Tuesday, May 7, 2013

6 अप्रैल 2013 का चित्र और भाव




अशोक राठी 
सुनो सुनो ऐ भारत वालों
राह नई बतलाता हूँ
भाई भतीजा सुना था अब तक
मामा भांजा की बतलाता हूँ
लूट सको तुम जितना लूटो
नोटों की अब रेल चली है
हिस्सा अपना लूटो तुम भी
अंधे के हाथ बटेर लगी है

दीपक अरोड़ा 
उस मंच पर क्या सुन रहे साथियों,
इस मंच से सुनो वास्तविकता बतलाता हूं
सब भ्रष्टाचारियों का बोलबाला है वहां,
यहां आपको हकीकत दिखलाता हूं
खुद भी समझो दूसरों को समझाओ
देश को इन भ्रष्टाचारियों से खोखला होने से बचाओ
इनकी ना मा है, न बहन है न भाई कोई,
पैसा ही सुबह इनकी आंखों के द्वार खोलता है
कुछ भी नहीं बोलते ये अपने मुख से कभी
पैसा ही सदा इनके मुख से बोलता है...


Neelima Sharrma 
सुनो ! सुनो! सुनो!!!

मेरे देश की बहनों
ध्यान से सुनो !!

देश में लिंग अनुपात बिगड़ रहा हैं
और व्यभिचार ज्यादा बढ़ रहा हैं
४-५ लडको पर हो रही हैं एक लड़की
भविष्य में होगी विवाह के लिय कडकी

तुम हो सूत्रधार हो सृष्टि की
तुम ही प्रजनन का आधार भी
तो अब सब तुम्हारे हाथो में है
मुह दिखाई मैं अब गहने नलो
कन्या जन्म का अधिकार लो

तुम्हारीअपनी पहली पीढ़ी ने
अपनी ही जात को बदनाम किया
बहु ने जो पोती को जन्म दिया
सास ने उसका अपमान किया
अब आयी तुम्हारी बारी हैं

कन्या भ्रूण को जन्म दो
जन्म देने वाली को मान भी
नारी हो नारी को सम्मान दो
पुरुषो को दो पैगाम भी

परिवार दिवस हैं आने वाला
परिवार अपना तुम बनाओ
बेटे बेटी का भेद मिटा कर
खुशहाल समाज तुम बनाओ .


विजय गौड़ 
मैंने तंग गलियों से,
खुले मैदानों तक,
शासन की दहलीजों से,
मंदिर के पायदानों तक,
सिसकती आवाज से,
चीख-पुकार की आवाजों तलक,
न जाने कितनी कोसिसें की,
लेकिन ये आवाज इतनी तेज ना हो पायी,
आखिर एक 'आम इंसान' ही तो था मैं,
लाखों-हज़ारों अनसुनी आवाजों में से एक,
जो फिर अपने अंजाम तक ना पहुँच पायी।
अब यूँ हि चुपचाप समय का राह नहीं देखनी,
समय को बदलना है, कसम है खाई,
जात-पात, छेत्र, धर्म से नहीं बंटूगा अब,
लड़ने को हूँ तैयार, एक नई लड़ाई।।


Himanshu Kharabanda 
खुदाया गौर से देखो बिगडता दौर कैसा है,
जमाना हो गया बहरा कि इसका ठौर कैसा है।
किसी की आह तडपन से कोई गाफिल यहाँ कोई,
जहर उगता है बगिया मैं, कि उनका बौर ऎसा है।


बालकृष्ण डी ध्यानी 
चिला-चिलाकर

चिल्ला-चिल्लाकर
गला फाड़कर तेरा यूँ चिल्लाना
महाशय कंहा से ये हुनर सीखा आपने

कंठ लंगोट
कोट बुट और सूट
सर जी कौनसी चीज पर मिल रही है अब छूट

लुट लुट कर मिली है लगता ये अब छूट
या फिर लगता है मुझको श्रीमान
इस छूट में भी छुपी है कोई बड़ी लूट

हम तो लुटे हैं कितना और लूटोगे
देख तुम्हरा तमाशा दो घड़ी रोक कर
सर जी हम भी तो यंह से अब खिसकेंगे

चिला चिलाकर
गला फाड़कर चिल्लाना
महाशय कंहा से ये हुनर सीखा आपने


Rohini Shailendra Negi
"नव-निर्माण"...
शांत खड़ी मैं देख रही थी एक लोभी का लोभ,
चीख-चीख कर सब को बुलाये देता था प्रलोभ |

उसकी शक्कर जैसी बातें रक्त-चाप को बढ़ाती,
कभी वो मुझको कभी मैं उसको कंखियों से बुलाती |

बातें बनावटी कर-कर के जाने क्या रस घोला,
जितने भी थे आस-पास उन सब का मन था डोला |

झूठी अफवाहों के पीछे "सच" बेचारा सिमट गया,
अपना कफन वो खुद पे लपेटे जा के ज़मीं से लिपट गया |

दफन हुआ गहरायी मे फिर कभी न ऊपर वो आया,
झूठ अब यारों राज कर रहा सच का तो साम्राज्य गया |

मेरी विनति है सब से क्यों हम ऐसों का साथ निभाएँ,
जो सच को पर्दे मे रखते और झूठों का मुकुट लगाए |

वापिस फिर से वही दौर हो दूर हो सारी अटकलें,
कपट, निराशा, झूठ नहीं हो हर कोई सच्ची राह चले |

आओ हम सब मिलकर प्रण लें ऐसा नव-निर्माण करें,
बस आदमी....आदमी न हो.......एक अच्छा इंसान बने |


भगवान सिंह जयाड़ा 
आवो आवो !लूट मची है लूट ,
मौका यह न जाए तुम से छूट ,
आवो इधर ,मंच सजा है यहाँ ,
देश के तारण हार बैठे हैं जहाँ ,
देश की देखो लग रही है बोली ,
लुटा रहे देश को, नियत डोली ,
जल्दी आवो ,जल्दी आजावो ,
देश रखवालों से देश बचावो ,
इन को अब सबक सिखावो ,
जनशक्ति अब इन को दिखावो ,
स्वच्छ सरकार अब है बनाना ,
दलालों को है सबक सिखाना ,
आवो आवो !लूट मची है लूट ,
मौका यह न जाए तुम से छूट ,

Govind Prasad Bahuguna 
भाइयों और बहिनों
देश प्रेम थिएटर में
आज का नाटक
"बिकवाली जारी है "
देखिये हर रोज देखिये
अपना भाव दीजिये
ईमानदारी लीजिये
यहाँ सब कुछ उपलब्ध है
जब तक जनता स्तब्ध है
स्वतंत्रता का आनंद लूटिये
उदारीकरण में यहाँ सब कुछ
बिकता है
खरीदिये सब कुछ
अस्त्र शस्त्र और निर्वस्त्र
हाव भाव और अभाव
रीती नीति और अनीति
आज बिकवाली का आखरी दिन है
क्या पता कल ये जनता जाग जाए
और बिकवाली वाले सब भाग जाएँ II

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
मैं चिल्ला चिल्ला कर थक गया हूँ
लेकिन कोई सुनने को तैयार नही है
सरकार तो बनी जनता की दुश्मन है
जनता का हित भ्रष्ट तंत्र की चढा बलि है
बार - बार जनता को यूं मरना नही है
इस बार जनता को जगाना जरुरी है
किसी बहकावे में न हमको आना है
अपनी शक्ति की पहचान करवानी है


अलका गुप्ता 
तुम यूँ ही बोलते रहो|
चीखते चिल्लाते रहो|
विरोध भ्रष्टाचार का ...
करने के अलावा कहो |
तुम करोगे क्या ?
कमाने का समय है|
जरा चुप रहो !
आओ देखो.... इधर. |
घोटालों का चढा क्या रंग है |
हर नेता कितना हुनरमंद है |
जनता देख देख दंग है |


कवि बलदाऊ गोस्वामी 
अचानक एक आवाज आई,
लगा कि
बम्ब विस्फोट हुआ।
हुआ भी वैसा,
पर आदमी नही मरे,
केवल बात मर गई है।
जिनके कान खुले हैं,
वे सुन सके हैं।
और फिर...............
बम्ब विस्फोट झेत्रफल से
क्या?
भ्रष्टनिति के मकड़जाल
से भी,
उभर गए हैं।
इन निकम्मों ने,
जिनकी होंठो पर
सर्प का विष है,
जिनका गला खुली कब्र है,
आडम्बर और झूठे वादे देकर,
आदमी को
तबाही की गर्भ में धकेलकर,
जनता पर अत्याचार कर रहे हैं।
आज रण भूमि में,
कमर कस कर
तबाही के गर्भ को नष्टकर,
भ्रष्टनीति के मकड़जाल से निकलना है।


जगदीश पांडेय 
देखों आज कैसा शोर चारो ओर हो रहा है
बदनाम ये देश अब चारों ओर हो रहा है
सुनों गौर से हिंदुस्तानी
बात न गर तुमने मानी
दोस्त बन बैठा दुश्मन
करनें को वो मनमानी
जुल्म अत्याचार क्यूँ घनघोर हो रहा है
बदनाम ये देश अब चारों ओर हो रहा है

रातें हो रही हैं अब देखो काली
डरती लडकियाँ भोली भाली
घूम रहे हैं देखो अपनें ही अब
पहन मुखौटा रिश्तों का जाली
कमजोर क्यूँ अपनों का अब डोर हो रहा है
बदनाम ये देश अब चारों ओर हो रहा है

खडा हूँ कब से अकेले मैं
झुक रही कमर अब मेरी
होनें नही दूंगा कमजोर
बुलंद आवाज ये मेरी
इंसानियत पे हैवानियत का जोर हो रहा है
बदनाम ये देश अब चारों ओर हो रहा है


नैनी ग्रोवर 
सुनो-सुनो भाई-बहनों एक पते की बात बताता हूँ,
छोड़ो सारे भेद-भाव, मैं रोज़ गला फाड़ चिल्लाता हूँ ..

अब भी ना माने तो, अंजाम इसका बड़ा बुरा होगा,
आयेगा समय तो कोई भी ना, साथ तुम्हारे खड़ा होगा,
जात-पात को देख कर, मत दो अपने कीमती वोट,
देखो पहले समझो ज़रा, नीयत में इनकी क्या है खोट,
बार-बार में दोनों हाथ जोड़ कर, बात यही दोहराता हूँ ...

छोड़ो सारे भेद-भाव, मैं रोज़ गला फाड़ चिल्लाता हूँ ..

अब तो अपने को हम सुधारें, अपने काम खुद संवारें,
चुनो उसे जो समय आये तो, काम आये तुम्हारे-हमारे,
लूट रहे जो देश हमारा, नज़र उनपे अपनी सख्त करो,
मत दो वोट अपने इनको, मत इनकी भूमिका सशक्त करो,
बना के गीत इस दर्द को मैं, तुम्हें हर रोज़ मैं सुनाता हूँ ...

छोड़ो सारे भेद-भाव, मैं रोज़ गला फाड़ चिल्लाता हूँ ....!!


अलका गुप्ता 
उफ़ .....कितना शोर है |
ये लाउड स्पीकर वाले |
हर जगह शोर ही शोर है |
सडक पर लगा जाम है |
गाड़ियों के हार्न का शोर है |
कहीं जगराता ...
कहीं शादी-बरात है |
कहीं धरना प्रदर्शन ...
कहीं नारे लगाता जलूस है |
घर में भी तो टी.वी.का शोर है |
कहीं लड़ रहा आस-पडोस है |
यह क्या कम था ...
दिवाली में धमाकों शोर ...
या फिर डिस्को या कान फोडू संगीत |
कोई तो लिमिट हो डेसिबल का |
आखिर यही तो ध्वनि प्रदुषण है |
सृष्टि के लिए ....सारी ...
हर प्राणी के लिए घातक है |
आज मन तरस रहा ...
वातावरण शांत हो |
तन-मन भी शांत हों ||


कौशल उप्रेती 
वो पूछता है मुझसे
ज़िन्दगी क्योँ इतनी अनजान सी हो गयी है ,
की हर तरफ बस
अधेरा और वीरानी सी हो गयी है
वो पूछता है मुझसे.........
क्योँ वफ़ा का बदला
वफ़ा न होकर कुछ और ही है
ज़िन्दगी नाम से ज्यादा कुछ और है
वो पूछता है मुझसे.........
क्योँ हर तरफ़ हाहाकार है
ज़माने में क्योँ हर तरफ संघार है
हर तरफ हुंकार है
वो पूछता है मुझसे.........
क्योँ हो गया है आदमी-आदमी का दुश्मन
हर जगह है नफरत
क्योँ खो गए मोहोबत
वो पूछता है मुझसे.........
की तू इतना उदास क्योँ है
ज़िन्दगी एक छुपा हुआ राज़ क्योँ है
हर समय बनवास क्योँ है
वो पूछता है मुझसे......
राम की इस दुनिया मे
क्योँ आराम नहीं मिलता
हर तरफ़ रावण है क्योँ राम नहीं मिलता
वो पूछता है मुझसे..........



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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