Saturday, March 15, 2014

16 फरवरी 2014 का चित्र और भाव




बालकृष्ण डी ध्यानी 
~प्रश्न ?~

प्रश्न खड़ा है ?
अपने उत्तर इंतजार में
हर मन के साथ खड़ा है वो
अब बीच बजार में

हर एक एक पल में
जन्मा एक नया प्रश्न ?
खड़े हैं हाथ यंहा क्या
करने वो उसे हल

प्रश्न ही प्रश्न
से अब प्रश्न पूछता है
उत्तर बस अब उस
प्रश्न का मुंह ताकता

बस फंसे है सब के सब
कैसा है ये उसका सबब
बंधे जाते हैं अपने आप में
मन जिसका हो बेसब्र

प्रश्न खड़ा है ?
अपने उत्तर इंतजार में
हर मन के साथ खड़ा है वो
अब बीच बजार में


अलका गुप्ता 
 मंजिलें -

बड़े धोखे हैं यहाँ..अपना..बता कौन है |
बहता दरिया प्यार का..डूबता कौन है ||

ढूढ़ती रही निगाहों में..तस्वीर सच्ची ..
धागा विशवास का यहाँ जोड़ता कौन है ||

प्रश्न चिन्ह से खड़े हैं देखो चारों ओर ही |
रहे मन में यकीन भी उत्तर देता कौन है ||

खड़े हैं मरुस्थलों में.. हम लाचार से आज |
दिखते हाथ बहुत से मगर थामता कौन है ||

इस कदर भीड़ है .... दौड़ती ..इधर-उधर ..
देखते रहे हम यूँ ही ..मंजिलें पाता कौन है ||


सुनीता पुष्पराज पान्डेय 
~प्रश्न ऐसे भी ~

प्रश्न थे बहुत पर उत्तर न मिले
ऐसा क्या था भइया मे जो मुझ मे नही
क्या मेरी इच्छा जानी मेरे अपनो ने मेरे जीवन के फैसले खुद कर डाले
जब भी खिलखिलाना चाहा जी भर लोगो को रास न आया
अनदेखी सी लक्ष्मण रेखा चारो ओर है दिखती
क्यो नही रास आता मेरे पंख पसार गगन मे उड़ पाना
गर मिले मेरे प्रश्नो के उत्तर दो जबाब देने तुम जरु आना


किरण आर्य 
~प्रश्नों के घनेरे~

प्रश्नों के घेरे
उहोपोह के अँधेरे
सब तरह है चीत्कार
मचा है हाहाकार
दीखते है हाथ कई
कौन गलत कौन सही
प्रश्नों के लगे है अंबार
दुःख का ना कोई पारावार
राह सूझने के नहीं असार
भटक रहे सब नर और नार
अंधी दौड़ में शामिल सब हाथ
भीड़ में भी अकेले कोई ना साथ
समझ नियति सब करे समर्पण
प्रयासों से दूर आस रहित मन


सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी 
~बहुत मुश्किल है ~

बहुत मुश्किल है
धरातल पर खड़ा होना,
और जीवित सा लगना,
जब बेबसी और बंजरपन,
जकड़े हुए हों आपके पैरों को...

बहुत मुश्किल है
उन प्रश्नों के साथ खड़े रह पाना,
जिनकी न कोई दिशा हो, न ही कोई दशा,
हर किसी एक के आगे एक लिपटा हुआ है,
किसी पाश की तरह
और जाना कहाँ है कोई उत्तर भी नहीं..

बहुत मुश्किल है
इस सेहरा से पार जाना,
पर मुमकिन है भटक जाना,
और प्रश्नों के एक समूह को हमेशा
फिर अपने सामने खड़ा पाना....
बहुत मुमकिन है...
बहुत मुमकिन है...



Tanu Joshi 
~मैं एक उत्तर~

चित्र देख के उभरे मेरे मन मस्तिष्क में उभरे प्रश्न
संभाले होश तो सुना खुबसूरत है सब
अन्तर्मन विचार- मैं या दुनिया
उत्तर- दोनो
अगर दोनो तो ये विचार क्यों...
क्या, क्यों, कैसे, कहाँ को समझते- सीखते
दुनिया की रीत जानी, रोज नये प्रश्न डराते, आँखे दिखाते, कठोर राह बनाते
सिहर के घबरती मेरी आँखे, सहारे को उठे मेरे दो निरीह हाथ,
किसी ने समझा, किसी ने छीना, बिखरा हुआ समेट के फिर पकड़ी रफ्तार...
खुद सक्षम उत्तर देने में भी, प्रश्न करने में भी
मेरा अस्तित्व ही एक उत्तर- मैं एक उत्तर


जगदीश पांडेय 
~नया झमेला ~

अजब दिखाया खेल गजब दिखाया मेला
कदम दर कदम हमें नजर आया झमेला

कहीं किस्मत का जादू कहीं वक्त बेकाबू
खोजा एक जवाब मिला सवालों का रेला
कदम दर कदम हमें नजर आया झमेला

देख तंगी में हालत पोंछे जिनके आँसू
वही हाँथ उठा, कर रहे मुझसे ठेलम ठेला
कदम दर कदम हमें नजर आया झमेला

"दीश" न हो परेशान सवालों के घेरों में
तेरे कर्म से महक उठेगी शाम की हर बेला
कदम दर कदम हमें नजर आया झमेला


सुनीता शर्मा 
~चुनाव ~

चुनावी प्रतिस्पर्धा की दौड़ में ,
हर आँगन से एक उम्मीदवार है ,
जीवन की सच्ची राह चुनने में ,
आज अनिश्चिताओं का दौर है !

पार्टियों की नित नयी चतुराई में ,
हमेशा जनता ने मात खाई है ,
देश का सच्चा नायक चुनने में ,
आज फिर असमंजस का दौर है !

जाति साम्प्रदाय की बेड़ियों में ,
आज भी जन जीवन जकड़ा है ,
अपना अपना स्वार्थ भुनाने में ,
आज भी षड्यंत्रों का दौर है !

फिर चुनावी हलचलों के शोर में ,
आम आदमी बना आज खास है ,
बढ़ते प्रलोभनो की मृगतृष्णा में ,
चारों तरफ प्रश्नो का दौर है !


Pushpa Tripathi 
~क्या प्रश्न तुम करोगे~

उपजते सवाल
ख्यालों में घर किये
हर कहीं दिखती टीस
क्या अपनों ने जश्न किये ?

'पुष्प ' आदत है उनकी
प्रश्न के बीज बोते है
तनकर प्र्शन खड़े रह जाते है
दूसरों के आगे
खुद की बीन बजाते है
बाज नही आते है
यही सवाल .....
जो जवाब
नहीं दे पाते है
ऐसे है लोग दुनिया के
चुपचाप प्रश्न रह जाते है …!!!!


नैनी ग्रोवर
~जिंदगी का सवाल ~

जिधर देखूँ बस सवाल ही सवाल ,
इन सवालों ने, मचाया कितना बवाल ..

कभी दिन में जूझती, दो रोटी की जिंदगी,
कभी रातों में उठते कल के ख्याल ...

नींद में मुस्कुराते, खिलखिलाते हुए बच्चे,
जागे तो गली में, कीचड़ से हैं बेहाल ....

कल से अम्मा की दवाई हो गई ख़त्म है,
खाँस खाँस के बेचारी का, है बुरा हाल ...

लगी भूख कभी तो, पानी पी लिया,
वाह वाह री जिंदगी तेरा ये कमाल ....///


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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