Tuesday, August 9, 2016

‪#‎तकब१०‬ [ तस्वीर क्या बोले प्रतियोगिता #10]



‪#‎तकब१०‬ [ तस्वीर क्या बोले प्रतियोगिता #10]
मित्रो लीजिये अगली प्रतियोगिता आपके सम्मुख है. नियम निम्नलिखित है 
१. दिए गए चित्र पर कम से कम १० पंक्तियों की काव्य रचना शीर्षक सहित होनी अनिवार्य है [ हर प्रतियोगी को एक ही रचना लिखने की अनुमति है]. 
- यह हिन्दी को समर्पित मंच है तो हिन्दी के शब्दों का ही प्रयोग करिए जहाँ तक संभव हो. चयन में इसे महत्व दिया जाएगा.
[एक निवेदन- टाइपिंग के कारण शब्द गलत न पोस्ट हों यह ध्यान रखिये. अपनी रचना को पोस्ट करने से पहले एक दो बार अवश्य पढ़े]
२. रचना के अंत में कम से कम दो पंक्तियाँ लिखनी है जिसमे आपने रचना में उदृत भाव के विषय में सोच को स्थान देना है.
३. प्रतियोगिता में आपके भाव अपने और नए होने चाहिए.
४. प्रतियोगिता ७ अगस्त २०१६ की रात्रि को समाप्त होगी.
५. अन्य रचनाओं को पसंद कीजिये, कोई अन्य बात न लिखी जाए, हाँ कोई शंका/प्रश्न हो तो लिखिए जिसे समाधान होते ही हटा लीजियेगा.
६. आपकी रचित रचना को कहीं सांझा न कीजिये जब तक प्रतियोगिता समाप्त न हो और उसकी विद्धिवत घोषणा न हो एवं ब्लॉग में प्रकशित न हो.
विशेष : यह समूह सभी सदस्य हेतू है और जो निर्णायक दल के सदस्य है वे भी इस प्रतियोगिता में शामिल है हाँ वे अपनी रचना को नही चुन सकते लेकिन अन्य सदस्य चुन सकते है. सभी का चयन गोपनीय ही होगा जब तक एडमिन विजेता की घोषणा न कर ले.
निर्णायक मंडल के लिए :
1. अब एडमिन प्रतियोगिता से बाहर है, वे रचनाये लिख सकते है. लेकिन उन्हें चयन हेतु न शामिल किया जाए.
2. कृपया अशुद्धियों को नज़र अंदाज न किया जाए.



इस तकब #10 की विजेता है  सुश्री अलका  गुप्ता जी - हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~ पापा ~

जीवन को आधार देता
आपका वर्चस्व
समर्पित परिवार के लिए
आपका सर्वस्व

आप के हाथों में
देकर अंगुली चलना मुझे आया
जीवन मार्ग को कर अग्रसित
आपने जीना मुझे सिखलाया
सुख दुःख को समेट कर
हार जीत का भेद समझाया
दायित्व निभा कर अपना
परिवार का महत्व बताया
देकर शिक्षा धर्म कर्म की
पाप पुण्य का रहस्य समझाया
बन कर कठोर कभी
मुझे कर्तव्य का बोध कराया
बन कर गुरु मेरे
गलत सही का अंतर बतलाया
सच झूठ के जाल में
नफा नुकसान मुझे दिखलाया
टूट कर, फिर खड़े होकर
हौसले से परिचय करवाया

आज साथ नही फिर भी
मेरे मार्गदर्शक बन
राह मुझे दिखलाते हो
बन आशीर्वाद आपका स्नेह
गमो से लड़ता, खुशी को जीता हूँ
याद नही साथ हो
पापा आप आज भी यहीं कहीं हो
आप सदा मेरे साथ हो


टिप्पणी: जीवन में पिता का स्थान माँ के समकक्ष ही होता है बस माँ की ममता दिख जाती है और पिता एक गुरु तुल्य जीवन का मार्ग प्रशस्त करता है....पिता को समर्पित कुछ भाव



Kiran Srivastava 
"जीवन की डगर"
==================

अंगुली थामें
कदम बढ़ाना,
धीरे धीरे
चलते जाना,
चलते चलते
दौड़ लगाना,
अपने मंजिल
को है पाना...!!!

डगमगा जाए
अगर पांव तो,
असफल हो
जाए दांव तो,
मत घिरना
अवसाद से,
चिंता और
तनाव से,
राहों के ये
बाधक है,
जीवन के
अवरोधक हैं....,!!!!

धैर्य बनाए
रखना तुम,
और न पीछे
हटना तुम,
चलते रहना
बढ़ते रहना,
हिम्मत से
लेना तुम काम,
जीवन होगा
तभी आसान......!!!!!

==================
टिप्पणी: जीवन के राहों में बहुत सी मुश्किलें आती है। हमें बहुत ज्यादा हताश या निराश नहीं होना चाहिए।


Prerna Mittal
~परवरिश~

बच्चा रोते हुए इस संसार में आता,
अपने प्यारेपन से सबको लुभाता,
मात-पिता की आँखों का तारा बन जाता,
कभी नख़रे दिखाता और कभी रूठ जाता,
तो कभी लाड़ में आकर सिर पर चढ़ जाता,
और सबको अपनी उँगलियों पर नचाता ।
उसकी एक मुस्कराहट पर न्योछावर हो जाते,
नज़र उतारते, पैसे वारकर नौकरों में बाँटे जाते ।

उँगली पकड़ पिता की वह चलना सीखता,
लड़खड़ाते क़दमों को ज़मीं पर रखना सीखता ।
सब चाहते ऊँचाइयों को छुएँ, वाहवाही करे जमाना,
पर पिता होता ख़ुशी से अभिभूत, गर्व से तनता सीना ।
जब बेटा उसका, उससे ज़्यादा प्रसिद्धि पाता,
और पिता, पुत्र के नाम से पहचाना जाता ।

परवरिश बालक की होती नहीं आसान,
जुड़ा इससे हँसना, रोना, दुःख और मुस्कान,
कभी पड़ता बच्चों के साथ बच्चा बनना,
तो कभी कान पकड़, देना नैतिक ज्ञान ।
व्यावहारिकता के साथ दुनियादारी भी सिखाना,
अनुशासन, स्वास्थ्य और स्वच्छता का पाठ पढ़ाना ।

यह है एक ऐसा उत्तरदायित्व,
बनाना है एक महान व्यक्तित्व ।
जो अपने पैरों पर खड़ा हो सके,
सिर उठाकर अपना वह जी सके ।
ना हो हृदय में बैर, प्राणी के लिए संवेदना हो ।
शोषण का करे विरोध, स्वत्व से ना समझौता हो !

टिप्पणी: सही परवरिश ही बच्चे, परिवार, समाज व देश के भविष्य का आधार है । यह एक ऐसी ज़िम्मेदारी है जिसे निभाने में अपनी और बच्चे दोनों की ख़ुशी, उदासी, क्रोध, प्रेम तथा अनेक भावनाओं के बीच सामंजस्य बिठाते हुए सही निर्णय लेना पड़ता है । यह कभी-कभी अत्यंत कठिन होता है ।


Meena Prjapati 
~प्लास्टिक~

प्लास्टिक मजबूत होती है
इसका अंत नहीं होता
रिश्तों का बंधन भी
मजबूत होता है
जिसकी कसावट
टूटती नहीं हैं
प्लास्टिक हंस्ता,
खेलता, रोता
सब होता है
पापा की डांट
की तरह
जमाकर ऊँगली
खींचकर ले जाना
जैसे प्लास्टिक से
वस्तुएं खींची जाती हैं
उसमें तन्यता
अधातवर्धन्यता गुण होते हैं
रिश्ते बड़े वैज्ञानिक होते हैं
इनमें सभी रिएक्शन होते हैं

टिप्पणी: इस तस्वीर में दी गई गोटियां मेरे दिमाग में प्लास्टिक को दिखाती हैं। इसी वजह से मेरी कविता का नाम प्लास्टिक है और मेरे हिसाब से प्लास्टिक और रिश्तों का जोड़ मजबूत होता है जिसे मैने कविता के रूप में रखा है।



नैनी ग्रोवर
 ~ पगडंडी ~

जीवन की
जिस पगडंडी पर
तुमने,
मेरा हाथ थाम
चलना सिखाया
मेरे पाँव
उसी पे चलते रहे,
कभी उदास
कभी मुस्कुराते
लम्हों को संग लिए
कभी कांटे मिले
कभी फूल
कभी मजबूत बनी
कभी कर बैठी भूल,
परन्तु, फिर भी
निरन्तर चली
जाने कब
तुम हाथ छुड़ा गये
और बस,
एक तस्वीर में
समा गये,
ये पगडंडी,
फिर भी,
समाप्त ना हुई,
और मेरे
छाले पड़े पाँव
चलते ही जाते हैं
इसपर,
निरन्तर
निरन्तर ...!!

टिप्पणी: गोटियों को मैंने लम्हों के रूप में देखा । और जीवन की पगडंडी में शामिल किया


गोपेश दशोरा
~ पीढ़ी का अन्तर~


क्यूं नहीं समझते हो पापा,
मेरा भी अपना जीवन है।
मेरे भी तो कुछ सपने है
घर के बाहर कुछ अपने है।
इतना बड़ा हो गया हूं कि,
भला बुरा सब समझ सकूं।
माना थोड़ी सी मुश्किल है,
पर बिना मदद के सम्भल सकूं।
उंगली थामी थी बचपन में,
अब छोड़ नहीं क्यूं देते हो।
पिंजरे में बांध रखा हमको,
क्यूं ना तुम उड़ने देते हो।
यह पीढ़ी-पीढ़ी का अन्तर है,
कभी समझ नहीं तुम पाओंगे।
ना साथ हमारा अगर दिया,
तो तन्हा ही रह जाओगे।
सुन बेटे की यह बात सभी,
माँ-पापा, थोड़े घबराए।
क्या इसीलिए ही सींचा था,
अपने आंगन के पौधे को?
जो बड़ा हुआ तो छाह नहीं,
फल मिले, जो मानो शर्तों को।
काट के अपना पेट जिसे,
दो वख्त खिलाया करते थे।
वो बेटा आँख दिखता है,
जिसे हाथों में सुलाया करते थे।
तू भी कल बाप बनेगा तब,
क्या इस सब से बच पाएगा।
जितना हमने है सहा यहांँ,
तू तनिक नहीं सह पाएगा।
माना तेरे कुछ सपने है,
पर मेरा सपना तो तू ही है।
माना तेरे कुछ अपने है,
पर मेरा अपना तो तू ही है।
मेरे सपने बस टूट गये,
मेरे अपने भी छूट गये।
जिनकी खातिर खुद को झोंक दिया,
वो ही हमसे मुंह मोड गये।
फिर भी,
बेटा, बस तू खुश रहे सदा,
और चाह नहीं कुछ है हमको,
अब घर में रहे या वृद्धाश्रम,
और कितना जीना है हमको।

टिप्पणी: जब माता-पिता अपने बच्चे को उंगली पकड चलना सिखाते है तब एक ही बात मन में होती है कि जब कल वे वृद्ध हो जाएगें तो उनके बच्चे उनका सहारा बनेंगे। लेकिन समय का पासा क्या लेकर आता है यह कोई नहीं जानता।



डॉली अग्रवाल 
~पिता~

मुझे वो अपना नाम देता है
सुकूँ के सुबह शाम देता है
पिता है वो मेरा ...
मेरे साथ ही जन्म लेता है !
भगवान है वो जमी पर मेरा
हर ख़ुशी मेरे नाम करता है
ऊँगली पकड़ सम्भालता है
माथे पे दे प्यार का बोसा
रोज मुझे संवारता है ...
पिता है वो मेरा , मेरे साथ ही जन्म लेता है !

टिप्पणी :माँ और पिता को परिभाषित करना वश में नही मेरे ! एक छोटा सा प्रयास मात्र !


प्रभा मित्तल
~~ये गोटियाँ~~
~~~~~~~~~~~

ये केवल दो गोटियाँ नहीं
हैं जीवन के अनिवार्य अंग।
मात-पिता दुःख सहकर भी
भरते हैं खुशियों के रंग।

एक जब धमकाता है
दूजा गले लगाता है
दुलरा कर,बहलाकर
चलना भी सिखलाता है।

ये जीवन की सौगात हैं
व्यक्तित्व की पहचान हैं
इन से ही देह में रक्त है।
नहीं! तो मानव अशक्त है।

आशीष साथ हो जब इनका
पथरीली पगडण्डी भी
मखमल सी बन जाती है
संसार चक्र में पिसकर भी
हम ऊँचा उठते जाते हैं।

टिप्पणी: गोटियों  को गोटियाँ नहीं बल्कि माता-पिता का रूप देकर उन्हें जीवन का अनिवार्य अंग माना है।


अलका गुप्ता
~ तस्वीर के दो पहलू ~

हर तस्वीर के दो पहलू होते हैं
सकारात्मक है तो... नकारात्मक भी है !
आज का शिशु...बालक
कल पिता बनेगा
जब कि चल रहें हैं दोनों ही
साथ होते हैं...फ़िर भी..
कोई बचपन देखता है...
और...कोई बुढ़ापा !
एक ही तस्वीर के हैं दो पहलू
यदि आज कोई मृत हुआ तो..
जन्म तो निश्चित ही हुआ होगा
किसी ने मृत्यु गाई तो...
किसी ने जीवन गाथा...
बस उसी तरह से...
जिस तरह से पासे मॆं
अंकित अंक...जो कभी
हर्ष का कारण बनते हैं...
और कभी विषाद का !
लेकिन जो तस्वीर हम देखना चाहते हैं....
वह नज़र वह इशारे तभी
हम देख सकते हैं जबकि
वह ईश हमें दिखलाये.
मतलब साफ है...
यहाँ एक तस्वीर के हम
बेशक ...
मोहताज हों मगर...
तस्वीर का प्रतिबिम्ब
हमारे भावों का मोहताज है
और हम उस ईश्वर की
बख्शी हुई नज़र के !!!

टिपण्णी: बस यूँ ही हाथ फोन पर चलते रहें तस्वीर कॊ देख कर भाव मचलते रहें...जो भी लिखाया उस खुदा ने लिखाया मेरा कोई कसूर नही....न ही कोई कारीगरी !


कुसुम शर्मा
~कुसुम शर्मा छूटते रिश्ते~
---------
हाथ पकड़ कर चलना सिखाया
अच्छे बुरे का भेद बताया
दुख मे जिसने सदा सम्भाला
मात पिता का रिश्ता निराला
जिनकी छाया मे बड़े हुये
हर ज़िद मे उनसे अंडे रहे
पूरी होने पर गले लगे
उनकी डाँट प्यार से बड़े हुए
अपनी कामयाबी के मद मे
आज क्यो उनको भूल गये
वृद्धाश्रम बनाकर
उनकी सेवा से मुक्त हुए
जिन्होंने हमारी खुशी के लिए
अपने हर सुख त्याग दिये
आज हमने वृद्ध अवस्था मे
उनको ही त्याग दिया
कल ये दिन फिर लौट के आयेगा
जो बनाये वृद्धाश्रम हमने
वो ही हमारा घर कहलायेगा !!

टिप्पणी 
पिता की अंगली पकड़ कर हम चलना सीखते है उनकी छाया मे बड़े होते है और बड़े होने पर हम जब उन्हे हमारी अवश्कता होती है तो हम उनको वृद्धाश्रम मे छोड आते है और ये भूल जाते है कि जो हम बो रहे है वही काटेंगे जिन्होंने हमारी खुशी के लिए दुख उठाये हम आज फिर अपनी झूठी खुशी के लिए फिर से उन्हे दुख दे रहे है !!




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