बालकृष्ण डी ध्यानी
~तेरे नन्हे नन्हे हाथ~
ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ
आ ...आज मेरी उँगलियों को थाम
ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ
करना है बहुत कुछ काम बेटा
पकड़ ऊँगली चल दिखा दूँ तुझे वो राह
ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ
मन का अहसास जगा दूँ तेरे
आज तुझे हाथों कि भाषा मैं पड़ा दूँ
ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ
ना भटके कभी तेरे ये छूटे छूटे हाथ
तेरे लिये आजा ऐसी मंजिल मैं बना दूँ
ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ
स्पर्श ममता का जागे तेरे मन
ऐसा अहसास इन हाथों संग मैं तुझ में जगा दूँ
ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ
देख तेरे नन्हे नन्हे हाथ संग
इस दुनिया तुझे करना है बड़े बड़े कम
ले जा ले जा मेरा तू आशीर्वाद बेटा
ये तेरे नन्हे नन्हे हाथ
सुनीता पुष्पराज पान्डेय
~अंधी ममता ~
आँसू है क्या लिख दूँ पढ़ के समझोगे जग वालो
इस अँधी ममता का मौखोल तो तुम न उड़ाओगे
जब -जब पढ़ती हूँ इस देश की खातिर रण बाकुँरो का प्राण गवाना
बिलख -विलख मै जाती है
इस देश की खातिर मेरे लाल तेरी चाहत को सम्मान दिया
पर मेरी जीवन भर की थाती तू कही
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी
~मेरे बच्चे !!!~
अंगुलियाँ थाम के चलना होगा,
दर कदम दर तुझे बढ़ना होगा,
मेरे बच्चे, ये राह जीवन की,
हर कदम सोच के रखना होगा | अंगुलियाँ थाम के ...
अपने पैरों तले तू रखना जमीं,
दिलो-जज़्बात में न रखना कमी,
आसमानी हो जैसे अब्दे-खुदा, (ईश्वर का दास)
हर करम वैसा ही करना होगा | अंगुलियाँ थाम के ...
हर कोई तुझसा है इंसान यहाँ,
एक रंग, एक से अहज़ान यहाँ,
होना लाज़िम नहीं जो जश्न कहीं,
गर कोई दर्द पुकारे, वहीँ जाना होगा | अंगुलियाँ थाम के .
हो अकीदत यही उसूल तेरा,
लोग तुझसे कहे कि तू है मेरा,
याद रखना न दगा करना कभी,
सामना रब का तुझे करना होगा |
अंगुलियाँ थाम के चलना होगा,
दर कदम दर तुझे बढ़ना होगा |.
{अकीदत–किसी धर्म की वह श्रेष्ट बात जिसे मान लेने पर वह उस धर्म को अपना लेता है, धार्मिक विश्वास.
अहज़ान – दुःख
लाज़िम – जरूरी}
नैनी ग्रोवर
~ तेरी उंगलियां ~
हाँ मैं जानती हूँ, तेरी उँगलियों की भाषा,
मासूम आँखों में, सारा जग देखने की अभिलाषा
मगर डरती हूँ,
इस सरपट भागती जिंदगी में,
तेरा बचपन खो ना जाए,
तेरे प्यार भरे इस छोटे से मन में,
कोई नफ़रत बो ना जाए,
और फिर तेरी सुन्दर सी मुस्कान है देती दिलासा
इक सपना है देखा जागी आँखों से,
तुझको है पूरा करना,
देख बुराई, बुरा ना होना,
ना बुराई की राह पे चलना,
नेक इरादे रखना, यही तुझसे है मुझे आशा
Tanu Joshi
~एक जननी, एक पुत्री~
जन्म तुझे दे के जननी, दुख: जन्मने का बिसरा दे, उसका तो तू ही संसार,
तेरे नन्हें हाथों के स्पर्श से मन के घावों को सहला ले,
क्या हुआ जो पुत्री जन्में, संसार को तू रचने वाली,
माँ तुझे जाने, बहन, बेटी, पत्नी भी,
ओ बेटों की दुनिया वालो मुझे जानो, मुझे पहचानो
बेटे की चाह में मुझे ना मारो,
जननी ही तेरी जब चाह की बलि चढ़ जाये
तेरी चाहत सिर्फ चाहत ना रह जाए.
किरण आर्य
~कर्म~
थाम उँगलियाँ कर्मो की हर इंसा है चलता यहाँ
सत्कर्म और कुकर्म से बंध जीवन है पलता यहाँ
राह और नियति दोनों बेख़बर वक़्त के पैमानों से
बीज जो बोया मन धरती पर वहीँ है फलता यहाँ
समझा ना इस मर्म को मन वो हाथ है मलता यहाँ
जीवन राह लगे दुर्गम उसे जीना भी है खलता यहाँ
कुकर्मो की राह चले जो मन कम कहाँ वो शैतानो से
जीने की रवायत से मुर्दादिल सा मन है टलता यहाँ
~ऐसा क्यों होता है~
जिसने मुझे कभी धुप लगने न दी
अपने आँचल में छुपा कर किसी कि नज़र लगने न दी
हर बार रोने पर तू ही मुझे हंसाती थी
नींद न आने पर लोरियां देकर सुलाती थी
रो पड़ता है याद करके वो दिन
जब हाथो से आपने खाना खिलाती थी
तेरी आँगुली पकड़कर मैंने चलना सीखा
जब जब लड़खड़ाए मेरे कदम
तब तब तेरी बाहो का सहारा मिला
पर ऐसा क्यों हुआ
कि जिसने इतना प्यार दिया
एक ही पल में पराया किया
किसी ओरके हाथ में मेरा हाथ दे कर
मुझे अपने से दूर क्यों किया
पहले समझ न आया मुझे
जब बेटी कि माँ बनी तो पता चला
माँ के लिए बेटी कितनी प्यारी होती है
वो तो माँ के आँख का तारा होती है
अपने दिल के टुकड़े को कोई अपने से दूर करता है
वो तो हमेशा उसके पास होता है
अपनी बेटी में मैं अपने सपने सझौती हूँ
उसके साथ हर पल रहती हूँ
फिर मन ये सोच कर घबराता है
कि इसको भी एक दिन दूसरे के घर जाना होगा
ऐसा क्यों होता है कि अपने ही दिल का टुकड़ा
अपने से दूर होता है
ऐसा क्यों होता है !!
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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