दीपक अरोड़ा
~रंग प्यार का~
आ तुझे रंग दूं
प्यार से
चुपके चुपके
लाड दुलार से
नजर न लग जाये
कहीं किसी की
छुपा लूं हर
बुरी ब्यार से
Pushpa Tripathi
~ होली में~
रंग गई गोरी
छिप गई गोरी
रंग गुलाल, होली में l
कान्हा पकड़े
फागुन मन होकर
सकुचाई राधा, होली में l
जोर नहीं
सखियाँ शरमाई
कर तैयारी, होली में l
श्यामल तन मन
सतरंगी बन सोहे
भीगा अबीर, होली में l
बालकृष्ण डी ध्यानी
~होली है~
रंगों में ही रंग खिले हैं
होली में हम संग मिले हैं
लाल,पीला,नीला वो गुलाल
गालों पर ना हो उसका आज मलाल
राधा यंही कन्हा यंही है
गोकुल के गोपी ग्वाला यंही है
पिचकारी कि ना मारो बौछार
यूँ ना व्यर्थ बहा गंगा कि धार
सूखे रंगों में भी रखो ख़याल
कैमिकल रंगों का ना हो इस्तमाल
आओ मिलकर नाचो गाओ
खूब सब संग प्रेम रंग उड़ाओ
गाली भी गर निकले मुख से
बुरा ना मानो ये तो होली है
रंगों में ही रंग खिले हैं
होली में हम संग मिले हैं
ममता जोशी
~ रंगों का त्योहार ~
देखो रंगों का अम्बार ,
फागुन आ ही गया त्योहार ,
हरियाली , नव पल्लवित पत्ते,
धरती करे श्रृंगार,
झूमें ,नाचें, गाएँ सब जन ,
ख़ुशी में डूबे आँगन द्वार ,
मिलें गले हमजोली बन कर,
की ये है फाग का खुमार
सुनीता पुष्पराज पान्डेय
~मोरे कान्हा तुम आ जाना~
है मुस्कान अजब सी छायी रे
देखो आज होली आयी री आयी री आयी रे
रँग गुलाल उड़त है छटा आज खूब छायी रे छायी रे
भँग के रँग मे झूम रहे सब नर नारी आज सुध बुध बिसरायी रे/
गुझिया तोरे मन भावे कैसे तोहे खिलाऊ रे
मोरे कान्हा होली आयी रे आयी रे आयी रे
कुसुम शर्मा
~होली रंगों की ~
सात रंगो से जुडी है होली
आओ खेले साथ हमजोली
पिचकारी कि धार है छोड़ी
भीगे चुनर भीगे चोली
आओ खेले साथ हमजोली
चारो ओर बहार है अपनों का प्यार है
फागुन का त्यौहार है मिठाई कि मिठास है
भेद भाव को भूल कर नाचे गए सब मिलजुलकर
होली है जी होली है ये रंगो की टोली है !!
Tanu Joshi
~फागुन की मस्ती ~
फागुन आया, मस्ती लाया
मौसम हुआ गुलाल रे,
मनवा हमरा डोल रहा है,
रंग दो सबको गुलााल से,
मोहन की बाँसुरिया बाजे,
राधा हुई निहाल रे,
बाँध के घुँघरू राधा नाचे,
खूब रचाये रास रे,
मनवा डोले, जियरा हुआ गुलाल रे,
होली की मस्ती में झूमे,
ग्वालो के संग में गाँव रे..
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~रंग कौन सा~
फागुन में रंग फिर उभर आए है
तेरा मेरा, हर रंग मिलने आए है
लेकर तौहफा सखा घर आए है
चेहरे, प्रेम रंग से निखर आए है
कुछ रंगों से हकीकत छुपा आए है
कुछ मन - भेद के रंग धो आए है
'प्रतिबिंब' देख रहा क्या तुम लाए हो
हर रंग से मिलने हम नहा कर आए है
अलका गुप्ता
~होली है !~
होली है !
मादकता उल्लास भी ।
रंग हैं सारे...
हास-परिहास भी ।
मिल जुल सब
ख़ुशी में, बह जाते ।
भिन्न भिन्न हैं रंग लगाते।
लाल रंग उल्लास का ...
हरा और पीला
हास परिहास का ।
नीला और गुलाबी
प्रेम सौहार्द का ।
होती है मादकता उल्लास भी ।
शोर भी ,धमाल भी ...
रंग सारे खिलते हैं ।
भेद भाव भूल के ।
होली है !
मादकता उल्लास भी ।।
भगवान सिंह जयाड़ा
~होली मुबारक~
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आया फिर रंगों का त्यौहार ,
रंग ,गुलाल लेकर सब तैयार ,
आवो मिल कर खेलें सब होली ,
दोस्तों की बनाकर हम टोली ,
रंग गुलाल में सब रंग जाएँ ,
गिले सिकवे हम सब बिसराएँ ,
आवो सब प्रीत का रंग लगाएं ,
भाई चारे की मिल अलख जगाएं ,
प्रीत का सब ऐसा रंग लगाएं ,
प्यार मोहब्बत मैं सब बंध जाएँ ,
आओ प्रीत से तन मन रंग लो ,
कभी न उतरे ऐसा रंग रंग लो ,
जाति धर्म को सब बिसरावो ,
आवो होली के रंग में रंग जावो,
आया फिर रंगों का त्यौहार ,
रंग ,गुलाल लेकर सब तैयार ,
आवो मिल कर खेलें सब होली ,
दोस्तों की बनाकर हम टोली.
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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