Friday, May 6, 2022

तकब - 08/22 - रचनाएँ,परिणाम एवं समीक्षा





विनीता मैठाणी
दायित्व 

कष्ट भरें हों तो क्या,
आनन्द की सीमा में,
ठहरे हुए हैं दायित्व ।

बोझ असहनीय कितना
तन-मन हो थक कर चूर,
महकाते हुए हैं दायित्व ।
अपने से लेकर अपनों तक,
परिवार, प्रदेश से देश तक ,
खूब पसरे हुए हैं दायित्व ।

सपने बढ़ने बढ़ाने में साकार,
मुश्किलों में भी हो नैय्या पार ,
सब ग़र निभाये हुए हैं दायित्व ।

धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्ति
है सबका एक ही सार ग्रन्थों में,
सर्वोपरि रखें हुए हैं दायित्व ।

माँ की ममता,पिता नहीं अछूता,
देवताओं को भी मुक्ति नहीं ,
महानता दर्शाये हुए हैं दायित्व ।

प्रकृति से पल्लवित हो रहा,
पुरुष में परिभाषित हो रहा,
बन्धन में बांधे हुए हैं दायित्व ।

जड़ चेतन सबमें प्रभुत्व ,
जीवों में ईश्वरत्व बिखेरे ,
सभी तो पाये हुए हैं दायित्व ।

टिप्पणी :सभी के लिए दायित्वों की पूर्ती करना अनिवार्य है और इससे हमें समृद्धि और सफलता मिलेगी 



यामा शर्मा "उमेश'
दायित्व

गृह प्रवेश के समय तुम्हारे कदमों के साथ आये थे
कुछ दायित्व मैंने घर की देहरी पर सजाये थे
नयी आशाओं के साथ मुस्कुराते हुए आये थे
जिम्मेदारी थी पर तुमने काफी कुछ निभाये थे
कुछ दायित्व चौखट के कोने पर जिसे तुम नहीं देख पाये थे
जो विश्वास को, संवेदनाओं को उम्मीदों को छिपाये थे
क्या वो पराये थे या अपना विश्वास नहीं बना पाये थे
उनकी धड़कन, काँपती आवाज़ नहीं सुन पाये थे
क्यों प्यार के बदले में प्यार नहीं दे पाये थे
दहशत से भरी मुस्कराहट और जीवन की सच्चाई को वो छिपाये थे
जो जोड़ा है वो तुम्हारा है हमारा क्या है समझा नहीं पाये थे
सच यही था कि हम अपने आप में मन लगाये थे
तुम्हारी आवाज़ एक घर में ही दूर से सुन पाये थे
जिस दिन आँखों को तुम्हारी सूरत दिख जाये
उस दिन मन में दीपावली के दिये जलाये थे
दायित्व हमारा था दायित्व तुम्हारा है
दोनों में पीढ़ी का अन्तर है
आज समझ पाये थे
जो आज समझ पाये थे।।


टिप्पणी: इस कविता के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी जिम्मेदारी और सोच के दायरे में बदलाव हर पीढ़ी की आशायें, वक्त के साथ बदलते रिश्ते नाजुक दौर से गुजरते हुए जीवन व्यतीत करते हैं।




प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
मेरा दायित्व
( प्रोत्साहन हेतु )

दायित्व का अर्थ आज हमें समझना होगा
जीवन को जीने का भरपूर आनन्द मिलेगा
निष्ठा का इसमें समावेश हमें फिर करना होगा
दायित्व में उत्तरदायित्व अधिक निभाना होगा

नैतिकता की सीढ़ी पर निरंतर हमें चलना होगा
दायित्व से जुड़ा कर्तव्यबोध स्वयं जगाना होगा
स्वयं से हट कर दूसरों का हित सोचना होगा
समाज, राज्य या देश का संदर्भ हमको लाना होगा

परिवार सा समाज, समाज सा देश समझना होगा
लाभ और स्वार्थ के चुंगल से हमें निकलना होगा
अधिकार का प्रयोग कर दायित्व पूर्ण करना होगा
अच्छे नागरिक बनकर राष्ट्र सर्वोपरि समझना होगा

हो जहाँ, वहाँ कल्याण भाव को व्यवहार में लाना होगा
गुण अवगुण का भेद मिटाने समाज शास्त्र को पढना होगा
अनुशासन और कर्तव्यपरायण का हमें विचार बनना होगा
योगदान और सहयोग का भाव को संगठित करना होगा

समाज में दायित्व क्रिया है जिसे प्रक्रिया में ढालना होगा
दायित्व से अनुबंधन नहीं, उसका अनुपालन करना होगा
धारणा या अवधारणा से हट कर राष्ट्र निर्माण करना होगा
शिष्टता संग संवैधानिक दायित्व का निर्वाहन करना होगा

टिप्पणी: दायित्व एक शब्द नहीं इसके साथ हमें जहाँ परिवार समाज या देश से जुड़ा हर कर्तव्य निभाना होता है उसी विषय का संदर्भ लेकर दायित्व को समझने का प्रयास इन चन्द शब्दों में.



ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
" जीवन व दायित्व “
चौपई छंद में,,,,,,
शिल्प विधान-15 मात्रा अंत 21 गुरु लघु आवश्यक है
समांत-आर


जीवन क्षणिक,समझ लो यार!
मानव तू! कर सत्य विचार |
**
कभी दु;ख -के बादल छाँय ,
कभी ,भोर सा सुख संचार |
**
हरपल का तू, ,,ले ले स्वाद,
पतझर बाद ,,,बसंत बहार |
**
कठिन बहुत ,जीवन की राह,
करो ,,,,,उमंग जोश से पार |
**
कर्तव्यों के ,,सत सुविचार ,
न्याय धर्म हो लक्ष्य अधार |
**
देश धर्म ,समाज- दायित्व,
और स्वंय का घर- संसार |
**
सबके प्रति होता कर्तव्य,
करना है निस्वार्थ व्यवहार |
**
मानव जीवन पाकर धन्य,
ईश्वर का ,,करना आभार |
**
उत्तरदायित्व,, हमारा ध्येय,
जीवन का शुभ लक्ष्य सँवार


टिप्पणी: मानव जीवन पाकर कर्तव्य निर्वहन करना हर मनुष्य का दायित्व हो जाता है,,और हमारे जीवन में देश,समाज,व घर परिवार के प्रति अनेकानेक कर्तव्य स्वयमेव निर्धारित हो जाते है,,,उन सभी को निभाना ही वास्तविक मानव जीवन है,,,इन्ही विचारों को छंद में व्यक्त किया है,,जय श्री कृष्णा



नैनी ग्रोवर
दायित्व निभाना जाने ना

मांगे तो है अधिकार परन्तु,
दायित्व निभाना जाने ना,
लालच के खारे सागर में डूबा,
किसी की प्यास बुझाना जाने ना...

मेरा-मेरा कर-कर रोज़ ही मरता,
किसी को मुट्ठी भर देना जाने ना,
लोभी मन को तेरे, ए पगले बन्दे,
तू आखिर क्यूंकर दबाना जाने ना...

निंदा, चुगली, और बैरभाव को,
स्वयं से दूर करना जाने ना,
छोड़ दे ये सब, फिर सबकुछ है तेरा,
क्यों तू ये दीवाना जाने ना....!

टिप्पणी: आज इंसान में इतना लालच समा चुका है के उसे अधिकार तो चाहिए, पर दायित्व नहीं, हर चीज़ उसकी हो वो ये तो चाहता है किन्तु उसमे से किसी को कुछ भी देना नहीं चाहता..!  



शिव मोहन 
दायित्व पथ

कुछ विरले होते हैं जग में, जिनके कंधों पे भार सदा।
बचपन से निभाते रहते हैं , दायित्वों का जो बोझ लदा।

भगवान बनाता है कम ही , ऐसे लोगों को दुनिया में।
जो पूरी करते हैं सबके , मन के अंदर की अभिलाषा।

अभिलाषा से दायित्व बड़ा, जो ले आता जिम्मेदारी।
पूरी करने को उसको ही , वो उम्र लगाते हैं सारी।

सीमा पर प्रहरी सहते हैं , हँसते हँसते वो कष्टों को।
जीवन से प्यारा जिनको है ,भू रक्षा का दायित्व कड़ा।

लक्ष्मण जो पूजे जाते हैं , भाई की भक्ति जीने को।
हैं भरत लाल सर माथे पर , कुटिया में ही दायित्व निभा।

वो हरिश्चंद्र ना भूलेंगे , माँगा जिसने मरघट का कर।
अपने बालक के शव पे भी ,दायित्व बोध ना कभी डिगा।

इतिहास उन्हें करता है नमन, जो डिगे कभी ना काँटों से।
चाहे आये बाधाएं बड़ी , दायित्व रहा बस प्रथम सदा।

टिप्पणी: दायित्व बोध को समझने वाले विरले ही होते हैं परन्तु इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखवा जाते हैं।




आभा अजय अग्रवाल 
दायित्व 

जीवन संग जीने का दायित्व
बिन कहे मिल जाता है ,
मॉ बनते ही सीने में अमृत
बिना खटक उतर आता है ,
कंठ में सुर हों ना हों
मां की लोरी सबसे मीठी ,
सद्य पिता बना पुरुष
बिन कहे बड़ा हो जाता है ,
सूरज चंदा गगन के तारे
बादल बरखा बिजुरी सारे ,
ऊर्वा संग वृक्ष नदी अर
पशु-पक्षी ये प्यारे न्यारे ,
दायित्व में सब बंध के रहते
बोझ उसे कभी ना कहते ,
ऐ मानव फिर तू क्यूँ ?
बोझ समझ दायित्व से भागे !
दायित्व तो मां के आँचल सा
उससे कभी न तू कतराना
गुरुत्वाकर्षण के स्थिर नियम सा
मां बच्चे को गर्भ नाल सा
पिता को विष्णु स्वरूप सा
दायित्व शिव संकल्प हो सबको
उसे निभायें
नही जतायें
जीवन पथ को सरल बनायें
हम सब सुंदर संसार बनायें 

टिप्पणी: दायित्व शीर्षक दे के चित्र में उसे बोझ बताया गया है पर मेरी दृष्टि में दायित्व जीने का ही तरीक़ा है यदि उसे सहज भाव से लिया जाय तो





मदन मोहन थपलियाल 
दायित्व - फिर बोझ क्यों ?

प्रत्यक्ष है, अप्रत्यक्ष है
साक्ष्य है, परमार्थ है
ग्राह्य है, त्याज्य नहीं
दायित्व- फिर बोझ क्यों ?

सहज है, सरल है
भौतिक है, वैधानिक है
अनादृत ,ऐसा भी नहीं
दायित्व -फिर बोझ क्यों ?

न थोपा गया, न अपनाया गया
न प्रतिकार , न अस्वीकार
कब कैसे हुआ पदार्पण, पहेली बन रह गया
दायित्व -फिर बोझ क्यों?

शोध का है विषय , प्रतिशोध नहीं
अबोध से बोध तक, आकंठ डूबा हर आदमी
रोग से निवारण तक साथ है
दायित्व -फिर बोझ क्यों ?

सब निभा रहे हैं, सब निभाएंगे
कुतूहल है, समझ से परे
स्वेच्छा से हर कोई निभाता है जिंदगी भर
दायित्व -फिर बोझ क्यों ?

विचारणीय प्रश्न, उत्तर नदारत
छींटाकशी, अहंकार से लबरेज
निभाना न आया, अगर सच है ?
दायित्व - फिर बोझ क्यों ?

टिप्पणी: दायित्व से कभी कोई मुंह नहीं मोड़ सकता है। मानव जीवनपर्यंत जो कुछ सद्कर्म करता है वही दायित्व है, मानव जन्म हुआ है तो दायित्व को ईश्वर का प्रसाद समझ स्वीकार करना चाहिए।


अलका गुप्ता 'भारती'
दायित्व बोध

दायित्व बोध में बंधा जगत है हर प्राणी हर व्यक्ति ।
दायित्व बोध ही जीवन को देते हैं प्रेरक सद्गति॥

मानव हैं हम और मानवता ही है धर्म हमारा।
न्यौछावर हैं प्राण भी हँसकर
समर्पित अपने द्वारा॥

दंड विधि होवे रक्षण अधिकार और कर्तव्य हमारा।
हैं समाहित परिष्कृत संस्कार संस्कृति दायित्व हमारा॥

अग्रसर हों हम निज देश धर्म भाषा की करें सुरक्षा ।
सु-वर्तमान करें आधारित लेकर इतिहास से शिक्षा ॥

स्वस्थ तन मन के लिए करें जागरुक योग संकल्प भी।
ज्ञान विज्ञान हेतु निरंतर प्रसार चहुं दिश विकल्प भी॥

हों सचेत निज अधिकारों के प्रति रहकर ही कर्म करें।
कर्तव्यों से मानव हित में संपूर्ण आधार धरें॥

ईश प्रदत्त संपदा वैदिक रक्षित मानवता से वरें।
तन मन धन से होकर समर्पित सबका ही कल्याण करें ॥

वसुधैव कुटुंबकम का मंत्र हमें अपनाना होगा ।
कल्याण हेतु मन में दायित्व बोध जगाना होगा॥

टिप्पणी: दायित्व बोझ नहीं दायित्व हमारा कर्तव्य है।



किरण श्रीवास्तव
दायित्व
(हाइकू विधा)

दायित्वों को भी
निभाना पड़ता है
समर्पण से...!

पृथक होते
दायित्व भी सभी के
तत्पर सभी...!!

जीवन धाम
तन मन अर्पण
अपने सब...!!!

जग उद्यान
महके हरदम
संकल्पों से ही....!!!!

टिप्पणी: जीवन के हर चरण में परिवार समाज राष्ट्र के प्रति हमारे कुछ दायित्व होते हैं जिनको निभाते हुए ही हम पूर्णता को प्राप्त करते हैं!



परिणाम 
तकब 8/22
नमस्कार प्रिय मित्रों !
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।वह समाज से छिटक कर दूर नहीं रह सकता। रिश्ते-नाते,बन्धु-बान्धव,संगी-साथी इन सभी से वह भावनात्मक रूप से जुड़ा रहता है। क्योंकि यही वे लोग हैं जो उसके आड़े वक़्त में काम आते हैं और इन्हीं से वह अपने दुःख-सुख में सुख-सुविधाओं का लाभ भी उठाता है।जब हम किसी से लाभ की उम्मीद रखते हैं तो हमारी भी ये ज़िम्मेदारी बनती है कि हम भी उसके समय-असमय में साथ खड़े हों।कुछ पाने की उम्मीद भी हमें तभी रखनी चाहिए जब आंशिक रूप से ही सही...हम लौटाने में सक्षम हों।अतः घर-परिवार,समाज, देश सबके प्रति हमारे कुछ कर्तव्य हैं,जिनका हम निर्वहन भी करते हैं।कुछ ऐसा ही चित्र हमें दायित्व विषय के साथ अपने मनोभाव व्यक्त करने के लिए तकब 8/22 की प्रतियोगिता में दिया गया था।आप सभी रचनाकारों ने यथाशक्ति चित्र पर सार्थक भाव अभिव्यक्त किए।निर्णायक मण्डल से आईं प्रोत्साहन स्वरूप तीन कविताओं के अतिरिक्त हमें कुल सात प्रतिभागियों की रचनाएँ मिलीं।जिन पर निर्णायकों द्वारा मिली वोट संख्या इस प्रकार है........
प्रथम स्थान के लिए मिले वोट....
1.अलका गुप्ता ----1
2.शिव मोहन----2
3.विनीता मैठाणी----2
------------------
द्वितीय स्थान के लिए मिले वोट......
1.शिव मोहन -----2
2.यामा शर्मा ------1
3.नैनी ग्रोवर-------1
4.विनीता मैठाणी-----1
---------------------
निष्कर्ष........
1.शिव मोहन---- 2+2=4
2.विनीता मैठाणी---- 2+1=3
3. अलका गुप्ता ----1
4.नैनी ग्रोवर ----1
5.यामा शर्मा-----1
--------------------
इस प्रकार कुल चार वोट प्राप्त करके शिव मोहन जी अपनी रचना "दायित्व पथ" की प्रस्तुति देकर प्रथम स्थान पर विजयी रहे एवं कुल तीन वोट लेकर सुश्री विनीता मैठाणी ने अपनी रचना "दायित्व" का सृजन कर द्वितीय स्थान प्राप्त किया।शिव मोहन जी और विनीता मैठाणी जी को हृदय से बधाई व अनन्त शुभकामनाएँ!!





अब चलते हैं रचनाओं की ओर......तकब 8/22 की सभी रचनाओं की समीक्षा सुश्री अंशी कमल ने की है।मैं इस सहयोग के लिए अंशी कमल जी को धन्यवाद देते हुए उनका हृदय से स्वागत करती हूँ.....!
अब आपके समक्ष आपकी रचनाओं की समीक्षा लेकर उपस्थित हैं-


समीक्षा......तकब 8 /22

प्रथम स्थान के विजेता *आद. शिव मोहन जी-* दृष्टान्त अलंकार की छटा बिखेरते हुए आद. शिव मोहन जी की खूबसूरत रचना "दायित्व पथ" पटल पर आयी। "दायित्व पथ" के महत्व को ध्यान में रखते हुए आपने लक्ष्मण, भरत, राजा हरिश्चन्द्र व सीमा पर खड़े वीर सिपाहियों के सुन्दर उदाहरण देते हुए उन लोगों को​ ​श्रेष्ठ व पूज्य माना है, ​जिन्होंने​​ अनेक कष्टों को सहते हुए भी अपने दायित्व से कभी मुँह नहीं मोड़ा। आपने अपने दायित्वों​ के​ प्रति लोगें को सजग करने के लिए यह बताने का प्रयास किया है कि "सदैव दायित्व पथ पर चलने वाले लोगों के नाम ही स्वर्णाक्षरों में लिखे जाते हैं।" आपके सशक्त भावपक्ष व शिल्प पक्ष ने आपकी कविता​ में​ चार चाँद लगा दिये।


द्वितीय स्थान प्राप्त *आद. विनीता मैठाणी जी -* 'दायित्व' विषय पर आदरणीया विनीता मैठाणी जी ​ने​ अपनी छन्दमुक्त कविता "दायित्व" से पटल को सुशोभित किया। अपनी इस खूबसूरत रचना में आपने दायित्व के महत्त्व एवम् उसके अतिशय विस्तृत क्षेत्र को बहुत ही सुन्दर ढंग से वर्णित किया है। आपके अनुसार "दायित्वों को निभाने में यदि एक ओर अनेक कष्ट भी मिलते हैं, तो वहीं दूसरी ओर आनन्द की भी प्राप्ति होती है और मनुष्य दायित्व का असहनीय बोझ भी सरलता से उठा सकता है । जब हम अपने दायित्वों को भली ​भाँ​ति निभाते हैं तभी हम हर मुश्किल से लड़कर अपने सपनों को साकार कर सकते हैं। दायित्व का क्षेत्र परिवार से लेकर देश तक, माता-पिता से लेकर देवताओं तक, प्रकृति के हर जड़ चेतन तक फैला हुआ है।" आपका शब्द संयोजन व भाव संयोजन अति प्रशंसनीय है।
*आद. यामा शर्मा 'उमेश' जी-* दूसरी रचना के रूप में आद. यामा शर्मा जी ने अपनी खूबसूरत रचना "दायित्व" से पटल को सुशोभित किया।आप अपनी कविता के माध्यम से बताना चाहती हैं कि "समय के साथ-साथ हर व्यक्ति के दायित्वों तथा विचार करने की क्षमताओं में भी परिवर्तन आते रहते हैं। हर व्यक्ति के अपने अलग-अलग दायित्व होते हैं। कभी-कभी हम अपने दायित्वों​ को​ भूल भी जाते हैं और कभी-कभी दायित्वों के कारण हम अपने मनोभावों को चाहते हुए भी व्यक्त नहीं कर पाते हैं।" आपकी इस मनोरम छन्दमुक्त कविता की भाषा शैली सरल व सहज है।
*आद. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी-* तीसरी रचना प्रोत्साहन स्वरूप आद. प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी ने अपनी खूबसूरत छन्दमुक्त कविता "मेरा दायित्व" से पटल को सुशोभित किया। आपके अनुसार "हमें सदैव अपने दायित्वों को याद रखकर उन्हें निभाना भी चाहिए। यदि हम सच्ची निष्ठा के साथ ऐसा करेंगे ​, ​​तभी हमें सच्चे आनन्द ​की प्राप्ति होगी​ । हमें परिवार, समाज व देश के प्रति अपने दायित्वों को निस्वार्थ भाव से निभाना चाहिए तथा देश को सर्वोपरि मानना चाहिए। जो देश व परहित को सर्वोपरि मानता है वह कभी भी अपने दायित्व से डिग नहीं सकता। आपका शब्द संयोजन व भाव संयोजन सशक्त है तथा आपकी लेखनी से देशप्रेम व लोक कल्याण की मंजुल महक प्रसारित हो रही है।


*आद. ब्रह्माणी वीणा जी-* चौथी रचना के रूप में आद. ब्रह्माणी जी ने "चौपाई छन्द" में रचित अपनी खूबसूरत रचना "जीवन व दायित्व" से पटल को सुशोभित किया। आपने अपनी रचना के द्वारा यह कहते हुए मानव को जागृत करने का प्रयास किया है कि "जिस प्रकार पतझड़ के बाद ही वसन्त ऋतु ​का ​शुभागमन होता है​,​ ठीक उसी प्रकार ​दुः​​ख के बाद सुख की प्राप्ति होती है इसलिए हमारे कर्तव्य मार्ग में चाहे कितने भी दु:ख व विघ्न खड़े हों किन्तु हमें कभी भी अपने दायित्वों से मुख नहीं मोड़ना चाहिए। घर से देश तक हमारे कुछ निर्धारित दायित्व हैं जिनका हमें सदैव निस्वार्थ भाव से पूर्ण सत्यता व ईमानदारी के साथ निर्वहन करना चाहिए।" अति सुन्दर शब्द संयोजन व भाव संयोजन के द्वारा आपने दायित्व के महत्व व क्षेत्र को बहुत ही कुशलता के साथ व्यक्त किया है।
*आद. नैनी ग्रोवर जी-* आद. नैनी जी की खूबसूरत छन्दमुक्त रचना "दायित्व निभाना जाने ना" पाँचवीं रचना के रूप में पटल पर आयी। आपने बहुत ही सरल व सहज भाषा में बहुत कुछ करने का सफल प्रयास किया है। "दायित्व" विषय पर अपने विचार कविता के रूप में व्यक्त करते हुए आपने आज के मानव के इस कड़वे सच को उजागर किया है कि "आज हर व्यक्ति स्वार्थ व लालच के वशीभूत होकर अपने अधिकारों की माँग तो खूब करता है किन्तु जब उस पर दायित्वों की बात आती है तो वह मौन हो जाता है।" अपनी रचना के अन्त में आपने सबको अपने दायित्वों को निभाने की तथा अपने दायित्वों को न छोड़ने की बहुत ही सुन्दर सीख दी है।
*आद. आभा अजय अग्रवाल जी*- पटल को सुशोभित करने के लिए सातवीं रचना "दायित्व" आद. आभा जी की आयी, जो कि प्रतियोगिता से इतर व छन्दमुक्त है। आपने दायित्व के महत्व को स्पष्ट करते हुए यह बताने का प्रयास किया है कि "दायित्व निर्वहन" जीने का एक ऐसा तरीका है जो जीवन को सरल बनाने में सहायता करता है, इसलिए हमें शिव-संकल्प के साथ अपने दायित्व सदैव निभाने चाहिए। दायित्व हमें प्रकृति से सहज ही मिल जाते हैं, जैसे- एक महिला जैसे ही माँ बनती है वैसे ही उसके सीने से दूध निकलने लगता है और पिता बनते ही एक पुरुष का स्थान स्वत: ही ऊँचा हो जाता है। संसार में पशु-पक्षी, सूरज, चाँद, बादल, बारिश, पेड़, नदी आदि सभी अपने​-अपने ​ दायित्व से बँधे हुए हैं इसलिए मनुष्य को भी अप​ने​​ दायित्व से दूर नहीं जाना चाहिए।
*आद. मदन मोहन थपलियाल जी-* आद. मदन मोहन थपलियाल जी की प्रश्न शैली में लिखी गई खूबसूरत रचना "दायित्व-फिर बोझ क्यों?" ने आठवीं रचना के रूप में पटल को सुशोभित किया। आपने बताया है कि "प्रत्यक्ष रूप से हो या अप्रत्यक्ष रूप से दायित्व ग्रहण करने के लिए ही होते हैं, त्यागने के लिए नहीं। दायित्व को हम कभी भी अस्वीकार नहीं कर सकते हैं, यह तो सबके जीवन में स्वयं पदार्पण करते हैं। दायित्व सदैव मनुष्य के साथ-साथ चलते हैं। यदि उत्साहित होकर अपने दायित्व को निभाया जाय तो जीवन सरल व सहज बन जाता है। जब हम सबको अपने-अपने दायित्व कभी मजबूरी से तो कभी स्वेच्छा से निभाने ही पड़ते हैं तो फिर हम दायित्व को बोझ क्यों समझें?" आपकी रचना भाव सौन्दर्य एवं शिल्प सौन्दर्य से सुसज्जित बहुत ही मनोरम है।
: *आद. अलका गुप्ता जी-* नौवीं रचना के रूप में पटल को आद. अलका गुप्ता जी की तत्सम शब्दों से सुसज्जित रचना "दायित्व बोध" ने सुशोभित किया।आपने बताया है कि "हर व्यक्ति दायित्व के बन्धन में बँधा हुआ है और हमें अपने दायित्वों को सदैव अपना कर्तव्य समझकर निभाना चाहिए। दायित्व ही देश की सुरक्षा का आधार हैं। इसलिए हमें अपने देश को आगे बढ़ाने व सुरक्षित रखने के लिए, अपने अधिकारों के प्रति सजग रहते हुए वसुधैव कुटुम्बक​म्​​ के भाव को हृदय में रखकर अपने दायित्वों को निभाना चाहिए।" अति सुन्दर शब्द शिल्प एवं भाव शिल्प के साथ विश्व​​कल्याण की भावना से सुसज्जित खूबसूरत रचना।
*आद. किरण श्रीवास्तव जी-* दसवीं रचना के रूप में पटल को आद. किरण श्रीवास्तव जी ने हाइकु विधा में रचित अपनी खूबसूरत रचना "दायित्व" से सुशोभित किया। आपकी रचना ने गागर में सागर भरने जैसा काम किया है। आपने अपनी रचना में यह बात बहुत ही सुन्दर कही है कि "संसार में सबके ही दायित्व भिन्न-भिन्न होते हैं और हमें अपने दायित्वों को सदैव समर्पण भाव से निभाना चाहिए। यदि हम समर्पण भाव से अपने-अपने दायित्वों को निभाने का दृढ़ संकल्प कर लेंगे तो तभी हम इस संसार रूपी उद्यान को महका सकते हैं।" भावपक्ष व शिल्प पक्ष अति सुन्दर।]

सुश्री अंशी कमल 


रचनाओं की समीक्षा लिखने के लिए अंशी कमल जी को बहुत हृदय से धन्यवाद ... आभार।


आप सभी रचनाकारों की रचनाएँ चित्र के अनुसार सार्थक रहीं। मेरी दृष्टि में आप सभी बधाई के पात्र हैं।
निर्णायक मंडल के सभी सम्माननीय सहयोगी सुधीजनों का सहृदय धन्यवाद, आभार।
प्रोत्साहन हेतु प्रस्तुति के लिए आदरणीय भाई मदन मोहन थपलियाल जी"शैल", प्रिय प्रतिबिम्ब जी व प्यारी आभा जी(Ajai Aggarwal) का हृदय से आभार व साधुवाद।आप सभी अपना मार्गदर्शन व सहयोग बनाए रखिएगा।
तकब समूह के सभी सदस्यों से आग्रह है कि अपनी रचनाओं की प्रस्तुति देकर अपनी उपस्थिति से इस समूह की रौनक बनाए रखें।
सस्नेह शुभकामनाएँ!🌹
प्रभा मित्तल.
नई दिल्ली।


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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