्यूँ वीरान...अकेला हूँ |
क्यूँ मैं आज ...गुम्फन का ....बना झमेला हूँ |
कोई तो मुझे बचा लो... इस उलझन निकालो...
रिश्तों में विशवास के बांधो कि मैं ना आज अकेला हूँ ||
कौशल उप्रेती
कुछ पल जो मिटाए नहीं जाते ,
भुलाये नहीं जाते ,गंवाए नहीं जाते
उन पलों को याद करते हुए ,
ज़िन्दगी को याद करते हुए ,
हम भी हँसते है रोते है ,
उन यादो के सायों मे समय खोते हैं
पर फिर भी न जाने क्यों लगता है,
कि वे पल अब लौट नहीं सकते ,
पल-पल उन पलों की याद में सोचते हुए ,
ज़िंदगी के अँधेरों मे घिर जाते हैं ,
मौत को भी, अब कुछ अधिक ही करीब पाते हैं
इससे आगे कहने को क्या बचता है ,
इस तन्हा सफ़र मे यूँ हीं चले जाते हैं.
Deepak Shukla
मन की एक कहानी अपनी..
हमें याद हो आई है..
दूर क्षितिज पर चाँद है जैसे..
तेरी ही परछाई है..
इतना दूर गई हो मुझसे..
जाने क्यों तुम रुठ गईं..
तुम्हें सितारों में भी ढूँढा.
आस ही मेरी टूट गई..
जन्म जन्म का नाता जिसको
हम दोनों ने माना था
इतनी जल्दी वोह टूटेगा
कभी नही यह जाना था
कहती थी एक रोज मैं उनको
ढूढ़ कभी न पाऊँगा
इतनी दूर व्वोह जाएँगी
पहुँच कभी न पाऊंगा
एक दिन ऐसा भी आया कि
वोह सच थी दूर हुए
.एक शब्द भी कहा न मुझसे
ऐसे वोह मजबूर हुए
अब तक याद हैं आती हमको
दर्द भरी वोह आँखे दो
जैसे कहती हों मुझसेकि
दूर हमें न ना जाने दो
अब भी मन में आते मेरे
ऐसे ही कुच्छ मेरे अहसास
जैसे तुम हो साथ में मेरे
आकर बैठे मेरे पास
पर तुम गयी वह जा बैठी
जहाँ से कोई आये ना
आँखे चाहे बहे कितनी .
दर्द सहा भी जाये ना
तुम पर मरने का दम भरता
पर मैं सच मैं मर न पाया
तेरी याद में तिल तिल मरता
रहा , नही मैं जी पाया
सूनी रातो में मेरे अब
भी चूड़ी खनकती हैं
पायल की छम छम हैं बजती
नजर कहीं न आती है............
ममता जोशी
इतनी उदास शाम पहले कभी न थी ,
बहारों के रहते ये वीरानी कभी न थी,
सूरज के डूबते ही उभर आये दिल के गम,
वफ़ा की बात पर क्यों हो गयी हैं आँखे नम,
तेरे जाने के बाद मैंने चिरागों को रोशन नहीं किया ,
मेरी जिंदगी भी अब इस शाम जैसी ही हो गयी ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
अकेला मन
अकेला मन अकेला मन क्या ये बुझे
क्या ये देखे इस निर्जन
मन ही मन से बात की
ठहर थोड़ा यंहा फिर चल कंही और चल
एकमात्र तू है यंहा
ना तेरा ना तेरे कोई संग
अकेला मन ..२
इकलौता है तू इस गम का
दीर्घकालीन रोग है ये ना इसके अंत का ....अकेला मन..२
अकेला मन अकेला मन क्या ये बुझे
क्या ये देखे इस निर्जन
मन ही मन से बात की
ठहर थोड़ा यंहा फिर चल कंही और चल
बस वक्ता है की वो अकेले चला जा रहा
सुनसान एकांगी असहाय समय बस पास रहा
...अकेला मन ..२
मन है की मन बस साथ,उदास रहा
सामान सफर का यूँ ही अकेला साथ चला
...अकेला मन ..२
अकेला मन अकेला मन क्या ये बुझे
क्या ये देखे इस निर्जन
मन ही मन से बात की
ठहर थोड़ा यंहा फिर चल कंही और चल
कौशल उप्रेती
अरमानो की इस कश्ती को मिलते न कहीं भी राह नयी,
आशाये धूमिल हो जाती मंजील की है पहचान नहीं ,
दुनिया की देखा देखी कर बुन लिए नए सपने हंस कर ,
फिर भी मन को है भरमाती ये कही सुनी बाते अक्सर .
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