Wednesday, May 1, 2013

1 मई 2013 का चित्र और भाव



बालकृष्ण डी ध्यानी 
वो मेरी नींद

देख कर ये चित्र याद आ गया
वो फिर इन आँखों के सामने

वो मेरा दर्पण
वो मेरा छुटपन वो बालपन

कंहा छूट गया वो तकिया
वो मेरी नींद वो मेरा बचपन की

वो मन की तरंग हर पल
वो चैन सकुन मेरे दिन रात के

ना कुछ चिंता आज की थी
ना कुछ फ़िक्र कल की थी तब

बस ऊंघ वाली वो नींद मेरे सपनों की
कहनी जैसे थी कोई वो परी लोक की

निद्रालुता झलकती थी उस मन की
तन्द्रा आराम के मेरे उस पल की

झपकी वाली नींद
अब वो नींद कंहा रह गयी है बाकी

बस याद आ रहे
वो गुजरे दिन वो गुजरे पल आईने की तरंह

देख कर ये चित्र याद आ गया
वो फिर इन आँखों के सामने


दीपक अरोड़ा
अलमस्त होकर सोएं अभी हम बच्चे हैं
कभी हंसें कभी रोएं अभी हम बच्चे हैं
ना दुनिया की फिक्र न किसी का डर
शरारते करते हैं पर मन के सच्चे हैं..

कहते हैं हम हैं भगवान का रूप,
ना फटके छलकपट पास न लगे धूप
ना मारना कोख में हमें मा।
अभी हम कलियों से कच्चे हैं...
अलमस्त होकर सोएं अभी हम बच्चे हैं
कभी हंसें कभी रोएं अभी हम बच्चे हैं...

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~एक हकीकत~
बीते दिन ...
ये दिन फिर न आ पाएंगे
चैन की नीद न सो पाएंगे
खिलौने संग न खेल पायंगे
क्या ये दिन फिर लौट पाएंगे?

आज......
बीते कल का 'रिजल्ट' आज में
आज की भाग - दौड़ 'अजेंडे' में
कल की 'टेंशन' दिलो दिमाग में
अपनों को छोड़ दूसरे 'लिस्ट' में

पाया - खोया....
बीते कल में आज को खोया
आने वाले कल में आज खोया
आज के लिए आज को खोया
आज को पाया आज को खोया


Jagdish Pandey
बचपन की कविता मेरी सरिता

याद आ रहा है आज वो बचपन का जमाना
दादा दादी की कहानी माँ का लोरी सुनाना
गइयों को चराना ताल - तलैयों में नहाना
याद आ रहा है आज वो बचपन का जमाना

.
खो गया हूँ आज बचपन की हसीं यादों से
गुजरे हुवे कल की उन सुनहरी ख्वाबों से
आओ मिल कर गाएँ लडकपन का तराना
याद आ रहा है आज वो बचपन का जमाना
.
साथ में सबके सोना और तकिये से लडना
भइया को चिढाना और दीदी से झगडना
बिस्तर ठीक करना और माँ का चिल्लाना
याद आ रहा है आज वो बचपन का जमाना
.
काश फिर आ जाये बचपन की जिंदगानी
कागज की मेरी कश्ती वो सावन का पानी
खेतों की बालियाँ दिखाती थी मेरी नानी
कितनी हसीं लगती है बचपन की कहानी

याद आ रहा है अपनें शेरू का वो याराना
कैसे भूल गया मूक प्राणियों को जमाना
काश लौट आये फिर गुजरा हुवा जमाना
याद आ रहा है आज वो बचपन का जमाना


अलका गुप्ता
हमें ना कुछ पता था |
दोस्त मेरा स्कूबी यहीं था |
मैं बचपन साथ उसके जी भर खेला |
प्यार की भाषा .......प्यार का भूखा |
जानूँ ..मैं भी ...और वह भी बस यही ||

कहना मत कुत्ता उसको |
दोस्त है मेरा .... स्कूबी वह |
थक कर सोया कभी वह कभी मैं |
ऊपर एक दूजे के ... बेखबर मस्त |
रखे ख्याल मेरा वह...मैं भी उसका ||

काम बहुत हैं |
व्यस्त हैं पापा-मम्मा तो |
दीदी तो गई है स्कूल पढने अपने |
मेरा स्कूबी और मैं..जी भर खेले हैं खूब |
मैंने फेंकी चीजें खूब ...दौड़ के लाया वह |
सो जाएं अब अलमस्त ये बचपन के दिन ||

Rohini Shailendra Negi
माँ ऐसा तु खिलौना ला दे,
सुख की नींद मैं सो पाऊँ,
आने वाला कल कैसा है...?
क्यों सोचूँ और घबराऊँ |

जीवन क्या है, क्या नहीं,
इस दौड़-भाग से परे रहूँ,
अपने नरम-नरम तकिये संग,
मीठी-मीठी बात करूँ |

जब सब कुछ मिथ्या है....फिर क्यों,
व्यर्थ मे चिंता वहन करूँ,
कल जो आए कल देखूँगा,
उसमें आज क्यों नष्ट करूँ |


कुसुम शर्मा
सो जा मेरे राजदुलारे, तुम हो मेरी आँखों के तारे
माना तेरे पास नहीं मै, पर तुझसे भी दूर नहीं मै
हरदम तेरे साथ रहूंगी, चारो पल में पास रहूंगी
निदिया रानी आएँगी, तुझको वो सुलायेंगी
चंदा मामा आएगा, झुला वो झुलायेगा
परियां रानी आएँगी, लोरी तुझे सुनाएंगी
मेरा राजा सो जायेंगा, निदिया में वो खो जायेंगा !

उस समय मै तेरे सपने में आकर, तुझ पर प्यार लुटाओंगी
तेरे नन्हे हाथो को छु कर, तुझसे लड़ लड़ाऊँगी
तुझ पर प्यार लुटाऊगी, तुझ को ये समझाऊगी
माना तुम मुझको देख न पाओ, लेकिन ये एहसास कराऊगी
चलते हुए तुम गिर जाओ, तो आकर तुम्हे उठाऊँगी

टौमी तेरे साथ रहेगा, तुम सोओगे वो सोएंगा, तुम खेलोगे वो खेलेगा
तुम दोनों की मस्ती देख कर, मै भी मस्त हो जाऊँगी
सो जा मेरे राजदुलारे, कल फिर मिलने आऊँगी
परियों के साथ मिलकर, तुझको तारो की सैर करवाऊँगी
सो जा मेरे राजदुलारे तुम हो मेरी आँखों के तारे !

भगवान सिंह जयाड़ा
कैसे भोला कितना मासूम यह बचपन ,
निश्चिंत निर्भय ,बेखौफ प्यारा बचपन ,
खेलना और खाना सदा खिलौनों संग ,
सोना ,जागना सदा इन खिलौनों संग ,
मन मर्जी का मालिक, होता बचपन ,
उसको जो चाहे वह सब पाता बचपन ,
कभी मम्मी के आँचल लिपटा बचपन ,
कभी पाप्पा की गोदी में खेले बचपन ,
कुछ खोने पाने की चिंता नहीं मन में ,
क्या करना है कल ,चिंता नहीं मन में ,
खेलना खाना और सदा रहे मस्ती में ,
हमें क्या चिंता ,चाहे लगे आग बस्ती में ,
भूख लगे तो चिल्ला चिल्ला कर रोऊँ ,
पेट भर गया तो पॊपि के संग भी सोऊँ,
कैसे भोला कितना मासूम यह बचपन ,
निश्चिंत निर्भय ,बेखौफ प्यारा बचपन ,



Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
इस भौतिकता के दौर में
माँ को प्यारा धन हो गया ।
बिलखता, सिसकता मासूम ..
इंतज़ार में माँ की सो गया ..
माँ की फटकार, अपनों का दुलार,
क्यूँ अंधी दौड़ में शुमार हो गया ?..
संतान इंसान की ही हैं देखो जरा !
क्यूँ फिर जानवर से गहन लगाव हो गया ।
दो कदम, दहलीज़ लांगते ..
वही दो कदम दिल की सीमा लांगते गर ..
रिश्तों में दूरी न होती ..
ज़िन्दगी हर इंसान की अधूरी ना होती ..
छुपा बैठा भगवान् कहीं भीतर मेरे ..माँ ..
कब से शैतान तुम्हारा भगवान् हो गया ।
अब यही जानवर मेरा बागवान हो गया ....


Himanshu Kharabanda
प्यार का जज्बा खुदा है, तोड देता दूरियाँ
माँ सी ममता जीव देवे, है नहीं मजबूरियाँ।
है अगर मासूम बचपन,मासूम ही जानवर का जीवन
पा लिया उसने खुदा को, प्यार मैं खोया जो तनमन।
********
ये जो उम्रे बचपन है बहुत मासूम सूरत है,
नहीं दरकार दौलत की,मुहब्बत की जरूरत है।
रुपयै की दौड मैं बेशक यहाँ इँसान है अँधा,
बेहतर हो गये जन्तु,जहाँ ममता की मूरत है।


किरण आर्य .
बचपन हाँ अल्हड
मासूमियत की
कहता ये कहानी ...

सोता है लाड़ला
ममतामई आँचल में
चेहरे पे एक मुस्कान मृदुल
खुशियों की है रवानी ...

माँ का स्नेह स्निग्ध सा
ममता हो रही विभोर
लोरी की जुबानी ....

ना खोना बचपन को
स्वार्थ के अँधेरे में
रहना प्रेम से लबरेज़
कहती मेरी नानी ......

बचपन हाँ अल्हड
मासूमियत की
कहता ये कहानी ...

Garima Kanskar 
बचपन होता है
चिंता परेशनी
से कोशो दूर
बस उसमे होता
आनंद भरपूर
जब हम थक
जाते है खेलते खेलते
तो कही भी
सो जाते है
आराम से
कर लेते है
अपनी नींद
पूरी
- गरिमा



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

1 comment:

  1. बडे की सुकून की जिन्‍दगी, कोई फिक्र और चिन्‍ता नहीं
    बहुत सुन्‍दर प्रस्‍तुति आभार
    हिन्‍दी तकनीकी क्षेत्र कुछ नया और रोचक पढने और जानने की इच्‍छा है तो इसे एक बार अवश्‍य देखें,
    लेख पसंद आने पर टिप्‍प्‍णी द्वारा अपनी बहुमूल्‍य राय से अवगत करायें, अनुसरण कर सहयोग भी प्रदान करें
    MY BIG GUIDE

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