कुसुम शर्मा
~पृथ्वी है गोल ~
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आओ बच्चों पढ़े भूगोल
जल्दी लाओ ब्लोक तुम जोड़
देखो ये बन गया है गोल
जैसे हमारी पृथ्वी गोल
इसके ऊपर आकाश है छाया
चारों ओर जल है समाया
अपनी घूरी पर ये घूमे
यह सब ग्रहों मे एक ग्रह है
जिसमें जीवन बसा हुआ है
इसमें कई भाग हुए है
जिसमें कई राज छुपे है
कही पे इसकी भूमि चिकनी
कही पे रेतीली है
कही पे इसमें रहते जानवर
कही पे इंसान रहते है
पेड़ों की हरियाली इसमें
फूलो की ख़ुशहाली इसमें
पहाड़ों की ऊँचाई इसमें
लहरें ,भरने बहते है
इसी को पृथ्वी कहते है
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~ हम है यार चार ~
एक नही. दो नही,
तीन नही, हम है यार चार
धर्म, कर्म, विशवास और ईमानदारी
से करते हम अपना विस्तार
जोड़ता हमें है हमारी
उम्र, ज्ञान, अनुभव और विचार
और चार हमारे साथी
हौसला, उम्मीद, लक्ष्य और प्यार
सोच लिया हमने जब
मुश्किलों को मिल कर हम सुलझाते
मिल जाते जब यार चार
बिखरे है जो रंग सब, हम उन्हें जोड़ लेते
बालकृष्ण डी ध्यानी
~जो अब तक आजाद है ~
नारंगी हरा लाल नीला
सब पकडे खड़े हैं
पकडे अपना अपना हिस्सा
गोल है वो शायद पृथ्वी
इसलिए पृथ्वी के
हुये टुकड़े चार
इंसान ने बना दिये
नफरत के इस अहम से
दिलों में छेद कई हजार
दूरियां थी कितनी तब
तब भी वो पास थी
शांती प्रेम की लहर
वो मेरे आस पास थी
मजबूरी है आज इतनी वो
दूर है वो आज कितनी दूर वो
चक्करों पे चक्कर
गिरा गया हूँ
घिर गया हूँ आज मै
अपने ही ख़याल से
मेरे सोच से
अगर तू वाकिफ ना है
ये तेरे सोच की
अब भी वो उम्र कैद हो
मै तो उड़ चला हूँ
परिंदे बन इस गगन पर
उसने पंख फैलाये हैं
जो अब तक आजाद है
नारंगी हरा लाल नीला
सब पकडे खड़े हैं
पकडे अपना अपना हिस्सा
नैनी ग्रोवर
__ धरती हमारी__
रंग-बिरंगी धरती हमारी,
रंग-बिरंगे लोग,
कोई कहता अल्लाह अल्लाह,
कोई जलाये जोत..
कोई गुरुद्वारे में जाके
सीस नवाये,
कोई चर्च के दर को रिझाये,
फिर भी रहें हम सब मिल जुल के,
देखो कैसा जुड़ा संजोग..
आओ हम सब मिल के,
आज कसम इक खाएं,
भारत को, फिर सोने की चिड़िया बनाएं,
काश्मीर बना दें नंदनवन सा,
स्वच्छ गंगा के वंशज कहलायें,
ये दोनों ही हैं स्वर्ग हमारा,
वरना बेकार हैं छप्पन भोग...
रंग बिरंगी धरती हमारी,
रंग बिरंगे लोग..!!
Pushpa Tripathi
~मिलते जुलते संबंध.~
कितने मिलते जुलते है
हमारे तुम्हारे विचार
कितना घनिष्ठ है प्यार
चार प्राथमिक
रंगों जैसा सबंध
हरा लाल पिला और नीला
जिससे बनते कई रंग साकार
प्राथमिकता को महत्व देकर ही
दूसरों से जुड़े रहते है
रंगों का कोलाज बनता है
वरना नहीं तो
क्या -- कोई अकेला रंग खिलता धरती पर
सिर्फ और सिर्फ अकेला !
वृक्ष हरे … लाल फूल
पीला बसंत … नीला आकाश
सब तो है मिले जुले
जिससे बनती है सृष्टि
जिसमे रहते हम
पृथ्वी समुद्र पर्वत से घिरे
हमारी प्यारी दुनिया में 'पुष्प '
और मिलते जुलते संबंध
अलग अलग ढांचे को जोड़े हम
भाषा अलग
प्रान्त अलग
वेश अलग
हम ---- फिर भी एक
अपनी धरती की संतान !!
प्रभा मित्तल
~~अनेकता में एकता~~
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पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण
चारों दिशाओं से आए यहाँ
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
चारों धर्मों के लोग
भिन्न-भिन्न है बोली जिनकी
अलग - अलग हैं भोग।
लाल हरे नीले पीले यहाँ
सब रंगों से सजी धरा है
देवों की बस्ती पर्वत पर,
धरती की गोदी में गंगा है।
एकता में बल हो जिसका
वेदों में वर्णन है जिसका
है ऐसा यह सुन्दर लोक।
सुख-दुःख संग निभाना है।
और सुंदर देश बनाना है।
Kiran Srivastava
जुड़ाव
चार जोड़ जब एक बनाया
लगे हमारी पृथ्वी है,
अलग रंग और अलग धर्म ,
अलग हमारी संस्कृति है...!
एक दुजे का हम सब
करतें हैं सम्मान,
प्रेम त्याग सहिष्णुता
हम सबकी पहचान..!
पर गल्ती हो ही जाती
क्योंकि हम सब हैं इंसान
मिल-जुल कर हम रहें
सदा तो
"भारत मेरा बनें महान"......!!!!!
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/