Monday, April 13, 2015

३ अप्रैल २०१५ का चित्र और भाव



अलका गुप्ता 
~ फूलों की महक ~
~~~~~~~~~(१)~~~~~~~~~

महकते फूलों से चमन देखते चलो |
हँसते काँटों की ..चुभन देखते चलो |
ख्व़ाब हो गर.. चैन-ओ-अमन का ..
ख़ुशियों का.. ये चलन देखते चलो ||

~~~~~~~~(2)~~~~~~~~~~

जीवन तो है सबका ही तुम जीवन का श्रृंगार बनों |
राख हुआ हो बीता कल उसमें भी तुम अंगार बनो |
इतिहास लिखो स्वर्णिम सा जीवन में मानवता का ..
काँटे हों चाहें सदा..सुन्धित फूलों सा व्यवहार बनों ||



कुसुम शर्मा 
~मन के सच्चे लगते अच्छे~
************************
बच्चे है भई बच्चे है, ये तो मन के सच्चे है !
इनकी बाते बड़ी निराली, चाल भी है बड़ी मतवाली !
इनके दिल में पाप नहीं है , मन के सच्चे, लगते अच्छे !
इनकी अद्भुत कर्म कहानी , अद्भुत इनकी राम कहानी !
दूध मिठाई से ये मीठे, सुन्दर और सजीले सीधे !
मन्दिर-मस्जिद भेद मिटते, नहीं किसी से वह घबड़ाते !
बच्चों के हैं सबसे नाते, सबको प्रेम से वो अपनाते !
इक मीठी मुस्कान के आगे, भरी तनाव जिंदगी भागे !
बोल तोतली, समझ न पाते, पर वह कितना ह्रदय लुभाते !
कितने सहज सरल हैं बच्चे, मन के सच्चे लगते अच्छे !!


अलका गुप्ता 
~~~हम बच्चे नादान~~~
~~~~~~~(१)~~~~~~~

हम नन्हें मुन्ने बच्चे हैं |
माना अकल के कच्चे हैं |
रोकर नचा दें माँ..पपा को .
अब पर बिसुरे मुख अच्छे हैं ||

~~~~~~(2)~~~~~~~

लड़ें खेल में...न गंदे बच्चे हैं |
भाव मुख पर....मेरे सच्चे हैं |
नटखट..मासूम.. भोले भाले..
खेल-वेल में ...थोड़े कच्चे हैं ||

~~~~~~(3)~~~~~~~

~~~मैं भी खेलूं ..मेरा खिलौना~~~

मैं भी खेलूं ..
मेरा खिलौना..हाय !!!
डरे-डरे से बैठे हैं
लाठी जिसकी ..
है भैंस ...उसी की ...
समझ रहा हूँ...
ललचाई नजर .. देख रहा हूँ
मैं भी खेलूं ..
चाह रहा है मेरा मन..
मेरा खिलौना..हाय !!!
खेल रहा मोटू जो..
वो खिलौना मेरा है |
पास नहीं है..मम्मा अभी जो
वरना ...आप ..!
हँस न पाते हम पर..ही..
मस्ती..उसकी गुंडई...ये
मैं भी खेलूं ..
मेरा खिलौना..हाय !!!
रो देते हम ...पूरे सुर पर |
मम्मा करती दौड़ के न्याय |
देखें.. बच्चू फिर क्या करते|
मैं भी खेलूं ..
मेरा खिलौना..हाय !!!\



बालकृष्ण डी ध्यानी
~देख छुट गया बचपन~

देख छुट गया बचपन
देखो रूठ गया बचपन .... २

वो हँसते रोते गिरते पड़ते
कैसे बिता गया नटखट मधुबन
वो फंस गया अब कंक्रीटों के वन
देख छुट गया बचपन

वो एक एक बातें याद हैं अब भी
बहती नाक थी जो ओ साथ है अब भी
तोतली ज़ुबान की बात है अब भी
देख छुट गया बचपन

वो चल पीछे मोड़ के देखे जरा
लगता है वो अब भी मेरे पीछे खड़ा
चलो आवाज दे आगे उसे बोला ले जरा
देख छुट गया बचपन

देख छुट गया बचपन
देखो रूठ गया बचपन .... २



नैनी ग्रोवर 
___इक्सवीं सदी के बच्चे___

इनको ना समझो अक्ल के कच्चे,
इक्सवीं सदी के हैं ये तो बच्चे,

अच्छे अच्छों को नाच करादें,
आधी रात में सारे घर को जगादें,
जानते नहीं क्या जिदें इनकी,
मम्मी पापा का पसीना छुड़ादें,
फिर भी लगते ये सबको सच्चे..

इक्सवीं सदी के हैं ये तो बच्चे..

चोकलेट, पिज्जा है इनको भाता,
दाल चावल से टूटा है नाता,
पेप्सी, कोला, झट से पी जाते,
ढूध इन्हें तो रास ना आता,
जंक फ़ूड बस लगते हैं अच्छे..

इक्सवीं सदी के हैं ये तो बच्चे..!!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ....
~बड़ा होने दो ~

ओए टकलू
मैं रो रहा हूँ और तू खेल रहा
मेरे खिलोने को अपना बता कर
हो तू मस्त मगन खेल रहा
देख गुस्सा अब मुझे आ रहा

ओए गंजे
मुझे बड़ा होने दे, फिर तुझे बतलाऊंगा
हक़ कैसा होता है तुझे समझाऊंगा
जिसे तू अपना कहे, उसे अपना बनाऊंगा
आज मैं रो रहा कल तुझे रुलाऊंगा



प्रभा मित्तल 
~ ये तूने क्या कर डाला भाई ~
~~~~~~~~~~~~~~~~~
मेरा खाना मेरा बिस्तर
मेरे कपड़े मेरा घर
सब पर तेरा शासन है
मैं चुप सा खेल रहा था
कब से तुझको झेल रहा था
मुझे रुलाकर तू हँसता है
माँ से भी मेरा हक छीना
क्या किस्मत मैंने पाई,
ये तूने क्या कर डाला भाई !

कुछ ही मिनट मैं पहले आया
पर पल में ही मन भरमाया
राजकुमार सा सपना लेकर
कुछ पल तो मैं खुश रहता
मम्मी की गोदी में पलता
जुड़वाँ था मैं, पर बड़ा बना
तू है दंगई , फिर भी बेचारा
छोटा छोटा की रट लगाई,
ये तूने क्या कर डाला भाई!

मेरे हिस्से की गोदी पर
शासन चाहे जितना कर ले
बड़े भाई पर रौब जमा कर
जितने चाहे रिंग-रंग बना कर
अभी तो तू मौज मना ले
हँसी नहीं है मिलकर जीना
यौं एक दिन मेरा भी आएगा
फिर न कहना शामत आई,
ये तूने क्या कर डाला भाई!





Pushpa Tripathi 
~ मैं तो मस्त मन चंगा हूँ ~ 

सुन ओए चुन्नू …
ये मेरी लाल वाली है
मेरी लाल और पिली है
मेरा लट्टू .... सब कुछ मेरा है
मम्मी ने मुझे दिलाई है
राग ठानूंगा .... जिद्द पर रहूंगा
पापा से शिकायत लगाउँगा
दे दे मेरा सारा सामान
वरना रोकर मार खिलाऊंगा !

सुन ओए मुन्नू …
तेरी नहीं ये मेरी है
लाल पिली सब मेरी है
हम दो जुड़वाँ भाई भाई है
भूल गया कल सोया था जब तू
मम्मी ने मुझे दिलाई थी
तू तो रो ....
रो रो रोकर सोता जा
शिकायत पे शिकायत करा जा
मैं तो मस्त मन चंगा हूँ
खेलूंगा तोड़ूंगा फोडूंगा
लाल हरा पीला बैंगनी और नीला
सारे खिलौनेे अब मेरे है !



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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