Thursday, November 7, 2013

27 अक्टूबर 2013 का चित्र और भाव




नैनी ग्रोवर 
ये सुबह की सुनहरी किरणें,
धरती को सजाती हैं,
कण-कण में उजाला भरती हुईं,
ठंडी पवन संग, लहराती हैं..

अलसाई अँखियाँ नींद भरी,
इसे देख कर मदभरी हो जाती हैं,
पनघट पर सब सखियों की,
हंसी बड़ी ही सुहाती है ...

ले काँधे पे हल निकले,
किसान जब अपने घर से,
संग संग उनके चलती जातीं,
ज्यूँ राह उन्हें दिखातीं हैं...

छोटे-छोटे मासूम बच्चे,
लिए हाथ में बस्ता, तख्ती,
आने वाले भविष्य हमारे,
जब स्कूल को जाते हैं,
हर ह्रदय को पुलकित करतीं,
आस नयी एक बंधाती हैं... !!


सुनीता पुष्पराज पान्डेय 
पेड़ो की ओट से
छन कर आती हुयी भोर की किरणे
लगती है रुपसी ने सोने के गहनो से श्रंगार किया हो ,
चमक के आगे आँखे चकाचौँध सी हो जाती है,
देख कर मन प्रफुलित हो जाता है ,
सुबह की पहली किरण को क्या शब्दो मे बाँधा जा सकता है


कवि बलदाऊ गोस्वामी 
प्रभात फूटा
निशा छटा
दिशाओं की कपोलों पर रवि रशिम
छा गयी;
और पत्तों की झुरमुट से आकर
धरती को उष्णता देने लगी|
मानो एक पुरुष-सा
वह रवि!
जिसकी प्रत्येक रशिमें धरा को
उपजाऊपन बनाती,
अनूअर_____
धरती पर आ रही|
आज मुझे मिल गया
वह प्रकाश,
जिसके प्रकाश में
खेलता-खाता है जग सारा|


बालकृष्ण डी ध्यानी 
वो प्रभात मेरा

चली आ रही है
पूर्व से किरण एक
मन आगन के
अंधकार को करने दूर

प्रकाशित करेगा
वो तन मन अब मेरा
प्रातःकाल का वो सूरज मेरा
अब गड़ेगा वो गहना

शुरू कर दिया है उसने
अब झलक अपना दिखाना
आरंभ में ही अस्र्णोदय जी
अब गाने लगे वो तराना

नाच उठे पक्षी गगन और भोर
चहक ने लगी सृष्टी चाहों ओर
मेरे देश का सबेरा उस दिन आयेगा
एक भी जीव जिस दिन भूख ना सोयेगा

चली आ रही है
पूर्व से किरण एक


ममता जोशी 
ये धरती प्रभु ने कितनी सुन्दर बनायीं
कहीं फूलों को खिलाया ,कहीं इन्द्रधनुष से सजाई,

नदी ,झरने ,पहाड़ जंतु ,वनस्पति अपार,
चाँद की शीतल चांदनी ये सब प्रभु के उपहार.

घने पेड़ो से छन छन कर सुबह जब धूप आती है,
तब इनायत उस प्रभु की मुझ तक पहुँच जाती है ,..


भगवान सिंह जयाड़ा 
स्वर्णिम किरणों के संग आई नई भोर ,
एक मनमोहक लालिमा छाये चहुँ ओर ,

नए दिन की नई उमंग यह संग है लाई ,
नया उत्साह नई ऊर्जा हर प्राणी में आई ,

मंद मंद उष्णता से धरती को महकाए ,
पक्षियों के कलरव से दिशाएं चहकाए ,

अंगड़ाती कलियों के संग भौरे मंडराते ,
मधुर गुंजन से अपने गीत प्यार के गाते,

भोर की किरणें हम को कुछ सिखती हैं ,
नयें दिन में नयें सृजन की राह दिखाती है ,

कुदरत के यह निजाम भी कितने न्यारे ,
कभी न भूलें आना यह सूरज चाँद सितारे , ,

स्वर्णिम किरणों के संग आई नई भोर ,

जगदीश पांडेय 
निकल आई रवि किरणें माँग उषा की
भरनें को
अपनें तेज स्वरूप से देखो तम निशा की
हरनें को
आसमाँ भी पुलकित हो रहा देख अद्भुत
संगम को
वसुंधरा भी शर्म से लाल हुई देख पुलकित
हमदम को
छुप के दरख्त से झाँक रही सूरज की लाली
चली बयार ठंडी झूम रही खेतों की बाली
काश बदल जाये फिजा ये आब-ओ-हवा
हिन्द का दिन और ये रात काली काली


किरण आर्य 
भोर की एक
अलसाई किरण
पेड़ो के झुरमुट
में से झांकती
कह रही सुप्रभात
आया नया सवेरा
लेकर सुनहरा उजास
भर लो दामन में
खुशियाँ
ओस के कण सी
जो है बिखरी
नर्म घास पर
देखो उम्मीद
हो रही है रोशन
जैसे दमकती
सूर्यकिरण ..........

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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