तकब खुला मंच #2
समूह का यह दूसरा खुला मंच है. माह के अंतिम सप्ताह में प्रतियोगिता नही होगी. यह एक खुला मंच होगा चर्चा, परिचर्चा, समीक्षा हेतु. इस खुले मंच में हम एक युवा प्रतिभावान रचनाकार को आमंत्रित करेंगे. उनकी कविता के साथ एक चित्र प्रस्तुत करेंगे [ चित्र हम प्रस्तुत करेंगे उनकी रचना पर]. परिचर्चा के दौरान वे ही आपकी रचनाओं की समीक्षा करेंगे - एडमिन किरण प्रतिबिम्ब
इस बार हम आमंत्रित कर रहे है होनहार, युवा, समाजसेवी, साहित्य प्रेमी एवं“काका साहब कालेलकर पुरस्कार 2015” से सम्मानित प्रिय Lal Bahadur Pushkar Meerapore जी को. एम फिल के पश्चात इस वक्त वे जेएनयू से अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध में अपनी पीएचडी कर रहे है. अभी वे आई ए एस चुने गए है। इस परिवार की ओर से उन्हें हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनाएं। आशा है वे हिन्दी प्रेम के इस यज्ञ में अपना समय दे पायेंगे.
1. इस बार आप को दिए गए चित्र पर अपने भाव कम से कम दस पंक्तियों में लिखने है शीर्षक के साथ [ मीरापोर जी की रचना केवल उनकी एक रचना के रूप में है उसे आधार न माना जाए अपनी रचना के लिए]
2. ब्लॉग में प्रकाशित होने के बाद ही अपनी रचनाये अपनी दीवार पर चस्पा करे
3. 1 जुलाई २०१६ तक इस चित्र पर आप अपनी रचना लिख सकते है.
उनकी रचना
तुम्हारे सम्भ्रांत बनने की जिद ने
अक्सर उसूलों से समझौता करना सिखाया
अपने कुटिल चालों से
तुम खेलते रहे खेल बराबर
सब कुछ अच्छा कर देने का वादा करके
तुम बनते रहे निर्दयी और प्रमादी
लोगों के दुःख दर्द को अनदेखा करके
तुम्हारा सहृदय बनना
कोई वैधानिक मजबूरी नहीं
तुम्हारे अपने चयन ने किया है
खुद का एक एजेंडा तैयार
जिसके लिए तुम जी तोड़ मेहनत करते हो
उस टेंडर को पाने के लिए
जिसकी निविदा निकलती है हर पाँचवें बरस
तुम्हारी आस्था बदलती रहती है
पुराने कपड़े की तरह
और बनाते रहते हो समीकरण हर पैमाने पर
जिसमे जाति, धर्म, क्षेत्र आदि की प्रबलता हो
तुम्हारे राजनीति की नियति
तुम्हें निर्दयी बनाती है कि
मत ध्यान दो उनके दुःख दर्द पर
जिनकी आस्था तुम्हारे इर्द-गिर्द ही ठहरती है
क्योंकि तुम्हारा ध्यान देना साबित हो सकता है घातक
गर उन्हें ये समझ में आये कि
तुम्हारा गरीब प्रेम महज़ एक छलावा है
यदि उन्हें राजनीति की दोगली परिभाषा की
समझ विकसित हुयी कि
तुम निकाल फेंक दिए जाओगे उनके दिलों से
प्रिय मित्र Lal Bahadur Pushkar Meerapore जी... आपने टिप्पणियों के माध्यम से बहुत सी जानकारी इस पटल पर रखी जो इतिहास और राजनीति पर आपकी पकड़ को दर्शाता है. साहित्य में, सामाजिक क्षेत्र में, प्रतिभा में आप एक महत्वपूर्ण स्थान रखते है. और नाम के अनुसार आपने उसका परिचय दिया है. आपने समय दिया हमारे इस प्रयास में, उसकेलिए आपका हार्दिक धन्यवाद तथा आपके लिए हमारे इस परिवार की ओर से प्रेमसहित असीम शुभकामनाएं.
नैनी ग्रोवर
~ नारा ~
लगाते हो नारा,
गरीबी हटाओ,
साफ़ क्यूँ नही कहते,
गरीबों को मिटाओ..
बेच देते हो,
भारत की तुम,
मिट्टी, हवा तक,
गद्दार हैं भरे,
पूरब से, पश्चिम तक,
पाने को कुर्सी,
कहते हो गरीबी हटाओ..
साफ़ क्यों नही कहते,
गरीबों को मिटाओ..
अब किसकी सुने कोई,
कौन किससे कहे,
ना गांधी जी रहे अब,
ना नेहरू जी रहे,
रही तमन्ना जिनकी,
गरीबी हटाओ,
तुम,
साफ़ क्यूँ नही कहते,
गरीबों को मिटाओ...!!
Prerna Mittal
~जरा सोचिये ~
सबको एक ही लाठी से हाँका जा नहीं सकता ।
हर कोई गांधी या शास्त्री हो नहीं सकता ।
अगर होते भ्रष्ट सभी
तो देश का बेड़ा गर्क हो गया होता ।
आज आम आदमी का जीना
दूभर हो गया होता ।
हैं कुछ, जो जोड़ते हाथ
बाद में पुरज़ोर आँखें दिखाते हैं ।
कुछ करना चाहते जनता के लिए कार्य
पर हा! सिस्टम की मार खाते हैं ।
अगर होते भ्रष्ट सभी
तो देश का बेड़ा गर्क हो गया होता...
सभी बुरों से जगत का कारोबार नहीं चलता
बात बस इतनी है, अच्छों की कोई बात नहीं करता।
सबको चाहिए कुछ चटपटा, कुछ वाद - विवाद
जिससे लगा सकें कुछ नमक- मिर्च और करें प्रतिवाद
अगर होते भ्रष्ट सभी
तो देश का बेड़ा गर्क हो गया होता....
सोचो ज़रा भ्रष्ट को भ्रष्ट बनाने वाला कौन है ?
उनके झूठे वादों पर अंधा बन भरोसा करने वाला कौन है ?
वोट के लिए घूस देने और लेने वाला कौन है?
हम सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे नहीं, तो कौन हैं ?
अगर होते भ्रष्ट सभी
तो देश का बेड़ा गर्क हो गया होता....
बड़ा ही आसान है उँगली उठाना
मुश्किल है, तो वो है, विकल्प बताना ।
ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती,
दूध में धुलकर कभी अदालत नहीं सजती ।
अगर होते भ्रष्ट सभी
तो देश का बेड़ा गर्क हो गया होता.....
आज भी विश्व में भारत का दबदबा है ।
अर्थात् कहीं किसी का ज़मीर अब भी खड़ा है ।
गोपेश दशोरा
~बापू की रो रही आत्मा!~
स्वर्ग में मच गई खलबली, सुन यम का आदेश।
जा सकता है कोई भी, अपने-अपने देश।
एक दिवस का टूर ये होगा, जाओ अपनों के पास।
कैसा था? क्या छोड़ आए? और कितना हुआ विकास?
ना कोई तुमको देखेगा, ना ही तुम कुछ कह पाओगे।
एक दिवस पर्यन्त सभी, लौट पुनः तुम आओगे।
बापू का मन हरषाया, भीगे उनके नैन,
मेरा भारत कैसा होगा? हृदय हुआ बैचेन।
बापू आए धरती पर, लेकर मन में आस।
देखा जो हाल यहां का तो, टूट गया विश्वास।
भाई-भाई का दुश्मन था, ना कहीं बचा था नेह।
आत्मा सबकी मर चुकी, बस घूम रही थी देह।
सफेद पोश नेताओं की, जब देखी तिरछी चाल।
आँखों में अश्रु भर आए, और बुरा हो गया हाल।
भूखमरी, चोरी, हत्या का चहुँओर बस नाम सुना,
फिर भी हर व्यक्ति के मुख पर, मेरा भारत महान सुना।
इतनी हिंसा, इतना आतंक, कभी ना पहले देखा था।
टूट गया उन वीरों का, जो सपना सबने देखा था।
तस्वीर लगा दीवारों पर, बस फूल चढ़ाए जाते हैं।
मेनें जो भी कुछ बोला था, वो सब बिसराए जाते हैं।
हरा-भरा भारत मेरा, वीरान नजर अब आता है।
भारतवासी बचे कहां, हिन्दु-मुसलमान नजर अब आता है।
बापू की रो रही आत्मा, देख ये अजब कहानी,
मन ही मन वो सोच रहे, हाय! व्यर्थ गयी कुरबानी।
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~बापू खुश हो ?~
फोटो में
बापू तुम खुश नज़र आते हो
नोटों में
बापू आज भी तुम ही छाये हो
देख राजनीति
आजकल तुम क्या सोच रहे हो
अंदर से
क्या बापू तुम रो तो नही रहे हो
यहाँ राजनीति
महज खिलौना बन कर रह गई
चाटुकारिता अब
नेता बनने की पहचान रह गई
राजनीति अब
पांच साल में सिमट कर रह गई
कीचड़ उछालना
अब नेतागिरी का आधार हो गई
देश भक्ति
अब, एक सोच की जागीर हो गई
देश हित
कहाँ, अब पार्टी हित की बात हो गई
भ्रष्ट तंत्र
अमीरी गरीबी की खाई चौड़ी हो गई
संसद अब
विचार नही जंग का मैदान हो गई
सच कहना
अन्दर से बापू तुम रो तो नहीं रहे ?
किरण आर्य
~राजनीति~
आज नेता बने
अभिनेता और
अभिनेता अपने
बन गए नेता
दुनिया के रंगमंच पर
सबकी हिस्सेदारी
है अपना पार्ट
नाम बेच
सबको आगे जाना है
स्वार्थ की रोटियां
सेंकना और खाना है
साम दाम दंड भेद
नीतियों को आजमाना है
करके कुछ भी भैया
डंका अपना
बजाना है
गांधी के आदर्श
तस्वीर,
किताबो तक रह गए
नोट में छपे गांधी
हाय अब बिकने लगे
गाँधी गांधी करके
उल्लू अपना सीधा कर जाना है
पांच साल की नौकरी में
पचास साल का कमाना है
राजनीति महज
अब नेताओ का
बन गया गोरख धंधा है
ऊपर से साफ़ दिखता
अंदर से सब
गंदा ही गंदा है
सफेद कपड़ों में
काले काम सब कर जाना है
राजनीति को हांजी हाँ
व्यवसाय अब बनाना है ..................
Madan Mohan Thapliyal
~रिवाज ~
जब तक जिन्दा है,
परहेज में जीता है आदमी ,
कोई भी गुनगुना ले,
भला,बुरा गीत है आदमी.
ए देश की रीति है,
या है कोई रिवाज,जाति धर्म,
मजहब में,
उलझकर रह गया है आदमी.
चाटुकारों ने अपनी चाटुकारिता के,
खंबे गाड़ लिए हैं हर तरफ,
उन्हीं खंबों का ले सहारा,
बैनर बन लटक गया है आदमी.
जब तक रहे मुंह फेर कर रहे,
अनगिनत घाव देश को दिए,
आज वही लोग हैं पैरवी पर,
अपने ही जनाजे में शरीक है आदमी.
सफेद पोशाक को छोड़ किसी के,
दाग हैं हर तरफ,
किसका देश,कौन प्रजा,
साहूकारों की मंडी का
सौदा बन गया है आदमी.
हाथ जोड़ कर रहे हैं विनती,
गांधी को कर दरकिनार,
कई बार राजघाट हो के आए,
गांधी से आज भी अनजान है आदमी.
एक ही विनय है सबसे,
मत खड़े हों बाजार में
अपनी बोली लगाने के लिए,
इस रिवाज को छोड़ दो 'शैल',
देश चाहता है देखना तुम्हें आदमी..........
Ajai Agarwal
'' बापू से निवेदन ''
======================
हम सबके थे प्यारे बापू
कठिन साधना के प्रतीक थे
ग्रामात्मा वो ग्रामप्राण थे
लाठी जिनका आलम्बन थी
अहिंसा हथियार थी
गली चौराहे मूरत उसकी
आज भी करिश्माई नजर आती है
बापू --
नोटों में तुम ,मूरत में तुम
नेता के भाषण में हो तुम
कठिन साधना के , तुम ! प्रतीक थे
आज ; नेता होने का, पर्याय हो
जिस छोटे भाई की सनक को
बापू तूने मान दिया ,
उसकी सनक की खातिर
भारत माँ को कुर्बान किया ,
टुकड़े जिसने माँ के करवाए
आज वो तेरा लाडला बच्चा -
अहिंसा को भूल भाल के
हिंसाओं की राह चला .
लोकतंत्र की चौपड़ में
भाँती -भांति के खद्दरधारी
चलते फिरते ब्रैंडेड गांधी
मत दो मत दो ,हाथ जोड़ के
मत जनता से लेते हैं
चकाचक धोती की लीरें
भांति -भांति की टोपी ले घूमें
स्वयं भी पहनें ,जनता को पहनाएं
टोपी पहने पेट फुलाये
कुछ नेता बरगद बन जाते
बाकी कुछ पिछलग्गू होते
जैनरिक खेती की भाँती
काम देश के कभी न आते
स्वयं को देखें ,स्वयं ही खाएं
जात-पांत और मजहब खेलें
जनता को भी ये बहकाएं
बापू मुझको तो लगता है
स्वातन्त्र्य की बरखा में
भारत भूमी की माटी में
नेता के कुछ बीज थे बिखरे
राष्ट्रप्रेम वाले ,सब काने निकले
गाँव-गाँव अर गली शहर की
क्यारियों में जो हुई रुपाई
भ्रष्टाचारियों ,लुटेरों की
फसल हर जगह उग आई .
नेता जनता का रिश्ता अब
खुले नाले सा बदरंग हो गया
क्यूँ लाचारी है ? इस रिश्ते को ढोने की !
जनता भ्रमित ,समझ न पाए
बापू तेरा चरखा ,तेरी तकली
म्यूजियम की शान बढ़ाती
मेरे बच्चे उसे देख कर
हाथ जोड़ते ,बस नमन हैं करते
आज देश को आस तुम्हारी
एक बार फिर आ जाना
अपने संग -संग बापू तुम
आजाद -भगतसिंग को भी लाना
तुम्हें मिलें यदि ,अर्जुन भीम
उनको भी संग लेते आना --
मुहं में राम बगल में छुरी
ऐसे नेताओं से ,देश को मुक्त करना है ,
कटती हुई गाय बकरी को भी
उसका हक दिलवाना है
कुसुम शर्मा
जनता को ठगना इनका काम
फिर कहते ये भारत महान
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हमारे नेताओं की बात निराली
सर पर टोपी चाल मतवाली
कुर्सी की है इन्हें बिमारी
कोई नही है इनकी साली
मीठी मीठी बाते करते
हर दम जनता को ये ठगते
झूठे वादों का आश्वासन देकर
बोटो का पिटारा भरते
झूट कपट और बेमानी
इनकी यही है कहानी
गांधी जी के बन्दर तीन
आज बजा रहे वो बीन
नही बची है इमानदारी
घोटालों की इन्हें बिमारी
देश से करते ग़द्दारी
शान से ज़्यादा जान है प्यारी
गांधी जी की याद है प्यारी
नोट के अन्दर तस्वीर है भारी
कांग्रेस थी इनको प्यारी
वीजेपी अब कांग्रेस पर भारी !!
भाई को भाई से लड़वाते
धर्म जाती का भेद बताते
भ्रष्टाचार का ये है पिटारा
हिन्दू मुस्लिम इनका नारा
आरक्षण इनका हथियार
जात पात है इनकी मार
जनता को इनमें उलझाते
हर दम रोटी सेक के खाते
नेताओं का यही है काम
जनता को ठगना इनका काम
जब तक जनता सोयेगी
ऐसे ही वो रोयेगी
जाग गई तो नेता पे भारी
तभी ख़त्म होगी ये बिमारी !!
प्रभा मित्तल
~~ बापू क्या देख रहे हो ! ~~
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
बापू क्या देख - देख मुस्काते हो
या यह सोच मन ही मन हर्षाते हो? -
"आज भी जग में है तुम्हारा नाम,
इसीलिए तो है मेरा देश महान।"
जिस सत्य अंहिसा के बल पर
तुमने था देश आज़ाद कराया
सादा जीवन और उच्च आदर्श
अपनाकर परहित का पाठ पढ़ाया,
ख़ुद अपने तन पे लँगोटी पहनी
और निर्धन का तन ढकवाया।
अब नहीं रहा कुछ ऐसा, बापू !
यहाँ जो तुम छोड़ गए थे।
अंग्रेजों से मुक्ति दिलाकर
ग़ुलामी की जंजीरें तोड़ गए थे।
अब तो नोट-वोट की माया है
इन सफेदपोश नेताओं ने
बस्ती-बस्ती हाथ जोड़कर
ग़रीब का मन भरमाया है
हलवा -पूरी और नोट बाँटकर
अपना ईमान बेच खाया है।
सत्ता के गलियारों पर भी
अपना ही हक जमाया है।
ग़रीबी हटाओ का नारा लगाकर
"ग़रीब हटाओ" सा काम हुआ है
भोली जनता का खून चूस
पूँजीपति मालामाल हुआ है।
ये कैसी मुस्कान है बापू तुम
नोटों पर भी मुस्काते हो।
जमाखोरी और घोटालों के
हर रुपए में पाए जाते हो।
रिश्वत ऐसी विधा बनी है
वहाँ भी काम में आते हो।
देश की आज़ादी से लेकर
हर जगह ही तुमको कैश किया।
कूटनीति की कुत्सित चालों से
इन सेठों और नेताओं ने
तुम्हारे सपनों के भारत को
भ्रष्ट राष्ट्र में बदल दिया।
जनसेवा का झूठा वादा करके
राजनीति को बदनाम किया।
गर तुम सा कोई आ जाए,
तो अब भी देश सँभल जाए....
ऐसी बात नहीं है बापू!
कुछ निष्कपट दिलों में बसे
अब भी गाँधी पाए जाते हैं ।
राजघाट में नित समाधि पर
अाज भी फूल चढ़ाए जाते हैं।
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