Wednesday, June 17, 2015

६ जून का चित्र और भाव





  • नैनी ग्रोवर --
    -- चुप चुप--


    चल छुप छुप, दुनियाँ की बात सुनें, 
    और चुप चुप रह के, हम सपने बुनें..

    चल ऐ साथी मेरे, मुझे ले चल वहाँ, 
    जहाँ दिलों में ईद और, दिवाली मनें..

    जहां मिटती हो थकन, हर राहगीर की,
    ऐसी ही बगिया से, सुन्दर कलियाँ चुनें..

    सूरत से ना हो मतलब, कोई किसी को,
    बस सीरत से इंसाँ के गुणोँ को गुनें..!! 



  • सीख साथी की
  • .
    आज गिरा है फिर ना गिरना ,

    आज अकड़ा है, फिर न अकड़ना,
    .
    बार बार गिरना ,बारबार अकड़ना.
    नर का,खर का ,यह नहीं है गहना,
    .
    रोना नहीं कभी भी गिरकर,
    अबकी सम्भल कर चलना,
    .
    तेरी सफलता खुद कह देगी, 
    नाकामी किसी से ना कहना,
    .
    तूं कहे मैं सहूँ, मैं कहूँ तूं सहना,
    शेष दुनियां से बचकर ही रहना

  • भगवान सिंह जयाड़ा ----------------
    --गुड़िया और खिलौना टट्टू--
    -----------------------------------

    चुप रहना अब शोर ना करना,
    मम्मी पाप्पा देख लेंगे बरना,
    सुन ले कान खोल कर टट्टू,
    क्यों होता है मुझ पर लट्टू,
    समझ गया तुझे भूख लगी है,
    इस लिए मिलने की याद जगी है,
    सवारी मुझे तू करने नहीं देता,
    फिर भी तुझे भर पेट खिलाता,
    रहा सदा तू निखट्टू का निखट्टू,
    बात ध्यान से सुन मेरे प्यारे टट्टू,
    आज सवारी मुझे जरूर करवाना,
    नहीं तो कभी अब पास न आना,
    इस लिए बात अभी कुछ न करना,
    जो मैं बोलूँ चुपचाप उसी को सुनना,

  • गुड़िया रानी 

  • लकड़ी का है प्यारा घोड़ा,
    टिक -टिक करता, दौड़ लगाता ,

    गुड़िया रानी बड़ी सयानी,
    करती दिन भर नटखट शैतानी,
    कभी घोड़े पर दौड़ लगाये,
    कभी उस पर चढ़ कर रोब जमाये ,

    उससे कहती मै हूँ रानी ,
    घोड़े सुन लो मेरी वाणी ,
    मम्मी जब आये चुप हो जाना,
    जाने पर ही दौड़ लगाना ,
    नही तो शामत आ जायेगी ,
    मम्मी ग़ुस्सा हो जायेगी ,
    चुप मै कहु तो चुप हो जाना ,
    मेरे साथ ही तुम सो जाना !!

  • अलका गुप्ता $$$$$$
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    "चल मेरे घोड़े टिक टिकटिक "

    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक ||
    जाना है मुझे कहाँ..
    चुप रहना ..नहीं बताना ..
    मम्मा को....हाँ |
    चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक ||

    ले चल मुझको ...
    सारी दुनिया की ..
    सैर करा दे
    चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक ||

    हाँ नटखट हूँ माना मैंने
    पर रोका टोकी के ये 
    बंधन क्यूँ ?
    मैं भी तो बड़ी हो गई अब...
    क्या नन्हीं सी बच्ची हूँ !
    चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक ||

    ले चल दूर देश कहीं ...
    जहाँ खूब मस्ती और खिलौने हों
    चाकलेट,बिस्किट टाफी हों वहाँ
    न हो बिलकुल पढना लिखना...
    और न हमको कोई डांटनेवाला 
    चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक ||

  • बालकृष्ण डी ध्यानी *****
    ये मेरे काठ के खिलौने घोड़े
    *******************************************
    ये मेरे काठ के खिलौने घोड़े
    मेरी बात तो तू अब जरा सुनना 
    कोई नहीं सुनता है मुझे 
    तू तो मेरी अब बक बक सुनना 
    ये मेरे काठ के खिलौने घोड़े

    ये मेरे सलौने से सखा जी 
    तू क्यों चुप है तो मुझे बता जी 
    गुस्सा नहीं हूँ मैं तो तुझे समझ रही थी
    इस दुनिया के बिगड़े राग बता रही थी
    ये मेरे काठ के खिलौने घोड़े

    यंहा सब अपने में लगे हुये हैं 
    अपने अकेलेपन के सुर में सब सजे हुये हैं 
    तू बन जा मेरा अब सच्चा साथी 
    चल दोनों मिलकर खेले खेल अब संग साथी 
    ये मेरे काठ के खिलौने घोड़े

    देख बात मेरी ही चलेगी अब 
    सवारी तेरी मिलकर दौड़ेगी जब 
    खूब मजा करेंगे अब दोनों मिलकर 
    हट..हिट .. चल जायें वहां हम सरपट
    ये मेरे काठ के खिलौने घोड़े

  • पैगाम 
  • मैं तो यायावर हूँ ,
    भ्रमण मेरा काम,

    अगर भटक जाऊं, 
    मेरे उमेठना कान|
    .
    बिना बन्धन के,
    कठिन है मुकाम,
    मिले नित्य निर्देश,
    हस्तगत रहे लगाम|
    .
    अश्व मात्र प्रतीक है,
    शेष मेरा है नाम|
    संकेतों से दिया है,
    मेने असली पैगाम

  • प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ...
    ~कुछ न कहना~

    अक्सर चल मेरे घोड़े कहकर
    मैं तुम पर सवार होती रही 
    मेरे भावो के तुम सच्चे साथी 
    मेरा बचपन तुमने सुलझाया
    अपनी इच्छा से तुम्हे दौड़ाया 
    गिरते पड़ते संभलना सीख लिया

    सुनो
    अब मैं बड़ी हो रही हूँ 
    खिलौने अब छूट रहे है 
    मेरी खिलखिलाती हंसी 
    अब मेरे ही होंठो में 
    कैद होने वाली है 
    सब कह रहे है 
    मैं बड़ी हो रही हूँ 
    लेकिन तुमसे 
    ये बंधन कैसे छोड़ दूं 

    सुनो 
    तुम किसी से कुछ न कहना
    मैं यूं ही तुमसे मिला करूंगी 
    तुमसे सब बात किया करूंगी 
    अपने बचपन को जिया करूंगी 

    - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल


  • प्रभा मित्तल 
    ~~मेरा टार्जन~~
    पापा ने मुझे घोड़ा दिलवाया

    नाम उसका टार्जन रखवाया
    मेरा घोड़ा है बड़ा सयाना
    इधर-उधर दौड़े मनमाना
    मिल बैठें जब हम दोनों
    एक दूजे की सुनते हैं
    तेरी-मेरी मेरी-तेरी
    गुप-चुप ढेरों बातें करते हैं।

    फिर क्या हुआ है आज तुम्हें
    खाना-पीना सब कुछ छोड़ा-
    क्यों रूठे - रूठे से लगते हो ?
    पढ़ाई भी तो मेरी है जरूरी
    ये क्यों नहीं समझते हो..
    संग-संग खेलें संग संग खाएँ
    पर स्कूल नहीं ले जा सकती हूँ
    देख तुम्हारे बदले तेवर समझी,
    तभी तुम्हें मनाने आई हूँ।

    मैं रहती हरदम घुड़सवार
    फिर भी न कभी तुम थकते हो
    दिनभर करती हूँ मैं बक बक
    पर तुम क्यों चुप-चुप रहते हो ...
    बचपन के ओ मेरे साथी !
    नज़र झुका कर, दुम हिलाकर
    प्यार जताया करते हो
    मेरे टार्जन ये तो बता दो
    तुम खड़े खड़े क्यों सोते हो ?
    क्या हुआ है आज तुम्हें
    क्यों मुझसे रूठे-रूठे रहते हो ...।।

सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

2 comments:

  1. सभी मित्रों की कल्पना सुन्दर लगी,सभी का हार्दिक धन्यबाद,और बिशेष धन्यबाद श्री बड़थ्वाल जी का जो इस पेज को ऑर्गनाइज कर रहे है,,

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    1. स्वागत है जयाड़ा जी .... आप मित्रो के सहयोग बिना मुमकिन भी नही

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शुक्रिया आपकी टिप्पणी के लिए !!!